अनुक्रमणिका 1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल 2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक 3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित 4 - बरखा...
अनुक्रमणिका
1 -एक नई शुरूआत - डॉ0 सरला अग्रवाल
2 -बबली तुम कहाँ हो -- डॉ0 अलका पाठक
3 -वैधव्य नहीं बिकेगा -- पं0 उमाशंकर दीक्षित
4 - बरखा की विदाई -- डॉ0 कमल कपूर
5- सांसों का तार -- डॉ0 उषा यादव
6- अंतहीन घाटियों से दूर -- डॉ0 सतीश दुबे
7 -आप ऐसे नहीं हो -- श्रीमती मालती बसंत
8 -बिना दुल्हन लौटी बारात -- श्री सन्तोष कुमार सिंह
9 -शुभकामनाओं का महल -- डॉ0 उर्मिकृष्ण
10- भैयाजी का आदर्श -- श्री महेश सक्सेना
11- निरर्थक -- श्रीमती गिरिजा कुलश्रेष्ठ
12- अभिमन्यु की हत्या -- श्री कालीचरण प्रेमी
13- संकल्प -- श्रीमती मीरा शलभ
14- दूसरा पहलू -- श्रीमती पुष्पा रघु
15- वो जल रही थी -- श्री अनिल सक्सेना चौधरी
16- बेटे की खुशी -- डॉ0 राजेन्द्र परदेशी
17 - प्रश्न से परे -- श्री विलास विहारी
(6) अंतहीन घाटियों से दूर
डॉ0 सतीश दुबे
बेड रुम के पलंग पर धंसी पड़ी तनु ने बाहर के कमरे से आने वाली तेज आवाजों से परेशान होकर कानों को जोरों से भींच लिया, पर आवाजें कानों के पर्दे चीरने पर तुली थीं।
वह अनजाने ही सोचने लगी, सुनने की चाह नहीं होने पर भी कुछ आवाजें बलात क्यों असर डालना चाहती हैं, उसने सोचा और एक कथा अचानक उसे याद आ गई..........डयूटी पर तैनात सैनिकों के परिवार की उस बस्ती में पहले पोस्टमेन की सायकिल की घण्टी के सुनते ही कुशलक्षेम पत्रों की संभावना लिए घरों के दरवाजे खुल जाया करते थे, किन्तु युद्ध शुरु होते ही घण्टी बजने पर द्वार बन्द होने लगे, सभी यह सोचते, कहीं ऐसा न हो कि डाकिया उनके परिवार के लिए मौत की खबर लाया हो।
बाहर से आने वाली आवाजें आज उसे उस डाकिये जैसी ही लग रही थीं।
बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद ही उसकी सगाई की बात निश्चल से चल निकली थी। निश्चल पी.सी.एस. की परीक्षा पास करके कुछ वर्षों पूर्व ही डिप्टी कलेक्टर बना था।
उसके माता पिता के लिए बेटे का डिप्टी कलेक्टर होना बहुत बड़ी उपलब्धि थी ओर उनके दिमाग में यह बात उपजने लगी थी कि पद की गरिमा कहीं बेटे को उनसे दूर न कर दे, इसीलिए वे साधारण परिवार से बहू लाना चाहते थे, तनु के रिश्ते के लिए भी उन्होंने निश्चल को इसी आधार पर तैयार किया था। निश्चल का विचार ठीक इसके विपरीत था, पर माँ के आग्रह पर एक बार लड़की देखने को तैयार हो गया था।
जिस दिन वह उसे देखने आया था, नीचा मुँह किए संकोच और कांपते हुए हाथों से उसने टेबल पर नाश्ता सर्व किया था, विश्वास ने भाई की ओर देखा तो वह अपनी कोड भाषा में धीरे से बोला था-नीतु माटु लाडे (तू बोलेगा) विश्वास मुस्करा दिया तथा ‘नमस्ते' की मुद्रा में हाथ जोड़कर जोरों से खिलखिला पड़ा, स्वाभाविक रुप से उसका सिर ऊपर उठ गया। उसने अनुभव किया निश्चल की तेज आँखें उसे घूर रही हैं, मानों कह रही हों-साली घूड़े में हीरे वाली बात कितनी सौ टंच सही है। उसे आश्चर्य तब हुआ, जब उसे पता लगा कि निश्चल ने वाग्दानहेतु सहमति दे दी है।
आश्चर्य इसलिए कि जहाँ से भी प्रस्ताव आये थे उसने कह दिया था-मैं एकदम प्रक्टिकल आदमी हूँ, फालतू की बातों में मेरा विश्वास नहीं। भावुकता की बैसाखी पर जिन्दगी का समझौता किसी से भी कर लेना बड़ी मूर्खता है......।
उसकी इस प्रकार की बातें सुन कर धीरे-धीरे यह चर्चाएं गरमाने लगी थीं कि शिक्षित व्यक्ति चालाक और नैतिक दृष्टि से गिरा हुआ होता है।
वाग्दान के बाद देवर विश्वास उससे मिलने-जुलने आता रहता। पहले वह बाहर के कमरे में बड़े भाई और पिताजी से बातें करता फिर माँ और छोटी बहन सुन्नी के साथ उससे, इस कमरे में। माँ घर में हालचाल पूछ कर किचिन में चली जाती और वह विश्वास से धीरे-धीरे घर की जानकारी लेने लगी। उसे लगा वह एक ऐसे परिवार में जा रही है, जहाँ उसके विचार स्वातंत्रय को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है, और फिर डिप्टी कलेक्टर की पत्नी। वह कभी-कभी रोमांचित हो उठती।
विश्वास डिप्टी कलेक्टर के दफ्तर की बातें जब सुनाता तो उसे लगता, कितनी बोरियत होती होगी, मानसिक तनाव, राजनीतिक झगड़े-झंझट और फिर घर की मुसीबतें।
विश्वास एक दिन ऐसी ही बातें कह रहा था। वह माँ और सुन्नी के साथ चटखारे ले-लेकर सुन रही थी.........तभी उसने कहा- -तनु भाभी, एक जोरदार बात। आपने निश्चल भैया की अब तक तारीफ ही सुनी। आज की ताजा बात सुनो तो आश्चर्य करने लगो।
-सुनाओ न! माँ और सुन्नी एक साथ बोलीं।
-देखिये, मैं तो अपनी बात भाभी से ही कहूँगा। वह मुस्करा दिया।
-तो कहिये न!
-ऐसे नहीं, तखलिया- सुन्नी झट उठी और तकिया ले आई।
-लीजिये, बैठिये आराम से और सुनाइये।
-सुन्नी! तुम कौन की क्लास में पढ़ती हो?
-इलेवैंथ में...........
-पिक्चर देखती हो?
-कभी-कभी।
-एक पुरानी पिक्चर अभी लगी थी, ‘मुगले आजम', देखी?
-नहीं..........
-तो देखो, और समझो कि तखलिया का मतलब तकिया लगाना नहीं होता।
उसकी हँसी रोके नहीं रुक पा रही थी, सुन्नी झेंप-झाप कर वहाँ से जाने लगी तो विश्वास ने रोक लिया।
सुन्नी, इसका मतलब तो समझती जाओ........भाभी आप ही बता दीजिये। तो आप मेरी भी परीक्षा लेना चाहते हैं?
नहीं-नहीं...........ऐसी बात नहीं।
ऐसी बात नहीं न! तो मैं बताए देती हूँ-सुन्नी-सुनो ; तखलिया का मतलब होता है, एकान्त चाहना ; जब विश्वास जैसे कहे तखलिया-तो इसका मतलब हुआ, हम एकान्त चाहते हैं।
सुन्नी और माँ मुस्कराते हुए वहाँ से चले गये।
तनु भाभी! आज घर पर बड़ा बखेड़ा हो गया। लफड़ा ये फँसा कि भैया के दफ्तर में पापाजी के एक मित्र का केस चल रहा है, भैया दो हजार के बिना केस निबटाने को तैयार नहीं। पापाजी को जब मालूम पड़ा कि लफड़ा ये है तो उन्होंने भैया से कहा, पर भैया टस से मस नहीं हुए। उन्होंने तो भाभी, पापाजी से साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि यह उनका आफिशिएल मामला है। पापाजी को आश्चर्य हुआ कि उनके निश्चल ने ऐसा जवाब कैसे दे दिया। इसी बात को लेकर माँ भी कुछ बोलीं, पर मामला नहीं टला।
लगता है आपके भैया बड़े जिद्दी हैं।
जिद्दी! अरे भाभी नम्बर एक के जिद्दी कहो।
कुछ इलाज नहीं है?
इलाज! हम सब लोगों ने तो हथियार डाल दिए हैं, अब शायद अॉपरेशन ही आप करें।
और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े थे।
एक दिन विश्वास ने उसे बताया था। डिप्टी कलेक्टर्स का एक सेमीनार पंचमढ़ी में होने जा रहा है। भैया के सभी साथी सपरिवार जा रहे हैं और भैया चाहते हैं कि आप भी उनके साथ जायें, जबकि माँ इसका विरोध कर रही हैं, उसका कहना है कि शादी हुई नहीं है, ऐसी स्थिति में अकेले जाना ठीक नहीं लगता, हाँ साथ में कोई और जाये तो ठीक। पर भैया, सब वही पुरानी जि�द, एक ही रट लगाये हैं-सबके बीच मेरी नाक नहीं कटेगी? अपनी मर्यादा को आप लोगों ने पहले समझ लेना था।
उसे ख्याल आया विश्वास ने माँ को यह बात बताई थी तो एक गहरी चिन्ता उनके चेहरे पर फैल गई थी। एक ऐसी चिन्ता जो जीवन के अनुभवों, समाज के मापदण्डों और अपने परिवार की स्थिति से जुड़ी हुई थी। निश्चल के प्रस्ताव को अंततः स्वीकार करना पड़ा। पिताजी की बेवसी और दयनीयता से भरी हुई बातों का जो उसने प्रत्युत्तर दिया था, उसमें लापरवाही मिश्रित दृढ़ता थी-उसने कहा था
-मुझ पर विश्वास रखिये, मैं उन्हें अपने साथ ले जाना भी नहीं चाहता, पर मैं यह भी नहीं चाहता कि अपने मित्रों के बीच अनजान बनूं या किराये की किसी लड़की को कम्पनी देने के लिए साथ ले जाऊं।
वह उससे भी मिला था तथा उसके रहन-सहन के स्तर पर टिप्पणी करते हुए बोला था-
यह क्या भोंड़ापन लगा रखा है। डिप्टी कलेक्टर्स की बीवियों का स्टैंडर्ड अलग ही ढंग का होता है। ऐसा न हो कि तुम केवल रहन-सहन के कारण मात खा जाओ। देखो मेरे कई फ्रेंन्डस जैसे श्रीवास्तव, खन्ना, अजीत सभी की पत्नियों के बाल कटे हुए हैं......तुम भी सेट करवा लो और कुछ आधुनिक तरीके की डे्रसेज ले लो, ताकि वहाँ घूमने-फिरने और पीने-बैठने के वक्त यूज में ले सको।
‘पीने-बैठने?' उसने आश्चर्य व्यक्त करते हुए दुहराया था।
‘मैं पीती-वीती नहीं..........।'
‘पीने का मतलब आप शायद वाइन समझ रहीं हैं, नो-नो डिं्रक तो मुझे सूट नहीं करता पर कभी-कभार बट यू डोंट वरी जैसा आप चाहेंगी-विलीव मी'....... लेकिन मैं इस सबके लिए कहाँ जाऊंगी-माँ को जैसे-तैसे आपके खातिर समझा लूंगी-पर बाल सेट करवाने का वे विरोध करेंगी-और यदि बाल नहीं कटवाये जायें तो.........आजकल कहाँ अंगरेजों की मेमें रहीं?
आप समझीं नहीं, हाय सोसायटीज में आजकल यही सब चलता है।
मुझे तो यह जरुरी नहीं लगता-आजकल डिप्टी कलेक्टर्स की बीवियां क्या, लेडी-कलेक्टर्स तथा सी.जे. तक भारतीय पद्धति से बाल संवारती हैं। आप नहीं समझेंगी तनुजी, ये उनकी प्रोफेशनल प्रक्टिस है। वे भारतीय बनकर सादगी ओढ़ती हैं और उल्लू सीधा करती हैं। यदि वे मेम बनकर या मेकअप करके सीट पर बैठें तो उनको कितनी आलोचनाएं सहन करनी पड़ें, उसकी आप कल्पना नहीं कर सकतीं।
खैर! छोड़िये मैं इन तर्कों की बजाय आपकी राय को महत्व देती हूँ जैसा आप ठीक समझें........।
आप कल तैयार रहिये, मैं जीप लेकर अॉफिस से डायरेक्ट इधर आ जाऊँगा। कुछ शॉपिंग हो जाएगा और हेयर डे्रसिंग भी।
दूसरे दिन वह जब शॉपिंग से लौटी थी, तब एकदम बदली हुई नजर आ रही थी। बॉव कट बाल, व्यवस्थित लम्बी आई-ब्रो और चेहरा एकदम साफ। कन्धे पर बैग लटकाये, फटक-फटक कर सैन्डिल बजाती हुई जब वह जीना चढ़ने लगी तो आसपास के बच्चे उसे आश्चर्य से ताकते रहे।
पिपरिया स्टेशन से ट्रेन स्टार्ट होने के बाद प्लेटफार्म पर उतरे लोगों ने एक दूसरे का परिचय लिया तथा सेमिनार ग्रुप एक घेरा बनाकर खड़ा हो गया।
उसने देखा अधिकांश महिलांए स्मार्ट लग रही हैं, तड़क-भड़क वाली वेशभूषा और आकर्षक मेकअप। वह सोचने लगी उसने ठीक ही किया जो निश्चल की इच्छा के अनुरुप साधन जुटा लिए। नहीं तो वह इन लोगों के बीच अपने को अकेला महसूस करती।
सभी लोग एक-दूसरे का परिचय ले रहे थे, वह भी अब अपरिचित नहीं रही थी।
पिपरिया से पंचमढ़ी पहुँचने तक वह रास्ते की प्राकृतिक सुषमा में खोई रही। सर्पीले रास्तों के मोड़, वन-मार्ग और अंतहीन घाटियाँ। उसने सोचा था-वह अपने जीवन का प्रारंभ अंतहीन घाटियों को देखने से क्यों कर रही है, पर टर्मिनोलिया शिपुला के वृक्षों की मौन भीड़ के मध्य उसका प्रश्न कहीं खो गया था।
‘हॉली डे हाऊस' के स्वतन्त्र फ्लैटस को देखकर वह सब कुछ भूल गई थी। निश्चल दोपहरी भर सेमिनार अटेन्ड करता और चार बजे के करीब लौट आता। इसके बाद सभी लोग टुकड़ियों में बंट जाते और सूर्यास्त की किरणों से स्नान करने वाली लम्बी नीलारुण वृक्षों की वादियों में विचरण करते। कभी लिटिल-फॉल, कभी जटाशंकर, कभी धूपगढ़, कभी संगम और कभी वनश्री विहार।
एक दिन दोपहरी में बूढ़ा चौकीदार एक पिंजरा लाया, जिसमें नीले कबूतर बन्द थे-बीबीजी ये बड़ी मुश्किल से पकड़कर लाया हूँ।
बीबीजी, ये चटटान की कोटरों में पांव फैलाकर तैरते रहते हैं और थोड़े से उड़ कर फिर चटटानों की कोटरों में चले जाते हैं। ले जाओ बीबीजी, दस रुपये का पिंजरा।
उसने सोचा इतने स्वच्छन्द वातावरण में रहते हुए भी ये नन्हें पक्षी अपने को कोटरों में बन्द क्यों कर लेते हैं, शायद सुरक्षा के लिए। स्वयं उत्तर देकर उसने अपने मानसिक उद्वेलन को शांत किया था।
दूं क्या बीबीजी?
नहीं बाबा-कहाँ ढोते फिरेंगे।
वह चला गया, किन्तु वह सोचती रही थी चटटान, कबूतर, सीमित उड़ान और वापस चटटानों के बीच जाने के बारे में।
उस दिन जब निश्चल लौटा था, तब वह सिर में कुछ भारीपन महसूस कर रही थी। निश्चल ने प्रस्ताव रखा।
तनु! चलो आज हम अकेले ही कहीं घूम आयें। वह उसके आग्रह को टाल नहीं सकी। इस बीच सभी परिवारों के मध्य उसने अपनी विशिष्ट स्थिति बना ली थी। उसका सौन्दर्य वाकपटुता और शायराना अन्दाज की बातों ने सबको प्रभावित किया था।
निश्चल खुश था, इसलिए कि उसके साथियों ने ही नहीं बल्कि सेक्रेटरी ने भी उसके भाग्य को सराहा था।
वे दोनों घूमते-फिरते पंच-पांडव पहुँच गये। ऊपर टेकड़ी पर पिछले हिस्से की ओर जाकर वे बैठ गए। नीचे अनेक वृक्षों का समूह घाटियों में दिखाई दे रहा था। डूबते सूरज का समय था। पत्तों से छन-छन कर किरणें विभिन्न रंगों में उतर रही थीं। सूरज की सब किरणों ने मिलकर उसे घेर लिया था। चेहरे की लालिमा बढ़ गई थी। बाल रोशनी से घिर गए और शरीर का एक-एक मोड़ जगमगाने लगा था।
निश्चल कुछ देर उसे ताकता रहा, फिर उसने उसका हाथ थाम लिया था, बालों को एक झटका देकर उसने उसकी ओर निगाह उठाई ही थी कि वह बोल पड़ा-
तनु ये रतनारी आँखे मुझे किल कर देंगी, प्लीज ऐसे मत ताको। वह उसे अपनी ओर खीचना चाह ही रहा था कि वह उठ खड़ी हुई।
चलो, अब चलें।
खाने से निबट कर, वह पलंग पर जाकर लेट गई। पैदल चलने से थकान बढ़ गई थी, और पहले से दर्द कर रहे जोड़ों का दर्द वह अधिक अनुभव करने लगी थी। वह उठ कर बैठ गई तथा दोनों हाथों से एक के बाद एक पैर दबाने लगी। अधिक थक गई क्या, लो ये पी लो। उसने एक गिलास लाकर उसे दिया था।
बड़ी तीखी है, वाइन तो नहीं।
अरे नहीं! पैरों में शायद ज्यादा दर्द महसूस कर रही हो, लाओ अमृतांजन मल देता हूँ।
आप अपने कमरे में जाकर आराम कीजिए मैं तो थोड़ी देर में ठीक हो जाऊंगी। वह अपने पलंग पर आँखें मूंद कर लेट गई थी।
लाओं भी.........। वह उसके पैर दबाने लगा था थोड़ी देर बाद उसने उसके पैरों पर मालिश भी की। वह राहत महसूस करने लगी थी।
अब रहने दीजिये। उसने अपने पैर खींच लिए तथा कृतज्ञता व्यक्त करने की दृष्टि से निश्चल का हाथ थोड़ी देर के लिए अपने हाथ में लेकर छोड़ दिया था।
ज्यादा थक गईं न! मुझे तो लगता है, इस जंगल में तुम्हें नजर लग गई! है न!
निश्चल उसके चेहरे पर झुक गया। धीरे-धीरे वह अपना भार उस पर डालता रहा और उसकी स्थिति यह थी कि वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। उसे लग रहा था टर्मिनोलिया शिपुला के लम्बे वृक्षों के बीच किसी अन्तहीन घाटी के बींच वह खो गई है।
पंचमढ़ी से लौटने के बाद विश्वास फिर वैसे ही आने लगा था। घर में शादी की चर्चाएं गर्माने लगीं और वह महीनों का हिसाब लगाती रही। दो महीने तो कुल बचे हैं-उसने सोचा था।
मेहमानों की लिस्ट, बाजार की खरीददारी, खाने की मीनू, रसोइये की तलाश जैसे विषय अब घर में चर्चा के सामान्य विषय थे।
इसी बीच एक दिन उदास चेहरा लेकर विश्वास आया था। तनु भाभी! भैया ने मालूम है आज नया बखेड़ा खड़ा कर दिया........ क्या? उसने मुस्करा कर बालों को एक झटका दिया तथा बड़ी अजीजी की मुद्रा में विश्वास के चहरे पर आँखें गड़ा दीं। उसे निश्चल की जिद्द भरी बातें सुनने में मजा आने लगा था।
सुनोगी तो, सच कहता हूँ-रो पड़ोगी।
बतायेंगे भी या यूं ही पहेली बुझाते रहेंगे, क्या इस बार दिल्ली जाना पड़ेगा।
नहीं, नहीं, ये बात नहीं। उन्होंने दूसरा बखेड़ा खड़ा कर दिया-उनके किसी साथी को ससुराल से कार मिली-वे भी कार के लिए जिद कर रह हैं-पिताजी तथा माँ उन्हें समझाते-समझाते परेशान हो गए-पिछले आठ-दस दिनों से यही सब कुछ चल रहा है।
वह सकते में आ गई थी-उसे लगा उसकी स्थिति हांडी खो के नीले कबूतरों सी हो गई है, जो थोड़े से उड़ कर फिर चटटानों की कोटरों में घिर जाने के लिए विवश हैं। वह सोचने लगी थी क्या एक शिक्षित और विवेकशील व्यक्ति को यह शोभा देता है कि थोड़ा सा उड़ने की कोशिश करने वाले कबूतरों को भी पिंजरे में बन्द कर ले और रोटी-रोजी का माध्यम बनाकर किसी भूखे बूढ़े के समान इधर-उधर बेचता फिरे।
उस दिन विश्वास कब गया, उसे कुछ ख्याल नहीं।
पिताजी को भी निश्चल ने एक दिन अपने दफ्तर में बुला कर साफ-साफ कह दिया था कि वह अपनी जिन्दगी का सौदा किसी भावुकता पर करना नहीं चाहता, जिस परिवार की लड़की को जिन्दगी भर पालो, अपने स्तर के अनुरूप उस पर खर्च करो; उसके पालकों को जिन्दगी भर के संरक्षकों की कोई बात कम से कम एक बार तो मान लेना चाहिए।
यह सब सोचना मेरा या मेरे परिवार का नहीं है कि वह व्यवस्था आप कैसे करेंगे या आपकी वाग्दत्ता लड़की का क्या होगा।
दफ्तर में ही जाकर एक दिन वह भी निश्चल से मिली थी। उसे भी उसने साफ-साफ कह दिया था कि इन नाजुक प्रश्नों पर वह उससे चर्चा नहीं कर सकता, न ही जजबातों जैसी लिजलिजी मानसिकता में उसका विश्वास है। लेकिन न्याय के ऊँचे सिंहासन पर बैठकर आप यह क्यों भूल जाते हैं कि आपकी सन्तान मेरे पेट में पल रही है। वह गिड़गिड़ाते हुए धीरे से बोली थी। मेरी सन्तान.........वाट सन्तान...........मेरी कोई सन्तान-वंतान नहीं-डांट ट्राय टू विफूल मी- मैंने जो सुना था कि छोटे घरों की लड़कियाँ पाप करके दूसरों पर थोपती हैं, वह आज अपने कानों से सुन रहा हूँ।
चुप रहिये........मुझे नहीं मालूम था आप इतने अविवेकी और निर्लज्ज हैं-मैं तुम्हारा मुँह देखना नहीं चाहती।
आय से यू गेट आऊट-और उसने जोरों से घण्टी का बटन दबा दिया था। वह क्रांय-क्राय कर चित्कार उठी।
वह कुर्सी पर उठ बैठी थी और गुस्से में कक्ष के शटर को जोरों से धकेलती हुई बाहर आई थी।
तनु दरवाजा खोलो। दरवाजे पर दस्तक निरंतर तेज होती जा रही थी। आँखों में आ गई नमी को साड़ी के पल्लू से साफ कर वह उठ बैठी तथा दरवाजा खोल दिया।
तनु! विश्वास तुमसे मिलना चाहता है। उसके बड़े भाई धीरज ने पलंग पर बैठते हुए कहा।
वह क्यों आया?
सगाई में निश्चल को दिया सूट वापस करने।
ठीक है, दे दे और चला जाए। मैं नहीं मिलना चाहती।
इसी बींच विश्वास कमरे के अन्दर आ गया। धीरज वहाँ से उठ कर बाहर चला गया।
क्यों क्या कहना चाहते हो-क्या भैया ने कोई नया बखेड़ा खड़ा कर दिया? तनु व्यंग्य से मुस्करा दी।
तनुजी! क्या आप मुझसे भी नाराज हैं?
ये सब बेकार की बातें छोड़ो। मुझे ये बताओ तुम चाहते क्या हो?
क्या यह सूट आप मुझे दे सकती हैं?
मेरे देने का मतलब, ले जाओ मैंने मांगा कब.......?
नहीं, नहीं, मेरा मतलब..........मैं भैया की ज्यादती को समझ रहा हूँ-और आपको अपनाना..........।
चुप रहो। तुम मेरी मजबूरी को मजाक बनाकर मुझ पर अहसान करना चाहते हो। मैं जानती हूँ तुम मुझ पर दया नहीं, अहसान करना चाहते हो ताकि जिन्दगी भर मैं तुम्हारे पैर सहलाती रहूँ। जहाँ आदमी संस्कारों से इतना नीचे गिर जाता है, वहाँ मुझे किसी के आसरे की जरुरत नहीं। मैं कहती हूँ-तुम चले जाओ। मैं तो चला जाऊँगा पर आप गम्भीरता से सोचिये। भैया बता रहे थे एक बार दफ्तर में जाकर आपने बच्चे के भविष्य सम्बन्धी कोई बात कही थी। उस बच्चे का क्या होगा जो आपके पेट में.........?
बच्चा! कैसा बच्चा!! क्या तुम्हारे घर में सभी निर्लज्ज और बेशर्म लोग हैं। तुम्हें ऐसा कहते शर्म नहीं आती। तुम यह जान लो तुम्हारे निकम्मे भाई को मैंने अपने पास नहीं फटकने दिया। जानते हो ऐसा कहकर तुम मेरा अपमान कर रहे हो। मैं कहती हूँ तुम चले जाओ।
तनु हांफने लगी। उसका अंग-प्रत्यंग कांप रहा था। आँखों से आग के रेशे निकल रहे थे, फिर भी एक दृढ़ता वह अपने आप में महसूस कर रही थी। विश्वास चला गया।
अब तक माँ कमरे में आ चुकी थी। वह उससे लिपट कर रो पड़ी। माँ ने उसे पलंग पर बिठा लिया तथा थोड़ी देर सो लेने का आग्रह करने लगी। शाम को उसका मन शांत हुआ तो उसने माँ को सब बातें बता दीं- माँ! बचपन में तुमने मुझे हमेशा नंगा देखा है, आज मैं अपनी कमजोरी को तुम्हारे सामने नंगा कर रही हूँ मुझे माफ कर दो।
उसने माँ के पैर पकड़ते हुए कहा-लेडी डाक्टर मिस भार्गव मेरी बात मान लेगी, तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहती।
तनु, लेकिन बेटे। माँ उसकी मजबूरी को समझ रही थी। उसने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कुछ कहना चाहा, किन्तु उसने रोक दिया।
कुछ नहीं माँ, तुम चिन्ता मत करो-मैं एक सडांध अपने पेट में महसूस कर रही हूँ-यदि यह साफ नहीं हो पाई तो उसकी दुर्गन्ध से मैं मर जाऊँगी। बोलो, तुम क्या चाहती हो?
तनु!! माँ ने अपनी बाहें फैलाकर उसे गले लगा लिया।
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766, सुदामानगर, इंदौर (म.प्र.) - 452009
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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