साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्य : वर्तमान परिप्रेक्ष्य

SHARE:

हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्य : वर्तमान परिप्रेक्ष्य Ø डॉ.साताप्पा लहू चव्हाण हिंदी पत्रकारिता शुरू से नैतिक मूल्यों का पुरस्कार करती आ...

हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्य : वर्तमान परिप्रेक्ष्य

Ø डॉ.साताप्पा लहू चव्हाण

clip_image002

हिंदी पत्रकारिता शुरू से नैतिक मूल्यों का पुरस्कार करती आयी है.महात्मा गांधीजी के सत्य,अहिंसा,प्रेम और सदभाव आदि नैतिक मूल्यों को केंद्र में रखकर अनेक पत्रकारों ने हिंदी पत्रकारिता को मौलिक परिवर्तन की दिशा में अग्रेसित किया.हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से विज्ञान,कला,साहित्य,दर्शन आदि सभी क्षेत्रों में नैतिक मूल्यों की स्थापना करने पर बल देनेवाले पत्रकारों में संपादक प्रेमचंद, युगलकिशोर शुक्ल, बालकृष्ण भट्ट, केशवराम भट्ट, बालमुकुंद गुप्त, बाबुराव विष्णुराव पराडकर ,पंडित सुंदरलाल, बनारसीदास चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, ईश्वरीप्रसादप्रसाद शर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय स्वामी भवानी दयाल संन्यासी, अंम्बिकाप्रसाद वाजपेयी, माखनलाल चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, माधव्रराव सप्रे, कृष्णदत्त पालीवाला, अमृतलाल चक्रवर्ती, रामवृक्ष बेनीपुरी, मदन मोहन मालवीय, प्रतापनारायण मिश्र आदि जुझारू पत्रकारों को अग्रणी मानना होगा.“जीवन के यथार्थ को उसके नग्न रूप में चित्रित करना हमारे प्राचीन साहित्यकारों को योग्य नहीं लगा.वे तो साहित्य को ‘ब्रह्मानंद सहोदर आनंद’देने वाली मंगल शक्ति ही मानते थे.परंतु जैसे–जैसे युग बदलता रहा,,‚ज्ञान और विज्ञान की उन्नति होती रही,वैसे–वैसे साहित्य में कल्पना के स्थान पर यथार्थ की प्रतिष्ठा होती गई. यह भौतिक जगत नश्वर होने के बावजूद भी महत्त्वपूर्ण है.जीवन जीने के लिए है और उसकी जीने की सार्थकता उस दूसरे जगत में नहीं,यहीं पर इसी ठोस भूमि पर ढूँढनी है,इस विचारधारा ने ही पारम्परिक आदर्शवादी धारा को यथार्थवादी धारा के साथ जोड दिया.”1 डॉ.मृदुला वर्मा के उपर्युक्त विचार आज अधिक प्रासंगिक लगते हैं.

हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों को आदर्शवादी और यथार्थवादी धारा एक साथ जुडने के कारण अधिकाधिक बल मिला,इसे नकारा नहीं जा सकता.साहित्य और पत्रकारिता दोनों नैतिक मूल्यों को मानवीय जीवन के लिए नितांत आवश्यक मानते है. हिंदी पत्रकारिता स्थाई मूल्यों पर जोर देती है.संपादक प्रेमचंद ने गुलामी के विरोध में कडा संघर्ष किया. प्रेमचंद ने सभी नैतिक मूल्यों का सार ‘मानवीयता’ को माना.सत्य प्रतिपादन करते समय पत्रकार प्रेमचंद ने ‘मानवीयता’ को पाठकों के सामने रखा.सादा जीवन ही नैतिक मूल्यों का मूलाधार बन सकता है.वर्तमान समाज और हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि आज पूँजीवाद का प्रभाव पत्रकारिता पर हावी हो रहा है.अतः दिन–ब–दिन नैतिक मूल्यों को ह्रास हो रहा है.यह स्थिति भयावह है.अन्याय के खिलाफ खडे रहना,राष्ट्रप्रेम का नारा लगाना,धर्म निरपेक्ष समाज निर्माण के लिए कार्यरत रहना और संपूर्ण मानव कल्याण की बात छेडना हिंदी पत्रकारिता ने शुरू से अनुवार्य माना है.वर्तमान काल में भी अनेक पत्रकारों ने इस विचारधारा का स्वीकार किया है लेकिन पूँजीवादी शक्तियॉ अपने पूँजी नामक हथियार से सच्चे पत्रकारों को घायल कर रहीं हैं.इस परिस्थिति को बदलना वर्तमान हिंदी पत्रकारिता के सामने चुनौती है.सन 1930 में छपे अपने पहले संपादकीय में प्रेमचंद लिखते हैं “अपने छात्रों का विलास–प्रेम देखते हैं,‚तो हमें उनके विषय में बडी चिंता होती है.वह रोज अपनी जरूरतें बढाते जाते हैं‚विदेशी चीजों की चमक – धमक ने उन्हें अपना गुलाम बना लिया है.वे चाय और कॉफी के‚साबुन और सेंट के और न–जाने कितनी अल्लम गल्लम चीजें खरीदने में रत पाएँगे.वह ये समझ रहें कि विलास की चीजें बढा लेने से ही जीवन का आदर्श ऊँचा हो जाता है.युनिवर्सिटियों में अपने अध्यापकों का विलास–प्रेम देखकर यदि उन्हें ऐसा विचार होता है‚तो उनका दोष नहीं. यहॉ तो आवें का आवॉ बिगडा हुआ है.सादे और सरल से उन्हें घृणा सी होती है.अगर उनका कोई सहपाठी सीधा साधा हो‚तो वे उसकी हँसी उडाते है‚उस पर तालियॉ बजाते हैं...दुनिया के जितने बडे–से–बडे महापुरूष हो गये हैं‚और हैं‚वे जीवन की सरलता का उपदेश देते आए हैं और दे रहें हैं‚मगर अपने छात्र हैं कि हैट और कॉलर की फिक्र में अपना भविष्य बिगाड रहें हैं.” 2 कहना सही होगा कि स्वातंत्र्योत्तर काल में भी पत्रकार प्रेमचंद ने हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए कडा संघर्ष किया. प्रेमचंदजी चाहते थे कि देश के युवा सादा और सरल जीवन अपनाएँ. वैचारिक जीवन का स्वीकार करें. भारतीय चिंतन परंपरा को अपने मूलभूत विचारों के माध्यम से प्रेमचंद जैसे पत्रकारों ने आगे बढाया.

हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता का मुख्यः उद्देश्य नैतिक मूल्यों की स्थापना कर सामाजिक गुलामी को समाप्त करना रहा है,इसे मानना होगा. “मनुष्य के जीवन में प्रारंभ से लेकर आज तक पत्रकारिता का बडा महत्त्व रहा है. हिंदी पत्रकारिता का इतिहास 170 वर्ष पुराना है.भारतीय पत्रकार अपनी देशभक्ति,निष्ठा‚लगन‚परिश्रम एवं अपूर्व त्याग के लिए विख्यात रहें हैं. प्रारंभ में स्वाधीनता के लिए संघर्ष एवं राष्ट्रीयता के लिए प्रचार करना ही पत्रकारिता का कर्तव्य था और अपने ऊँचे आदर्शों का पालन प्रारंभ से ही करती आ रहीं है.”3 प्रख्यात पत्रकार सविता चड्ढाजी के उपर्युक्त विचारों से हमें सहमत होना होगा.वर्तमान समय हिंदी पत्रकारिता के इतिहास के साथ जुडकर नैतिक मूल्यों का पुनःवैचारिक मंथन करने का समय है.अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो तमाम सुविधाओं,तकनीकी विकास के बावजूदा भी नैतिक मूल्यों के अभाव में हिंदी पत्रकारिता विश्व संतुष्ट नहीं रहेगा. नैतिक मूल्यों का रक्षण करना आवश्यक मानने वाले पत्रकार और उनकी पत्रकारिता कुछ अंशो तक आज भी जीवित है लेकिन सौ साल पहले जैसी नैतिकता अब हिंदी पत्रकारिता में दृष्टिगोचर नहीं होती है.

इस सत्यता को हम नकार नहीं सकते.“जहॉ तक हिंदी पत्रकारिता की प्रवृत्ति और प्रभाव का प्रश्न है,,‚अधिकांश पत्रकारों का यह मत है कि हिंदी पत्रकारिता अपना महत्त्वपूर्ण काल का तेज और स्वाधीनता दोनों खो चुकी है.”4 हिंदी पत्रकारिता का वर्तमान काल रचनात्मक लेखन का जरूर रहा है लेकिन व्यवसायिकता ने इस रचनात्मक लेखन प्रक्रिया को अपने चपेट में लिया है.मानवी तत्त्व दिन–ब–दिन कम होते जा रहें हैं.साहित्य और संस्कृति का पाठ पढाने वाली हिंदी पत्रकारिता आज ‘विज्ञापनों’का पाठ पढा रहीं है. व्यवसायिकता के नाम पर नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है,मानवता के उपासक,देशभक्त और गंभीर अनुसंधानात्मक लेखन करनेवाले संपादक आज बहुत ही कम है. वेतन भोगी संपादकों की संख्या बढ रहीं है.इस बात को मानना होगा.“ वर्तमान हिंदी पत्रकारिता पर यह भी एक आक्षेप लगाया जाता है कि वह एक विशुद्ध व्यावसायिक पत्रकारिता है.लोकशिक्षा की अपेक्षा उसका ध्यान लोकरंजन की ओर अधिक लगा हुआ है.इस आरोप में काफी कुछ तथ्य है‚नई तकनीक के कारण समाचार पत्रों के रूप आकर्षक नयनाभिराज और मनोरंजक बन गए.चूँकि उसका व्यवसाय प्रधान है,‚ इसलिए इन सब बाह्य बातों पर ध्यान देना जरूरी हो गया.”5 हम जानते हैं कि समय के अनुसार पत्रकारिता को भी बदलना चाहिए लेकिन नैतिक मूल्यों का पतन कर होनेवाले बदलाव समाजविघातक मानने होंगे.मनुष्य का जीवन सआनंद करने हेतु वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का प्रयास कम मात्रा में दृष्टिगोचर होता है.निष्ठापूर्वक काम करनेवाले पत्रकारों की संख्या दिन–ब–दिन कम होती नजर आ रही है. हिंदी पत्रकारिता और राजनीति का जुडना,भण्डफोड वृत्ति का विकास नैतिक मूल्यों की जगह आर्थिक मूल्यों का विकास, भ्रष्ट राजनीतिक चरित्रों के साथ लेन–देन वर्तमान काल में बढ रहीं है.इस बात को नकारा नहीं जा सकता. वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि आज भी अनेक पत्रकार अभिनंदनीय कार्य कर रहें हैं. अपना स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण कर नैतिक मूल्यों के प्रचार–प्रसार में कार्यमग्न है. यह स्थिति निश्चित ही सुखदायक है.फिर भी व्यवसायी और साहित्यिक पत्रकारिता के बीच आज भी संघर्ष कायम है.

कला-प्रयोजन त्रैमासिक जयपुर-उदयपुर संस्थापक-संपादक-हेमंत शेषआलोचना, दिल्ली, प्रधान संपादक-नामवर सिंहसमकालीन भारतीय साहित्य, दिल्ली, संपादक- अरुण प्रकाश‚प्रगतिशील वसुधा, भोपाल, संपादक - कमला प्रसादतद्भव, दिल्ली, संपादक- अखिलेश‚ इंद्रप्रस्थ भारती, दिल्ली संपादक- नानक चंद‚ हिंदी, (दिल्ली), संपादक - अशोक वाजपेयीकसौटी, (पटना, बिहार), संपादक - नंदकिशोर नवलनटरंग, (दिल्ली), संपादक - नेमिचंद्र जैनअकार, (कानपुर, उ.प्र.), संपादक - गिरिराज किशोरसंधान, (इलाहबाद, उ.प्र.), संपादक - लालबहादुर वर्मादलित साहित्य,(दिल्ली), संपादक - जयप्रकाश कर्दमवागर्थ, (कोलकाता, प.ब.), संपादक - रवीन्द्र कालियाकथा क्रम, (लखनऊ, उ.प्र.), संपादक - शैलेन्द्र सागररचनाक्रम, (दिल्ली), संपादक - अशोक मिश्रकथा ,(इलाहाबाद, उ.प्र.), संपादक - मार्कण्डेय‚ हंस, (दिल्ली), संपादक - राजेन्द्र यादवसमयांतर, (दिल्ली),संपादक - पंकज विष्ट‚ समीक्षा, (दिल्ली), संपादक - गोपालरायबहुवचन, (दिल्ली), संपादक - अशोक वाजपेयीसंचेतना, (दिल्ली), संपादक - महीप सिंहउत्तरशती, (पटना, बिहार), संपादक - खगेन्द्र ठाकुरदायित्वबोध, (लखनऊ, उ.प्र.), संपादक - विश्वनाथ मिश्रसमकालीन सृजन, (कोलकाता), संपादक - शंभुनाथ‚ साखी, वाराणसी, संपादक- सदानंद शाही‚ पक्षधर, दिल्ली, संपादक- विनोद तिवारी‚ संस्कृति, (दिल्ली), प्रकाशक- संस्कृति मंत्रालय इस्पातिका [2], जमशेदपुर, संपादक- अविनाश कुमार सिंह‚ उदभावना, दिल्ली, संपादक - अजेय कुमार‚ हाइकु दर्पण, नोएडा, संपादक- डा० जगदीश व्योम.सम्यक्, मथुरा, संपादक- मदनमोहन उपेन्द्र‚ पल प्रतिपल, (पंचकुला, हरियाणा), संपादक - देश निर्मोही‚ वातायन ,(बीकानेर, राजस्थान), संपादक - हरीश भदानी‚ साहित्य अमत, (दिल्ली), संपादक - डॉ.लक्ष्मीमल्ल सिंघवी‚ मनस्वी, (इंदौर, म.प्र.) , संपादक - मुरली मोहन‚ समरलोक, (भोपाल, म.प्र.), संपादक - मेहरुन्निसा परवेज़‚ समकालीन सेतु, (दिल्ली), संपादक - लक्ष्मीप्रसाद पंत‚ अक्षर पर्व, (रायपुर, छ्त्तीसगढ़), संपादक - आलोक प्रकाश पुतुल‚ सापेक्ष ,(दुर्ग, छ.ग.), संपादक - महावीर अग्रवाल‚ सद्भावना दर्पण,(रायपुर, छ.ग.), संपादक - गिरीश पंकज‚ साहित्य वैभव,(रायपुर, छ.ग.), संपादक - डॉ.सुधीर शर्मा‚ कल के लिये, (बहराइच, उ.प्र.), संपादक - डा. जयनारायण शेष, (जोधपुर, राजस्थान), संपादक - हसन जमाल‚ मूलप्रश्न, (उदयपुर, राज.), संपादक - वेददान सुधीर‚ संबोधन, (कांकरोली, राज.), संपादक - कमर मेवाड़ी‚ कलादीर्घा, (लखनऊ, उ.प्र.)संपादक - अवधेश मिश्र‚ स्वर सामरथ, (कोलकाता, प.ब.), संपादक - इंदु जोशी‚ आकल्प, (मुंबई), संपादक - शोभनाथ यादव‚ कहन, (दमोह, म.प्र.), संपादक - मनीष दुबे‚ अभिनव कदम, (मऊ, उ.प्र.), संपादक - चंद्रदेव राय‚ अभिधा (मुजफ्फरपुर, बिहार), संपादक - अशोक गुप्त‚ अलाव, (दिल्ली), संपादक - रामकुमर कृषक‚ सांस्कृतिक उपहार ,(वारणसी, उ.प्र.), संपादक - तथागत चैटर्जी‚ सजन पथ, (सिलीगुड़ी, प.ब.), संपादक - रंजना श्रीवास्तव‚ संप्रेषण, (जयपुर, राज.), संपादक - चंद्रभानु‚ साक्ष्य, (पटना, बिहार), संपादक - जाबिर हुसैन‚ कथन, (दिल्ली), संपादक - रमेश उपाध्याय‚ उत्तर पूर्वांचल, (सिलीगुड़ी), संपादक - ओमप्रकाश पांडेय‚ माजरा, (आगरा, उ.प्र.), संपादक - हेतु भारद्वाज‚ साक्षात्कार, (भोपाल, म.प्र.), संपादक - आग्नेय‚ सहित, (दिल्ली), संपादक - यतीन्द्र मिश्र‚ अब (सासाराम, बिहार), संपादक - शंकर अभय‚ मानस चंदन (सीतापुर), संस्थापक संपादक- डॉ. गणेश दत्त‚ सारस्वत परिवेश, (मुरादाबाद, उ.प्र.), संपादक - मूलचंद्र गौतम‚ धरती, अनियतकालीन, संपादक -शैलेन्द्र चौहान‚ साहित्य त्रिवेणी, त्रैमासिक,(कोलकाता, प.बं.), संपादक -कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड ”6 उपर्युक्त साहित्यिक पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के प्रचार–प्रसार का कार्य नैतिक मूल्यों को अपनाते हुए किया है,इस में कोई संदेह नहीं.देश– विदेश में और भी अनेक साहित्यिक पत्रिकाएँ हैं जो आज भी हिंदी साहित्य प्रसार का कार्य अपनी –अपनी वैचारिक परंपरा के अनुसार कर रहीं हैं.कुछ ऐसे संपादक हैं जिन पर गुटबाजी का आरोप होता रहा है.फिर भी हिंदी साहित्य के प्रचार–प्रसार का उनका कार्य मूल्याधिष्ठीत है,इस सत्यता को हम नकार नहीं सकते.“व्यावसायी पत्रकारिता ने साहित्यिक पत्रकारिता के विरूदविरूद्ध सभी स्तर पर मोर्चा कायम किया था.तडक–भडक के साथ रंगीन चित्रों के बीच लेखकों की रचनाओं को छापना‚अच्छा पारिश्रमिक देना‚जो व्यवसायी मिशन में सहायक हो सके उससे अति विनम्रता से पेश आना‚ समय–समय पर पत्रिका की ओर छोटे– छोटे सेमीनार करना जिसमें अपने वर्ग के लेखकों को बुलाकर उपकृत करना,महत्त्वपूर्ण बनाना आदि–आदि”7 कहना उचित होगा कि व्यावसायी पत्रकारिता ने अपना रंग दिखाना शुरू किया है. गुटबाजी पत्रकारिता के विरोध में खडे रहने का विचार ही नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक सिद्ध होगा.“समकलीन पत्रकारिता के एक हिस्से ने अपने को ‘उपहार संस्कृति’के हवाले हो जाने दिया है.बल्कि आधुनिक सुख–सुविधाओं साधनों के आगे घुटने भी टेक दिए हैं.ऐसे पत्रकरों में भोग–लिप्सा और धन इकट्ठा करने की ललक बढती जा रही है.आचरण का ही यह दूसरा पक्ष है. हालत यहॉ तक पहुँच गई है कि‘उपहार’न मिलने पर कई तरह की खबरें खासकर वाणिज्य की खबरें छापी ही नहीं जाती.”8 इस बात की सत्यता को स्वीकार करना होगा. हिंदी पत्रकारिता में अनेक विकृतियाँ नैतिक मूल्यों पर प्रहार कर रहीं हैं. जनोत्मुख पत्रकारिता का विकास होने के बावजूद भी यह स्थिति बदली नहीं.

स्वातंत्र्यपूर्व काल में हिंदी पत्रकारिता ने जिन नैतिक मूल्यों का विकास किया और जनमानस में अपना आदर्श निर्माण का कार्य किया आगे आजादी के बाद स्थिति बदलती गयी. हिंदी पत्रकारिता में स्पर्धा का आगमन हुआ. तीव्र स्पर्धा के कारण ‘मूल्यों’ को झुठलाया जाने लगा.इस भयावह स्थिति को हम नकार नहीं सकते. वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से पता चलता है कि आज भी अनेक पत्रकार,संपादक नैतिक मूल्यों के साथ हैं,जन–शिक्षा और आम जनता के प्रश्नों पर संघर्ष जारी रख रहें हैं. भले ही संख्या की दृष्टि से सच्चे पत्रकार,संपादक कम नजर आते होंगे लेकिन नैतिक मूल्यों का रक्षण तो हो रहा है. पत्रकारिता में अच्छी संभावनओं के बीज बोने का और नई चेतना निर्माण करने का कार्य नैतिक मूल्यों को अपनाकर करने से ही पत्रकारिता का खासकर हिंदी पत्रकारिता का भविष्य उज्वल होगा.

निष्कर्ष

हिंदी पत्रकारिता के वर्तमान परिप्रेक्ष्य का नैतिक मूल्यों को केंद्र में रखकर अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि हिंदी पत्रकारिता शुरू से नैतिक मूल्यों का पुरस्कार करती आयी है.महात्मा गांधीजी के सत्य,अहिंसा,प्रेम और सदभाव आदि नैतिक मूल्यों को केंद्र में रखकर अनेक पत्रकारों ने हिंदी पत्रकारिता को मौलिक परिवर्तन की दिशा में अग्रेसित किया.आज भले ही स्थिति गंभीर हो लेकिन हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से विज्ञान,कला,साहित्य,दर्शन आदि सभी क्षेत्रों में नैतिक मूल्यों की स्थापना करने पर बल देनेवाले पत्रकारों की परंपरा अखंड है. हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों को आदर्शवादी और यथार्थवादी धारा एक साथ जुडने के कारण अधिकाधिक बल मिला,इसे नकारा नहीं जा सकता.साहित्य और पत्रकारिता दोनों नैतिक मूल्यों को मानवीय जीवन के लिए नितांत आवश्यक मानते है. हिंदी पत्रकारिता स्थाई मूल्यों पर जोर देती है. वर्तमान समाज और हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि आज पूँजीवाद का प्रभाव पत्रकारिता पर हावी हो रहा है.अतः दिन–ब–दिन नैतिक मूल्यों को ह्रास हो रहा है.यह स्थिति भयावह है.अन्याय के खिलाफ खडे रहना,राष्ट्रप्रेम का नारा लगाना,धर्म निरपेक्ष समाज निर्माण के लिए कार्यरत रहना और संपूर्ण मानव कल्याण की बात छेडना हिंदी पत्रकारिता ने शुरू से अनुवार्य माना है.वर्तमान काल में भी अनेक पत्रकारों ने इस विचारधारा का स्वीकार किया है लेकिन पूँजीवादी शक्तियॉ अपने पूँजी नामक हथियार से सच्चे पत्रकारों को घायल कर रहीं हैं. स्वातंत्र्योत्तर काल में भी पत्रकार प्रेमचंदजी ने हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए कडा संघर्ष किया. प्रेमचंदजी चाहते थे कि देश के युवा सादा और सरल जीवन अपनाएँ. वैचारिक जीवन का स्वीकार करें. भारतीय चिंतन परंपरा को अपने मूलभूत विचारों के माध्यम से प्रेमचंद जैसे पत्रकारों ने आगे बढाया.हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता का मुख्यः उद्देश्य नैतिक मूल्यों की स्थापना कर सामाजिक गुलामी को समाप्त करना रहा है,इसे मानना होगा.वर्तमान समय हिंदी पत्रकारिता के इतिहास के साथ जुडकर नैतिक मूल्यों का पुनःवैचारिक मंथन करने का समय है.अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो तमाम सुविधाओं,तकनीकी विकास के बावजूद भी नैतिक मूल्यों के अभाव में हिंदी पत्रकारिता विश्व संतुष्ट नहीं रहेगा. नैतिक मूल्यों का रक्षण करना आवश्यक मानने वाले पत्रकार और उनकी पत्रकारिता कुछ अंशो तक आज भी जीवित है लेकिन सौ साल पहले जैसी नैतिकता अब हिंदी पत्रकारिता में दृष्टिगोचर नहीं होती है. इस सत्यता को हम नकार नहीं सकते. हिंदी पत्रकारिता का वर्तमान काल रचनात्मक लेखन का जरूर रहा है लेकिन व्यवसायिकता ने इस रचनात्मक लेखन प्रक्रिया को अपने चपेट में लिया है.मानवी तत्त्व दिन–ब–दिन कम होते जा रहें हैं.साहित्य और संस्कृति का पाठ पढाने वाली हिंदी पत्रकारिता आज ‘विज्ञापनों’का पाठ पढा रहीं है. व्यवसायिकता के नाम पर नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है,मानवता के उपासक,देशभक्त और गंभीर अनुसंधानात्मक लेखन करनेवाले संपादक आज बहुत ही कम है. वेतन भोगी संपादकों की संख्या बढ रहीं है.इस बात को मानना होगा. समय के अनुसार पत्रकारिता को भी बदलना चाहिए लेकिन नैतिक मूल्यों का पतन कर होनेवाले बदलाव समाजविघातक मानने होंगे.मनुष्य का जीवन सआनंद करने हेतु वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का प्रयास कम मात्रा में दृष्टिगोचर होता है.निष्ठापूर्वक काम करनेवाले पत्रकारों की संख्या दिन–ब–दिन कम होती नजर आ रही है. हिंदी पत्रकारिता और राजनीति का जुडना,भण्डफोड वृत्ति का विकास नैतिक मूल्यों की जगह आर्थिक मूल्यों का विकास, भ्रष्ट राजनीतिक चरित्रों के साथ लेन–देन वर्तमान काल में बढ रहीं है.इस बात को नकारा नहीं जा सकता. वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि आज भी अनेक पत्रकार अभिनंदनीय कार्य कर रहें हैं. अपना स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण कर नैतिक मूल्यों के प्रचार–प्रसार में कार्यमग्न है. यह स्थिति निश्चित ही सुखदायक है.फिर भी व्यवसायी और साहित्यिक पत्रकारिता के बीच आज भी संघर्ष कायम है. वर्तमान में व्यावसायी पत्रकारिता ने अपना रंग दिखाना शुरू किया है. गुटबाजी पत्रकारिता के विरोध में खडे रहने का विचार ही नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक सिद्ध होगा. हिंदी पत्रकारिता में अनेक विकृतियाँ नैतिक मूल्यों पर प्रहार कर रहीं हैं. जनोत्मुख पत्रकारिता का विकास होने के बावजूद भी यह स्थिति बदली नहीं.

स्वातंत्र्यपूर्व काल में हिंदी पत्रकारिता ने जिन नैतिक मूल्यों का विकास किया और जनमानस में अपना आदर्श निर्माण का कार्य किया आगे आजादी के बाद स्थिति बदलती गयी. हिंदी पत्रकारिता में स्पर्धा का आगमन हुआ. तीव्र स्पर्धा के कारण ‘मूल्यों’ को झुठलाया जाने लगा.इस भयावह स्थिति को हम नकार नहीं सकते. वर्तमान हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन करने से पता चलता है कि आज भी अनेक पत्रकार,संपादक नैतिक मूल्यों के साथ हैं,जन–शिक्षा और आम जनता के प्रश्नों पर संघर्ष जारी रख रहें हैं. भले ही संख्या की दृष्टि से सच्चे पत्रकार,संपादक कम नजर आते होंगे लेकिन नैतिक मूल्यों का रक्षण तो हो रहा है. पत्रकारिता में अच्छी संभावनओं के बीज बोने का और नई चेतना निर्माण करने का कार्य नैतिक मूल्यों को अपनाकर करने से ही पत्रकारिता का खासकर हिंदी पत्रकारिता का भविष्य उज्वल होगा. वर्तमान काल में वैचारिक विवाद खडे करने से पहले अपने सामाजिक सरोकारों का हिंदी पत्रकारिता विचार करेगी तो निश्चित ही नैतिक मूल्यों की नई परंपरा का आरंभ होगा.

संदर्भ निदेश $

1. डॉ.मृदुला वर्मा – हिंदी की सर्वोदय पत्रकारिता,पृष्ठ−12,13.

2. संपा. प्रेमचंद – हंस‚ अंक एक,मार्च 1930‚ पृष्ठ−65.

3. सविता चड्ढा – आजादी के पचास वर्ष और हिंदी पत्रकारिता, पृष्ठ−21.

4 . डॉ.मृदुला वर्मा – हिंदी की सर्वोदय पत्रकारिता,पृष्ठ−192.

5. वहीं – पृष्ठ−193.

6. www.wikipedia.com

7. डॉ.धमेंद्र गुप्त – लघु पत्रिकाएँ और साहित्यिक पत्रकारिता, पृष्ठ−120.

8. कृपाशंकर चौबे – पत्रकारिता के उत्तर – आधुनिक चरण, पृष्ठ−76.

--------------------------------------------@@@------------------------------------------------------

Ø डॉ. साताप्पा लहू चव्हाण
सहायक प्राध्यापक
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग,
अहमदनगर महाविद्यालय,
अहमदनगर 414001. (महाराष्ट्र)
दूरभाष - 09850619074
E-mail - drsatappachavan@gmail.com.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्य : वर्तमान परिप्रेक्ष्य
साताप्पा लहू चव्हाण का आलेख - हिंदी पत्रकारिता में नैतिक मूल्य : वर्तमान परिप्रेक्ष्य
http://lh3.ggpht.com/-rY2xxnyfIU4/UTmOE_Ey9cI/AAAAAAAAUJg/x7q035l_qKA/clip_image002%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/-rY2xxnyfIU4/UTmOE_Ey9cI/AAAAAAAAUJg/x7q035l_qKA/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/03/blog-post_9564.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/03/blog-post_9564.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content