जैसे-जैसे समय बीतता जाता है। समाज में दहेज बढ़ता जाता है। क्या विडम्बना है ? दहेज विरोधी क़ानून भी है। दहेज विरोधी लोग भी पैदा हो गए हैं। औ...
जैसे-जैसे समय बीतता जाता है। समाज में दहेज बढ़ता जाता है। क्या विडम्बना है ? दहेज विरोधी क़ानून भी है। दहेज विरोधी लोग भी पैदा हो गए हैं। और दिन-दिन बढ़ भी रहे हैं। लेकिन दहेज घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। कुछ विद्वान कहते हैं कि दहेज कब नहीं था ? दहेज पहले भी था और आज भी है। तो इसमें क्या बुराई है ? इन्हें कौन समझाये कि भारतवर्ष यानी आर्यावर्त में आज का दहेज पहले कभी नहीं था।
माथुर जी अपनी बेटी की पढ़ाई बंद करा दिए हैं। इनका कहना है कि बेटी जितना पढ़ी-लिखी रहेगी, उतनी ही शादी में कठिनाई होगी। इधर पढ़ाई-लिखाई में तमाम पैसा लग जायेगा। उधर दहेज में। कोई यह सुनकर कि लड़की बहुत पढ़ी-लिखी है, मुफ्त में शादी तो करेगा नहीं। यह सब कहने की बातें हैं कि लड़की पढ़ेगी तो शादी आसानी से हो जायेगी। मान लीजिए पढ़ाएं भी और कहीं ले देकर नौकरी भी मिल जाए तो भी शादी में पैसा लगेगा ही। तब भी दहेज तो देना ही पड़ेगा। और ज्यादा ही देना पड़ेगा। कोई कह दे कि लड़की जब कमाने लगेगी तो उसी पैसे से शादी कर दी जायेगी। तो कहते हैं कि लड़की के पैसे से लड़की की शादी। नहीं भाई, यह नहीं होगा। इसलिए ही पढ़ाई बंद करवा दिए हैं। आज के समय में हर कोई कमाई पर ही उतारू है। लड़की कमाने वाली हो और शादी में भी कमाई हो जाए तो क्या बुरा है ? इसे कहते हैं डबल कमाई।
एक शादी में द्वार पूजा के समय पंडित जी ने कहा कि दस रुपया क्यों दे रहे हो ? कम से कम सौ रूपये तो दीजिए। दूल्हे के पिताजी तपाक से बोले कि कहीं लिखा है कि द्वार पूजा में दस नहीं सौ रूपये ही देना चाहिए। पंडित जी भी खरा जवाब दे दिए। बोले दहेज माँगना कहीं लिखा है क्या ? जब देना पड़ा तो लिखा देखने लगे और जब दहेज माँगना था तब सोचा भी नहीं कि दहेज माँगना कहीं भी किसी भी ग्रन्थ में नहीं लिखा है। दहेज देने की बात तो ग्रंथों में मिलती है। लेकिन दहेज माँगने की नहीं। दहेज माँगना बुरा है। दहेज के लिए किसी को मजबूर करना बुरा है। आज के दहेज का वर्णन ग्रंथों में नहीं है। जब कोई बिना किसी दबाव व डर के हँसी-खुशी अपनी मर्जी से शादी के समय कुछ देता है तो वह दहेज-उपहार कहलाता है। लेकिन आज तो शर्तें पूरी करनी होती हैं। खेत-घर तक गिरवीं रखा लिए जाते हैं। अपनी औकात से बढ़कर लोग कर्ज लेकर दहेजियों का पेट भरने का असफल प्रयास करते हैं। यह आधुनिक दहेज-व्यापार-समझौता है। शादी के बहाने कमाई है। खैर सबने समझा-बुझाकर पंडित जी व दूल्हे के पिताजी को शान्ति किया और द्वार पूजा सम्पन्न हुई।
कुछ लोगों का कहना है कि दुल्हन ही दहेज है। दीगर है मानते नहीं। कहते हैं यही बहुत है। कई लोग ऐसे हैं जिन्हें दहेज मिल जाए, चाहे दुल्हन न ही मिले। एक लड़के की शादी दो लाख रूपये पर तय हुई। वह पिताजी से बोला कि दो लाख मेरे नाम से जमा कर दिया जायेगा, तभी मैं शादी करूँगा। पिताजी बोले कि दो लाख जमा कर देंगे तो बाकी का खर्चा कहाँ से होगा ? बेटा बोला मैं कुछ नहीं जानता और माँग लेते। बाप ने अपनी श्रीमती जी से कहा कि तुम्हीं समझाओ अपने लाड़ले को। कहता है कि और माँग लेते। हमें क्या बुरा लगता था। लेकिन कोई डेढ़ लाख के ऊपर बढा ही नहीं। यही दो लाख पर किसी तरह राजी हुआ है। माँ समझाने लगी। बेटा बोला यह दो लाख कुछ दिन में चार लाख और उसके बाद आठ लाख हो जायेगा। जमा करा दीजिए प्लीज ! मम्मी ने कहा तो शादी कैसे होगी ? बेटा बोला पास में पैसा रहेगा तो एक नहीं कई शादियाँ हो जाएँगी।
माधव ने अपने नाम से कई एफडी खोल रखे हैं। जिसमें शादी से लेकर शादी के बाद तक की ससुराल से की गई कमाई के ही पैसे हैं। अभी हाल में पत्नी से झगड़ा करके उसे ससुराल भेज दिया। बोला कि अभी जो तुम्हारे बहन की शादी हुई है। उसके पति को जो चेन दिया गया है, वह बहुत मोटा है। जब तक हमें उसके बदले में पैसा नहीं मिल जायेगा। तुम वहीं पड़ी रहोगी। इस तरह से एक और एफडी का इंतजाम हो गया।
कई लोग समाज को दिखाते हैं कि वे दहेज से परहेज करते हैं। लेकिन समय आने पर नहीं चूकते। थोड़ा तिकड़म लगाना पड़ता है। सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे, इसके लिए थोड़ा प्रयत्न तो करना ही पड़ता है। कहते हैं कि हमें दहेज से कुछ भी लेना देना नहीं है। बड़ी लच्छेदार बात करते हैं। आदर्शों और सिद्धांतों का बखान करते हैं। हमें तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिये। एक मूठा अक्षत ही काफी है। अभी हमारे एक रिश्तेदार के यहाँ शादी हुई है। इतना सब उन्हें मिला। आजकल इतना तो हर कोई देता है। बिना लिए-दिए शादी कहाँ होती है ? लाख दो लेकिन लड़के वालों का मुँह सीधा नहीं होता। अपने तरफ से कसर नहीं रखना चहिये। शादी बार-बार तो होती नहीं। लड़की के जिंदगी का सवाल होता है। रुपया पैसा तो हाथ की मैल है। खैर हम तो दहेज विरोधी ठहरे। आप समझ ही रहें हैं। बड़े बेटे की शादी में बिना मांगे इतना सब मिला था। बेटी की खुशी किसे नहीं चाहिये।
कई लोग तो कहते हैं कि मुझे किसी का धन नहीं चाहिये। हमने जीवन में बहुत कमाया है। क्या नहीं है। भगवान का दिया सब कुछ है। हम इस सम्बन्ध में आप से एक शब्द भी नहीं कहेंगे। भाई साहेब से बात कर लीजिए। किसी को बता देंगे। खुद दहेज विरोधी बनें रहेंगे। लेकिन भाई साहेब से कह देंगे कि चूसने में कसर मत छोड़ना। कुछ भी करो। लेकिन हमें बीच में मत लाना। एक दो बार लोगों के सामने हम डाट भी सकते हैं कि इतना लालची मत बनो। मगर तुम्हें टस से मस नहीं होना है।
यह भी बिडंबना ही है कि जिसके पास जितना होता है। वह उतना ही लालची होता है अथवा हो जाता है। लालच ही दहेज का प्रमुख कारण है। शादी के पूर्व लेनदेन तो होता ही है। शादी के बाद भी कई लोग हलाल करना जारी रखते हैं। ऊपर से बड़े आदमी भी बनते हैं। कुछ दिन साथ रहने के बाद भी लेन-देन को लेकर बिगाड़ कर लेते हैं। रिश्ता खत्म कर देने तक की बात कह देते हैं। कई कर भी देते हैं। पशु भी कुछ दिन साथ-साथ रह लेने पर एक दूसरे से ऐसा जुड़ जाते हैं कि बिछुड़ने पर खूंटे और पगहे तक तोड़ कर रोते-चिल्लाते हैं। लेकिन इंसान चंद रुपयों के लिए रिश्ते तोड़ देते हैं अथवा तोड़ने को तैयार हो जाते हैं।
एक महाशय बहुत ही बड़े आदमी हैं। इन्होंने अपनी लड़की की शादी तय किया। जहाँ शादी तय हुई वे लोग प्रसन्नता के कारण कुछ नहीं माँग सके। इतने बड़े आदमी के यहाँ शादी हो रही है। यह चर्चा का विषय बना रहा। तिलक के दिन लड़के वालों ने बहुत खर्चा किया। बहुत बड़े-बड़े आदमी आएँ तो व्यवस्था भी तो बड़ी होनी चाहिए। उम्मीद थी कि कई लाख मिल जायेगा। लेकिन उम्मीद पर पानी फिर गया। बड़े महाशय ने केवल बीस आना तिलक में चढ़ाया। लड़के वालों का जी तो मुँह तक आ गया। लेकिन बेचारे कुछ भी न कह पाए। और महाशय की जय जयकार होने लगी। इतने बड़े और दहेज बीस आना। ऐसे ही लोगों से समाज बदलेगा। दहेज जैसी बुराई समाप्त होगी। अभी हाल में इनके लड़के की शादी तय हुई। तो ये अपने साले को यानी लड़के के मामा को जिम्मेदार बना दिए। भाई हम से तो कोई मतलब नहीं है। इनके मामा जी जानें। उनसे बात कर लो। उन्हें जहाँ शादी करना हो करें। हम कुछ भी कहने नहीं जायेंगे।
दहेज विरोधियों और दहेज से परहेज करने वालों के किस्से बहुत हैं। इनसे भले वो हैं जो खुलकर मोल भाव करते हैं। कहीं पिता दहेज विरोधी बना रहता है और बेटा लूटता जाता है। कहीं बेटा दहेज विरोधी बना रहता है और माँ-बाप लूटते जाते हैं।
आज बहुतों के लिए शादी का मतलब कमाई है। किसी कारण बस यदि एक से अधिक बार कमाई करने का मौका मिल जाए तो बहुत लोग अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं। शादी की चर्चा होते ही कुछ लोग पूछते हैं कि कितना निकाल ले जाओगे ? नए-नए तरीके बताते हैं। और लोग अमल में लाते हैं। कहते हैं कि जब लड़का पसंद हो जाय। तो वरछ्कायी की रस्म के लिए लड़की वालों को बुलाओ। आयेंगे तो लायेंगे। गोड़ धराई की रस्म में हजारों निकल आएगा। इसके बाद कुछ लोग लड़की देखने जायेंगे। जब ये देखने जायेंगे तो कुछ न कुछ लेकर ही आयेंगे। इसके बाद घर की महिलाएं देखने जाएँगी। इनके साथ भी पुरुषों का काफिला रहेगा ही। इस तरह काफी रुपया व उपहार इकट्ठा हो जायेगा। देखने वाला काम दो बार में ही पूरा करना चाहिए। इसके बाद शादी तय करने के लिए बुलाओ। फिर कमाओ। अब कुछ ज्यादा भी मागोगे तो भी देकर जायेंगे। क्योंकि देखने का काम पहले हो जो चुका है। शादी तय नहीं करेंगे तो लड़की नापसंद कर दी गई। यह बात फैला दी जायेगी। अब शादी तय हो गई तो तिलक में बुलाओ। गोड़ धराई कराओ। इस तरह गोड़ धराई में ही कई हजार कमा लोगे। जो दहेज से बाहर होता है। उसका एक-एक पाई का हिसाब अलग से लो।
कमाने का क्या बेहतरीन तरीका है। जुगाड़ से कई काम आसान हो जाते हैं। जुगाड़ से कमाई भी हो जाती है। शादी में भी कमाई जुगाड़ लगाने से बढ़ जाती है। कई लोग तो शादी में इतना कमा लेते हैं, जितना उनका बेटा सारी जिंदगी में भी नहीं कमा पाता।
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डॉ. एस. के. पाण्डेय,
समशापुर (उ. प्र.)।
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बुरी समस्या है..
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