कुबेर की कहानियाँ - 7 : क्या वह रघुनाथ नहीं था

SHARE:

कुबेर की कहानियाँ 7 : क्या वह रघुनाथ नहीं था बीस-पचीस साल पहले की बात है। गड्ढों से अटी-पड़ी, कच्ची सड़क पर बुरी तरह हिचकोलें खाती और पीछ...

image2

कुबेर की कहानियाँ

7 : क्या वह रघुनाथ नहीं था

बीस-पचीस साल पहले की बात है।

गड्ढों से अटी-पड़ी, कच्ची सड़क पर बुरी तरह हिचकोलें खाती और पीछे धूल का बादल छोंड़ती हुई बस अंततः भोलापुर के बस अड्डे पर आकर रुकी। बस का यह अंतिम पड़ाव था और इसे यहीं पर रात्रि विश्राम करना होता था। अशोक ने अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया। सामान के नाम पर कंधे पर लटकाकर चलने वाले एक बड़े बैग के सिवा और कुछ न था।

नवंबर का प्रथम सप्ताह था और चार दिन बाद ही दीपावली का त्यौहार आने वाला था। नीचे उतरते ही ठंडी हवाओं का एक झोंका आया और बदन को कंपा गया। उसने अपना स्वेटर ठीक किया, मफलर कंसा और बैग को कंधे पर लटकाते हुए आस-पास का मुआयना किया। अपनी कलाई घड़ी की ओर देखा, पर रात के अंधेरे की वजह से वह समय नहीं पढ़ पाया। उन्होंने अंदाजा लगाया, आठ से ऊपर तो हो ही गया होगा।

कुछ ही कदमों की दूरी पर विमला का पान ठेला था। कुछ समीप जाकर उसने पान ठेले की दीवार पर टंगी दीवार घड़ी के डायल पर कांटों की स्थितियाँ देखी। आठ बजकर पंद्रह मिनट हो चुके थे। गाँव-देहात के हिसाब से काफी रात हो चुका था। यहाँ से डेढ़-दो किलोमीटर सुनसान और जंगली रास्ते पर पैदल चलकर गाँव तक पहुँचना आसान काम नहीं था; तब तो बिलकुल भी नहीं जब कोेई हमसफर भी न हो और रास्ते पर एक बरसाती नाला पड़ता हो जिसमें अभी भी घुटनों तक पानी बह रहा होगा; और एक मरघट पड़ता हो जहाँ महीने दो महीने में एक न एक चिता जरूर जलाई जाती हो, और जिसके बारे में भूत-प्रेत और ब्रह्म राक्षसों से संबंधित अनेक डरावनी कहानियाँ प्रचलित हो। उसे रघुनाथ पर क्रोध आया। हमेशा अपनी सायकिल लेकर सेवा में उपस्थित रहने वाले रघुनाथ ने आज अच्छा धोखा दिया था।

रघुनाथ उसी के गाँव का रहने वाला और उसके बचपन का मित्र है। अशोक पढ-़लिखकर शिक्षक हो गया है परंतु रघुनाथ अपनी गरीबी की वजह से प्रायमरी से अधिक पढ़ नहीं पाया और गाँव में ही कृषि-मजदूरी करके अपनी आजीविका चलाता है। बहुत मेहनती, निडर और बहुत जिंदादिल इंसान है वह और बहुत रोचक बातें करता है। उसे पच्चीसों लोककथाएँ याद हैं। भूत-प्रेत की दसियों कहानियाँ भी उसे याद हैं। गाँव और आसपास की घटनाओं की अनेक रोचक संस्मरण भी याद हैं उसे। कहानियों और घटनाओं को प्रस्तुत करने का उनका अपना ही अंदाज है। अंदाज ऐसे कि कपोलकल्पित बातों को भी आप यथार्थ मानने के लिये मजबूर हो जायें। मजेदार इतनी कि हँस-हँसकर आप लोटपोट हो जायें। उसके साथ रहकर, उसकी बातें सुन-सुनकर कभी कोई बोरियत महसूस नहीं कर सकता। उनकी बातें सुनने के लिये तरसते हैं लोग। उनके साथ में होने से समय कैसे कटता है, रास्ता कैसे कटता है, पता ही नहीं चलता। पर आज अशोक को अकेले ही रास्ता तय करना था। उन्होंने बैग को कंधे पर लटकाया। गढ़माता मैया को मन ही मन स्मरण किया, छोटी सी यह यात्रा सकुशल पूरी हो जाय, इसके लिये मनौती मांगी और अंधरे, सुनसान, कच्ची सड़क पर गाँव की और चल पड़ा।

जंगल तो अब कट चुके हैं, जंगली जानवर के नाम पर अब तो एक लोमड़ी भी दिखाई नहीं देती; इनका कैसा डर? रह गई बात श्मशान से बाबस्ता लोगों के बीच प्रचलित भूत-प्रेत की घटनाओं की; सो ये भी निरा कपोलकल्पित बातें ही होती है।

0

चलते-चलते अशोक को पिछली बार की बातों का स्मरण हो आया। एक बार जब ऐसे ही रात में रघुनाथ उसे लेने आया था तब उसने कह था - ''अशोक गुरूजी, भूत-प्रेत का होथे जी? कोनों देखे हें का? सब बनावल बात ए।''

अशोक ने कहा था - ''पिछले साल भोलापुर की मंडाई के दिन मरघट्टी के सेमल पेंड़ पर रात भर टोनही 'बरती' रही, भय के मारे गाँव का कोई भी आदमी उस दिन नाचा देखने जा नहीं सका था। तुम कहते हो कि ये सब कपोलकल्पित बातें हैं?''

अशोक की बातें सुनकर एक लंबा ठहाका लगाया था और काफी देर तक हँसता रहा था रघुनाथ। अशोक ने कहा - ''अबे फोकू इसमें इतना हँसने की क्या बात है? सब जानते हैं इस घटना के बारे में कि सेमल की पेड़ पर उस रात घंटे भर तक टोनही 'बरती' रही, आग के गोले उसके मुँह से निकल-निकल कर टपकते रहे, और तू हँसता है?''

''अरे मितान, पेड़ तीर जा के भला कोनों देखिन का, कि का जिनिस ह बरत हे? दुरिहच् ले देख के वोला टोनही कहि दिन।'' हँसते-हँसते रघुनाथ ने कहा था।

अशोक ने कहा था - ''वाह! ऐसे बोल रहे हो कि केवल तुम ही इसकी हकीकत जानते हो?''

रघुनाथ - ''अउ नइ ते का?'' और फिर टोनही 'बरने' की इस घटना के पीछे की हकीकत जो उन्होंने बताई तो हँस-हँसकर अशोक का भी बुरा हाल हो गया था। दरअसल, उस रात लोगों को डराने के लिये इन्होंने ही सायकिल की एक पुरानी टायर को जलाकर पेड़ पर लटका दिया था।

अशोक ने कहा - ''सो तो ठीक है। मेरे साथ भी एक अजीबोगरीब घटना घटी है। बताओ भला वह क्या था?''

रघुनाथ ने आतुरता पूर्वक पूछा - ''का ह?''

अशोक ने अपने साथ घटित उस अजीबोगरीब घटना के बारे में बताना शुरू किया।

0

जिस गाँव में मैं पदस्थ हूँ वहाँ शाला परिसर से लगा हुआ ही शिक्षकों के लिये क्वार्टर्स बने हुए है। आहाता विहीन इस परिसर के सामने की ओर खेल का बडा़ सा मैदान है, जहाँ शाला लगने के दौरान बच्चे खेला करते हैं। बाकी तीन ओर खेत और झाड़ियाँ हैं। दूरस्थ अंचल स्थित, पहुँच विहीन इस गाँव में तास की पत्तियाँ ही मनोरंजन का एकमात्र साधन होती हैं। मैं अविवाहित था, अतः रात्रि भोजन के बाद अन्य शिक्षक साथी मेरे ही क्वार्टर पर तास खेलने के लिये जुट जाते थे। सितंबर-अक्टूबर का महीना रहा होगा। एक तो आसमान में हल्के-हल्के बादल थे और अमावस की रात थी, अतः बाहर अंधेरा कुछ अधिक ही घना था। झाड़ियों की ओर खुलने वाली खिड़की के पास ही मेरा बिस्तर लगा हुआ था जिसमें बैठकर हम चार मित्र लालटेन की धुंधली रोशनी में तास खेल रहे थे।

तास की पत्तियों को व्यवसिथत करते हुए मैंने बिड़ी की गड्डी में से चार बीड़ियाँ निकालकर दियासलाई से सुलगाया और साथियों की ओर बढा़ दिया। हम सब बीड़ियों का कश लेने लगे। एक मित्र ने कहा - ''अबे, तुम्हीं लोग पियोगे, मुझे नहीं दोगे?''

मैंने कहा - ''अबे, तुझे भी तो दिया हूँ , मजाक क्यों करता है।''

लेकिन सच यही था कि उसने बिड़ी नहीं ली थी। हमें आश्चर्य हुआ कि आखिर वह चौंथी बिड़ी गई कहाँ? किसने ली?

हमारी दिनचर्या और आदतें रूढ़ होकर मश़ीनी हो जाती हैं। अगले दिन फिर वही महफिल सजी। मैंने फिर बिड़ी सुलगाई, लेकिन उस दिन मैं चौकन्ना था। बिड़ी बाँटते वक्त मैं बराबर निगरानी कर रहा था और कल वाली चालाकी को पकड़ना चाहता था। बाकी तीनों साथी इन बातों से बेखबर अपने-अपने पत्तों में व्यस्त थे। तभी एक हाथ पहाड़ी तरफ वाली खुली हुई खिड़की से अंदर आया। जाहिर था कि उसे भी बिड़ी चहिये थी। आश्चर्य के साथ मैंने खिड़की से बाहर खड़े उस आदमी की ओर ध्यान केद्रित किया। बाहर अंधेरा घना था और कमरे के अंदर जल रहे लालटेन की पीली, मद्धिम रोशनी में उस व्यक्ति को पहचानना संभव नहीं था। लेकिन सहसा उसके चेहरे पर जलती हुई दोनोें आँखों को देखकर मैं एक बारगी कांप गया। मैंने उसके हाथ पर सुलगी हुई एक बिड़ी रख दी। बिड़ी लेकर वह हाँथ और जलती हुई दोनों आँखे गायब हो गई।

स्कूल के आसपास रात में किसी जिन्न की उपस्थिति की चर्चा गाँव में अक्सर होती रहती थी, और इसी भय के चलते अंधेरा घिरने पर लोग इधर आने से भय खाते थे; और अक्सर हम लोगों को भी इस संबंध में हिदायतें देते रहते थे। खिड़की के अंदर बिड़ी के लिये आया किसी का हाथ और बाहर उसके वेहरे पर जलती हुई दोनों आँखों को देख कर मेरे मस्तिष्क में उसी जिन्न का भय घर कर गया। मित्रों के अंदर भी यह भय व्याप्त न हो जाय, इसलिये उस वक्त इस घटना का जिक्र मैंने किसी से नहीं किया।

तथाकथित जिन्न के भय से उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाया, यद्यपि रात में ऐसी-वैसी, और कोई घटना नहीं घटी। सुबह मित्रों से मिलने पर सबसे पहले मैंने इसी बात का जिक्र किया और एक दिन पहले बिड़ी गायब होने के रहस्य पर से परदा उठाया। मित्रों के चेहरों पर भय की रेखाएँ साफ दिखने लगी थी।

काफी सोच-विचार करने के बाद हम लोगों ने निर्णय लिया कि बात हम चारों के बीच ही रहे, इस घटना का जिक्र और किसी से न किया जाय, क्योंकि पहली बात - गाँव के लोग पहले ही इस स्कूल परिसर के आसपास इस तरह की घटना पर विश्वास करते आ रहे हैं, इससे उनका विश्वास पक्का हो जायेगा। अपने अंधविश्वास के चलते वे स्वभाविक रूप से भूत-प्रेत के अस्तित्व पर विश्वास करने वाले होते हैं इसीलिय इससे गाँव में दहशत फैलने में समय नहीं लगेगा। या फिर दूसरी बात - हो सकता है हमें डराने के लिये किसी ने शरारत किया हो; और यदि एैसा हुआ तो हम सब उपहास का पात्र बनेंगे। कोई भी कदम उठाने के पहले घटना की हकीकत समझना जरूरी है।

घटना की हकीकत समझने के लिये अगली रात हम लोग पूरी तैयारी से बैठे। अन्य दिनों की तरह ही हमने खिड़की खोल दी। रोशनी की कमी को पूरा करने के लिये लालटेन की संख्या बढ़ा दी गई। जैसे ही मैंने बीड़ी जलायी, खिड़की से वह हाथ फिर अंदर आया। हम सबकी निगाहें खिड़की के बाहर खड़े उस व्यक्ति के चेहरे पर जम गई। काले खुरदुरे चेहरे के बीच उसकी जलती हुई आँखों को देखकर हमारे शरीर पर भय की झुरझुरी दौड़ गई, रोएँ खड़े हो गए। एक ने टॉर्च उठा ली, परंतु मैंने उसे मना कर दिया। बिड़ी लेकर वह चला गया।

अब तो रोज इस घटना की पुनरावृत्ति होने लगी।

लगभग सप्ताह भर बाद की बात है। उस दिन हमारा एक साथी किसी काम से बाहर गया हुआ था और हम तीन लोग ही तास खेल रहे थे। सहसा हवा के झोंके की तरह वह आदमी खिड़की से होकर अंदर आया और चौथे साथी की जगह पर बैठ गया। सामान्य व्यक्ति इस तरह खिड़की से होकर अंदर नहीं आ सकता था क्योंकि उसके चौखटे पर लोहे की मजबूत सलाखें लगी हुई थी। उसके शरीर पर सफेद वस्त्र थे जो मटमैला हो गया था। आँखें रोज की तरह जल रही थी। इतना तो तय था कि वह मानव सदृष्य, कोई मानवेत्तर प्राणी था और कम से कम इस गाँव का रहने वाला नहीं था।

अब तक उसने हम में से किसी को भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था अतः उसकी ओर से हमारे अंदर का भय काफी हद तक समाप्त हो चुका था फिर भी इस घटना के लिये हम में से कोई भी तैयार नहीं था और एक बार फिर हम सब अंदर तक कांप गए। डर के कारण हम बोल भी नहीं पा रहे थे। अगली बार उसे भी पत्ते बांटे गये। मैंने बीड़ी सुलगा कर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा - ''आ गए काका?''

मेरी बातों का उसने न तो कोई जवाब दिया और न ही उसके चेहरे पर किसी तरह के भाव ही आये। उस रात हमने अपना खेल जल्दी ही समेट लिया। वह व्यक्ति किसी से बिना कुछ कहे उसी खिड़की के रास्ते बाहर चला गया।

यद्यपि उसने अब तक हममें से किसी को कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचाया था, फिर भी इस तरह की घटना का जारी रहना उचित नहीं था। अगले दिन इस समस्या से निजात पाने के लिये हम लोगों ने काफी विचार-विमर्श किया।

निष्कर्श में जाहिर था कि वह कोई मनुष्येत्तर प्राणी ही था, पर स्वभाव से भला था। गाँव वालों के अनुसार कुछ साल पहले गाँव के किसी व्यक्ति की अचानक मौत हो गई थी। उसी की आत्मा आसपास भटकती थी। यह वही हो सकता था। अंतिम निष्कर्श यह निकला कि उसे बिड़ी पीने की आदत है और बिड़ी की चाह में हम तक आता है।

एक मित्र ने कहा - ''उसे ताश का भी शौक है। आप लोगों ने शायद ध्यान नहीं दिया होगा, वह खिड़की के बाहर से ही हमें ताश खेलते हुए देखता रहता है।''

एक मित्र ने उपाय सुझाया कि किसी तांत्रिक की मदद ली जाय और परिसर के चारों ओर मांत्रिक सुरक्षा कवच का घेरा बनवा दिया जाय।

मैं तांत्रिक के पक्ष में नहीं था क्योंकि स्कूल परिसर में इस तरह की हरकत से पढ़ने वाले बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता और प्रशासन को इसकी भनक लगने से हम पर कार्यवाही भी हो सकती थी। अचानक मेरे मन में एक उपाय सूझी। मेैंने कहा - ''क्यों न आज हम उस व्यक्ति की समाधि पर बिड़ी का कट्टा और माचिस अर्पित करके हाथ जोड़ ले।''

तीनों मित्र मेरे इस उपाय पर सहर्ष सहमत हो गए।

दूसरे ने कहा - ''साथ में ताश की एक गड्डी भी रख देंगे।''

इस सुझाव पर भी हम सब सहर्ष सहमत हो गए।

शाम को हमने ऐसा ही किया।

हमारी तरकीब काम कर गई। उस रात वह नहीं आया। हमने राहत की सांस ली।

एक मित्र ने तर्क दिया कि बिड़ी खत्म होने पर वह फिर आ सकता है इसलिये बिड़ी चढ़ावे का यह क्रम हमें बनाये रखना चाहिये।

उसका यह सुझाव भी मान लिया गया और रोज शाम उस समाधि पर बिड़ी और माचिस-चढ़ावे का क्रम शुरू हो गया।

एक दिन गाँव के किसी व्यक्ति ने हमें उस समाधि पर बिड़ी चढ़ाते हुए देख लिया। उसने इसका कारण पूछा। विवश होकर उस दिन हमने उसे पूरी घटना के बारे में बता दिया। बात गाँव भर में फैल गई और उस दिन से उस समाधि पर गाँव वाले भी बिड़ी-माचिस चढ़ाने लगे।

उसे हमने फिर कभी नहीं देखा।

0

रघुनाथ अशोक की बातों को पूरे समय तक पूरी एकाग्रता पूर्वक सुनता रहा। घटना सुनाने के बाद अशोक ने पूछा - ''बताओ भला! यह क्या है?''

रघुनाथ ने कहा - ''लोगन रघुनाथ ल गप्पी कहिथें। तंय ह कब ले गप मारे के शुरू कर देस?''

अशोक ने कहा - ''यह गप्पबाजी नहीं है, हकीकत है।''

तब तक वे लोग घर पहुँच गये थे और बात वहीं अधूरी रह गई थी।

0

बीच में पड़ने वाले नाले के पास पहुँच कर अशोक के विचारों का क्रम टूटा। अंधेरा पक्ष चल रहा था, अंधेरा घना था, परंतु उसके पास टार्च थी और उसे नाला पार करने में अधिक कठिनाई नहीं हुई। नाला पार करने के बाद अशोक पुनः यादों में खो गया।

रघुनाथ जब पिछली बार उसे गाँव से भोलापुर छोड़ने आया था तब उसने पूछा था - ''अब तो दिवारी तिहार आने वाला हे, के तारीख के आबे बता दे रहा, तोला लेगे बर आ जाहूँ।''

अशोक ने कहा था - ''अबे गप्पू, देवारी तिहार अभी डेढ़ महीना बचा है। पर हाँ इस साल तिहार के दिन हम दोनों एक जैसे कपड़े पहनेंगे। नांदगाँव से लाऊँगा, तेरे लिये और मेरे लिये,, जींस और टी शर्ट, बिलकुल एक जैसा।''

''कपड़ा लाबे कि झन लाबे, मिठाई जरूर लाबे भई। नांदगाँव के मिठाई ह गजब सुहाथे।'' रघुनाथ ने कहा था।

चलते-चलते अशोक ने बैग में टटोल कर देखा, कपड़े भी थे और मिठाइयाँ भी थी।

दूर से ही श्मशान में दहक रहे चिते की अंगारों को देख कर अशोक का मन खिन्न हो उठा। गाँव में आज फिर किसी की मौत हुई थी। भरी दीवाली में पता नहीं किस परिवार के ऊपर वज्रपात हुआ था। श्मशान के नजदीक पहुँचने पर चिते की दहकते अंगारों की पीली रोशनी में उसने देखा, बीच सड़क पर कोई आदमी खड़ा है। और नजदीक पहुँचने पर अशोक ने उसे पहचान लिया, वह रघुनाथ ही था। अशोक ने सोचा, किसी वजह से उसे लेट हो गया होगा और वह भोलापुर तक नहीं पहुँच पाया होगा। उसने राहत की सांस ली; घर पहुँचने पर माँ की डाँट से अब वह बच सकता था। रात में इस तरह अकेले आने पर अशोक को हमेशा माँ की डाँट खानी पड़ती थी। अशोक ने कहा - ''अबे गप्पू, आज लेट कैसे हो गया? तेरी सायकिल कहाँ है? और तूने अपनी ये कैसी हालत बना रखी है। इतनी ठंड में केवल गमछा लपेट कर चला आया है।''

उसने कोई जवाब नहीं दिया।

बिड़ी सुलगा कर अशोक ने उसकी ओर बढ़ दिया। उसने चुपचाप बिड़ी ले ली और कश खींचने लगा।

उसने फिर हाथ बढ़ाया। अशोक समझ गया, अब उसे मिठाई चाहिये थी। उसने टटोलकर बैग से मिठाईयों का डिब्बा निकाला। डिब्बा उसके हाथों में देते हुए उसने कहा - ''अब कपड़े मत मांगना, वह तो तिहार कि दिन ही मिलेंगा।''

चलते हुए अशोक ने कहा - ''अब चलो भी, यहीं खड़े रहोगे।''

उसने कुछ नहीं कहा और चुपचाप अशोक के पीछे-पीछे चलने लगा। उसकी चुप्पी पर आज अशोक को हैरत हो रही थी। चलते-चलते उससे उसने बहुत सारे सवाल पूछे कि जल रही चिता किसकी है? फसल कैसी है? पर उसने उसकी किसी बात का कोई जवाब नहीं दिया। केवल अशोक ही बकबक किये जा रहा था और वह चुपचाप सुने जा रहा था। उसकी चुप्पी पर अशोक को गुस्सा आ रहा था। उसे डाँटने के लिये उसने अगल-बगल देखा। अशोक को आश्चर्य हुआ, पता नहीं वह कब और कहाँ गायब हो गया था।

घर पर अशोक की ही प्रतीक्षा हो रही थी। पहुँचते ही माँ की डाँट शुरू हो गई कि कितनी बार कहा है, रात-बिकाल अकेले मत चला करो।

अशोक ने कहा - ''अकेला कहाँ था माँ, रघुनाथ लेने गया था न।''

रघुनाथ का नाम सुनते ही माँ नरम हो गई। उसने कहा - ''काबर लबारी मारथस रे बाबू, वो बिचारा ह अब कहाँ ले आही?''

''का हो गे हे रघुनाथ ल? अभी तो मोर संग म आइस हे।'' अशोक ने कहा।

''मरघट्टी म चिता बरत होही, नइ देखेस बेटा।'' माँ ने लगभग रोते हुए कहा।

तो क्या वह चिता रघुनाथ की है? अशोक सहम गया। उसको सहसा विश्वास नहीं हुआ। कुछ देर पहले देखा हुआ उसका खुला बदन, मौन और भावशून्य चेहरे पर उसकी जलती हुई आँखें उसकी नजरों में कौंध गई। निढाल होकर वह कुर्सी पर पसर गया। आँखों से आँसू बहने लगे।

रघुनाथ के मरने की सारी कहानी माँ ने उसे सुना दी।

दूसरे दिन सुबह अशोक ने भारी मन से उसके लिये खरीदी गई जींस और टी शर्ट को बैग से निकाला और उसकी बुझ चुकी चिता के पास रख आया।

000

कथाकार - कुबेर

जन्मतिथि - 16 जून 1956

प्रकाशित कृतियाँ

1 - भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003

2 - उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009

3 - भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010

4 - कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011

5 - छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोककथाओं का संग्रह) 2013

प्रकाशन की प्रक्रिया में

1 - माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)

2 - और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)

संपादित कृतियाँ

1 - साकेत साहित्य परिषद् की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010

2 - शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका 'नव-बिहान' 2010, 2011

पता

ग्राम - भोड़िया, पो. - सिंघोला, जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)

पिन - 491441

मो. - 94076 85557

ई. मेल - kubersinghsahu@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कुबेर की कहानियाँ - 7 : क्या वह रघुनाथ नहीं था
कुबेर की कहानियाँ - 7 : क्या वह रघुनाथ नहीं था
http://lh5.ggpht.com/-a9oxjgS1BHE/USM-tqpXaRI/AAAAAAAAT_0/6MBJOcvS3eo/image2_thumb.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-a9oxjgS1BHE/USM-tqpXaRI/AAAAAAAAT_0/6MBJOcvS3eo/s72-c/image2_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/02/7_19.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/02/7_19.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content