अपने यहाँ रोज कोई न कोई त्यौहार अथवा उत्सव चलता ही रहता है। एक के बाद एक त्यौहार आते रहते हैं। कुछ त्यौहार बड़े तो कुछ छोटे होते हैं। बड़े ...
अपने यहाँ रोज कोई न कोई त्यौहार अथवा उत्सव चलता ही रहता है। एक के बाद एक त्यौहार आते रहते हैं। कुछ त्यौहार बड़े तो कुछ छोटे होते हैं। बड़े और छोटे कहाँ नहीं होते ? मतलब हर जगह और हर क्षेत्र में होते हैं। यह सब केवल कहने की बातें हैं कि कोई बड़ा और छोटा नहीं होता सब बराबर होते हैं। एक ही हाथ की सभी अगुलियाँ भी तो बराबर नहीं होती। ऐसी प्रकृति की भी व्यवस्था है। जैसे बड़े लोगों के आने पर बड़ी व्यवस्था की जाती है। वैसे ही बड़े त्यौहारों के आने पर भी होता है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी ने कहा था कि ये त्यौहार हमारे म्युनिस्पेलिटी हैं। म्युनिस्पेलिटी अपना काम भले न करे लेकिन त्यौहार अपना काम कर ही जाते हैं। अतः त्यौहार तो आने ही चाहिए और मनाये जाने ही चाहिए।
एक सर्वेक्षण के दौरान लोगों से कुछ प्रश्न पूछे गए। नब्बे प्रतिशत लोगों ने एक ही जवाब दिया। जैसे त्यौहार मनाने का उद्देश्य क्या होता है ?। हम जिस उद्देश्य से मनाएं। क्या प्रत्येक त्यौहार का मौलिक स्वरूप बदल रहा है ? परिवर्तन संसार का नियम है और इन्हें मौलिक स्वरूप तो हम सब दे ही रहे हैं। त्यौहार स्वस्थ भावना से ही मनाये जाने चाहिए ? जो लोग स्वस्थ नहीं होते वे त्यौहार मनाते ही नहीं। बुरा क्या होता है ? जो हमें बुरा लगे। गलत और सही से आपका क्या तात्पर्य है ? जो हमें गलत लगे सो गलत और जो हमें सही लगे सो सही। सभी त्यौहारों में आपको सबसे ज्यादा कौन सा त्यौहार पसंद है ? होली। क्यों ? कई कारण हैं।
हमने लड्डूमार और लट्ठमार होली के बारे में बहुत सुना था। इसी तर्ज पर हम लोगों ने कई तरह की होली मनाना शुरू कर दिए। हर तरीके की होली का अपना मजा होता है। और फायदे भी कई हैं। नाले-नालियों की सफाई सरकारी तौर पर ठप्प ही समझो। कीचड़ ही कीचड़। हम लोगों ने सोचा कि आसानी से सफाई करनी है तो कुछ न कुछ स्वयं करना होगा। अपना काम स्वयं करो। महापुरुषों ने भी इस पर जोर दिया है। अतः हमने कीचड़ फेंक होली की नींव रखी। इससे सफाई भी हो जाती है और भारतेंदु जी के कथन की सत्यता भी स्थापित होती है।
होली गरीबों का त्यौहार है। गरीब भी इसका भरपूर आनन्द उठाते हैं। रूपये-पैसे की कोई जरूरत नहीं। चाहो तो रंग घर में बना लो। नहीं तो कीचड़ स्थायी तौर पर गाँव से लेकर शहर तक हर जगह विद्यमान है ही। फिर किस बात का टेंशन। इसके अलावा शरीर में खून भी ही। चटक लाल रंग का। इससे बेहतर रंग दूसरा नहीं है। इसे बाहर निकालने के लिए ईंटा फेंक होली है। चलती ट्रेन पर हमारे साथी ईंटा फेंककर, अनजाने साथियों से भी होली खेलते हैं। कीचड़ भी फेंका जाता है। पिछले साल एक पत्थर सीधा ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे पर खड़े यात्री के सिर से टकराया। तुरंत उसके कपड़े भी रंग गए और वो भी। हम लोगों ने हाथ हिलाया और कहा कि बुरा न मानो होली है।
खदेड़ होली में दौड़ाकर रंग लगाया जाता है। पिछ्ले साल रामू का पैर टूट गया था। वह गिर पड़ा था। रामू चिल्लाता रहा हम लोग रंग, कीचड़ व कचड़ा पोत कर दूसरे को दौड़ा लिए। बाद में उसकी मम्मी लड़ने लगीं तो लोगों ने समझाया बुरा न मानो होली है। लड़के को पहले अस्पताल तो पहुंचाओ। लड़ तो बाद में भी सकती हो।
रास्ता रोक होली में कोई चाहे जिस काम से जा रहा हो। उसका रास्ता रोक कर यह होली खेली जाती है। एक बार एक आदमी किसी को अस्पताल लिए जा रहा था। उसे भी और मरीज को भी रास्ता रोक होली में शामिल कर लिया गया। और जमकर खेला गया।
नाखून रखाओ और गाल नोच लो तो यह गाल नोच होली कहलाती है। रंग लगाते छीना-झपटी में दांत गड़ा दो तो यह दांत काट होली कहलाती है। बताइये ये सब और किस त्यौहार में सम्भव है ? इसलिए ही हम लोगों को होली पसंद है।
इसी तरह कई होलियाँ हैं। जिनमें धर-पकड़, उठा-पटक व लथेड़ होली प्रमुख हैं। खासकर कोई राहगीर मिल जाए तो उसके लिए ये होलियाँ होती हैं। साथ में इसी दौरान जेब टटोल होली भी अपना रंग दिखा देती है। एक बार तो एक आदमी को हम लोगों ने पास के नाले में उठा कर फेंक दिये। कोई बोला यह बिल्कुल गलत है। तो हरखू बोला गलत क्या है ? यह उठा-फेंक होली है।
इसी तरह एक कपड़ाफाड़ होली भी है। कपड़ा फाड़ो रंग लगाओ, बुरा न मानो होली है। कपड़े के ऊपर से उतना मजा नहीं आता। इसलिए यह होली अस्तित्व में आई है। जो काम वेलेंटाईन डे पर भी नहीं हो पाता। वो भी इस होली में आसानी से हो जाता है। पिछले साल रेना का कपड़ा किसने फाड़ा था ? यह अब भी रहस्य बना हुआ है।
कहते हैं कि त्यौहार वैमनस्य मिटाकर लोगों को पास ले आते हैं । वैमनस्य भुलाओ, गले लगाओ में होली का जोड़ नहीं है। जो लड़कियाँ और महिलाएं पास नहीं आना चाहती उन्हें भी सारे गिले-शिकवे दूर करके रंग लगाकर, गले लगा लिया जाता है। नवयुवक और नवयुवतियाँ इसी से होली को ज्यादा पसंद करती हैं।
कुछ भी जैसे कीचड़, कचड़ा, गोबर, रंग आदि और कहीं भी जैसे आँख, कान, नाक, मुँह आदि में डाल दो। सब चलता है। नीचे करदो, ऊपर हो जाओ, रगड़ दो, मसलो-मसलाओ, रंग लगाओ, बुरा न मानो होली है। श्यामू के आँख में एक साल बीत जाने के बाद भी समस्या बनी हुई है।
हल्के कपड़े पहनकर होली खेलने में ज्यादा रंग आता है। सूखने में भी आसानी होती है। पुराने और जिनकी सिलाई टूट रही हो। कुछ लोग ऐसे ही कपड़े पहनकर खेलते हैं। जिससे कपड़ा-फाड़ होली खेलते समय ज्यादा दिक्कत ना आये।
वैसे भाँग खा लो तो घर वाले बुरा मानते हैं। होली तो साल में एक बार ही आती है। इसलिए भाँग खा कर और खिलाकर साथ में बुरा न मानो होली है कहकर, होली खेलने का मजा बढ़ जाता है। कॉलेजों में लड़के-लड़कियाँ खेलते हैं। छुट्टी में घर जाना चाहिए। लेकिन परीक्षा सिर पर है, यह बताकर जिनको खेलना होता है नहीं जाते।
कुछ रिश्तों की होलियाँ जान में जान डालने वाली होती हैं। घर के भीतर की होली भीतर तक हिला देती है। दूरी और मजबूरी होली के बहाने समाप्त करके कुंठित मन की अभिलाषा पूर्ण करके कई लोग अपने को धन्य मानते हैं। इस पर कुछ महिलाएं धन्यवाद देती हैं तो कुछ किसी तरह अपने को आबाद करती हैं।
कुछ भी हो होली है तो इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है। आम दिनों में ‘सॉरी’ और होली के दिन ‘बुरा ना मानो’ एक ही भाव बिकते हैं। मुँह में पान भरे रहो, भीड़-भाड़ में कहीं जगह न मिले तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। किसी के ऊपर ही फच्च से मार दो। अन्य दिन हो तो सॉरी बोल दो। और यदि होली का दिन हो तब तो क्या कहना -‘ बुरा न मानो होली है’।
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ. प्र.)।
URL: https://sites.google.com/site/skpandeysriramkthavali/
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बहुत सुन्दर होली की रंगभरी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंmanish jaiswal
bilaspur
chhattisgarh
होली के शुभ अवसर पर शानदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंएक और प्रस्तुति मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर ,
फ्री के रंगों की मुक्ति दाता सेहतमंद होली.बहुत बहुत स्वागत है आपका.
हमको भी अपना लीजिये,कुछ रस आप भी बरसा दीजिये.
खिल उठे हैं होली के रंग.
जवाब देंहटाएंहोली के शुभ अवसर पर बेहतरीन प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें ...
काफी हद तक सही है ..पर मैंने ये सब जादा देखा नहीं है अब तक ...
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