जहरीला आदमी एक खूबसूरत युवती ने जहरीले साँपॊं के बीच रहकर विश्व रिकार्ड तोड्ने की ठानी. देश-विदेश से तरह-तरह के जहरीले साँप बुलवाये गये और...
जहरीला आदमी
एक खूबसूरत युवती ने जहरीले साँपॊं के बीच रहकर विश्व रिकार्ड तोड्ने की ठानी. देश-विदेश से तरह-तरह के जहरीले साँप बुलवाये गये और एक कांच का कमरा तैयार करवाया गया.
एक निश्चित दिन, उस काँच के कमरे में उन सभी जहरीले साँपों को छोड दिया गया और उस सुन्दर युवती ने प्रवेश किया. खलबली-सी मच गई थी साँपों के परिवार में. जहरीले साँपों के बीच रहकर वह तरह के करतब दिखलाती. कभी किसी को उठा कर गले से लपेट लेती तो कभी अपनी कमर में. .कभी एक साथ ढेरों सारे सर्पों को उठाकर अपने शरीर में जगह-जगह लपेट लेती, तरह-तरह के करतब वह दिखलाती. उसके कारनामों को देखने के लिये पूरा गाँव उमड़ पड़ा था.
स्थानीय समाचार पत्रों में उसके सचित्र समाचार प्रकाशित हो रहे थे. टीवी वाले भी भला पीछे कहाँ रहने वाले थे. वे अपने चैनलों के माध्यम से उसका लाइव. प्रसारण कर रहे थे. अब पास- पड़ोस के लोगों के अलावा पड़ोसी जिले से भी लोग आने लगे थे .फ़लस्वरुप वहाँ बेहद भीड़ जमा होने लगी थी. जिला कलेक्टर ने तथा पुलिस अधीक्षक ने उसकी पूरी सुरक्षा के व्यापक प्रबंध कर रखे थे. उस कांच के कक्ष के बाहर श्रध्दालु लोग पूजा-पाठ करने के लिये जुटने लगे थे. नारियल बेचने वाले,तथा फ़ूल बेचने वालों ने दुकानें खोल लिये थे. दर्शनार्थियों में कोई उसे असाधारण साहस की धनी, तो कोई काली माँ का अवतार,तो कोई दुर्गा का अवतार कह रहा था.
आख्रिर अड़तालीस घण्टे जहरीले सांपों के बीच रहकर उसने पुराना विश्व रिकार्ड तोड़ते हुये नया रिकार्ड बना ही डाला.
कमरे से बाहर निकलते ही उस बला की खूबसूरत युवती को भीड़ ने घेर लिया. हर कोई उसके गले मे फ़ूलमाला् डालने तो बेताब नजर आ रहा था ,विशेषकर युवातुर्क.
यह पहले से तय कर दिया गया था कि उसके बाहर आने के बाद उसका नागरिक अभिनन्दन किया जायेगा. एक बड़ा विशाल मंच तैयार कर लिया गया था .उसे ससम्मान जयकारे कि साथ मंच पर लाया गया. मंच पर अनेक गणमान्य नागरिकों के अलावा एक अधिकार संपन्न नेताजी भी आमंत्रित थे.
उसके मंच पर आते ही भाषणों का दौर शुरु हुआ. भाषण पर भाषण चलते रहे. भाषणों के बीच, उस नेता ने उसे अपने आवास पर भोजन के लिये आमंत्रित किया. पोर-पोर में ऎंठन और दर्द के चलते उसका मन वहाँ जाने के लिये तैयार नहीं हो रहा था, बावजूद इसके वह मना नहीं कर पायी.
देर रात तक भोजन का दौर चलता रहा. नींद के बोझ के चलते उसकी पलकें कब मूंद गई ,उसे पता ही नहीं चल पाया. अब वह पूरी तरह से नींद के आगोश में चली गई थी. गहरी नींद के बावजूद उसने महसूस किया कि कोई उसके शरीर को कोई बुरी तरह से रौंद रहा है. चेतना में आते ही पूरी बात उसकी समझ में आ गई थी .वह उठकर भाग जाना चाहती थी, लेकिन शरीर पर वस्त्र न होने की वजह से वह चाहकर भी भाग नहीं पायी थी और वहीं बिस्तर पर पडी-पडी आँसू बहाती रही थी और दरिंदा अपना खेल ,खेलता रहा था.
इस दुर्घटना के बाद से वह एकदम से गुमसुम -गुमसुम सी रहने लगी थी. बात-बात में खिलखिलाकर हंसने वाली वह शोख चंचल हसीन अब मुस्कुराना भी भूल चुकी थी और वह अब आदमियों के बीच जाने से भी घबराने लगी थी ,क्योंकि उसे पता चल चुका था कि वहाँ केवल सांपों के मुँह में जहर होता है, जबकि, जबकि आदमी पूरा की पूरा जहरीला.
तेल की चोरी
दीपावली की रात सेठ गोविन्ददास की आलीशान कोठी जगमगा रही थी. सेठजी इस समय देवी लक्ष्मीजी की पूजा में व्यस्त थे. चौकीदार मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी निभा रहा था. तभी एक १२-१४ साल का लड़का दबे पांव आया और एक पात्र में दियों में से तेल निकालने लगा. चौकीदार के पैनी निगाहों से वह बच नहीं पाया. लड़के को ललकारते हुये उस चौकीदार ने उसे पकड़ने के लिये दौड़ लगा दी. अपने पीछे उसे आता देखकर लड़के ने भी दौड़ लगा दी. लेकिन पैर उलझ जाने से वह गिर पड़ा और और उसके हाथ का पात्र भी दूर जा गिरा.
अब वह चौकीदार की पकड़ में था. रौबदार कड़क आवाज में उसने लगभग डांटते हुये उस लड़के से तेल चुराये जाने का कारण जानना चाहा ,तो उस लड़के ने रोते हुये बतलाया" भैयाजी, माँ तीन दिन से बीमार पड़ी है. उसका बदन तवे जैसा तप रहा है. मैंने उसके लिये खिचड़ी बनायी और माँ को खाने को दिया तो उसने मुझसे कहा कि यदि खिचड़ी को थोड़े से तेल में छौंक देगा तो शायद उसे खाने में कुछ अच्छा लगेगा. घर में तेल की एक बूँद भी नहीं थी, तो मैंने सोचा कि यदि मैं दियों से थोड़ा तेल निकाल लूं तो काम बन जायेगा. इसी सोच के चलते मैंने तेल चुराने का मन बनाया था."
लड़के की बात सुनकर चौकीदार का कलेजा भर आया. उसने अपनी जेब से पचास रुपये का नोट उस लड़के की तरफ़ बढाते हुये कहा" ले ये कुछ पैसे हैं. किसी किराने की दुकान से खाने का मीठा तेल खरीद लेना और खिचड़ी फ़्राई कर अपनी माँ को खिला देना और बचे पैसों से दवा आदि खरीद लेना. जानते हो जिस तेल को चुराकर तुम भाग रहे थे,वह तेल करंजी का कड़वा तेल था. यदि तुम उस तेल से खिचड़ी फ़्राई करते तो उसको न तो तुम्हारी माँ खा पाती और न ही तुम".
इतना कह कर वह वापिस लौट पड़ा था. मुठ्ठी में नोट दबाये वह लड़का, तब तक वहीं खड़ा रहा था, जब तक कि चौकीदार उसकी आँखों के सामने से ओझल नहीं हो गया था.
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परिचय:
गोवर्धन यादव पिता स्व. श्री भिक्कुलाल
जन्म स्थान मुलताई( बैतूल)म.प्र.
शिक्षा स्नातक * तीन दशक पूर्व कविताओं के माध्यम से साहित्य जगत में प्रवेश, बाद कहानी लेखन * देश की स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, व्यंग्य,कविताएँ, लघुकथाएं तथा बाल-साहित्य पर रचनाओं का अनवरत प्रकाशन. * आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण. * करीब २५ साहित्यिक कृतियों पर समीक्षाएं प्रकाशित कृतियाँ * महुआ के वृक्ष ( कहानी संग्रह ) सतलुज प्रकाशन, पंचकुला(हरियाणा) * तीस बरस घाटी ( कहानी संग्रह) वैभव प्रकाशन रायपुर(छ.ग.) * अपना-अपना आसमान ( कहानी संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य पुरस्कृत कहानियाँ/कविताएं जूती,फ़ांस,जंगल,तीस बरस घाटी,नदी के डैश-डाट, दक्षिण भारत की सुरम्य यात्रा. सम्मान अनेकों साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित तृतीय अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन बैंकाक( थाईलैण्ड) में सम्मानित. विषेश उपलब्धियां १. औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग को सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित विषयों तथा गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग द्वारा निर्धारित नीति के बारे में सलाह देने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, उद्योग भवन नयी दिल्ली में “सदस्य” नामांकित
२. केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय( मानव संसाधन विकास मंत्रालय) नयी दिल्ली द्वारा कहानी संग्रह महुआ के वृक्ष तथा तीस बरस घाटी की खरीद की गई.
संप्रति *सेवा निवृत पोस्टमास्टर ( एच.एस.जी १.)
*अध्यक्ष म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति जिला इकाई छिन्दवाडा म.प्र.
संपर्क १०३, कावेरी नगर छिन्दवाडा(म.प्र.)४८०००१
समवेदन - हीन और शील दोनों ही हैं.
जवाब देंहटाएंdono hi laghukathaye behad achi thi or humare samajh mei ache or bure dono tarah ke logo ke vyaktitv ko darsha rahi thi
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder or hridiya vidarak laghukathao ke liye dhanywad
जवाब देंहटाएंआपको मेरी लघुकथाऎं पसंद आयीं.धन्यवाद.
हटाएंबहुत अच्छी रचनायें बधाई
जवाब देंहटाएंसामान्य.....घिसे पिटे...विषय पर..
जवाब देंहटाएं्रचनाएं आपको पसन्द आयीं. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंdo no laghu kathaye bahut achchi lagi/ekhindi kaviki ekpankti
जवाब देंहटाएंki yad aapki laghu katha yad ilagai***aie sarp tu shaharto gya
nahi phir kahan se sikha tune dhasana
rachanauttam hai