कुबेर की कहानियाँ - 3 सावन का अंधा

SHARE:

कुबेर की कहानियाँ   3 सावन का अंधा चाहे कुछ भी होे, कितना भी जरूरी काम निकल आए, प्रत्येक रविवार को वसु अपने दोस्तों से मिलने जरूर जाता ...

image2

कुबेर की कहानियाँ

 

3 सावन का अंधा

चाहे कुछ भी होे, कितना भी जरूरी काम निकल आए, प्रत्येक रविवार को वसु अपने दोस्तों से मिलने जरूर जाता है। उन मित्रों से, जिनका हृदय इतना विशाल और इतना उदार होता है कि सारी दुनिया उसमें समा जाय और जो फिर भी न भरे; दुनिया के पवित्रतम वस्तुओं से भी पवित्र, जिनसे मिलता है सच्चा प्यार और निःश्छल व्यवहार। ऐसे मित्रों से मिलने भला किसका मन आतुर न होता होगा?

आदत अनुसार उन्होंने अपनी बाइक उस दुकान के पास रोक दी जहाँ से वह हमेशा अपने मित्रों के लिए उपहार खरीदा करता है। दुकानदार मानो वसु की ही प्रतीक्षा कर रहा हो, दूर से ही उन्होंने वसु का जोशीला अभिवादन किया। मुस्कुराते हुए कहा ''अहा! वसु जी आइये-आइये; आपको देखते ही पता नहीं क्यों, मन में एक विशेष उत्साह का संचार हो जाता है। मैंने आपका सामान पहले ही निकाल कर रख दिया है। चेक कर लीजिये, फिर मैं पैक कर देता हूँ। वसु ने भी दुकानदार से उसी मुस्कुराहट और उसी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्होंने सामानों की ओर देखा। हिसाब लगाया, प्रफुल्ल और प्रतीक को जो चॉकलेट पसंद है, वह है। श्वाति और शुभ्रा की भी पसंदीदा चॉकलेट रखा गया है। श्वाति और शुभ्रा का खयाल आते ही उन दोनों का चेहरा वसु की आँखों में उतर आया। पिछली बार विदा लेते समय उन दोनों ते बड़े भोले पन से मनुहार किया था - ''वसु अंकल, अगले रविवार को क्या आप चॉकलेट के बदले हमारे लिये गुड़िया ला देंगे?''

ऐसे मनुहार पर तो दुनिया भी न्योछावर किया जा सकता है।

जब एक-एक पल की प्रतीक्षा पहाड़ के समान बोझिल और मन को तोड़ कर किसी दृढ विश्वासी व्यक्ति को भी निराशा के गर्त की ओर ढकेलने वाला होता है, पता नहीं प्रतीक्षा का एक सप्ताह उन बच्चियों ने कैसे बिताया होगा? सोच कर वसु का मन वेदना से भर गया। मन की वेदना को हृदय की स्वभावगत तरलता से नम करते हुए वसु ने कहा - ''सेठ जी, दो बार्बी डॉल भी रख दीजिये।''

वसु ने सामानों को फिर चेक किया। बाकी बच्चों के लिए भी टॉफियों का एक डिब्बा रखा हुआ है।

और रोहित के लिये?

रोहित सबसे अलग, सबसे ज्यादा मासूम और सबसे ज्यादा प्यारा बच्चा है। न तो कभी वह खिलौनों के लिए जिद्द करता है, और न मिठाइयों के लिए। उसे तो बस बाइक की सवारी चाहिये। वसु अंकल के पीछे बाइक पर बैठ कर परिसर का चक्कर लगाना उसका प्रिय शगल है।

रोहित सबसे अलग है इसलिये उसका गिफ्ट भी सबसे अलग होना चाहिये।

और आकाश?

सबसे छोट, सबसे प्यारा और सबका प्यारा आकाश। बाकी बच्चे तो केवल देखने में ही अक्षम हैं, पर आकाश?

आकाश चाहे देख न सकता हो, बोल न सकता हो, चल फिर भी न सकता हो, पर समझता तो सब कुछ है न? आँ.... करके और अपनी नन्हीं-नन्हीं ऊँगलियों को नचा-नचा कर अपनी बातें साफ-साफ कह तो सकता है न? वसु उसके इशारों को और उसके मन की एक-एक बात को अच्छी तरह से समझता है। वसु को संतोष हुआ, सामानों की इस छोटी सी ढेर में उसका भी पसंदीदा सामान है।

वसु ने अपनी जेब को टटोल कर देखा; वह लिफाफा भी सही सलामत मौजूद है, जिसमें उसने रोहित के लिये प्यारी सी एक कविता लिख कर रखा हुआ है। हाँ, रोहित के लिये, उसके जन्म दिन की बधाई की कविता, ब्रेल लिपि में।

वसु ने इत्मिनान की साँस ली।

सामानों को पैक करते हुए दुकानदार ने पूछा - ''आज जल्दी जा रहे हैं आप?''

वसु - ''हाँ, मैं चाहता हूँ कि आज वहाँ होने वाले फंक्शन से पहले ही मैं अपने मित्रों से मिल आऊँ।''

''फंक्शन?''

''हाँ, आपको पता नहीं , शुलभा जी का आज वहाँ सम्मान हो रहा है?''

''अच्छा, शहर क्लब का चेयर परसन, नगर सेठ की पत्नी, जिसे हाल ही में समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है, वही शुलभा जी न?''

हाँ वही, अँधों में काना राजा। जिनके पति जिले भर के शराब ठेकों का मालिक है; और अनाथ, निःशक्त बच्चों की इस संस्था को, और इस तरह की अन्य संस्थाओं को भी, हमेशा लाखों रूपयों का दान दिया करता है। इसी से शायद कहावत बनी होगी; गऊ मार कर जूता दान।''

''क्यों क्या हुआ? शुलभा जी तो बराबर उन निशक्त बच्चों के बीच जाती रहती हैं। अखबारों में भी तो खूब छपता है।''

''सेवा करने के लिये नहीं भाई साहब, केवल फोटो खिंचवाने के लिये; जिन्हें अखबारों में छपवाकर वाहवाही लूटी जा सके, और जिसकी एवज में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया जा सके। आप क्या समछते हैं, वह उन बच्चों से प्यार करती है?''

0

जितनी अधीरता बच्चों से मिलने के लिये वसु के मन में रहता है, उससे कहीं ज्यादा अधीरता बच्चों के मन रहता है, वसु से मिलने के लिये। यद्यपि सारे बच्चे नेत्रहीन हैं, पर वसु की उपस्थिति को पता नहीं वे कैसे भांप जाते हैं? इस रहस्य को वसु अब तक नहीं समझ सका है। विचारों में इसी गुत्थी को सुलझााने का प्रयास करता हुआ वह असक्त विद्यालय की ओर जाने वाले मार्ग पर अपनी बाइक सरपट भगाए जा रहा है।

वसु सोच रहा था; यह दुनिया, जो इन बच्चों को और इन जैसे लोगों को असक्त, अपाहिज या विकलांग कहकर इनका तिरस्कार करती है, उपहास उड़ाती है, और दया की दृष्टि से देखती है, वह कितनी स्वस्थ है? क्या मिलता है इन बच्चों को इस दुनिया और इस समाज से, अपमान और घृणा के सिवाय? ईर्ष्या, द्वेष, छल-प्रपंच, और दूसरों को हीन समझने वाली दुनिया के पास जो कुछ भी होता है; चाहे ममता, करूणा और प्रेम ही क्यों न हो, सब कुछ दिखावे के लिये ही तो होता है। दुनिया अगर इनके प्रति सेवा-भाव, ममता करूणा और प्रेम दिखाती भी है तो केवल अपना स्वार्थ साधने के लिये ही तो। और आखिर शुलभा भी तो इसी समाज का अंग है; इसी दुनिया में रहती है और खुद को सवस्थ-संपूर्णांग समझती हैं।

सोचते-सोचते वसु के मन में स्वार्थ और यश लोलुपता के आवरण में छिपा शुलभा देवी का चित्र और चरित्र, दोनों उभर आया।

0

लगभग छः महीने पहले की घटना है; अगस्त का महीना था, संस्था में पौधारोपण का कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम का चीफ गेस्ट नगर की सुप्रसिद्ध समाज सेविका और शहर क्लब की चेयर परसन शुलभा जी थी। सप्ताह भर पहले से ही कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया जा रहा था। क्यों न हो, शुलभा जी के साथ नगर क्लब की तमाम पदाधिकारी, उनकी सहेलियाँ भी तो आ रहीं थी।

पौधारोपण का कार्यक्रम प्रातः दस बजे तय किया गया था। शुलभा जी की कृपा से एक दिन पहले ही रोपणी के पौधे आ चुके थे, और उन्हें रोपने के लिये संस्था परिसर में गड्ढे भी खोदे जा चुके थे। नहीं आई थी तों बस शुलभा जी और उसकी फौज।

बेहद प्रतीक्षा के बाद शुलभा जी का काफिला आया। प्राचार्य महोदय की सक्रियता देखते ही बनती थी। शुलभा जी की अहम कोें जरा भी स्पर्श करने का मतलब स्थानांतरण से लेकर निलंबन तक कुछ भी हो सकता था।

आते ही शुलभा जी ने प्राचार्य से दो टूक शब्दों में कह दिया था कि उनके पास समय नहीं है और किसी भी हालत में, दस मिनट में सारा काम निबट जाना चाहिये।

शुलभा जी की रूप-सज्जा, सुंदरता और रूतबा देखते ही बनता था। मंहगे परिधान और कीमती आभूषण से उनकी अमीरी सब पर भारी पड़ रहा था, पर साथ मे आई बाकी महिलाएँ भी किसी से कम नहीं थी। दुर्भाग्य यह था कि स्टाफ के कुछ सदस्यों के अलावा इस नजारे को देखने वाला वहाँ और कोई नहीं था। बच्चे यहाँ के देख नहीं सकते थे; वे देख सकते थे तो बस अपने मन की आँखों से, मन की सुंदरता को। महसूस कर सकते थे तो अपने हृदय की उदात्त भावनाओं से हृदय की उदात्त भावनाओं को और छू सकते थे तो बस अपनी आत्मा की पवित्रता से आत्मा की पवित्रता को।

शुलभा जी के पास ऐसा कुछ भी नहीं था।

तैयारियाँ चाक-चौबंद थी। रोपण हेतु खोदे गए प्रत्येक गड्ढे के पास रोपणी का पौधा लिये एक-एक छात्र तैयार खड़ा था। अतिथियों के नाम की पट्टिका युक्त ट्रीगार्ड भी गड्ढों तक पहुँचा दिये गए थे। रोपण के पश्चात् जल सिंचन हेतु हजारा लिए दूसरा व्यक्ति तैयार खड़ा था। हाथ धुलवाने के लिये मंहगे साबुन की टिकिया ट्रे में सजा कर फिर दूसरा व्यक्ति, तथा हाथ पोंछने के लिये भी स्वच्छ तौलिये का ट्रे लिये एक अन्य व्यक्ति तैयार खड़ा था।

शुलभा जी ने देखा, रोपण हेतु खोदे गए गड्ढों के आसपास रात में हुई बारिश के कारण कीचड़ हो गए हैं। कीचड़ देख कर उसकी नाक में सिलवटे पड़ गई। उचित जगह की तलाश करते हुए उनकी निगाहें कार्यालय के मेन गेट के पास की सूखी, पथरीली जमीन पर जाकर टिक गई। इससे अच्छी जगह उसे भला और कहाँ मिलती?

मुख्य अतिथि का इरादा भाँप कर प्राचार्य महोदय ने अपने कर्मचारियों को इशारा किया कि ऑफिस के गेट के पास पौधारोपण की तैयारी किया जाय। एक शिक्षक ने प्राचार्य के कान में कहा - ''सर, वहाँ की जमीन तो पथरीली है और ऊपर रेत भी है।''

प्राचार्य ने उसे बुरी तरह झिड़क कर चुप करा दिया।

आसपास की रेत की रेत को इकत्रित करके शुलभा जी को पौधरोपण कराया गया। पानी भी सींचा गया। हाथ हटाते ही पौधा एक ओर लुड़क गया।

शुलभा जी के रेत सने गंदे हाथ धुलवाए गये।

इस बीच शुलभा जी का कैमरामैन हर एक क्षण को बड़ी तन्मयता के साथ अपने कैमरे में कैद कर रहा था।

अगला कार्यक्रम था बच्चों से मिलने का। शुलभा जी ने बच्चों की ओर देखा, और इसी के साथ इन विकलांग बच्चों के प्रति उसके मन का छद्म प्यार उसके चेहरे पर उतर आया।

शुलभा जी ने सोचा होगा - ये दृष्टिहीन बच्चे उसके इस भाव को थोड़े ही देख सकेंगे; पर उसे क्या पता, बच्चे उसके चेहरे को पहले ही पढ़ चुके थे।

बच्चे बहुत ही शालीन और अनुशासित ढंग से कतार में खड़े थे। अपने व्हील चेयर पर आकाश भी इस कतार में शामिल था। बच्चे अनुशासन का पालन करते हुए खड़े जरूर थे पर उनके चेहरों की भाव शून्यता अपनी कहानी स्वयं कह रहे थे। बच्चों के चेहरो पर वित्तृष्णा के भाव स्पष्ट दियााई दे रहे थे।

शुलभा जी बड़े प्यार से बच्चों से मिल रही थी। किसी के साथ हाथ मिला रही थी, किसी के सिर पर हाथ फेर रही थी तो किसी को गले लगा रही थी। उसका कैमरा मैन इन क्षणों को बड़ी तन्मयता के साथ अपने आधुनिक डिजिटल कैमरे में कैद कर रहा था।

उनका यह सारा प्रेम कैमरे के आन रहते तक ही था। कैमरा बंद होते ही उनकी असलियत एक बार फिर उसके चेहरे पर तैरने लगी। अपने हाथों को वह ऐसे झटक रही थी मानो भूलवश उन्होंने किसी गंदी वस्तु को छू लिया हो। हाथ धुलाने वाला पास ही खड़ा था, उन्होंने पहल की; तभी शुलभा जी के सहायक ने उसके कानों में कुछ कहा। नाक-भौंह सिकोड़ते हुए शुलभा जी ने आकाश की ओर देखा, उसके चेहरे पर घृणा की अनेकों गहरी रेखाएँ उभर आई; पर काम जरूरी था, करना ही होगा।

आकाश को गोद में लेकर फोटो खिंचवाना निहायत जरूरी था।

चेहरे पर फिर ममता का मुखौटा लगाकर शुलभा जी ने आकाश को गोद में लेने का प्रयास किया। आकाश ने पूरे मनोयोग से, चिल्लाकर अपनी असहमति जताई।

फोटो खिंच जाने के बाद शुलभा जी के मन की घृणा और क्रोध एक साथ फूट पड़ा। आकाश को उसके व्हील चेयर पर लगभग फेंकते हुए वह हाथ धोने के लिये आगे बढ़ गई।

यह सब देख वसु का हृदय क्रोध से उबल पड़ा। मन में आया कि मन और हृदय, दोनों से ही विकलांग इस महिला को तुरंत परिसर से बाहर जाने का रास्ता दिखा देना चाहिये; पर उसके अधिकार में कुछ न था।

वसु इस संस्था का नियमित कर्मचारी नहीं है, परंतु इन बच्चोें से लगाव होने के कारण उन्होंने ब्रेल लिपि सीखी, संकेत की भाषा सीखी। वह इन बच्चों की निःस्वार्थ सेवा करना चाहता है। संस्था के प्राचार्य ने वसु के इस मानवीय कर्तव्य के निर्वहन को सराहते हुए बच्चों से मिलने की उसे अनुमति दे रखी है। शुलभा जी से तकरार मोल लेकर वह अपने लिए इस परिसर का गेट हमेशा के लिए बंद नहीं करवाना चाहता था।

वसु ने शुलभा जी की तरह न तो कभी फोटो खिंचवाया और न ही प्राचार्य से किसी प्रकार का प्रशस्ति पत्र ही मांगा। उसे तो बस इन बच्चों से मिलना और उनके साथ खुशियाँ बाटना ही अच्छा लगता है।

0

आज फिर वही सब कुछ होने वाला था। वह इस फंक्शन में किसी भी हालत में आना नहीं चाहता था। बच्चों की जिद्द और रोहित का जन्म दिन नहीं होता तो वह कदापि न आता। पर इसके लिए भी उसने रास्ता खोज लिया था; फंक्शन के पहले ही वह इन बच्चों से मिल कर लौट आयेगा।

वसु ने कई बार सोचा कि अचानक पहुँच कर हच्चों को सरपराइज किया जाय, पर अब तक वह सफल नहीं हो पाया है।

पहले उन्होंने सोचा था, बच्चे शायद आवाज से उन्हें पहचान जाते होंगे। पर नहीं, सरपराइज देने के लिये वह कई बार बिना कोई आवाज किये भी उनके बीच जाकर देख चुका है। पल भर देर से ही सही, वे पहचान जाते हैं। शायद बालों में लगाए गये तेल की गंध से पहचान जाते हों? उन्होेंने बिना तेल के और तेल बदल कर भी इस शंका का निवारण कर लिया है। फिर उन्होंने सोचा, शायद बाइक की दूर से आती आवाज से वे पहचान लेते होंगे। हाथ कंगन को अरसी क्या? आज इसकी भी जाँच कर लिया जाय।

वसु ने बहुत पहले ही अपनी बाइक छोड़ दी। पैदल चल कर उसने संस्था में प्रवेश किया। फंक्शन की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा था। रोहित सभा स्थल से दूर, हाथ में वाकिंग स्टिक लिये सबसे अलग, सबसे दूर खड़ा हुआ था, जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहा हो। दबे पाँव आकर वसु उससे कुछ दूरी पर खड़ा हो गया और उसके चेहरे पर उभर रहे भावों को पढ़ने का प्रयास करने लगा। क्षण भर बाद ही रोहित के चेहरे पर राहत और खुशी के मिलेजुले भाव तैरने लगे। उन्होंने पुकारा - ''वसु अंकल?'

वसु अभी और परीक्षा लेना चाहता था, कुछ न बोला।

अब रोहित तेज कदमों से चलता हुआ आकर वसु से लिपट गया। कहा - ''अंकल, आप बोलते क्यों नहीं, नराज हैं?''

''हैप्पी बर्थ डे टू यू माई फ्रैंड, हैप्पी बर्थ डे टू यू ।''

अब तो बाकी दोस्त भी रोहित के पास आ गये और मिलकर 'हैप्पी बर्थ डे टू यू माई फ्रैंड, हैप्पी बर्थ डे टू यू'; गीत गाने लगे।

वसु ने कहा - ''माय डियर, नाराजगी नहीं, सरपराइज, अंडरस्टैण्ड?''

रोहित की खुशियों का ठिकाना न रहा।

वसु ने जन्म दिन की कविता रोहित के हाथ में रख दिया। पढ़कर रोहित पुनः वसु से लिपट गया। सभी मित्रों ने भी वह कविता पढ़ी -

''मित्र! तुम सबसे अच्छे हो

हाँ मित्र!

इस दुनिया की सबसे अच्छी वस्तु से भी,

और तुम सबसे सुंदर भी हो

इस दुनिया की तमाम सुंदर वस्तुओं से भी।

मित्र!

तुम्हारा मन सबसे अधिक उजला है

चाँद-तारों से भी अधिक,

और तुम्हारा हृदय बहुत गहरा, बहुत विशाल है

आसमान और समुद्र से भी अधिक

क्योंकि -

ईश्वर ने अपने ही हाथों, पवित्र मन से

और सृजन के पवित्रतम पलों में तुम्हें बनाया है।

मित्र!

तुम दुनिया की हर कठिनाई को जीत सकते हो

क्योंकि -

दुनिया को बिना शिकायत के तुमने अपनाया है

दुनिया में तुमने केवल मित्र बनाया है।''

बधाई पत्र पढ़कर बच्चे फिर चहक उठे।

बिदा होने का समय आ गया। पता नहीं कि रोहित को क्या सूझा। उसने पूछ लिया - ''अंकल, सावन का अंधा क्या होता है?''

वसु के मन में आया, कह दे कि शुलभा जैसे लोग ही सावन के अंधे होते हैं; पर उसका मन राजी न हुआ। निष्कपट बच्चों के मन में दुर्भावना का बीज बोना उचित नहीं था। उन्होंने कहा - ''बच्चों, गलत चीजों को देख कर भी जो नहीं देखता, वही सावन का अंधा होता है।''

वसु के विदा होते ही सावन के अंधों का काफिला पहुँच गया।

000

कथाकार - कुबेर

जन्मतिथि - 16 जून 1956

प्रकाशित कृतियाँ

1 - भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003

2 - उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009

3 - भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010

4 - कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011

5 - छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोककथाओं का संग्रह) 2013

प्रकाशन की प्रक्रिया में

1 - माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)

2 - और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)

संपादित कृतियाँ

1 - साकेत साहित्य परिषद् की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010

2 - शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका 'नव-बिहान' 2010, 2011

पता

ग्राम - भोड़िया, पो. - सिंघोला, जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)

पिन - 491441

मो. - 94076 85557

ई. मेल - kubersinghsahu@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कुबेर की कहानियाँ - 3 सावन का अंधा
कुबेर की कहानियाँ - 3 सावन का अंधा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpwx0oxQzQrHQ845qOzWLznvOhoX0kbgz0lyHQtzvCO5XDcU6xV4VTp9_1RBRKNNLUOL_IDJvj9WW9aVz0X80_IlGgKapBhW5YENKchP8aYG9yyf8zoX3GUqiLNPpDdPiHlzib/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpwx0oxQzQrHQ845qOzWLznvOhoX0kbgz0lyHQtzvCO5XDcU6xV4VTp9_1RBRKNNLUOL_IDJvj9WW9aVz0X80_IlGgKapBhW5YENKchP8aYG9yyf8zoX3GUqiLNPpDdPiHlzib/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/02/3.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/02/3.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content