वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा का रेडियो नाटक / ध्वनि प्रहसन : मकान की थकान

SHARE:

रेडियो ध्‍वनि प्रहसन :- ‘‘ मकान की थकान ‘‘ - वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा ( पात्र परिचय - पति, पत्नी, मजदूर, कुम्‍हार, किराने वाला सेठ और नजूल क...

रेडियो ध्‍वनि प्रहसन :-

‘‘ मकान की थकान ‘‘

- वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा

( पात्र परिचय - पति, पत्नी, मजदूर, कुम्‍हार, किराने वाला सेठ और नजूल के अधिकारी, पड़ोसी एवं कर्मचारी 1,कर्मचारी 2)

पति :- बेगम......अरी.......बेगम....! सुनती हों।

पत्नी :-हाँ, हाँ, सुनती हूँ, अभी तो खूब सुनती हूँ आ रही हूँ (पास आती आवाज) लो आ गयी क्‍या है कहो।

पति :- देखती हो । कितना अच्‍छा कमरा बना है। और तुम हो कि दूर ही दूर रहती हो। आ,हा,(पंखे की आवाज) कैसी ठंडी हवा आ रही है।

पत्नी :-तुम्‍हें ठंडी हवा आ रही है । यहाँ पूछो क्‍या गुजर रही है? लपटें निकल रही हैं लपटें। कमरा क्‍या तुमने तो मेरी कवर ही बना रख दी है।

पति :- अरे भाग्‍यवान! ऐसे बुरे बुरे शब्‍द काहे को मुँह से बाहर निकालती हो। कवर खुदे तुम्‍हारे दुश्‍मनों की।

पत्नी :-दुश्‍मन तो मैं ही थी। जो मेरे सारे के सारे जेवर गिरवी रख दिये मकान बनवाने में। खुद को ठंडी हवा जो चाहिये थी।

पति :- तुमसे तो बात करना ही गुनाह है। बात करने में ही तुम्‍हें तो काँटे लगते हैं। अच्‍छा भला कमरा बनवा लिया। ये तो नहीं बैठ के हवा खाओ। लगीं सुबह ही सुबह टें टें करने।

पत्नी :-मेरा तो इस घर में बोलना ही मना है। ऐसा ही है तो मुँह बन्‍द कर दो। उठा कर क्‍यों नहीं ला देते मेरे गिरवी रखे जेवर। अच्‍छी भली बैठी पान खा रही थी, कि आ बैल मुझे मार।

पति :- हाँ, हाँ तुमको तो मैं बैल ही नजर आऊँगा। इधर पड़ोस वाले ठाकुर साहब ने नाक में दम कर रखी है। दीवार से दीवार लगा कर क्‍या खड़ी कर ली, ठकुराईन से सटकर खड़ा हो गया। कि आसमान ही सिर पर उठा लिया।

पत्नी :-आसमान तो तुम्‍हीं ने सिर पर उठाया था। घर में नहीं है दाने, अम्‍मां चलीं भुनाने।

पति :- अरे छोड़ो बेगम इन बातों को। कुछ प्‍यार मुहब्‍बत की बातें भी करोगी या लड़ती रहोगी। मेरा दिमाग तो पहले से ही थक गया है । कहीं ठाकुर से लड़ाई,कहीं किसी को देनदारी,किसी की मजदूरी किसी के किराने के पैसे, और तुम्‍हारे गिरवी रखे जेवर। सोच सोच कर दिमाग की नसें भन्‍ना गयी। मेरा माथा तो छूकर देखो कितना गरम है।

पत्नी :-(घबराकर) हाय राम कैसा तप रहा है ? तुम्‍हारा माथा, लगता है बुखार है।

पति :-अरे बुखार मुखार कुछ नहीं है। बस मरने वाला ही समझो वो आने वाले है।

पत्नी :-कौन आने वाले हैं ? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो ? साफ साफ कहो। (बाहर से पुकारने की आवाज)

मजदूर :- बाबूजी! ........ ओ .......बाबूजी, अरे बाबूजी हैं क्‍या अन्‍दर।

पति :-(फुसफुसाते हुये) आ गया कम्‍बख्‍त, सवेरे सवेरे, अब कहाँ जाऊँ ? तुम्‍हीं कुछ करो न,जा कर कह दो, बाहर गये हैं दौरे पर, घर में नहीं है।

मजदूर :- अरे कोई सुनता है कि नहीं (दरवाजा थपथपाने की आवाज)

पत्नी :- मैं नहीं जाती सवेरे सवेरे झूँठ बोलने, कौन अपना धर्म भ्रष्‍ट करे, तुम्‍हारा तो ये रोज रोज का चक्‍कर है, निवटा क्‍यों नहीं देते।

(दरवाजा और जोर से पीटने की आवाज)

मजदूर :- अरे बाबूजी! जरा बाहर तो निकलिये। सवेरा हो गया।

पति :- क्‍यों मेरी जान लेने पर तुली हो। मेरी इज्‍जत का नहीं तो कम से कम इन किवाड़ों का ख्‍याल तो करो बिल्‍कुल नये हैं। अभी इनके पैसे भी नहीं पहुँचे हैं। जाओ, जाओ जल्‍दी करो मेरी अच्‍छी बेगम।

पत्नी :-अच्‍छा देखती हूँ। तुम उस अलमारी के पीछे छुप जाओ, जाओ जल्‍दी करो।

(दरवाजा थपथपाने की आवाज)

मजदूर :- हद्‌द हो गयी शराफत की। इतनी देर से दरवाजा पीट रहा हूँ। कोई सुनता ही नही हैं।

पत्नी :-(चटखनी खोलने की आवाज के साथ) कौन है ? क्‍या बात है, क्‍यों चिल्‍ला रहे हो ? (किवाड़ खुलने की आवाज के साथ) अरे तुम हो, आओ, आओ, कैसे आये ? कहाँ काम कर रहे हो ? तुम्‍हारा हिसाब मिल गया कि कुछ और रह गया ?

मजदूर :- हिसाब मिल जाता तो क्‍यों अपना समय बर्बाद करता ? बहिन जी हद हो गयी आप ही बताओ हम गरीब कब तक चक्‍कर काटते रहेंगें। थोड़े से पैसों के लिये आप तो मकान में आराम कर रहे हो। और हमारी मजदूरी अभी तक नहीं मिल पायी, आज तो लेकर ही जायेंगें।

पत्नी :- हाँ, हाँ, जरूर लेकर ही जाना। क्‍यों नहीं, तुमने मजदूरी की है तो पैसे भी मिलेंगें। लेकिन...........

मजदूर :- लेकिन, वेकिन कुछ नहीं। आज कोई बहानेबाजी हम नहीं सहेंगें। आज तो हमारा हिसाब साफ होना ही चाहिये।

पत्नी :-हाँ, हाँ, हिसाब तो साफ हो ही जाऐगा। लेकिन हिसाब किताब का मुझे कुछ पता है नहीं। जैसे ही ये आयेंगें तुम्‍हारा हिसाब हो जायेगा, समझे।

मजदूर :- ठीक है, अभी तो मैं जा रहा हूँ, लेकिन अगली बार पैसे लेकर ही जाऊँगा।

पत्नी :-हाँ, हाँ, पैसे लेकर ही जाना।

(किवाड़ बन्‍द करने एवं चटखानी चढा़ने की आवाज)

पत्नी :-अब कब तक छिपे रहोगे, अलमारी के पीछे, बला टल गयी। अब बाहर निकल आओ, बड़े तीस मार खाँ बनते थे।

पति :- आह हा हा, पिद्‌दी से मजदूर को क्‍या टरका दिया, बड़ा किला जीत लिया।

पत्नी :- हुँह, आ गये न अपनी पर, अभी घुस गये थे अलमारी के पीछे।

पति :- देखो जी! जरा सोच समझ कर बोला करो, आखिर...... आखिर...... आखिर मैं तुम्‍हारा... तुम्‍हारा पति हूँ (बाहर से किसी के बुलाने की आवाज)

कुम्‍हार :- भाई साहब! .....अरे। भाई साहब है क्‍या ? कितना दिन चढ़ आया। अभी तक किवाड़ ही नहीं खुले।

पत्नी :- कहिये तो खोल दूँ किवाड़। मिल लीजिये......आखिर.....आखिर आप.....मेरे पति

हैं न। जाइये।

पति :- (फुसफुसाते हुये) धीरे बोल जरा भाग्‍यवान। ऐसे गम्‍भीर मौंकौं पर मजाक मत किया करो।

कुम्‍हार :- भाई साहब ।....अरे, भाई साहब। अभी तक सो रहे हो क्‍या ? बाहर तो निकलो।

पति :- अरे नखरे छोड़ो, चुपचाप टरका दो। जैसे मजदूर को टरकाया था। जाओ । जल्‍दी करो वरना वह किवाड़ तोड़कर ही दम लेगा।

पत्नी :-जा रहीं हूँ, लेकिन जाऊँ तो तब जब कि आप अपनी पूर्व स्‍थिति में आ जाये।

पति :-(फुसलाते हुये) पूर्व स्‍थिति, मतलब।

(दरवाजा खटखटाने की आवाज)

कुम्‍हार :-अरे भाई साहब ! दरवाजा खोलिये न। आप तो सुन ही नहीं रहे।

पत्नी :-पूर्व स्‍थिति यानि कि अलमारी के पीछे.........(चटखनी खुलने की आवाज)

पत्नी :-न सोते चैन, न जागते चैन, पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते हैं, सवेरे सवेरे, (किवाड़ ख्‍ुालने की आवाज) अरे भैया तुम हो, कैसे चले आये ?

कुम्‍हार :-अरे बहिन जी! कोई बिना काम के किसी के यहाँ जाता है भला। वही हमारा ईटों का पुराना हिसाब।

पत्नी :- ऐं! तुम्‍हारा हिसाब अभी तक नहीं निबटा। खैर, इतने दिन सब्र किया थोड़ा और करो। जैसे ही वे टूर से वापिस आयेंगें, तुम्‍हारा हिसाब........

कुम्‍हार :-टूर। फिर टूर पर चले गये। आखिर कौन से दिन रहते हैं वे ? जब देखो टूर पर। मकान बनाने से पहले तो कभी टूर पर जाते नहीं देखा न ही सुना। अब तो जब देखो तभी टूर पर। हमें टूर वूर से क्‍या लेना देना। हमें तो अपने हिसाब से काम है।

पत्नी :-हाँ भैया। वह तो हम भी चाहते हैं। लेकिन हिसाब करने वाला हो तभी या ऐसे ही।

कुम्‍हार :-अच्‍छा धन्‍धा किया। चार पैसे मिलना नहीं है और चालीस नकद पैसों का नुकसान।

पत्नी :-ठीक है, जैसे इतना सब्र किया थोड़ा और करो उनके लौटते ही हिसाब हो जायेगा।

कुम्‍हार :-ठीक है। अभी तो मैं जा रहा हूँ। लेकिन अगली बार मेरा हिसाब मिल जाये। वरना मैं भी अपने घर से टूर पर चलूँगा, और डेरा आपके दरवाजे पर डाल दूँगा। अब ज्‍यादा बर्दाश्‍त नहीं हो सकता। खूब टरका लिया।

(किवाड़ बन्‍द करने एवं चटखनी चढ़ाने की आवाज)

पत्नी :- (बौखलाते हुये) सब मुसीबतें मेरी जान को हैं। इस घर की मान मर्यादा तो रह ही नहीं गयी। दो पैसे के आदमी उल्‍टा सीधी कह जाते हैं। सब सुनना पड़ता है।

पति :- (लम्‍बी साँस खींचते हुये) चला गया। चलो अच्‍छा टला।

पत्नी :- टला नहीं। जल्‍दी से कोई इन्‍तजाम करो। ले दे के पीछा छुड़ाओ। बार बार के तकाजे मुझे बिल्‍कुल पसंद नहीं। हमारे मैके में कोई ऐसा आता तो.........

पति :- हाँ। तुम्‍हारे यहाँ तो गोली से उड़वा दिया जाता। न रहता बांस न बजती बंशी।

पत्नी :- अच्‍छा। फिर लगे बहकने। मैं कहे देती हूँ ये सब मुझे बिल्‍कुल पसंद नहीं। उधार रूपया लेकर मकान बनबाने की कौन सी तुक थी। शर्म हया तो रह ही नही गयी आप में।

पति :- आ...हा। तुम हो बड़ी लाजबंती हो।

(पुकारने की आवाज)

सेठ :- अरे, बड़े बाबू....... बड़े बाबूजी........

पति :- ओफ..ओ! ये सेठ बुरा आ गया। समझता है यही एक साहूकार है।

पत्नी :- (चिढ़ाकर) नहीं साहूकार तो तुम हो। मैं कहे देती हूँ, उसके सामने मैं हरगिज नहीं जाऊँगी। बड़ी बुरी नजरों से घूरता है।

पति :- अरे घूरता ही तो है। उसमें तुम्‍हारा क्‍या...... ?

सेठ :- (दरवाजे पर थपथपाहट) (ऊँची आवाज में) अरे बाबूजी! क्‍या कर रहे हो भाई ?

पति :- (फुसफसाते हुये) जाओ। जाओ। कम्‍बख्‍त को फुटा दो किसी तरह। प्‍लीज, मेरी अच्‍छी बेगम।

पत्नी :- हे भगवान! किस मुसीबत में डाला है इस मकान ने। इससे तो बिना मकान के ही अच्‍छे थे। मकान की थकान तुम्‍हारे सिर से उतरकर मुझ पर भी चढ़ने लगी।

(चटखनी खोलने की आवाज एवं किवाड़ खोलने की आवाज)

पत्नी :- अरे सेठ जी आप ! आपने क्‍यों कष्‍ट किया ?

सेठ :- अरे नहीं। इसमें कष्‍ट की क्‍या बात है। इस बहाने आप लोगों के दर्शन करने का सौभाग्‍य मिल जाता है।

पत्नी :- वो तो हैं नहीं यहाँ। कहिये क्‍या काम था ?

सेठ :- अजी काम बाम क्‍या ? बस चले ही आये। आप बताइये मेरे लायक कोई सेवा हो तो।

पत्नी :- (थोड़ी तेज आवाज में) देखिये वो जब आयें तब आप आइये। अभी तो वे बाहर गये हैं।

सेठ :- देखिये। वो ऐसा था कि सामान के पैसे तो.......ठीक है आते रहेंगें। मगर वे जो नगदी हजार रूपये ले आये थे......हाँ वो इसी मकान को बनवाने के लिये थे न.... उसका ब्‍याज भी नहीं पहुँचा अभी तक।

पत्नी :- वो आ जायेंगे तो मैं कह दूँगी। आपके पैसे पहुँच जायेंगें।

सेठ :- ठीक है मैं जा रहा हूँ। लेकिन आप ध्‍यान से उनको जता देना।

(किवाड़ बन्‍द करने एवं चटखनी चढ़ाने की आवाज)

पत्नी :- कैसा भूखों की तरह देख रहा था। जैसे खा ही जायेगा। ये आदमी की जात भी बस औरत को देखकर ऐसे लार गिराती है........

पति :- क्‍या हो गया ? खा तो नहीं गया, तुम औरतें भी बस।

पत्नी :- देखो जी मैं कहे देती हूँ। अब की से कोई भी आये। मैं जाने से रही। तुम्‍हें जाना हो तो जाना, न जाना हो तो चिल्‍लाने देना।

पति :- हां हां । मत जाना । मैने चूड़ियाँ नहीं पहिन रखी हैं ।

पत्नी :- देखो जी मुझे गुस्‍सा मत दिलाओ । मैं कहे देती हूं - मैं हर्गिज किसी कीमत पर नहीं जाऊंगी ।

पति :- हां हां । तुम समझती हो तुम्‍हारे बिना मैं कुछ कर ही नहीं सकता हूं । मैं अभी बाहर के दरवाजे का ताला डाले देता हूं । सारी झँझटें खतम ।

पत्नी :- फिर नेक काम में देरी कैसी ? ये लीजिये ताला । ये रही चाबी । और वो रहा पीछे का दरवाजा ।

( पति के जाने की आवाज, दूर के दरवाजे के खुलने की आवाज, बाहर का ताला लगाने की आवाज । पिछवाड़े का दरवाजा खुलने की आवाज । )

पति :- ये लो चाबी । अब मैं नहाता हूं । तुम खाना बनाओ ।

( भीड़ जैसी आवाजें )

कर्मचारी 1 :- साहब ! यहां तो ताला लगा हुआ है । क्‍यों भई तुम इनके पड़ोसी हो ? कहां गये ये लोग ?

पड़ौसी :- पता नहीं भैया । अभी तो ताला नहीं लगा था । यहीं थे । तीन चार लोग मिलने भी आये थे ।

कर्मचारी 2 :- ये जो नया कमरा बना है । इन्‍हीं लोगों ने बनवाया है ?

पड़ौसी :- हां साहब ! इन्‍हीं ने - मेरी कई हाथ जमीन दाव ली ।

पत्नी :- (स्‍वतः) जरा देखूँ तो ये बाहर भीड़ कैसी है ? शोर किस बात का है ? दरवाजे पर तो ताला पड़ा है । खिड़की से झाँक कर देखती हूँ।

कर्मचारी 2 :- ठीक है । जब कोई है ही नहीं तो किससे कहें ? देखो, ये नोटिस इनके दरवाजे पर चिपका दो ।

कर्मचारी 1 :- जी साहब ! ये लो चिपका दिया ।

( भीड़ के दूर जाने की आवाज़ें )

पत्नी :- ( तेज कदमों की आवाज, घबराया स्‍वर, नल के पानी के गिरने की आवाज )

अजी सुनते हो ! नहाते ही रहोगे कि बाहर भी निकलोगे ।

पति :- चैन से नहाने भी नहीं दोगी । क्‍या मुसीबत आ गयी ?

पत्नी :- अब अंदर से ही पूछते रहोगे या बाहर भी आओगे ,

पति :- भागवान ! जरा कपड़े तो पहिन लेने दो ।

पत्नी :- हां हां पहिन लो । आराम से आओ ।

पति :- ( दरवाजा खुलने की आवाज ) हां अब कहो क्‍या बात है ?

पत्नी :- वाह! मान गयी मैं तुम्‍हारी अक्‍ल का लोहा । तीन चार लोग आये थे । ताला लगा देखकर थोड़ा बडबड़ाये । और चलते बने । लेकिन जाते जाते एक कागज चस्‍पा कर गये दरवाजे पर ।

पति :- क्‍या कहा ? कागज ! कैसा कागज ? क्‍या है उसमें? कौन लोग थे ?

पत्नी :- अब मुझे क्‍या पता । पिछले दरवाजे से जाओ और पढ़ आओ। वहीं चिपका है किवाड़ों पर।

(पति के भागने की आवाज)

पति :- (स्‍वतः पढ़ते हुये) बजरिये नोटिस आपको इत्‍तला दी जाती है । आपने मकान बिना सरकारी मंजूरी के बनाया है । अतः आपको सूचित किया जाता है कि चौबीस घन्‍टे के अंदर मकान स्‍वयं गिरा दें अन्‍यथा शासन की तरफ से आपका मकान गिरा दिया जायेगा । जिसके खर्चे की जिम्‍मेदारी आपकी होगी।

पत्नी :- हे भगवान। ये क्‍या लिखा है ? अब क्‍या होगा।

पति :- तुम जो करवाओ वो थोड़ा है। मैं नहीं जाऊँगी अब। और मत जाओ । देख लिया, पढ़ लिया नोटिस।

पत्नी :- हाय अब क्‍या होगा। अभी तो पुराना ही चुकता नहीं हुआ।

पति :- अभी इस मकान की थकान तो मिटी नहीं। अब लगाओ कचहरी के चक्‍कर।

-----ःःःःःः :----

वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा

रिछरा फाटक दतिया म�प्र�

पिन- 475-661

vkudhra3@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. बेनामी9:10 pm

    bahut badiya

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी3:39 pm

    wah bahut achha likh diya aur phir kab milo g

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी3:44 pm

    वाह बहुत अच्छा लिख दिया और फिर कब मिलो जी रवि जी

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा का रेडियो नाटक / ध्वनि प्रहसन : मकान की थकान
वीरेन्‍द्र कुमार कुढ़रा का रेडियो नाटक / ध्वनि प्रहसन : मकान की थकान
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/04/blog-post_13.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/04/blog-post_13.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content