शैलेन्‍द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य : नहीं चाहिए पड़ोसन

SHARE:

नहीं चाहिए पड़ोसन -शैलेन्‍द्र नाथ कौल कहावत है कि पत्‍नी और पड़ोसन दोनों ख़ूबसूरत नहीं होनी चाहिए क्‍योंकि अपने पति के छिटक कर ग़लत रास...

clip_image001

नहीं चाहिए पड़ोसन

-शैलेन्‍द्र नाथ कौल

कहावत है कि पत्‍नी और पड़ोसन दोनों ख़ूबसूरत नहीं होनी चाहिए क्‍योंकि अपने पति के छिटक कर ग़लत रास्‍ते पर जाने का डर या शक हमेशा पत्‍नी के मन में बना रहता है। कुछ ऐसा ही आनन्‍द के साथ भी हुआ।

मेरा मित्र आनन्‍द शर्मा जब अपनी पत्‍नी रागिनी के साथ शहर में नया-नया आया तो किराए का मकान ढूंढने में मैंने उसकी मदद की थी। उसकी शादी को कुछ ही महीने हुए थे । दोनों की जोड़ी ख़ूब जमती है।

उनके पड़ोस में गीता शंखधर रहती हैं। वह हैं तो थोड़ी अधेड़ उम्र की, मगर रुप और नख़रे में अच्‍छी-अच्‍छी नवयौवनाओं को भी मात दे सकती हैं। स्‍वभाव की बहुत विनम्र और सबके सुखदुख में सहायता करने वाली गीता को अपने रुप का घमंड छू तक नहीं गया था।

गीता शंखधर की आनन्‍द और रागिनी से घनिष्‍ठता तब शुरु हुई उनके यहां पुत्र रत्‍न की प्राप्‍ति हुई। रागिनी की मां कुछ दिन बेटी के पास रह कर अपने शहर वापस चली गई इसलिए आनन्‍द के आफ़िस जाने के बाद रागिनी घर पर अकेली रह जाती थी। ऐसे समय में अपने स्‍वभाव के अनुसार गीता नवजात शिशु की देखरेख करने में रागिनी की सहायता एक बड़ी बहन की तरह किया करती थीं।

आनन्‍द भी गीता से काफ़ी हद तक हिलमिल गया था। शाम को जब वह घर लौटता तो कई बार गीताजी उसके घर पर ही होतीं और झट उस के लिए चाय बना लातीं। चाय का कप मुस्‍कुराकर आनन्‍द को देते समय जब वह उसकी ओर देखतीं तो उनकी आंखों में कोई भाव न होते हुए भी रागिनी को उसमें ख़तरे के बादल दिखाई दे जाते।

एक दिन आनन्‍द ने यूं ही कह दिया, ‘‘गीता जी आप चाय बहुत अच्‍छी बनाती हैं।‘‘ गीता के थैंक्‍यू कहने से पहले कई दिन से ख़तरे का आभास कर रही रागिनी के मन को यह महज औपचारिक सी प्रशंसा सहन नहीं हुई और उसने तुरन्‍त कहा, ‘‘हाँ हाँ क्‍यों नहीं?‘‘

गीता ने क्‍या सोचा यह तो नहीं मालूम पर आनन्‍द के लिए रागिनी का यह व्‍यंग्यात्‍मक अतिक्रमण अप्रत्‍याशित था। आनन्‍द को आभास हो गया कि रागिनी के मन में कहीं शक का बीज अंकुरित होे रहा है। आनन्‍द सावधान हो गया और उसने गीता से औपचारिक दूरी बढ़ानी शुरु कर दी।

उस दिन रविवार था और आनन्‍द घर पर ही था। सर्दी की गुनगुनाती धूप में चिंटू की मालिश कर उसे नहलाने का प्रस्‍ताव लिए गीता धड़धड़ती हुई अन्‍दर आईं। धूप में बैठ कर गीता जी ने चिंटू की मालिश की और उसे नहलाया। बच्‍चे की मालिश करने व नहलाने की प्रक्रिया में किसी स्‍त्री की साड़ी का पल्‍ला सामने से सरक जाना अस्‍वाभाविक नहीं कहा जा सकता।

आनन्‍द बरामदे में बैठा अख़बार पढ़ रहा था। उसने गीता की ओर नहीं देखा था पर रागिनी ने देखा था। आनन्‍द ने देखा होगा और दृश्‍य का रसास्‍वादन किया होगा, यह शक रागिनी के मन में इतना गहराया कि विश्‍वास में बदल गया। उसे लगा कि चिंटू के कारण वह आनन्‍द को पूरा समय नहीं दे पाती है और इसका फ़ायदा उठा कर गीता उसके पति पर डोरे डाल रही है। आनन्‍द का व्‍यवहार बिल्‍कुल सामान्‍य था लेकिन रागिनी को लगा यह उसका नाटक है और दोनों के बीच कुछ खुसरपुसुर चल रही है। अगर अभी नहीं चल रही है तो आगे चल सकती है, और यह सोच कर रागिनी परेशान रहने लगी।

रोज़ घर आने वाली गीताजी कई दिनों तक दिखाई नहीं दीं तो आनन्‍द ने एक दिन रागिनी से पूछ लिया, ‘‘ क्‍या बात है, आज कल गीताजी नहीं आती हैं?‘‘

‘‘क्‍यों ? क्‍या मालिश करवाने और नहाने का इरादा है?‘‘ रागिनी का उत्‍तर आनन्‍द को आवाक कर गया। इसके बाद कुछ भी बोलने का साहस उसमें नहीं रहा। उसे लगा कहीं कुछ टूट रहा है, जिसे टूटने से रोकना बहुत ज़रुरी है। वह चुपचाप दूसरे कमरे में जा कर कुछ सामान इधर उधर कर अपना ध्‍यान बंटाने की नाकाम कोशिश करने लगा क्‍योंकि इस के बाद रागिनी ने अपनी रागिनी इस तरह अविश्‍वास की कड़वाहट में भिगो कर छेड़ी कि उसे किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता था। यह ज़रुर था कि वह ख़ुद ही बोलते बोलते थक जाए । पके फोड़े की तरह रागिनी के शंकालु मन का मवाद निकल रहा था और आनन्‍द उसकी बदबू से त्रस्‍त हो रहा था। शादी के इन दो सालों में यों तो नोंक झोंक कई बार हुई थी लेकिन ऐसा तूफ़ान कभी नहीं आया था।

उस रात आनन्‍द मेरे घर आया तो बहुत परेशान था। उसकी परेशानी का कारण था आपसी संबंधों में विश्‍वास का टूटना। मैंने उसे सलाह दी कि वह भूल से भी न तो गीताजी का नाम ले और न उसकी ओर देखे, चाहे उसका यह व्‍यवहार एक अच्‍छे पड़ोसी के लिए ठीक न हो । उसके लिए रागिनी के मन से शक को दूर करना बहुत आवश्‍यक है।

आनन्‍द ने ठीक वैसा ही किया। वह गरदन झुका कर घर से बाहर निकलता और गरदन झुकाए ही घर में चला जाता। आते जाते सोचता रहता कि कहीं गीताजी की उस पर नज़र न पड़ जाए ।

कुछ दिन बाद पति-पत्‍नी के बीच सब कुछ ठीक ठाक चलने लगा। गीताजी ने शायद आना बन्‍द कर दिया था या वह आनन्‍द को दिखाई नहीं दीं। जो भी हो आनन्‍द संतुष्‍ट था कि रागिनी उससे ठीक से बात करने लगी थी। पर एक दिन फिर ज्‍वालामुखी फूट पड़ा।

हुआ यह कि उस दिन आनन्‍द आफिस जाने के लिए घर के बाहर स्‍कूटर स्‍टार्ट कर ही रहा था कि अचानक गीताजी प्रकट हुईं और बिना किसी औपचारिकता के निश्‍छल भाव से बोलीं, ‘‘आनन्‍द जी मुझे ज़रा बैंक तक छोड़ दीजिएगा। आज इनकी तबियत ठीक नहीं है। मुझे कुछ पैसे निकालने हैं और दवा भी लानी है। आप के साथ जल्‍दी पहुंच जाउंगी।‘‘

गीताजी को शायद मालूम नहीं था कि उसके कारण आनन्‍द के घर में क्‍या तूफ़ान मचा था। आनन्‍द की आवाज़ गले में ही अटक कर रह गई, क्‍योंकि वह जानता थी कि गेट बंद करने के लिए रागिनी बाहर आ चुकी है। ‘हां‘ कहे तो कैसे और ‘ना‘ कहे तो कैसे।

आनन्‍द के कुछ कहने से पहले ही गीताजी ने स्‍कूटर का फ़ुटरेस्‍ट सीधा किया और बड़े अधिकार से पीछे बैठ गईं। बैठते बैठते गीताजी ने पीछे खड़ी रागिनी का अभिवादन भी किया जिससे यह पक्‍का हो गया उसने यह विस्‍फोटक दृश्‍य देख लिया है। गीताजी को बैंक के पास उतार कर आनन्‍द अपने आफ़िस पहुंचा। शाम को रागिनी क्‍या भूचाल लाएगी यह सोच सोच कर कर दिन भर वह अनमना सा रहा। जब घर चलने का समय हुआ तो पैर उठ ही नहीं रहे थे क्‍योंकि पैरों को भी शायद आने वाली प्रलय का आभास हो गया था। घर तो आना ही था इसलिए स्‍कूटर स्‍टार्ट कर धीरे धीरे घर आ गया। लगभग दस मिनट तक कुछ कुछ अंतराल के बाद घंटी बजाने के बाद दरवाज़ा खुला।

अभी वह स्‍कूटर अंदर भी नहीं कर पाया था कि रागिनी ने पहला बाउंसर फेंका, ‘‘आ गए गुलछर्रे उड़ा कर।‘‘

आनन्‍द ने स्‍कूटर खड़ा ही किया था कि रागिनी ने कई वार एक साथ किए, ‘‘लंच तो साथ किया ही होगा ? पिक्‍चर कौन सी देखी ? छम्‍मक छल्‍लो को साथ लेकर नहीं लौटे ? क्‍या भेद खुलने का डर था ?‘‘

‘‘क्‍या कह रही हो ? कुछ तो सोच कर बोलो‘‘ , आनन्‍द ने डरते डरते आश्‍चर्य से कहा। उसकी आवाज़ में जो ईमानदारी का भाव था वह रागिनी की समझ में नहीं आया या यों कहें कि उसके शक्‍की दिमाग़ ने समझने का प्रयास ही नहीं किया।

आनन्‍द उसे दुनिया का सबसे बड़ा धोखेबाज़, धूर्त और मक्‍कार इंसान दिखाई देने लगा। इस के बाद रागिनी ने शब्‍दों के जो हृदयभेदी, मस्‍तिष्‍कभेदी और आत्‍माभेदी बांण चलाए उनके घावों की पीड़ा सहन करना आनन्‍द को बहुत असहनीय हो रहा था। क्‍या इन घावों को समय का मरहम कभी भर पाएगा ? यह सोचता हुआ आहत और दुखी आनन्‍द चुपचाप घर से बाहर आ गया। कुछ देर तक सड़कों पर बेकार चक्‍कर लगाने के बाद वह मेरे घर आया। बिना किसी भूमिका के उसने कहा, ‘‘मैं घर बदलना चाहता हूँ। तुम मेरे लिए कोई दूसरा घर ढूंढो।‘‘

मुझे समझते देर नहीं लगी कि आज फिर कोई बात हो गई जिस से आनन्‍द बहुत परेशान है । मैं उसे शान्‍त करने के इरादे से एक पार्क में ले गया। हम दोनों पार्क के एक कोने में बेंच पर बैठ गए, वह मुझे सवेरे की उस घटना और उस पर रागिनी की प्रतिक्रिया के बारे में बताने लगा। मुझे आनन्‍द पर बहुत तरस आया।

क्‍या घर बदलने से आनन्‍द की परेशानियों का अंत हो जाएगा ? ईंट पत्‍थर जोड़ कर दरवाजे़ खिड़कियां लगाने से जो ढांचा तैयार होता है क्‍या उसे सही अर्थों में घर कहा जा सकता है ? बिना आपसी विश्‍वास के एक छत के नीचे रहने वाले क्‍या सुखी रह सकते हैं ?

मैं आनन्‍द को बचपन से जानता हूँ। किसी प्रकार के अभद्र व्‍यवहार की आशा उससे कभी की ही नहीं जा सकती है। सोचता हूँ, आज के इस आधुनिक युग में भी अपनी सड़ीगली मानसिकता के कारण रागिनी जैसी पढ़ी लिखी युवतियां भी अपने हंसते खेलते परिवार के लिए कैसे परेशानी का कारण बनती हैं।

कुछ दिनों की मेहनत के बाद मैं आनन्‍द के लिए दूसरा घर ढूंढने में सफल हो गया हूं। यह घर शहर के नए बसने वाले क्षेत्र में है। यहां लोग एक दूसरे से कम ही मिलते जुलते हैं। संयोग से पड़ोस का मकान भी ख़ाली है। मकान देखकर आनन्‍द खिलखिला कर हंस पड़ा है, ‘‘यहां कोई गीताजी नहीं रहती हैं। मुझे कोई पड़ोसिन नहीं चाहिए ।‘‘

000000000000

(‘‘सरिता‘‘ फ़रवरी (द्वितीय)-2008 में प्रकाशित)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शैलेन्‍द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य : नहीं चाहिए पड़ोसन
शैलेन्‍द्र नाथ कौल का हास्य-व्यंग्य : नहीं चाहिए पड़ोसन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvig2DN1ZRfwk9RxNkdyyrvSQPRV86R_pLmGPX6F4y-D2gm1wOhhRYdTXNwcowohEQYt2PAEoteu7kzY2LwcO9H3BbsuHCq3oM_uRCjBub_fkgP-I0lkpB3HI0nzbyNYq18Lv4/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvig2DN1ZRfwk9RxNkdyyrvSQPRV86R_pLmGPX6F4y-D2gm1wOhhRYdTXNwcowohEQYt2PAEoteu7kzY2LwcO9H3BbsuHCq3oM_uRCjBub_fkgP-I0lkpB3HI0nzbyNYq18Lv4/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/01/blog-post_1793.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/01/blog-post_1793.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content