कैस जौनपुरी की कहानी - बोहनी

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सु बह के चार बज रहे थे. रेलवे स्टेशन पर असद किसी को छोड़ने गया था. ट्रेन के जाने में अभी समय था. जिसको जाना था वो ट्रेन में बैठा हुआ था, अपने...

सुबह के चार बज रहे थे. रेलवे स्टेशन पर असद किसी को छोड़ने गया था. ट्रेन के जाने में अभी समय था. जिसको जाना था वो ट्रेन में बैठा हुआ था, अपने एक दोस्त के साथ. इसलिए असद बाहर प्लेटफार्म पर स्टेनलेस स्टील की बनी तीन कुर्सियों वाली बेंच पर एक किनारे बैठा हुआ था. हाथ में मोबाईल था. सब कुछ अपने हिसाब से चल रहा था. लोग आ रहे थे. लोग जा रहे थे. सब एक-दूसरे को देख रहे थे. अभी सूरज नहीं निकला था इसलिए अँधेरा था. मगर प्लेटफार्म पर जरुरत भर का उजाला था.

असद बैठा हुआ था. लोग आ रहे थे. लोग जा रहे थे. तभी असद की नज़रों के सामने से एक लड़की गुजरी. वो लड़की रही होगी करीब सोलह-सत्तरह साल की.... या इससे ज्यादा की भी हो सकती हो...... मगर उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि अभी बीस बरस पूरे नहीं किये होंगे उसने...... उस लड़की ने असद को एक नज़र देखा. असद की नज़र भी उस लड़की से मिली थी. ठीक उसी तरह जैसे बाकी आने-जाने वालों से मिली थी. “अजनबी लोग एक दूसरे से कुछ कहते तो नहीं हैं. लेकिन उनकी नज़र आपस में हाल-चाल पूछ ही लेती है. और फिर लोगों के चेहरों से पता चल जाता है कि वो शख्स खुश है या दुखी है.” असद को उस लड़की का नाम नहीं पता था. लेकिन चेहरे से वो खुश नहीं लग रही थी. क्योंकि उस लड़की ने असद को एक उम्मीद भरी नज़र से देखा था. जैसे असद को कुछ देना था उसे. जैसे असद ने कुछ उधार लिया हो उससे. जैसे वो लड़की कह रही हो कि, “मेरा उधार कब वापस कर रहे हो...?”

असद ने कुछ उधार लिया तो था नहीं क्योंकि दोनों ने एक दूसरे को आज पहली बार देखा था. और एक नज़र में ही ये कुछ लेने-देने वाला रिश्ता बन गया था. वो लड़की एक सफ़ेद और हरे, मिले-जुले रंग की कमीज पहने हुए थी. उसका दुपट्टा हल्के नीले आसमानी रंग का था. उसकी सलवार भी कुछ ऐसी ही थी. असद ने इतना गौर से देखा नहीं क्योंकि उस लड़की की पहली झलक में जितना दिखा था वो कुछ इतना ही था. एक लड़की हरे-सफ़ेद रंग के कपड़े में उसकी नज़रों के आगे से गुजरी थी. जब दोनों की नज़रें मिलीं तभी कुछ खास हुआ जिसने दोनों को एक-दूसरे को बार-बार देखने पर मजबूर कर दिया था. जैसे ही असद ने देखा कि वो लड़की आ रही है. लड़की बायीं तरफ से आ रही थी. जब वो लड़की उसके पास करीब दो हाथ की दूरी पर थी. तभी उस लड़की का दुपट्टा उसके उसके दाएँ कन्धे से सरक गया और उसके सीने तक आकर रुका. फिर उस लड़की ने अपना दुपट्टा सम्भाल लिया. ठीक इसी वक़्त दोनों की नज़रें मिलीं थीं. लड़की थोड़ी उदास लग रही थी. शायद उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी. उसके कपड़े भी थोड़े गन्दे लग रहे थे. अगर गन्दे न कहे जाएँ तो साफ भी नहीं थे. लेकिन इतना जरुर था कि वो नहाई हुई तो बिल्कुल भी नहीं थी. उसके चेहरे से साफ़ दिख रहा था कि वो नहाई हुई नहीं है. कम से कम दो दिन से...... अब सच में कितने दिन से...... ये तो वो लड़की ही जाने. असद ने उस लड़की के दुपट्टे को सरकते हुए देखा. लड़की ने ये देखा कि इस आदमी से लगने वाले लड़के ने उसके सरकते हुए दुपट्टे को देख लिया है. और दोनों की नज़रें मिल गयीं थीं. फिर लड़की ने पता नहीं क्या सोचा..... आकर असद के पास बेंच के एक किनारे पर बैठ गई. तीन कुर्सियों वाली बेंच पर असद एक किनारे था. वो लड़की दूसरे किनारे थी. बीच में एक सीट खाली थी. जिस पर थोड़ी ही देर में एक दूसरी लड़की ने आकर कब्ज़ा जमा लिया. असद ने देखा कि वो दूसरी लड़की पहली वाली लड़की को जानती है. दोनों साथ में थीं. बस आगे-पीछे टहल रहीं थी. दोनों के पास कोई सामान नहीं था. असद ने पलट कर पहली वाली को देखा. वो तो असद को इस तरह से घूर रही थी जैसे नाराज हो रही हो कि, “मैं यहाँ कब से बैठी हूँ और तुम मुझसे बात भी नहीं कर रहे हो...!” अब असद को समझ में आया कि ये लड़की ट्रेन से सफर करने नहीं आई है. अब असद को ये भी समझ में आ गया कि उसके कपड़े इतने गन्दे क्यों दिख रहे थे. और वो इस तरह क्यूँ उसके पास आकर बैठ गई. और क्यूँ उसे घूर कर देख रही थी. वो धन्धे वाली थी. और बोहनी करने निकले थी.

लेकिन इन सबके बावजूद उसकी आँखों में एक शरम थी. उसने कुछ भी कहा नहीं. उसने इन्तजार किया कि शायद असद कुछ कहेगा. शायद असद जनता हो कि उस जैसी लड़की की बात लोग बिना कहे कैसे समझ जाते हैं. शायद इसीलिए वो असद के कुछ कहने का इन्तजार कर रही थी. लेकिन असद तो वहाँ किसी और काम से आया था. और सुबह के पांच बजने वाले थे. असद ने सोचा.....इतनी सुबह...? लेकिन धन्धा तो धन्धा है...हर धन्धे का अपना समय होता है......असद ने उस लड़की से कुछ नहीं कहा. उस लड़की ने भी देखा कि ये आदमी सा दिखने वाला लड़का कुछ कह नहीं रहा है. फिर दोनों लड़कियों ने आपस में कुछ बात की और उठके वहाँ से चल दीं. असद ने उन दोनों को जाते हुए देखा. असद की नज़र उस पहली वाली पे टिकी हुई थी जो बार-बार पलट के असद को देखे जा रही थी कि शायद असद ‘हाँ’ कह दे और उसकी बोहनी हो जाए.....

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. असद चुपचाप अपनी बेंच पर बैठा सब कुछ देखता रहा. ऐसा नहीं था कि वो उस लड़की की बोहनी कराना चाहता था. असद बस ये देख रहा था कि, “इस छोटी सी उमर में ये लड़की इतनी सुबह-सुबह ग्राहक की तलाश में घूम रही है...?” और इतनी उदास लग रही है जैसे कई दिनों से उसकी बोहनी नहीं हुई हो. और कई दिनों से उसने कुछ खाया-पिया न हो. शायद इसीलिए वो असद को उम्मीद भरी नज़रों से देख रही थी कि, “मैं जो भी हूँ उसकी परवाह मत करो. मैं भूखी हूँ. मेरी बोहनी करा दो ताकि मेरा दिन अच्छा जाए...!” असद को ये सब सोचकर थोड़ी बेचैनी भी हो रही थी. थोड़ी हमदर्दी भी हो रही थी. असद ने सोचा....”अगर मैं इसकी बोहनी करता भी हूँ तो यहाँ स्टेशन पर क्या होगा....?” फिर असद के मन में कुछ इधर-उधर के खयाल आने लगे. “पता नहीं ये लड़की कहाँ ले जायेगी...? कहीं बेवकूफ तो नहीं बनाएगी...? पुलिस इन लोगों के साथ मिली रहती है...कहीं पुलिस तो नहीं पकड़ लेगी...? अगर पुलिस ने पकड़ लिया तो बदनामी हो जायेगी...वगैरह-वगैरह....” मगर इन सब खयालों के बावजूद असद को वो लड़की भली सी लग रही थी.

दोनों उसके पास से उठके जाने के बाद ट्रेन के डिब्बे में चढ़ गयीं. असद ने सोचा, “क्या ये सफर करने वाली हैं...? मगर इनके पास तो सामान है नहीं...?” असद इन्हीं खयालों में गुम था तभी दोनों बाहर आ गयीं और थोड़ी दूर पर एक चबूतरे पर बैठ गयीं. वहाँ से भी वो लड़की असद को पलटकर देख रही थी. शायद उसे अभी भी उम्मीद थी कि, “उसकी बोहनी इसी आदमी से दिखने वाले लड़के के हाथों होनी हो...!”

असद कुछ सोच रहा था. वो लड़की भी कुछ सोच रही थी तभी उन दो लड़कियों के पास दो लफंगे से दिखने वाले लड़के आए. एक ने पीली टी-शर्ट पहनी हुई थी दूसरे ने लाल. पीली टी-शर्ट वाले के हाथ में लकड़ी का एक मोटा डंडा था. दोनों उन लड़कियों से कुछ कह रहे थे. असद दूर था इसलिए उनकी बातें सुन नहीं सका. लेकिन उनके हाव-भाव से ऐसा लग रहा था जैसे वो दोनों लड़के उन दोनों लड़कियों को वहाँ से भगाना चाह रहे थे. और न भागने पर डंडे का डर दिखा रहे थे. लेकिन “पेट की भूख के आगे सारे डर भाग जाते हैं.” उन लड़कियों के ऊपर कोई असर न हुआ. उल्टा वो दोनों लड़के भाग गए. जाते हुए उस पीली टी-शर्ट वाले लड़के ने डंडा जमीन पर पटका. फिर दीवारों पर मरता हुआ चला गया. प्लेटफार्म पर बने शौचालय की दीवार पर एक लाल रंग का बक्सा टंगा हुआ था. उसने एक डंडा उस बक्से को भी मारा. उस बक्से में से कुछ गिरा और वो लड़का उसे उठाकर भाग गया.

इधर ये दो लड़कियां अभी भी वहीं बैठीं थीं, किसी के इन्तजार में, जो आकर उनका सामान खरीद लेता और उनकी दुकानदारी चालू होती. मगर अभी तक कोई नहीं आया था. असद भी अपनी जगह से हिल नहीं रहा था. जब उस हरे-सफ़ेद कपड़े वाली लड़की ने देखा कि ये आदमी सा दिखने वाला लड़का हिलने वाला नहीं है. तब उसने उम्मीद छोड़ दी. आखिर वो कब तक उम्मीद करती. असद ने तो कोई इशारा भी नहीं किया कि, “रुको, ट्रेन को चले जाने दो.” फिर भला वो लड़की क्यों इन्तजार करती. वो लड़की उठी और वहाँ से और आगे चल दी. उसके साथ वो दूसरी लड़की भी चल दी. दोनों प्लेटफार्म पर चली चली जा रहीं थीं. असद उस लड़की को जाते हुए देख रहा था. तभी ट्रेन ने आवाज दी. अब धीरे-धीरे ट्रेन भी चल दी थी. असद ने सोचा, “काश...वो लड़की थोड़ी देर और रुक जाती.” मगर “जिन्दगी में काश कहने वालों के लिए वक्त नहीं रुकता है. या तो लड़की चली जाती है, या ट्रेन चली जाती है. कभी-कभी दोनों चली जाती हैं.” असद के साथ भी ऐसा ही हुआ.

अब प्लेटफार्म खाली हो गया था. ट्रेन जा चुकी थी. वो लड़की भी गायब हो गई थी. असद को इतना पता था कि अभी तक उसकी नज़र के सामने उस लड़की को कोई नहीं मिला था. तो शायद वो अभी तक किसी को ढूँढ़ रही हो. क्या पता थोड़ा आगे जाने पर वो मिल जाए. ये सोचकर असद प्लेटफार्म पर आगे बढ़ता गया. कुछ लोग प्लेटफार्म पर ही सो रहे थे. कुछ लोग अगली ट्रेन का इन्तजार कर रहे थे. कुछ पुलिसवाले बैठे गप्पे मार रहे थे. सब कुछ एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म जैसा लग रहा था. मगर फिर भी असद को कुछ कमी महसूस हो रही थी. वो लड़की नहीं दिख रही थी. उसने करना तो कुछ था नहीं, पर हां मिलने पर शायद ये पूछ लेता कि वो ऐसा काम क्यों करती है...?

असद प्लेटफार्म के आखिरी किनारे पर पहुँच गया था. अब आगे रास्ता नहीं था. सिर्फ अँधेरा था.... घुप्प अँधेरा...असद ने सोचा, “चलो वापस चलते हैं....मिल गया होगा कोई उसे....” ये सोचकर असद हल्के कदमों से वापस जाने लगा. स्टेशन पर बने एक कार्यालय पर असद की नज़र पड़ी. दीवारों पर गन्दगी जमी हुई थी. उसकी खिड़की टूटी हुई थी. खिड़की के पल्ले बन्द थे. मगर फिर भी कमरे के अन्दर सबकुछ दिख रहा था. कमरे में एक लकड़ी की बेंच पड़ी थी. बेंच के एक किनारे पे वही लड़की बैठी हुई थी. उदास....बेमन से......खुद को सामने बैठे हुए आदमी की नज़रों से देख रही थी. असद खिड़की के सामने से गुजरा. उस लड़की को देखकर असद के कदम एक पल के लिए रुक से गए. उस लड़की ने भी देखा. उसी तरह जैसे दोनों की नज़र पहली बार मिली थी लेकिन अब हालात बदल चुके थे. शायद लड़की को अफ़सोस हो रहा था कि थोड़ी देर और रुक जाती तो एक अच्छा ग्राहक मिल जाता......

असद बाहर खड़ा था, और ज्यादा देर खड़ा नहीं रह सकता था. लड़की कार्यालय के अन्दर थी. उसे अफ़सोस हो रहा था कि आज उसकी बोहनी खराब हो जायेगी. उसे अफ़सोस हो रहा था कि आज का पूरा दिन यूँ ही जाएगा. कहते हैं कि जब पहली बार बोहनी अच्छी होती है तो पूरा दिन अच्छा जाता है. लेकिन यहाँ तो उस लड़की का सामान एक बार फिर मुफ्त में बिकने जा रहा था.

उसके बाद असद तेज कदमों से अपने रास्ते चल दिया. उसके दिमाग में वही लड़की घूम रही थी. उसके हालात उसे याद आ रहे थे. उसकी बोहनी खराब होने वाली थी......

कैस जौनपुरी

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रचनाकार: कैस जौनपुरी की कहानी - बोहनी
कैस जौनपुरी की कहानी - बोहनी
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