रामवृक्ष सिंह की रम्य रचना - वाह रे मेरे भारतीय मन !

SHARE:

रम्य रचना वाह रे मेरे भारतीय मन ! डॉ. रामवृक्ष सिंह हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में युवाओं की जीवन-शैली को विधि और निषेध...

रम्य रचना

वाह रे मेरे भारतीय मन !

डॉ. रामवृक्ष सिंह

हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में युवाओं की जीवन-शैली को विधि और निषेधों में बाँधने की बड़ी ज़बर्दस्त कवायद आजकल चल रही है। पीढ़ियों की वैचारिक टकराहट कोई आज की बात नहीं है। इस लिहाज से इसमें नया कुछ भी नहीं है। नयी है तो वह सरगर्मी, जो मीडिया के कारण चारों ओर दिखाई दे रही है और जिसकी तपिश प्रत्येक संवेदनशील उत्तर भारतीय अनुभव कर रहा है।

सदियों से समाज को सही रास्ते पर चलाने की फिक्र समाज की विभिन्न संस्थाओं ने की है। यदि वे ऐसा न करें तो समाज में अराजकता फैल जाए। लेकिन आधुनिक युगीन मनुष्य लोकतांत्रिक जीवन-मूल्यों और वैयक्तिक स्वतंत्रता के बारे में अधिक आग्रही है और इसी कारण कभी-कभी व्यक्ति और समाज में टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। इस टकराव से बचने के लिए या तो व्यक्ति समाज से पलायन कर जाता है या समाज के विधि-निषेधों को येन-केन प्रकारेण स्वीकार कर लेता है। यदि दुर्दैव से टकराव हो गया तो बड़े विध्वंसक नतीजे निकलते हैं।

स्त्री और पुरुष में सृष्टि के आरंभ से ही प्रेम-संबंध होते आए हैं, शारीरिक संबंध बनते आए हैं। सृष्टि का क्रम बनाए रखने के लिए यह जरूरी भी था। विवाह नामक संस्था के आविर्भाव ने इसके लिए एक व्यवस्था बनाई, जिसे समाज ने स्वीकार किया। क्योंकि सभी जोड़े एक ही रीति से संबंध नहीं बनाते थे, इसलिए हमारे शास्त्रों ने प्रायः दस प्रकार के विवाहों का प्रावधान किया, जिसमें पैशाच, राक्षस, गंधर्व आदि विवाह भी समाहित थे। अंग्रेजों के आगमन के बाद अपने यहाँ कोर्ट मैरिज भी प्रचलन में आई, जिसे आज पश्चिम का समाज सबसे उत्तम और विधि-सम्मत विवाह मानता है। कोर्ट मैरिज के दस्तावेजी प्रमाण के बिना कई देशों में स्त्री-पुरुष को पति-पत्नी स्वीकार ही नहीं किया जाता। लेकिन कालांतर में हिंदू समाज ने केवल ब्राह्मण अथवा दैव विवाह को ही अधिक उपयुक्त मानना आरंभ कर दिया और विवाह के बाकी प्रकारों को एक प्रकार से अस्वीकार ही कर दिया।

आज हरियाणा-पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विभिन्न खाप पंचायतें माता-पिता की मरजी से और समाज के सामने किए गए ब्राह्म विवाह से इतर विवाहों में आबद्ध होनेवाले युवाओं का विरोध करती हैं, और उन्हें समाज से बाहर निकालने अथवा अन्य सजाएं देने के बारे में तरह-तरह के आदेश जारी कर देती हैं, जो कई बार देश के सभ्य समाज के कानून और विधि-संहिताओं के विरुद्ध भी होते हैं। दिक्कत है कि अपना देश परस्पर विरोधी विचार-धाराओं और जीवन-पद्धतियों का एक साथ अनुकरण करता है। अपने देश में एक ओर जहाँ खाप पंचायतों के नेतृत्व में चलनेवाला बेहद परंपरावादी समाज है, वहीं दूसरी ओर ऐसा उदार समाज भी है, जो वृद्धावस्था में किसी कारणवश अकेले रह गए स्त्री-पुरुषों, विधवाओं और विधुरों के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की न केवल वकालत करता है, बल्कि खुले आम उनका सम्मेलन आयोजित करके ऐसे संबंध बनाने के लिए अनुकूल वातावरण भी निर्मित करता है। सन् 2005 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे संबंधों को पति-पत्नीवत संबंध स्वीकार किया। (स्रोत- रविवार 15 जुलाई 2012 को स्टार प्लस चैनल पर प्रसारित सत्यमेव जयते सीरियल)। हाल में दिवंगत हुए सिने स्टार राजेश खन्ना के बारे में भी इस तरह की बातें उजागर हुईं।

हमारे समाज के कुछ धड़ों को युवतियों और महिलाओं की वेश-भूषा पर ऐतराज है। बात-बात पर अपने देश के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं की दुहाई देने वाले लोगों से हमारा तो बस इतना ही निवेदन है कि अपने ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रंथों को ज़रा ध्यान से पढ़ें और अपने देश के सदियों पुराने मंदिरों में जो मूर्तियाँ और चित्रांकन दिख जाते हैं, उन्हें खूब ध्यान से देखें। फिर अपनी दुहाई और अपने दुरूह मन, दोनों के बीच एक सेतु बनाएं, दोनों के बीच थोड़ा ताल-मेल बिठाएं। उन्हें अपने कराहते मन का मरहम, अपने नुकीले-चुभीले सवालों का जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा।

आज भारत के महानगरों, छोटे शहरों और कस्बों में सैकड़ों की संख्या में ऐसी महिलाएं और युवतियाँ मिल जाएँगी, जो अपने हाथ-पैर और चेहरे पूरी तरह ढके रहती हैं। ऐसी लड़कियाँ हमारे कॉलेज के दिनों (सन 1980-85) में बहुत कम दिखती थीं। हमें अब भी याद है, उन दिनों जब हम हिन्दू कॉलेज से निकलकर, बाहर बस स्टैंड पर खड़े होकर बस का इंतजार कर रहे होते थे, तब कई बार सामने से, युनिवर्सिटी रोड पर फर्राटा भरती मोटर साइकिलों पर लड़कों के पीछे बैठी लड़कियाँ अपनी पहचान छिपाने के लिए ऐसा बाना धारण किए रहती थीं। आज ऐसे नज़ारे बहुत आम हो गए हैं, लेकिन केवल दिल्ली विश्वविद्यालय में नहीं, बल्कि लगभग पूरे भारत में। सवाल यह उठता है कि अपनी पहचान को पूरी तरह छिपाकर किया गया यह आचरण क्या हमारे समाज को स्वीकार्य है? घूँघट तो खूब होता है उनका, लेकिन क्या ऐसी युवतियाँ समाज को स्वीकार्य आचरण कर रही होती हैं? क्या इससे अच्छा यह नहीं रहता कि उनके मुख अनावृत रहते और वे लड़कों से सार्वजनिक तौर पर ऐसे दो जिस्म एक जान होकर फर्राटा न भरतीं? वैसे इन पंक्तियों के लेखक को इसमें भी कोई गुरेज नहीं है, क्योंकि वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थक है। बस हम तो समाज के उस तबके की दिलजोई के लिए यह बात कह रहे हैं, जो युवाओं को उनकी हद में देखना चाहता है।

सुपठ और विज्ञ पाठकों को शैलेष मटियानीजी की कहानी ‘फूलो का कुर्ता’ याद होगी, जिसमें बाल-विवाहिता बच्ची फूलो दूसरे बच्चों के साथ खेल रही होती है। तभी उसके ससुर आते दिखते हैं। फूलो के साथी बच्चे कहते हैं कि फूलो तेरे ससुरजी आ रहे हैं, तू पर्दा नहीं करेगी क्या? अबोध फूलो अपना कुर्ता उठाकर चेहरा ढाँप लेती है, लेकिन चूंकि उसने नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहने थे, इसलिए वह वस्तुतः निर्वसन हो जाती है। हम जब अपने युवा बच्चों को जबरन पर्दानशीं बना रहे होते हैं, तो क्या वास्तव में उनके यौनाचार को भी नियंत्रित कर रहे होते हैं? शायद नहीं। देश में यौन-चर्या पर हुए सर्वेक्षण बताते हैं कि ऐसे समाज जहाँ परंपरागत पोशाकें खूब प्रचलन में हैं और महिलाएं सीधे पल्ले की साड़ी पहनती हैं, वहाँ बेडरूम में यौन-चर्या अपने चरम पर होती है। गुजरात का स्थान इस मामले में अव्वल है। धार्मिकता भी यौन-चर्या को नियंत्रित नहीं करती। इस प्रपत्ति की पुष्टि के लिए हमें पुनः गुजरात जाना चाहिए, जहाँ सबसे अविवाहित युवतियों द्वारा सबसे अधिक गर्भपात नवरात्र के परवर्ती महीनों में कराए जाते हैं। इसलिए जो लोग युवाओं के तन ढँपवाकर और उनमें धार्मिकता के संस्कार लाकर उनकी यौन-चर्या को नियंत्रित करने का सपना देख रहे हैं, वे वस्तुतः किसी भारी मुगालते में हैं। ऊपर जिन चित्रों और मूर्ति-शिल्पों की बात हमने की है, वे सब के सब (शत-प्रतिशत) हिंदू मंदिरों में अंकित हैं।

एक बड़ी आफत है मोबाइल। पाठकों को बता दें कि इन पंक्तियों का लेखक सन 1982 से 87 तक टेलीफोन विभाग में काम कर चुका है। उस समय मोबाइल प्रचलन में नहीं आए थे और उसके बहुत बाद जब आए भी तो मोबाइल फोन का आकार काफी बड़ा था, उससे भी बड़े थे दाम। एक-एक सेट की कीमत पैंतीस –चालीस हजार रुपये होती थी। इसलिए अधिक प्रचलन तो लैंडलाइन फोनों का ही था।

खैर, तो जिन दिनों मोबाइल नहीं थे, उन दिनों भी फोन पर बड़ी रसीली बातें होती थीं, इसका श्रवणशील गवाह आपका यह खादिम है। कभी टेस्टिंग करते-करते पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पीसीओ नंबर जब हम बोर्ड पर ले लेते थे तो ऐसी-ऐसी बातें सुनने को मिलती थीं, कि कब्रदोज़ इन्सानों की भी तमन्नाएँ हरी हो उठें, फिर हम तो उस समय उन्नीस-बीस के ही थे। टेलीफोन विभाग के किसी डीई के सर्विस कनेक्शन से, माल रोड से करोल बाग कोई लड़का फोन मिलाता था और वे सारी बातें करता था, जो मुर्दे में जान डालने के लिए काफी होती हैं- पूरी यौन-चर्या, वह भी फोन पर। मोबाइल ने क्या गुनाह किया? उसने पहले से चले आते सारे किस्से को आम कर दिया। बस। पहले जो काम कबूतर करता था, हमारी नानी-दादी के किस्सों कहानियों में जो काम कुट्टनियाँ करती थीं, वही काम इस मोबाइल ने किया। लेकिन काम नया नहीं है, नया है माध्यम। काम तो पहले भी होता है, आज भी हो रहा है।

तो लब्बे-लुआब यह कि हमारी पंचायतों को युवाओं के मोबाइल इस्तेमाल करने पर भी ऐतराज है। ऐसा ही ऐतराज कभी मुगलों को अपनी शहजादियों की शादी के बाबत हुआ करता था। मरदुओं ने एक की भी शादी नहीं कराई। उनको यही ठसका था कि अपनी बेटियाँ ऐसे किस मरदूद को दें जो हमसे ऊँचे या हमारे बराबर के रुतबे वाला हो? कुँआरी मर गईं सब की सब। शुक्र है कि दीन नाम की एक शै थी, जिसके आसरे उन्होंने अपनी जिन्दगी गुजारी। तो पंचायतों को चाहिए कि युवाओं को दीन के रास्ते चलाएं। न मोबाइल, न आधुनिक कपड़े, न प्रेम। दिक्कत फिर भी वही रहेगी। युवा चाहे दीनी हों या दानिश, उनकी यौन तमन्नाओं का क्या इलाज करेंगे?

जिद है कि हम अपने बेटे-बेटियों को समाज के परंपरागत मानदंडों के हिसाब से चलाएँगे। कितने परिवारों के बच्चे समाज के बँधे-बँधाए ढर्रों पर चल रहे हैं और फिर भी तरक्की कर रहे हैं? या तरक्की कर रहे हैं फिर भी बँधे-बँधाए ढर्रे पर चल रहे हैं? बचपन में देखे हुए कुछ दृश्य दिमाग में तिर जाते हैं। याद आती हैं वे मरकही और खूँटा तुड़ाकर भागनेवाली भैंसे, जिनके गले में रस्सी बाँधकर खाट का पुराना गोड़ा या लकड़ी का मोटा टुकड़ा लटका दिया जाता था। भैंस भागती तो उसके अगले पाँवों में यह अवरोध अटक जाता। मजबूरन भैंस को यह बाधा अपनी गरदन में लटकाए-लटकाए किसी तरह खटर-पटर करते घास चरनी होती।

हम अपने बच्चों को उनकी स्वाभाविक चाल नहीं चलने देना चाहते। उनके पाँवों में बेड़ियाँ डालना चाहते हैं- विधि-निषेध की बेड़ियाँ। बच्चे तरक्की न करें तो न सही। हमारी परंपराएँ सलामत रहें। हमारा इकबाल बुलन्द रहे। हम इन परंपराओं का पालन करेंगे और हमारे बच्चे मध्य-युगीन मानदंडों के हिसाब से चलेंगे। अजीब गड़बड़झाला है। तरक्की करो तो उसके साथ मिलनेवाले पैकेज में बुराई पाओ। बुराई से बचो तो दौड़ में पीछे रह जाओ। मैनेजमेंट कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों में पढ़नेवाले बहुत-से लड़के-लड़कियों की खान-पान, रहन-सहन की आदतें कैसी हो जाती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। जीवन की रेस में आगे निकलना है तो इन बुराइयों की अनदेखी कर दो, वरना अपने नैतिक मूल्य लिए अपने कस्बे में पड़े रहो और परचून या पनवाड़ी की दुकान चलाए जाओ। आज का जीवन बड़ा विषम है। करें तो क्या करें!

वैसे बताते चलें कि स्थिति इतनी खराब भी नहीं है। आज ही अख़बार में पढ़ा कि इन खाप पंचायतों ने एक रुपये के दहेज पर शादी, लड़कियों की अनिवार्य शिक्षा आदि से संबंधित कुछ बहुत ही प्रगतिशील निर्णय भी किए हैं। शायद जीन्स-टॉप और मोबाइल पर रोक का निर्णय इन्हें इसलिए करना पड़ा कि लड़के-लड़कियों ने अपनी सीमा-रेखाओं को लाँघकर कहीं न कहीं मुक्त यौन-व्यवहार का रास्ता अपना लिया है। कुछ दिनों पहले एक मोबाइल कंपनी का होर्डिंग देखा, जिसमें एक लड़की एक साथ चार-चार लड़कों से बात करती है और यही मोबाइल कंपनी का यूएसपी है। यदि मोबाइल रखने पर लड़कों-लड़कियों की दशा ऐसी हो जाए तो निश्चय ही चिंता की बात है। लेकिन हम इसका उलटा सोचते हैं। बिटिया कॉलेज गई है, लौटने में देर हो रही है। हमने उसके मोबाइल पर कॉल किया- क्या बात है बेटा बहुत देर कर दी? बिटिया ने तुरन्त जवाब दिया- पापा, बस नहीं आई। बस स्टैंड पर खड़ी इंतजार कर रही हूँ। कुछ तसल्ली हुई? शुक्र है कि बिटिया के पास मोबाइल है। हम मोबाइल का इस्तेमाल अच्छे उद्देश्य के लिए क्यों नहीं करते? यह तो उस आग की तरह है जिसपर चाहें तो भोजन पका लें, और चाहें तो अपनी चिता जला लें। इतना विवेक तो हमारे पास होना चाहिए कि हम इसका क्या उपयोग करने वाले हैं।

चिंता तो होती है। बताते चलें कि इन पंक्तियों के लेखक के दो युवा बेटे हैं। और दोनों ही ब्याहने योग्य और सदाचारी, टो-टोटलर और सन्मार्गी। कभी-कभी चिन्ता होती है कि इन भोले-भंडारी बेटों के लिए मेरी बहू के बतौर सुशिक्षिता, अक्षत-यौवना, सदाचारिणी कन्याएं मिलेंगी क्या? यदि खाप पंचायतों के विधि-निषेध व्यवहारतः लागू हुए, मुक्त यौनाचार पर नियंत्रण हुआ तो जरूर मिलेंगी, वरना कोई भरोसा नहीं। इतना बड़ा समझौता हमारा मन तो नहीं करता। इतनी उदारता अभी हमारे समाज में नहीं आई है। और यही है हमारी पंचायतों की पीड़ा का उत्स। वाह रे मेरे मध्यवर्गीय (और मध्यकालीन) भारतीय मन! कितना पिछड़ा रह गया तू!

---0---

डॉ. आर.वी. सिंह

उप महाप्रबन्धक (हिन्दी)/ Dy. G.M. (Hindi)
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक/ Small Inds. Dev. Bank of India
प्रधान कार्यालय/Head Office
लखनऊ/Lucknow- 226 001

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. Fauji5:05 pm

    अधकचरा लेख. थोड़े और अध्ययन तथा शोध की आवश्यकता है.

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारणीय ।
    रोचकता बनाए रख कर आप ने कई गंभीर बातें कह दी हैं ।
    सार्थक प्रस्तुति । बधाई!

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह की रम्य रचना - वाह रे मेरे भारतीय मन !
रामवृक्ष सिंह की रम्य रचना - वाह रे मेरे भारतीय मन !
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-j-Oh_TF4mng/TlM5_36baJI/AAAAAAAAKho/we8lmwlDK1Y/s72-c/ramvriksh_singh%25255B2%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_8074.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_8074.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content