असग़र वजाहत का नाटक : जिस लाहौर नइ वेख्या , ओ जमया हि नइ पात्र सिकंदर मिर्ज़ा उम्र 55 साल हमीदा बेगम पत्नी, उम्र 45 साल तनवीर बेगम (तन...
असग़र वजाहत का नाटक :
जिस लाहौर नइ वेख्या, ओ जमया हि नइ
पात्र
सिकंदर मिर्ज़ा उम्र 55 साल
हमीदा बेगम पत्नी, उम्र 45 साल
तनवीर बेगम (तन्नो) छोटी लड़की उम्र 11-12 साल
जावेद सिकंदर मिर्ज़ा का जवान लड़का
उम्र 24-25 साल
रतन की मां उम्र 65-70 साल
पहलवान मोहल्ले का मुस्लिम लीगी नेता
मोहाजिर खलनायक, उम्र 23-25 साल
अनवर पहलवान का पंजाबी दोस्त,
उम्र 20-22 साल
रज़ा पहलवान का दोस्त, उम्र 20-22 साल
हिदायत हुसैन सिकंदर मिर्ज़ा का पड़ोसी
पुराना ज़मींदार, मोहाजिर, उम्र 50 साल
नासिर काज़मी सिकंदर मिर्ज़ा का पड़ोसी, उम्र 35-36 साल
(शायर) मोहाजिर
मौलवी इकरामनुद्दीन मस्जिद का मौलवी, उम्र 65-70 साल (पंजाबी)
अलीमनुद्दीन चायवाला-उम्र 40 साल (पंजाबी)
मुहम्मद शाह पहलवान का दोस्त
दृश्य : एक
(सिकंदर मिर्ज़ा, जावेद, हमीदा बेगम और तन्नो सामान उठाऐ मंच पर आते हैं। इधर-उधर देखते हैं। वे कस्टोडियन द्धारा एलाट हवेली में आ गए हैं। सबके चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता के चिह्न दिखाई पड़ते हैं। सिकंदर मिर्ज़ा, जावेद तथा दोनों महिलाएं हाथों में उठाए सामान को रख देती हैं)
हमीदा बेगम : (हवेली को देखकर) या खुदा शुक्र है तेरा। लाख-लाख शुक्र है।
सिकंदर मिर्ज़ा : कस्टोडियन आफ़ीसर ने ग़लत नहीं कहा था। पूरी हवेली है, हलेवी।
तन्नो : अब्बाजान कितने कमरे हैं इसमें?
सिकंदर मिर्ज़ा : बाईस।
बेगम : सहेन की हालत देखो... ऐसी वीरानी छाई है कि दिल डरता है।
सिकंदर मिर्ज़ा : जहां महीनों से कोई रह न रहा हो, वहां वीरानी न होगी तो क्या होगी।
बेगम : मैं तो सबसे पहले शुक्राने की दो वक्त नमाज़ पढूंगी... मैंने मन्नत मानी थी... उस नासपीटे कैम्स से तो छुट्टी मिली...
(हमीदा बेगम दरी बिछाती है और नमाज़ पढ़ने खड़ी हो जाती है।)
जावेद : अब्बाजान ये घर किसका है।
मिर्ज़ा : अब तो हमारा ही है बेटा जावेद।
जावेद : मतलब पहले किसका था?
मिर्ज़ा : बेटा इन बातों से हमें क्या मतलब... हम अपनी जो जायदाद लखनऊ में छोड़ आये हैं उसके एवज़ समझो ये हवेली मिली है।
तनवीर : हमारे घर से तो बहुत बड़ी है हवेली।
मिर्ज़ा : नहीं बेटे... हमारे घर की तो बात ही कुछ और थी। सहन में रात की रानी की बेल यहां कहां है? बरामदे कुशादा नहीं हैं। अगर बारिश में यहां पलंग बिछा दिये जाएं तो पायतायाने तो भीग ही जाएं।
तन्नो : लेकिन बना शानदार है।
जावेद : किसी हिंदू रईस का लगता है।
सिकंदर मिर्ज़ा : कोई कह रहा था कि किसी मशहूर जौहरी की हवेली है।
जावेद : कमरे खोलकर देखें अब्बा। हो सकता है कुछ सामान वग़रा मिल जाए।
सिकंदर मिर्ज़ा : ठीक है बेटा तुम देखो... मैं तो अब बैठता हूं... ये हवेली एलाट होने के बाद ऐसा लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो।
जावेद : पूरी हवेली देख लूं अब्बाजान!
तन्नो : भइया मैं भी चलूं तुम्हारे साथ।
सिकंदर मिर्ज़ा : नहीं तुम ज़रा बावरचीख़ाना देखो... भई अब होटल से गोश्त रोटी कहां तक आएगा... अगर सब कुछ हो तो माशाअल्लाह से हल्के-हल्के पराठे और अण्डे का खागीना तो तैयार हो ही सकता है... और बेटे जावेद ज़रा बिजली जला कर देखो... पानी का नल भी खोलकर देखो... भई जो-जो कमियां होंगी उन्हें दर्ज करके कस्टोडियन वालों को बताना पड़ेगा...
(हमीदा बेगम नमाज़ पढ़कर आ जाती हैं।)
बेगम : मेरा तो दिल... डरता है...
सिकंदर मिर्ज़ा : डरता है?
बेगम : पता नहीं किसकी चीज़ है... किन अरमानों से बनवायी होगी हवेली।
सिकंदर मिर्ज़ा : फुज़ूल बातें न कीजिए बेगम... हमारे पुस्तैनी घर में आज कोई शरणार्थी दनदनाता फिर रहा होगा... ये ज़माना ही कुछ ऐसा है... ज़्यादा शर्म हया और फ़िक्र हमें कहीं का न छोड़ेगी... अपना और आपका ख़्याल न भी करें तो जावेद मियां और तनवीर बेगम के लिए तो यहां पैर जमाने ही पड़ेंगे... शहरे लखनऊ छूटा तो शहरे लाहौर- दोनों में “लाम” तो मुश्तरिक है... दिल से सारे वहम निकाल फेंकिए और इस घर को अपना घर समझकर जा जाइए... बिस्मिल्लाह... आज रात मं इशां की नमाज़ के बाद तिलावते कु़रान पाक करूंगा...
(तन्नो दौड़ती हुई आती है। वह डरी हुई है। सांस फूल रही है।)
बेगम : क्या हुआ बेटी क्या हुआ।
तन्नो : इस हवेली में कोई है अम्मां!
सिकंदर मिर्ज़ा : कोई है? क्या मतलब।
तन्नो : मैं सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गई तो मैंने देखा...
सिकंदर मिर्ज़ा : क्या फूज़ूल बाते करती हो।
तन्नो : नहीं अब्बा सच।
बेगम : डर गयी है... मैं जाकर देखती हूं...
(हमीदा बेगम मंच के दाहिनी तरफ़ जाती हैं। वहां से उसकी आवाज़ आती है।)
बेगम : यहां तो कोई नहीं है... तुम ऊपर किधर गयी थीं।
तन्नो : उधर जो सीढ़ियां हैं उनसे...
(बेगम सीढ़ियों की तरफ़ जाती हैं।
तन्नो और मिर्ज़ा मंच के दाहिनी तरफ़ जात हैं। वहां लोहे की सलाखों का फाटक बंद है। तभी हमीदा बेगम के चीखने की आवाज़ आती है।)
हमीदा बेगम : अरे ये तो कोई... देखो कोई सीढ़ियां उतर रहा है।
(मिर्ज़ा तेज़ी से दाहिनी तरफ़ जाते हैं। तब तक सफ़ेद कपड़े पहले बुढ़िया उतरकर दरवाज़े के पास आकर खड़ी हो जाती है।)
सिकंदर मिर्ज़ा : आप कौन हैं?
रतन की मां : वाह जी वाह ये खूब रही, में काण हूं... तुसी दस्सो कौण हो जो बिना पुच्छे मेरे घर घुस आए...
सिकंदर मिर्ज़ा : घुस आए... घुस आना कैसा। मोहतरमा ये घर हमें कस्टोडियन वालों ने एलाट किया है।
तरन की मां : एलाट- एलाट मैं नई जाणदी... ये मेरा घर है...
सिकंदर मिर्ज़ा : ये कैसे हो सकता है।
रतन की मां : अरे किसी से भी पूछ ले... ये रतनलाल जौहरी की हवेली है... मैं उस दी मां वां।
मिर्ज़ा : रतनलाल जौहरी कहां है?
रतन की मां : फ़साद शुरू होण तो पहले किसी हिंदू ड्राइवर दी तलाश विच घरौं निकल्या सी... साडी गड्डी दा ड्राइवर मुसलमान सी ना, ओ लाहौर तो बाहर जाण नूं तैयार ही नई सी होन्दा... (रुआंसी आवाज़ में) तद दा गया रतन अज तक... (रोने लगती है)
सिकंदर मिर्ज़ा : (घबरा जाता है) देखिए जो कुछ हुआ हमें सख़्त अफ़सोस है... लेकिन आपको तो मालूम ही होगा कि अब पाकिस्तान बन चुका है... लाहौर पाकिस्तान में आया है... आप लोगों के लिए अब यहां कोई जगह नहीं है... आपको हम कैम्प पहुंचा आते हैं.. कैम्प वाले आपकेा हिंदुस्तान ले जाएंगे...
रतन की मां : मैं किदरी नई जाणां।
सिकंदर मिर्ज़ा : ये आप क्या कह रही हैं... मतलब ये के... ये मकान।
रतन की मां : ऐ मकान मेरा है।
सिकंदर मिर्ज़ा : देखिए... हमारे पास काग़ज़ात हैं।
रतन की मां : साड्डे कोल वी काग़ज़ात ने।
सिकंदर मिर्ज़ा : भई आप बात तो समझिए कि अब यहां पाकिस्तान में कोई हिंदू नहीं रह सकता...
रतन की मां : मैं तो इत्थे ही रवांगी... जैद त रतन नहीं आ जांदा...
सिकंदर मिर्ज़ा : रतन...
रतन की मां : हां, मेरा बेटा तनलाल जौहरी...
सिकंदर मिर्ज़ा : देखिए हम आपके जज़्बात की क़द्र करते हैं लेकिन हक़ीक़त ये है कि अब आपका लड़का रतनलाल कभी लौटकर वापस...
रतन की मां : क्यों तू क्या खुदा है... तो तन्नू सारी गल्लां पक्कियां पता होण?
हमीदा बेगम : बहन... सैकड़ों हज़ारों लोग मार डले गए... तबाह-बर्बाद हो गए...
रतन की मां : सैकड़ां हज़ारां बच भी तो गए।
सिकंदर मिर्ज़ा : देखिए मोहरतमा... सौ की सीधी बात ये कि आपको मकान ख़ाली करने पड़ेगा... ये हमें मिल चुका है... सरकारी तौर पर।
रतन की मां : मैं इत्थों नहीं निकलनांगी।
सिकंदर मिर्ज़ा : (गुस्से में) माफ़ कीजिएगा मोहरतमा... आप मेरी बुजु़र्ग हैं लेकिन अगर आप ज़िद पर क़ायम रहीं तो शायद...
रतन की मां : हां हां... मनूं मार के रावी विच रोड़ आओ... तद हवेली ते क़ब्ज़ा कर लेणां... मेरे जिन्दा रयन्दे ऐजा हो नहीं सकदा।
मिर्ज़ा : या खुदा ये क्या मुसीबत आ गयी।
बेगम : आजकल शराफ़त का ज़माना नहीं है... आप कस्टोडियन वालों को बुला लाइए तो... अभी...
रतन की मां : बेटा, तुम जाके जिसनूं मरजी बुला ले आ... जान तो ज्यादा से कुछ ले नई सकेगा... जान मैं त्वानूं देण नूं तैयार हों।
सिकंदर मिर्ज़ा : या खुदा मैं क्या करूं।
बेगम : अजी अभी आइए कस्टोडियन के आफ़िस.. हमें ऐसा मकान एलाट ही क्यों कर दिया जो खाली नहीं है।
मिर्ज़ा : (जावेद से) लाओ बेटा मेरी शेरवानी लाओ... तन्नो एक गिलास पानी पिला दो...
रतन की मां : टूटी च पाणी आ रया है... एक हफ़्ते ही तो सप्लाई ठीक कोई है.. बेटी, पानी टूटी चो लै लै।
मिर्ज़ा : (शेरवानी पहनते हुए) देखिए हम आपको समझाए देते हैं... पुलिस ने आप पर ज़्यादती की तो हमें भी तकलीफ़ होगी।
रतन की मां : बेटा, मेरे उत्ते जो कहेर पै चुकेया है... उस तो बड्डा कहेर होण कोइ पै नहीं सकदा... जवानमुंडा नई रिया... लक्खां दे जवाहरात लुट गए... सगे.संबंधी मारे गए...
बेगम : तो बुआ अब तो होश संभालो... हिन्दस्तान चला जाओ... अपने लोगों में रहना।
रतन की मां : ईश्वर दी दात मेरा पुत्तर ही नई रिया, तो होण मैं कित्थे हाणां है?
(मिर्ज़ा पानी पीते हैं और खड़े हो जाते हैं।)
मिर्ज़ा : ठीक है बेगम तो मैं चलता हूं।
जावेद : मैं भी चलूं आपके साथ।
मिर्ज़ा : नहीं, तुम यहीं घर पर रहो... हो सकता है इस बुढ़िया ने कुछ और लोगों को भी घर में छिपाया हो।
रतन की मां : रब दी सौं... मनूं छोड़ के इत्थे कोई नहीं है।
मिर्ज़ा : नहीं बेटे... तुम यहीं रुको...
(मिर्ज़ा चले जाते हैं।)
हमीदा बेगम : खुदा हाफ़िज़।
(हमीदा बेगम, जावेद और तन्नो मंच के दाहिनी तरफ़ से हट जाते हैं।)
मिर्ज़ा : खुदा हाफ़िज़।
बेगम : तन्नो... तुमने वाबरचीख़ाना देखा?
तन्नो : जी अम्मी जान।
बेगम : बर्तन तो अपने पास हैं ही... तुम जल्दी-जल्दी खाना पका लो... तुम्हारे अब्बा के लौटने तक तैयार हो जाए तो अच्छा है।
तन्नो : अम्मी जान बावरचीख़ाने में... लकड़ियां और कोयले नहीं हैं... खाना काहे पर पकेगा?
हमीदा बेगम : लकड़ियां और कोयले नहीं हैं?
तन्नो : एक लकड़ी नहीं हैं।
हमीदा : तो फिर खाना क्या खाक पक्केगा?
रतन की मां : बेटी, बरामदे दे खब्बे हाथ दी तरफ वाली छोटी कोठड़ी च लकड़ां परी पइयां ने... काड ले...
(दोनों मां (हमीदा) बेटी (तन्नो) एक दूसरे को हैरत और ख़ुशी से देखते हैं।)
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(क्रमशः अगले अंकों में जारी)
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