एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य : एक शहीद की व्यथा कथा

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भा रतवासियों यह एक शहीद के भटकती हुई आत्मा की व्यथा कथा है। कोई इसे अन्यथा न ले। हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह हमारी आत्मा की शांति के लिए क...

भारतवासियों यह एक शहीद के भटकती हुई आत्मा की व्यथा कथा है। कोई इसे अन्यथा न ले। हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह हमारी आत्मा की शांति के लिए कुछ करने का संकल्प ले। केवल संकल्प से ही काम नहीं चलेगा। संकल्प का खेल बहुत हो चुका है। अब कुछ करने का समय आ गया है। अब भी नहीं करोगे तो कब करोगे ? कब तक भारत माता को घुटते हुए देखोगे ? केवल निजी स्वार्थ ही सब कुछ नहीं है। आज सबको इसके ऊपर सोचने की जरूरत है। लेकिन लोग अपने और अपनों के ऊपर ही ज्यादा सोचते हैं। तुम लोगों के हृदय में देश भक्ति की ज्वाला की जगह गद्दारी, मक्कारी, धोखेबाजी, बेईमानी आदि का कीचड़ क्यों जमता जा रहा है ?

गुलामी के दिन हमने देखा था। देश की आजादी के लिए कई बार जेल भी जाना पड़ा था। मन में एक ही सपना था-आजादी। हमें बस आजादी चाहिए थी बदले में चाहे कोई अपने वदन का एक-एक कतरा लहू भी क्यों न ले लेता। हम सब तैयार थे। यह जज्बा था हम लोगों का। और हम आजादी के लिए, अपने प्यारे भारत के लिए शहीद हो गए। हमें अपने सपनों का भारत देखना था। इसीलिए ही हम उसकी प्रतीक्षा में भटकने लगे।

एक दिन वह दिन भी आ गया जब हमारा देश, हमारा प्यारा भारत आजाद हो गया। बटवारा हुआ, सहना पड़ा। संविधान लागू हुआ। एक नई आशा जगी कि अब स्वर्णिम भारत का निर्माण होगा। एक ऐसे भारत का जो अब के भारत से भिन्न होगा। लेकिन आज का भारत हमारे सपनों के भारत से बहुत भिन्न हो गया है। क्यों ?

आशा थी पूरे भारत का विकास होगा। हर भारतवासी को समान न्याय, अधिकार, रोटी, कपड़ा और मकान मिलेगा। सबके लिए समान कानून होगा। समान अपराध का समान दंड होगा। इसमें कोई भेद भाव नहीं होगा। योग्यता की कद्र होगी। भारत पढ़े-लिखे लोगों का देश होगा। जिसमें नैतिक मूल्यों का व्यवहारिक आचरण होगा। बरजोरी, सीनाजोरी, हत्या, लूट, घूस और घोटाले आदि नहीं होंगे। लेकिन यही सोचते-सोचते सोचने की भी क्षमता नहीं रह गई। और यह सपना सँजोए हुए आँखें पथरा गईं। तुम लोगों ने हम लोगों की कुर्बानी की कद्र क्यों नहीं की ?

हमने सोचा था, अपने मन को समझाया करते थे कि अब विदेशी हुकूमत जा चुकी है। राज तंत्र भी चला गया है। अब परजा का राज, जनता का राज होगा। देश में प्रजातंत्र आ गया है। देश में जनतंत्र है। लेकिन यह क्या हो गया ? जनतंत्र नेतातंत्र कैसे हो गया ? प्रजाराज नेता राज में क्यों बदल गया ? हम लोगों से क्या भूल हो गई ?

आजाद भारत के लोगों को क्या हो गया है ? क्या ये भारत माता की सन्तान नहीं हैं ? कोई अब देश के बारे में क्यों नहीं सोचता ? सबको सिर्फ अपनी पड़ी है। यदि ऐसा हमने भी सोचा होता, आजाद, भगत, बोस आदि भी इतने ही स्वार्थी होते तो क्या आज तुम लोग चैन की साँस ले पाते ?

चारों तरफ लूट मची हुई है। ओहदा मिलते ही लोग पहले लूटने की सोचते हैं। कुछ बिरले ही इससे बचे हैं। जिस देश के ओहदेदार गद्दार हो जायेंगे उस देश का क्या होगा ? अब अपने भारत का क्या होगा ? यह सोचकर मन की खिन्नता बहुत बढ़ जाती है। सभी जानते हैं कि एक दिन मरना है। फिर भी लूट-लूट कर भंडार भर रहे हैं। देश से अपने भारत से गद्दारी कर रहे हैं।

इस कथित जनतंत्र में भारत में बहुत प्रधान हो गए हैं। लेकिन अपना भारत विश्व का प्रधान देश नहीं हो सका। लोग खुद प्रधान बनने के चक्कर में देश की प्रधानता को भूल गए। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी ऊँची होती हैं। अपने पूर्वजों के इस नसीहत को भी लोगों ने ठोकर मार दी। ऐसे-ऐसे नालायक पैदा हो गए जो जननी और जन्मभूमि को भी नहीं पहचानते। बस चले तो भारत माता को भी बेच दें। यह कहते हुए हमारी आत्मा रोती है। लेकिन अब अपने वश में कुछ नहीं है।

आज इस देश का, अपने भारत का, इस देश के लोगों का यह आलम है कि लोग ग्राम प्रधान तक के चुनाव में खड़े होने से पूर्व यही सोचते हैं, यह कहते हैं कि एक बार प्रधान बन गए तो समझो चांदी हो गई। कई लाखों का वारा-न्यारा हो जायेगा। आज लोग सेवा करने की नहीं सोचते बस सबको मेवा की पड़ी है। हर कोई मेवा खाना चाहता है।

हम देख रहे हैं कि पूरे भारत में नोच-खसोट मची है। कौन किसका पाये किसका नोच ले कुछ भरोसा नहीं है। सब जोड़-तोड़ में लगे हैं। पग-पग पर चोरी, घूसखोरी, बेइमानी है। भ्रष्टाचार है। छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा व्यक्ति भी नोचने में लगा है। समझ में नहीं आता कि अब भारत में भारतीय मानव सन्तानें रह रही हैं अथवा गिद्ध।

हमें कुछ करना होगा। हमें बाहर से भी खतरा है। बाहर वालों की भी हम पर, हमारे भारत पर बुरी नजर है। और अंदर भी लूट मची हुई है। यदि भारत माता की सन्ताने नहीं जागीं तो लुटेरे भारत माता को लूट डालेंगे।

देश में इतना भ्रष्टाचार क्यों है ? कोई नेता जो भ्रष्टाचारी है, जो अपराधी है उसे आजीवन कठोर कारावास क्यों नहीं होता ? उसे जमानत क्यों मिलनी चाहिए ? उसे कोई पार्टी अपना सदस्य कैसे बनाये रह सकती है ? जेल हो भी जाय तो जेल में खेल चलता रहता है। ऐसा क्यों है ?

कोई एक बार चुनाव जीत जाय तो पहले चाहे वह भिखारी ही क्यों न रहा हो इतना जल्दी राजा कैसे बन जाता है ? कितना भारी बजट इन झुण्ड-के झुण्ड नेताओं पर, इनके रहन सहन पर आता है ? देश के धन का अपव्यय कैसे किया जाय यह आज के नेताओं से अधिक और कौन जान सकता है ?

जो भ्रष्टाचारी है, अपराधी है वह चुनाव कैसे लड़ता है ? इन्हें रोकने के लिए कोई कानून क्यों नहीं है ? इसके लिए संविधान में कोई प्रावधान क्यों नहीं है ? पहले नहीं था तो अब तक इस सम्बन्ध में कोई संविधान संशोधन क्यों नहीं हुआ ? उत्तर दीजिए।

लोकसभा, विधानसभा की सीटें बढ़ाई गईं। नेताओं के सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए कई संशोधन हुए। नेताओं का वेतन बढा। आजीवन पेंशन, निवास आदि की व्यवस्था हुई। लेकिन जो देश हित में बहुत जरूरी था उस सम्बन्ध में कोई संशोधन क्यों नहीं हुआ ? क्या यह नेतातंत्र नहीं है ?

यह कैसा प्रजातंत्र है ? जिसमें परजा का रोल सिर्फ वोट देना मात्र है। परजा आवाज उठाए तो संसद और संविधान की दुहाई देकर उन्हें चुप रहने की नसीहत दी जाय। उन्हें बताया जाय कि क़ानून बनाने का अधिकार मेरा है। हम जो और जैसा चाहेंगे बनाएंगे ? तुम्हें सिर्फ वोट देने से मतलब है। अपनी सीमा में रहो।

हमें अपना भारत चाहिए। अपने सपनों का भारत और कुछ नहीं। जो भी, कुछ भी और कोई भी यदि हमें हमारा भारत नहीं दे सकता। तो वह हमारे लिए किसी मतलब का नहीं हो सकता।

भ्रष्टाचारी और अपराधी यदि चुनाव लड़ते भी हैं तो चुनाव क्यों जीतते हैं ? जनता के सामने कौन सा मुँह लेकर आते हैं ? जनता उनसे सवाल क्यों नहीं करती ? उन्हें वापस क्यों नहीं भेज देती ? इसमें देश की जनता दोषी क्यों नहीं है ?

आज के अधिकांश नेता, नेता नहीं हैं देश उजाड़ हैं। देश उजाड़। ये सिर्फ जनता को मूर्ख बना रहे हैं। जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर और लोगों की भावनाओं को भड़काकर वोट माँगते हैं। जबकि उन्हें किसी की नहीं पड़ी है। यदि पड़ी है तो सिर्फ अपनी कुर्सी की। अपने पेट की। अपनी थैली भरने की।

आज के नेता एक ओर भ्रष्टाचारी व अपराधी को टिकिट देते हैं और दूसरी ओर भ्रष्टाचार मुक्त और अपराध विहीन सरकार देने की बात करते हैं। इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी ? अतः स्पष्ट है कि ये हमें केवल मूर्ख बना रहे हैं। और कुछ नहीं। ऐसे लोगों से यदि सावधान नहीं हुए तो देश नहीं बचेगा। अपना भारत नहीं बचेगा। यह कहते हुए हमारी आत्मा तड़पती है। परन्तु अब हमारे वश में है ही क्या ?

हमारी आत्मा पिछले कई दशकों से अपने सपनों के भारत की एक झलक पाने के लिए भटक रही है। हमें नहीं मालूम कि इसकी यह भटकन कब समाप्त होगी। होगी भी कि नहीं।

हमारी हर भारतवासी से एक बार फिर गुजारिश है कि अब भी सुधर जाओ। अब ऐसा कुछ मत करो जिससे हमारी आत्मा तड़पती रहे। हमने किसी भी लालच या कुछ पाने के लिए अपना बलिदान नहीं दिया था। हमने किसी से कभी कुछ माँगा नहीं। लेकिन आज तुम लोगों से माँगते हैं कि यदि तुम दोगले नहीं हो, सच्चे भारतीय हो और सच में भारत माता को माता मानते हो तो हमें हमारे सपनों का भारत लौटा दो।

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,

समशापुर (उ. प्र.)।

URL: https://sites.google.com/site/skpandeysriramkthavali/

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रचनाकार: एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य : एक शहीद की व्यथा कथा
एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य : एक शहीद की व्यथा कथा
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