अखिल अज्ञानी की जय पत्नी मैय्या आरती तथा अन्य हास्य व्यंग्य कविताएँ

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1.''ताकत'' क्या है ताकत की परिभाषा, पैसा कुर्सी ढोंग तमाशा, या फिर कमजोरों का दोहन, गुंडागर्दी धमकी शोषण, क्यों भूले हम ज्ञा...

1.''ताकत''


क्या है ताकत की परिभाषा,
पैसा कुर्सी ढोंग तमाशा,
या फिर कमजोरों का दोहन,
गुंडागर्दी धमकी शोषण,

क्यों भूले हम ज्ञान की ताकत,
ऋषि मुनि की महा विरासत,
भूल गए भाषा की ताकत,
हिंदी पर है रोज सियासत,

हम भूले संस्कार की ताकत,
पश्चिम की अब करें हिमायत,
याद नहीं मेहनत की ताकत,
कामचोरी की पड़ गई आदत,

विस्मृत हुई अपनत्व की ताकत,
अपनों से अब रोज बगावत,
प्रेम और भाईचारे की ताकत,
अब तो हैं बस एक कहावत,

बुझी बुझी लौ देशप्रेम की,
देश पे मर मिटने की ताकत,
अमर शहीदों को तक भूले,
क्या केवल है यही शराफत,

मतलब की दुनिया में देखो,
अब है चापलूसी की ताकत,
भ्रष्टाचार के जाल बनाती,
अब मानव मकड़ी की ताकत,

नफरत की सड़कों पर चलते,
अहम् के हाथी की है ताकत,
मजबूरों की बोटी नोचें,
गिद्धों की तो रोज है दावत,

सही मायनों में ताकत तो,
मानव की सेवा होती है,
दान धरम विश्वास प्रेम से,
कर्मों की पूजा होती है

डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)




2.‎''गरीब की व्यथा''


मैं तो जुलम सितम का मारा,
मैं अपनी किस्मत से हारा,
जिसने चाह लूटा मुझको,
जब चाहा मुझको धिक्कारा,

मेरा अन्न तो तुम खा जाते,
मेरी जमीन भी तुम कब्जाते,
मेरे हक की सभी योजनाओं,
पे तुम सब फिर मौज उड़ाते,

मुझको राशन मिल न पाता,
मुझको बिजली मिल न पाती,
पानी साफ़ कभी न पीता,
कभी इलाज भी मिल न पाता,

कीड़े जैसा मैं जीता हूँ,
सिसक सिसक मरता रहता हूँ,
फिर भी तुमको दया न आती,
मैं मिन्नत करता रहता हूँ,

साहब लोगों तुम मालिक हो,
मैं तो हूँ आजीवन नौकर,
बस थोड़ा सा जी लेने दो,
मानूँगा एहसान उमर भर,

डॉ.अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)




3.सो रही है जनता,

सोया हुआ ये शहर है,
पर कैसे, बुत बने सब,
कौन सा ये पत्थर है,

सिक्कों कि खनक पर ,
ताकत कि हनक पर ,
झुक झुक कर गिरता हुआ,
इनका मुक्कद्दर है,

हर बात में कमी ढूँढता,
युवाओं का हुजूम है,
अनजाना सा भटकता हुआ,
निराशा का बवंडर है,

अपराधों की बाढ़ में बहता ,
जा रहा आदमी असहाय सा,
खौफ ही खौफ बेख़ौफ़ फैला हुआ,
भयानक ये मंजर है,

अब घायल सा लगता है हिन्दुस्तान,
इतना भ्रष्टाचार,इतने बेईमान,
किस मंजिल को पाना चाहते हैं हम,
कैसा ये सफ़र है??????

अखिल अज्ञानी (डॉ अखिल बंसल)



4.आज पंद्रह अगस्त है, आज पंद्रह अगस्त है

नहा धोकर, हुलिया बदलकर,
हर सफेदपोश मस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है।

कहने को ढेर सारी बातें हैं,
बनाने को ढेर सारे बहाने हैं,
बांटने को ढेर सारी मिठाइयाँ हैं
करने को ढेर सारी बुराइयां हैं,
जनता ठगी सी है, आम आदमी त्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

आज जोरदार भाषण होंगे,
भारत की उजली तस्वीर दिखाई जायेगी,
ऊँचे किले की प्राचीरों तक,
गरीब की आवाज तक न पहुँच पाएगी,
थोडा रोना बाढ़ पीड़ितों पर होगा,
कुछ आंसू नक्सलवाद पर बहाए जायेंगे,
मुद्दे उछलेंगे अफजल गुरु और कसाब के,
पैसे दो पैसे चीज़ों के दाम घटाए जायेंगे,
'' सिर्फ साल बदलते जा रहे रहे हैं, नहीं बदला ये वक़्त है''
आज पंद्रह अगस्त है

आज तिरंगे को फिर से सम्मान मिलेगा,
कुछ दिनों तक नियम से रहत का सामान मिलेगा,
साफ़ की जायेंगी चौराहों पर ख्सदी महापुरुषों की मूर्तियाँ,
कुछ सड़कों और पार्कों को एक नया नाम मिलेगा,
कुछ दिनों बाद हालात फिर से बदल जायेंगे,
वही भयावह मंजर फिर से नजर आयेंगे,
गुम हो जाएगा आदमी रोटी की जुगाड़ मैं,
क्या हम कभी ये तस्वीर बदल पायेंगे,
क्यों हर आदमी इस हाल का अभ्यस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

क्यों पैंसठ बरस में गाँव में बिजली नहीं आई,
कई लोगों ने दो वक़्त की रोटी नहीं खाई,
आज भी इलाज के अभाव में मर रहे हैं लोग,
आज भी आजादी का इंतज़ार कर रहे हैं लोग,
आज नशे में लिपटी भारत की तरुनाई है,
जातिवाद और ऊँच नीच की गहरी अंधी खाई है,
राजनीति के अखाड़े में बदल गया हिन्दुतान है,
आज सहमा सहमा सा लगता देखो हर इंसान है,
आज भारत का अस्तित्व सच में संकटग्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

आज किसान भूखा है, जनता लाचार है,
महंगाई ही महंगाई है, जीना दुश्वार है,
बची खुची जान अराजकता निगल रही है,
सरकारी खादिमों से पूछो तो कहते हैं जांच चल रही है,
जांच चल रही है, जांच चलती रहेगी,
उसकी आंच में सच्चाई युहीं जलती रहेगी,
अरे जहाँ पंगु ही हो गया हो आदमी का ईमान,
उसकी किस्मत तो बैसाखियों पर ही संभलती रहेगी,
लोकतंत्र है, प्रजातंत्र है,नारा जबरदस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

आज भी दिनदहाड़े अपहरण होते हैं,
आज भी सरेआम चीरहरण होते हैं,
आज चीख चीख कर थक गया है आदमी,
पर सत्ता के कुम्भकर्ण बेखबर सोते है,
आज देश में ऑनर किलिंग आम है,
रोज नए घोटालों से हर आदमी हैरान है,
नारी पर आज भी कुप्रथाओं का शासन है,
कभी पैर की जूती तो कभी कहते हैं की वो डायन है,
आतंकित है हर नारी, हर बालिका भयग्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

देश को साफ़ करना तो है, पर कौन डालेगा ओखली में सर,
हम चाहते हैं शहीद पैदा तो हों, पर पडोसी के घर,
पर ऐसा करने से अपना घर भी नहीं बच पायेगा,
फिर कोई कंपनी होगी, फिर कोई डलहौजी आएगा,
कसम खा लो की देश को बर्बाद नहीं होने देंगे,
अनैकतिकता की आग में इसे ख़ाक नहीं होने देंगे,
तभी देश सक्षम होगा, तभी कुश्हाली आएगी,
सपना पूरा होगा शहीदों का, सच्ची आज़ादी आएगी,
बड़ी कुर्बानियों से पाया है हमने, आज़ादी का ये तख़्त है,
आज पंद्रह अगस्त है

अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)




5.‎''जीवन''


ढेरों दुःख पाते रहते हैं,
फिर भी मुस्काते रहते हैं,
कभी अकेले कभी काफिले,
परिवर्तन आते रहते हैं,

सुख दुःख जीवन की छाया है,
यह काया भी एक माया है,
फूलों कांटो की है जोड़ी,
कोई नहीं समझ पाया है,

विकट तमों से क्या घबराना,
है उम्मीद का दीप जलाना,
कितनी गहरी रात हो लेकिन,
सुबह तो सूरज है उग आना,

फिर क्यूँ हम हिम्मत को हारें,
क्यूँ हम किस्मत को धिक्कारें,
पतझड़ सदा नहीं रहता है,
आती ही हैं नई बहारें,

सत्य मार्ग पर चलने वाले,
नजर लक्ष्य पर रखने वाले,
पा ही जाते हैं मंजिल को,
जो अपनी धुन में मतवाले,

जिसके पास है प्रभु की भक्ति,
दया प्रेम अध्यात्म की शक्ति,
जिसने वश में कामनाएं हों,
उसी की है बस सच्ची मुक्ति.............................. शुभ रात्रि, डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



6.साहब गाड़ी से उतरे, मंदिर के दर्शन के लिए,

बूढ़ी भिखारिन ने हाथ फैलाए थोड़े से धन के लिए,
मैडम ने तिरिस्कार से एक रुपया फेंक दिया,
मंदिर में पर्ची से पांच हज़ार का अभिषेक किया,

मूर्ती ने प्रसाद में से कुछ नहीं खाया,ना ही कुछ पिया,
ना ही पैसे रखे, ना वस्त्र पहने,ना ही कुछ ग्रहण किया,
हाँ वो बुढ़िया जरुर बाहर रह रह कर गिड़गिड़ाती रही,
आते जाते लोगों से बेरुखी और दुत्कार पाती रही

साहब पैसे प्रसाद भगवान को चढ़ा कर प्रसन्न हो गए,
उन्हें लगा इससे थोड़े उन के पाप के ढेर कम हो गए,
पर मूर्ख आदमी स्वार्थ में कभी ये समझ ही नहीं पाया,
कि ईश्वर ने ही गरीब और अमीर दोनों को है बनाया,

वो कहता है यदि मन में दया प्रेम करुणा नहीं है,
लाख प्रयत्न कर लो तेरा मुझसे मेल होना नहीं है,
तेरे मन में यदि दीन दुखियों की सूरत नहीं है,
सच कहता हूँ तेरे जैसे भक्तों की मुझे जरूरत नहीं है

डॉ.अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)




7.''दुर्जनों को चेतावनी''

छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी,
नए दौर मैं लिखेंगे मिलके नई कहानी,
हम हिन्दुस्तानी हम हिन्दुस्तानी,
और हिन्दुस्तानी कर रहे हैं सिर्फ मनमानी ,

नहीं तो क्यों इतने घोटाले और भ्रष्टाचार,
बेबस जनता और निरंकुश सरकार,
चोरी, हत्याएं, लूट और बलात्कार,
पथभ्रष्ट युवा पीढ़ी नशे की भरमार,

दिखावे के लिए महापुरुषों को मालाएं,
जोरदार भाषण और बेतुकी घोषणाएं,
चूहे और सांप मिलकर लगे हैं खोदने,
किसी दिन वतन को खोखला न कर जाएँ,

देखना गौमाता के मांस का कर्ज चुकाओगे,
नारी की बेइज्जती का अर्थ भी समझ जाओगे,
पापियों वो दिन दूर नहीं कृष्ण दुर्गा अवतार आयेंगे,
कुक्कुर की मानिंद मरेंगे दुर्जन, हर पाप का मोल चुकायेंगे...........................

डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



8.गरीब नेताओं का वेतन बढ़ गया,

क्या हुआ जनता पे थोड़ा कर्जा चढ़ गया,
हमारे नेता तो देश का भला ही करते हैं,
वे तो संत हैं जो कठौती में गंगा भरते हैं,
पुल, माकन, दूकान, सड़क, पानी, बिजली,
रोटी, रोजगार, व्यापार ये हमें कौन देता है,
बाढ़, भूकंप, सुनामी और आगजनी में हमें,
मदद और राहत के आश्वाशन कौन देता है,
हमारे नेता रोज जी तोड़ मेहनत करते हैं,
बेचारे कितनी मुश्किल से अपना पेट भरते हैं,
हफ्ते भर में केवल कुछ सौ करोड़ कमाते हैं,
और वो भी निस्वार्थ भाव से स्विस बैंक छोड़ आते हैं,
भारत की अमीर जनता कुछ भी सोचती,
गरीब नेताओं के लिए अच्छा तक नहीं बोलती,
चलिए माफ़ी मांगिये अपने नेताओं से और,
कहिये कि भगवान् आप गरीबों को और धन दे,
फटेहाल आपके परिवारों को नया जीवन दे,
तभी तो आप भारत कि अमीर जनता के बराबर आ पायेंगे,
तभी तो आप साचे मन से अपना राष्ट्रगान गा पायेंगे.............................. शुभ रात्रि ........
.डॉ अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



9.''जादू की थैली''

मैंने एक चुनाव की रैली देखी,
उसमें एक बड़ी सी थैली देखी,
जो पकड़े हुए था उम्मीदवार,
सजा था उम्मीदों का बाज़ार,
थैली से निकल रहे थे वायदे,
आश्वाशन नियम और कायदे,
घोषणाओं की बौछार हो रही थी,
वोट देने की मनुहार हो रही थी,
थैली शायद बड़ी करिश्माई थी,
तभी उम्मीदवार ने जीत पाई थी,
जनता चाहती थी जादू असर दिखाए,
थैली के वादों से सब कुछ सुधर जाए,
पर वास्तव में वहाँ सब उलट गया,
थैली का जादू पूरा का पूरा पलट गया,
उम्मीदवार की तो जैसे बुद्धि फिर गयी,
मासूम जनता पर जैसे बिजली गिर गई,
कोई चुनावी वादा उसे याद ना रहा,
कोई काका मामा कोई संवाद ना रहा,
पांच साल तक कोई जादू नहीं हुआ,
जनता के जख्मों को किसी ने नहीं छुआ,
पर पांच साल बाद फिर जादूगर आया,
साथ फिर जादू की बड़ी सी थैली लाया,
फिर मनुहार हुई, थैली ने जादू दिखाया,
इस बार जादू की आस में जनता ने फिर उसे जिताया,
तब से हर पांच साल में जादूगर आता है,
अपने वादों की जादुई थैली से जनता को लुभाता है,
पूरा जनसमूह उसकी बातों में आ जाता है,
करिश्माई थैली का जादू हर बार चल जाता है.................................................
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



10.''अकेली माँ''


पैरों मैं बिवाइयाँ,
चेहरे पर झाइयां,
धुंधलाती नज़र,
अश्कों के निर्झर,
लाठी का सहारा,
सूना घर द्वारा,
लड़खड़ाते कदम,
ज़माने के सितम,
सह रही है बूढ़ी माँ ,
परदेस में बेटे को फुर्सत कहाँ ,
समय नहीं है घर आने का,
यही तो समय है कमाने का,
माँ रोती है कि जाने कब आएगा,
मैं मर गई तो कौन मुझे जलाएगा,
निर्लज्ज बेटे को क्या ये अंदाज़ होगा,
यही हाल उसका कुछ साल बाद होगा,
जब उसकी संतान उसी को सताएगी,
तब उसे माँ बाप की टीस याद आएगी।

डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



11.सवाल?

एक सवाल खड़ा जहाँ की तहां है,
पहले हम कहाँ थे आज हम कहाँ हैं,
विश्वगुरु भारत मैं आज निरक्षरता है,
अहिंसा के प्रतीक भारत मैं आज बर्बरता है,
वीरों की भूमि आज वीरों को तरसी है,
देश भक्ति और प्रेम के लिए भारत माँ तरसी है,
आज यहाँ ज्ञानियों का दानियों का टोटा है,
नेताओं के लिए हर घोटाला छोटा है,
जहाँ दुर्गा पूजा होती है वहां नारी की लाज नहीं,
हमारा भारत जैसा पहले था वैसा कतई आज नहीं,
कत्लेआम,दंगा फसाद वहशीपन की आंधी है,
आज यहाँ ना भगत सिंह हैं ना यहाँ गांधी हैं,
भारतवासियों अपने घायल देश को मिटने से बचा लो,
तिरंगे की लाज रख लो, इसे झुकने से बचा लो।
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)



12.दहेज़ प्रथा,

आज एक सवाल बड़ा ही अहम् है,
क्या दहेज़ लेना और देना जरुरी है?
आम आदमी को अभी तक वहम है,
कि बेटी एक बोझ है,मजबूरी है,

आज बेटियां आसमान छू रही हैं,
लड़कों से आगे निकल रही हैं,
सिर्फ नज़र बदल कर देखो,
बेटियां देश की किस्मत बदल रही हैं,

आज भारत की नारी ऊँचे पदों पर है,
नर श्रेष्ठों से कहीं ऊंचे कदों पर है,
वो परिवार नहीं पूरा देश तक चला रही है,
पुस्र्ष जाति को ये सन्देश दिला रही है,

कि अब समय बदल गया है तुम भी बदलो,
दहेज़ के पत्थर से नारी को ना कुचलो,
नारी अब अबला नहीं सर्वसंपन्न सबला है,
मेहनत से उसने अपनी किस्मत को बदला है,

दहेज़ देना और लेना एक सामाजिक बुराई है,
पाप है, कुरीति है, खुद की जगहंसाई है,
सोच को बदल कर विचारों का विस्तार करना होगा,
सभ्य समाज के लिए दहेज का तिरस्कार करना होगा,

''अखिल अज्ञानी''



13.जय पत्नी जय पत्नी जय पत्नी मैया,


दुनिया के सारे पति नाचें ता ता थैया,
सर्वशक्तिशाली तू ही नाव की खिवैया,
दुनिया के सारे पति नाचें ता ता थैया।।

मुंदरी चढ़े , हार चढ़े और चढ़े भाले,
कर्णफूल, लौंग, नथनी, शुद्ध सोने वाले,
साड़ी, सूट, चप्पलों, से तू मुस्कुराए,
तू जो खुश रहे पति को सर्वसुख मिल जाए।।

बात तेरी काटी तो तू ब्रह्मास्त्र चलाये,
आंसुओं की धार में ये दुनिया ही बह जाए,
बात ज्यादा बढ़ जाए तो मैके चली जाए,
पति देव रोटी पानी तक को तरस जाए।।

तू कृपानिधान सारे कष्ट तू मिटाए,
तेरी भृकुटी टेढ़ी हो तो भूत भी भग जाए,
असंख्यभुजी सर्व्दात्री तू दया की मूरत,
ब्यूटीपार्लर रोज बदलें तेरी मोहिनी सूरत।।

जो चले जिव्हा तुम्हारी कुछ ना नजर आये,
मूक पति थर थर काँपे जाने किधर जाए,
जो क्रोध ज्यादा आये रौद्र रूप धारिणी,
बेलन का वज्र चले सर्वसन्हारिणी।।

माँ प्रणाम माँ नमन माँ शत शत वंदन,
तनख्वाह मेरी ग्रहण करो बंद करो क्रंदन,
तू सुखी तो मैं सुखी हूँ नारी श्रेष्ठ भारती,
तेरा सेवक मैं पति उतारूं तेरी आरती।।

पत्नी की सेवा मैं एक तुच्छ सा प्रयास - 'अखिल अज्ञानी'




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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: अखिल अज्ञानी की जय पत्नी मैय्या आरती तथा अन्य हास्य व्यंग्य कविताएँ
अखिल अज्ञानी की जय पत्नी मैय्या आरती तथा अन्य हास्य व्यंग्य कविताएँ
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