मरूस्थली इलाकों में वर्षा आधारित खेती। वर्षा क्या वर्षों में कभी-कभी। बरानी खेती का अंजाम ये कि चार-पाँच साल अकाल तो, फिर कभी मेहरबानी हो...
मरूस्थली इलाकों में वर्षा आधारित खेती। वर्षा क्या वर्षों में कभी-कभी। बरानी खेती का अंजाम ये कि चार-पाँच साल अकाल तो, फिर कभी मेहरबानी हो इन्द्रदेव की तो वर्षा। पिछले चार-पांच वर्षों से यह क्रम बदला। इन्द्रदेव ने मरूस्थल पर अपना प्यार लगातार बरसा दिया। बरानी फसलें लगातार चार पांच साल से अच्छी हो रही है। बुजुर्गों को अपनी जिन्दगी में पहली बार लगातार जमाना देखने को मिला। ‘वाह रे तेरी लीला।'' चार-पाँच साल मोठ-बाजरी की फसल बेच कर कुछ पैसा इकट्ठा कर लिया है राजाराम ने।
राजाराम का सपना था कि वो अपने खेत पड़ौसी सांवरे की तरह एक दिन ट्यूबवैल खुदवा कर खेती करेगा। अब पैसा पास हो तो सपने पूरे करने की हिम्मत आ ही जाती है। राजाराम ने सोच लिया अब तो खेत में ट्यूबवैल की बोरिंग होकर ही रहेगी। पर पहली बाधा पिताजी को तैयार करना था। राजाराम ने अपना प्रस्ताव पिताजी के सामने रखा। जीवन के अस्सी बंसतों का अनुभव रखने वाले पिताजी ने मना कर दिया और कहा कि बेटा ‘हमारे पुरखे बरानी ख्ेाती करते आये हैं। इस धरती में पानी होता तो वो कुआं नहीं खोदते। यहाँ पानी पाताल तोड़कर आता है। पानी इतना ही इस धरती में है कि हम पी सके।' राजाराम कहाँ मानने वाला था उसने पड़ौसी सांवरे का हवाला देकर बोरिंग करने के फायदे बताता रहा और अंत में बूढ़ी और कमजोर हेाती ज़िन्दगी ने यह समझ लिया कि अब उसकी ना का असर होने वाला नहीं है। समझदारी ‘हाँ' करने में है। ना चाहते हुए भी पिताजी ने राजाराम को हाँ भर दी। पर ये समझाते हुए कि जितना पैसा हमारे पास है उससे कुआ नहीं खुदेगा। राजाराम पूरी तरह तैयार था। पैसा ब्याज पर देने वालों की कमी नहीं है। सो बस उसे इन्तज़ार था तो पिताजी की हाँ मिलने का। हाँ मिल गयी राजाराम के पँख लग गये। एक दिन में पैसे का इन्तज़ाम हो गया और दूसरे दिन धड़धड़ाती मशीनें राजाराम के खेत की जमीन पर घाव कर के एक के बाद एक पाईप जमीन में डालती जा रही थी। पाईपों का अन्दर जाना ही खर्चों को इंगित करता है। पर मीटर की दर से होने वाली खुदाई ने राजाराम की बचत के पैसे दस पाईप जमीन में समाकर खा चुके थे। जानकारों के मुताबिक अभी लगभग दस पाईप की और जरूरत थी। राजाराम के साहुकार पैसा दे रहे थे। तीसरे दिन पच्चीस पाईप जमीन में समा चुके थे। बोरिंग पूरी हो गयी। पास मन्दिर भी बन गया। जोड़ तोड़ जुगाड़ से बिजली का कनेक्शन भी हो गया। बटन दबाते ही पानी की मोटी धार, स्प्रिंकलरों की फुहारों में बदलकर खेतों में बरसात करने लगी।
मूंगफली की बुवाई का समय भी था। पर जेब में पैसा देखने को नहीं फिर साहुकार के पास और बीज, खाद सब चाहिए। खेती भी कब बिना पैसे होती है। पैसे का जुगाड़ बनाना था। पैसे का जुगाड़ हो गया। राजाराम अपना सभी दांव पर लगा चुका था। जमीन, मकान के कागज और पत्नी गहने साहूकारों की तिजोरी में उसकी गारण्टी दे रहे थे। राजाराम जी तोड़ मेहनत कर रहा था धरती सोना उगल रही थी। मौसम भी राजाराम के साथ। कुल मिला मूंगफली की अच्छी फसल हुई। राजाराम फूला नहीं समा रहा था। मण्डी जाकर उसने फसल को बेचा अच्छा दाम मिला। एक फसल में सारा कर्जा चुकता। साथ में शान से जीने के लिए मोटी रकम भी जेब में। राजाराम के हौसलों को पंख लग गये।
पिताजी के पास बैठकर राजाराम ने नोटों की गडि्डयों उनके हाथ में रख दी। धूंधली आंखों से उन्होंने नोटों को देखा और राजाराम को देकर कहा कि ‘देख राजा ये पैसे बैंक में रख दें। मुसीबत में काम आयेंगे।' राजाराम के मन में कुछ और ही था वो धीरे से बोला कि ‘पिताजी अभी पैसे बैंक में रखने का समय नहीं आया है। पैसे को पैसा खींचता है। मैं अभी ट्रैक्टर लूंगा।'' पिताजी को उसकी ये उड़ान अच्छी नहीं लग रही थी। पर उन्होंने इतना ही कहा जो करे सोच समझकर करना जोश में होश रखना जरूरी।'
बड़ी अजीब बात है, जोश में होश! या तो जोश ही होता है, या होश ही। खैर राजाराम जोश में था। बैंक से कर्जा लिया ट्रैक्टर ले लिया। बड़ा जमींदार कहलाने लगा। अपनी रोबीली मुच्छों को ऐंठ देकर जब ट्रेक्टर में बैठता तो लगता जैसे फिल्म का हीरो हो। खैर समय चलता रहा। बेटियों का घर था। शादियां करनी थी। अब भई! बड़ा जमींदार तो रिश्ते ऊंचे घरों में होने थे। दो-तीन साल की फसलों ने सारी तस्वीर बदल दी थी। अब घर के आगे डीजल खाने वाला एक और हाथी बोलेरों गाड़ी के रूप में खड़ा था। वक्त की मेहरबानी हो तो हर किसी को पहलवानी आ ही जाती है।
राजाराम ने लड़कियों की शादियां हुई। इतनी शानदार की पूरा गांव क्या पूरी तहसील में लोग कहने लगे ‘वाह भई राजाराम'। मगर वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता। अकाल दर अकाल, रेगिस्तान अपनी असली नियति पर आ चुका था।
बोरिंग का पानी कम होने लगा। फसल का क्षेत्र घटने लगा। बोरिंग और करवानी पड़ी फिर उधार, फिर ब्याज। पर ये क्या इस बोरिंग से भी एक ही साल पानी। मौसम ने अपना मुंह फेर लिया मूंगफली पर भी बीमारी लग गई। फसल चौपट हुई, बाजार भी क्रूर हो गया। जितनी फसल हुई उसके भाव भी नीचे। ओने पौने दामों में बिकी फसल से खेती का खर्चा ही नहीं निकला जमा पूंजी धीरे-धीरे अन्त की ओर पहुँचने लगी। साहुकार मुँह मोड़ने लगे। चढ़ते सूरज को ही सब सलाम करते हैं,डूबती नांव से सब कूद कर भागने लगते हैं। बैंकों से लिये ऋण के लिये रिकवरी वाले तंग करने लगे। ट्रैक्टर, जीप घर के आगे खड़ी रखना मजबूरी। इन लोहे के हाथियों का खर्चा उठाना मुश्किल हो रहा था। मजबूरी ऐसी की बाहर निकाल नहीं सकते रिकवरी वाले चील की तरह झपट्टा मारने के लिए घात लगाये बैठे थे।
राजाराम अनमना रहने लगा। सारा दिन घर पर पड़ा रहता। पिताजी से हालत छिपी नहीं की उन्होंने पूछा तो कुछ बताया नहीं उम्र के कारण उन्हें आंखों से धुंधला दिखाई देता था। पर उनका अनुभव सारे वाक्ये को समझ चुका था। मजबूर थे खुद के पास जो था वो राजाराम को दे दिया। वो इतना ही था कि ऊँठ के मुँह में जीरा। सारी शानों शौकत, होशियारी मिट्टी में मिल चुकी थी। वो अपने बनाये जाल में फंस चुका था। साहुकार घर पर आकर रहन रखी जमीन को बेचने की धमकी दे रहे थे। वक्त की एक करवट से राजाराम अर्श से फर्श पर आ चुका था। उसके पास करने को कुछ नहीं था। बोरिंग और पाईप मांग रहा था। अब पाईप की तो बात दूर खाने का खर्चा चलाना मुश्किल था। बोरिंग से आने वाली पानी की पंकिल धार से घर के लिये अनाज तो उगाना ही था।
आज रात को बारह बजे से बिजली आनी थी। पाईप बदलने थे। राजाराम की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वो खाट पर लेटा आसमान में तारों को देख रहा था। पत्नी और बच्चे उसके मन की हलचल से बेखबर सो रहे थे। अचानक उसके दिमाग में कुछ आया वो उठा और खूंटी पर टंगी मजबूत रस्सी को उसने धीरे से निकाला। बिजली आने का समय हो रहा था। अंधेरा घना था। ठण्डी हवाएं नींदों को और गहरापन दे रही थी। राजाराम धीरे से उठकर हाथ में रस्सी लिये खेत के किनारे पर लगे पेड़ की ओर बढ़ रहा था। वहाँ पहुँचकर उसने पेड़ पर चढ़कर रस्सी को मजबूती से बाँधा। एक छोर पर फंदा बनाया जिसे वो गले का हार बनाने वाला था। राजाराम पेड़ पर बैठा उस फंदे को हाथ में लिये कुछ सोच रहा था कि अचानक खेत की बाड़ के पास कुत्तों के भौंकने की आवाज और तेज सड़सड़ाहट की आवाज सुनाई दी। अंधेरे के कारण साफ दिखायी नहीं दे रहाथा। जितना दिख रहा था उससे यह अनुमान लगा कि दो कुत्ते एक हिरण के पीछे भाग रहे हैं। हिरण पूरी ताकत से भाग रहा है। कुत्ते हिरण को पकड़ने वाले ही थे कि हिरण ने ऊँची बाड़ पर छलांग लगाकर उनके खेत में घुस गया। कुत्ते उसके पीछे छलांग लगाते उससे पहले राजाराम छलांग लगाकर घायल हिरण को पकड़ चुका था। राजाराम ने शोर किया और कुत्तों को पत्थर फैंक कर भगाया। बारह बज चुके थे। बिजली भी आ गयी। तेज आवाजें ओर शोरगुल सुनकर उसकी पत्नी, बच्चे और पिताजी भी वहाँ पहुँच चुके थे। उन्हें सब समझ आ गया था। उन्हें गुस्सा भी आ रहा था। पर वो सब पी गये उन्हें लग गया कि ये हिरण काल को टाल गया है। राजाराम हिरण पर हाथ फेरकर पुचकार रहा था। पिताजी कभी उसे और कभी पेड़ पर हिल रहे फंदे को देख रहे थे। उन्होंने जाकर फंदा निकाला और राजाराम से कहा राजया इस हिरण को पुचकारता रहेगा। इसे शहर ले जाकर डॉक्टर को दिखा नहीं तो ये मर जायेगा। राजाराम नजर नीची किये जड़वत बैठा पिताजी के हाथ में फंदे को देख रहा था। अचानक वो तेजी से उठा और हिरण को जीप में डालकर शहर की ओर ले गया। जीप तेज गति से चल रही थी। घायल अचेत हिरण को जीवन दिलवाना था। राजाराम जीप चलाते हुए असहाय घायल हिरण के पूरी ताकत लगाकर बाड़ कूदने का दृश्य बार-बार ध्यान में आ रहा था।
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