एस के पाण्डेय का व्यंग्य : अखिल भारतीय नास्तिक सम्मेलन

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एक बार नास्तिकों ने ‘अखिल भारतीय नास्तिक सम्मेलन’ आयोजित करने की योजना बनाई। सभी नास्तिकों को बुलावा भेजा गया। नियत दिन, समय और जगह पर बड़े-...

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एक बार नास्तिकों ने ‘अखिल भारतीय नास्तिक सम्मेलन’ आयोजित करने की योजना बनाई। सभी नास्तिकों को बुलावा भेजा गया। नियत दिन, समय और जगह पर बड़े-बड़े नास्तिक आने लगे।

बड़े-बड़े का मतलब यह नहीं है कि उनका शरीर भारी-भरकम था। अर्थात वे देखने में कुम्भकर्ण जैसे नहीं थे। वे सामान्य आदमी की तरह ही दिखते थे।

लेकिन कुम्भकर्ण बहुत ज्यादा बुद्धि शून्य नहीं था। क्योंकि कुम्भकर्ण कुछ भी रहा हो पर नास्तिक नहीं था। उसे परासत्ता में भरोसा था। उसने तपस्या करके व्रह्मा जी से वरदान लिया था। और रावण को श्रीराम जी के परमात्म स्वरूप का उपदेश दिया था।

खैर नास्तिकों के अग्रज डैश पर बिराजमान हो गए। और बारी-बारी से ईश्वर विरोधी भाषण देने लगे। जैसे भारतीय नेताओं के भाषण बहुधा घिसे-पिटे ही होते हैं। हम जीतेंगे तो बेरोजगारी खत्म कर देंगे। रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था पर जोर देंगे। बिजली, सड़क और पानी की समस्या नहीं रहेगी। लेकिन कितनी बार जीतने पर ऐसा करेंगे। यह नेता भी नहीं जानते। इसके अलावा अपने विरोधियों को भला-बुरा कहना कोई भी नेता नहीं भूलता। यही नेता का भाषण है। बीस साल पहले भी यही था। आज भी यही है। और बीस साल बाद भी यही भाषण होगा।

ठीक ऐसे ही नास्तिक लोग भी घिसी-पिटी बातें ही कर रहे थे। जैसे ईश्वर कौन है? ईश्वर कहाँ रहता है? ईश्वर को किसने बनाया? ईश्वर यदि है तो दिखाई क्यों नहीं पड़ता? हम नास्तिकों के सामने क्यों नहीं आता? यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो हमारे सामने आने में क्यों डरता है? बस यही सब, मानों हिरण्यकश्यपु प्रहलाद से प्रश्न कर रहा हो। वह प्रहलाद से यही सब पूछता था। और प्रहलाद उसकी समझ पर केवल मुस्कराते रहते थे। आज के हिरण्यकश्यपुओं के उद्धार के लिए भी प्रहलाद जैसा पुत्र चाहिए। लेकिन कहाँ मिलेगा?

इनके अग्रजों में से एक बोला कि हम लोगो को हाईटेक हो जाना है। जो लोग अब तक इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं। वे अति शीघ्र जुड़ जाएँ। सभी लोग अपना-अपना ब्लॉग बना लें। और मोटे-मोटे अक्षरों में ‘हू क्रीटेड गौड’ लिखना न भूलें।

सभी चिल्लाये हम यह पहले ही लिख डाले हैं।

अग्रज आगे बोला इससे कम से कम दो फायदा होगा। एक तो हमारी अंग्रेजी पर पकड़ जाहिर होगी। जो खुद में एक प्रभाव है। और दूसरे यह प्रश्न हमारी दूरदर्शिता को उजागर करेगा। जिससे प्रभावित होकर कई मानव यानी मानने वाले हमारी कौम में शामिल हो जायेंगे। और हमारा नास्तिक वाद दिन दूना और रात चौगुना बढ़ने लगेगा।

इतना ही नहीं ईश्वर विरोधी कुतर्को से इंटरनेट का कोई भी हिस्सा खाली मत रहने दो। ईश्वर की प्रचलित कथाओं को तोड़-मरोड़कर कुछ उल्टा-सीधा जोड़कर लिख डालो और प्रचारित करो। क्योंकि आज का युवा बहुत जल्दी विचलित हो जाता है।

सदग्रंथो को उपन्यासों जैसा ही बताओ। कहो सब कोरी कहानी है। युवा वर्ग इंटरनेट से सीधा जुड़ा है। अतः हमारे कुतर्कों के जाल में वह आसानी से फँस जायेगा। डरो मत क्योंकि ईश्वर नहीं है। हम ही ईश्वर हैं। और यदि ईश्वर हुआ भी तो बहुत होगा तो नर्क हो जायेगा। जो मरने के बाद कोई देखता नहीं है। वहाँ भी हम अपने वाद को नहीं छोड़ेगें। तो एक दिन ईश्वर को भी झुकना पड़ेगा।

हमारे नास्तिक भाई-बहनों की संख्या सिर्फ इतनी ही नहीं है। मेरा मानना है कि हर कोने में, हर घर में अपने भाई–बहन हैं। हमें उनसे सम्वाद स्थापित करना है। और अगले सम्मेलन में हमें यह संख्या दुगुनी कर देना है।

जब आप लोग अपने कुतर्को का जाल यहाँ-वहाँ, घर, गाँव, शहर व इंटरनेट पर फैलायेंगे। तो दूसरे तो इसमें फँसेगे ही, अपने भाई-बहन अपने आप हमसे जुड़ जायेंगे। इंटरनेट पर लिखेंगे कि आप ने तो हमारे मुँह की बात छीन ली। हम भी आपके ही कौम के हैं। इन कदमों से अपनी कौम और सशक्त हो जायेगी।

इनके बाद दूसरे अग्रज बोले कि अभी निरीस जी ने बहुत अच्छा भाषण दिया है। इनके सुझाव बहुत ही मूल्यवान हैं। ध्यान रहे कि साधु-संत भगवान की लीला कथाओं का इंटरप्रिटेसन करते हैं। और हम लोगों को उसका मिसइंटरप्रिटेसन करना है। अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी। इंटरनेट पर भी मिसइंटरप्रिटेसन का जमघट तैयार कर दो। इंटरप्रिटेसन अपने भेंजे में नहीं घुसेगा और मिसइंटरप्रिटेसन में हमें आनंद भी आएगा तथा हमारे साथी भी आनन्दित होकर हाथ मिलायेंगे। मिसइंटरप्रिटेसन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मानव यानी मानने वाले गुमराह होंगे। जिससे अपनी कौम को बल मिलेगा।

आप लोग सामान्य आस्तिकों से, धर्मात्माओं से और साधुओं आदि से उल्टा-सीधा प्रश्न करें। तरह-तरह के प्रश्न चाहे वे निराधार, असत्य, मूर्खतापूर्ण, अमर्यादित आदि कुछ भी हों अवसर मिलने पर जरूर करें। चूकें मत। इंटरनेट पर भी डाल दें। जैसे पूजा करने से क्या होता है? पशु पूजा क्यों नहीं करते? सिर पर एंटीना रखने से क्या होता है? गाय और बकरी में क्या अंतर है? अंडा शाकाहारी क्यों नहीं है? क्या दूध माँसाहारी नही है?

शाकाहारी होना पशुओं का गुण नहीं है क्या? मांस तो शेर खाता है, तो शेर बनने में देर क्यों?

भगवान क्या करते हैं? क्या खाते हैं? कब सोते हैं? कब जगते हैं? क्यों सोते हैं? क्यों जगते है? कहाँ रहते है? क्यों रहते हैं? क्यों डरते हैं? आदि।

इनके बाद हमीस बोले। कोई ईश्वर नहीं है। हम ही ईश्वर हैं। हम सब ईश्वर हैं। ईश्वर मानवों का रचा हुआ है। आखिर पशु मंदिर क्यों नहीं जाते? इससे जाहिर होता है कि पशु ईश्वर को नहीं मानते। कभी किसी ने किसी पशु को मंदिर में देखा क्या। कोई बोला कई बार गाय देखा है। हमीस बोले तुम नासमझ हो।

हमीस आगे बोले कि हमारे पुरुष साथी अपनी पत्नियों को और महिला साथी अपने पतियों को हमारे वाद को अपनाने के लिए प्रेरित करें। पुरुष जोर जबरदस्ती भी कर सकते हैं। पत्नी से कहें कि व्रत रखने से क्या होता है? तूँ किसके लिए रोज-रोज यह नाटक करती है? पूजा में समय क्यों बर्बाद करती है? भगवान कहाँ हैं? किसने देखा? तेरे माँ-बाप या भाई ने। तूँ नाहक भगवान के चक्कर में पड़ी है। इससे अच्छा किसी दूसरे के चक्कर में पड़ जा।

इसी तरह सभी मुख्य-मुख्य नास्तिकों ने अपने वक्तव्य दिए। उनमें से कोई वक्ता नहीं था। सब के सब बकता थे और जो जी में आता था बके जा रहे थे। बाद में एक नास्तिक जो पहले आस्तिक था, लेकिन इन लोगों के चक्कर में पड़कर नास्तिक बन गया था। उठ खड़ा हुआ और बोला कि आप लोगों ने नाहक में मुझे फंसा लिया। मैं भी न मानने वालों की श्रेणी में आ गया। पहले मैं भी मानने वोलों में था अर्थात पहले मैं भी मानव था। मुझे अब अपने आप पर लज्जा आती है।

आप लोगों ने कहा कि जो दिखाई नहीं पड़ता, उसका अस्तित्व कहीं हो सकता है क्या? लेकिन विज्ञान भी इस तथ्य का समर्थन करता है कि न दिखने वाली चीजों का भी अस्तित्व होता है। विज्ञान प्रमाण देता है कि ऐसी कई चीजें हैं जो दिखती नहीं फिर भी वे अस्तित्व में हैं। रही बात कि ईश्वर को किसने बनाया? तो भला शुरुआत के पहले भी कुछ होता है क्या? आदि यानी शुरुआत की यही परिभाषा ही है कि जिसके पहले कुछ नहीं हो। तभी तो वह आदि होता है। प्रारंभ। शुरुआत। इकाई। जैसे कोई सड़क कन्याकुमारी से जम्बू तक बनी हो। तो कोई महा मूर्ख श्रेष्ठ ही पूछेगा कि कन्याकुमारी से पहले यह कहाँ से शुरू होती है। जबकि उसकी शुरुआत कन्याकुमारी ही है। अब यह सब मेरी समझ में आने लगा है।

अग्रज बोले तुम भी अपने ब्लॉग पर ईश्वर को बहुत गाली दे चुके हो। भगवान की लीला कथाओं को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर चुके हो। अतः कुछ भी हो पर अब अपने कौम के वसूलों को ध्यान में रखते हुए इसके विपरीत कभी मत बोलो।

हमें नेताओं की राह पर चलना है। हमें, लोगों को यही बताना है कि केवल हम ही सही हैं। बाकी सब गलत हैं। हर नेता का ऐसा ही मत होता है। लेकिन ध्यान रहे कि नेताओं की तरह हम पार्टी नहीं बदलेंगे। यह हमारा वसूल है। हम दूसरे लोगों को अपनी पार्टी में लेते रहेंगे। लेकिन कभी अपनी पार्टी नहीं बदलेंगे। खुद भगवान सामने आ जाएँ तो भी हम नहीं मानेगें। हमें रावण और कंस से भी कुछ शिक्षा तो लेनी ही चाहिए।

यदि कोई कहता है कि विज्ञान से ईश्वर के अस्तित्व की पुष्टि होती है तो हम कहेंगे कि हम विज्ञान को नहीं मानते। लेकिन यदि कोई कहे कि विज्ञान कहता है कि ईश्वर नहीं है। तो हम फौरन अपना कथन बदल देंगे और कहेंगे कि हम लोगों की बातें वैज्ञानिक ही होती हैं। और विज्ञान भी हमारा समर्थन करता हैं।

कुलमिलाकर जैसे भी हों हमें अपने नास्तिक वाद को फैलाना है। और अगले सम्मेलन तक अपनी संख्या कम से कम दोगुनी तो कर ही लेना है। अगला सम्मेलन अखिल भारतीय नास्तिक महा सम्मेलन के नाम से आयोजित किया जायेगा। जिसकी सफलता के लिए हम जी-जान लगा देंगे और दुनिया से ईश्वर का नाम मिटा देंगे।

इसी संकल्प के साथ सभा विसर्जित हो गई।

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,

समशापुर (उ. प्र.)।

URL: https://sites.google.com/site/skpandeysriramkthavali/

ब्लॉग: http://www.sriramprabhukripa.blogspot.com/

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रचनाकार: एस के पाण्डेय का व्यंग्य : अखिल भारतीय नास्तिक सम्मेलन
एस के पाण्डेय का व्यंग्य : अखिल भारतीय नास्तिक सम्मेलन
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