(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बध...
(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)
तेजेंद्र शर्मा- जैसा देखा जैसा जाना
पूर्णिमा वर्मन
तेजेंद्र शर्मा को एक बेहतरीन कहानीकार के रूप में ज्यादातर लोग जानते हैं। हिन्दी में वे एक मात्र ऐसे कहानीकार हैं जिनकी कहानियों में दुनिया भर के सरोकार हैं। न केवल भारत या यूरोप बल्कि सुदूर पूर्व और मध्यपूर्व तक फैले अनेक कथानकों में उनके व्यापक अनुभवों का विस्तृत संसार है। निःसंदेह यह एअर इण्डिया में उनकी यात्रा-परक सेवाओं के कारण है पर संवेदनात्मक दृष्टि, भाषा कौशल और अभिव्यक्त करने की क्षमता के बिना ऐसा होना संभव नहीं है। तेजेंद्र शर्मा इन सब पर अपनी विशेष पकड़ रखते हैं और अपनी विशिष्ट शैली में व्यक्त करते हैं। उनके इस गुण ने उनकी कहानियों में असीमित विविधता भरी है। सभी कहानियाँ एक दूसरे से बहुत अलग हैं और हर कहानी में कमाल की रोचकता है।
उनकी कहानी 'देह की कीमत' जहाँ जापान में भारतीयों की समस्याओं को चित्रित करती है वहीं 'ढिबरी टाइट' कुवैत की समस्या को। 'कालासागर' में वे हवाई जहाज़ के क्रैश हो जाने के दृष्य को गहरी संवेदना के साथ साथ व्यंग्य से भी भरते हैं। 'पासपोर्ट के रंग' में एक ओर वे दोहरी नागरिकता के प्रश्न को गहरी आत्मीयता के साथ चित्रित करते है, दूसरी और 'मुझे मार डाल बेटा' में इच्छा-मृत्यु का प्रश्न उठाते हैं, तीसरी ओर 'कोख का किराया' में विज्ञान के विकास के साथ मनुष्य की संवेदनाओं और आधुनिक पूँजीवादी आचरण के उलझने की एक मर्मस्पर्शी कहानी है। इस प्रकार अपनी कहानियों को गहराई से अपने समय से जोड़ने वाले वे अनोखे कथाकार हैं। वे प्रश्नों और समस्याओं को तो उठाते ही हैं मन की कोमल संवेदनाओं को भी कुशलता से चित्रित करते हैं। उनकी कहानियाँ 'गंदगी का बक्सा' और 'मलबे की मालकिन' इसका प्रमाण हैं।
अकसर लोग समझते हैं कि बिना अंग्रेज़ी के शब्दों या वाक्यांशों के हिन्दी संपूर्ण नहीं होती पर तेजेन्द्र शर्मा इसके अपवाद समझे जा सकते हैं। यह उनकी एक और विशेषता है कि इंगलैंड में रहने और रचना की पृष्ठभूमि विदेश होने के बावजूद वातावरण की सृष्टि या सहजता के नाम पर वे अँग्रेजी के शब्दों या वाक्यांशों की भरमार नहीं करते। इससे इस बात का अंदाज़ लगाया जा सकता है कि उनके हिन्दी और पंजाबी के मिलेजुले संस्कार ने उनकी भाषा को इतना परिष्कृत किया है कि उन्हें हर बात के लिए अंग्रेज़ी का मुँह ताकने की ज़रूरत महसूस नहीं होती।
कथाकार के अतिरिक्त तेजेंद्र के दो चेहरे और हैं। पहला हिन्दी भाषा के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण कर्मठ सिपाही का चेहरा और दूसरा जीवन के प्रति जुझारू व्यक्ति का चेहरा। भारत की सीमाओं के बाहर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने में तेजेंद्र शर्मा ने जबरदस्त ज़िम्मेदारी का परिचय दिया है। यूके में कथाकारों को संगठित करने और उनको ज़ोरदार तरीके से साहित्य की मुख्य धारा तक ले आने में उन्होंने कड़ी मेहनत की है। वे यूके के पहले लेखक थे जो अभिव्यक्ति के साथ जुड़े और यूके के तमाम लेखकों को हमारे साथ जोड़ा। उन्होंने अपने विचारोत्तेजक लेखों और साक्षात्कारों से प्रवासी साहित्य को हिन्दी पाठकों के बीच लाने के कार्य में निरंतर संघर्ष किया है। पिछले लगभग दस वर्षों से इंग्लैंड में रहते हुए वे अपनी संस्था कथा यू.के. के साथ हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। यूके में कहानी के मंचन और ध्वनि-अभिनय की परंपरा को बनाए रखने के उनके अथक श्रम ने भी हिन्दी के विकास को बहुआयामी दिशा दी है। सीडी पर प्रकाशित उनकी कहानियों के पाठ खासे चर्चित तो रहे ही हैं दृष्टि विकलांग संस्थाओं में इन पाठों ने गजब की लोकप्रियता प्राप्त की है।
अभिव्यक्ति में 2001 में प्रकाशित 'यूनाइटेड किंगडम का हिन्दी कथा साहित्य' उनका वह पहला लेख था जिसमें यूके के हिन्दी साहित्य और साहित्यकारों के लेखन की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई थी। इसके परिणाम स्वरूप विश्वभर में यू.के. हिन्दी साहित्य का गढ़ बनकर उभरा और यू.एस.ए. के हिंदी लेखकों को भी इससे प्रेरणा मिली। उन्होंने हिंदी विकिपीडिया के लिए भी यूके के हिन्दी लेखकों के परिचय और फ़ोटो जुटाने में भी भरसक सहयोग किया जिसके कारण ब्रिटेन का प्रवासी हिन्दी साहित्य तथा ब्रिटेन के प्रवासी हिन्दी लेखक नामक दो समृद्ध विभाग आज हिन्दी विकिपीडिया का हिस्सा हैं।
उनके मित्र और परिचित जानते हैं कि किस प्रकार उन्होंने स्वयं अपने और अपने परिवार में कैंसर पर विजय प्राप्त करते हुए जीवन का संघर्ष जारी रखा है। उनका यह जुझारूपन साहित्य और भाषा के विकास के प्रति किए गए उनके कार्यों में भी झलकता है। वे हिन्दी के ऐसे बहुत कम कथाकारों में से हैं जो दिए गए विषय पर, दिए गए समय में दी गई शब्द सीमा के भीतर एक सुंदर रचना लिख सकें। पत्रकारों को इस विधा में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है पर तेजिंदर ने यह अनुभव निरंतर अभ्यास से प्राप्त किया है और इससे यह समझा जा सकता है कि उन्होंने स्वयं को कितने कठिन अनुशासन में काम करने का अभ्यस्त बनाया है। उनकी कहानी 'एक और होली' इसका प्रमाण है जो उन्होंने अभिव्यक्ति के एक होली विशेषांक के लिए लिखी थी। वे अभिव्यक्ति के पहले लेखक है जिनकी दस कहानियाँ अभिव्यक्ति में हैं। 2008 के अगस्त में जब उनकी दसवीं कहानी प्रकाशित हुई थी तब हमने पाठकों के लिए उनकी दसों कहानियों का आकर्षक रंगीन पीडीएफ़ जारी किया था जिसे कोई भी मुफ़्त डाउनलोड कर सकता है। अपनी कहानियों के लिए इस प्रकार मुफ़्त डाउनलोड की सुविधा की अनुमति देकर उन्होंने बड़े दिल का परिचय दिया था।
कहानी के अतिरिक्त कविता, गज़ल, व्यंग्य, अभिनय आदि अनेक विधाओं में वे अच्छा दखल रखते हैं। वे खाना पकाने के शौकीन है, सफ़ाई के और ग़ज़ल गाने के भी। उनकी कहानी को उन्हीं के मुख से सुनना एक अनुभव है। वे स्वयं कड़ी मेहनत में विश्वास रखते हैं और दूसरों को भी सख्ती से इसके लिए प्रेरित करने का हुनर रखते हैं। वे छोटे-छोटे मधुर संस्मरणों को याद रखते हैं और विशेष अवसरों पर अपनी आकर्षक शैली से प्रस्तुत कर उसे महत्वपूर्ण बना देते हैं। कुछ लोगों के लिए वे ज़िद्दी हैं पर दूसरों की प्रशंसा वे मुक्त हृदय से करते हैं। वे कोई अंजान व्यक्ति नहीं, वे ऐसे लेखक हैं जिनके बारे में अधिकतर लोग सबकुछ जानते हैं, इसलिए यहाँ उनके विषय में थोड़ा कुछ वही लिखने की कोशिश की है जो ज्यादातर लोग नहीं जानते।
पूर्णिमा वर्मन
संपादक अभिव्यक्ति
www.abhivyakti-hindi.org
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