हे भाई हे! अगर चाहते हो कि हवा का रूख बदले तो एक काम करो- हे भाई हे!! संसद जाम करने से बेहतर है सड़क जाम करो कवि धूमिल की ये पंक्ति...
हे भाई हे! अगर चाहते हो
कि हवा का रूख बदले
तो एक काम करो-
हे भाई हे!!
संसद जाम करने से बेहतर है
सड़क जाम करो
कवि धूमिल की ये पंक्तियां गाते मेरे मित्र घनानंद इस होली पर भाँग की गोली कुछ ज्यादा ही गटक गये, उन्हें योग गुरू रामदेव के द्वारा किये शुरू ‘‘राजनीति -राजनीति' खेल में खुद को संसद के सिंघासन का शॉर्टकट में पहुचने का मार्ग दिखने लगा। आखिर वह भी तो चल रहे इसी देश के महान नागरिक जो ठहरे। सारी जिन्दगी लखनऊ में हुक्का गुड़गुड़ाने के अलावा उन्होंने किया ही क्या?
अपने जीवन के 40 बसंत गुजार चुके है पर उनके दर्द-ए-दिल की दास्तान सुनने आज तक कोई नही आया तब उन्होंने राजनीति से मुहब्बत करने का फैसला कर ही लिया कि यह क्षेत्र कंटकी से भरा पड़ा है फिर भी में ना चीज ने उन्हें इस दलदल में डूबने से पहले विश्वनाथ तिवारी की यह कविता सुनाकर आगाह किया-
गुरू ने कटवा लिया शिष्य का अंगूठा
भाई ने भाई को निष्कासित कर दिया
एक असहाय नारी नंगी कर दी गई
महारथियों के बीच
नहीं उठाया अर्जन ने गाण्डीव
नहीं दिया कृष्ण ने युद्ध-मन्त्र एक महाभारत टल गया
टल गया एक महाभारत।
लेकिन धनानंद मानने को तैयार नहीं थे उन्हें तो राजनीति का बुखार इतना चढ़ चुका था कि चन्द्रकान्त देवताले की यह कविता भी असर नहीं दिखा पा रही थी।
बुखार बढ़ता जा रहा है
डॉक्टर कहां है.... संसद के सामने
सिर्फ सैकड़ों मुँह भाषण उगल रहे है
घोषणा पत्र गधे के मुँह में चबता जा रहा है।
उनकी यह हालत देखकर मैंने अपने दूसरे मित्र राजकुमार को धनानंद के घनघोर हुऐ दिल को प्यार की कोमल पधार की ओर ले जाने के लिऐ राजी किया। अपने राजकाज छोड़कर राजकुमार धनानंद की चौखट पर सवेरे-सवेरे पहुँच कर बोले- खुदा कसम अपने जीवन के चालीस बसंत गुजार लिये है। पर तुम्हारे दर्द-ऐ-दिल की दास्तान सुनने आज तक कोई नहीं आया, तुम्हारा दिल मुहब्बत के लिये कुलांचे मारने को आतुर है। आप से वे उतनी ही दूर जितने गधे के सिर से सींग! तुम्हें प्रेम की पींगें भरे बिना ऊपर वाले को क्या मुँह दिखाओगे? इसी चिन्ता में तिल-तिल जल रहे हो। मेरे मित्र राजकुमार ने उनकी इस दशा पर तरस खाकर कहा कि ओ -भईया इस देश में तुम्हें नही मिल सकती दिल वाली दुल्हनिया सो चुनांचे अगर तुम अखबारों में विज्ञापन दो तो शायद बात बन सकती है। यूपी से दिल्ली तक महिलाओं को मिले ताज को हाजिर-नाजिर मान कर मैंने मुम्बई के एक अखबार में विज्ञापन दे दिया। ताकि वधू का स्वर सुनाई दे लेकिन हाय री मेरी किस्मत, हफ्ते दो हफ्ते तो हम इंतजार में सुबह उठकर फुनवा पर फूल चढ़ते, अगरबत्ती लगाते ताकि किसी नवयौवना का मधुर स्वर सुनाई पढ़े पर दिन गुजरते रहे फोन की घण्टी नहीं बजी। लेकिन अचानक एक दिन
मेरा दिल ये पुकारे आ जा, मेरे गम के सहारे आ जा
भीगा भीगा समा ऐसे में तू कहां,
मेरा दिल ये...........
यह गीत गाती, इठलाती बलखाती एक मृगनयनी ने मेरे मकान के अन्दर प्रवेश किया और बोली अखबार के विज्ञापन देते हो लेकिन मियां, अपने खराब फोन का नम्बर देते शर्म नही आई, तीन दिन से महानगर टेलीफोन निगम का चक्कर काट रही थी मुआ तुम्हारे घर के स्थान की जानकारी हेतु! अरे मुहब्बत करने के पहले परफेक्ट फोन तो सभी रखते है। मैं इस वाला के खासे प्रेम से प्रभावित होकर बोला हे चन्द्रमुखी, मैं प्रतिदिन नियम से कानाफूसी यन्त्र को लोबान, अगरबत्ती और पुष्प से पूजन कर उसकी उपासना करता था लेकिन एक घण्टी की ध्वनि हेतु बेकरार था उस नवयौवना सी दिख रही महिला ने अपनी आंखों को चारों ओर घुमाया और बोली हे स्वाभिमानी, स्वावलंबी प्रियतम! हम आपके धैर्यवादी दृष्टिकोण से प्रेरित और प्रभावित होकर आपको वर के रूप में वरण करने हेतु उत्सुक हूं कृपया अपनी उम्र की सही-सही गणना कर बताना क्योंकि मुझे बाद में उलझना पसंद नही रहता। मेरे मन में कई बार क्रोध आया लेकिन स्थितियों की गंभीरता को देखकर जो प्रश्न मुझे पूछना चाहिए था उनके द्वारा पूछे जाने पर भी प्रसन्न मुद्रा बनाकर बोला-हे चन्द्रमुखी, में इस वर्ष अगस्त माह में तीस वर्ष पूर्ण कर इकत्तीसवें वर्ष में प्रवेश करूँगा। मेरा उत्तर सुनकर अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक बोली अब तो माडर्न जमाना है यह जोड़ी तो चलेगी दस ही वर्ष का अन्तर है! मै मन ही मन कल्पना करने लगा हे, कामदेव महाराज तुमने सुन ली अरज हमारी, वरना रहता ब्रह्मचारी, तुमने भेजी 20 वर्ष की नारी, हे दया करो तिपुरारी!
अभी मैं अपनी आराधना पूर्ण ही नहीं कर पाया था तभी चन्द्रमुखी ने कहा ‘‘मिस्टर मैं आपको पहले ही सही बता दू, मेरी उम्र इस वक्त 40 वर्ष है और तुम्हारी 30 वर्ष इसलिए इस विशाल दूरी को भरना कठिन हैं इस लिए तुम मेरी कल्पना छोड़कर किसी दूसरी की तलाश में जुट जाओ, हां अपना टेलीफोन को परफेक्ट रखना, इतना कह कर चन्द्रमुखी चली गई। मेरे दिल में अरमा आँसुओं में बह गये, हम कुँवारे के कुँवारे रहे गये। सच न बोल पाने की सजा पा गये।
काश अगर, राजकुमार की बातों में न आता तो राजनीति में मुकाम पाता और तब इस तरह यह देश में न रहता जैसा कि श्याम सुन्दर घोष कहते है
जहाँ शर्म से झुक जाता है मस्तक
वह मेरा देश है........
जहां सत्य कंपता हो, सकुचाता हो
त्याग, तेज, तप सब कुचला जाता हो
आजादी सीमित शब्दों तक
कोशों तक वह मेरा देश।
-अजय कुमार सोनकर
kya vaakai ye vyangy hai ?
जवाब देंहटाएं