चिन्तन से चिन्ता तक यशवन्त कोठारी आम चुनावो की सुगबुगाहट के बीच राजनैतिक पार्टियां अपने अपने गिरेबान में झांकने लगी है। आत्म निरीक्षण ...
चिन्तन से चिन्ता तक
यशवन्त कोठारी
आम चुनावो की सुगबुगाहट के बीच राजनैतिक पार्टियां अपने अपने गिरेबान में झांकने लगी है। आत्म निरीक्षण का समय आ गया है। चलो शिविर में चलो। विचार करो। मंथन करो। मनन करो। मंथन से नवनीत निकलेगा जो चुनाव के बाद सबके काम आयेगा। कोई जयपुर जा रहा है तो कोई पुणे या कहीं ओर। चिन्तन बहुत आवश्यक है। विचार हो या न हो, पॉलिसी हो या न हो, आवश्यकता हो या न हो चिन्तन के नाम पर एक जगह जम कर इकठ्ठा होना, हॅसी ठट्टा करना, स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेना और गम्भीर मुद्रा में फोटो खिंचवा कर मीडिया को जारी करना बहुत जरुरी है। चिन्तन शिविरों में विचार, योजना, चुनाव, मतदाता, वोट का जातिवाद, उम्मीदवार, जिताउ चोर, वोटर का स्विगं आदि सब शब्द हवा में तैरते रहते हैं। पार्टियों में विचार विभाग होता है जो पांच वर्ष तक सोता रहता है और अचानक चिन्तन शिविर में जाग जाता है। कुछ पार्टियों में थिंक टेंक होते हैं जो नीचे से फूटे होते हैं या उपर से ओवर फ्लो होते रहते हैं।
मैं भी चिन्तन के इस मौसम में देश, काल, गरीब, योजना, सरकार, व्यवस्था, नौकरशाही, बैंक, मकान, महंगाई, भ्रप्टाचार, कामचोरी, पर चिन्तन करता हूँ लेकिन मेरा चिन्तन सरकार और पार्टी के चिन्तन के स्तर तक नहीं पहुँच पाता है। पार्टी का चिन्तन स्पष्ट है, येन केन प्रकारेण अगला चुनाव जीतना और गठ बंधन से मुक्ति पाना है संसद में अंकगणित का बोल बाला है। जीतने का सेहरा बांधने के लिए 272 की संख्या चाहिये। सारा चिन्तन- मनन - मन्थन और चिन्ताएं इसी संख्या के आस पास घूमती रहती है। चिन्तन की दशा और दिशा की चिन्ता नहीं बस चिन्तन करो। सरकार के सलाहकार सरकार के चिन्तक, पार्टी के खैवनहार सब मिल कर एक ऐसी दिशा को खोजना चाहते हैं जो सत्ता के राजमार्ग की और जाती है।
चिन्तन करना कोई आसान काम नहीं हे। भाई साहब, नानी याद आ जाती है सालभर बादाम खानी पड़ती है। ऐसी कार में आना पड़ता है। ऐसी कोठी में ऐसी में रह कर दिमाग चलाना पड़ता है। यह सड़क पर चिन्ता करने का समय नहीं है।
आप अपना चिन्तन जारी रखिये। यह देश पैंसठ वर्षों से आपके चिन्तन की चिन्ता में मर रहा है, चिन्तन याने समुद्र मंथन। मन्थन से निकलने वाले सभी रत्नों को आपस में बांट लेना और जहर जनता रुपी शंकर के गले में डाल देना। बौने लोग देश की गम्भीर समस्याओं के सुलझाने के लिए अपनी बोनी अकल से चिन्ता कर रहे हैं। शिविरों में सब कुछ है- मिनरल वाटर, मिठाईयां, नमकीन, महंगी सब्जियां, रोटियां, पूरियां, अचार, रायता, चाय, कॉफी, दूध, सांयकालीन आचमन और फल, फूल, स्टाल्स, मंहगे होटल ․․․․․ आनन्द ही आनन्द․․․․․। आखिर सब लोग देश के लिए चिन्तित है और जो देश के लिए चिन्तित है उनकी चिन्ता आम आदमी को करनी पड़ती है। शिविर में शानदार व्यवस्था तो सार्थक और जानदार चिन्तन। अद्भुत मनन और निर्णायक मन्थन और नवनीत।
इन शिविरों में मैंगो मेन का प्रवेश वर्जित है, बनाना रिपब्लिक है यह सब ․․․․।
बडे बडे, बुद्धिजीवी, खांटी नेता, जमीन से जुडे, कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, राजनीति-शास्त्री, नारे लिखने वाले कवि, तकनीक विज्ञानी सब के सब मिल बैठ कर यह तय कर रहे हैं कि इस गरीब देश के लिए क्या ठीक रहेगा- गैस सिलेण्डर छः दे या नौ या फिर छः सौ रुपये नकद देकर पिण्ड छुड़ाये बस ये एक वोट दे दे फिर साले को कौन पूछता है। मेरा चिन्तन स्पष्ट है ये सभी शिविर- चिन्तक वोट नहीं देते वोट देता है मैंगो मेन और मामूली स्विंग से पाटिया अलाल हो जाता है। चिन्तन धरा रह जाता है। कुछ चिन्तक पिछले दरवाजे से शिविर में घुस जाते हैं। कुछ छत पर खड़े हो कर चिन्तन करते हैं और कुछ खिड़की से देश को देख कर चिन्तन करते हैं। सारा चिन्तन लत्ती लगाने में खर्च हो जाता है। पूरे देश में गम्भीर चिन्तन का दौर चल रहा है। राजनीतिक चिन्तकों की कमी होने लगी है। भ्रष्टाचार, मंहगाई के बजाय वोट बटोरने के नुस्खों पर चिन्तन, मनन, मन्थन चल रहा है और शायद मन्थन से कोई नवनीत निकलेगा जो आम आदमी के जख्मों पर मरहम की तरह लगेगा, इसी आशा के साथ मैंगो मेन जिये जा रहा है और वोट देने की कतार में खड़ा है। पार्टियां नई हो या पुरानी उनके चिन्तन का तरीका एक जैसा ही होता है। भ्रष्टाचार का दीमक देश को खा रहा है और पार्टियां चिन्तन में व्यस्त है।
कांग्रेस सबसे पुरानी और खांटी देशी पार्टी है। जो हर बार टूट टूट कर- बिखर बिखर कर नये रुप और नये अंदाज में सज संवर जाती है और फिर चल पड़ती है। कांग्रेस में सत्ता का चिन्तन या ने देश का चिन्तन। कांग्रेस में विरोधाभास है, गुटबन्दी है, अंग्रेजियत है, सामन्तवाद है, तानाशाही है, समाजवाद है, खुली अर्थ व्यवस्था है, धर्म निरपेक्षता है, वंशवाद है, भाई-भतीजावाद है मगर कांग्रेस फिर भी कांग्रेस है मंच पर झगड़ कर झगड़ा जीतने का चिन्तन है यह, और जो जीता वही सिकन्दर। चिन्तन अन्धों का हाथी है, शैली बदलती है, कथा वहीं रहती है, आज का युवा शैली को देखता है कथा को नहीं।
चिन्तन के सरकारी ठेकेदार आ गये हैं। मंच सज रहे हैं, लाउडस्पीकर वाला माइक सेट कर रहा है, जगह बुक हो गई है, मंच पर बैठने वालों की सूचियां तैयार है। सारा चिन्तन कुर्सी के आसपास घूम रहा है। सलाहकार सलाहें दे रहे हैं, इस बार जनता को बेवकूफ बनाने के लिए कौन सा नारा ठीक रहेगा। चिन्तन-मनन-मन्थन, सब साथ साथ चल रहे हैं। चिन्ता की कोई बात नहीं है पार्टी की पोजीशन सोलिड है। हम जादुई आंकड़े तक पहुँच जायेंगे। इस चिन्ता में चिन्तन है या चिन्तन में चिन्ता․․․․। कुछ समझ में नहीं आ रहा है। चिन्तकों एक नजर इधर भी डालो।
0 0 0
यशवन्त कोठारी, 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 2, फोन - 2670596
e-mail ID - ykkothari3@gmail़com
m--09414461207
COMMENTS