नन्दलाल भारती का आलेख : साहित्य और भारतीय समाज

SHARE:

भा रतीय समाज में साहित्य का विशेष महत्व है। सर्वविदित है कि भारतीय समाज में जन्म के समय से ही नवजात का स्वागत सोहरगीत गाकर किया जाता है । ...

नंदलाल भारती नन्दलाल भारती

भारतीय समाज में साहित्य का विशेष महत्व है। सर्वविदित है कि भारतीय समाज में जन्म के समय से ही नवजात का स्वागत सोहरगीत गाकर किया जाता है । यह कार्यक्रम निरन्तर छः दिन तक चलता है। जब बच्चा तनिक समझने-बुझने की स्थिति में आता है,तब मां, दादीमां, नानीमां द्वारा लोरीगीत गाकर हंसाया,दूध-पिलाया, खिलाया, सुलाया और जगाया तक जाता है।इन लोरियों का ऐसा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है कि रोता हुआ बच्चा चुप हो जाता है,हंसने लगता है,खेलने लगता है।यहीं से ाुरू हो जाती है भारतीय समाज की साहित्यिक पाठशाला। इसी लोरीगीत के प्रारम्भिक साहित्यिक ज्ञान से वह अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने लगता है,जो आजीवन भी चलता रहता है। इसी ज्ञान के साथ एक दिन वही नवजात से बड़ा, साधारण से विशिष्ठ से महान तक बन जाता है। भारतीय समाज में साहित्य का दर्शन जन्म से लेकर हर खुशी के मौके-तीज त्योहारों ही नहीं मृत्यु तक के दुखद गीतों में हो जाता है। भारतीय समाज को साहित्यिक ज्ञान से अनेक लाभ हुए है। साहित्य भारतीय सामाजिक जीवन को संस्कारित करता आ रहा है। साहित्यिक ज्ञान पुस्तकें पढ़ने कहने सुनने से तो प्राप्त होता है परन्तु इनसे अधिक लाभ अनुभव से प्राप्त होता है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ज्ञान राशि के संचित कोश का नाम साहित्य है, अर्थात साहित्य और मानव जीवन खासकर भारतीय परिवेश में साहित्य और जीवन का गहरा सम्बन्ध है। साहित्य का आधार जीवन है। साहित्यकार समाज अथवा युग की उपेक्षा नहीं कर सकता क्योंकि सच्चे साहित्यकार की दृष्टि में साहित्य ही अपने समाज का स्वर और संगीत होता है। देश की आजादी की लड़ाई के दौरान भारतीय समाज और साहित्य का साक्षात्कार दुनिया को हो चुका है। अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना पड़ा,इसमें भारतीय समाज और साहित्य की बहुत बड़ी भूमिका रही। साहित्य परिवर्तन के आह्वाहन के साथ मानवजाति को जोड़ता है। इसीलिये भारतीय समाज में साहित्य,समाज का प्रतिबिम्ब माना जाता है। साहित्य अतीत का दर्पण और भावी जीवन का निर्देशक भी है। सच्चा साहित्य कभी पुराना नहीं होता, ऐसा साहित्य जीवन के शाश्वत मूल्यों को प्रतिष्ठित करता है। वाल्मीकि, कालीदास, रविदास, सूरदास, तुलसीदास एवं आधुनिक युग के कलमकारों की कृतियां आज के सूचनाक्रान्ति एवं व्यावसायीकरण के दौर मे भी आधुनिक समाज का दिशा निर्देशन करने में सक्षम है।

साहित्य के उद्देश्यों को लेकर प्राचीनकाल से भारतीय और पाश्चात्य काव्य-शास्त्री चर्चा करते रहे है। आज भी यह चर्चा अनवरत् जारी है,साहित्य का सामाजिक सरोकार भी होना चाहिये जो सामाजिक परिवर्तन का शंखनाद करें,सामाजिक बुराईयों के तिरस्कार-बहिष्कार का ऐलान करें,मानव से मानव को जोड़ने की बात करें और हाशिये के आदमी का पक्षधर भी हो। यह चिन्ता और चर्चा भारतीय समाज में आधुनिक साहित्य की उपज कहा जा सकता है जो भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन की दृष्टि से जरूरी भी है। भारतीय समाज में यह मान्यता है कि किये का फल इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में मिलता है । इस विश्वास का प्रभाव भारतीय समाज और साहित्य पर पड़ा है।

प्राचीन भारत में बौद्ध और जैन धर्म का जन्म स्थापित और स्वीकृत परम्पराओं और मान्यताओं के विरोध में हुआ है । अपनी अभिव्यति के लिये संस्कृत को छोड़कर प्राकृत भाषाओं को अपनाने की प्रवृत्ति भारतीय समाज में मिलती है,जिसे सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से भी देखा जा सकता है। इस विछोह को सामाजिक आन्दोलन का नाम दिया जा सकता है। इसके पूर्व सिद्धिनाथ साहित्य में भी इस आन्दोलन को मुखरित किया गया था। सिद्धों ने प्रचलित धार्मिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों और सामाजिक असमानता पर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भारतीय समाज में सबसे निम्न स्तर पर जीने वाली जातियों जिनका आदमी होने तक का सुख छिन लिया गया था के लिये भक्ति के साथ जीवन के अन्य क्षेत्रों में सम्मान और समानता की मांग करना सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक प्रगतिशील और अग्रगामी शंखनाद था जिसे साहित्य ने ही स्वर प्रदान किया था। वर्तमान में स्वधर्मी जातीय समानता अथवा बहुधर्मी सद्भावना आयेगी अथवा नहीं यह तो कयास का विाय हो सकता है परन्तु दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारतीय समाज में आ रहे परिवर्तन के कारणों को साहित्य ही मुखरित कर रहा है। दिशा दे रहा है,परिवर्तन के स्वर दूर-दूर तक पहुंचा रहा है । आने वाली पीढ़ियों को संस्कारित करने के प्रयास और स्वर की जीवन्तता बनाये रखने में भी अहम् भूमिका निभा रहा है। भारतीय समाज में मूल्य संस्कार के रूप में व्याप्त है। व्यक्ति की वर्तमान स्थिति की व्याख्या उसके पूर्व जन्म के के कर्मो का हवाला देकर की जाती है। ऐसी व्याख्या स्वार्थी सामाजिक शक्तियों का वर्चस्व कहा जा सकता है,जो जातीय असमानता को बढ़ावा है,यदि व्यक्ति इन विचारों पर विश्वास और आस्था रखता है तो यकीनन ऐसी आस्था से दूसरों के कटों के प्रति उदासीनता का वातावरण निर्मित होता है जिसकी इजाजत न तो सभ्य समाज देगा और नहीं सद्साहित्य क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है और साहित्यकार समय का पुत्र।

भारतीय समाज और साहित्य को लोक गीतों ने भी संवृद्ध किया है । इसका उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है। लोकशब्द का अनुवाद अंग्रेजी के फोक रूप में हुआ है। ऋग्वेद के अनुसार लोक शब्द विराट समाज की ओर संकेत है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार लोक शब्द का अर्थ जनपद या ग्राम्य नहीं है बल्कि नगरों या गांवों में फैली हुई समूची जनता है,जिसके व्यावहारिक ज्ञान का आधार पोथियां नहीं है। ये लोग नगर में परिष्कृत जीवन के अभ्यस्त होते हैं । परिष्कृत रूचि वाले लोगों की समूची विलासिता और सुकुमारता को जीवित रखने के लिये जो भी वस्तुयें आवश्यक होती है, उनको उत्पन्न करते हैं। देश में कई राजनैतिक परिवर्तन हुए है होते हैं पर लोकगीतों में बदलाव नहीं हुआ परन्तु राजनैतिक परिवर्तनों का मानवजीवन पर असर दिखाई देने लगता है। लोकगीतों की तटस्थता बनी रहती है। मनुष्य शिक्षित होकर अनेक रूप बदल लेता है परन्तु लोक संस्कृति की गति में विशेष परिवर्तन नहीं आता। इन लोक गीतों का कथ्य खाना-पीना,रहन-सहन,रीति-रिवाज,परम्परा,रूढ़ियां सामाजिक-पारिवारिक सम्बन्ध,नाते-रिश्ते मान-मनुहार,नोंक-झोंक आदि होता है। सच तो ये है कि लोकगीत भारतीय संस्कृत की पहरेदार हैं,भारतीय समाज और साहित्य को सम्पन्न एवं रूचिकर बनाती है। लोक गीत जन-मन का गीत है जो पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलता रहता है जिससे भारतीय समाज और साहित्य अधिक संवृद्ध हुआ है।

साहित्य,भारतीय समाज में मनुष्यता को पोषित करने की दृष्टि से देखा जाता है,रचा जाता है क्योंकि साहित्य का उद्देश्य,दुर्गति,हीनता,उपेक्षा, से उबरते हुए मानवीय एकता-समता ,सद्भावना और विश्वबन्धुत्व को बढ़ावा भी देना होता है। साहित्य के इसी उद्देश्य ने भारतीय समाज में व्याप्त संकीर्णताओं पर प्रहार किया है और आज का आदमी जाति-धर्म से उपर उठकर मानवीय समानता के पक्ष में खड़े होने लगे है। जाति-तोड़ो तक की ललकार सुनायी देने लगी है। यह ललकार साहित्यिक विचार मंथन की द्योतक है। आज का साहित्यकार भी मात्र स्वप्न एवं कल्पना भी जीना नहीं चाहता वह यथार्थवादी बनकर मानव-राष्ट्र के साथ विश्व को जोड़ने का इच्छुक है । वह भारतीय समाज को समानतावादी ऐनक से देखकर बुद्ध के सपनों को साकार करना चाहता है। भारतीय समाज और साहित्य को दुनिया के शिखर पर प्रतिष्ठित करना चाहता है। साहित्यकार सोचने लगे है कि मात्र साहित्य सृजन बड़ी बात नहीं है,समाज को सचेत करना भी दायित्व हैं जो साहित्य और भारतीय समाज के लिये परमावश्यक है। भारतीय समाज और साहित्य को लेकर देश के जनसमुदाय के अध्ययन का प्रयत्न किया गया है और हो भी रहे है परन्तु खेद के साथ कहा जा सकता है कि यह वोट नीति अथवा अच्छा मतदाता बनाने के उद्देश्य से हुए है अथवा हो रहे है परन्तु भारतीय समाज और साहित्यिक उत्थान की दृष्टि से अध्ययन होना अभी बाकी है। हमारा देश आज के इस विज्ञान के युग में जातिभेद की समस्या से घिरा पड़ा है, भारतीय समाज में 75 प्रतिशत से अधिक मनुष्य जातिवाद-भेदभाव के शिकार है, जिसके कारण उनके मन में कुण्ठा घर कर गयी है। जब तक यह कुण्ठा खत्म नहीं हो जाती तब तक देश की आत्मा सुखी नहीं हो सकता। इस काम को भारतीय समाज करने का संकल्प ले ले तो साहित्य में इतनी शक्ति है कि वह हर समस्या का समाधान कर सकता है परन्तु भारतीय समाज को ईमानदारी बरतना होगा, सामाजिक, राष्ट्रीय एकता एवं स्वधर्मी समानता के साथ बहुधर्मी सद्भावना को भी विकसित करना होगा । राष्ट्र की अमन, शान्ति एवं एकता के लिये राष्ट्र-धर्म तक को विकसित करना होगा,वर्तमान में यह भारतीय समाज और साहित्य के लिये जरूरी भी हो गया है।

यकीन के साथ यह कहा जा सकता है कि साहित्य की विषय वस्तु समाज है,जैसा समाज और उसका वातावरण होगा वैसा प्रभाव साहित्य पर भी पड़ेगा। साहित्यकार भी उसी समाज में रहते हुए समाज के सुख-दुख रीतिरिवाजों पर-अथवा आपबीती अनुभवों से उपजे विचार और कल्पनाशीलता को यथार्थ की तुला पर रखते हुए कलमबद्ध कर समाज के भले के लिये दर्पण दिखाने का काम करता है। सामाजिक परिस्थितियां साहित्यकार को प्रभावित करती है यह प्रभाव प्रेमचन्द ने कफन के घीसू और माधो के माध्यम से दिखाने का भरपूर प्रयास किया है। घीसू और माधो अनपढ़ थे परन्तु परलोक की मान्यता के सम्बन्ध में दोनों का दृष्टिकोण कितना समान है,घीसू कहता है कफन लगाने से क्या मिलता है है,आखिर जल ही जा है ? कुछ बहू के साथ न जाएगा । माधो कहता है दुनिया का दस्तूर है नहीं तो लोग बामनों को हजारों रूप्या क्यों देते। कौन देखता है परलोक में मिलता है या नहीं । प्रेमचन्द ने कफन के इन पात्रों के माध्यम से भारतीय समाज को कितना बड़ा संदेश दिया है। यह संदेश भारतीय समाज में सामाजिक-समानता मानवीय एकता के बढ़ावा के साथ अंधभक्ति एवं रूढ़िवादी कर्मकाण्डों से बचने-बचाने की सोच पैदा किया है।

साहित्य का समाज पर क्रान्तिकारी प्रभाव पड़ता है। साहित्यकार समाज का प्रतिनिधित्व करता है और समाज को विचार प्रदान करता है। समाज जब किसी बुराई की चपेट में आता है,साहित्यकार दूर करने का अथक प्रयास करता है। साहित्यकारों ने सदा ही समाज को राह दिखाने का काम किया है। साहित्य और समाज दोनों अलग-अलग मुद्दे होकर भी एक है। साहित्य समाज का सेवक है,दोनों का उत्थान -पतन भी होता है। समाज का पक्ष कमजोर होता है तो साहित्य में दिखने लगता है यदि साहित्य का पक्ष कमजोर होता है तो वह समाज में दिखने लगता है । वर्तमान में युवा पीढ़ी एवं समाज का साहित्य से दूरी का प्रभाव स्पष्ट नजर आने लगा है,साहित्य और साहित्यकार उपेक्षा के शिकार हो रहे है। समाज में नैतिक पतन और दूसरी कई बुराईयां घर करने लगी है परन्तु साहित्यकार अनभिज्ञ नहीं है वे अपने दायित्व पर खरे उतर रहे है जिसका परिणाम है रोज रोज आती नई कृतियां और साहित्यिक सभायें गोठियां ।साहित्य का उद्देश्य ही समाज का हित साधते हुए और उन्नति के मार्ग पर ले जाना होता है।

भारतीय समाज और साहित्य का गहरा सम्बन्ध हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक है। समाज शरीर है तो साहित्य आत्मा। साहित्य मानव मस्तिक से उत्पन्न होता है। साहित्य मनुष्य को मनुष्यता प्रदान करता है। मनुष्य न तो समाज से अलग हो सकता है और न साहित्य से। मनुष्य का पालन-पोषण,शिक्षा-दीक्षा तथा जीवन निर्वहन भी समाज में ही होता है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी बनकर अनेक अनुभव ग्रहण करता है, जब वह इन अनुभवों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है तो साहित्य का रूप बन जाता है। शब्दों की यही अभिव्यक्ति आदमी को श्रेष्ठ एवं साहित्यकार बना देती है। अन्तोगत्वा,कहा जा सकता है कि साहित्य और भारतीय समाज एक सिक्के के दो पहलू है। साहित्य के बिना राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति निर्जीव है। साहित्यकार का कर्तव्य बनता है कि वह ऐसे साहित्य का सृजन करे जो राष्ट्रीय एकता,मानवीय समानता,विश्व-बन्धुत्व के सदभाव के साथ हाशिये के आदमी के जीवन को उपर उठाने में सक्षम हो। विश्वपटल पर भी भारतीय समाज और साहित्य का प्रतिनिधित्व करने में भी सक्षम बना रहे। यह भारतीय जनसमुदाय और साहित्यकारों का नैतिक दायित्व भी बनता है ताकि भारतीय समाज और साहित्य जगत का मार्गदर्शक बना रहे।

नन्दलाल भारती /04.01.2012

आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र।-452010,

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. राष्ट्र भाषा स्वीकार करो

    शान यही है मन यही है प्राणों सम मुझको प्यारी है
    पूजा करते है हम इसकी जग में पहिचान हमारी है

    हें गर्व है हरपाल इस पर हर जन को गले लगाती है
    पूर्व पच्छिम उत्तर दक्षिण चहु दिशि का सेतु बनती है

    हर समाया सताया गया इसे पर यह भारत की गहना है
    तमिल तेलगु मलयालम और कन्नड़ की प्यारी बहना है

    मतभेद नहीं करती जन मेंहर भाषा को गले लाया है
    उर सागर जैसा है विशाल माँ जैसा धर्म निभाया है

    भाषा चाहे कोई भी हो मिल कर सब सम्मान करो
    माँ के माथे की बिंदिया है मत इसका अपमान करो

    हिमगिरि का गौरव है हिंदी यह बाणी का श्रंगार है
    तोड़ देश के सीमाओं को करती जग में विस्तार है

    ज्ञान न हो जिस भाषा का क्यों उसको गले लगाते हो
    है उरजिसका हिमगिर सा विशाल उसको ही ठुकराते हो

    जो जग में फहराती हो परचम मत उसका त्रिरस्कार करो
    कर मुक्त राजभाषा बंधन से सब राष्ट्र भाषा स्वीकार करो

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: नन्दलाल भारती का आलेख : साहित्य और भारतीय समाज
नन्दलाल भारती का आलेख : साहित्य और भारतीय समाज
http://lh4.ggpht.com/-vx-8Y2dIhTk/Txk3iw6fhvI/AAAAAAAALHg/zSKpuUGUibU/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-vx-8Y2dIhTk/Txk3iw6fhvI/AAAAAAAALHg/zSKpuUGUibU/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/01/blog-post_7685.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/01/blog-post_7685.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content