‘‘ खुशहाल नारी , समृद्ध देश। यह हो जन जन का सन्देश ॥ ‘‘ विकास के परिप्रेक्ष्य में राजस्थान को महिलाओं के निम्न स्तर, पुरूष प्रधान स...
‘‘खुशहाल नारी, समृद्ध देश। यह हो जन जन का सन्देश ॥‘‘
विकास के परिप्रेक्ष्य में राजस्थान को महिलाओं के निम्न स्तर, पुरूष प्रधान समाज, सामन्ती प्रथाओं एवं मूल्यों, जातीय आधार पर घटित सामाजिक ध्रुवीकरण अशिक्षा एवं अत्यधिक दरिद्रता के पर्याय के रूप में देखा जाता रहा है। सामन्तवादी परम्पराओं के कारण राजस्थान की गणना पिछड़े प्रदेशों में की जाती है। सामन्तवाद एंव जातिवाद ने महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। जब परिवार एवं समाज पिछडा हो तो उसका सर्वाधिक प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। महिला विकास की दृष्टि से राजस्थान एक पिछड़ा प्रदेश है। जहाँ समाज में बालिकाओं व महिलाओं को अनचाहा बोझ समझा जाता है। राजस्थान में महिलाओं की दयनीय स्थिति तथा उसके लिए उत्तरदायी कारणों के विश्लेषण से जो तथ्य मुख्य कारण के रूप में सामने आता है वह है लिंग भेद, अशिक्षा, परिवार नियोजन, अजागरूकता, रूढिवादिता, आदि उपरोक्त सभी प्रदेश की सामाजिक संरचना में एक स्वीकार्य तथ्य है, जो महिलाओं के विकास में एक चुनौती बनकर सामने खडा है।
अशिक्षा तथा रूढिवादिता के कारण राजस्थान राज्य में महिलाओं में परिवार नियोजन के प्रति अभिवृत्ति बहुत कम है। जिसके कारण गरीबी, स्वास्थ्य खराब जनसख्ंया वृद्धि, बच्चों में रोग व परिवार तथा महिलाओं का विकास पूर्ण रूप से नही हो पा रहा है।
परिवार नियोजन के लिए उपलब्ध साधनों के प्रति अभिवृत्ति न्यूनतम स्तर की है। वर्तमान में उपलब्ध गर्भनिरोधक साधनों के प्रति जानकारी न होना व उनके इस्तेमाल में आने वाले अनेक कारण, व पुत्र प्राप्ति की इच्छा भी महिलाओं के विकास को प्रभावित करते हैं।
जहाँ तक राजस्थान राज्य में महिलाओं की स्थिति का प्रश्न है, प्रदेश में महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय बनी हुई है। यद्यपि प्रदेश में वर्ष 1984 से महिला विकास कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया और इसके तहत महिलाओं के सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, आर्थिक, राजनैतिक उन्नयन की दृष्टि से अनेक योजनाएं एवं क्रार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद भी महिलाओं की स्थिति में कोई आपेक्षित सुधार नहीं आया है।
सर्वेक्षण के दौरान बालविवाह भी विकास के लिए कारण पाया गया । राजस्थान के सन्दर्भ में विवाह की औसत उम्र 15ण्4वर्ष है। राजस्थान का कोई भी जिला ऐसा नहीं है, जहाँ विवाह की औसत उम्र 18 वर्ष या इससे ऊपर हो। भीलवाडा और जोधपुर जिलों में औसत उम्र क्रमशः 11.7 वर्ष है। राजस्थान में 15 वर्ष तक 26.7 ः लडकियों की शादी, 17.3 ः लडकियों का गौना या पारिवारीक जीवन शुरू हो जाता है तथा 15․17 वर्ष के बीच 33․7 प्रतिशत लडकियों की शादी 43․3 प्रतिशत का गौना हो जाता है। अर्थात 18 वर्ष से पूर्व 60․4 प्रतिशत लडकियों की शादी तथा 61․1 प्रतिशत लडकियों का गौना हो जाता है। प्रदेश में अध्ययनरत लगभग 30 प्रतिशत बच्चों का विवाह हो जाता है। राजस्थान राज्य में प्रतिवर्ष आखातीज ;बसंत पचंमी द्ध जैसे अवसरों पर हजारों की संख्या में बाल विवाह होते हैं।
इतिहास साक्षी है की सदा ही दुर्बल पर ही अत्याचार हुए हैं महिलाओं के उत्थान में अनेक प्रकार की ऐसी बाधांए/चुनौतियाँ आती हैं जो उसके विकास के मार्ग को अवरुद्भ करती हैं
उपरोक्त लिखे सभी कारण महिलाओं के विकास को बाधित करते हैं व समस्याओं को उत्पन्न करते हैं। परिवार नियोजन को न अपनाना, अजागरूकता, अशिक्षा सभी ऐसी बाधायें हैं जो समाज व देश दोनों के लिए एक विकट रूप ले रही है। जिससे जनसख्या वृद्धि, मातृत्व मृत्युदर, शिशु मृत्युदर, महामारी, अन्य ऐसी बाधाएँ हैं जो महिला के विकास को कैसे भी नही होने दे रही है।
महिला विकास को महिला वर्ग पर पडने वाले वास्तविक दृश्य तथा अदृश्य प्रभावों, र्निधारक कारकों, उपलब्ध्यिों एंव सीमाओं के रूप में समझा जा सकता है। महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन, महिलाओं की स्वंय की स्थिति में सुधार एंव विकास हेतु चेतना जागृत होना, उनका स्वंय के जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण, साक्षरता एंव शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य, पोषण, रोजगार, शिक्षण - प्रशिक्षण, बाल विवाह के प्रति दृष्टिकोण, अभिमुखन एंव सहभागिता, राजनीति एंव आर्थिक क्षेत्रों में शोंषण के विरूद्ध आवाज उठाने की प्रवृति का बीजारोपण, जीवन के प्रत्येक प्र्रति क्षेत्र एंव पहलू के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास तथा जागरूकता के कारण समाज की अनेक विसंगत स्थितियों का विघटन आदी को महिला विकास के कतिपय प्रमुख मानक माना जा सकता है।
महिला विकास को महिला वर्ग की सामाजिक, मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक, एंव स्वास्थ्य स्थिति में गुणात्मक एंव परिणात्मक परिवर्तन होने चाहिए। परिवार नियोजन राजस्थान राज्य में पिछले कुछ वर्षों से अधिक अपनाया जा रहा है। लेकिन अधिकाशं जनता गर्भनिरोधकों के गलत प्रभाव के कारण गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
अधिकाशं पुरूष परिवार नियोजन की जिम्मेदारी स्त्रीयों पर छोड़ देते हैं। अशिक्षाख् रूढिवादिता, भ्रम, भय, अनभिज्ञता, गर्भनिरोधकों को इस्तेमाल करने का गलत तरीका आदी अनेक ऐसे कारक हैं जो की स्त्रियों के स्वास्थ्य व विकास को बाधित करते हैं।
जैसे-
1- संस्कृति / साहित्य
2- कुरीतियाँ /रुढियां
3- रुढिगत सोच / सामाजिक विभेद
4- कम आयु में विवाह
5- सामाजिक मान्यताएं
6- जनसंख्या वृद्धि
7- कुपोषण
8- महिला साक्षरता की निम्न दर
9- सार्वजनिक / राजनीतिक जीवन संबधी नकारात्मक अवधारणा
10- गरीबी - आर्थिक समस्या
11- स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता
12- सामाजिक पिछडापन एंव अशिक्षा
13- विकास योजनाएं/कार्यक्रम सामुदायिक आवश्यकताओं पर आधारित
14- शासकीय निष्क्रियता
15- राजनीतिक दलों द्वारा महिला मुद्वों की उपेक्षा
इस प्रकार महिला विकास समाज के विकास के का एक महत्वपूर्ण आयाम है। जब तक महिलाओं को उनका यथोचित स्थान प्रदान नहीं किया जाता तब तक समाज और महिलाओं का विकास सम्भव नहीं है। अतः महिला विकास के लिए समाज में एक व्यापक चेतना एवं जन आन्दोलन की आवश्यकता है जो जनमानस में स्त्री को मनुष्य के रूप में एक सम्पूर्ण दृष्टिकोण का विकास करे। शिक्षा समाज में परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम है और इरके लिए युवाओं, स्वैच्छिक समूहों एवं संगठनों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
शिल्पी चौहान ;शोधकत्री
वनस्थली विद्यापीठ
bahut achi hai isse family planning ke baare me kya attitude hai wo pata chalta hai.......
जवाब देंहटाएंmannu singh...banasthali university(raj)