हमारी संस्कृति में मोक्ष जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। मोक्ष के लिए शिवरात्रि का ही व्रत पुराण में वर्णित है। वास्तव में यह व्रत देवाध...
हमारी संस्कृति में मोक्ष जीवन का परम लक्ष्य माना गया है। मोक्ष के लिए शिवरात्रि का ही व्रत पुराण में वर्णित है। वास्तव में यह व्रत देवाधिदेव महादेव की महान् शक्ति का प्रतीक माना गया है। शिव के विभिन्न स्वरुप देश में हैं। शत रुद्र संहिता में शिव की अष्ट-मूर्तियों के निम्न नाम दिए गए हैं। शर्व, भव, भीम, पशुपति, ईशन, महादेव व रूद्र भगवान शिव को अर्धनारीश्वर तथा भैरव माना गया है। इसी संहिता में शिव के अन्य कतिपय प्रमुख अवतारों का भी वर्णन है। जो इस प्रकार हैं- श्रभ अवतार, गृहपति अवतार, यक्षेश्वर अवतार, एकादश रूद्र अवतार, दुर्वासा यक्षेश्वर अवतार, महेश अवतार, हनुमान अवतार, वृषभ अवतार, विप्लाद अवतार, वैश्य नाग अवतार, द्विजेश्वर अवतार, यतिनाथ अवतार, कृष्ण दर्शन अवतार, अवधूतेश्वर अवतार, भिक्षुवर्य अवतार, सुरेश्वर अवतार, ब्रहम्चारी अवतार, सुनर नर्तक अवतार, साधु अवतार, विभु अश्वत्थामा अवतार व किरात अवतार आदि।
शिवजी के द्वादश ज्योतिलिंगों का परिचय भी इस संहिता में दिया गया हे। ये हैं- सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्री शैल में मल्लिकार्जुन, उज्जयिनी में महाकालेश्वर, विंध्याचल में ओंकारेश्वर, हिमाचल में केदारनाथ, डाकिनी में भीमशंकर, काशी में विश्वनाथ, गौतमी तट पर अम्बिकेश्वर, अयोध्यापुरी में नागेश, चिंताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर तथा देव संरवर में घुमेश्वर।
कुछ प्रसिद्ध शिवलिंगों का वर्णन भी कोशिश रूद्र जी ने इस प्रकार किया है-अत्रीश्वर महादेव, नंदिकेश्वर, महाबलेश्वर, हाटकेश्वर, अंधेकेश्वर, बटुकेश्वर, सोमेश्वर, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमेश्वर, विश्लेश्वर, अम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर,रामेश्वर, घुश्मेश्वर, हरिश्वर, व्याघेश्वर आदि।
उमा संहिता में शिव पार्वती को हुंकार शब्द यानी अनाहत नाद शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि प्रतिदिन 2 घंटे इस शब्द को सुनने से मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है। इस शब्द में घोपनांद, अंगनाद, वीणानाद, वंशजनाद, दुन्दुभिनाद, शंखनाद, मेघनाद समाहित हैं।
शिव के आठ नाम बताए गए हैं। शिव, महेश्वर, रूद्र, विप्णु, पितामाह, सर्वज्ञ, संसार वैद्य, और परमात्मा। परन्तु शिव, महेश्वर और रूद्र ही प्रचलित नाम हैं। शिव की शक्ति योग रुप है। इस परा शक्ति से ही चित्तशक्ति, चित्त शक्ति से आनंद और इसी से क्रमशः इच्छा, ज्ञान और प्रिय शक्ति की उत्पति हुई है।
शिव शब्द का अर्थ प्रकृति से युक्त है। ज्ञान और शक्ति से परिपूर्ण है शिव, और यहीं से शुरु होता है शिवत्व जो उमा से मिलकर पूर्ण प्रकृति बनता है।
शिव की अप्ट मूर्तियों में ही विश्व गुंफित है।
महादेवी साक्षात शक्ति है और महादेव शक्तिमान है। शिव महेश्वर और शिवा माया महामाया है।
वायकीय संहिता में श्री कृष्ण को संबोधित करते हुए उपमन्यु कहते हैं-शिवजी, प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, माया, आदि के बंधनों से परे है। ये वासना, भोग, कारण, कर्ता, आदि अंतर, अन्त आदि से अतीत है। यही शिव का शिवत्व है।
हमारी संस्कृति के में शिव है और तीर्थ स्थानों का विशेष महत्व शिव से है। हर देवालय, मंदिर में शिवलिंग स्थापना सहज है आवश्यक है। वाराणसी, उज्जैन, रामेश्वरम्, बदरी, केदार, हिमालय क्षेत्र शिव की आराधना स्थल है। पुराणों में, शिव को सर्वसुलभ माना गया है। हर व्यक्ति को आसानी से उपलब्ध देव हैं- शिव। शिव की यही सहजता उसे अन्य देवों से अलग विशिष्ट बनाती है।
डॉ․ राममनोहर लोहिया ने राम कृष्ण और शिव में लिखा है- ‘‘असीम तात्कालिकता की इस महान पुराकथा ने बड़प्पन के दो और स्वप्न दुनिया को दिए हैं, जब देवों और असुरों ने समुद्र मंथा, तो अमृत के पहले विप निकला। किसी को यह विप पीना था। शिव ने उस देवासुर संग्राम में कोई हिस्सा नहीं लिया और न तो समुद्रमंथन के सम्मिलित प्रयास में ही लेकिन कहानी बढ़ाने के लिए वे विषपान कर गए। उन्होंने अपनी गर्दन में विप को रोके रखा और तब से वे नीलकंठ के नाम से जाने जाते हैं। दूसरा स्वप्न हर जमाने में हर जगह पूजने योग्य है जब एक भक्त ने उनकी बगल में पार्वती की पूजा करने से इंकार किया, तो शिव ने आधा नारी, अर्धनारीश्वर रुप ग्रहण किया। मैंने आपादमस्तक उस रुप को अपने दिमाग में उतार पाने में दिक्कत महसूस की है, लेकिन उसमें बहुत आनंद मिलता है। वास्तव में संसार के दुखों को विषों को पीकर आने वाली पीढ़ी के लिए केवल अमृत बचाए रखना ही शिवत्व है।''
डॉ.ॅ आनन्द कुमार स्वामी ने डी डान्सेज आफ शिव के नृत्यों का बड़ा मनोहारी चित्रण किया है। उनके अनुसार नटराज के लिए पूरा संसार नाट्य शाला है। वे स्वयं ही नर हैं अर स्वयं ही प्रेरक भी हैं। शिव की तीन नृत्यों का उल्लेख डा․ॅ स्वामी ने किया है।
1․स्वर्गिक, 2․ तांडव नृत्य, 3․ नादत नृत्य।
शिव प्रदोष स्तोत्र में स्वर्गिक सहगान का विस्तृत वर्णन है। तांडव नृत्य का शाक्त साहित्य में विस्तृत वर्णन है। दक्षिण भारत की प्रतिभाओं में वर्णित नांदत नृत्य में शिव को चार भुजाओं में नृत्यरत दिखाया गया है। सच में शिव संहार कर्ता है तो क्या शिव का शिवत्व केवल संहार, नष्ट कर देने में है। वे किसको नष्ट करते हैं। किसका संहार करते हैं। श्मशान क्या है। वे अहं, अहंकार, कर्मो, भ्रमों का नाश करते हैं व इस दाहकर्म के बाद वे तांडव करते है। बंगाल में शिव के मातृ पक्ष की पूजा होती है। वहां काली नृत्य करती है। शिव और शिव का मातृ पक्ष यानी काली, दुर्गा, भवानी, का पूजन अर्चन भी शिव के शिवत्व का एक भाग या रुप है।
शिव को शिवालत्व या उँ नमः शिवाय से कहा गया है। इस पंचाक्षरी प्रार्थना के बाद आत्मा शिव और शक्ति को एकाकार कर देती है। शिव का विकार, सबसे उपर उठाकर शक्ति के साथ एकाकार हो जाता है। वास्तव में शिव ही शिवत्व है शिव से अलग शक्ति नहीं है और शक्ति से अलग शिव नहीं यही शिवत्व है। इसलिए कहा गया है- नमः शिवायै च नमः शिवाय।
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यशवन्त कोठारी
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