2011 का साहित्यिक परिदृश्य -के.बी.एल. पाण्डेय किसी एक वर्ष में प्रकाशित साहित्य तथा उससे सम्बन्धित गतिविधियों का विवेचन एक निश्चित समय...
2011 का साहित्यिक परिदृश्य
-के.बी.एल. पाण्डेय
किसी एक वर्ष में प्रकाशित साहित्य तथा उससे सम्बन्धित गतिविधियों का विवेचन एक निश्चित समयावधि के संकलन की दृष्टि से तो संगत है ही, वह मूल्यांकन का आधार भी हो सकता है। सृजन अपने समय से प्रेरित और आन्दोलित होता है, हालांकि रचना एकदम तात्कालिक नहीं होती। कोई भी कालखण्ड अपने पूर्वापर से निरपेक्ष अथवा विच्छिन्न नहीं होता। उसमें जाता हुआ समय अपनी गूंज के रूप में सुनायी देता है। इसके साथ ही लेखन और प्रकाशन समय की दृष्टि से नितान्त सहगामी नहीं होते। फिर भी संप्रेषण के साधन इतने तेज, विविध और व्यापक हो गये हैं कि जो लिखा जा रहा है उसकी चर्चा किसी न किसी रूप में हो ही जाती है।
वर्ष 2011 का साहित्य भी परिमाण में विपुल और विविध रहा, लेकिन लेखन और प्रकाशन के इस विस्फोट में यह विचारणीय है कि कितना साहित्य पठनीय और स्मरणीय है। यह भी काफी रोचक तथ्य है कि एक ओर पठनीयता के संकट की चिंता होती रही, दूसरी ओर बहुत बड़ी संख्या में पुस्तकें और पत्रिकाएं प्रकाशित होती रहीं। गौरव सोलंकी ने ‘तहलका' पत्रिका में लिखा कि अब लेखक ही लेखक का पाठक है और पाठक कम होते जा रहे हैं। युवा लेखक के रूप में काफी पढ़े जाने वाले लेखक गौरव सोलंकी की यह चिंता चौंकाती है।
यह वर्ष अनेक साहित्यकारों का जन्म शताब्दी वर्ष रहा। फैज और अज्ञेय पर विशेषांको और समारोहों के अतिरिक्त नागार्जुन, केदार और शमशेर पर केन्द्रित पत्रिकाओं के अंक प्रकाशित हुए और महत्त्वपूर्ण आयोजन होते रहे लेकिन आरसी प्रसाद सिंह, पहाड़ी और नेपाली जैसे साहित्यकारों का उतना स्मरण नहीं हुआ। यह वर्ष गोदान उपन्यास के प्रकाशन का पचहत्तरवां वर्ष भी था। इस कृति को पुनर्पाठों या विमशांेर् के जरिये प्रासंगिकता का अपेक्षित सत्कार नहीं मिला।
पाठकों को साहित्य से जोड़े रखने में इस वर्ष भी पत्रिकाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। ‘हंस', ‘कथादेश', ‘नया ज्ञानोदय', ‘वर्तमान साहित्य', ‘वागर्थ', ‘पारवी', ‘समयान्तर' जैसी प्रमुख मासिक तथा ‘कथाक्रम', ‘अकार', ‘उद्भावना', ‘आलोचना', ‘परिकथा', ‘प्रगतिशील वसुधा', ‘बहुवचन', ‘अन्यथा', ‘रचना समय', ‘तद्भव', ‘पाण्डुलिपि विमर्श', ‘नया पथ' जैसी द्वैमासिक, त्रैमासिक अथवा अनियतकालिक पत्रिकाओं ने रचनात्मक लेखन के साथ ही विमर्शपरक साहित्य भी प्रकाशित किया। छोटे कस्बों और नगरों से निकलने वाली लघुपत्रिकाओं की सिर्फ संख्या ही बड़ी नहीं है, उनकी निरन्तरता भी चमत्कृत करती है। इनमें से कुछ की वजह दीवानगी भले ही न मालूम हो पर अधिकतर लघुपत्रिकाएं मिशन के तौर पर काम कर रही हैं। ‘इंडिया-टुडे', ‘आउट-लुक', ‘तहलका' जैसी समाचार पत्रिकाओं ने भी कुछ पन्ने साहित्य के लिये सुरक्षित रखे और उनमें पठनीय सामग्री प्रकाशित की। ‘समकालीन भारतीय साहित्य', ‘आजकल' जैसी शासन द्वारा वित्त पोषित पत्रिकाओं ने साहित्य के समकालीन प्रसंगों के साथ स्वयं को जोड़े रखा। अबूधाबी से कृष्ण बिहारी के संपादन में प्रकाशित पत्रिका ‘निकट' के प्रयोजन पर राजेन्द्र यादव ने ‘हंस' में उत्साहहीन प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रवासी भारतीय साहित्य पर पूर्णिमा वर्मन की ‘अभिव्यक्ति' और इला प्रसाद के अतिथि संपादन में ‘शोध दिशा' के दो अंक तथा ‘प्रवासी टुडे' पत्रिका उन अनेक पत्रिकाओं की श्रंखला के कुछ नाम हैं जो प्रवासी लेखन पर प्रकाशित हो रही हैं।
कुछ पत्रिकाओं के विशेषांक पत्रिकाओं की भूमिका को सार्थकता प्रदान करने के साथ ही लेखन की प्रचुरता का भी प्रमाण देते हैं। ‘नयापथ' का फैज के बाद नागार्जुन पर 410 पृष्ठों का वृहत् अंक, उसी का केदार, शमशेर और मजाज़ पर केन्द्रित अंक, ‘उद्भावना' का केदार अंक, ‘आलोचना' 40 का शमशेर अंक अपनी असाधारण सामग्री और विमर्शपरकता के कारण संग्रहणीय हो गये। रमणिका गुप्ता ‘युद्धरत आम आदमी' के रूप में सिर्फ एक पत्रिका नहीं निकालती बल्कि दलित, आदिवासी और स्त्री की पक्षधरता में साहित्यिक एक्टिविस्ट का कार्य करती हैं। दो तीन वर्ष पूर्व आदिवासी समाज पर असाधारण विशेषांक के बाद अनामिका के अतिथि संपादन में इस पत्रिका ने ‘हाशिए उलांघती स्त्री' शीर्षक से कविता के दो विशेषांक निकाले जिनमें हिन्दी के साथ ही सभी भारतीय भाषाओं की प्रमुख कवयित्रियों की स्त्री मुक्ति चेतना की सैकड़ों कविताएं प्रकाशित हुइर्ं। ये विशेषांक सम्पूर्ण भारत की लेखिकाओं की मुक्तिकामी समान संवेदना का अद्वितीय दस्तावेज है। विगत, प्रौढ़ और युवा कवयित्रियों के लिए अनामिका ने कोठी में धान, खड़ी फसल और नयी पौध जैसे प्रतीकात्मक शीर्षकों का प्रयोग कर संपादन की कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना के संपादन में ‘रचना समय' के कविता विशेषांक में हिन्दी के लगभग सभी चर्चित कवि समाविष्ट हैं। ‘पारवी' के ‘राजेन्द्र यादव' पर केन्द्रित अंक में जैसे प्रशंसा और प्रतिकूलता के दो पाले बना दिये गये। इस अंक के लेखों में व्यक्तिगत बातें ऐसे विवादास्पद ढंग से रखी गयीं कि उन पर लिखित अलिखित कई गैर साहित्यिक प्रतिक्रियाएं हुईं।
इस वर्ष प्रकाशित पत्रिकाओं के सामान्य अंकों के अलावा विशेषांकों में भी महिला-लेखन को प्रमुखता मिली। ‘नया ज्ञानोदय' ने प्रेम और बेवफाई के बाद अब ‘लिखती हुई स्त्रियां', ‘उद्भावना' ने पाकिस्तान की नौ महिला कलाकारों की कहानियां अंक निकाले। ‘नया ज्ञानोदय' का नौ लम्बी कहानियों और नौ लम्बी कविताओं का अंक, ‘कथाक्रम' का आदिवासी समाज और साहित्य अंक, ‘कथादेश' का मीडिया वार्षिकी अंक, ‘उद्भावना' का खाप पंचायतें और हमारा समाज अंक, ‘समयांतर' का मीडिया बाजार और लोकतंत्र हमारे समय की विभिन्न चिन्ताओं की चर्चा के रूप में पाठकों तक पहुंचे। ‘परिकथा' पत्रिका तो नवलेखन अथवा युवा लेखन पर अभियान के रूप में विशेषांकों की श्रंखला ही प्रकाशित कर रही है। आज के प्रमुख युवा लेखकों की अद्भुत रचनाशीलता का परिचय पाठाकों को ‘परिकथा' के इन्हीं अंकों से मिला है। सामयिक प्रकाशन की ‘समीक्षा' और म. गां. अ. वि. वि. वर्धा की ‘पुस्तकवार्ता' पत्रिकाएं पुस्तकों की समीक्षा प्रकाशित कर रही हैं। ‘युगतेवर', ‘कुरजां', ‘बयां', ‘राग भोपाली', ‘अभिनव कदम', ‘लौ', ‘लफ्ज', ‘शेष', ‘सम्बोधन', ‘संवेद', ‘मूल प्रश्न', ‘मंच', ‘अनहद', ‘अक्षर पर्व', कुछ और प्रमुख पत्रिकाएं हैं।
इस वर्ष प्रकाशित कुछ लेख अपने विमर्श के कारण और कुछ विवाद के कारण चर्चा में रहे। ‘अनुभव के भेस में विचार' (‘अन्यथा' का संपादकीय) और ‘परिकथा' के लेख उपन्यास के विवेचन के गंभीर प्रयास हैं। ‘साहित्य के सामंत' (‘तहलका') में गौरव सोलंकी ने माना कि पाठकों का अभाव और लेखक का ही लेखक का पाठक होते जाना साहित्य के मठों की स्थापना में मदद करता है। ‘हंस' के एक अंक के संपादकीय में राजेन्द्र यादव ने ‘एक बार फिर डायस्पोरा' के रूप में प्रवासी भारतीयों के लेखन पर टिप्पणी की। ‘कथादेश' में शालिनी माथुर ने ‘इतिहास का पुनःपाठ या कुपाठ' में ‘माझा प्रवास' और अमृतलाल नागर की ‘आंखों देखा गदर' पर संजीव के लेख का तीखा उत्तर दिया। ‘समयांतर' में प्रकाशित अजय सिंह के लेख ‘अज्ञेय जन्मशती कुछ सवाल' के उत्तर में ‘जनसत्ता' में ओम धानवी ने ‘अज्ञेय के दिलजले' लिखा। इसी बहस में पंकज विस्ट का ‘अज्ञेय की विधवाएं' लेख भी जुड़ गया। ‘हंस' पत्रिका में शीबा असलम फहमी के स्तंभ के साथ तस्लीमा नसरीन का स्तंभ भी पाठकों की उत्सुकता जगाता है।
गंभीरता से किये गये साहित्यिक आयोजन हमारी श्रद्धा के वाचक तो होते ही हैं, वे साहित्य के संसार में बने रहने की पाठकीय जरूरत भी पूरी करते हैं। इस वर्ष देश भर में जन्मशती समारोहों- विशेषतः केदार, नागार्जुन, शमशेर पर- का आयोजन हुआ। रायपुर में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा आयोजित फैज और केदार पर कार्यक्रम इसलिए भी विशिष्ट था क्योंकि उसमें फैज़ की पुत्री मुनीजा हाशमी और केदार अग्रवाल की नातिन सुनीता अग्रवाल उपस्थित थीं। म. गा. अ. हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद केन्द्र और प्रलेस के संयुक्त आयोजन ‘शख्सियत फैज़ अहमद फैज़' में पाकिस्तान से सलीमा हाशमी, मुनीजा हाशमी और किश्वर नाहीद ने भाग लिया। इसी विश्वविद्यालय के कोलकाता केन्द्र ने अभिज्ञात के कविता संग्रह ‘खुशी ठहरती है कितनी देर' का लोकार्पण समारोह आयोजित किया। ‘हंस' की प्रेमचंद के जन्म दिवस पर आयोजित गोष्ठी की प्रतीक्षा उत्सुकता से की जाती है। इस बार गोष्ठी का विषय था - ‘साहित्यिक पत्रकारिता और हंस'। गोष्ठी में दिल्ली ही नहीं, बाहर से आये लेखकों, श्रोताओं से ऐवाने ग़ालिब सभागार पूरी तरह भरा था पर व्यापक प्रतिक्रिया निराशा भरी रही। नामवर सिंह का व्याख्यान भी उस निराशा को नहीं मिटा सका। तस्लीमा नसरीन की उपस्थिति ने अवश्य लेगों को कौतूहल भरी प्रसन्नता दी।
जयपुर में आयोजित लिटरेरी फेस्टिवल के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में विदेशों और भारत के अनेक लेखकों ने साहित्य, समाज, कला और भाषा के अनेक सन्दर्भों पर विचार किया। हरियाणा में यमुना नगर के डी.ए.वी. महिला महाविद्यालय तथा कथा यू. के. के संयुक्त आयोजन में हिन्दी के कई प्रवासी लेखकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। तेजेन्द्र शर्मा के अतिरिक्त ब्रिटेन में सांसद ज़कीया जुबेरी, दिव्या माथुर जैसी लेखिकाओं और भारत के लेखकों ने प्रवासी साहित्य के सरोकारों को स्पष्ट किया। साहित्य अकादमी के कई आयोजन अलग-अलग उपलक्ष्यों पर केन्द्रित रहे। विनोद कुमार शुक्ल के 75 वर्ष पूरे होने पर संवाद, रचनापाठ और वक्तव्य का आयोजन तथा अन्य समारोह में अजय नरवरिया और मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियों क्रमशः ‘असली बात' और ‘केयर आफ स्वात घाटी' का पाठ हुआ। ‘संगमन' संस्था का वार्षिक आयोजन मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक नगर मांडू में हुआ जिसमें ‘समय से संवाद' पर चर्चा करने के लिए हिन्दी के अनेक प्रसिद्ध कथाकार उपस्थित थे।
नव सर्वहारा सांस्कृतिक मंच ने एक अलग तरह के कार्यक्रम के रूप में नागार्जुन, केदार और शमशेर पर दिल्ली से कोलकाता तक कविता-यात्रा निकाली। हैदराबाद में केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस का आयोजन किया। झांसी (उ.प्र.) में प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा का गठन एक साहित्यिक आयोजन के रूप में हुआ तो यू.जी.सी. तथा ओ.एन.जी.सी. के मिले जुले तत्त्वावधान में अहमदाबाद में ‘साहित्य के प्रजातंत्र में नारी और दलित' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई।
विभिन्न साहित्यिक पुरस्कारों का प्रदान समारोह के रूप में होता रहा और कई कृतियों के लोकार्पण के भी साहित्यिक आयोजन हुए। लोकार्पण के अन्तर्गत शिवपुरी में प्रमोद भार्गव की पुस्तक ‘मुक्त होती औरत' का आयोजन, इंडिया इंटरनेशनल में सूर्यनाथ सिंह के पहले उपन्यास ‘चलती चाकी' का आयोजन, के.पी. सिंह मेमोरियल ट्रस्ट के आयोजन में नमिता सिंह के ‘लेडीज क्लब' का लोकार्पण हुआ। सामयिक प्रकाशन तथा समाज नामक संस्था ने तेजेन्द्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘कब्र का मुनाफा' के दूसरे संस्करण का लोकार्पण आयोजित किया। गीता श्री को सृजनगाथा का सम्मान बैंकाक में मिला और पांडिचेरी विश्वविद्यालय तथा तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी के एक समारोह में उनकी पुस्तक ‘औरत की बोली' का लोकार्पण हुआ।
2011 में प्रकाशित पुस्तकों में विधाओं की विविधता रही। कविता किसी वर्ष साहित्य के केन्द्र में हो या नहीं पर उसकी रचनात्मक भूमिका निर्विवाद है। उसकी संक्षिप्ति में संवेदना का पूरा संसार समाहित रहता है। इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार भी कवि टामस ट्रांसटोमर को उनकी कविता पर ही मिला है। ‘युद्धरत आम आदमी' पत्रिका के दो विशेषांक और ‘रचना समय' का विशेषांक कविता के आयामों के परिचायक हैं। ‘परिकथा' ने नव लेखन विशेषांकों की श्रंखला का आरंभ भी कविता अंक से ही किया था। इस वर्ष प्रकाशित प्रमुख कविता संग्रहों में चन्द्रकान्त देवताले का ‘धनुष पर चिड़िया', कुमार अम्बुज का ‘अमीरी रेखा', अशोक कुमार पाण्डेय का ‘लगभग अनामंत्रित', बहादुर पटेल का ‘बूंदों के बीच प्यार', जितेन्द्र श्रीवास्तव का ‘बिल्कुल तुम्हारी तरह', विमलेश त्रिपाठी का ‘हम बचे रहेंगे', मलय का ‘इच्छा की दूब', यश मालवीय का ‘बुद्ध मुस्कराये', दिनेश कुमार शुक्ल का ‘समुद्र में नदी', जय प्रकाश मानस का ‘अबोले के विरुद्ध' का नाम लिया जा सकता है। रामाज्ञा शशिधर का ‘बुरे समय में नींद', प्रेमशंकर रघुवंशी का ‘प्रणय का अनहद', नंद चतुर्वेदी का ‘हमारी जिंदगी कुछ गा' और प्रभात त्रिपाठी का ‘बेतरतीब' भी अपनी तीव्र संवेदना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
पर्याप्त संख्या में प्रकाशित उपन्यासों में कुछ उपन्यास अपने कथ्य की नवीनता के कारण चर्चित रहे। मैत्रेयी पुष्पा का ‘गुनाह बेगुनाह' महिला पुलिस कर्मियों की स्थिति और उन्हीं में से एक इला चौधरी के इस तंत्र से जूझने की कथा है। मनीषा कुलश्रेष्ठ का ‘शिगाफ' दो समुदायों के बीच उभरी दरार का एक नया पाठ है। इस उपन्यास के कुछ अंशों का वाचन लेखिका द्वारा जर्मनी के हाइडिलवर्ग विश्वविद्यालय में किया गया। ‘तद्भव' में प्रकाशित राजू शर्मा की उपन्यास के रूप में घटती लम्बी कथा ‘यूक्लिड और दावौस', ‘एक घटता हुआ अफसाना' और ‘नया ज्ञानोदय' में प्रकाशित मनीषा कुलश्रेष्ठ का ‘शालभंजिका' आज के कथा शिल्प के उदाहरण हैं। इस वर्ष प्रकाशित अन्य उपन्यासों में ‘मदरसा' (मंजूर एहतराम), ‘सुल्तान रजिया' (मेवाराम), ‘चलती चाकी' (सूर्यनाथ सिंह), ‘तीसरी ताली' (प्रदीप सौरभ), ‘वृंदा गाथा सदी की' (ब्रजेश), ‘मनमाटी' (दो लघु उपन्यास- असगर वजाहत), ‘फांस' (विजय गौड़), ‘आलाप विलाप' (राजेन्द्र लहारिया), ‘मंडली' (पुन्नी सिंह), ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़' (विनोद कुमार शुक्ल), ‘चांद/आसमान डाट कॉम' (विमल कुमार) और ‘तद्भव' पत्रिका में वीरेन्द्र यादव की टिप्पणी के साथ प्रकाशित केदारनाथ अग्रवाल का पहले लिखा उपन्यास ‘पतिया' प्रमुखता से चर्चित रहे।
कहानी का पाठक वर्ग अपेक्षाकृत व्यापक है। पुस्तकों, पत्रिकाओं के अतिरिक्त समाचार पत्र भी अपने साप्ताहिक परिशिष्टों में कहानी प्रकाशित करते रहते हैं। यह तथ्य काफी उत्साहजनक है कि आज उम्र की दो तीन पीढ़ियां एक साथ लिख रही हैं और इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि उम्र के दूसरे और तीसरे दशक में चल रहे अनेक कहानीकार लेखन की अग्र पंक्ति में हैं। गौरव सोलंकी, चन्दन पाण्डेय, मनोज कुमार पाण्डेय, कुणाल सिंह, विमल चन्द्र पाण्डेय, पंकज सुवीर, कविता, वन्दना राग, सुभाषचन्द्र कुशवाहा, उमाशंकर चौधरी, स्वाति तिवारी, जयश्री राय और इंदिरा दाॅंगी को किसी भी पत्रिका में पढ़ा जा सकता है। पुन्नी सिंह, महेश कटारे और ए. असफल लेखन में अविराम हैं। ‘हंस' के छब्बीसवें अंक में प्रकाशित असफल की कहानी ‘इच्छा मृत्यु' उनकी अपनी विशिष्ट शैली की कहानी है।
मनोज रुपड़ा का कहानी संग्रह ‘टावर आफ साइलेंस' प्रवासी भारतीय लेखिका दिव्या माथुर का ‘2050 और अन्य कहानियां', कविता का ‘नदी जो अब भी बहती है', प्रमोद भार्गव का ‘मुक्त होती औरत', पद्मा शर्मा का ‘जल समाधि' तथा अन्य कहानियां, नीला प्रसाद का ‘सातवीं औरत का घर', भालचन्द्र जोशी का ‘पालवा' कहानी के रचनात्मक भविष्य को प्रमाणित करते हैं। ‘परिकथा' पत्रिका के युवा लेखन अंक पाठकों के सामने आज का पूरा संसार रख रहे हैं। काशीनाथ सिंह का अद्भुत कथा-लेखन सतत् है। ‘तद्भव' में प्रकाशित उनकी ‘दो कहानियाॅं' और ‘महुआ चरित' शिल्प में कविता के पास पहुंचती है लेकिन उनकी किस्सागोई को बिल्कुल क्षति नहीं पहुॅंचती। शेखर जोशी का ‘आदमी का जहर', उमाशंकर चौधरी का ‘अयोध्या बाबू सनक गये हैं', सत्यनारायण पटेल का ‘लाल छींट वाली लूगड़ी का सपना', अनिल यादव का ‘नगर वधुएं अखबार नहीं पढ़तीं' कहानी संग्रहों के नाम भी उल्लेखनीय हैं।
आत्मकथा, संस्मरण, जीवनी, यात्रा और डायरी अब रचनात्मक गद्य का रूप ले रही हैं। पिछले वर्षों में दलित लेखक और लेखिकाओं की तथा अन्य आत्मकथाओं ने स्त्री विमर्श और दलित विमर्श का नया संसार खोला। इस वर्ष प्रकाशित सुशीला टाकभोरे की आत्मकथा ‘शिकंजे का दर्द', कान्तिकुमार जैन के ‘बैकण्ठपुर में बचपन', ‘एक शमशेर भी है' (दूधनाथ सिंह), मुआनजोदड़ो- यात्रा (ओम धानवी) और रोजा हजनोशी गैर मानुस की डायरी ‘अग्निपर्व और शान्ति निकेतन' इन विधाओं के प्रमुख प्रकाशन के रूप में देख्ो जा सकते हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी की लिखी ‘व्योमकेश दरवेश' हजारीप्रसाद द्विवेदी की आत्मीय और प्रामाणिक जीवनी के रूप में बहुत चर्चित हुई। स्त्री विमर्श ऐसा विषय है जिस पर लेखन निरन्तर है। इस वर्ष गीता श्री की ‘औरत की बोली' रोहिणी अग्रवाल की ‘स्त्री लेखन स्वप्न और संकल्प' और रजनी गुप्त की ‘सुनो तो सही' की चर्चा रही। इस वर्ष कुछ लेखकों के संचयन और कुछ रचनावलियां भी प्रकाशित हुइर्ं जिनसे लेखकों को समग्रता में पढ़ने की आवश्यकता पूरी हुई।
आज व्यंग्य लेखन में वास्तविक व्यंग्य लेखकों की कमी ही नहीं उसका स्तर भी चिंताजनक है। यों तो अखबारों और पत्रिकाओं में व्यंग्य के नाम पर कुछ न कुछ छपता ही रहता है पर उसे व्यंग्य का उपहास ही माना जा सकता है। आज परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी, श्रीलाल शुक्ल, के.पी. सक्सेना (हास्य), कृष्ण चराटे आदि के क्रम में ज्ञान चतुर्वेदी का नाम सबसे ऊपर रखा जा सकता है। ज्ञान चतुर्वेदी की औपन्यासिक कृतियों में जिस तरह व्यंग्य को साधा गया है उसके दूसरे उदाहरण नहीं मिलते। उनका ‘अलग-अलग' नया प्रकाशन है अनेक पत्रिकाओं में उनके नियमित व्यंग्य स्तंभ हैं। ‘नारद की चिंता' (सुशील सिद्धार्थ) और ‘व्हाइट हाउस में रामलीला' (आलोक पुराणिक) व्यंग्य के अन्य पठनीय प्रकाशन हैं।
वर्ष 2011 में आलोचना रचना के साथ भी चलती रही और मूल्यांकन तथा रचना के निकष गढ़ती आलोचना भी लिखी गयी। पत्रिकाओं की बड़ी संख्या के द्वारा प्रकाशन की सुविधा हो जाने के कारण कुछ आलोचक तो कल लिख्ो पर आज आलोचना लिखते रहे। ऐसी केवल परिचयात्मक और सूचनात्मक टिप्पणियों के प्रकाशन के पीछे यह साफ दिखा कि आलोचना की गंभीरता के स्थान पर आलोचक का नाम और तत्काल लिखे पर टिप्पणी आ जाने की त्वरा महत्त्वपूर्ण रही। गंभीर आलोचनात्मक विमर्श में गोपाल राय की ‘हिन्दी कहानी का इतिहास-2', कमला प्रसाद की ‘आलोचना का लोकतंत्र', नन्दकिशोर नवल की ‘मैथिलीशरण गुप्त', कृष्णदत्त पालीवाल की ‘हिन्दी का आलोचनापर्व', पद्मा शर्मा की ‘समकालीन कहानी में सांस्कृतिक मूल्य', प्रमिला के.पी. की ‘स्त्री अस्मिता और हिन्दी कविता' और विश्वरंजन की संपादित ‘आलोचना का नेपथ्य' चर्चा में रहीं। परमानन्द श्रीवास्तव का ‘प्रतिरोध की संस्कृति और साहित्य', गोपेश्वर का ‘आलोचना का नया पाठ', विश्वरंजन का संपादन ‘फिर-फिर नागार्जुन', देवेन्द्र चौबे का ‘आलोचना का जनतंत्र', पल्लव का ‘कहानी का लोकतंत्र' और प्रियम अंकित का ‘पूर्वाग्रहों के विरुद्ध' भी हिन्दी आलोचना को नये बोध से जोड़ते हैं।
हिन्दी साहित्य में दिये जाने वाले पुरस्कारों की गणना पत्रिकाओं की संख्या गिनने से भी कठिन है। विश्वसनीयता के विवादों के बावजूद साहित्य के प्रति आस्था की दृष्टि से दिये जाने वाले पुरस्कारों की कमी नहीं है। रचनाकार का सम्मान सामाजिक श्रद्धा है। वर्ष 2011 भी पुरस्कारों और सम्मानों की दृष्टि से काफी समृद्ध रहा। ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘रागदरबारी' के प्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को मिला। साहित्य अकादमी ने काशीनाथ सिंह को उनके ‘रेहन पर रग्घू' उपन्यास पर पुरस्कृत किया। लेखक का कहना था कि वह सोचते हैं कि यह पुरस्कार उन्हें ‘कासी में अस्सी' पर मिलता। केन्द्रीय साहित्य अकादमी ने 24 बाल साहित्य पुरस्कारों की घोषणा की। इनमें से एक भी पुस्तक हिन्दी लेखक की नहीं है। लंदन की संस्था कथा यू. के. का इंदु शर्मा पुरस्कार विकास कुमार झा को उनके उपन्यास ‘मैक्लुस्की गंज' पर दिया गया।
‘कथाक्रम सम्मान कथाकार स्वयं प्रकाश को और वनमाली सम्मान मैत्रेयी पुष्पा तथा मनोज रूपड़ा को मिला। भोपाल का ही स्पंदन शिखर सम्मान कामतानाथ को, स्पंदन कृति पुरस्कार कथाकार योगेन्द्र आहूजा को और इसी संस्था का साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान ‘तद्भव' के सम्पादक अखिलेश को दिया गया। आलोक श्रीवास्तव को उनके ग़जल-संग्रह ‘आमीन' पर मास्को में पुश्किन सम्मान मिला। इस अवसर पर अलेक्सांद्र सेंकेविच ने कहा कि इन कविताओं में आत्मा की गूंज है। राजकमल कृति सम्मान विद्या निवास मिश्र की स्मृति में अजित बड़नेकर की पांडुलिपि ‘शब्दों का सफर-2' को दिया गया। राजेन्द्र यादव को ‘शब्द साधक शिखर सम्मान' से सम्मानित किया गया और विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को ‘फिर भी कुछ रह जायेगा' कविता संग्रह पर व्यास सम्मान मिला।
इफको खाद संस्था का पहला श्रीलाल शुक्ल स्मृति पुरस्कार विद्यासागर नौटियाल को, व्यंग्य श्री पुरस्कार, प्रदीप पंत को, शब्द साधक जनप्रिय सम्मान पंकज सुवीर को, कृष्ण प्रताप स्मृति पुरस्कार वंदना राग को, देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान युवा आलोचक संजीव कुमार को, मीरा स्मृति पुरस्कार ‘शहतूत' कहानी संग्रह पर मनोज कुमार पाण्डेय को, कविता समय सम्मान इब्बार रब्बी और प्रभात को, एक कहानी पर रमाकांत स्मृति पुरस्कार आकांक्षा पारे को और एक कविता पर भारत भूषण पुरस्कार ‘अघोषित उलगुलान' पर अनुज लुगुन को मिला। म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने वागीश्वरी पुरस्तार स्वाति तिवारी को प्रदान किया। सामयिक प्रकाशन को पांडिचेरी में राज्यपाल डाॅ. इकबाल सिंह ने श्रेष्ठ प्रकाशन संस्थान का सम्मान प्रदान किया। सामयिक प्रकाशन ने स्त्री विमर्श पर चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। महराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार धीरेन्द्र अस्थाना के समग्र लेखन को मिला। ऋतुराज सम्मान से हिन्दी की वाचिक और लिखित परम्परा के प्रदेय के लिये उदय प्रताप सिंह, कविता के लिये जितेन्द्र श्रीवास्तव और कवयित्री अल्का सिन्हा सम्मानित हुए। बहुत चर्चित आत्मकथा ‘मुर्दहिया' के लिए तुलसीराम को अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान दिया गया। राष्ट्रीय सृजन सम्मान से रायबरेली से प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति सम्मानित हुए। विवेकीराय को नयी धारा पत्रिका का उदयराज सिंह स्मृति सम्मान घोषित हुआ। गीताश्री को ‘नागपाश में स्त्री' के लिए सृजनगाथा सम्मान मिला।
महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों, आयोजनों और पुरस्कारों का यह वर्ष साहित्य जगत के लिए क्रूर भी कम नहीं रहा। वह अपने साथ असाधारण संगठनकर्ता और लेखक कमला प्रसाद, आलोचक चन्द्रबली सिंह, प्रख्यात कथाकार श्रीलाल शुक्ल, जानकी वल्लभ शास्त्री, कौसल्या वैसंत्री, कुमार विमल, साजिद रशीद, रामशरण शर्मा, भारत भूषण, अदम गौंडवी, कुबेर दत्त, विलास गुप्ते, इंदिरा गोस्वामी, आलोक तोमर, अनिल सिन्हा को ले गया। इनका निधन मानवीय प्रतिबद्धता से जुड़ी गंभीर वैचारिकता का अचानक मौन हो जाना है।
डॉ. के.बी.एल. पाण्डेय
70, हाथीखाना दतिया (म.प्र.) पिन – 475661
kblpandey@yahoo.com
COMMENTS