रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - जेब रे जेब

SHARE:

जेब का आविष्कार किसने किया, यह तो अपन को पता नहीं, लेकिन जिसने भी किया वह कोई बहुत ही कुशाग्रबुद्धि व्यक्ति रहा होगा। जरा सोचिए कि यदि आपके...

जेब का आविष्कार किसने किया, यह तो अपन को पता नहीं, लेकिन जिसने भी किया वह कोई बहुत ही कुशाग्रबुद्धि व्यक्ति रहा होगा। जरा सोचिए कि यदि आपके कपड़ों में जेब न हो तो आप कैसे मैनेज करेंगे? नकदी कहाँ रखेंगे? पेन कहाँ खोंसेंगे? और जरूरी कागजात जैसे पहचान-पत्र, रेल या बस का टिकट, ड्राइविंग लाइसेंस आदि कहाँ रखेंगे? इन सारे असबाब को रखने के लिए जेब तो चाहिए न।

जब से जेब वजूद में आई है, ज्यादातर उसका इस्तेमाल पैसे-धेले रखने के लिए ही होता है। कोई-कोई लोग रुपये-पैसे, कार्ड और प्रियजन की तस्वीरें आदि रखने के लिए बटुए यानी पर्स का भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उसे भी साथ लेकर चलना हो तो आखिरकार जेब ही काम आती है। जब से हमने होश संभाला है, पैंट-कमीज, कुर्ता-पाजामा सब कुछ जेबदार ही देखते आए हैं। एक प्रकार से जेब सिले हुए कपड़े का अनिवार्य हिस्सा हो गई है। यहाँ भी एक बात गौर करने की है। परंपरागत मर्दाना कपड़ों में तो जेब का होना जरूरी है, किन्तु महिलाओं के कपड़ों में (जहाँ तक इस विनम्र लेखक को मालूम है) ऐसा कोई इंतजाम नहीं होता, गोया महिलाओं को रुपये-धेले लेकर चलने का कोई अधिकार ही नहीं। इससे अपने समाज में महिलाओं की माली हैसियत का पता चलता है। इस लिहाज से जेब हमारे समाज में महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर एक मौन टिप्पणी करती है। लेकिन महिलाएँ भी पीछे क्यों रहें? उन्होंने इसका तोड़ निकाल लिया है। ज्यादातर महिलाएँ अब एक थैली अपने साथ लिए चलती हैं, जिसमें वे न केवल पैसे, बल्कि अपने काम का सारा असबाब, मेक-अप सामग्री, आइना-कंघा- सब समेटे रहती हैं। पान-तंबाकू, सुपारी-इलायची खानेवालियाँ अपनी थैली में यह सब असबाब भी सहेजे रखती हैं। पुरुषों ने अपनी जरूरत की सब चीजें जैसे चूना-सुरती रखने की चुनौटी, बीड़ी, सिगरेट, माचिस, लाइटर, पेन आदि जेब के हवाले कर दी हैं। इधर हाल में एक नई वस्तु ईजाद हुई है जो जन्म से ही जेब की सहूलियत के अनुसार बनी है। उसका नाम है मोबाइल फोन। महिलाओं ने इसे भी अपने पर्स में डाल लिया है। जिन्होंने नहीं डाला है वे इसे हाथ में लिए डोलती हैं। कुछ महिलाएँ इसे लॉकेट की तरह गले में भी लटका लेती हैं। लगभग साठ-सत्तर वर्ष पूर्व कुछ लोग जेब में ही घड़ी भी रखा करते थे। इसीलिए घड़ियों का एक जेबी संस्करण भी बनता था, जिसे लोग जेबी घड़ी कहते थे। चूँकि राष्ट्र-पिता महात्मा गाँधी ने सिले हुए कपड़े पहनना छोड़ दिया था, इसलिए वे इस जेबी घड़ी को कमर में खोंसते थे। सच कहें तो गाँधीजी बड़े दूरंदेश थे। वे ऐसा कोई वस्त्र ही नहीं पहनते थे, जिसमें जेब हो। न रहेगी जेब, न रहेगा जेब भरने-भराने का झंझट। उनके जो वारिस लोग थे, वे शेरवानियाँ और कुर्ते-कोट आदि पहनते थे, जिनमें भारी-भारी जेबें थें।

जब समाज में पढ़ाई-लिखाई का प्रचलन बढ़ा, तो प्रकाशकों- मुद्रकों ने जेब को ध्यान में रखते हुए अपने हिसाब से एक नवोन्मेषी उपाय किया। उन्होंने अपनी पुस्तकें छोटे आकार में छापनी आरंभ कीं, ताकि लोग उन पुस्तकों को जेब में रखकर चल सकें। यात्रा करते हुए पढ़ सकें। कई प्रकाशकों ने तो बकायदा अपने नाम के साथ ही पॉकेट बुक्स नत्थी कर लिया। निश्चय ही उनकी छापी पुस्तकें सस्ती और हल्की होती हैं। कुछ तो अपनी सामग्री के स्तर पर भी बेहद हल्की होती हैं। दुख की बात है कि हल्की सामग्री वाली पुस्तकें ही बिकती हैं जबकि सत्साहित्य चाहे जितना सस्ता और सुवहनीय हो, उसके पाठक अब भी अपने समाज में बहुत कम हैं। हाँ, तरह-तरह के चालीसा जेब में लिए घूमने का रिवाज अपने धर्मांध समाज में खूब है।

जेब, खीसा, गिरह और पॉकेट सब एक ही शै के पर्याय हैं। लेकिन गिरह की अर्थ-व्याप्ति थोड़ी अधिक है। सच कहें तो गिरह बिना सिले कपड़ों में लगाई जानेवाली गाँठ को कहते हैं, जिसमें लोग पहले मुद्रा और कीमती वस्तुएं बाँध लिया करते थे। बुजुर्ग महिलाएं अपनी गिरह में घर के दरवाजों और आलमारियों की चाभियाँ बाँधे घूमती थीं। बड़े-बूढ़ों की सीख को भी लोग गिरह में बाँध लेने की सलाह देते थे। मिर्जा ग़ालिब तो राह चलते सूझ जानेवाले अशआर को भी गिरह में बाँधते जाते थे। ठिकाने पर पहुँचने पर एक-एक गिरह खोलते जाते और उसमें बंद शेर को कागज पर लिखते जाते। भीड़ भरी जगहों, यात्रा आदि के दौरान गिरह में बंधी कीमती वस्तु को चुराने वाला गिरहकट कहलाता था। धीरे-धीरे गिरह का जमाना चला गया। लोग कपड़े सिलवाकर पहनने लगे। इन कपड़ों में जेबें बनने लगीं। गिरहकटों ने भी अपना प्रौद्योगिकी उन्नयन कर लिया और जेब काटने तथा पॉकेट मारने के काम में महारत हासिल कर ली। किन्तु नाम उनका अब भी वही यानी गिरहकट चल रहा है।

गिरहकटों से अपने धन को बचाने के लिए बहुत से लोग ऐसी बनियान पहनते हैं, जिसमें जेब सिली होती है। पहले मारकीन या साधारण सूती कपड़े से दर्जी द्वारा सिली गई ऐसी बनियानें दुकानों और ठेलों आदि पर मिलती थीं। व्यवसायी लोगों में इनका खूब प्रचलन था, क्योंकि उनको हर समय रुपये-पैसे का लेन-देन करना होता था। आम आदमी को तो पैसा देखना ही मयस्सर नहीं था। अब होजरी की बनियानें बनानेवाली कुछ कंपनियाँ भी थैली लगी बनियानें निकालने लगी हैं।

अच्छी कंपनियों की सिली-सिलाई पैंटों में बेल्ट के नीचे एक चोर जेब सिली रहती है। कभी जब अपने पास रुपये होते हैं तो उन्हें रखने के लिए इसका इस्तेमाल हम भी कर लेते हैं। वैसे अपने पास कभी इतने रुपये रहे नहीं कि अच्छी कंपनी की पैंट पहन सकें और सस्ती पैंट बनानेवाली कंपनियाँ ये जेब बनाती ही नहीं। उन्हें मालूम है कि जिस मरदुए के पास एक ढंग की पैंट खरीदने के पैसे नहीं हैं, उसे चोर जेब से क्या लेना-देना!

थैली की बात आई तो हमें अपना बचपन याद आ गया। स्कूल के अहाते में शहतूत के ढेर सारे पेड़ थे। बाहर निकलें तो कुछ ही दूरी पर पुरानी पहाड़ियाँ थीं, जिनपर झरबेरी के झाड़ फैले थे। हम शहतूत और बेर तोड़-तोड़ कर अपनी जेब में भर लेते और खूब मजे ले-लेकर खाते। घर जाते-जाते कमीज का हुलिया बदल गया होता। जेब वाले हिस्से में तरह-तरह के धब्बेदार चित्र बन चुके होते थे। ऐसा नहीं कि जो बच्चे लाल-लाल शहतूत अपनी जेब में नहीं रखते थे, उनकी कमीजें बिलकुल बेदाग बची रहती थीं। उनकी जेब पर स्याही के धब्बे बने होते थे, सस्ते कलम और बॉल पेन की मेहरबानी से। हम जब उससे भी छोटे थे और गाँव में रहते थे, तब तो थैली और भी काम की चीज थी। जब हम भड़भूजे के पास दाना भुनाने गई नानी, आजी या माई के पास पहुँचते तो वे हमारी जेब में ही गरम-गरम लैया-चना भर देतीं। और हम फुदकते हुए आधा दाना गिराते, आधा चबाते हुए खेलने चल देते।

जब से सयाने हुए हैं और सरकारी महकमों से काम पड़ने लगा है, तब से जेब की एक और उपयोगिता हम पर उद्घाटित हो चली है। बिना जेब गरम किए सरकारी लोग कोई काम नहीं करते। नगर निगम में हाउस टैक्स भरना हो, पानी-सीवर का कर अदा करना हो या बिजली विभाग द्वारा जान बूझकर ऊट-पटांग बनाए गए बिल को सही करवाना हो, तो बाबू की जेब गरम कीजिए। थाने में रपट लिखानी हो तो दीवानजी की जेब गरम कीजिए। गैस का कनेक्शन लेना हो तो एजेंसी वाले की जेब गरम कीजिए। बच्चे का एड्मिशन कराना हो तो स्कूल-कॉलेज वालों की जेब गरम कीजिए। लोन लेना हो तो बैंक वालों की जेब गरमाइए। ऐक्सीडेंट में जान गँवा चुके स्वजन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेनी हो या मुर्दा घऱ से शव निकलवाना हो, बिना खिलाए-पिलाए कुछ नहीं हो सकता। यहाँ तक कि मुर्दा फूँकने जाइए, तब भी महापात्र की जेब गरमाए बिना चिता नहीं जलनेवाली। बच्चा पैदा हो तो जन्म प्रमाणपत्र बनवाने और बाबा मर जाएँ तो उनका मृत्यु-प्रमाणपत्र बनवाने के लिए भी बाबू लोगों की जेब गरम किए बिना आपका निस्तार नहीं। सुना है कि देश का हर बड़ा-छोटा आदमी इस कला में पारंगत हो चला है। इस लिहाज से जेब बड़े काम की चीज है। अब हम सोचते हैं कि यदि जेब न होती तो हम क्या गरम करके अपना काम निकलवाते! जिस समाज में येन-केन प्रकारेण जेब भरना ही हर किसी को जेब देने लगा हो, उस समाज की बलिहारी है। जिनके पास कभी जेब रही ही नहीं, वे इस बात को नहीं समझ सकते। सच्चाई तो यही है कि जबसे जेब वजूद में आई है, ईमानदारी ने दम तोड़ दिया है। इसीलिए गाँधी बाबा के कपड़ों में जेब थी ही नहीं और उनके बाद वाले भाई लोगों के कपड़ों में है। जो भी माई का लाल इस ओर भाई लोगों का ध्यान दिलाता है, उसे जेल भेज दिया जाता है। चुनाव आपको करना है- जेब चाहिए या जेल!

■■■

डॉ. आर.वी. सिंह

आर.वी.सिंह/R.V. Singh
उप महाप्रबन्धक (हिन्दी)/ Dy. G.M. (Hindi)
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक/ Small Inds. Dev. Bank of India
प्रधान कार्यालय/Head Office
लखनऊ/Lucknow- 226 001

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - जेब रे जेब
रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य - जेब रे जेब
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/s72-c/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/08/blog-post_976.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/08/blog-post_976.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content