साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य

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मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य – डॉ.साताप्पा लहू चव्हाण भारत में बहुभाषी शब्द संसाधक का विकास हो जाने के कारण भारतीय भा...

मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य

– डॉ.साताप्पा लहू चव्हाण

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भारत में बहुभाषी शब्द संसाधक का विकास हो जाने के कारण भारतीय भाषाओं का संगणकीय प्रयोग बढता गया.प्रारंभ में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के संगणकीय प्रयोग में अभूतपूर्व क्रांति हुई नजर आती है. संगणक और भाषा खासतौर पर हिंदी भाषा का संगणकीय विकास आपातकालोत्तर अधिक मात्रा में हुआ परिलक्षित होता है. मानक हिंदी वर्तनी (Standard Hindi Spelling) का विचार प्रारंभ में संगणक भाषाविदों ने किया लेकिन वह प्रयाप्त नहीं था. प्रारंभ में सिर्फ संगणक पर हिंदी भाषा दिखायी देने से संतुष्ट होने वाले पाठक वर्तमान काल में मानक हिंदी (Standard Hindi) की मॉंग कर रहें है.यह बात संगणकीय हिंदी विकास को हमारे सामने रखती है.

प्रारंभ में संगणकीय भाषा का रूप स्पष्ट नहीं था. संगणक प्रणाली में किसी भी भाषा का ‘मानक’ रूप दिखाई नहीं देता था.भारतीय भाषाओं को संगणकीय प्रणाली में विकसित करने के लिए अनेक प्रयोग हुए.इन प्रयोगों के कारण ही भारतीय भाषाओं में विशेषत: हिंदी का ‘मानक’ रूप विकसित होता गया. “कंप्यूटर के विकास का प्रारंभ सन 1940 के दशक में हुआ था,किंतु उसकी प्रेरणा के बीज सन 1935 के पास चार्ल्स बेबेज द्वारा बनाए गए ‘एनालिटिक एंजिन’ में मिलते हैं जिसकी कार्यप्रणाली बहुत कुछ आधुनिक कंप्यूटर जैसी ही थी.1944में हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा आई.बी.एम.और यू.एन.नेवी के सहयोग से मार्क – 1 नामक यंत्र का निर्माण हुआ.1946 में कंप्यूटर युग का सूत्रपात हुआ और वह 1955 से 1965तक गति और कार्यक्षमता की दृष्टि से विकसित हुआ और उसमें नए आयाम भी सम्मिलिता होते गए.इस दिशा में आई.आई.टी. कानपुर का प्रयास उल्लेखनीय है.1971–72 में यहॉं के वैज्ञानिको के प्रयास से एक सरल कुंजीपटल और उसकी प्रणाली का विकास हुआ,जिसका सभी भारतीय भाषाओं के लिए प्रयोग हो सकता है.1978 में सभी भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त हो सकने वाला पहला‘प्रोटोटाइम टर्मिनल’ तैयार हुआ जिससे कंप्यूटर पर देवनागरी लिपि तथा अन्य भारतीय लिपियों के उपयोग में तेजी आई. ...सन 1985 में भारत सरकार के उपक्रम सी.एम. सी.लि. ने‘लिपि’ नामक बहुभाषी शब्द संसाधक का विकास किया ” 1 बहुभाषी शब्द संसाधक तैयार करते समय किसी भी भारतीय भाषा की वर्तनी को मानक रूप में देखा नहीं गया था. संगणक प्रणाली में भारतीय भाषाओं का स्थान निश्चित करना इतना ही प्रारंभ में उद्देश्य रहा है. वस्तुत: “लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते है.इसे हिज्जे भी कहा जाता है. ... ‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रुप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।भाषाओं को मानक रूप देने की भावना जिन अनेक कारणों से विश्व में जगी, उनमें सामाजिक आवाश्यकता, प्रेस का प्रचार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से एकरूपता के प्रति रूझान तथा स्व की अस्मिता आदि मुख्य हैं। यहाँ इनमें एक-दो को थोड़े विस्तार से देख लेना अन्यथा न होगा। उदाहरण के लिए मानक भाषा की सामाजिक आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। किसी भी क्षेत्र को लें, सभी बोलियों में प्रशासन साहित्य-रचना, शिक्षा देना या आपस में बातचीत कठिन भी है, अव्यावहारिक भी। हिन्दी की ही बात लें तो उसकी बीस-पच्चीस बोलियों में ऐसा करना बहुत संभव नहीं है। आज तो कुमायूंनी भाषी नामक हिंदी के जरिए मैथिली भाषी से बातचीत करता है किंतु यदि मानक हिंदी न होती तो दोनों एक दूसरे की बात समझ न पाते। सभी बोलियों में अन्य बोलियों के साहित्य का अनुवाद भी साधनों की कमी से बहुत संभंव नहीं है, ऐसी स्थिति में शैलेश मटियानी (कुमायूँनी भाषा) के साहित्य का आनंद मैथिली भाषी नहीं ले सकता था, न नागार्जुन (मैथिली भाषी) के साहित्य का आनंद कुमायूँनी, गढ़वाली या हरियानी भाषी। इस तरह सभी बोलियों के ऊपर एक मानक भाषा को इसलिए आरोपित करना, अच्छा या बुरा जो भी हो, उसकी सामाजिक अनिवार्यता है और इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में कुछ मानक भाषाएँ स्वयं विकसित हुई हैं, कुछ की गई हैं और उन्होंने उन क्षेत्रों को काफी़ दूर-दूर तक समझे जानेवाले माध्यम के रूप में अनंत सुविधाएं प्रदान की हैं। ऐसे ही प्रेस के अविष्कार तथा प्रचार ने भी मानकता को अनिवार्य बनाया है।”2 कहना आवश्यक नहीं कि संगणकीय प्रणाली में हिंदी मानक वर्तनी विकास पर्सनल कंप्यूटर के आ जाने और प्रेस के कारण अधिक गतिमान हुआ. अक्षर,शब्दमाला,आलेख,मल्टीवर्ड,सुलेखा,शब्दरत्न,आदि शब्द संसाधन प्रमुखा माने जाते है जिस में मानक हिंदी वर्तनी का प्रयोग हुआ है. “सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सी – डैक पुणे (सेंटर फार डेवेलपमेंट आफ एडवांस्ड कंप्युटिंग) ने 1988 में आई. आई.टी. कानपुर सहायोग से बहुभाषी कंप्युटिंग तथा इलेक्ट्रॉनिकी जिस्ट (ग्राफिक्स एंड इंटेलिजैंस बेस्ट स्क्रिप्ट टैक्नोलॉजी) प्रणाली प्रदान की.इसके माध्यम से अंग्रेजी के साथ हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में डी.बेस.लोटस(1,2,3),वर्डस्टार,कोबोल आदि में कार्य होने लगा. भारतीय भाषाओं और लिपियों में विविधता होते हुए भी मूलभूत एकाता है.इसी को ध्याना में रखकर सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान कुंजीपाटल का विकास किया गया है.”3 कहना सही होगा कि सी.डैक के कारण मानक हिंदी वर्तनी का संगणकीया प्रणाली में सही प्रयोग हुआ है.इसका उदाहरण इंटरनेट पर वेब दुनिया डॉट कॉम(इंडिया)लि. का हिंदी पोर्टल है जो “23सितंबर,1999” 4 में शुरु हुआ.आर.के आरोडा मानकीकरण के लिए लिपि,फ़ॉण्ट और कुंजीपटल को आवश्यक मानते हैं. “भारत सरकार के तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिकी विभाग के सुप्रयासो से भारतीय लिपि का एक मानक ब्युरो(BIS)ने इस्की(ISCII)नाम से मान्यता प्रदान की है. सी.डैक ने इस्फॉक(ISFOC)नाम से फॉण्ट का अपना एक मानक विकसित किया जो अपने सभी उत्पादनों में इस्तेमाल करता है.”5 कहना आवश्यक नहीं कि टी.डी.आई.एल.(TDIL-Technology Development for Indian Languages)ने हिंदी मानक वर्तनी का संगणकीय प्रणाली में प्रयोगा करने का सफल प्रयास किया है.खडी पाई,योजक चिह्न, अव्यय,अनुस्वार(अनुनासिकता चिह्न),विसर्ग,हल चिह्न आदि का प्रयोग संगणकीय प्रणाली में योग्य तरीके से होने के कारण हिंदी भाषा का विकास तेजी से हो रहा है.भले ही अनेका त्रुटियों के कारण संगणकीय हिंदी आज भी विवाद का विषय बनी हो. संगणकीय हिंदी शिरोरेखा के साथ प्रयोगा में आ रही है.विदेशी ध्वनीयों को भी समा रही है.व्यावसायिक एंव व्यावहारिकता का विचार किया जाय तो वर्तमान में हिंदी का मानका रूप ही संगणक प्रणाली में दृष्टिगोचार होता है.डॉस, इस्की,इनस्र्किप्ट कुंजीपटल के साथ - साथ युनिकोड, संपूर्ण भारतीय भाषी साफ्टवेयर,लीप ऑफिस2000,डायनैमिक फॉन्ट,हिंदी लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम,विण्डोज की एक्स.पी. ,विस्ता संस्कारण,श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर,गुगल ने तो अनेक सुविधाएँ हिंदी में उपलब्ध करायी.वर्तमानकालीन संगणकीय हिंदी भाषा का अध्ययन करने से पता चलता है कि इसमें अनेक त्रुटियॉं है लेकिन मानक हिंदी वर्तनी का प्रयोग दिन- ब- दिन सही तरीके से हो रहा है.इसे मानना होगा.

विनय छजलान (वेबदुनिया),वासु श्रीनिवास(बरह सॉफ्टवेयर),बालेंदु शर्मा दाधीच(माध्यम),देवेंद्र पारख(हिंदी राइटर),मंगाल और रघु नामक युनिकोड फॉण्ट प्रो.रघुनाथ कृष्ण ने विण्डोज के लिए तैयार किए.हरिराम पंसारी(इण्डिक कंप्युटिग),अभिषेक और डॉ.श्वेता चौधरी(हिंदवी सिस्टम),अलोका कुमार(देवनागरी नेट),कुलप्रीत सिंह(शून्य इन),रवि रतमाली(लिनक्स)विनाय जैन(हाइट्रॉस)ऐसे अनेक नाम है.जिनके कारण हिंदी भाषा का संगणकीय प्रणाली में विकास हुआ. ऐसे अनेक ब्लॉग है,सिस्टमस हैं,सॉफ्ट्वेअरर्स हैं जो आज मानक हिंदी वर्तनी का संगणकीय प्रणाली में प्रयोग कर रहें है. “विंडीक यह एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जो प्रयोग में बेहद आसान है.इस में अंग्रेजी के अलावा हिंदी,तमिल,गुजराती और मराठी में काम किया जा सकता है.यह बहुभाषी स्प्रेड्सीट अनुप्रयोग है,जिसमें आप भारतीय भाषाओं में व्यावसायिक आंकडों को व्यवस्थित कर सकते है, व्यावसायिक उपयोग के दस्तावेज भारतीय भाषाओं में बना सकते है. ”6 कहना आवश्यक नहीं कि कंप्युटिग हिंदी में अनेक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण हिंदी की संगणकीय प्रणाली में लोकप्रियता तथा संभावनाएँ बढ रही है.माइक्रोसॉफ्टऑफिस हिंदी में जारी करने के कारण मानक हिंदी वर्तनी का विकास संगणकीय प्रणाली में और अधिक गतिशील बना.

वैश्वीकरण के इस दौर में हिंदी भाषा ‘बाजार’से अछूती नहीं रही है.अतः “आज हिंदी के महत्त्व को बाजारवादी कारणों से भी स्वीकार किया जा रहा है.तभी अमेरिका 500 करोड डॉलर खर्च करके दक्षिण एशियायी भाषाओं के अध्य्यन के लिए तत्पर हुआ है.हिंदी का कितना हित है यह तो भविष्य ही बताएगा,पर इतना सुनिश्चित है,हिंदी की बाजारी सामर्थ्य को विश्वस्तर पर स्वीकार किया गया है.”7 हिंदी भाषा को विश्वस्तर पर जो मान्यता मिल रही है,इसका कारण स्पष्ट है और वह है,हिंदी का संगणकीय प्रणाली में बढता प्रयोग. इंटरनेट,तकनीकी,सूचना क्रांति,सूचना प्रौद्योगिकी में मानक हिंदी का बढते प्रयोग से उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले कुछ वर्षों में संगणकीय प्रणाली में हिंदी मानक वर्तनी का प्रयोग अधिक मात्रा में होगा.साथ ही साथ हिंदी का वैश्वीकमंच पर ‘मानक’ रूप प्रस्तुत होगा.इस में दो राय नहीं.

निष्कर्ष-

अस्सी के दशक से आज तक भारत में बहुभाषी शब्द संसाधक का जो विकास हुआ है वह संतोषजनक है. मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि भारतीय भाषाओं का संगणकीय प्रयोग बढता गया. प्रारंभ में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के संगणकीय प्रयोग में अभूतपूर्व क्रांति हुई नजर आती है. संगणक और भाषा खासतौर पर हिंदी भाषा का संगणकीय विकास आपातकालोत्तर अधिक मात्रा में हुआ परिलक्षित होता है. मानक हिंदी वर्तनी का विचार प्रारंभ में संगणक भाषाविदों ने किया लेकिन वह प्रयाप्त नहीं था.

प्रारंभ में सिर्फ संगणक पर हिंदी भाषा दिखायी देने से संतुष्ट होने वाले पाठक वर्तमान काल में मानक हिंदी की मॉंग कर रहें है.यह बात संगणकीय हिंदी विकास को हमारे सामने रखती है. प्रारंभ में संगणकीय भाषा का रूप स्पष्ट नहीं था. संगणक प्रणाली में किसी भी भाषा का ‘मानक’ रूप दिखाई नहीं देता था.भारतीय भाषाओं को संगणकीय प्रणाली में विकसित करने के लिए अनेक प्रयोग हुए.इन प्रयोगों के कारण ही भारतीय भाषाओं में विशेषत: हिंदी का ‘मानक’ रूप विकसित होता गया. संगणकीय प्रणाली में हिंदी मानक वर्तनी विकास पर्सनल कंप्यूटर के आ जाने और प्रेस के कारण अधिक गतिमान हुआ. खडी पाई,योजक चिह्न, अव्यय,अनुस्वार(अनुनासिकता चिह्न),विसर्ग,हल चिह्न आदि का प्रयोग संगणकीय प्रणाली में योग्य तरीके से होने के कारण हिंदी भाषा का विकास तेजी से हो रहा है.भले ही अनेका त्रुटियों के कारण संगणकीय हिंदी आज भी विवाद का विषय बनी हो. संगणकीय हिंदी शिरोरेखा के साथ प्रयोगा में आ रही है.विदेशी ध्वनीयों को भी समा रही है.

व्यावसायिक एंव व्यावहारिकता का विचार किया जाय तो वर्तमान में हिंदी का मानका रूप ही संगणक प्रणाली में दृष्टिगोचार होता है.डॉस, इस्की,इनस्र्किप्ट कुंजीपटल के साथ - साथ युनिकोड, संपूर्ण भारतीय भाषी साफ्टवेयर,लीप ऑफिस2000,डायनैमिक फॉन्ट,हिंदी लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम,विण्डोज की एक्स.पी. ,विस्ता संस्कारण,श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर,गुगल ने तो अनेक सुविधाएँ हिंदी में उपलब्ध करायी.वर्तमानकालीन संगणकीय हिंदी भाषा का अध्ययन करने से पता चलता है कि इसमें अनेक त्रुटियॉं है लेकिन मानक हिंदी वर्तनी का प्रयोग दिन- ब- दिन सही तरीके से हो रहा है.इसे मानना होगा. हिंदी की संगणकीय प्रणाली में लोकप्रियता तथा संभावनाएँ बढ रही है.माइक्रोसॉफ्टऑफिस हिंदी में जारी करने के कारण मानक हिंदी वर्तनी का विकास संगणकीय प्रणाली में और अधिक गतिशील बना.वैश्वीकरण के इस दौर में हिंदी भाषा ‘बाजार’से अछूती नहीं रही है.बाजारवाद के इस दौर में हिंदी अपना अलग वैश्वीकमंच तैयार कर आने वाले दशक में मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य संपूर्णतः विकसित होगा. इस में दो राय नहीं.

संदर्भ-संकेत

1. संपा.डॉ.शशि भारद्वाज- भाषा (द्वैमासिक पत्रिका),मई -जून 2002,पृष्ठ -135

2. www.hi .bhsrstdiscovery.org Dtd.19/12/2012

3. संपा.डॉ.शशि भारद्वाज- भाषा (द्वैमासिक पत्रिका),मई -जून 2002,पृष्ठ -136

4. वही, पृष्ठ 137

5. संपा.डॉ.शशि भारद्वाज- भाषा (द्वैमासिक पत्रिका),मई- जून 2002,पृष्ठ- 188

6. श्याम माथुर- वेब पत्रकारिता पृष्ठ -116

7.संपा.हंसराज ‘सुमन’ व एस.विक्रम -वेब पत्रकारिता ,पृष्ठ- 204

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डॉ. साताप्पा लहू चव्हाण
सहायक प्राध्यापक
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग,
अहमदनगर महाविद्यालय,
अहमदनगर - 41 4 001.
(महाराष्ट्र)
मो. 9850619074
E_mail : drsatappachavan@gmail.com

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य
साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - मानक हिंदी वर्तनी का विकसनशील संगणकीय परिदृश्य
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