प्रमोद भार्गव की कहानी - किसान

SHARE:

  शि व प्रसाद की बाखर में कुछ दिनों से कोई एक व्‍यक्‍ति नहीं बल्‍कि पूरा परिवार चिंतामग्‍न दिखाई दे रहा है। शिव की पेंसठ साल की वृद्धा अम्‍...

 

शिव प्रसाद की बाखर में कुछ दिनों से कोई एक व्‍यक्‍ति नहीं बल्‍कि पूरा परिवार चिंतामग्‍न दिखाई दे रहा है। शिव की पेंसठ साल की वृद्धा अम्‍मां जिसका शिव प्रसाद की पत्‍नी कमली से कुछ समय से अनबोला सा चल रहा था, वे अब उपतकर बड़ी बहू से बोलने लगी हैं। उनके दैनिक आचरण में अब छोटी बहू से किनाराकशी झलकने लगी है। छोटी बहू सरोज जब ब्‍याहकर घर में आई थी तब छोटा बेटा महेश बेरोजगार था और खेती किसानी में उसकी कोई दिलचस्‍पी नहीं थी। सो नौकरी की जुगाड़ में भटकता रहता था। अलबत्ता बेरोजगारी के दिनों में मां का लाड़ महेश पर ज्‍यादा झरता। आखिरकार जहां चाह वहां राह की कहावत चरितार्थ हुई और पिछड़े वर्ग को मिले आरक्षण का लाभ उठाकर महेश शिक्षाकर्मी बनने में कामयाब हो गया। बडे़ भाई-भाभी को भी प्रसन्‍नता हुई। बंधी आमदनी घर में आएगी तो परिवार की माली हालत में और सुधार आएगा। आर्थिक हैसियत बढ़ेगी तो गांव और जाति बिरादरी में दबदबा भी कायम होगा।

 

हालांकि शिवप्रसाद भी इंटर थे। वे चाहते तो उन्‍हें कब की नौकरी मिल गई होती। लेकिन पिता की सीख कह लो अथवा हिदायत उनके कानों में हमेशा एक आदर्श वाक्‍य बनकर गूंजती रही। पिता इस लीकोक्‍ति को दोहराते रहते थे, ‘उत्तम खेती, मध्‍यम बाण (व्‍यापार), निकृष्‍ट चाकरी, भीख निदान' पिता की इस सीख को शिरोधार्य करते हुए शिवप्रसाद ने विरासत संभाल ली। खेती की आमद से तीन बहनों और छोटे भाई का विवाह किया। और फिर पिता के पंचतत्‍व में विलीन होने के साथ, त्रिवेणी इलाहाबाद में उनकी अस्‍थियों के विसर्जन के बाद गंगापूजन, त्रयोदशा, भण्‍डारा और मोक्ष के लिए गोदान भी किया।

 

इन सामाजिक आयोजनों की यश-किर्ति से शिवप्रसाद के परिवार की जैसे पूरी पंच महल की जाति-बिरादरी में प्रतिष्‍ठा स्‍थापित हो गई थी। लेकिन पिता की मौत के बाद जैसे वैभव को नजर लग गई। पिता को स्‍वर्ग सिधारे अभी छह माह भी नहीं बीते थे कि भाई ने तहसील में जमीन बंटवारे की दरख्‍वास्‍त लगा दी। मझले बहन-बहनोई भी बराबर की हिस्‍सेदारी पर अड़ गए। अम्‍मां की समझाइश पर भी किसी ने कान नहीं दिए। हां, दो बहनों ने जरूर दया बरती और हिस्‍सा लेेने से साफ इनकार कर दिया। अम्‍मां का हिस्‍सा मिलाकर जमीन पांच भागों में बंट गई। लेकिन ट्रेक्‍टर चूंकि पहले से ही शिवप्रसाद के नाम था और पुराना भी हो गया था इसलिए बड़ी कुटिल चतुराई से छोटी बहू सरोज की सलाह पर शिवप्रसाद के ही नाम मढ़ दिया गया। अम्‍मां ने इसे अन्‍याय कहा भी लेकिन अम्‍मां की सुने कौन ? वे अन्‍याय को न्‍याय की वेदी तक नहीं ला पाईं। बड़े की पूर पड़ती रहे इसलिए अम्‍मां ने अपने खाते के खेत शिवप्रसाद को ही खेती के लिए सौंप दिए थे। अम्‍मां खूब जानती थीं कि बडे़ पर बोझ ज्‍यादा है इसलिए बड़े पर और भार न पड़े वे छोटे के घर ही खाती-पीतीं और बड़ी पर बेवजह तनतना कर अनबोला साध लेतीं, जिससे छोटी खुश रहे। छोटी की ईर्ष्‍या-कूढ़न की तुष्‍टि का लाचार अम्‍मां के पास यही नुस्‍खा था।

 

अम्‍मां की बूढ़ी आंखे मिचमिचाने जरूर लगीं थीं, लेकिन अभी उनमें अनुभव की इतनी सार्म्‍थ्‍य बाकी थी कि वे सामने वाले के हाव-भाव से उसकी मनस्‍थिति का अनुमान लगा लेतीं। सो अम्‍मां अनुमान लगा रही थीं कि हो न हो बेटा विपदा में है। फिर अम्‍मां को बेटे की चिंता सालने लगी। शिव के प्रति उनकी उदारता बढ़ गई। वे शिव की गतिविधियों पर निगाह भी रखने लगीं और उसके हालचाल की जानकारी तलब करने के प्रति भी सचेत व उत्‍साहित दिखने लगीं। और फिर एक दिन बड़े सबेरे जब अम्‍मां चिलचिलाते जाड़े में तापने के लिए बरोसी में आग सुलगाने का उपक्रम कर रही थीं और शिव खेत पर रवानगी डालने की तैयारी में थे, तब अम्‍मां पूछ बैठी, ‘‘क्‍यों शिब्‍बू तू आजकल इतनी जल्‍दी में क्‍यों रहता है....?''

 

- ‘‘वैसेइंर् अम्‍मां...! इन दिनों उजार का डर ज्‍यादा है। पैंठ चराने वालों का कोई भारोसा नहीं अपने..ई..खेत में भैसें चरा ले जाएं।''

- ‘‘सो तो ठीक है बेटा..., पर कछु दिनन से तू मोय परेशान लग रहो है। तेरे मुंह पे खुशी नहीं दिखा रही। कर्ज-अर्ज चुकाने का कछु तकाजा होय तो मोय बता लाला... ‘‘ वे शिव के बिलकुल निकट आकर (क्‍योंकि वे जानती थीं दीवारों के भी कान होते हैं और छोटी बहू आगखानी है) कान में बोलीं, ‘‘ मोपे दुकी-दुकाई सोने की बज्‍जटी और चूड़ियां धरी हैं। बंटवारे के समय मैंने छुपा लईं थीं। तेरी मोड़ी के ब्‍याह में देने के लाने। अब बुढ़ापे में मैं तो पहनने से रही। तोय जरूरत होय तो तू ले जा...! मैं काऊ से नहीं कहूंगी..., तेरे मरे बाप की सौगंध...!'' अम्‍मां की आंखें डबडबा आईं।

 

- ‘‘बौरा गई है का अम्‍मां..., तेरी रकम बेच के कर्जा पटाऊंगा का...? अभी चैत-वैशाख में फसल आई जात है..., सो कर्जा पट जाएगा। रकम संभाल के रखे रह, तेरी इच्‍छा होय तो मुनिया के ब्‍याह में दे देई ये...।'' और शिव निकल गए। चिंतित अम्‍मां बरोसी में सुलग आई लौ में तापने लगीं। लेकिन रोज-ब-रोज आसपास के गांवों से कर्ज में डूबे किसानों की आत्‍महत्‍या की आ रही खबरों की आंच जैसे उनकी चिंता का ताप और बढ़ा रही थी।

 

अम्‍मां सक्रिय रहीं। शिव के संग उठने-बैठने वालों से अम्‍मां को जानकारी मिली कि चना की पूरी फसल में इल्‍ली लग गई है। शिव ने सहकारी संस्‍था से कीटनाशक दवा लेकर छिड़काव भी कराया। शायद दवा नकली थी, सो बेअसर रही। संस्‍था का कर्ज सिर पर चढ़ गया, सो अलग। हालांकि इसी दवा के इस्‍तेमाल के लिए कृषि विशेषज्ञों ने भी कृषक प्रशिक्षण के दौरान सलाह दी थी और प्रयोग के तरीके भी बताए थे। इसी दौरान सहकारी संस्‍था वाले और दवा कंपनी के विक्रेता भी आ गए थे। उन्‍होंने जरूरतमंद कृषकों को सोसायटी से आसान किश्‍तों पर कर्ज लेकर दवा खरदने की सुविधाएं भी जताई थीं। हालांकि कुछ किसानों को दवा को लेकर आशंकाएं थीं। किंतु किसान लाचार थे। सहकारी बैंक संस्‍थाओं की शर्त थी कि कर्ज केवल बताई जा रही बहुराष्‍ट्रीय दवा कंपनी की कीटनाशक दवा लेने पर ही मिलेगा। नकद राशि देने का प्रावधान कानूनन नहीं है। सो यही दवा खरीदना किसानों की लाचारगी थी। किसानों को ये बैंक सीधे कर्ज देते तब न वे जांच-परख कर दवा खरीदने को स्‍वतंत्र होते।

 

अम्‍मां की कुशंकाएं बेबुनियाद नहीं थीं। बड़ी बहू कमली आंगन में जब झाडू लगा रही थी तब अनायास ही अम्‍मां की नजर बहू के रीते गले पर जा टिकी। अम्‍मां चौंकीं। इसके गले में तो दो तौले की सोने की लर (चैन) झूलती रहती थी। कहां गई ? पूछूं। और अम्‍मां बहू के पास जा बैठी। बोलीं, ‘‘तेरी लर कहां गई बड़ी बहू...?''

बेफिक्र कमली को ऐसी उम्‍मीद कतई नहीं थी कि अम्‍मां की बूढ़ी नजर लर पर पड़ जाएगी और वे सवाल भी उठाएंगी। सो कमली सकपका गई। छटपटाते हुए बड़ी सावधानी से उसने धोती के पल्‍लू में गला और आंचल ढंक लिए। फिर सायास बोली, ‘‘लर टूट गई थी, सो जे सुनार के जहां सुधरवे डार आए हैं...।''

- ‘‘मेरे सिर पे हाथ रख के सौं खा की तू सच्‍ची बोल रही है...।'' और अम्‍मां ने बहू की हथेली खुद के सिर पर रख ली। कमली अम्‍मां की आंखों से आंख मिला पाती इससे पहले वे छलछला आईं। और कमली धोती के पल्‍लू से आंखें मीढ़ते हुए सच नहीं बोल पाने की हिम्‍मत न जुटा पाने के कारण अटा वाले कोठे में घुस गई। अम्‍मां भी पीछे थीं...।

अम्‍मां हैरान थीं। शिव ने सोने की लर बेच दी थी। जब सहकारी संस्‍था से खरीदी दवा का असर इल्‍लियों पर नहीं दिखा तो शिव पत्‍नी की दो तौले की लर शिवपुरी के सराफा बाजार में बेचकर कीटनाशक बाजार से खरीद लाए थे। पति-पत्‍नी और बारह साल की बिटिया मिुनया ने मिलकर दो दिन-रात एक करके दवा छिड़की। इस श्रम के लिए मुनिया को दो दिन स्‍कूल की छुट्‌टी भी करनी पड़ी। फिर चल रही शीत लहर की जो मार उसके कोमल शरीर पर पड़ी तो बुखार की गिरफ्‍त में आ गई। दादी अम्‍मां ने तुलसी की पत्तियों और गिलोय की बेल के काढ़ा पिला-पिलाकर मुनिया का उपचार किया। लोरियां सुनाकर वे मुनिया का मन बहलातीं और सिर दबाकर हरारत दूर करने की कोशिश में लगी रहतीं। शिव मुनिया को शिवपुरी लाकर इलाज कराने की सोचते भी, पर पैसे की जबरदस्‍त तंगी के चलते वे ऐसा नहीं कर पाए। हालांकि कमली ने बेटी के उपचार के लिए सोने की अंगूठी बेच देने को कहा भी पर इसी बीच भगवान ने सुन ली। अम्‍मां की दवा, दुआ और सेवा रंग लाई। मुनिया की सेहत में सुधार दिखने लगा। हालांकि गांव में प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र है, पर कभी खुलता नहीं। मुसीबत में घिरा किसान कितनी विकट दुविधा में होता है कि फसल की सुरक्षा की चिंता की खातिर उसे संतान की बीमारी से भी मुंह मोड़ना पड़ता है। इस निष्‍ठुर और हृदयहीन लाचारी का सामना कर मन ही मन कितना रोए होंगे शिव और कमली।

 

पूरे इलाके में शीत लहर का प्रकोप बढ़ना शुरू हो गया है। किसान तुषार की आशंका से भयभीत हो रहे हैं। अम्‍मां बाखर के बाहर कौड़े में आग जलाकर ताप रही हैं। उनके साथ दो-तीन उन्‍हीं की उम्र की औरतें और कुछ युवक बैठे हैं। सब चितिंत हैं। चिंता का मन-मस्‍तिष्‍क पर पर्याप्‍त दबाव है। सो किसी के बोल नहीं फूट रहे। तभी चार-पांच लोगों की टोली आई और अम्‍मां से बोले, ‘‘अम्‍मां गांव में भील देवता का मंदिर बन रहा है, शिवप्रसाद से कहो चंदा दे...।''

 

- ‘‘देवता किसान की कछु सुनत तो हैं नहीं। मौसम कैसो खराब हो रहो है। पाले को डर सता रहो है। वक्‍त का मारा किसान कहां से चंदा दे..., तुम्‍हीं बताओ ?''

- ‘‘अम्‍मां भगवान को मत कोस। भगवान की कृपा पूरे गांव पर बनी रहे, इसीलिए तो मंदिर बनवा रहे हैं।''

- ‘‘चल एक सौ एक रूपया ले जा...। वैशाख में शिव के खेत में मन माफिक फसल निकरी तो पांच सौ एक देवता पर चढ़ाऊंगी।''

- ‘‘अम्‍मां रसीद कौन के नाम काटूं..., तुम्‍हारे या शिव के या महेश के ?''

- ‘‘घर का बड़ा शिव है तो शिव के नाम काट...। बाके बाप के मरने के बाद वही तो घर का मुखिया है।''

अम्‍मां भीतर जाकर रूपये लाई और टोली के लोगों को देकर धोती के पल्‍लू में रसीद बांध ली।

 

अम्‍मां देख व अनुभव कर रही थीं, शिव पर मुसीबतों का शिकंजा लगातार कस रहा है। कल ही बैंक से ट्रेक्‍टर पर लिए कर्ज की वसूली का नोटिस आ गया। साढ़े चार लाख से ऊपर का अकेले ट्रेक्‍टर पर कर्ज बकाया है। अम्‍मां सोच रही थीं, ये ट्रेक्‍टरों से खेती, मोटर पंप से सिंचाई और थ्रेसर से दांय का चलन क्‍या शुरू हुआ है, इनने किसान की जड़ में मठा घोल दओ। धन के सब स्रोत सोख डाले। किसान इनके पेट में डीजल भरे या अपने पेट में रोटी...? हल बैल की खेती भली थी। बिनेई हल में जोत दो तो खेत हांक लो और रेंहट-चरस में जोत दो तो सिंचाई कर लो। कर्ज लेकर ट्रेक्‍टर से खेती तो किसान के तिल-तिल प्राण हरने के उपाय हैं।

 

और फिर तीन दिन से हिमालय में हो रही बर्फबारी से निकलीं उत्तरी हवाएं दक्षिण की ओर बहीं तो खेतों में कहर ढाती चली गईं। पाले की मार ने फसलों को खेत में बिछा दिया। अम्‍मां कौडे़ पर ताप रही थीं। तभी दौड़ते-हांफते दो ग्रामीणों के आर्तनादों अम्‍मां का कलेजा चीर दिया, ‘‘अम्‍मां गजब हो गया...''

भविष्‍य की अनिश्‍चितता से घिरी अम्‍मां फुर्ती से उठ खड़ी हुईं...।

- ‘‘गजब हो गया अम्‍मां... खेत पर शिव ने कीटनाशक दवा पी लई...। मेड़ पर तड़फ रहो है....। जल्‍दी से ट्रेक्‍टर-ट्रोली निकलवाओ शिवपुरी अस्‍पताल ले जाना है।''

- ‘‘हे राम जी... तूने जो कौन से जनम को दण्‍ड दओ...'' फिर वे हड़बड़ाई...। बाखर में भागीं, ‘‘महेश कहां है... जल्‍दी आ...। बडे़ लाला ने जहर पी लओ...। जा मेरी रकम ले जा, बेचके इलाज करा...। जरूरत पडे़ तो मेरो खेत बेच देई ए... '' अम्‍मां छाती पीटती हुई बक्‍से से रकम की पोटली निकाल लाइंर् और महेश को थमाकर गलियारे में लोट-पोट हो गईं।

हौसले के पैरों पर शिव की जिंदगी को दौड़ाने की कोशिशों में लगीं अम्‍मां मानो हार कर खुद जमीन पर थीं। शिवप्रसाद ने शिवपुरी ले जाने की तैयारियों की शुरूआत में ही दम तोड़ दिया।

 

अगले दिन के अखबारों के मुखपृष्‍ठों पर खबर थी, ‘कर्ज में डूबे एक और किसान ने आत्‍महत्‍या की।' समाचार के नीचे कृषि मंत्री और प्रदेश सरकार के प्रवक्‍ता का बयान भी था, ‘मृतक किसान शिवप्रसाद की माली हालत सुदृढ़ थी। वह एक ट्रेक्‍टर, बीस बीघा सिंचित जमीन का मालिक था। अपनी मां के हिस्‍से के खेत में भी वही खेती करता था। गांव में मंदिर बनवा रहा था। इलाज के लिए उसकी मां ने सोने के गहनों की पोटली खोल दी थी। वह हर तरह का कर्ज पटाने में सक्षम था। हां कुछ दिनों से मृतक किसान की मनस्‍थिति जरूर खराब थी। जिससे एकाएक मृतक का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया और उसने कीटनाशक दवा गटक ली। मृतक के आत्‍महत्‍या करने की यही वजह है।'

अम्‍मां को जब महेश ने यह खबर पढ़कर सुनाई तो उन्‍होंने अखबार छीन कर आग में झौंक दिया, ‘‘मेरे लायक बेटे को पगला ठहरा रही है सरकार...। आग लगे ऐसी सरकार में।'' एक लाचार किसान बेटे की मौत पर मां के पास इसके अलावा आक्रोश जताने का और चारा भी क्‍या था ?

 

----

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी

शिवपुरी म.प्र.

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव की कहानी - किसान
प्रमोद भार्गव की कहानी - किसान
http://3.bp.blogspot.com/-QMESRHwh084/TWTFQpueIFI/AAAAAAAAAAM/Jofkk8w-0rg/s249/pramod+bhargava+new.jpg
http://3.bp.blogspot.com/-QMESRHwh084/TWTFQpueIFI/AAAAAAAAAAM/Jofkk8w-0rg/s72-c/pramod+bhargava+new.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_1432.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_1432.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content