पुस्तक--- मेघा लेखक-----बसन्त चौधरी मूल्य-----१०० रूपये प्रकाशक-------श्री लूनकरणदास गंगादेवी चौधरी साहित्यकला मन्दिर,नेपाल,२०१२ जिस प्रकार...
पुस्तक--- मेघा
लेखक-----बसन्त चौधरी
मूल्य-----१०० रूपये
प्रकाशक-------श्री लूनकरणदास गंगादेवी चौधरी साहित्यकला मन्दिर,नेपाल,२०१२
जिस प्रकार बंजर हो चुकी भूमि के लिए बारिश की बूँदें वरदान साबित होकर उसकी प्यास बुझाती हैं ठीक उसी प्रकार जीवन में हार मान चुके व निराश हो चुके लोगों के लिए ‘ कवि बसंत ’ कृत मेघा संकलन की कविताएँ आशावादी दृष्टिकोण पैदा करते हुए अतृप्त मन को तृप्त करती हैं l मेघा संकलन में मानव -जीवन की सच्चाई ,रिश्तों की अहमियत ,अकेलेपन ,संघर्ष ,परिवार व माता –पिता के प्रति गहन आस्था ,प्रेमिका के प्रति भावनात्मक प्रेम ,यादें ,आशाएं –निराशाएं सभी का मिलाजुला संगम है .मेघा सहज कलात्मक अभिव्यक्ति है .किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसका बचपन अनमोल होता है . बचपन की यादें ताउम्र हमारे साथ रहती हैं ठीक इसी प्रकार कवि ने कविता 'मासूम बचपन ' में इन्हीं बचपन के बीतों दिनों का याद करवाया है ----
“ मेरा वह मासूम बचपन
खो गया है
वक्त के लम्बे सुरंग में
चुपचाप कहीं सो गया है
आज जी करता है उसको
कहीं से भी ढ़ूँढ़ लाऊँ ”
बचपन के उपरान्त व्यक्ति यौवन के दहलीज चढ़ता है जहाँ उसे प्यार जैसी सुखद अनुभूति भी होती है परन्तु प्यार का सफर आसान नहीं होता .कवि अपनी कविता ‘तुम कहती हो दूरवीरानी' में कहता भी है---
“ सुना तो था
प्यार की पगड़ण्डियाँ
होती कठिन हैं
घिरी रहती हैं
कंटीली झड़ियों में ”
इसी कठिन सफर में प्रेमी की टीस और अकुलाहट देखने को भी मिलती है . ‘ कविता खाक बनाकर चले गए ’ इस बात का सशक्त प्रमाण है--
“ वह कहते थे हमें खुशी बनकर आए हो
अब खुद ही मुँह मोड़,खुशी छीन हमारी चले गए ”
सच्चाई तो यह भी है कि प्रेमी चाहे कितनी भी मुसीबतों का सामना करें परन्तु प्यार में ऐसी शक्ति होती है कि प्यार उस दर्द के लिए मरहम बन जाता है .कवि ने अपनी कविता ‘ सवालात रहने दो ’ में यह बात बखूबी स्पष्ट की है----
“ तुम्हारी यादों ने आतुर कर दिया
मैं अधूरा था
तुम्हारे दर्द ने दिल भर दिया “”
एक ऐसा ही अन्य उदाहरण कविता ‘अनसोया आसमां ‘ में भी दृष्टव्य है--
“ जिन्दगी झुलसाती है
तो चलो थोड़ा
प्यार का मरहम लगा लें
चुभन देती है यह दुनिया "
कवि बसन्त हर बात को जिन्दादिली से कहते हैं वे जहाँ अपनी कविताओं में थके - हारे व्यक्ति की झलक दिखाते हैं वही वे उस हताश हुए व्यक्ति को हौंसला देते हुए कहते हैं----
“ प्यार खोकर कर भी मुस्कुराए हम
जिन्दगी में ऐसे दिन भी बीते हैं "
----- कविता (शिकस्त )
कवि ने इन उपरोक्त पँक्तियों को पढ़कर ‘ जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं ’ स्मरण हो आती हैं .कवि अत्यंत भावुकता से अपनी कविताओं में बचपन ,प्यार ,परिवार ,रिश्तों ,प्रकृति के प्रति आस्था प्रकट करते हैं.आस्थावादी कवि बसंत ने परिवार को वाटिका और सदस्यों को फूलों की उपमा देकर कविता के सौंदर्य को और भी बढ़ा दिया है .कविता का शीर्षक ही प्रतीकात्मक है----
मेरा परिवार :मेरी वाटिका
मेरी तरह
इस वाटिका में
कई सुन्दर फूल हैं
हर फूल
वाटिका का हार है
यही हमारा एक
जीवंत परिवार है "
अब जब कवि ने परिवार रूपी वाटिका के प्रति श्रद्धावन्त होकर भाव प्रकट किये तो ऐसे में कवि का प्रेम ,आस्था कुछ यूँ अपने पिता के प्रति प्रकट हुई है---
“हम सभी शाख हैं
उस वृक्ष की
पिता की
जिसने हमको उठ खड़ा होना
सिखाया "
कवि के माता के प्रति भी भाव उमड़ आएँ----
“ हम हैं पत्तियां
उस लता की
अपनी माँ की
जिसने हमको
प्यार से पलना सिखाया "
ऐसे लगता है मानों इन कवितायों में कवि ने अपने जीवन की कहानी ही बयान कर दी है .चाहे वह कवि के आस –पास का वातावरण हो या पारिवारिक सदस्य .सभी के प्रति कवि भाव –विभोर हो कर गीतों की लड़ी पिरोता चला जाता है .कवि ने अपनी जीवन संगिनी के प्रति भी गुनगुनते हुए कहा है---
“ मेरे गुनगुनाते गीत का
पहला अन्तरा हो ?
या मेरे हर सपने की
साकार प्ररेणा हो तुम ?’’
------ कविता (क्या हो तुम ) ?
जब कोई भी व्यक्ति घर –परिवार की दहलीज से बाहर कदम रखता है तो उसका सामना समाज की सच्चाई से भी होता है जहाँ अक्सर अनेक मुखौटों वाले लोग,अजनबीपन ,संघर्ष ,पैसों की होड़ आदि भावनायों का सामना करना पड़ता है .कवि बसंत तत्कालीन समाज की कड़वी सच्चाई को बेबाक होकर प्रस्तुत करते हैं ----
“अब जमाने का यह दस्तूर हुआ
आदमी आदमी से दूर हुआ “
कविता (मजबूर हुआ )
आज की भागदौड़ की जिंदगी में व्यक्ति छोटे -छोटे सुख भी खोता जा रहा है .चूंकि आज के मानव का लक्ष्य अधिक से अधिक पैसा कमाना ही रह गया है . ‘ सामने दरख्त नहीं ’ कविता इसका स्पष्ट उदाहरण है ----
" पाने के लिए दौड़े थे
पर खो चुके हैं सब
रास्ता न मंजिल है
गर्क़ हो चुके हैं सब "
सच्चाई तो यह है कि युग के बदलाव साथ प्रगति की अन्धी दौड़ में भागते हुए व्यक्ति और रोबोट में कोई अंतर नहीं रहा.कवि अपनी कविता 'आदमी और रोबोट ' के माध्यम से व्यग्यं करते हुए कहना चाहता है कि आज के इस मशीनीकरण युग में मनुष्य का जीवन अपनी स्वाभाविकता खोकर यान्त्रिक ही हो गया है--
" यह खबर भी सच है शायद
आदमी तो खो गया है
अभी जो चल फिर रहा है
वह तो अब रोबोट ज्यादा हो गया है "
यहाँ तक कि इसका प्रभाव रिश्तों पर भी पड़ रहा है कभी-कभी व्यक्ति खुद को ही अस्तित्वहीन समझ बैठता है-----
" मैं कौन हूँ
यह प्रश्न
यूँ तो व्यर्थ है
फिर भी कभी-कभी
मन में उठता है
मैं कौन हूँ ?
-------कविता (कौन हूँ ? )
आज का इन्सान सही मायनों में समय के हाथों की कठपुतली भी बनता जा रहा है जो सरेआम समाज में हो रहे अत्याचारों का तमाशा देखकर विद्रोह नहीं कर पाता .कई बार तो 'खून की होली ' देखकर भी उसे खून के आँसू पीने पड़ते हैं क्योंकि वह परिस्थितियों के कारण मजबूर होता है-----
" खून की होली
यहाँ हर तरफ गोली है
चुप रहो,मर जाओगे
यह समय की बोली है
---------कविता (खून की होली )
कहते हैं कि एक रचनाकार बेबाक होकर अपनी बात कहता है जहाँ कोई दुराव- छिपाव नहीं होता . जिससे उसकी रचनाओं में समाज का सच समाहित हो जाता है. इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है . कवि बसंत भी जीवन की सच्चाई को पूरे हौंसले से कहते हैं ---
" जिन्दगी के सफे पर
तुझे
एक गजल की तरह
उतारता हूँ "
----- कविता ( गीत तेरे नाम )
जब तक कवि अपने मन की बात को कागज पर उतार नहीं देता तब तक वह बात उसके भीतर कचोटती रहती है ----
" लिखता हूं तो
सुकून महसूस करता हूँ
अँकुरित शब्दों को
जी भर उगने देता हूँ "
----- कविता ( मौन आवाज )
समाज की कड़वी सच्चाई को देखकर भी कवि आशावादी दृष्टिकोण अपनाए हुए है . कवि जीवन को सुखों- दुखों के दो पहलू बताते हुए कहता है---
" जिन्दगी में खुशियां है
तो गम भी, हजार हैं "
---- कविता ( जिन्दगी )
इस प्रकार कवि बसंत शुरू से लेकर अंत तक जीवन के प्रत्येक खट्टे- मीठे अनुभव का वर्णन करते हैं . मानों कविताओं में भावों की लड़ी पिरोई गई है. भावपक्ष की तरह कलापक्ष भी सुंदर बन पड़ा है . कवि की भाषा में ऐसा भाव है कि मानों पूरा बिम्ब ही आँखों के समक्ष उभर आता है. प्रकृति की सुंदर अठखेलियों का यह मनमोहक बिम्बात्मक भाषिक विधान दृष्टव्य है---
" हवा चंचल बह रही है
कर रही है वृक्ष से अठखेलियाँ
बिना किसी पँख के
उड़ रही है "
----- कविता ( हवा के पँख )
कहीं भी कवि अपनी बात को तोड़- मरोड़ कर नहीं कहता अपितु सीधी सरल भाषा में उनकी बात पाठक हृदय को इस प्रकार छू जाती है कि जैसे एक ठण्डी बयार का झौंका छूकर निकल जाता है ---
" रूपसी
तेरी यह मुस्कान है
अधखिली
एक धूप- सी "
-----कविता ( गीत तेरे नाम )
कवि अपनी भाषा में गूढ़ , पण्डिताऊ और किलष्ट शब्दों के स्थान पर सरल , सुबोध , आम बोलचाल एवं रोजमर्रा की भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे स्याही से लिखे अक्षर भी जीवंत हो जाते हैं . कवि बसंत जी के अनुभव सँसार की भाँति उनकी कविताओं के अन्तर्गत उनका भाषा -कोश भी समृद्ध ,उन्नत व गतिशील है .निश्चित रूप से यह काव्य-संग्रह अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों ही स्तरों पर प्रंशसनीय है
समीक्षक----डॉ.प्रीत अरोड़ा
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नाम- डॉ.प्रीत अरोड़ा
शिक्षा-एम.ए हिन्दी पँजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ से (यूनिवर्सिटी टापर ),पी.एचडी(हिन्दी )पँजाब विश्वविद्यालय चण्डीगढ़ से,बी.एड़ पँजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से .
कार्यक्षेत्र—शिक्षिका
अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन व अनुवाद । अनेक प्रतियोगिताओं में सफलता, आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों तथा साहित्य उत्सवों में भागीदारी, हिंदी से पंजाबी तथा पंजाबी से हिंदी अनुवाद। देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों में नियमित लेखन जिनमें प्रमुख हैं- हरिगंधा, पंचशील शोध समीक्षा,शोध-दिशा, अनुसन्धान, अनुभूति,गिरिराज,हिमप्रस्थ,गर्भनाल,मनमीत,समृद्ध सुखी परिवार,गुफ्तगू,हिन्दी-चेतना(कैनेडा)पुरवाई(ब्रिटेन),कर्मभूमि ,(अमरीका),हिमालिनी (नेपाल ),हिन्दी पुष्प (साउथ एशिया ) आलोचना,अक्षयगौरव,कथाचक्र,वटवृक्ष,सृजनगाथा,सुखनवर, वागर्थ,साक्षात्कार,पुष्पगंधा,नया ज्ञानोदय,लमही ,हंस,जनसत्ता अखबार ,हमारा मैट्रो,छतीसगढ़ अखबार,इतवारी अखबार ,नव-निकष, युवा संवाद,सद्भावना दर्पण पाखी,परिकल्पना,मुस्कान.युग्म, दैनिक भास्कर,चण्डीगढ़ भास्कर ,दैनिक जलते दीप,प्रवासी-दुनिया,हिमाचल गौरव उत्तराखंड,तंरग भारत,हस्तक्षेप.काम,मेरी सहेली,हम सब साथ-साथ,समृद्ध सुखी परिवार,मैट्रो उजाला ,छू लो आसमान आदि में लेख,कविताएँ,लघुकथाएं,कहानियाँ, संस्मरण,समीक्षा,साक्षात्कार व शोध-पत्र आदि। वेब पर मुखरित तस्वीरें नाम से चिट्ठे का सम्पादन.
अनेक किताबों में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान-अमर उजाला की ओर से सम्मानित
पुरस्कार-‘वुमेन आन टाप ’पत्रिका के ओर से कहानी पुरस्कृत (मई-2012 )
युवा लेखिका के लिए राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड (२०१२) से सम्मानित
“अनुभूति” नामक काव्य-संग्रह का सम्पादन (प्रकाशाधीन )
मनमीत पत्रिका का अतिथि सम्पादन
ईमेल---arorapreet366@gmail.com
ब्लॉग--http://merisadhna.blogspot.in/
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मेरा पता---
डॉ.प्रीत अरोड़ा
मकान नम्बर---405,गुरूद्वारे के पीछे
दशमेश नगर,खरड़
जिला--मोहाली
पँजाब
पिन नम्बर—140301
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