कुबेर की कहानी - उजाले की नीयत

SHARE:

कुबेर कहानी उजाले की नीयत यह जिला मुख्‍यालय से पश्‍चिम की ओर सुदूर वन प्रांत में बसे एक कस्‍बे में,मार्च महीने की एक रात में घटित एक साम...

कुबेर

कहानी

उजाले की नीयत

यह जिला मुख्‍यालय से पश्‍चिम की ओर सुदूर वन प्रांत में बसे एक कस्‍बे में,मार्च महीने की एक रात में घटित एक सामान्‍य सी घटना की असामान्‍य सत्‍यकथा है।

दूर चौराहे पर मुहल्‍ले के सारे बेरोजगार युवक और कुछ बड़े-बुजुर्ग, नगाड़े की थाप और फाग गीतों की लय पर झूम रहे थे। रंगों और मस्‍तियों का त्‍यौहार होली के आगमन में कुछ ही दिन श्‍ोष थे।

सड़क के दोनों ओर पंक्‍तिबद्ध बौराए आम के पेड़ों की मादक खुशबू से वातावरण महक रहा था। जिला मुख्‍यालय से आने वाली अंतिम यात्री बस, जिसे यहाँ रात्रि प्रवास कर प्रातः पुनः जिला मुख्‍यालय हेतु प्रस्‍थान करना होता है, आ चुकी थी। यात्री अपने-अपने घर जा चुके थे। चालक और परिचालक पास के सुमन हॉटल में खाने-पीने में मस्‍त थे। हॉटल के ये अंतिम और सम्‍मानित ग्राहक थे।

पास ही विमला का पान 'पैलेस' था। हॉटल से निवृत्‍त हुए अधिकांश साहब लोग यहाँ पान चबाते हुए गपशप में व्‍यस्‍त थे। इनमें अधिकांश वन विभाग के सिपाही, शिक्षा विभाग के गुरूजी और अन्‍य विभागों में कार्यरत बाबू और इक्‍के-दुक्‍के अफसर लोग थे। 'देशी महुए' की अधिकता के कारण इनकी जुबाने बहक रही थी और कदम लड़खड़ा रहे थे।

इनके गपशप के विषय गंभीर राजनीतिक अथवा आध्‍यात्‍मिक नहीं हो सकते थे। अलबत्‍ता चर्चा के विषय थे कि कौन साहब कितना और क्‍या पीता है। किस दफेदार ने विभाग को कितना चूना लगाया और गाँव की किन-किन लड़कियों पर किसकी-किसकी नजरें गड़ी हुई हैं, इत्‍यादि .......।

कुछ लोग सुुमन हॉटल और विमला पान पैलेस के गुणों का बखान कर रहे थे। इस दूरस्‍थ वनांचल में ये दोनों ही इस गाँव (स्‍थानीय लोगों का शहर) के नाक हैं। वैसे तो यहाँ बाहर से लोटा लेकर आये अनेक सेठ लोग भी दिन दूनी रात चौगुनी फल-फूल रहे हैं, पर सुमन और विमला सेठ की बात ही कुछ और है। सुमन और विमला को उसके ग्राहक उपकी प्रबंधन क्षमता के कारण अथवा खुशामद करने के लिए इसी उपाधि से संबोधित करते हैं। वैसे ये स्‍थानीय महिलाएँ है जो व्‍यवसाय में अपने पतियों से अधिक चतुर, जवान और सुंदर हैं; परंतु सेठ की श्रेणी में हरगिज नहीं आते हैं।

पानठेले में व्‍यस्‍त कुछ लोग अपने उन मित्रों से जल रहे थे जो इस समय नदारत थे। वे उन्‍हें जी भरकर कोस रहे थे और कयास लगा रहे थे कि नदारत रहने वाले किस मित्र के साथ कौन सी रेजा और किस साहब के साथ कौन सी बाई हमबिस्‍तर हो रही होगी। नदारत रहने वाले ये सारे मित्र छंटे हुए और गजब के जुगाड़ू लोग थे। रोज शाम, चाहे जैसे भी हो, ये अपने रात को रंगीन बनाने के लिये महुआ दारू और स्‍थानीय वन बालाओं का जुगाड़ कर ही लेते थे। कुछ लोग जो इन सब बातों से उकता चुके थे और स्‍वयं के लिये जुगाड़ न कर पाने की खीझ के कारण अत्‍यंत दुखी मन थे और इस गम को गलत करने के उद्‌देश्‍य से कुछ ज्‍यादा ही चढ़ाये हुए थे, दुलो के बारे में अत्‍यन्‍त अश्‍लील और भद्‌दी टिप्‍पणियाँ करके अपनी भद्रता को बिना संकोच अनावृत्‍त व कंलंकित कर रहे थे। उनकी इन टिप्‍पणियों से उनकी असली मानसिकता और चरित्र का दोगलापन जाहिर हो रहा था।

दुलो, जिसके बारे में सारी अश्‍लील टिप्‍पणियाँ की जा रही थी, न तो नगरवधू थी और न ही गाँव की कोई अनिंद्य रूपवती षोड़सी, जिसके इर्द-गिर्द गाँव के मनचले और तथाकथित भद्र मानसिकता वाले उपरोक्‍त साहब लोग भिनभिनाते। दुलो पचीस-तीस साल की भिखारिन थी। वह साँवली जरूर थी पर बदसूरत नहीं थी। पीठ पर निकल आए कूबड़ और एक पैर की पोलियोजन्‍य असक्‍तता से भी उसकी सुंदरता कम नहीं हुई थी। वह मैली-कुचैली धोती पहने, हाथ में कटोरा लिये दिन भर दर-दर भटकती और साप्‍ताहिक बाजार के लिये बनाई गई गुमटियों में से किसी एक में अनधिकृत कब्‍जा कर रात बिताती। वह इसी दिनचर्या अनुसार आज भी रात बिता रही थी। अधेड़ वय का अंधा सोमना उसका 'बिजनेस पार्टनर' था।

कस्‍बाई मच्‍छरों के तीखे डंक से बचने के लिये दुलो ने अपने शरीर को चादर से अच्‍छी तरह लपेट लिया था। वह अपने अतिक्रमित गुमटी में, जहाँ इस समय स्‍ट्रीटलाइट और पान ठेलों तथा होटलों के बाहर जल रहे विद्युत बल्‍बों की कुछ-कुछ रोशनी पहुँचने से उजियारा फैल रही थी, चुपचाप लेटी हुई थी। पास ही के दूसरी गुमटी में उसका तथाकथित 'बिजनेस पार्टनर' अंधा सोमना खर्राटे भर रहा था। मच्‍छरों के डंकजनित दाह को कम करने के लिये वह बार-बार अपने शरीर के उन हिस्‍सों को बुरी तरह खुजला रही थी। उसे पान ठेले पर जमें उन साहब लोगों की बेढंगी बातों के शोर की वजह से शायद नींद नहीं आ रही थी। विमला पान पैलेस से आ रही गप्‍पबाजी को वह बड़े ध्‍यान से सुन रही थी। न सिर्फ सुन रही थी बल्‍कि उन बातों से वह अब रस भी ले रही थी, और जिससे रह-रह कर उसे रोमांच हो आता था। साथ ही साथ वह मदोंर् के विषय में अपने स्‍त्रियोचित ज्ञान और इन साहबों के विषय में अपनी पूर्व अवधारणाओं और पूर्वाग्रहों को भी संशोधित करती जा रही थी। तभी उसे अपने विषय में की जा रही वह टिप्‍पणी सुनाई दी। सुनकर उन साहबों के प्रति उसके मन में जो सहज और स्‍वाभाविक सम्‍मान व श्रेष्‍ठता के भाव थे, एक ही झटके में टूटकर बिखर गये।

0

दुलो कं मस्‍तिष्‍क पर मंहगू, सोमना और इन साहबों के चेहरे बारी-बारी से उभरने लगे। महंगू जो उसका पति हुआ करता था, और जिसके साथ उसने जीवन के दस वर्ष बिताये थे। वे दस वर्ष, जिनके बारे में वह कभी भी निर्णय नहीं कर पाई कि वेे दिन स्‍वार्गिक सुख के थे या नारकीय यातना के। सोमना, जो पिछले कुछ सालों से भिखमंगों की टोली में कहीं से आकर शामिल हो गया था, उसके साथ रहता है, और साथ ही गली-गली घूमकर भीख मांगा करता है। आँख वाले किसी साथी का साहचर्य उसकी मजबूरी थी। अपनी मर्दानगी को तुष्‍ट करने के लिये भी उसे एक औरत की जरूरत थी; परंतु ऐसी वैसी हरकत के द्वारा किस्‍मत से हाथ आई दुलो को वह कभी नाराज नहीं कर सकता था। फिर भी, कम से कम वह दुलो की जवानी और उसकी उम्र को स्‍पर्श इन्‍द्रिय द्वारा महसुस करना चाहता था, जानना चाहता था। और शायद इसी उद्‌देश्‍य की पूर्ति के लिये समय-कुसमय वह उनकी बाहों की मांसपेशियों को और कभी-कभी वक्ष के उभारों को भी मसलने का प्रयास करता। बदले में हर बार वह भद्‌दी गालियाँ खाता, परंतु बलात्‍कार जैसा कुकृत्‍य करने का दुःसाहस उसने कभी नहीं किया। और अंत में पान ठेले पर उसके प्रति, और समूची महिला जाति के प्रति अश्‍लील टिप्‍पणियाँ कर रहे इन साहबों के चेहरे, जो शराब के असर से स्‍वतः बेनकाब होते चले जा रहे थे।

शरीर के उन अंगों को जो अनावृत्त हो गये थे, और जहाँ मच्‍छरों का ताजा हमला हुआ था, ढंकर वह सोने का पुनः प्रयास करने लगी, परंतु नींद उससे कोसों दूर थी। उसकी आँखों में मंहगू लंगड़े की तस्‍वीर उभरने लगी। वह मंहगू के पास जाने का प्रयास कर रही है, लेकिन नश्‍ो में धुत महंगू अपशब्‍दों के साथ उसे परे ढकेल देता है। बांझ और न जाने कैसी-कैसी भद्‌दी गालियाँ देते हुए उसे वह बुरी तरह पीटने लगता है। और अंत में उसके बालों को पकड़कर, उसे घसीटते हुए, रात की घोर नीरवता और अंधेरे में, घर से बाहर गली में, छोड़ जाता है। यह रोज का क्रम है, परंतु आज दुलो की आँखों में भी खून उतर आया है। क्‍या इसीलिये उसने उसका हाथ थामा था? वह घायल सिंहनी की भांति उठती है। कपड़ों का उसे होश नहीं है। आवेगाअतिरेक में उसका शरीर कांप रहा है। वह दहाड़ रही है- ''अरे भड़वा, नामर्द, मुझे बांझ कहता है। अरे छक्‍का, कमर तो चलता नहीं, बस लात-घूंसा ही चलता है। लात-घूंसों से बच्‍चा होगा?'' और फिर वर्षों से उसके प्रति शरीर तथा मन में व्‍याप्‍त घृणा को जो मुँह में इकत्र हो आया था, अंदर से बंद किंवाड़ पर पूरे आवेग से उछाल देती है 'पचाक'। वह दरवाजे पर नहीं मंहगू के चेहरे पर थूँक रही थी, न सिर्फ थूँक रही थी, बल्‍कि उससे संबंध विच्‍छेद के दस्‍तावेजों पर हस्‍ताक्षर भी कर रही थी। तब से वह भिक्षावृत्‍ति कर जीवन निर्वाह करती हुई इस कस्‍बे में आकर ठहर गई है। शायद स्‍वार्थ और सुरक्षा की भावनावश उसे सोमना से दोस्‍ती का समझौता करना पड़ गया है।

0

बांझ शब्‍द उसके कानों में गूँजने लगा। लेटे रहना जब मुश्‍किल हो गया तो वह उठ कर बैठ गई। साहब लोगों की आवाजें बंद हो गई थी। हॉटल और ठेले बंद हो चुके थे। अंधेरा बढ़ चुका था। उसने आस-पास के अंधेरे को महसूस किया। अपनी जवानी पर नजर डाली। क्‍या वह सचमुच बांझ है? अपने हाथों से अपने वक्ष को, जो अभी भी गदराए और कंसे-कंसे थे, सहलाया। उसके मन ने निश्‍चय पूर्वक कहा, 'नहीं, वह बांझ नहीं है'। भावावेश के कारण उसका शरीर थर्रा उठा। उसे अपने अंदर आदिम भूख की तीव्रता घनीभूत होती जान पड़ी। उसने सोमना की ओर देखा, जो अभी बेसुध हो खर्राटे ले रहा था। उसे सोमना और मंहगू एक से लगे। सोमना पर एक हिकारत भरी नजर डालकर वह पुनः सोने का प्रयास करने लगी।

दुलो की आँखों में इस समय उस काले, लंबे और गठीले बदन वाले दफेदार की तस्‍वीर उभर आई, जिसके शरीर पर शायद लंबे घने बाल होने के कारण लोग जिसे पीठ पीछे भालू कहकर मजे लेते। दुलो भिक्षा मांगने के क्रम में जब भी उसके घर जाती, उस दफेदार की घनी, काली मूछों के ऊपर से झांकती उनकी दोनों रक्‍तवर्ण आँखें हमेशा ही उसे कामुक नजरों से घूरती रहती, जिससे उसका बदन भय से काँपने लगता। अभी, आधी रात के इस गहन अँकार में वह इन्‍हीं घनी मूंछों और इन मूंछों के ऊपर झांकती उन रक्‍तवर्ण कामुक नजरों को बड़े शिद्‌दत के साथ महसूस करने लगी। न जाने कब उसकी आँखें लग गई।

रात की वीरानी ने वातावरण को पूरी तरह से अपने कब्‍जे में ले लिया था। चौराहे पर बज रहे नगाड़े की थाप भी पता नहीं कब से बंद हो चुका था। महुवे की शराब के नश्‍ो में बेसुध होकर थिरकते लोग अपने-अपने घर जा चुके थे। अलबत्‍ता पास ही बह रहे जंगली नाले के उस ओर, जंगलों के बीच से सियारों के हुआँने की आवाजें जोर पकड़ने लगी थी।

0

चादर के अंदर किसी को घुसते हुए महसूस कर दुलो की नींद खुल गई। अंधेरा घना था, उसने सोचा, सोमना होगा। लेकिन सीने पर किसी मजबूत पंजे की दबाव ने उसका भ्रम तोड़ दिया। वह समझ नहीं पाई कि उसके साथ यह क्‍या होने जा रहा है। किसी अनहोनी की आशंका से उपजी दहशत की जकड़ ने उसकी चेतना और उसके विवेक को शून्‍य कर दिया था। वह पूरी ताकत से चिल्‍लाना चाती थी, पर आवाज गले से बाहर नहीं आ पा रही थी। वह मुक्‍ति हेतु छटपटाने लगी। बहुत जल्‍द ही उसने समझ लिया कि हमलावर की नीयत क्‍या है। अंधेरे की वजह से वह उसे साफ-साफ नहीं देख पा रही थी इसीलिये वह उसे अब स्‍पर्ष के द्वारा पहचानने का प्रयास करने लगी थी। शराब की तीखी गंध जो उस व्‍यक्‍ति के धौंकनी के समान तेज चल रही सांसों से निकल रहा थी, उसके नथुनों में भरने लगी थी। उसने उसके शरीर पर लंबे-लंबे बाल अनुभव किये। घनी मूँछों के ऊपर से झाँकती दो रक्‍तवर्ण आँखों की चुभती हुई कामुकता को देखा।

उसका प्रतिरोध अब धीरे-धीरे क्षीण होने लगा था, और उसकी आदिम भूख उसके अस्‍तित्‍व पर प्रबल होने लगी थी। क्षणिक दुर्बल संघर्ष के बाद उसका प्रतिरोध समाप्‍त हो गया।

कुछ देर बाद सब कुछ शांत हो गया। तूफान थमकर लौट चुका था।

वातावरण का अंधकार अब उसके मन पर घनीभूत होने लगा था। इस घटना से बेखबर, बेसुध सोमना की ओर उसने देखा; वह अभी भी उसी तरह खर्राटे भर रहा था। उसे क्‍या पता कि उजाले ने अंधकर से मित्रता करके उसे छल लिया था। वह शक्‍तिहीन और निश्‍तेज हो चुकी थी। उसकी कल्‍पना ने उसे उसके गर्भ में किसी नवागंतुक के स्‍पन्‍दन का अनुभव कराया। वह सिहर उठी। चुपचाप उठी और आहत कदमों से चलती हुई, जाकर सोमना के बगल में लेट गई। अब सोमना की भी नींद टूटी। उसने करवट बदलकर उसके जिस्‍म को टटोला; पीठ के कूबड़ पर हाथ फेरा, गदराए स्‍तनों को मसलकर देखा और तत्‍परता पूर्वक उसने पूरे आवेग के साथ उसे अपने आगोश में समेट लिया।

दुलो ने अब की बार बहुत सोच-समझ कर अपने अस्‍तित्‍व को सोमना के हाथों सौपा था; शायद मिटाने के लिये या शायद मिटे हुए को और मिटा कर बचाने के लिये।

वातावरण की स्‍तब्‍धता को अब एक साथ दो खर्राटे चीर रहे थे। दूर जंगल में सियारों के हुआँने की आवाजे भी अब बढ़ने लगी थी।

000

कुबेर

जिला प्रशासन (राजनांदगाँव) द्वारा

गजानन माधव मुक्तिबोध

सम्‍मान 2012 से सम्‍मानित

(जन्‍म - 16 जून 1956)

प्रकाशित कृतियाँ

1 - भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003

2 - उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009

3 - भोलापुर के कहानी (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010

4 - कहा नहीं (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011

5 - छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्तीसगढ़ी लोक-कथाओं का संग्रह) 2013

प्रकाशन की प्रक्रिया में

1 - माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्‍यंग्‍य संग्रह)

2 - और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)

3 - सोचे बर पड़हिच्‌ (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

4 - ढाई आखर प्रेम के (अंग्रेजी कहानियों का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद)

संपादित कृतियाँ

1 - साकेत साहित्‍य परिषद्‌ सुरगी, जिला राजनांदगाँव की स्‍मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010, 2012

2 - शासकीय उच्‍चतर माध्‍य. शाला कन्‍हारपुरी की पत्रिका 'नव-बिहान' 2010, 2011

पता

ग्राम - भोड़िया, पो. - सिंघोला, जिला - राजनांदगाँव (छ.ग.)

पिन - 491441

मो. - 9407685557

E-mail : kubersinghsahu@gmail.com

संप्रति

व्‍याख्‍याता,

शास. उच्‍च. माध्‍य. शाला कन्‍हारपुरी, वार्ड 28, राजनांदगँव (छ.ग.)

मो. 9407685557

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कुबेर की कहानी - उजाले की नीयत
कुबेर की कहानी - उजाले की नीयत
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguJIOJdMHBFCHdZvyp4thDFZ6xPGodozpi8GyBjfjT33dhLvFhNOvteuFPu5q8hnr7TPTP-sTBTEkNMyhcI7DFe8lEt92JVQQoCl9acooD-QWaTMr4tWkZJpLlZgXwF3QRz9JO/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEguJIOJdMHBFCHdZvyp4thDFZ6xPGodozpi8GyBjfjT33dhLvFhNOvteuFPu5q8hnr7TPTP-sTBTEkNMyhcI7DFe8lEt92JVQQoCl9acooD-QWaTMr4tWkZJpLlZgXwF3QRz9JO/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_9767.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_9767.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content