विजेंद्र शर्मा का आलेख - संदर्भ वनस्थली विद्यापीठ घटनाक्रम - बना बतंगड़ बात का ....जैसे तिल का ताड़ .....

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बना बतंगड़ बात का ....जैसे तिल का ताड़ ..... पिछले तीन–चार रोज़ से वनस्थली विद्यापीठ में दो छात्राओं के साथ कथित दुष्कर्म का मुआमला अख़बार...

बना बतंगड़ बात का ....जैसे तिल का ताड़ .....

पिछले तीन–चार रोज़ से वनस्थली विद्यापीठ में दो छात्राओं के साथ कथित दुष्कर्म का मुआमला अख़बारात और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए बड़ा ख़ूबसूरत सामान बना हुआ है ।

मीडिया को हर पल ऐसी ख़बर की तलाश रहती है जो लुभावनी हो चाहें वो फिर कितनी संवेदनशील भी क्यूँ ना हो । वनस्थली विद्यापीठ से जुड़ा ये पूरा प्रकरण मेरी इन दो पंक्तियों के सिवा कुछ भी नहीं है :---

बना बतंगड़ बात का , जैसे तिल का ताड़ ।

राई का भी कर दिया, तुमने यार पहाड़ ।।

अपने चेहरों को दुपट्टे से ढके तक़रीबन पांच हज़ार छात्राएं एक स्वर में चिल्लाती है “वी वांट जस्टिस”- “वी वांट जस्टिस”..और उनमे से किसी एक को भी पता नहीं कि उन्हें वो जस्टिस किस बात के लिए चाहिए है ,ये हमारे अहद का अलमिया (विडंबना ) है । संवेदनहीन मीडिया बिना बात की तह तक जाए इसे ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाता है कि वनस्थली में दो छात्राओं के साथ हुआ दुष्कर्म ....सुनिए हज़ारों छात्राओं की एक साथ चित्कार...ये सब क्या है ? अनवारे इस्लाम साहब का ये शे”र बरबस याद आता है :--

कोई घटना हो मीडिया कर्मी ,

सारी ख़बरें उबाल देते हैं ।।

इस पूरे अफ़सोसनाक मंज़र को कवर करने वाले और इसे अंजाम देने वाली छात्राएं शायद वनस्थली विद्यापीठ के गौरव शाली इतिहास से वाक़िफ़ नहीं हैं ।

राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री स्व.पं. हीरालाल शास्त्री ने 1929 में तत्कालीन जयपुर रियासत में गृह तथा विदेश महकमे के सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद को छोड़कर समाज सेवा का संकल्प लेकर निवई के पास बन्थली (वनस्थली) ग्राम को अपना कर्म क्षेत्र बनाया । समाज की ख़िदमत के इस पाकीज़ा काम में उनकी शरीके-हयात स्व.श्रीमती रतन शास्त्री भी कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ रही । अप्रेल 1935 में इनकी 12 वर्षीय पुत्री शांता बाई का अकस्मात निधन हो गया ,शांता बाई बड़ी प्रतिभावान थीं उनसे शास्त्री दम्पति को बड़ी उम्मीदें भी थी । शांता बाई की याद में अक्टूबर 1935 में गाँव की बच्चियों के शिक्षण के लिए शांता कुटीर नाम से सरस्वती का एक छोटा सा मंदिर खोला गया जो आज वनस्थली विद्यापीठ के नाम से जाना जाता है । 1943 में विद्या के इस मंदिर का नाम वनस्थली विद्यापीठ हो गया और 1983 में यूजीसी ने इस संस्थान को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया ।

850 एकड़ में फैले इस विश्वविद्यालय परिसर में 30 से भी ज़ियादा छात्रावास है जिनमे दस हज़ार के आस-पास हिन्दुस्तान के हर हिस्से की छात्राए रहती हैं । निवई के आस –पास पूरे इलाके की एक जीवन रेखा का नाम है वनस्थली विद्यापीठ । इसका अपना ऍफ़ एम् रेडिओ है इसकी अपनी हवाई पट्टी है । वनस्थली में पहली कक्षा से लेकर पी एच डी तक की पढ़ाई होती है और आज के इस आधुनिक दौर में भी गांधीवादी परम्पराओं के निर्वहन के एक धरातल का नाम है वनस्थली ।

मेरा कोई ज़ाती तअल्लुक़ इस संस्थान से नहीं है मगर मुझे कवयित्री सुमन शास्त्री (गौड़ ) के काव्य - संग्रह के सिलसिले में एक –दो बार वनस्थली जाने का मौका मिला और उस वक़्त मैंने इस पूरे संस्थान को बड़े करीब से देखा । लड़कियों के लिए सुरक्षा के नज़रिए से ये परिसर किसी भी दृष्टि – कोण से असुरक्षित नहीं है । पहली मरतबा वनस्थली से आने के बाद मैंने यही निर्णय लिया कि मैं अपनी बेटी को यहीं पढ़ाऊँगा । वनस्थली से पढ़ी हुई छात्राएं आज मुल्क में और मुल्क से बाहर बड़े- बड़े ओहदों पे काबिज़ हैं यहाँ तक कि हमारी पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी वनस्थली की छात्रा रहीं हैं ।

इस संस्थान में जहां तक निजाम (प्रबंध ) का सवाल है हर चीज़ का अपना अनुशासन है । छात्राएं सिर्फ़ खादी ही पहन सकती हैं , हॉस्टल वार्डन को यहाँ जीजी कहा जाता है , जो पुरुष यहाँ कार्य करते हैं उन्हें भैया जी , यहाँ तक की कुलपति सभी छात्राओं को बहन कह कर संबोधित करते हैं और छात्राएं उन्हें भैया ।जब भी कोई बैठक होती है कुलपति दरी पे बैठते हैं , गांधीवाद की एक सादा तस्वीर यहाँ देखी जा सकती है । जितना मैंने इस संस्थान को समझा यहाँ अकादमिक और तकनिकी पाठ्यक्रम के साथ –साथ नैतिक मूल्यों की भी शिक्षा दी जाती है ।

मगर हाल ही में हुए इस घटनाक्रम ने मुझे आहत किया । मर्यादा की दीवारों में एकदम दरारें कैसे आ गयी ये सोचने का सबब ज़रूर है । राई का पहाड़ बनता है ये कहावत झूठी नहीं है पर यहाँ तो राई की पूरी पर्वत श्रंखला ही बना दी गई ।

जिस दिन ये आन्दोलन मंज़रे -आम पे आया तब तक उस आन्दोलन में भाग लेने वाली किसी भी लडकी को ये भी मालूम नहीं था कि आख़िर माजरा है क्या ? कुछ दिन पहले एक छात्रा की तबीयत ख़राब होती है ,जैसी की व्यवस्था है ,नियम है हॉस्टल की व्यवस्थापिका उसे अस्पताल लेकर जाती है ,इसी दरम्यान व्यवस्थापिका को अन्दर जाना पड़ता है ,बच्ची बेहोश हो जाती है ,ड्राइवर उसे एम्बुलेंस में बैठाता है उन्ही पांच- छ मिनट का ये सब घटनाक्रम है ,छात्रा को महसूस होता है कि उसके साथ कोई छेड़-खानी की गई है । ये पूरी बात छात्रा अपनी हॉस्टल वार्डन यानी जीजी को नहीं बताती है । ऐसा हो ही नहीं सकता अगर ये किस्सा पीड़ित छात्रा उसी वक़्त जीजी को बता देती और उस ड्राइवर के खिलाफ़ विश्वविद्यालय निज़ाम कोई कार्यवाही ना करता मगर छात्रा ने ये अपनी किसी सहेली को बताया , एक ने दो को दो ने तीन को तीन ने चार को और इसी तरह ये बात असल बात की बजाय अपना सफ़र करते –करते बलात्कार में तब्दील हो गयी । लड़कियों के साथ ऐसे बर्ताव घरों में भी हो जाते हैं ,ऐसी घिनौनी हरक़त बच्चियों के साथ उनके नजदीकी भी कर देते हैं ।

गाँव में किसी लड़की के आत्महत्या करने के प्रकरण को ( जिसकी अभी तक पुष्टि नहीं हुई है )भी संस्थान से जोड़ दिया गया और इस पूरे एपिसोड में अफ़वाह ने भी बड़ी अहम् भूमिका निभाई । हालांकि छात्राओं को मोबाइल फोन रखने की इजाज़त नहीं है पर चोरी –छिपे रखती सभी हैं । एस एम् एस के ज़रिये भी ये अफ़वाह फैलती गयी , जो कुलपति इन बहनों की सभी बातें बड़े ध्यान से सुनते थे , इनके तमाम कार्यक्रमों का हिस्सा बनते थे वे कुलपति अचानक छात्राओं को अपना दुश्मन नज़र आने लगे । मुख्य वार्डन और कुलपति की गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए गए , विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया । किसी छात्रा ने मीडिया को फोन कर दिया और फिर बात का बतंगड़ ऐसा बना की पूरे मुल्क ने सरस्वती के इस मंदिर में हुए उस खेल को देखा जो बेहद शर्मनाक था ।

कुलपति महोदय विदेश दौरे पे थे और जैसे ही आये उनके सामने ये घटना तांडव करने लगी यहाँ मैं इस बात का भी ज़िक्र करना चाहूँगा की कुलपति श्री आदित्य शास्त्री अपने भीतर एक ग़लतफ़हमी पाले हुए थे कि “हमारे यहाँ आंख का आंसू बाहर नहीं आता है “ हमारे यहाँ वही मूल्य आज भी हैं जो पं. हीरालाल जी शास्त्री और श्रीमती रतन शास्त्री ने सिखाये थे । मालूम नहीं प्रो. आदित्य शास्त्री ये क्यूँ भूल गए कि आज के दौर में अभिशाप बनती जा रही सामाजिक साइट्स और इंटर -नेट पर परोसे जाने वाले सामान ने हमारे चारों तरफ ऐसी फिजां तामीर कर दी है कि हमारे हाथों की बंद मुट्ठी से नैतिकता रेत की तरह फिसल गई है । कुलपति साहब को इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं था कि जिन्हें वे बहने कहते है वे उनके और इस गौरवशाली परम्परा की धरोहर के साथ ऐसा सलूक करेंगी ।

आन्दोलन की प्रथम रात्री को कुलपति महोदय ने छात्राओं के नाम अपने उद्बोधन में कहा कि अब मैं आप को सिर्फ़ “छात्राओं” शब्द से संबोधित करूंगा न कि बहने , मैं भ्रम में था कि मेरे यहाँ मूल्यों की बेहतरीन तालीम दी जाती है ।..किसी का इस तरह आहत होना दर्शाता है कि इस प्रकरण में विश्वविद्यालय प्रशासन की कोई ग़लत मंशा नहीं थी हाँ स्थिति को निपटने में उसकी लापरवाही ज़रूर रही और उस लापरवाही का विश्वविद्यालय को बहुत बड़ा ख़ामियाज़ा भुगतना पडा । काश छात्राएं और विश्वविद्यालय प्रशासन उस वक़्त हालात की संजीदगी समझ लेते तो हालात इतने बदतर नहीं होते ।

मीडिया की ख़बरों के बाद छात्राओं के हज़ारों हितेषी पैदा हो गए , जिन नेताओं ने कभी वनस्थली की सुध नहीं ली वे भी भाषण देने और छात्राओं को उकसाने आ गए ।

राज्य प्रशासन ने अपने काम को सही अंजाम दिया और गनीमत ये भी रही कि किसी ने बे-वजह भड़काने वाला बयान नहीं दिया ।

आज पूरी स्थिति नियंत्रण में है ,कक्षाएं फिर से शुरू हो गयी है तीन –तीन जांच समितियां गठित हो गयी है , बयान लिए और दिए जा रहे हैं ,वक़्त के साथ – साथ सब ठीक भी हो जाएगा मगर वनस्थली विद्यापीठ की आत्मा पर जो घाव हो गए हैं उन्हें भरने में बड़ा वक़्त लगेगा ।

इन दिनों बहुत से निजी विश्वविद्यालय कुकुरमुत्तों की तरह फ़ैल रहें हैं और प्रतिस्पर्धा के इस आलम में अपने वजूद को बनाने और बचाए रखने के लिए कोई भी किसी भी हद तक जा सकता है । मेरी ये आशंका भी एक दिन सच्चाई की तस्वीर बनकर सभी को दिखाई देगी कि वनस्थली विद्यापीठ के बारे में रची गयी ये पूरी झूठी-सच्ची कहानी कहीं किसी साज़िश का हिस्सा तो नहीं ।

यार तुम्हारी चाल ने , ऐसी डाली फूट

अफ़वाहों के सामने , गया भरोसा टूट ।।

मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि आज भी बच्चियों के लिए वनस्थली एक सुरक्षित संस्थान है, सच एक दिन सब के सामने आ जाएगा उस दिन शायद बिना सोचे –समझे “वी वांट जस्टिस” का नारा बुलंद करने वाली छात्राओं को अपने किये का पछतावा हो ...और ये तो तय है ऐसा होगा ...

आख़िर में इसी दुआ के साथ कि मुस्तक़बिल (भविष्य ) में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो ।.तमाम छात्राओं से भी गुज़ारिश कि जिस जगह आप अपना भविष्य निर्माण करने आई है उसकी छवि और उसकी संपत्ति को इस क़दर नुक्सान ना पहुंचाएं । इस तरह के सभी संस्थानों के प्रबंधन से भी निवेदन कि वे मौज़ू ( विषय ) की संवेदनशीलता को समझे ...ताकि फिर कभी राई का पहाड़ , तिल का ताड़, बिना बात किसी बात का बतंगड़ ना बने और खद्दर धारियों को सियासी रोटियाँ सेकने का मौका ना मिले ।...आमीन

विजेंद्र शर्मा

सीमा सुरक्षा बल, बीकानेर

Vijendra.vijen@gmail.com

9414094122

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. मैंने ऊपर दिए गए तीनों options को खाली छोड़ दिया है क्यूंकि इस मज़मून के लिए मुझे ये तीनों विकल्प सही नहीं लगे। विजेन्द्र साहब ने इस वाक़ये का ज़िक्र कर के एक बहुत ही नाज़ुक मसअले की तरफ मुआशरे का ध्यान मुत्वज्जो किया है। इस के लिए मैं उन्हें बहुत बहुत मुबारकबाद देता हूँ कि उनकी लेखनी ने समाज के कुछ लोगों के ज़हन तो जरूर झिंझोड़ दिए हैं। लेकिन जाने क्यूँ मुझे ऐसा लगने लगा है की अब मीडिया की ये सनसनी फैलाने की आदत एक बहुत बड़ी बीमारी बन चुकी है जिसका कोई इलाज फिलहाल तो नज़र नहीं आता। ज़मीर और अंतरात्मा के जागने की उम्मीद भी बहुत कम ही है क्यूँ की जगाया तो उसे जा सकता है जो सोया हुआ हो। मुर्दों को जगाया नहीं जा सकता, उन्हें तो दफ़नाया जाता है। ----- नफ़स अम्बालवी

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  2. vijendra sharma ji ne is 'topic'par Qalam utha kar ''baat ka batangad'' aur afwaho'n ko kis tarah se ''par'' lagte hai'n,usko bahut achhi tarah se pesh kiya hai,mai unkey vicharo'n se poori tarah se sehmat hoo'n,vanasthali shiksha ka mandir hai,usko doosit na kiya jaie ye niwedan mai bhi wahan padhne wali chatrao'n se karna chahta hoo'n.

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: विजेंद्र शर्मा का आलेख - संदर्भ वनस्थली विद्यापीठ घटनाक्रम - बना बतंगड़ बात का ....जैसे तिल का ताड़ .....
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