संगोष्ठी समाचार दिनांक 27-28 फरवरी 2012 को खालसा कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर के हिन्दी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य स...
संगोष्ठी समाचार
दिनांक 27-28 फरवरी 2012 को खालसा कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर के हिन्दी विभाग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य से ‘प्रवासी साहित्य और साहित्यकार‘ विषय पर द्वि-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि ब्रिटेन की प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ. उषा राजे सक्सेना और सम्मान्य अतिथि डॉ. मधु सन्धु पूर्व प्रो. एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर थी। संगोष्ठी में प्रवासी हिन्दी कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक के साथ साथ वाचकों ने मारिशस से अभिमन्यु अनन्त, यूरोप से निर्मल वर्मा, अमेरिका से उषा प्रियंवदा, सुषम बेदी, उमेश अग्निहोत्री, सुधा ओम ढींगरा, ब्रिटेन से तेजेन्द्र शर्मा, उषा राजे सक्सेना, , दिव्या माथुर, अबू ढाबी से कृष्ण बिहारी, डेनमार्क से अर्चना पेन्यूली पर अपने प्रपत्रों में विचार व्यक्त किए। उषा राजे सक्सेना ने अपने भाषण में प्रवासी हिन्दी साहित्य के इतिहास पर विचार करते हुए इसका तीन चरणों में विभाजन किया- प्रथम सन् 1930-50, द्वितीय 1950-90, तृतीय 1990-2010 तक । डॉ. मधु सन्धु ने अपने वक्तव्य में प्रवासी साहित्य का सामान्य परिचय, मुख्य चिन्ताएं और ‘वेयर डू आई विलांग‘ की दुविधा पर विचार रखे।
प्रसिद्ध विद्वान एवं आलोचक डॉ. ओम अवस्थी ने बीज भाषण में प्रवासी साहित्य के जन्म का संदर्भ लेते कहा कि मॉरीशस में भी हिन्दी में बहुत कार्य हुआ है क्योंकि प्रवासियों की 2-3 पीढ़ियां वहाँ बस और बन चुकी है। फिजी में फिजियन हिन्दी भाषा ने जन्म ले लिया है। कैरेबियन सूरीनाम आदि तक हिन्दी का विस्तृत फलक है। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. नीलम सराफ प्रो. एवं. अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय लोगों ने प्रवास में भी भारतीयता को जीवित रखा है। भारतीय विदेशों में रहकर भारत की महिमा के चित्रण का महत् कार्य कर रहे हैं। कॉलेज प्राचार्या डॉ. सुखबीर कौर माहल ने अतिथियों, विद्वानों एवं विभिन्न शिक्षण संस्थाओं से आये प्रतिभागियों का स्वागत किया। अपने स्वागत भाषण में प्राचार्या ने प्रवासी साहित्यकारों के संवेदनशील तन्तुओं जैसे - जड़ो से कटना, नई पीढ़ी का अन्तर्द्वन्द्व, दोनों संस्कृतियों का प्रभाव, नसलवाद, बेरोजगारी आदि समस्याओं पर दृष्टि डाली। खालसा कॉलेज गर्वेनिंग कौंसिल के माननीय सचिव सरदार राजिन्दर मोहन सिंह छीना जी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि विभिन्न देशों में प्रवास इतना बढ़ गया है कि प्रत्येक देश विभिन्न देशों के लोगों से मिल कर बन रहा है। अंग्रेजी बोलना हमारी विवशता है लेकिन निज भाषा हमारी अस्मिता की पहचान है।
प्रथम अकादमिक सत्र में डॉ. मधु सन्धु की अध्यक्षता में ब्रिटेन से आई डॉ. उषा राजे सक्सेना, जम्मू विश्वविद्यालय से डॉ. अंजू थापा, बी.बी.के. डी.ए.वी. कॉलेज फार विमेन अमृतसर से डॉ. शैली जग्गी, आर्य कॉलेज पठानकोट से डॉ. सुनीता डोगरा, गुरु नानक कॉलेज आफ एजुकेशन लुधियाना से मिस अनुराधा शर्मा ने अपने प्रपत्र पढ़े। डॉ. मधु संधु ने कहा कि लाखों की संख्या में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व भी करते हैं और उन देशों की आर्थिक राजनैतिक नीतियों को दशा और दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं। उन्होंने सर्वत्र मिनी भारत का निर्माण किया हुआ है। प्रवासी साहित्यकारों की देन अप्रतिम है।
द्वितीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ. सुधा जितेन्द्र ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में प्रवासियों के विस्थापन के दर्द को अपने शब्द दिये कि जड़ों से उखड़कर कहीं और जा कर बसना और जा कर हरे भरे हो जाना आसान नहीं। इस सत्र में डॉ. सुनीता शर्मा, डॉ. सुनील, ( हिन्दी विभाग, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय), डॉ. अनीता (एस. एस. एम. कॉलेज, दीनानगर), डॉ. विनोद कुमार (लायलपुर खालसा कॉलेज, जालन्धर) तथा डॉ. रिम्पल (माता गंगा कॉलेज, तरनतारन) ने अपने प्रपत्र पढ़े।
28 फरवरी, 2012 द्वितीय दिवस और संगोष्ठी की तृतीय अकादमिक सत्र की अध्यक्षता पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सत्यपाल सहगल ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रवासी साहित्य के केन्द्र में अमेरिका और यूरोपियन क्षेत्रों और उसमें भी ब्रिटेन को ही अधिक रखा गया है जब कि साहित्य कैरेबियन क्षेत्रों में पहले लिखा गया और यह साहित्य किसी दृष्टि से पीछे नहीं। इस सत्र में .बी.के. डी.ए.वी. कॉलेज फार विमेन, अमृतसर से डॉ. अनीता नरेन्द्र, हिन्दू कन्या महाविद्यालय, धारीवाल से डॉ. बौस्की, डी.ए.वी. कॉलेज, अमृतसर से डॉ. किरण खन्ना, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से सुश्री नवनीत कौर, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से सुश्री रजनी ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी के चतुर्थ एवं समापन सत्र में खालसा कॉलेज अॉफ एजुकेशन, अमृतसर से डॉ. इन्दु सुधीर और डॉ. सुरजीत कौर, रजनी शर्मा, डॉ. सपना शर्मा ने अपने शोध पत्र पढ़े।
संगोष्ठी के पाँचों सत्रों का मंच संचालन खालसा कॉलेज फॉर विमेन की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. चंचल बाला ने किया। उन्होंने संगोष्ठी में वक्तव्य देने वाले 30 विद्वानों की साहित्यिक प्रतिभा से श्रोताओं को परिचित कराया और उन्हें पुष्पगुच्छों से सम्मानित कराया। प्राचार्या डॉ. सुखबीर कौर माहल की कार्यक्रम में उपस्थिति आघान्त बनी रही। संगोष्ठी कॉलेज के बौद्धिक स्तर, कार्यविधि अनुशासन का सशक्त प्रमाण रही।
डॉ. चंचल बाला, ऐसोसिऐट प्रो. हिन्दी विभाग,खालसा कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर।
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