भारत लोक में बसा है। विभिन्न भाषायें विभिन्न परम्परायें विभिन्न बोलियां और विभिन्न धर्मों में बसे भारत के रीति रिवाज भी क्षेत्रीयता के मा...
भारत लोक में बसा है। विभिन्न भाषायें विभिन्न परम्परायें विभिन्न बोलियां और विभिन्न धर्मों में बसे भारत के रीति रिवाज भी क्षेत्रीयता के मान से अलग अलग हैं। मध्यप्रदेश का उत्त्तरीय भाग जिसमें संपूर्ण सागर संभाग रायसेन विदिशा गुना नरसिंहपुर होशंगाबाद छिंदवाड़ा सिवनी बालाघाट क्षेत्र भी शामिल हैं और उत्तर प्रदेश का संपूर्ण झांसी संभाग उसके जिले मिलाकर बना क्षेत्र बुंदेलखंड कहलाता है। यहां की परंपरायें लोक रिवाज अपनी अनोखी और अलग पहचान बनाये हैं।
उत्तर में यमुना से नरमदा और पूर्व में टमस से चंबल तक का भूभाग अपनी पुरातन संस्कृति एवं संस्कारों को संजोये है। लाल कवि की पंक्तियां कि इत यमुना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस क्षत्रसाल से लरन को रहो न काहू होंस, क्षत्रसाल के बुंदेलखंड की सोंधी महक का अहसास करा जातीं हैं। आल्हा ऊदल लोक कवि ईसुरी और लोक पूजित हरदौल की गाथाओं में रचे बसे बुंदेलखंड का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। बूंदेली लोक गीतों की आज भी सारे देश में गूंज मची रहती है।
बुंदेली विवाहों की भी अपनी अदभुत एवं अनोखी परम्परा है। लोकगीतों की भरमार जिन्हें गारीं कहा जाता है,ढोलक के साथ संगत फिर नृत्य हल्दी तेल देवर भावज नंद भौजाई की ठिठोली आनंद को दुगना कर देती है। इस मनोरंजन के साथ साथ ही एक से एक लज़ीज़ पकवान बुंदेली समारोहों में जान डाल देते हैं। दाल भात कड़ी बरा[दरया] बिजोड़े रायता पापड़ और उड़ेला गया कई चम्मच शुद्ध घी,फिर ऊपर से परोसने वालों के प्रेम पूर्ण आग्रह,इसका आनंद देखते ही बनता है। विवाह के बाद लड़की पक्ष की ओर से आनेवाला पकवान देखने लायक होता है। सजी हुई सुंदर टोकनियों में परंपरागत तरीके से बनी हुईं वस्तुयें बड़े परिश्रम से घर की ही महिलाओं द्वारा ही बनाईं जाती हैं।
इन पकवानों की शोभा और छटा निराली ही होती है। लड़की पक्ष के लोग विवाह के बाद पठोनी के रूप में यह सामग्री भेजते हैं।
इनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है।
पिराकें.....यह बड़ी बड़ी गुझियां होती हैं,बेलबूटों त्रिभुजों चतुरभुजों बेलबूटों से मड़ी और रंग बिरंगी। यहा सादारण गुझियों से तीन से चार गुनी तक बड़ी होती हैं। ऊपरी हिस्से को बड़े करीने से सजाया जाता है। लौंग इलायची बादाम के टुकड़ों से सजी ये पिराकें मन को मोह लेतीं हैं लगता है कि देखते ही रहें। इनके भीतर खोवे का कसार मसाला काजू किशमिश चिरोंजी मिला हुआ भरा रहता है। खाने बहुत ही लजीज मीठा और स्वादिष्ट। ग्रामीण क्षेत्रों में तो इनका आकार और भी बड़ा होता है। महिलाओं को निश्चित ही बनाने बहुत परिश्रम करना पड़ता है। लोगों को डिज़ाइन से संवारना सजाना बेल बूटों को रंगना कठिन तो होता ही है विवाह के अवसर रात भर जागते हुये समय को निकालना भी एक कला है।
आस..... यह पकवान गोलाकार चक्र के आकार में होता है। ऐसा लगता है जैसे की दो पिराकें मिलाकर रख दी हों। इसमें भी रंगों की कलाकारी होती है। बादाम लोंग काजू के टुकड़ों के साथ ही एक रुपये के सिक्के भी बीचों बीच चिपकाये जाते हैं। इसमें भी खोया मसाला मिलाकर भरा रहता है। देखने में यह बहुत ही सुंदर और मन भावन होता है। कई तरह के डिज़ाइन बनाकर उनमें विभिन्न रंग भरे जाते हैं
इसकी सजावट देखते ही बनती है। बड़े जतन से बनाये गये इन पकवानों को बनाने में कई कई घंटे लग जाते हैं। गुठे हुये किनारों से पकवानों का निखार कई गुना बढ़ जाता है। गुना...........यह बेसन से बना पकवान है। यह गोलाई लिये हुये मोटे कंगन के आकार का होता है । मुटाई एक से डेढ़ इंच तक और गोलाई
तीन चार इंच तक होती है। इसे गुठाई करके बहुत सुंदर बनाया जाता है। लड़के पक्ष के लोग इसमें से नव बधु का मुंह देखते हैं।
फूल.........यह चौकोर आकार का होता है । यह खाना परोसने के काम आनेवाले चौफूले के समान होता है इसे भी गोंठकर अति सुंदर आकार का बनाया जाता है। यह पकवान भी बेसन से बनाया जाता है।
पान............यह तिकोने आकार का पकवान है जो की पान के आकार का होने के कारण पान कहलाता है। इसके किनारों पर बहुत ही सुंदर गुठाई की जाती है। आकार बड़े छोटे कई प्रकार के बन सकते हैं। आजकल शहरों चलन से बाहर होते जाने से प्रतीक के तौर पर अब मात्र औपचारिकता के चलते सब पकवान बहुत लघु रूप लेते जा रहे हं। वैसे गांव में अभी बड़े बड़े आकार में ये सामान अभी भी बन रहा है।
पुआ.......... आटे के मीठे पुए शादी का खास पकवान है। गुड़ और शक्कर दोनों ही प्रकार के पुए बनाते हैं। किनारे सुंदर गुठाई से पुए में निखार आ जाता है। बीच बीच में कई डिज़ायनें एवं सिक्के चिपकाने का भी रिवाज है। ये सभी पकवान घी अथवा तेल में सेंके जाते हैं। पहले समय में शुद्ध घी में बनते थे,किंतु अब शुद्ध घी आम लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है,इससे डालडा अथवा तेल का ही सहारा रह गया है।
पहले समय में इन पकवानों को बड़े प्रेम से खाया जाता था। ये मीठे पकवान बड़े स्वादिष्ट होते हैं। विवाह के बाद ये पकवान टुकड़े करके मोहल्ले पड़ोस में बांटे जाते थे। यह बायना कहलाता था।
विवाह के बाद लोगों को बायने का इंतजार रहता था, चर्चा रहती थी कि फलाने के यहां शादी हो गई और बायना नहीं आया। किंतु आजकल इनका खाने में उपयोग कम ही हो गया है। कहीं कहीं तो ये गायों और कुत्तों के खिलाने लायक ही रह जाता है। कारण स्पष्ट है कि पहले ये सामग्री शुद्ध घी में बनती थी लोग परिश्रमी थे शारीरिक मेहनत करते थे इससे सब कुछ हज़म कर लेते थे, किंतु आजकल ये तेल अथवा डालडा में बनते हैं और आधुनिकता की दौड़ में अव्वल रहने की होड़ में जीने वाले पिज्जा बर्गर इडली डोसा खाने वाले लोग ये चीजें पसंद ही नहीं करते और पुराने ढर्रे का सामान मानकर घृणा भी करने लगे हैं। बड़े बड़े आधा आधा एक एक किलो के बेसन अथवा बूंदी के लड्डू अब कौन खाता है। बासा हो जाने के कारण ये पकवान बदबू भी करने लगते हैं इससे गाय बैलों के ही लायक रह जाते हैं।
व्यवहारिक तौर भी अब यह पकवान बेकार ही साबित हो रहे हैं। बहुत सारा पैसा और समय बर्बाद कर इनके बनाने का केवल परम्परा के नाम पर उपयोग औचित्यहीन ही लगता है। खाखरे मैदे की पुड़ी पुए एकाध दिन तक तो ठीक रहते हैं पर इसके बाद खाने लायक नहीं रह जाते। विवाह के बाद तुरत उपयोग कर लेने पर तो ठीक है किंतु विवाह की व्यस्तताओं के चलते और नई दुल्हन की आव भगत में ये पकवान वैसे ही पड़े रहते हैं और जब इनकी याद आती है तो बहुत देर हो चुकी होती है। यह तो ठीक है कि परम्परा के तौर पर चुलिया टिपारे सुहाग और शुभ के संकेत हैं किंतु व्यवहारिक तौर् पर जब इनका उपयोग न हो तो इनके बनाने का क्या औचित्य है?
बहुत बडि़या है
जवाब देंहटाएंसभी प्रतिक्रिया देने वालों को धन्यवाद
जवाब देंहटाएं्लोक परम्पराओं का आज तेजी से लोप हो रहा है,फ़ैशन में मते तथाकथित पढे-लिखे लोग उसे हिकारत भरी नजरों से देखते हैं और आंख बंद कर पश्चिमी खाल ओढे इतरा रहे हैं.आपको साशुवाद कि आपने उसे शब्दों का जामा पहनाकर प्रकाश में लाया.बधाइयां-शुभकामनाएं अच्छी रचना के लिए
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