कुबेर की कहानियाँ - 9 : वे क्यों रोए

SHARE:

कुबेर की कहानियाँ 9 : वे क्यों रोए अजय साहब अपना सामान ट्रक में भर कर चले गए। कब गए किसी को पता नहीं चला। न कहीं कोई हलचल हुई और न ही क...

image2

कुबेर की कहानियाँ

9 : वे क्यों रोए

अजय साहब अपना सामान ट्रक में भर कर चले गए। कब गए किसी को पता नहीं चला। न कहीं कोई हलचल हुई और न ही कहीं कोई चर्चा।

विभाग के सबसे बड़े अधिकारी थे तो क्या हुआ, आदमी नहीं थे क्या? या इस कालोनी के लोग आदमी नहीं है? यहाँ उनका रहना, न रहना बराबर था। कौन जानता था उसे यहाँ? चौबीसों घंटे गले में अधिकारी की तख्ती लटकाये घूमते रहते थे; का क्या मतलब? किसी से मिलने-जुलने की बात तो दूर, दुआ-सलाम से भी कोई मतलब नहीं। अरे! पता भी तो चले कि हम समाज में, सभ्य समाज में रह रहे हैं।

जैसा पति वैसी ही पत्नि और वैसे ही बच्चे। ऐसे अकड़ू और घमंडी परिवार के जाने का भला किसे गम होगा?

पर अब उसकी जगह पर आने वाले विकास साहब के बारे में सुनकर लोगों को अजय साहब की महत्ता का पता चला है। कहने लगे हैं, 'वही ठीक थे। यदि किसी का भला नहीं किया तो किसी का बुरा भी तो नहीं किया। किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुँचाया। हमेशा काम से काम रखा। उनकी ओर से बेफिक्री तो थी कम से कम।'

विकास साहब के बारे में सुनकर यहाँ सब का ब्लडप्रेशर बढ़ा हुआ है। बेफिक्री गायब हो गई है। चिंता बढ़ गई है और लोग चिंतन की अवस्था में चले गए हैं।

चिंता का विषय यह नहीं है, कि वे बड़े रिश्वतखोर अधिकारी हैं, रहें! अपनी बला से। रिश्वत के मामले में कौन यहाँ दूध का धुला है? चिंता का प्रमुख कारण तो उनका तलाकशुदा होना, कुँवारों की तरह रहना, लुच्चाईपन और चरित्रहीनता है। लोग कहते हैं कि उनके शब्दकोश में औरतों के बारे में केवल एक ही शब्द है, औरत। माँ, बहन, बेटी अथवा विवाहिता, विधवा, जवान, प्रौढ़ा या वृद्धा जैसे शब्द है ही नहीं। छी, कितना चरित्रहीन होगा साला। तलाक का कारण भी तो उनकी इसी चरित्रहीनता को बताया जाता है। आज के जमाने में भला कौन पत्नि चरित्रहीन पति को बर्दाश्त करेगी? बेचारी के पास तलाक के अलावा और कोई रास्त बचा ही नहीं होगा।

संभ्रांत लोगों की इस कालोनी में साले इसी लुच्चे को आना था?

हर आस्तिक, जिसका अवतारवाद पर भरोसा होता है; का मानना होता है कि ईश्वर हमेशा अपने साथियों के साथ अवतरित होते हैं। उनके अवतार के पहले सारी भूमिकाएँ बननी शुरू हो जाती हैं। सारे शुभ लक्षण, प्रगट होने की होड़ में शामिल हो जाते है।

चाहे उल्टा होता हो, पर शैतान के मामले में भी ऐसा ही होता होगा। वरना विकास साहब नाम का शैतान इस कालोनी में अभी अवतरित ही नहीं नहीं हैं और सारे बुरे लक्षण, अभी से यहाँ क्यों प्रगट होने लगते?

मुसीबत छप्पर फाड़ कर आती है। अभी वे आये नहीं हैं और कालोनी में छप्परों का फटना शुरू हो गया है; लोगों पर मुसीबतों के पहाड़ टूटने लगे हैं। पहली मुसीबत रहमकर साहब के छप्पर को फाड़कर दनदनाते हुए घुसी है; ट्रांसफर के रूप में।

रहमकर साहब छोटे बाबू के रूप में नियुक्त हुए थे, और अब बाबुओं के बाबू हैं। कई साहब आये और गये, पर वे पिछले पच्चीस साल से जमे हुए हैं। उनका कभी ट्रांसफर न हुआ हो ऐसी बात नहीं है, कभी-कभी तो वे खुद ही कहीं आस-पास सुविधाजनक जगह देखकर अपना ट्रांसफर करवा लेते हैं ताकि सनद रहे, और फिर रुकवा भी लेते हैं।

ट्रांसफर के मौसम में ट्रांसफर रस का वे जमकर आनंद लेते है। इस रस के सामने सारे रस फीके हैं। खेल, व्यापार, व्यवहार, सब एक साथ हो जाता है; सेहत तो बनता ही बनता है, धाक भी जम जाता है। आधुनिक शब्दकोश में सेहत बनने का अर्थ माली हालत और रुतबा में एकाएक बढ़ौतरी होता है। नीचे से ऊपर तक उनकी गोंटियाँ फिट हैं।

पर इस बार वे बुरे फँसे। उनकी सारी गोंटियाँ अनफिट हो गई हैं। सारे दाँव-पेंच निस्तेज हो गए हैं। अब की बार किसी को उनपर तरस भी तो नहीं आ रहा है। लगता है, जानी ही पड़ेगा। शहर में उनके दसियों प्रकार के कारोबार चल रहे हैं। पत्नी एन. जी. ओ. चलाती हैं। लड़कियाँ कॉलेज में पढ़ रही हैं। जमेजमाये सारे काम को छोड़कर अब इतने रिमोट में जाकर कोई रहे भी तो कैसे?

रहमकर साहब के ट्रंसफर से कॉलोनी का हर व्यक्ति दुखी है। कोई नहीं चाहता कि वे चले जायें। उनका ट्रांसफर रुकवाने के लिये सब ने अपने-अपने टोटके आजमाए पर सब के टोटके बेकार चले गए।

नीतिखोर साहब अभी जवान हैं और बांध और नहर बनाने वाले विभाग में एस. ई. है। उनके लिये सस्पैंड होना मामूली बात है। सात साल की नौकरी में सरकारी राशि में हेराफेरी के आरोप में वे तीन बार सस्पैंड हो चुके हैं। तीनों बार उनके ऊपर जाँच आयोग बैठाई गई। तीनों बार वे बेदाग साबित हुए और हर बार नये मान-सम्मान और अधिक ठसक के साथ उनकी निर्दोष वापसी हुई है। कॉलोनी में सबसे अधिक ठसन इन्हीं की है। पूरी तरह वातानुकूलित बंगले में रहते है। मंहगी कार में घूमते हैं। दो-दो फार्महाऊस हैं। अंदर की बातों के हिसाब से और न जाने क्या-क्या होंगे। पर कुछ भी काम नहीं आया। इस बार बात आगे बढ़ गई है। अब तो नौकरी बचाने के लाले पड़ गए हैं। जेल भी जाना पड़ सकता है। चेहरे की रंगत उड़ी हुई है।

अब मिसेज नीतिखोर के बारे में ज्याद कुछ बताने की क्या जरूरत? बस इतना जान लीजिये कि पति के विभाग के ही सबसे बड़े अधिकारी की बेटी हैं वे। बचपन से ही, उनका हर शौक ऊँचा है। आधुनिक और खुले विचारों की महिला हैं। खुलकर जीती हैं, खुलकर खेलती हैं, खुलकर खाती हैं। विस्तृत रकबे वाले शरीर से ही पता चलता है कि वे खाते-पीते घर की हैं। शरीर के लटकने वाले सारे अंग लटक चुके हैं। पाँच साल से दाम्पत्य जीवन जी रही हैं पर माँ बनने की स्थिति को बराबर टालती आ रही हैं। बकौल उनके; जल्दबाजी में बच्चा पैदा करके वे अपने फिगर को बिगाड़ना नहीं चाहती हैं। पर चर्चा है, कि शादी के पहले ही अप्राकृतिक गर्भस्खलन के कारण गर्भाशय को स्खलित होने की आदत पड़ गई है और अब वह गर्भधारण करने से इन्कार कर रही है। इलाज चल रहा है, पर डॉ. जवाब दे चुके हैं।

कुछ भी हो, इस कालोनी की महिला मंडल की वे लीडर हैं और महिला मंडल की सारी गतिविधियाँ वे ही संचालित करती हैं।

हमेशा बनारसी और कोसे की साड़ियाँ पहनने वाली, आयातित सौदर्य प्रसाधनों का उपयोग करने वाली, हर समय चहकने-मटकने वाली और आधुनिक विचारों वाली यह उत्तरआधुनिक महिला, पति के ऊपर आए संकट की ओर से बेफिक्री का, ऊपर से चाहे जितना भी दिखावा कर रही हो, लेकिन अंदर की बात तो यह है कि आजकल इनकी भी रंगत उड़ी हुई है, चमक गायब है।

कॉलोनी में और लोगों पर भी मुसीबतें आई हुई हैं पर इन दोनों की मुसीबतों के सामने वे सब बड़े मामूली हैं।

बड़ा मुसीबत तो स्वयं विकास साहब ही हैं। विकास साहब का शासकीय आवास रहमकर साहब और नीतिखोर साहब के बंगलों के बीच में ही पड़ता है। मुसीबतों के पहाड़ भी इन्हीं दोनों पर अधिक टूटे हैं। दोनों के ही परिवार में जवान बीवी-बच्चे हैं। और साले इस लुच्चे को इन्हीं दोनों परिवारों के बीच में रहना है।

कॉलोनी पर अए इस मुसीबत से निपटने के लिए, भविष्य की रणनीति तय करना जरूरी है। कॉलोनी के मर्द अपने ढंग से रणनीति बनाने में लगे हुए हैं, और महिलायें अपने ढंग से। मुद्दे पर विचार विमर्श हेतु मिसेज नीतिखोर के बंगले पर इस कॉलोनी की महिला मंडल की आपात बैठक बुलाई गई है।

मिसेज रहमकर कब की आ चुकी हैं। हेमा, रेखा, जया और सुषमा मेडम भी समय पर पहुँच गई है। अन्य सदस्य महिलाएँ भी आ चुकी हैं। नहीं आई हैं तो मिसेज आरती। वैसे भी मिसेज आरती बैठकों में कम ही आती हैं। आती भी हैं तो अक्सर चुप ही रहती हैं। ऐसे बैठकों से उनकी विरक्ति के पीछे कारण हैं। पति की ऊपरी कमाई की बदौलत स्वर्गसुख भोग रही कालोनी की इन आत्मप्रसंशक और अतिआभिजात्य महिलाओं के बीच उनकी अपनी अभावजन्य आत्महीनता उसे मुखर नहीं होने देता। उन्हें पता है कि उसे कोई तवज्जो नहीं मिलता। इन बातों से पहले उन्हें काफी दुख होता था। परंतु पति की दलीलें उन्हें जब से समझ में आने लगी हैं, उनकी पीड़ा कम होने लगी हैं।

इस बाबत मिस्टर आरती कहते हैं, 'भ्रष्ट आचरण द्वारा जनता और शासन को लूटकर धन कमाने वालों को जब अपने किये पर शर्मिंदगी नहीं होती तो हमारे पास शर्मिंदा होने का तो कोई भी कारण नहीं है।' शहर के सुप्रसिद्ध स्कूल के वे माने हुए प्राचार्य हैं और यहाँ उनकी अपनी हैसियत है। कर्तव्यनिर्वहन की उनकी आत्मप्रेरित भावना और अनुशासन हमेशा इस शहर में असंदिग्ध और चर्चित रहा है।

बैठक का माहौल आज अपेक्षाकृत शांत है। सब के ऊपर गंभीरता का मोटा लबादा चढ़ा हुआ है, पर किसी के बनाव-श्रृँगार में कहीं भी, रत्ती भर की कोई कमी नहीं है। आज भी मिसेज नीतिखोर सब पर भारी पड़ रही हैं। सबके मुँह में खुजली है। निंदा रस की उबकाई सबको आ रही है, पर मातमी माहौल में कोई डांडिया कैसे करे? मिसेज आरती का, उनकी अनुपस्थिति में मखौल उड़ाकर हँसा भी तो नहीं जा सकता।

खिड़की में लगे, दिन और रात के हिसाब से अपनी पारदर्शिता की दिशा बदलने वाले काँच के बाहर, सड़क पर, मिसेज आरती को पैदल आते हुए देखकर अंदर बैठी हुई महिलाओं में कानाफूसी का दौर शुरू हो गया। कुछ तो मुँह को हथेलियों से ढंक कर हँसने भी लगी। हेमा ने कहा - ''पैदल चलने का ठाठ तो देखो।''

रेखा ने बात पूरी की - ''जैसे शाही बघ्घी पर ब्रिटेन की महारानी आ रही हो।''

मिसेज नीतिखोर भी चुप नहीं रह सकी, कहा - ''उनकी ऐतिहासिक साड़ी को तो देखो।''

जया ने कहा - ''पुरातात्विक महत्व की धरोहरों पर किसे गर्व नहीं होगा?''

फिर सभी समवेत स्वर में हँस पड़ी।

मिसेज आरती ने जब कमरे में प्रवेश किया, पुनः सबके चेहरों पर अवसादी मुखौटे चढ़ चुके थे।

बैठक में पूरे समय तक विकास साहब ही छाये रहे। मिसेज नीतिखोर ने यह रहस्योद्घाटन कर सबको चौंका दिया कि विकास साहब की पहुँच काफी ऊपर तक है, चाहें तो वे हम सबकी समस्या सुलझा सकते हैं। इसके बाद चाय-नाश्ते के अलावा और कोई विशेष बातें नहीं हो सकी और बैठक बेनतीजा खतम हो गया।

0

विकास साहब को आये अब सप्ताह भर से अधिक हो गया है। लोग अब उसके प्रति बनाये अपनी पूर्व की अवधारणाओं को संशोधित करने में लग गए हैं। देखने में वे जितने सुदर्शन है, व्यवहार में भी उतने ही शिष्ट और शालीन हैं। छोटे-बड़े सबसे प्यार से मिलते हैं। पद और प्रतिष्ठा का उनमें जरा भी अहम नहीं है। महिलाओं की ओर तो कभी आँख उठाकर देखते भी नहीं हैं।

लेकिन कॉलोनी की महिलाओं का शंकालु मन इतनी जल्दी अपनी राय बदलने के पक्ष में नहीं है। अभी भी वे अपने-अपने घर के खिड़कियों-झरोखों से परदे की आड़ ले लेकर चोर निगाहों से आते-जाते उनकी गतिविधियों का बराबर निरीक्षण करती रहती हैं।

विकास साहब जानते हैं; कॉलोनी के लोगों के मन में उनके चरित्र के प्रति किस तरह की अवधारणा है; और यह भी जानते हैं कि कॉलोनी के हर घर की खिड़कियों-झरोखों से उन पर निगाहें रखी जा रही है। अपने अनुभवों के आधार पर स्वप्रतिपादित इस सिद्धांत पर कि, किसी चरित्रहीन महिला के प्रति पुरुषों के मन में जो भाव होता है, वैसा ही भाव चरित्रहीन पुरुष के प्रति महिलाओं के भी मन में होता है, पर उन्हें पक्का विश्वास है।

0

उस दिन नीतिखोर साहब के बंगले पर विकास साहब के स्वागत में भव्य डिनर पार्टी का आयोजन किया गया। पार्टी में व्यवस्था और कार्यपालिका से संबंधित कई बड़े सितारों की जमघट रही। नीतिखोर साहब एक बार फिर सारे आरोपों से मुक्त हो गये थे।

इस दिन से विकास साहब नीतिखोर साहब के घर के सदस्य की तरह हो गये हैं। मिसेज नीतिखोर विकास साहब के गुण गा-गाकर अघाती नहीं हैं।

नीतिखोर साहब अब अपने पुराने ढर्रे पर फिर लौट आये हैं। अपनी बहाली पर किये गये खर्चे की भर पाई के लिये अब वे रात-दिन एक किये हुए हैं। अक्सर दौरे पर रहते हैं।

विकास साहब अब हेमा, रेखा, जया और सुषमा मेम साहबों के घर भी अक्सर चाय के लिये आमंत्रित होने लगे हैं।

रहमकर साहब का ट्रांसफर नहीं रुक पाया है, पर उन्हें अब कोई चिंता नहीं है, अपनी मर्जी के मालिक हैं। विकास साहब की मेहरबानी उस पर भी बरसना शुरू हो गया है। पत्नी की एन. जी. ओ. खूब फल-फूल रहा है। रहमकर साहब अब अपना सारा ध्यान और सारा समय इसी पर केन्द्रित किये हुए हैं। विकास साहब का संरक्षण पाकर वे घर-परिवार से बेफिक्र हो गए हैं और दोनों हाथों से पैसा बटोरने में लगे हुए हैं। विकास साहब का गुणगान करते अब वे भी नहीं अघाते।

विकास साहब अब इनके भी घर के सदस्य की तरह हो गये हैं।

कॉलोनी के अधिकतर लोगों की समस्याएँ विकास साहब ने बड़ी आसानी से हल कर दिया है।

0

एक साल बीत गया। नीतिखोर और रहमकर दोनों अब कुछ तनाव में रहने लगे हैं। विकास साहब के चेहरे से उन्हें अब घिन होने लगी है। सामना होने पर सिर जरूर झुकाते हैं, पर पीछे मुड़कर पचास गालियाँ भी बकते हैं।

एक दिन विकास साहब ट्रक में अपना सामान लाद कर चले गये। पता चला कि उनका ट्रांसफर हो गया है। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। मिसेज नीतिखोर और मिसेज रहमकर को तो विश्वास ही नहीं हुआ। पर बात सही थी, समाचार सुनकर उन लोगों का दिल बुरी तरह बैठ गया। मिसेज नीतिखोर से उस दिन खाना भी नहीं खाया गया। उसकी उदासी का आलम यह है कि सप्ताह भर तक सौंदर्य प्रसाधनों को उन्होंने छुआ भी नहीं।

यही हाल मिसेज रहमकर की भी है। लेकिन सबसे बुरी दशा उनकी दोनों बेटियों की है, जो इन दिनों कॉलेज में पढ़ रही हैं। वे न ढंग से खाती-पीती हैं और न कॉलेज जाती हैं। खुद को कमरे में बंद करके दिन-रात आँसू बहाती रहती हैं।

विकास साहब के ट्रांसफर की बातें यद्यपि यहाँ किसी को पता नहीं थी, परंतु वहाँ पर पँद्रह दिन पहले ही उनके आगमन की बातें ठीक उसी तरह प्रचारित हो गई थी जैसे एक साल पहले यहाँ पर हुई थी।

000

 

कथाकार - कुबेर

जन्मतिथि - 16 जून 1956

प्रकाशित कृतियाँ

1 - भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003

2 - उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009

3 - भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010

4 - कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011

5 - छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोककथाओं का संग्रह) 2013

प्रकाशन की प्रक्रिया में

1 - माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)

2 - और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)

संपादित कृतियाँ

1 - साकेत साहित्य परिषद् की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010

2 - शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका 'नव-बिहान' 2010, 2011

पता

ग्राम - भोड़िया, पो. - सिंघोला, जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)

पिन - 491441

मो. - 94076 85557

ई. मेल - kubersinghsahu@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कुबेर की कहानियाँ - 9 : वे क्यों रोए
कुबेर की कहानियाँ - 9 : वे क्यों रोए
http://lh3.ggpht.com/-W0xfhAwaPCo/USNAdESLCsI/AAAAAAAAUAY/IJv3srcKE9M/image2_thumb.png?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/-W0xfhAwaPCo/USNAdESLCsI/AAAAAAAAUAY/IJv3srcKE9M/s72-c/image2_thumb.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/02/9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/02/9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content