कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -31- राकेश भ्रमर की कहानी : छोटे शहर की लड़की

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कहानी छोटे शहर की लड़की -राकेश भ्रमर (ज्ञानेन्द्र टहनगुरिया की कलाकृति) ए क दिन अचानक पूजा उसके घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा क...

कहानी

छोटे शहर की लड़की

-राकेश भ्रमर

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(ज्ञानेन्द्र टहनगुरिया की कलाकृति)

क दिन अचानक पूजा उसके घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा को पहचानता था, परन्तु उसके साथ कभी कोई बातचीत नहीं होती थी. दोनों पड़ोसी थे, परन्तु वह बहुत संकोची था और पूजा अपने आपमें मस्त रहनेवाली लड़की... दोनों एक दूसरे को जानते-पहचानते हुए भी आपस में कभी बात नहीं करते थे. वह पूजा के घर के सामने शर्मीली लड़की की तरह सिर झुकाकर गुजर जाता. अक्सर उसने पूजा को अपने घर के बाहर अपनी सहेलियों के साथ बातें करते हुए देखा था. कई बार उसने महसूस किया कि वे सभी उसकी तरफ कुछ इशारा करके हंसती थीं. यह उसका भ्रम भी हो सकता था, परन्तु वह शरम और संकोच से तुरंत उनके सामने से हट जाता था और घर आकर अपनी तेज सांसों को इस तरह काबू में करने का प्रयास करता था, जैसे आवारा कुत्तों ने उसे मीलों दौड़ाया हो और वह अपनी जान बचाकर सिर पर पैर रखकर भागा हो. वह नहीं जानता था कि पूजा अपनी सहेलियों के साथ क्या बातें करती थी और क्या वह सब उसी के बारे में बातें करके हंसती थीं. वह पूजा की हंसी और मुसकराहट का अर्थ आज तक समझ नहीं पाया था.

आज जब पूजा उसके घर आई और उसको देखकर बड़ी नाजो-अदा से मुसकराई तो उसके दिल पर बिना बादल के बिजली गिर गई. वह छटपटाकर रह गया. लड़कियों को देखकर उसके पैर कांपने लगते थे और मुंह लाल हो जाता था. पूजा को अपने घर पर देखकर उसके दिल की धुकधुकी बढ़ गयी और उसके पास मुंह छिपाने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था. घर पर उसकी मां थी, उसकी छोटी बहन थी और रविवार होने के कारण उसके पिता भी घर पर ही थे. वह लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे? उसने मुड़कर अपने कमरे की तरफ भागने का प्रयास किया ही था कि पूजा की मधुर और धीमी आवाज उसके कानों में पड़ी, ‘‘भाग रहे हो? अपने ही घर में भागकर कहां छिपोगे?’’ पूजा पहली बार उसके साथ मुखातिब हुई थी.

वह ठिठककर खड़ा हो गया, सचमुच वह अपने घर से भागकर कहां जाएगा? उसने पूजा के दमकते-चमकते चेहरे को बिना मां के अनाथ बच्चे की तरह देखा और मन ही मन कहा, ‘तुम यहां क्या मेरी दुर्गति करने के लिए आई हो?’

पूजा ने पूछा, ‘‘आण्टीजी हैं, और तुम्हारी बहन कहां है?’’ वह इस तरह बात कर रही थी, जैसे विनोद उससे छोटा हो और उसका इस घर में बहुत ज्यादा आना-जाना था. वह बहुत बेतकल्लुफ दिखाई पड़ रही थी. पूजा का आत्मविश्वास और साहस देखकर उसे अपने आप से शर्म आने लगी. काश, वह भी इसकी तरह दबंग होता.

वह जानता था कि उसकी मां से पूजा गली में कभी-कभार बात कर लेती थी, परन्तु उसे बिलकुल पता नहीं था कि उसकी छोटी बहन दीप्ति से पूजा की कोई बोलचाल थी, या वह दोनों आपस में मिलती-जुलती थीं. दोनों की उम्र में लगभग चार-पांच साल का अन्तर था.

उसने पूजा की बात का जवाब न देते हुए ऊंचे स्वर में लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, दीप्ति, देखो तो तुमसे कोई मिलने आया है?’’ और वह फिर से जाने के लिए उद्यत हुआ.

पूजा खिलखिलाकर हंस पड़ी, ‘‘अरे, तुम बौखला क्यों रहे हो? क्या कोई कुत्ता तुम्हें काटने के लिए पीछे पड़ा है?’’

उसने मन ही मन कहा, ‘नहीं, एक बिल्ली है जो मेरा मुंह नोचने के लिए आई है. क्या कोई मुझे इस बिल्ली से बचाएगा?’ वह और जोर से चिल्लाया, ‘‘दीप्ति आती क्यों नहीं...?’’ उसकी मां किचन में थी, दीप्ति झटपट बाहर निकली और सामने का नजारा देखकर कुछ समझी और कुछ नहीं समझी. पूजा को वह भी पहचानती थी, परन्तु पहली बार उसे अपने घर में देखकर चौंकी, ‘‘दीदी, आप...यहां?’’ उसके मुंह से निकला.

‘‘हां, वैसे ही एक काम आ गया था.’’ वह दो कदम आगे बढ़कर बोली, ‘‘परन्तु तुम्हारा भाई तो बहुत झेंपू है, क्या यह लड़कियों के साथ ज्यादा उठता-बैठता है. उन्हीं के जैसे गुण और लक्षण इसमें आ गए हैं.’’ अपने कमरे में घुसते-घुसते उसने पूजा को दीप्ति से कहते सुना. उसका दिल बैठ गया, क्या वह इतना दब्बू है कि लड़कियां उसके बारे में ऐसे खयाल रखती हैं? उसने अपने दिल को संयत किया और मन ही मन बोला, ‘एक दिन दिखा दूंगा तुम्हें पूजा की बच्ची कि मैं कायर और डरपोक नहीं हूं. तुम मुझे स्त्रैण समझने की भूल न करना.’

कमरे में आए उसे थोड़ी देर ही हुई थी कि धमधमाते हुए दोनों लड़कियों ने उसके कमरे में प्रवेश किया. पूजा आगे थी और उसके पीछे-पीछे दीप्ति. दोनों पता नहीं आपस में क्या बातें करके आई थीं और अब उनका मकसद क्या था. वह अपने बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया.

‘‘क्या कर रहे हो... पढ़ाई? अभी से क्या पढ़ाई करोगे? अभी-अभी तो कक्षाएं शुरू हुई हैं. नया सत्र है. अच्छा, विनोद ये बताओ, तुम कौन सी कक्षा में गए हो?’’ पूजा ने निःसंकोच उसके पास आकर पूछा.

विनोद धम् से कुर्सी पर बैठ गया. उसके चेहरे पर जैसे किसी ने कई मन गोबर मल दिया हो. उसकी बोलती बंद थी और उसका दिल उसके काबू में नहीं था. वह दोनों उसे देख-देखकर मुसकराती रहीं.

‘‘बताओ न्! मुझे पढ़ाई में तुमसे मदद लेनी है.’’ वह उसके बिलकुल सिर के ऊपर आकर खड़ी हो गई और मटकती हुई बोली. जवान लड़की के बदन की एक अनोखी गंध उसके नथुनों में समा गई और वह बेहोश होने की कगार पर पहुंच गया. उसने बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और बोला, ‘‘बी.ए. में.’’

‘‘कौन सा साल है?’’ वह लगभग उससे सट गई थी. विनोद ने अपने शरीर को पीछे की तरफ धकेला. कुर्सी थोड़ा पीछे की तरफ सरक गई. उसके गले में सांस फंसकर रह गई. शब्द उसके गले में अटक गए और वह बता नहीं पाया कि वह बी.ए. के अन्तिम वर्ष में था. पूजा यह बात जानती थी. वह स्वयं बी.ए. के द्वितीय वर्ष में थी. वह जान-बूझकर विनोद को बनाने की कोशिश कर रही थी.

पूजा उसकी हालत पर मुसकराई, ‘‘तुम कांप क्यों रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं.’’ उसके गले से फंसी हुई सी सांस निकली. वह कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और बिना आदत के तनकर बोला, ‘‘तुम आराम से बैठकर बात करो. मेरे ऊपर क्यों चढ़ी आ रही हो.’’

‘ओह्! माफ करना, वीनू, मेरी आदत कुछ खराब है. मैं जब तक किसी से सटकर बात नहीं करती, मेरे मन में जैसे कुछ खाली-खाली सा लगता है. खैर, तुम चिन्ता मत करो. एक दिन तुमको भी मुझसे सटकर बात करने की आदत पड़ जाएगी.’’ और वह मुस्कराते हुए दीप्ति की तरफ देखने लगी. उसके चेहरे पर शर्मोहया के कोई चिह्न नहीं थे. बड़ी निर्लज्ज लड़की थी, उसने कुढ़कर सोचा.

‘‘अच्छा, क्या तुम मुझे पढ़ा दिया करोगे. दीप्ति ने मुझे बताया है कि तुम पढ़ने में बहुत अच्छे हो.’’ उसने बात बदली.

‘‘मेरे पास समय नहीं है.’’ उसने किसी तरह कहा.

‘‘तुम्हें मेरे घर आने की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं तुम्हारे पास आकर पढ़ लिया करूंगी. प्लीज, तुम मेरी थोड़ी सी मदद कर दोगे तो...’’ फिर उसने बात को अधूरा छोड़ दिया.

वह पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया. क्या वह पढ़ने में कमजोर थी. अगर हां, तो अभी तक उसे यह खयाल क्यों नहीं आया. कोई दूसरी बात होगी, उसने सोचा. उसने कहीं पढ़ा था कि अगर किसी लड़की का किसी लड़के के ऊपर दिल आ जाता है, तो वह बहाने बनाकर लड़के से मिलती है. क्या पूजा भी... उसके दिमाग में एक धमाका सा हुआ. उसका दिल और दिमाग दोनों बौखला गए थे. वह पूजा की किसी बात का ठीक से जवाब नहीं दे पाया, न उसकी किसी बात का अर्थ समझ में आया और फिर दोनों लड़कियां उसे विचारों के सागर में डूबता हुआ छोड़कर चली गई थीं.

उस दिन वह भले ही पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया था, परन्तु उसकी बातों का अर्थ समझने में उसे अधिक दिन नहीं लगे. अब पूजा नियमित रूप से उसके घर आती थी और वह समझ गया था कि पूजा के मन में क्या था और वह उससे क्या चाहती थी.

आमने-सामने पड़ने और रोज-रोज बातें करने से विनोद के मन का संकोच भी बहुत जल्द समाप्त हो गया. वह पूजा से खुलकर बातें करने लगा था, परन्तु अभी भी उसके बातें सीमित मात्रा में होती थीं और ऐसा लगता था जैसे पूजा उसके मुंह से बातें उगलवा रही हो.

फिर उनके मन भी मिल गए.

पूजा और विनोद के रास्ते अब मिलकर एक हो गए थे. अब वह लगभग एक ही समय पर घर से कालेज के लिए निकलते और थोड़ा आगे चलकर उनके रास्ते एक हो जाते. कालेज से वापस आते समय उनका रास्ता लंबा हो जाता और वह शहर के बाहर जानेवाली सड़क से होकर खेतों के बीच होते हुए अपने घर लौटते थे.

उन दोनों के घर शहर के बाहर नई बस्ती में थे, जिसके पीछे दूर-दूर तक खेत ही खेत थे. उन दिनों बरसात का मौसम था और खेतों में मकई की फसल लहलहा रही थी.

दूर-दूर जहां तक दृष्टि जाती थी, हरियाली का साम्राज्य था. खेतों में मकई के पौधे काफी ऊंचे और बड़े हो गए थे, आदमी के कद को छूते हुए... उनमें हरे-पीले भुट्टे लग गए थे और उन भुट्टों में दाने भी आ गए थे. पहले भुट्टों में छोटे-छोटे नवजात शिशु के दूध के दांत जैसे दाने आए थे. हाथ में दबाने से पच्च से उनका दूध बाहर आ जाता था, जैसे दूध पीते समय बच्चे के मुंह से दूध की धार बहने लगती है. धीरे-धीरे दाने थोड़ा बड़े होकर कड़े होते गए और उनमें पीलापन आता गया. जब भुट्टे पूरी तरह पक गए तो किसी नवयुवती के मोती जैसे चमकते दांतों की तरह चमकीले और सुडौल हो गए. गोरी के दांतों और भुट्टे के दानों में बस इतना फर्क होता है कि गोरी के दांत मोती की तरह सफेद होते हैं और भुट्टों के दाने उस गोरी की पियरी की तरह पीले, जिसकी अभी-अभी शादी होनेवाली हो.

दिन धुले-धुले से थे और प्रकृति की छटा देखकर ऐसा लगता था जैसे अभी-अभी किसी गोरी ने अपना घूंघट उठाया हो और उसने देखने वाले को अपनी सुन्दरता से भावविभोर कर दिया हो.

इसी तरह सावन के महीने में नवयुवतियां भी किसी के प्रेम रस में विभोर होकर बारिश की बूंदों में भीगती हुई मकई के भुट्टों की तरह हंसती-मुस्कराती हैं, खिलखिलाती हैं और अल्हड़ हवाओं के साथ अठखेलियां करती हुई, झूलों में पेंगें बढ़ाती हुई अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं.

पूजा पर भी सावन की छटा ने अपना रंग बिखेरा था, वह भी बारिश की बूंदों से भीगकर अपने में सिमटी थी और कजरी के गीतों ने उसके मन में भी मधुर संगीत की धुनों ने विभिन्न राग छेड़े थे. अपनी सखी-सहेलियों के साथ झूलों पर पेंगे बढ़ाते हुए, दबे होंठों से गीत गाते हुए उसने भी अपने प्रिय साजन को बुलाने की टेर लगाई थी.

उसकी टेर पर उसका साजन तो उससे मिलने नहीं आया था, परन्तु वह लोकलाज का भय त्यागकर स्वयं उससे मिलने के लिए उसके घर आ गई थी और आज दोनों साथ-साथ घूम रहे थे.

मौसम ने उन दोनों के जीवन में प्यार के बहुत सारे रंग बिखेर दिए थे. दोनों के बीच प्यार की कनी पनप गयी थी. पूजा पहले से ही उसे प्यार करती थी, और विनोद को पूजा के प्यार में रंगने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पूजा की चंचलता ने विनोद को चंद दिनों में ही उसका दीवाना बना दिया. हालांकि दोनों के स्वभाव में बड़ा अन्तर था. पूजा मुखर, वाचाल और चंचल थी तो विनोद मितभाषी, संकोची और लड़कियों से डरकर रहनेवाला लड़का... पूजा के साथ रहते हुए वह सदा चौकन्ना रहता था कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा था. पूजा लड़कों की तरह निर्भीक थी, तो विनोद लड़कियों की तरह लज्जाशील. वह एक कैदी की तरह पूजा के पीछे-पीछे चलता रहता.

खेतों के बीच से होते हुए वह कच्ची सड़क के किनारे किसी पेड़ की छाया के नीचे थोड़ी देर बैठकर सुस्ताते, प्यार भरी बातें करते और मकई के खेतों के किनारे से होते हुए रखवाले की नजर बचाकर कभी दो भुट्टे चुपके से तोड़ लेते तो कभी उनसे विनय-याचना करके मांग लेते थे. खेतों की रखवाली करनेवाली ज्यादातर लड़कियां होती थीं, ऐसी लड़कियां जो दिल की बहुत अच्छी होती थीं और जवानी के सपने देखने की उनकी उमर हो चुकी थी. उनकी आंखों में प्यारे कंवल खिलने लगे थे और वह सभी पूजा और विनोद को देखकर मंद मंद मुसकराती हुई अपने दुपट्टे का छोर दांतों तले दबा लेती थीं. वह न केवल अपने हाथों से पके भुट्टे तोड़कर उन्हें देतीं, बल्कि कभी-कभी मचान के नीचे जलनेवाली आग में उन्हें पका भी देती थीं, तब दोनों मचान के ऊपर बैठकर मकई के खेतों के ऊपर उड़नेवाले परिन्दों को देखा करते थे और उन्हें उड़ाने का बचकाना प्रयास करते, जिसे देखकर खेत की रखवाली करनेवाली लड़की खुलकर हंसती और उन्हें परिन्दों को उड़ाने का तरीका बताती.

प्यार भरे मौसम का एक साल बीत गया. उनके इम्तहान खत्म हो गए. अब वह दोनों घरों में कैद होकर रह गये थे, परन्तु पूजा अपने घर में रुकनेवाली कहां थी. उसने दीप्ति से दोस्ती गांठ ली थी और उससे मिलने के बहाने लगभग रोज ही विनोद के घर पर डेरा जमाकर बैठने लगी. विनोद के मां-बाप को इसमें कोई एतराज नहीं था, क्योंकि वह दीप्ति के पास आती थी और उसी के साथ विनोद के कमरे में जाती थी. दीप्ति भी उनके प्यार को समझ गयी थी और उसे इस बात से कोई एतराज नहीं था कि उन दोनों के बीच प्यार हो गया था. उसे पूजा बहुत अच्छी लगती थी, क्योंकि वह बहुत प्यारी-प्यारी बातें करती थी और दीप्ति को वह अपनी छोटी बहन की तरह प्यार और स्नेह देती थी.

परीक्षा परिणाम घोषित होते ही विनोद के घर में एक धमाका हो गया. उसके पिताजी ने उसे दिल्ली जाने का फरमान जारी कर दिया. उसके भविष्य का निर्णय करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘विनोद बी.ए. में तुम्हारे अंक काफी अच्छे हैं और मैं चाहता हूं कि दिल्ली जाकर तुम किसी कालेज में एम.ए. में एडमीशन ले लो और वहीं रहकर सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करो. तुम्हें आई.ए.एस. या आई.पी.एस. बनकर दिखाना है.’’ उसके पिता ने अपना अन्तिम निर्णय सुना दिया था.

मां ने भी उसके पिता के निर्णय का समर्थन किया, परन्तु पूजा को यह पसन्द नहीं आया.

‘‘तुम यहां रहकर भी तो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर सकते हो. यहां भी तो अच्छे कालेज हैं, विश्वविद्यालय है.’’ उसने तुनकते हुए विनोद से कहा.

‘‘देखो, पहली बात तो यह है कि मैं पिताजी की आज्ञा का उलंघन नहीं कर सकता और दूसरी बात यह है कि दिल्ली में अच्छे कोचिंग संस्थान हैं और वहां ऐसे कालेज हैं जहां विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ही तैयारी करने के लिए पढ़ते हैं. मेरी भी तमन्ना है कि मैं पिता की आकांक्षाओं को पूरा करूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी?’’ उसने एक छोटे बच्चे की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘रह लोगी, समय सब कुछ सिखा देता है. और मैं कोई सदा के लिए थोड़े जा रहा हूं. छुट्टियों में तो आता ही रहूंगा.’’

‘‘मुझे इस बात का डर नहीं है कि तुम सदा के लिए जा रहे हो. मुझे डर इस बात का है कि दिल्ली जबलपुर के मुकाबले एक बड़ा शहर है. वहां ज्यादा खुलापन है. वहां की लड़कियां अधिक आधुनिक हैं और वह लड़कों के साथ बहुत खुलकर मिलती-जुलती हैं. साथ-साथ पढ़ते हुए पता नहीं कौन सी परी तुम्हें अपना बना ले.’’ उसके स्वर में उदासी झलक रही थी.

‘‘हर लड़की तुम्हारी तरह तो नहीं होती.’’ उसने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां, सच, पर तुम अब इतने भोंदू और संकोची नहीं रहे. क्या पता, तुम्हें ही कोई लड़की पसंद आ जाए और तुम उसे अपने जाल में फंसा लो.’’ उसने अपनी आंखों को चौड़ा करते हुए कहा.

‘‘हां, यह बात तो है. भविष्य को किसने देखा है.’’ उसने चुटकी ली.

‘‘दो साल या तीन साल, पता नहीं कितना समय लगे तुम्हें नौकरी मिलने में? तब तक तुम पूरी तरह से बदल तो नहीं जाओगे?’’ उसके स्वर में निराशा का भाव आ गया था.

‘‘तुम अपने आप पर भरोसा रखो. शायद कुछ भी न बदले.’’ उसने उसे तसल्ली देने का प्रयास किया.

‘‘क्या पता सिविल सेवा की परीक्षा पास करते ही तुम्हारा मन बदल जाए. और क्या तुम्हारे मम्मी-पापा उस स्थिति में मेरे साथ तुम्हारी शादी के लिए तैयार होंगे?’’

‘‘यह तो वहीं बता सकते हैं?’’ उसने स्पष्ट किया. पूजा का मन डूब गया.

विनोद दिल्ली चला गया. समय का पहिया दूसरी तरफ घूम गया. पूजा को विनोद से बिछुड़ने पर बहुत दुख हुआ, परन्तु वह कर भी क्या सकती थी. उसने विनोद से वचन लिया था कि वह नियमित रूप से उसे फोन करता रहेगा. कुछ दिन तक उसने यह वायदा निभाया भी, परन्तु कुछ दिनों बाद उसके फोन करने में अन्तराल आता गया. इसका कारण उसने बताया था कि दिन में कालेज अटैण्ड करना, शाम को कोचिंग क्लास और फिर रात में पढ़ाई... ऐसे में उसे वक्त ही नहीं मिलता था कि वह पूजा से बात कर सके. यू.पी.एस.सी. की परीक्षा पास करना कोई आसान काम नहीं था. रात-दिन की मेहनत से ही इसमें उसे सफलता प्राप्त हो सकती थी. प्यार के चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटक सकता था.

पूजा ने कहा था, ‘‘प्यार मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ताकत देता है, उसे भटकाता नहीं

है.’’

‘‘मैं मानता हूं, परन्तु केवल प्यार के बारे में सोचकर किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है. इसके लिए रात-दिन आंखें फोड़नी पड़ती हैं.’’

‘‘तुम मुझसे दूर जाने के लिए बहाना तो नहीं बना रहे?’’ उसके मन में शंका के बादल उमड़ आए.

‘‘नहीं, परन्तु तुम मेरी तैयारी में बाधा न उत्पन्न करो, यह तुम्हारा मेरे ऊपर एहसान होगा.’’ उसने सक्त स्वर में कहा था. पूजा का दिल विनोद की बात से बैठने लगा था.

पूजा समझती थी कि उससे दूर जाने के बाद विनोद उसके दिल से भी दूर हो गया था. दिल्ली जाकर किसी और लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा, इसीलिए उसे उपेक्षित कर रहा था और उससे संबंध तोड़ने के लिए इस तरह के बहाने बना रहा था. ऐसी स्थिति में हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में इसी तरह की सोच रखती है. इसमें पूजा का कोई दोष नहीं था.

वह रोज दीप्ति के पास आती, उसके साथ विनोद की बातें करती और अपने मन को सांत्वना देने का प्रयास करती कि एक दिन जब विनोद लौटकर आएगा तो इतने दिनों की दूरियों का सारा हिसाब चुकता कर लेगी. उसे इतना प्यार करेगी कि वह दुबारा दिल्ली जाने का नाम नहीं लेगा.

‘‘क्या वह रोज घर में फोन करता है?’’ उसने दीप्ति से पूछा था.

‘‘नहीं, रोज नहीं करता. हमीं लोग फोन करके उसका हालचाल पूछ लेते हैं.’’ दीप्ति ने सहज भाव से बताया.

‘‘मुझे भी फोन नहीं करता. कहीं वह किसी और को प्यार तो नहीं करने लगा?’’

‘‘क्या पता?’’ दीप्ति ने मुंह बिचकाकर कहा.

और पूजा दीप्ति का मुंह ताकती रह गयी. दीप्ति को अभी किसी से प्यार नहीं हुआ था न, इसलिए वह पूजा के दिल का दर्द नहीं समझ पा रही थी.

दीप्ति पूजा के मन को समझती थी, परन्तु उसके हाथ में भी क्या था? वह नहीं जानती थी कि किस तरह से पूजा के मन को तसल्ली दे. इस बारे में उसकी भैया से कोई बात नहीं होती थी. उससे जब भी बात होती थी, मम्मी-पापा पास में होते थे. फिर भी एक दिन चोरी से उसने पूजा की विनोद से बात कराई थी. उसने बात तो की, परन्तु बाद में कह दिया कि दिन में फोन करके उसे डिस्टर्ब मत किया करो. पढ़ाई का हर्जा होता है और पूजा मन मसोहकर रह गई.

विनोद दीवाली में घर आया था, परन्तु पूजा से एकान्त में उसकी मुलाकात नहीं हो सकी. दीप्ति ने भैया से कहा था, ‘‘भैया, एक बार पूजा से मिल लो.’’

उसने दीप्ति को अर्थपूर्ण निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘मिल लूंगा. परन्तु तुम उसके लिए परेशान न हो.’’ और बात आई-गई हो गयी.

फिर वह होली में घर आया और उसी प्रकार पूजा से बिना मिले चला गया. पूजा उसके घर आती थी, परन्तु दोनों एकान्त में नहीं मिल पाते थे. विनोद कोई न कोई बहाना बनाकर उससे दूर रहता था. पूजा ने उसे घेरने की कोशिश की तो उसने निर्पेक्ष भाव से कहा, ‘‘पूजा, मैं जब गर्मी की छुट्टियों में आऊंगा तो तुमसे रोज मिला करूंगा. अभी मुझे अकेला छोड़ दो.’’

उसने मान लिया.

गर्मी की छुट्टियों में मिलते ही पूजा ने पहला सवाल किया, ‘‘तुम कुछ बदल गए हो?’’

‘‘नहीं तो...’’ उसने बात को टालने के अंदाज में कहा.

‘‘नहीं क्या... मैं देख नहीं रही क्या? तुम अब पहले जैसे भोले नहीं रहे. इधर मैं तुम्हारे प्यार में संजीदा हो गयी हूं. अपनी सारी चंचलता मैंने खो दी, परन्तु तुम दिल्ली जाकर मुखर ही नहीं चंचल भी हो गए हो. यह तुम्हारे हाव-भाव से ही दिख रहा है.’’

‘‘आदमी समय के अनुसार बदल जाता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.’’

‘‘मुझे आश्चर्य नहीं है, परन्तु आश्चर्य तब होगा, जब तुम मेरे प्यार को भुला दोगे. यह भुला दोगे कि मैंने ही तुम्हें प्यार करना सिखाया था. वरना तो कोई लड़की तुम्हारे ऊपर मरने वाली नहीं थी और अगर तुम कोशिश भी करते तो कोई लड़की तुम्हारे फंदे में नहीं फंसती.’’ उसने कुछ चिढ़कर कहा.

‘‘तुम छोटे शहर की लड़कियों की यही तो गंदी सोच है. इसके आगे तुम कुछ सोच ही नहीं सकती. सभी लड़कों को तुम बुद्धू और भोंदू समझती हो. तुम सोचती हो कि लड़कों से प्यार करके तुम उनके ऊपर एहसान कर रही हो, क्योंकि लड़के इस लायक ही नहीं होते कि वह किसी लड़की को प्यार कर सकें या कोई लड़की उनके ऊपर अपना प्यार लुटा सके. तुम्हें अपने रूप पर घमण्ड जो होता है.’’

पूजा विनोद की बात से आहत हो गयी, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती, परन्तु तुमसे सच कहती हूं. एक दिन इसी बात को लेकर मेरी सहेलियों से शर्त लगी थी.’’

‘‘क्या शर्त लगी थी?’’ उसने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मोहल्ले की सारी लड़कियां तुम्हें भोंदू और बुद्धू कहती थीं. वह तुम्हें लेकर मजाक करती रहती थीं कि यह मिट्टी का माधो कभी किसी लड़की को प्यार नहीं कर सकेगा. पहली बात तो यह कि कोई लड़की ही तुम्हें प्यार नहीं करेगी और किसी का मन तुम्हारे ऊपर आ गया तो तुम लड़की को अपने प्यार में बांध नहीं पाओगे.’’

‘‘तो फिर...’’

‘‘मैंने इस चैलेंज को स्वीकार किया था, क्योंकि मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करने लगी थी. मुझे तुम्हारी सादगी और भोलापन पसंद था. अन्य लड़कों की तरह तुममें कोई छिछोरापन नहीं था और तुम कुत्ते की तरह लड़कियों के पीछे नहीं भागते फिरते थे. इसीलिए मैंने तय किया कि मैं तुम्हारा प्यार पाकर रहूंगी. मैंने उनसे कहा था कि विनोद एक दिन मेरे प्यार में पागल हो जाएगा, परन्तु अब मुझे ऐसा नहीं लगता. जब तक तुम दिल्ली नहीं गये थे, मुझे लगता था कि तुम भी मुझसे प्यार करने लगे हो और सहेलियों से मैंने बड़े फख्र के साथ कहा था कि मैंने तुम्हारा प्यार हासिल कर लिया है. परन्तु लगता है कि मैं अपनी शर्त हार गयी हूं.’’ उसकी आवाज भीग गयी थी.

विनोद हतप्रभ रह गया. उसकी समझ में नहीं आया कि वह पूजा से क्या कहे, और उसे किस प्रकार सांत्वना दे और कैसे उसे बताए कि वह उसे प्यार करता था, क्योंकि इस बारे में उसे स्वयं पर संदेह था. जबलपुर में रहते हुए वह पूजा को डरते-डरते प्यार करता था, जैसे कोई पूजा से जबरदस्ती प्यार करने के लिए कह रहा था. दिल्ली में एक साल रहने के बाद वह आजाद पंछी की तरह हो गया था और पूजा की गिरफ्त से उसे छुटकारा मिल गया था.

वह एक किताबी कीड़ा था और किताबों में ही उसका मन लगता था. लड़कियां उसे लुभाती थीं और उन्हें पसन्द भी करता था. चोर निगाहों से उनकी सुन्दरता की प्रशसा भी करता था, परन्तु खुलकर किसी लड़की को पटाने का साहस उसके पास नहीं था. यही कारण था कि जबलपुर में भी पूजा ने ही पहल की थी, और चूंकि उसके जीवन में आनेवाली वह पहली लड़की थी, वह भी डरते-डरते उसे प्यार करने लगा था, परन्तु एक बार दूर जाते ही उसके मन से पूजा का प्यार फूटे गुब्बारे की तरह हवा हो गया था.

फिर भी उन दोनों का मिलना जारी रहा. गर्मी की छुट्टियां लंबी थी. उसकी एक साल की कोचिंग समाप्त हो गयी थी, परन्तु एम.ए. का फाइनल इयर था. यू.पी.एस.सी. की सिविल सर्विसेज का फार्म भी उसने भर रखा था और प्रारंभिक परीक्षा जुलाई में ही होनी थी. एम.ए. की क्लासेज भी जुलाई में प्रारंभ होनी थी, अतः उन दोनों के पास मिलने के लिए गर्मी के ढेर सारे लंबे-लंबे दिन थे और सोचने के लिए ढेर सारी छोटी-छोटी रातें. कहना बड़ा मुश्किल था कि विनोद के मन में क्या था, परन्तु पूजा को डर लगने लगा था.

बरसात आने में अभी देर थी, परन्तु उनके घरों के पीछे खेतों में किसानों ने मकई बो दी थी. उनके पौधे अब काफी बड़े हो गए थे. उनमें भुट्टे भी आने लगे थे, परन्तु उनके पकने में अभी देर थी.

खेतों के बीच की कच्ची सड़क पर घूमना पूजा को अच्छा लगता था. वह जिद् करके विनोद को उधर ले जाती थी.

खेतों के बीच का वह पेड़, जिसके नीचे बैठकर वह दोनों चोरी से भुट्टे तोड़कर खाते थे, उनके मिलन के प्रारंभिक दिनों का गवाह था. वह अपनी जगह पर निश्चल खड़ा था. वह लड़कियां भी जो उन्हें प्यार से भुट्टे भूनकर खाने के लिए देती थीं, अपने-अपने खेतों की रखवाली के लिए आने लगी थीं और उन दोनों को देखकर मंद-मंद मुसकराती थीं.

अभी भुट्टे पके नहीं थे और पूजा को लगने लगा था कि अभी उनके प्यार में भी परिपक्वता नहीं आई थी.

सुस्ताने के लिए वह पेड़ की छाया तले बैठे तो पूजा ने कहा-

‘‘तुम्हारे सपने बड़े हो गये हैं.’’

‘‘फिलहाल तो मेरा एक ही सपना है, आई.ए.एस. बनना और जब तक यह सपना पूरा नहीं हो जाता, मेरे लिए बाकी सभी सपने बहुत छोटे हैं.’’

‘‘सपने चाहे जितने बड़े हों, आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परन्तु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बनाकर रहना उसके लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गये?’’

‘‘नहीं, परन्तु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है.’’ उसने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं...’’

‘‘प्यार तो समय और परिस्थति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’

‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’

‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुमने डरकर मुझसे प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’

‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उनके प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’

‘‘शायद... मुझे संदेह है.’’ उसने पूजा की भावनाओं की परवाह न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रुआंसी हो गयी थी.

‘‘मुझे मेरा सपना पूरा होने दो. उसके बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सब कुछ समाप्त हो गया था.

छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थी. पूजा हताश और निराश हो गयी थी. उसने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उससे फोन पर भी बात नहीं करती थी और न उससे बाहर मिलने के लिए जिद् करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले उसने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं... मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर आ जाओ. मैं तुमसे खेतों के बीच में पेड़ के नीचे मिलता हूं.’’

‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है.’’ उसने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवन भर पछताओगी.’’

पता नहीं क्या बात है, सोचकर पूजा मिलने के लिए आ गयी. वह उदास थी और अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उसकी मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया.

विनोद ने बेझिझक उसके कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला- ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उसने अपना एक हाथ उसके सिर के पीछे रखकर उसका सिर अपने सीने पर दबा लिया और उसके बालों को सहलाते हुए कहा-

‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परन्तु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुमने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है. जीवन में सपने देखने के सिवा मैंने और कुछ नहीं किया. जब तुमने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परन्तु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं.’’ वह चुप होकर अपनी सांसों को संयत करने लगा.

पूजा ने अपना सिर उठाकर उसके चेहरे की तरफ देखा.

‘‘परन्तु इन छु्ट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वह सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी लड़की का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देखकर मेरा आत्मबल और विश्वास द्विगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पाकर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इसमें ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उससे अलग होकर उसकी तरफ तेज नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समन्दर ठाठें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था.

‘‘मैंने तुम्हें बहुत सताया है.’’ उसने भावुक होकर कहा.

उसका सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी थी.

‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गयी होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उसके सीने में छिपा लिया और उसकी पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुमने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं अवश्य तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं, और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं. तुम अपना सपना पूरा करके आओ, फिर हम दोनों घरवालों की सहमति से विवाह करके अपना घर बसा लेंगे.’’

विनोद ने भी उसे अपनी बाहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुमने ही एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’

‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में पूरा होता है, परन्तु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच... आज मैं इस बात को समझ गयी हूं. तुमने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’

‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गयी हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने... आई.ए.एस. बनने का और तुमसे शादी करने का... जल्द ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

और उनके मन में हजारों दीपक जलकर मुसकराने लगे. उनका प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

--

(राकेश भ्रमर)

ई-15, प्रगति विहार हास्टल,

लोधी रोड, नई दिल्ली-110003

मोबाइल-09968020930

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