‘इक सफ़र’ जितेन्द्र ‘जौहर’ का...

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‘इक सफ़र’ जितेन्द्र ‘जौहर’ का...  (समीक्षा:  त्रैमा. ‘सरस्वती-सुमन’/मुक्तक विशेषांक, अक्तू.-दिस.-११) देहरादून से प्रकाशित त्रैमा. ‘सरस्...


‘इक सफ़र’ जितेन्द्र ‘जौहर’ का... 
(समीक्षा:  त्रैमा. ‘सरस्वती-सुमन’/मुक्तक विशेषांक, अक्तू.-दिस.-११)
देहरादून से प्रकाशित त्रैमा. ‘सरस्वती-सुमन’ का ‘मुक्तक-विशेषांक’ (अक्‍टू.-दिस.-11) मेरे हाथों में है- आठ देश, नौ भाषाएँ, ५४ औज़ान और लगभग तीन सौ रचनाकारों के मुक्तक-रुबाइयाँ-क़ता... यह है- अतिथि संपादक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी की एक वर्ष की कड़ी मेहनत का श्रीफल...! इस विशेषांक को ‘जौहर’ जी ने तर्कपूर्ण ढंग से ‘मुरुक़ विशेषांक’ कहकर एक नया एवं सटीक शब्द गढ़ा है- ‘मुरुक़’ (यानी ‘मु+रु+क़’), जिसे प्रधान संपादक डॉ. आनन्दसुमन सिंह जी ने भी ‘मेरी बात’ में रेखांकित किया है।

आज जब मैं खुद भी इस कार्य को लेकर बैठी हूँ, तो समझ सकती हूँ कि यह अतिथि-संपादन... वो भी ‘विशेषांक’ का कार्य... कितना  मुश्किल है... ख़ासकर ‘मुक्तक विशेषांक’ तो और भी क्योंकि इसमें मात्राओं, वज़्न, लय, आदि का भी ध्यान रखना पड़ता है.... तिस पर भी जितेन्द्र जी का यह लिखना कि- ‘अभी-अभी लौटा हूँ, 'मुरुक-प्रदेश'  की एक  ‘रोचक’ यात्रा से...’ उनकी क़ाबलियत और विद्वता को दर्शाता है क्योंकि इस यात्रा को 'रोचक' तो वही लिख सकता है, जो खुद इसमें पारंगत हो, निपुण हो... और यह सत्य भी है। इस विशेषांक में जितेन्द्र जी ने न केवल विभिन्न साहित्यकारों, रुबाईकारों और स्वयं मुक्तक, रुबाई और क़ता की विस्तृत जानकारियाँ दीं, बल्कि 'मुरुक-संग्रहों' की एक शोधपूर्ण सूची को सामने रखा जो कि निश्‍चित रूप से विद्वानों, जिज्ञासुओं और शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी।

जितेन्द्र जी को मैं इस कार्य के लिए सलाम करती हूँ क्योंकि आसान नहीं था उनका ये ‘सफ़र’... वो भी इतनी लम्बी व अलग-अलग प्रयोगवादी मुक्तकों की यात्रा... सिर्फ़ यात्रा ही नहीं, बल्कि वे यात्रा के साथ-साथ उसका भूगोल, इतिहास और व्याकरण भी बताते गये जिसके लिए जितेन्द्र जी मेरी बधाई के वास्तविक हक़दार हैं... यह एक बेजोड़/अभूतपूर्व विशेषांक है... संभवत: भारत में अपनी तरह का यह पहला विशेषांक है, जिसमें इतने प्रयोगवादी मुरुक़ (मुक्तक-रुबाई-कता) एक साथ प्रकाशित हुए हैं- हाइकु रुबाइयाँ, मुहावरेदार, सन्‌अते‍-मुसल्लस , ज़ंजी, ज़ुल-सह्‌-काफ़्तैन, फ़ाईलुन, मुर्सरा, एकाक्षरांतर रुबाइयाँ आदि। इसके अलावा इसमें संस्कृत, उर्दू, भोजपुरी, अवधि, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, पंजाबी, नेपाली मुक्तकों को भी बानगी के तौर पर पेश किया गया है। ...और जहाँ तक मुक्तकों का प्रश्‍न है, तो कहना पड़ेगा- ‘माशाल्लाह! चुन-चुन कर रखे हैं जौहर जी ने, जो कि पाठको व मंच-संचालकों के लिए एक अनुपम भेंट साबित होंगे। १८० पृ‍ष्‍ठ के इस ‘मुरुक़ विशेषांक’ में न सिर्फ़ भारत के, बल्कि उन्होंने आठ अन्य देशों के रचनाकारों को भी इसमें शामिल कर इसे अन्तर्राष्‍ट्रीय स्वरूप प्रदान करते हुए साहित्य-जगत को एक अज़ीम तोहफ़ा दिया है। स्वयं अतिथि-संपादक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी के मुक्तक/क़ता का एक उदाहरण देखें-

फ़कत ये फूस वाला आशियाना ही बहुत मुझको 
बदन पर एक कपड़ा ये पुराना ही बहुत मुझको 
मुबारक हो तुम्हें झूमर लगी ये चाँदनी ‘जौहर’
दरख़्तों का क़ुदरती शामियाना ही बहुत मुझको।


इसके अतिरिक्त ‘अमर-काव्य’ के अंतर्गत अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, दुष्यंत कुमार, शमशेर बहादुर सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान, उमर ख़य्याम, ‘जोश’ मलीहाबादी, साहिर लुधियानवी, अकबर इलाहाबादी आदि को पढ़ना अत्यन्त सुखकर लगा। पत्र-पत्रिकाओं में मुक्तक विधा पर किये जाने वाले कार्यों में ‘हरिऔध’ जी का नाम उपेक्षा का शिकार रहा है। इस बारे में जौहर जी ने अपने अतिथि संपादकीय ‘सफ़र से लौटकर...’ में लिखा हैं कि- ‘मुरुक़ पर किये जा रहे कार्यों में उनके नाम तक का उल्लेख न होना, किसी दुराग्रह अथवा अज्ञान का प्रतीक है...सहधर्मियों की इस भूल को न दोहराते हुए, इस विशेषांक में प्रथम प्रस्तुति के रूप में ‘हरिऔध’ जी का मुक्तक ‘अमरकाव्य’ के अन्तर्गत दिया गया है...’

इस विशेषांक में एक और सुखद आश्चर्य देखने को मिला... जितेन्द्र जी और उनकी धर्मपत्‍नी रीना जी के बनाये चित्र ...भावों के अनुरूप हर चित्र में उनकी कलाकृति को देखना अलग ही आनंद देता है...!

पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंदसुमन जी हार्दिक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने सुपरिचित कवि/समालोचक जितेन्द्र ‘जौहर’ जी को यह दायित्व देकर हम पर इनायत की...जिससे यह ख़ूबसूरत दस्तावेजी विशेषांक एक विशुद्ध साहित्यिक धरोहर के रूप में सामने आया है। निश्‍चित रूप से यह अंक उन शोधार्थियों एवं विश्वविद्यालयों के लिए भी संग्रहणीय है, जो ‘मुरुक’ पर शोध करना चाहते हैं...!

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समीक्षिका- हरकीरत 'हीर'
१८,ईस्ट लेन, सुन्दरपुर 

हॉउस न -५, गुवाहाटी-५

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. srsvti sumn ke muktk visheshank ki aap dwara ki gai smiksha ptrika ke antr bahy dono vaishishthon ko ujagr krti hai yh aap ki sokshm aalochnatmk drishti ki visheshta hai sadhuvad

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  2. धन्यवाद... हरकीरत ‘हीर’ जी...आपकी सद्‌भावना के लिए!

    एवं

    आभार... रवि रतलामी जी...आपकी सदाशयता के लिए!

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  3. शुक्रिया रतलामी जी ......
    आज ही पता चला यह समीक्षा यहाँ छपी है .....
    यह अंक सचमुच अमूल्य साहित्यिक धरोहर है ..
    जितेंदर जी की मेहनत हर ओर प्रशंसा बटोर रही है ....

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  4. bahut sahi, satik kaa harkirat ji ne . ukt visheshank darshata hai lagatar mehnat , anvarat prayason ka lamba silsila,.. lekhak ko badhaee

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  5. सरस्वती सुमन का बहुप्रतीक्षित मुक्तक विशेषांक प्राप्त हुआ, देखा, पढ़ा और इसे अपनी उम्मीदों से अधिक पाया. कुछ भी कहने से पहले मैं एक ड़िस्क्लोज़र देना चाहता हूँ कि मेरा इस पत्रिका से या संपादक से किसी प्रकार का कोई आर्थिक हित नहीं जुड़ा है. ये कहना उचित ही होगा कि यदि कोई भी पुस्तक एक आम व्यक्ति को पसन्द हो तो उसे खास लोगों की चहेती बनने में कोई समय नहीं लगता. मैं कोई पेशेवर रिव्यूवर अथवा टीकाकार तो नहीं हूँ परन्तु इस पत्रिका की साज-सज्जा एवं रचनाओं की गुणवत्ता देख कर अनायास ही मुँह से निकला ‘आफरीन’. इस पत्रिका को जो ‘मुरूक’ की संज्ञा दी गई है वह सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होती है. इस प्रकार के संग्रह को धन एवं असीमित साधनों से भी प्रकाशित करना शायद संभव नहीं हो सकता जब तक संपादक स्वयं एक एक मुक्तक रुबाई या कत्आ का सूक्ष्म विश्लेषण न कर ले. ज़ाहिर है यह कार्य जनाब जितेन्द्र जौहर साहेब के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति शायद ही कर पाता. इस अंक में अत्यंत प्रतीष्ठित एवं उभरते रचनाकारों की बेहतरीन कृतियों को शामिल किया गया है. अतिथि सम्पादकीय बहुत दिलचस्प लगा. मेरे नज़रिए में इस संग्रह का संपादन जौहर साहेब से बेहतर शायद कोई कर भी नहीं पाता क्योंकि उनकी श्रेणी का कोई तथ्यपरक समीक्षक, आलोचक एवं संवेदनशील चिन्तक कम से कम मेरे ज़ेहन में कोई दूसरा नज़र नहीं आता. जौहर साहेब ने यह जिम्मेवारी अत्यंत मनोयोग से निभाई है. वैसे भी साहित्य सृजन जैसा लोक भलाई का कार्य कोई भी व्यक्ति रोज़ी-रोटी के लिए नही करता. अगर किसी ने कभी ऐसा करने की कोशिश भी की तो उसका सफल होना लगभग असंभव ही है. अगर इस संग्रह को एक एतिहासिक दस्तावेज होने के साथ साथ ‘मुरुक’ विधाओं का प्रेरणा स्रोत कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी. भाषा की कलात्मक अभिव्यक्ति जो मुक्तक एवं रुबाइयों में देखने को मिलती है वह लाजवाब है. जिस प्रकार काफियों में विविध परिवर्तन लाकर अथवा हाईकू आधारित रुबाइयाँ दी गई हैं उसी प्रकार हो सकता है एक दिन रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को एक नए रूप में प्रस्तुत करने का यत्न करे. इस दृष्टि से यह अंक एक शोध-प्रबंध का भी पूरक बन सकता है. परिसंवाद के अंतर्गत औजाने-रुबाई, प्रोफेसराना रुबाइयाँ- एक संस्मरण, मुक्तक एवं रुबाई आलेख अति सुन्दर लगे. मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूँ कि इस ग्रन्थ से नए रचनाकारों को मुक्तक एवं रुबाइयाँ लिखने की प्रेरणा मिलेगी. कुल मिलकर “यह एक ऎसी पुस्तक है जो शायद कभी भी पुरानी नहीं पड़ेगी.” ऐसा मेरा विश्वास है

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  6. बेनामी6:51 pm

    वाकई... ऐसा ऐतिहासिक विशेषांक शायद ही कभी निकला हो, सचमुच मैं आदरणीय जौहर साहब द्वारा इस ‘महाविशेषांक’ में किये गये ठोस परिश्रम को देखकर दंग रह गया था। मैंने अब तक हिन्दी में किसी भी रचना-क्षेत्र में इससे बड़ा विशेषांक कभी नहीं देखा। मेरे पास जिसने भी इसे देखा घर ले जाना चाहा...आख़िरकार मुझे तंग आकर छुपाकर रखना पड़ा। मेरे कई मित्रों ने तो इसकी जीरोक्स कापी करवा ली थी।

    -नवज्योति किरन

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: ‘इक सफ़र’ जितेन्द्र ‘जौहर’ का...
‘इक सफ़र’ जितेन्द्र ‘जौहर’ का...
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