हम भी हुए शहीद हैं , हम पर भी हो ग़ौर ......... साल 2012 अपनी आख़िरी साँसें ले रहा था और दिसम्बर के सर्द महीने का आधा सफ़र ख़त्म ही हुआ था कि ...
हम भी हुए शहीद हैं , हम पर भी हो ग़ौर .........
साल 2012 अपनी आख़िरी साँसें ले रहा था और दिसम्बर के सर्द महीने का आधा सफ़र ख़त्म ही हुआ था कि 16 दिसम्बर की मनहूस रात ने दिल्ली की सड़कों पर समाज के ज़र्रे-ज़र्रे को शर्म-सार करने वाला हैवानियत का वो मंज़र देखा जिसने इंसान तो क्या शैतानों को भी झकझोर के रख दिया ! इस घिनौने हादसे के बाद हमारे अहद की सबसे बड़ी ताक़त बन चुकी मीडिया ने अपना धर्म बख़ूबी से निभाया ! मीडिया ने तमाम दूसरी ख़बरों को दरकिनार कर इस घटना को एक हफ़्ते से भी ज़ियादा अपनी अहम् ख़बर बनाए रखा ! इससे पूरे देश में एक अलख जगी और महिलाओं की हिफ़ाज़त के मुद्दे पर समाज कुछ हद तक अपने गिरेबान में झांकने को मजबूर हुआ ! ये मीडिया का ही दवाब था कि मुल्क के हर सूबे में ऐसे मुआमलात के जल्द से जल्द निबटारे के लिए एका-एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट का गठन होने लगा !
जाते हुए साल की रूख़सती भी बिना किसी जश्न और आवाम की आँखों से निकले संवेदना के आंसुओं के साथ हुई ! पूरे देश में संवेदना की फ़िज़ां बनाने में मीडिया की भागीदारी से इनकार नहीं किया जा सकता !
हम सब ने बीते साल को नम आँखों से इसी उम्मीद के साथ विदा किया कि आने वाला साल हमे ऐसे मंज़र दिखाएँ जिससे आँखों को चैन और दिल को सुकून मिले मगर 2013 का पहला हफ़्ता गुज़रा ही था कि जम्मू के मेंढ़र सैक्टर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की तरफ़ से एक कायराना हरक़त को अंजाम दिया गया ! भारतीय सेना के जवान अपनी दैनिक पैट्रोलिंग पर थे कि सरहद पर अमन बनाए रखने के अपने करार को तोड़ते हुए पाक सेना ने दहशतगर्दों को घुसपैठ में मदद करने के सबब से गोलीबारी की ! गोली का जवाब गोली से दिया गया मगर अफ़सोस कि हमारे दो जवान हेमराज और सुधाकर सिंह शहीद हो गए ! इसके बाद पाक सेना ने फौज़ी रिवायतों के बरख़िलाफ़ हमारे एक जवान का सर काट कर इंसानियत को शर्मिन्दा करने वाली हरक़त को अंजाम दिया !
इस तरह के वाक़िये पहले भी होते रहें है पर ये भी मीडिया का ही कमाल था कि ऐसी घटना को उन्होंने सच्चाई के साथ दिखाया और सोयी हुई हुकूमत को जगाया कि हुक्मरानों अब तो उठो ..अब तो कुछ करो ! ये भी मीडिया का ही दवाब था कि शहीद हेमराज की चौखट तक सूबे के वजीरे आला (मुख्यमंत्री), हिन्दुस्तान की ज़मीनी फ़ौज़ के सदर और ना जाने कितने सियासतदां अफ़सोस ज़ाहिर करने पहुंचे ! आज शहीद हेमराज और शहीद सुधाकर के परिवार वालों के लिए संवेदना के साथ–साथ सरकारें आर्थिक इमदाद की भी घोषणाएं कर रहीं है ! “पाकिस्तान अपनी हरक़तों से कभी बाज़ नहीं आयेगा “ जिस तरह ये जुमला सच्चा है उसी तरह ये जुमला भी सौ फीसदी सच्चा है कि अगर मीडिया का दवाब ना होता तो हेमराज और सुधाकर के शहीद होने के बाद उनके परिवारों को जो सहानुभूति और सरकारी मदद अब मिल रही है वो कभी नहीं मिलती !
जिस मुद्दे की तरफ़ मैं आना चाहता हूँ उससे पहले ये बात साफ़ कर दूँ कि अपनी सरहद की हिफ़ाज़त में अपने आप को क़ुर्बान करने वाले शहीदों को मिलने वाली तवज्जो, सम्मान और वजीफ़ों से मुझे कोई एतराज़ नहीं है बल्कि उनकी शहादत को मेरा शत –शत नमन है ! हमारी मीडिया एक बार जिस ख़बर को आग़ोश में ले लेती है फिर उसकी निगाहें तब तक दूसरी ख़बरों पे मेहरबान नहीं होती जब तक की पहली ख़बर ख़ुद उससे दामन ना छुड़ा ले !
सरहद पर लड़ने वाला जानता है कि दुश्मन कौन है और वो कहाँ से वार कर सकता है मगर दूसरी और अर्द्ध सैनिक बलों और पुलिस के वो जवान है जो देश के अन्दर अपने ही नक्सलवाद नामक दुश्मन से लड़ रहें हैं ! आंतरिक सुरक्षा में लगे ये जवान तो वो अघोषित युद्ध लड़ रहें हैं जिसमें इनके सामने सिर्फ़ हार के ही इमकान ( संभावना ) हैं क्यूंकि अपने आप को बचाने में इनसे किसी नक्सली की सलामती के साथ अगर थोड़ी सी भी छेड़ – छाड़ हो जाती है तो भी गाज इन्ही पर गिराई जाती है !
एक तरफ़ पूंछ के मेंढ़र सेक्टर में सेना के दो जवान शहीद होते हैं ,उनके साथ एक शहीद जैसा सुलूक दुश्मन द्वारा नहीं किया जाता है और मीडिया अपना शानदार रोल अदा करती है ! दूसरी तरफ़ ठीक उसी वक़्त झारखंड के लातेहार ज़िले के कटिया के जंगलों में केन्द्रीय अर्ध सैनिक बल सी.आर.पी.ऍफ़ के 17 जवान नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो जाते हैं! इन शहीद हुए जवानों के साथ भी माओवादी बर्बरता पूर्ण सुलूक करते है , एक जवान की लाश में बम्ब प्लांट कर दिया जाता है ! पता नहीं क्यों मीडिया की आँखों की पुतली इस जानिब ज़रा सी भी हरकत नहीं करती बस दो-चार बार ये ख़बर दिखा दी जाती है और फिर बाद में इस ख़बर की ख़ुद ब ख़ुद साँसें उखड़ जाती है !
पुलिस या केन्द्रीय सशस्त्र बल के जवानों के साथ हुई बर्बरता को मीडिया या तो दोयम दर्जे की बर्बरता समझता है या एक वज़ह ये भी हो सकती है कि किसी सिपाही के शहीद होने पर पूरा सम्मान तभी मिलता है जब वो सरहद पर शहीद हुआ हो और उसका तअल्लुक सेना से हो !
एक जवान की लाश को खोलकर उसमें बम्ब प्रतिस्थापित कर उसे फिर से सी दिया गया क्या ये कृत्य बर्बरता की श्रेणी में नहीं आता और उस जवान का नाम तक पता करने की कोशिश किसी एक भी चैनल ने नहीं की ! सी.आर.पी.ऍफ़ के इस शहीद जवान की रूह शायद “बाल स्वरूप राही “ की इन्ही पंक्तियों से अपनी उपेक्षा का मलाल ज़ाहिर कर रहीं होंगी :--
डूबने वालों की फ़ेहरिस्त में भी नाम न हो
मेरे जैसा किसी तैराक का अंजाम न हो
ये 17 जवान कहाँ – कहाँ के थे इनका अंतिम संस्कार कैसे हुआ , कौन सरकारी नुमाइंदा इनके संस्कार में शरीक हुआ , क्या इनके शव इनके परिजनों तक ठीक से पहुंचे या नहीं, क्या इन शहीदों के घरवालों को कोई सरकारी इमदाद मिली या नहीं ख़बर को जल्द से जल्द दिखाने की होड़ में लगे चैनल इन सब लाज़िम सवालात को भूल गए ! लगता है पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की शहादत की ये तस्वीर मीडिया को धुंधली नज़र आती है !
कुछ समय पहले छतीसगढ़ के दांतीवाड़ा में एक ऑपरेशन के दौरान मुठभेड़ में
तक़रीबन 20-22 माओवादी मारे गए ! इंसानी हुक़ूक़ ( मानवाधिकारों ) के नुमाइंदे दिल्ली में मीडिया के वातानुकूलित स्टूडियो में बैठ कर सुरक्षा बलों पर फर्ज़ी मुठभेड़ का आरोप लगाते रहे और उनका पूरा साथ बहुत से मीडिया कर्मियों ने बहसों की निज़ामत (संचालन )करते हुए दिया !
हमारा ये जागरूक मीडिया आज क्यूँ नहीं लातेहार में माओवादियों की इस शर्मनाक कारस्तानी पर मानवाधिकारों के राग अलापने वालों को अपने स्टूडियो में आमंत्रित करता ,क्यूँ नहीं स्वामी अग्निवेश जैसे नक्सली समर्थक से बुलाकर पूछा जाता कि स्वामी जी ये कृत्य नक्सलियों ने कौन से मानव- अधिकारों के तहत किया है ? क्यूँ नहीं मानवाधिकारों की दुहाई देने वाली “अरुंधती राय” को बुलाकर पूछा जाता कि क्या आपकी आँख में नक्सलियों के हाथों मारे गए सुरक्षा बल के जवानों के लिए आंसू हैं ?
सरकार ने तो अर्ध-सैनिक बल नाम देकर और अब तो इसे भी “केन्द्रीय सशस्त्र बल” कह कर वैसे ही केन्द्रीय पुलिस को दोयम दर्जे के एज़ाज़ से नवाज़ रखा है और विडम्बना ये है कि मीडिया भी इनकी शहादत को दोयम दर्जे की शहादत समझ रहा है !
केन्द्रीय सशस्त्र बल में आने वाले दस्ते जैसे सीमा सुरक्षा बल , केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल , भारत-तिब्बत सीमा पुलिस आदी का काम काज किसी भी लिहाज से भारतीय सेना से कम नहीं है ! इनमे से बी.एस.ऍफ़ तो एक ऐसा दस्ता है जो सरहद की हिफ़ाज़त में तो लगा ही है साथ में नक्सल प्रभावित राज्यों में भी सुरक्षा का ज़िम्मा सम्हाले हुए है ! देश में हर तीसरे महीने में कहीं ना कहीं चुनाव होते रहते हैं और वहाँ भी केंद्र को हिफ़ाज़ती इन्तेज़ामात के लिए अपने यही पियादे नज़र आते है ! अपने आप को हर परिस्थिति में ढाल कर हर तरह की डयूटी को अंजाम देने वाले सुरक्षा बल के कार्मिकों की हालत तो ऐसी हो गयी है जैसे मशहूर शायर “मुनव्वर राना” फरमाते हैं :--
हम अपने आप को इतना समेट सकते है
कहीं भी क़ब्र बना दो हम लेट सकते हैं
जहां तक वेतन – भत्तों और सुविधाओं का सवाल है सरकार ने केन्द्रीय सुरक्षा बलों के साथ सौतेले बेटे सा व्यवहार किया है ! इसी राह पे चलते हुए मीडिया भी सुरक्षा बलों की बेहतरीन कारगुज़ारी को नज़र अंदाज़ करती रही है !
1967 में चारु मजूमदार द्वारा पश्चिम बंगाल में शुरू किया नक्सल आन्दोलन आज अपने तमाम उसूल भूल गया है ! भुखमरी,ग़रीबी और सामाजिक असमानता जैसी बदसूरत व्यवस्था को एक ख़ूबसूरत तस्वीर बनाने ,समाज में इंक़लाब लाने का स्वपन अब केवल हफ़्ता वसूली ,महिलाओं से दुराचार , ज़मीनों पे कब्ज़े और लूट-पाट जैसी बदनुमा हक़ीक़त में तब्दील हो गया हैं ! अभी तक नक्सलियों ने सैंकड़ों किलोमीटर रेल पटरियां उड़ा दी , तक़रीबन 1700 स्कूलों को ध्वस्त कर दिया है और जब भी कोई विकास की योजना अमल में आने लगती है तो नक्सली उससे पहले ही उसे सुपुर्दे ख़ाक कर देते हैं ! मुल्क और इंसानियत के ऐसे दुश्मनों की हिमायत करने वाले हमेशा हमारे राष्ट्रीय चैनल्स पर होने वाली बेतुकी चर्चाओं में छाये रहते हैं !
पिछले तीन सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों में लगभग 2600 अफ़राद (लोग )माओवादियों द्वारा बड़ी बेरहमी से मार दिए गए इनमें से एक बड़ी तादाद सुरक्षा बलों और पुलिस के जवानों की है ! नक्सल इलाकों में हालात बद से बदतर हो चुके और ना तो इस और ध्यान सरकार का है ना ही मीडिया का !
जिस तरह मीडिया ने दवाब बना कर हुकूमत को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सख्त ज़ुबान से बोलने और तल्ख़ रवैया अपनाने को मजबूर किया है उसी तरह मीडिया को चाहिए वो अपनी थोड़ी तवज्जो नक्सलवाद जैसे मसअले और केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवानों के वर्तमान हालात की तरफ़ भी दे !
इस मज़मून (आलेख) के ज़रिये मीडिया से यही गुज़ारिश है की वे शहादत को शहादत समझे और कम से कम उसमें कोई भेद-भाव ना करें ! जो एज़ाज़ ( सम्मान ) मीडिया की वजह से शहीद हेमराज और सुधाकर को मिला जिसके वे सही मआनी में हक़दार भी थे ,वही एहतराम केन्द्रीय सुरक्षा बलों के उन जवानों को भी मीडिया दिलवाए जो नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं !
आख़िर में इसी उम्मीद और दुआ के साथ .....कि अपने फ़र्ज़ को अंजाम देते हुए शहीद होने वाले पुलिस और केन्द्रीय सशस्त्र बलों के जवानों के प्रति मीडिया अपने नज़रिये को बदलेगा और हुकूमत अपना तौर.......आमीन !
बदलो अपना नज़रिया , बदलो अपने तौर !
हम भी हुए शहीद हैं , हम पर भी हो ग़ौर !!
विजेंद्र शर्मा
बहुत बढ़िया....नमन शहीदों को
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