प्रमोद भार्गव का आलेख - सामंतों की भूमि का हो अधिग्रहण?

SHARE:

देश में भूमि अधिग्रहण का मुद्‌दा गरम है। राजनीति में किसी हद तक जन-सरोकारों से जुड़े मुद्‌दों के पैरोकार केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयरा...

देश में भूमि अधिग्रहण का मुद्‌दा गरम है। राजनीति में किसी हद तक जन-सरोकारों से जुड़े मुद्‌दों के पैरोकार केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ‘राष्‍ट्रीय भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास एवं पुनर्स्‍थापन विधेयक 2011' को केबीनेट से पारित कराकर लोकसभा में पेश भी कर चुके हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इस विधेयक का प्रारूप पूर्व में तैयार किए गए सभी विधेयकों की तुलना में किसान मजदूरों के ज्‍यादा हित में है। क्‍योंकि इसमें भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अंजाम देने के साथ विस्‍थापितों के पुनर्वास व अजीविका की भी चिंता परिलक्षित हो रही है। इसके बावजूद प्रस्‍तावित विधेयक की सीमा कृषि भूमि के अधिग्रहण तक ही सीमित है। नगरीय क्षेत्रों में विद्यायल, महाविद्यायल, अस्‍पताल और अन्‍य बुनियादी जरूरतों से जुड़ी सुविधाओं के लिए जमीन हासिल करना एक मुश्‍किल समस्‍या बनी हुई है। इस समस्‍या के चलते अनेक नगरों में बुनियादी संरचना से जुड़े विकास संबंधी कार्य अर्से से लंबित हैं। ऐसा नहीं है कि देश के सभी नगरों में भूमि का अभाव है। अतीत का हिस्‍सा बन चुके सामंतों जमींदारों और नवधनाढ्‌यों की ऐसी हजारों एकड़ भूमि नगर पालिकाओं और नगर निगमों की परिधि में है, जिसे अधिग्रहण किए जाने के प्रावधान इस विधेयक में शामिल कर दिए जाएं तो बड़ी संख्‍या में बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति बिना किसी विस्‍थापन व पुनर्वास समस्‍या का सामना किए हो सकती है। लेकिन इस मंतव्‍य की साध के लिए दृढ़ राजनीतिक व प्रशासनिक इच्‍छा शक्‍ति की दरकार है।

हमारे कानूनविदों और समाजशास्‍त्रियों के पास शास्‍त्र सम्‍मत ज्ञान तो है, लेकिन समाज से संपर्क और व्‍यवस्‍था से दूरी होने के कारण उनकी निगाह वहां नहीं जाती, जहां भूमि अधिग्रहण आसानी से किया जा सकता है। देश की आजादी के वक्‍त 562 रियासतों का विलय विभिन्‍न प्रदेशों में किया गया था। इन राजे-रजवाड़ों का राज्‍यों में विलय सुविधाजनक हो इस नजरिए से इनके सुचारू जीवन यापन के लिए इन्‍हें तमाम महल और अराजियां (भूमियां) इनके हित में छोड़ दी गईं थीं। इनके गुजारे के लिए बतौर आर्थिक मद्‌द प्रीविपर्स का भी प्रावधान था, जो लाखों में था। इसे इंदिरा गांधी ने राष्‍ट्रीय मुद्रा की फिजूलखर्ची मानते हुए 1969 में एक झटके में खत्‍म कर दिया था। प्रीविपर्स, आजीविका के लिए एक तरह की पेंशन थी। इसका निर्धारण रियासतों की सालाना आमदनी के आधार पर किया गया था। बड़े राजा-महाराजाओं को करोड़ों रूपए का भुगतान भारत सरकार को करना पड़ता था। जबकि ये पूर्व सामंत आय के अनेक स्‍त्रोतों से जुड़े हुए थे। संपत्ति से किराया इन्‍हें मिल ही रहा था, जो कृषि भूमि इनके हित में छोड़ी गई थी, वह भी इनकी आय का बड़ा स्‍त्रोत तब भी थी और आज भी है। बड़े राजघरानें तो मंहगे होटल, शिपिंग कार्पोरेशन, बैंकिंग, औद्योगिक घरानों में हिस्‍सेदारी और शेयर बाजार से भी जुड़े हुए थे। कई प्राचीन व प्रमुख मंदिर भी इनकी आय का स्‍त्रोत थे, जो आज भी बदस्‍तूर हैं। राजघरानों के संग्रहालय भी सामंतों के वंशजों की आय का जरिया हैं। अपनी विरासत के इस विशाल साम्राज्‍य (संपत्ति) को बड़ी कुटिल चतुराई से इन लोगों ने लोक कल्‍याणकारी न्‍यास बनाकर सुरक्षित किया हुआ है। इनके लोक कल्‍याण मानव कल्‍याण के लिए कितने लाभकारी है यह इनके यहां पुश्‍तैनी रूप से काम कर रहे लोगों से रूबरू होने पर पता चलता है। इनकी हैसियत बंधुआ मजदूरों से भी बद्‌तर है। ज्‍यादातर कामगारों को एक हजार रूपए प्रतिमाह से ज्‍यादा वेतन नहीं मिलता। अन्‍य किसी प्रकार की आर्थिक सुरक्षा से ये महरूम हैं। लोक कल्‍याण की यह हकीकत जाहिर करती है कि न्‍यासों पर स्‍वामित्‍व और लाभ व्‍यक्‍तिगत बना हुआ हैं।

आपातकाल तक ज्‍यादातर पूर्व राजा-महाराजा और इनके बारिश अपने दड़वों में किसी तरह दिन पूरे गिनने में लगे थे। सत्ता मद से वंचित हो जाने का अहंकार भी इन्‍हें आहत किए हुए था। लिहाजा जनता से इनकी दूरी बनी हुई थी, जो प्रजातांत्रिक मूल्‍यों की दृष्‍टि से एक बेहतर स्‍थिति थी। किंतु आपातकाल के बरक्‍श इंदिरा गांधी के पतन के बाद फिर केंद्र व राज्‍यों में आई गैर कांग्रेसी सरकारों के वजूद में आने के बाद जिस तरह से नेतृत्‍व की अक्षमता और परस्‍पर लंगड़ी लगाने के जो हालात निर्मित हुए उससे ये सरकारें जल्‍दी औंधे मुंह गिर गईं और जनता का भी इन से मोहभंग हो गया।

मोहभंग के इस वातावरण को इंदिरा गांधी और उनके नटखट बेटे संजय गांधी ने बड़ी कुटिल चतुराई से भुनाने की राजनीतिक बिसात बिछा दी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को इंदिरा कांग्रेस के नए चेहरे में बदलकर एक नई ऊर्जा का संचार व नए राजनीतिक नेतृत्‍व का सूत्रपात किया। जिसकी कमान संजय गांधी के हाथ में थी। संजय ने अपने वंश को सत्ता में पुनस्‍र्थापित करने की दृष्‍टि से उन राजवंशों के नुमाइंदों को भी दड़वों से बाहर निकालकर कांगे्रस में शामिल कर राजनीतिक पुनर्वास दे दिया जो महत्‍वहीन होकर हाशिए का हिस्‍सा भी नहीं रह गए थे। इनमें से अनेक तो पैतृक धरोहरों की अमूल्‍य संपत्तियों को बेचकर किसी तरह से अपना गुजारा करने में लगे थे। इन लोगों को सांसद और विधायकोंं के टिकिट मिले। इंदिरा-लहर के चलते ये विजयी भी हुए। यहां से कांग्रेस में एक ऐसा बुनियादी परिवर्तन आया, जिसके चलते कांग्रेस अपनी मूल विचारधारा और गरीब के हित साधक चरित्र से दूर होती चली गई। इस पुनर्वास के बाद सत्ता की ताकत फिर से हासिल करके इन सामंतों ने एक और चालाकी बरती, रियासतों के विलय के बाद जो भूमियां व भवन सरकारी मिल्‍कियत हो गए थे उनकों हड़पने का सिलसिला शुरू कर दिया। राजस्‍व दफ्‍तरों की फाइलों से वे दस्‍तावेज गायब कराना शुरू कर दिया जो सामंतों की भूमि के हुए बंटबारे को रेखांकित करते थे। भू-प्रबंधन और भू-दस्‍तावेज आज भी हमारे यहां धूल-धूसरित अक्‍श व नक्‍शों, हस्‍तलिखित भूमि अभिलेखों और खसरा-खतौनी से संचालित होता है। करोड़ों-अरबों रूपए कंप्‍यूटरीकरण में खर्च करने के बावजूद पटवारी का कोई ठोस विकल्‍प सामने नहीं आ पाया है। राजनीतिक प्रभाव के चलते इन सामंती प्रतिनिधियों नेे हजारों एकड़ भूमि और सैंकड़ों भवन दस्‍तावेजों में हेराफेरी कराकर फिर से हड़प लिए कुछ जगह तो आजादी के बाद से अब तक जिन भवनों में कलेक्‍टर व कमिश्‍नर कार्यालय लगते चले आ रहे थे, उन पर इन सामंतों की मिल्‍कियत की शुरूआत भी हो गई है।

भूमण्‍डलीकरण का दौर तो थोड़ा बाद में आया इसके पहले ही सत्ता में आए इन सामंतों की पुनस्‍र्थापना ने भारतीय राज्‍य के लोकतांत्रिक व लोककल्‍याणकारी चरित्र के चेहरे को सामंती मूल्‍यों की कुरूरता में बदलने का सिलसिला शुरू कर दिया था। रही-सही कोर-कसर नवउदारवाद के अमेरिकी अवतार ने पूरी कर दी। फलस्‍वरूप आधुनिक लोककल्‍याणकारी राज्‍य के वर्तमान संकटों में जो भूमिअधिग्रहण जैसी बड़ी समस्‍याएं हैं उसकी पृष्‍ठभूमि में पूंजीवाद तो है ही, जनप्रतिनिधियों की मानसिकता में सामंती चरित्र का प्रभाव भी है। लिहाजा सामाजिक संरचना के चरित्र को समावेशी बनाए रखने की बजाए पिछले ढाई-तीन दशक के भीतर नीतियों को ऐसा रूप दिया जाता रहा है, जिसके तईं कथित विकास के आर्दश व मापदण्‍ड एक रेखीय होते चले जाएं। इस विकास पर जरा भी आंच आती है तो सकल घरेलू उत्‍पाद और औद्योगिक विकास दर प्रभावित होने का रोना प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी रोने लग जाते हैं। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की गति धीमी पड़ जाने का भय दिखाया जाता है। अण्‍णा हजारे के जन हितैषी आंदोलन को पूंजी निवेश के खतरों से जोड़कर देखा जाता है। उद्योगपतियों का देश छोड़ कर चले जाने का काल्‍पनिक हल्‍ला मचाया जाता है। कुशल तकनीकियों का रोजगार छिन जाने की चिंता जताई जाती है। और इन सब कृत्रिम आपदाओं के बहाने उद्योगपतियों को छह लाख करोड़ की छूट देकर उनके आर्थिक हितों को बाला-बाला संरक्षण दिया जाता है। जबकि जिस पूंजीवाद के रास्‍ते उदारीकरण भारत आया, उसकी जरूरी शर्त है कि प्रतिस्‍पर्धा के नियम सरल व पारदर्शी हों और हर संभावनाशील, महत्‍वाकांक्षी व नवोदित उद्यमी को उपनी कौशल-दक्षता दिखाने का समान अवसर मिले। परंतु हुआ इसके विपरीत उद्योग लगाने के जटिल कानून और भारी-भरकम पूंजी निवेश के चलते तकनीकी कुशलता के धनी-मानी युवा देशी-विदेशी कंपनियों के मोटी तनखा पाने वाले बंधुआ बनकर रह गए।

इसीलिए भूमि अधिग्रहण कानून का जो नया प्रारूप सामने आया है उसका उद्योग जगत तो विरोध कर ही रहा है, सामंती और व्‍यापारिक सोच के अनेक मंत्री व सांसदों ने भी असहमति जताई है। क्‍योंकि मयौदा किसान व खेती के प्रति संवेदनशील है। सिंचित कृषि भूमि के अधिग्रहण पर पूरी तरह रोक का प्रस्‍ताव है। इस स्‍थिति से सवाल उठता है कि हमारे नेता समाज के किस तबके के पैरोकार हैं और किनके हितों के संरक्षण में लगे हुए हैं। यही कारण है कि गरीब व वंचित की आजीविका के बहाने अब तक दलित, आदिवासी व हरिजनों को जितने भी पट्‌टे दिए गए हैं, उनमें से ज्‍यादातर के हिस्‍से बंजर व विवादित भूमि आई है। ये हालात भूमि सुधार योजनाओं की हकीकत से भी रूबरू कराते हैं। बहरहाल यदि केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार कृषि व किसान के प्रति थोड़ी भी संजीदा है तो उसे भूमि अधिग्रहण के इस प्रारूप में पूर्व सामंतों व जमींदारों की व्‍यर्थ पड़ी भूमि को अधिग्रहण किए जाने का प्रस्‍ताव भी जोड़ना चाहिए। किसान की भूमि अधिग्रहण से पहले पूर्व सामंतों, पूंजीपतियों और राजनीतिक के भूमि व भवन उद्योग लगाने व स्‍कूल-कॉलेज व अस्‍पताल खोलने के लिए उपलब्‍ध हैं तो पहले इनका अधिग्रहण किया जाए ? इससे न पूनर्वास की समस्‍या पैदा होगी और न ही किसी की आजीविका छिनेगी ? ऐसी स्‍थिति पैदा होती है तो इससे यह भी पता चलेगा कि इन सामंतों के चेहरे कितने लोक कल्‍याणकारी हैं और कितने सामंती ?

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी (म.प्र.)-473-551

pramod.bhargava15@gmail.com

लेखक प्रिंट और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार है ।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. विकास के नाम पर ज़मीनों पर कब्जा फिर बड़ी बड़ी इमारते खड़ी करना फिर लोन पर मकान देना फिर मासिक वसूली किराये से ज्यादा अदा करना फिर कभी किश्त जमा न कर सको तो गुंडों से पीटना फिर तनाव फिर झगडे आत्महत्या .............

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - सामंतों की भूमि का हो अधिग्रहण?
प्रमोद भार्गव का आलेख - सामंतों की भूमि का हो अधिग्रहण?
http://3.bp.blogspot.com/-QMESRHwh084/TWTFQpueIFI/AAAAAAAAAAM/Jofkk8w-0rg/s249/pramod+bhargava+new.jpg
http://3.bp.blogspot.com/-QMESRHwh084/TWTFQpueIFI/AAAAAAAAAAM/Jofkk8w-0rg/s72-c/pramod+bhargava+new.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/09/blog-post_285.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/09/blog-post_285.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content