गोवर्धन यादव का यात्रा संस्मरण : उत्तराखण्ड यात्रा

SHARE:

                उत्तराखण्ड की यात्रा.                                                             गोवर्धन यादव                           इसी...

 

              उत्तराखण्ड की यात्रा.

                                                            गोवर्धन यादव     

image              

      इसी माह की तेरह तारीख को मैं उत्तराखण्ड से वापिस लौटा हूँ. और, लौटने के चार दिन बाद ही प्रकृति ने अभूतपूर्व विनाश लीला रच दी है.

उत्तराखण्ड जाने का कार्यक्रम अनायास ही नहीं बना था,बल्कि यह  प्रायोजित था. जाखनदेही(अल्मोडा) के मेरे अपने मित्र श्री उदय किरोलाजी,जो एक जानदार त्रैमासिक पत्रिका”बाल-प्रहरी”के संपादक हैं,और वर्ष में एक बार राष्ट्रीय बाल संगोष्ठी का कार्यक्रम उत्तराखण्ड के किसी खास स्थान पर आयोजित करते हैं. ऎसा करने के पीछे उनका मकसद होता है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में बाल-साहित्यकार वहाँ आएं और अपनी रचनाधर्मिता के साथ-साथ पर्यटन का भी आनन्द उठाएं. जून २००९ की तेरह-चौदह तारीख को उन्होंने अपना कार्यक्रम भीमताल(नैनीताल) में रखा और मुझे निमंत्रण-पत्र भेजने के साथ ही फ़ोन पर भी आग्रह किया कि मैं वहाँ पहूँचु. भीलवाडा(राजस्थान) के मेरे अभिन्न मित्र, जो मासिक पत्रिका” बालवाटिका” के संपादक है, का फ़ोन आया और उन्होंने भी वहाँ साथ चलने का आग्रह किया. इस तरह मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं नैनादेवी के दर्शन लाभ उठा सका. इस यात्रा में मेरी धर्मपत्नी श्रीमती शकुन्तला यादव भी साथ थीं.

      सन २००९ के बाद से मैं निजी कारणॊं से, किरोलाजी के कार्यक्रम में नहीं जा पाया था. उन्होंने सन 2010 में मसूरी, 2011 में जोशीमठ तथा २०१२ में अल्मोडा जैसे पवित्र एवं जगप्रसिद्ध पर्यटन-स्थल पर कार्यक्रम किए थे. इस वर्ष उन्होंने अपना कार्यक्रम उत्तरकाशी में रखा. निमंत्रण-पत्र भिजवाया,साथ ही फ़ोन पर आने का आग्रह भी किया था. मैंने अपने कुछ मित्रों को साथ चलने को कहा. दो मित्र श्री आर.एम.आनदेव तथा श्री डी.पी.चौरसियाजी जाने को उद्दत हुए. कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते समय हमने तय किया कि यमुनोत्री-गंगोत्री- केदारनाथ तथा बदरीनाथजी की भी यात्रा करेंगे. इस तरह छिन्दवाडा से दिल्ली के बीच प्रतिदिन चलने वाली पातालकोट एक्सप्रेस से हमने अपनी-अपनी सीटें आरक्षित करवायी. इस बार मैंने अपने चौदह वर्षीय पोते श्री दुष्यंत को भी साथ ले जाने का मानस बनाया कि वह पर्यटन के साथ-साथ कार्यक्रम में भाग ले सके. यात्राक्रम में आंशिक परिवर्तन करते हुए मैंने हरिद्वार-देहरादून तथा मसूरी को भी जोडा और इस तरह हम छिन्दवाडा से दो जून को रवाना हुए.

      तीन जून को हम सराय रोहिल्ला स्टेशन पर सुबह आठ बजे पहुंचे. वहाँ से बस द्वारा हरिद्वार शाम छः बजे पहुंचे. शाम के वक्त ही गंगाजी में स्नान किया,क्योंकि दूसरे दिन सुबह हमें देहरादून के लिए निकलना था. गंगाजी में इस समय बाढ चल रही थी. स्थानीय लोगों ने बतलाया कि ऊपर खूब पानी बरसा है. तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार श्री गर्गजी भी अपने परिवार के साथ देहरादून पहुँचने वाले थे.

      हम लोग 5 जून को देहरादून से, सुबह साढे पांच बजे की बस से यमुनोत्री के लिए निकले. यमुनोत्री यहाँ से लगभग 273 कि.मी. की दूरी पर अवस्थित है. पहाडी इलाके से प्राय़ः सभी बसें इसी समय रवाना होती है,क्योंकि एक तो रास्ते का चौडीकरण का काम चल रहा है और दूसरा रास्ते में अंधे मोड भी आते रहते है. रास्ता पहाडॊं की ढलान से सटकर चलता है. हजारॊं फ़ुट गहरी खाईय़ों,और सघन जंगलों के बीच रेंगती हमारी बस, धीरे-धीरे आगे बढ रही थी. बडकोट से टैक्सी लेकर हम लोग दो बजे के करीब जानकीचट्टी पहुँचे. जानकी चट्टी से से यमुनोत्री के लिए एकदम सीधी खडी चढाई 5 किमी.की है. हम चाहते तो उसी दिन माँ यमुना के उद्गमस्थल के दर्शन कर सकते थे. लेकिन बारिश के चलते, हमने उसे अगले दिन के लिए टालना ही उचित समझा और पास के बने एक मकान को किराए पर उठाया और रात्रि विश्राम किया.

      इसी मकान के पास श्री तरपनसिंह राणा (मोबाईल नम्बर 09411363167-09012863957) की होटल है. शाम की चाय और रात्री का भोजन हमने यहीं किया. बातों ही बातों में पता चला कि उसके पास चार खच्चर है और वह सात सौ रुपया प्रति खच्चर के दे सकता है. यदि इससे ज्यादा खच्चर चाहिए तो वह हमें उपलब्ध करवा देगा. एक तो रात भर बारिश होती रही. ऎसे समय में रास्ता फ़िसलन भरा हो जाता है और फ़िर सीधे खडॆ पहाड पर चढना हम जैसे उम्रदराज लोगों के लिए तो एकदम असंभव सा है.

 

      श्री राणा ने हमें चार बजे जगा दिया था,लेकिन नस-नस में आलस भरी हुई थी और आँख थी कि खुल नहीं पा रही थी. इसके पीछे मुख्य कारण यह रहा कि एक तो हम एक अजनबी जगह पर थे और शाम चार बजे के बाद से कमरें में बिजली नहीं थी. किसी तरह मोमबत्ती जलाकर कम्ररे को रोशन करते रहे थे. फ़िर कमरा भी हवादार नहीं था. किसी को भी चैन की नींद नहीं आयी थी. किसी तरह पांच बजे हम तैयार हो पाए और चाय लेकर निकल भी नहीं पाए थे कि चार खच्चर तैयार खडॆ थे. तीन खच्चर हम लोगो के लिए थे और एक श्री गर्गजी के लिए था. भाभीजी के लिए पिठ्ठु की व्यावस्था की गई थी. शेष सदस्यों ने पैदल चलकर यात्रा करने का मानस बना लिया था.

      खच्चर पर बैठना भी किसी तपस्या से कम नहीं होता. शरीर को उसकी चाल के अनुसार साध कर रखना होता है और जिन्स से लगे हुक को मजबूती से पकड कर रखना होता है. कमर से ऊपर के भाग को सामने की ओर झुकाकर बैठना होता है,क्योंकि खच्चर ऊपर की ओर चढ रहा होता है, ऎसा किए जाने से सवार को बैठने मे आसानी होती है और संतुलन भी बना रहता है. खच्चर सवार को इस बात का भी ध्यान रखना होता है कोई चट्टान सर के ऊपर तो नहीं आ रही है. जरा सी भी असावधानी, किसी बडी दुर्घटमा को अंजाम दे सकती है. अतः यहाँ सावधानी बरतना तथा चौकस रहना अति आवश्यक है.

      जैसे-जैसे हम आगे बढते हैं,प्रकृति के पल-प्रतिपल बदलते अद्भुत सौंदर्य को देखकर मन खुश हो जाता है. चारों तरह आसमान से बातें करती पर्वत श्रेणियाँ, रंग-बिरंगे पेड, कहीं पहाडॊं की कोख से फ़ूटकर निकलता झरना, पहाडी गीत सुनाने लगता है. अपने वेग में इठलाती, बलखाती, शोर मचाती, छोटी-बडी चट्टानों से कूदती-फ़ांदती यमुना जी का अद्भुत रुप देखकर, मन न जाने किस नयी दुनियां की ओर उडा चला जाता है. कई घुमावदार –तेढे-मेढे रास्तों से गुजरते हुए हम कब यमुनोत्रीजी के करीब पहुँच गए थे, पता ही नहीं चल पाया.

      एक निश्चित दूरी पर सारे खच्चर रोक दिए जाते हैं और अब यत्रियों को पैदल चलते हुए पुल पार करना होता है. रास्ते में जगह-जगह प्रसाद बेचने वालों की दूकाने सजी होती है. यात्री पूजा की सामग्री लेकर आगे बढता है. देवी के दर्शनों से पहले नहाना जरुरी होता है. ऊपर गरम पानी का कुंड है,जिसमें से भाप निकलते देखा जा सकता है. शरीर के पोर-पोर में जमी ऎंठन और ठंडक, गरम पानी में उतरते ही रफ़ुचक्कर हो जाती है. यात्री यहाँ जी भर के अपने शरीर को गर्माता है और फ़िर कपडॆ बदलकर माँ के दर्शनार्थ आगे बढ जाता है. यहाँ पुरुषों और महिलाओं के नहाने की अलग-अलग व्यवस्था बना दी गई है.

      माँ यमुना के दर्शन कर यात्री कृतार्थ हो उठता है. मन्दिर के समीप ही सूर्यकुंड है.

यह धाम समुद्र सतह से 10,800 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है. आसपास के सभी पर्वत शिखर हिमाच्छादित हैं. दर्गम चढाई के कारण श्रद्धालु इस उद्गम स्थल को देखने से वंचित रह जाते है. अतः मन्दिर का निर्माण ऎसी जगह किया गया है, जहाँ आम आदमी आराम से पहुँच सकता है. इसी ग्लेशियर से माँ यमुना निकलती है और अपने पूरे वेग से साथ नीचे उतरती हैं.                                                      गढवाल हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री चारधाम यात्रा का पहला पडाव है. यमुना नदी का स्त्रोत, कालिंदी पर्वत पर है. यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत बर्फ़ की जमी हुई एक झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर है. यमुनोत्री मंदिर परिसर 3235 मी.ऊँचाई पर स्थित है. मन्दिर प्रागंण में एक विशाल शिला स्तम्भ है,जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है. माह मई से अक्टूबर तक यहां यात्रा की जा सकती है. शीतकाल में यह स्थान पूर्णरुप से हिमाच्छादित रहता है. मोटरमार्ग का अंतिम बिंदु हनुमान चट्टी है. हनुमान चट्टी से मंदिर तक 14 कि.मी.पैदल चलना होता था किंतु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुंचा जा सकता है,जहाँ से मन्दिर मात्र पांच कि.मी.दूर रह जाता है. पाँच कि.मी.तक का यह  रास्ता घुमावदार एवं सीधी खडी चढाई वाला है, जिसे खच्चर,पिठ्ठु की सहायता से अथवा पैदल चलते हुए जाया जा सकता है.

      देवी यमुनाजी के मन्दिर का निर्माण टिहरी गढवाल  के महाराजा प्रतापशाह द्वारा किया गया था.यमुना के जल की शुद्धता,एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के मन में इसके प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पडती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर है. देवी यमुना के मन्दिर तक की चढाई का मार्ग सकंरा, दुर्गम और रोमांचित कर देने वाला है. मार्ग के अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी बर्फ़ से ढंकी चोटियाँ ,घने जंगल की हरितिमा यात्रियों का मन बरबस ही मोह लेती है. यमुनोत्री मन्दिर के आसपास के क्षेत्र में अनेक गर्मजल के सोते हैं. इन सोतों में सबसे प्रसिद्ध कुंड “सूर्यकुंड” है,जो अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है. भक्तगण इस कुंड में चावल की पोटली,जो प्रसाद आदि के साथ सहज में ही उपलब्ध हो जाती है,इसी कुंड के खौलते पानी में डालकर पकाते हैं और उसे प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं. सूर्यकुंड के समीप ही एक दिव्यशिला है. इसे ज्योतिशिला भी कहते हैं. माँ यमुना की पूजा से पहले इस शिला की पूजा करने का नियम है. ग्रीष्मकाल के दिन सुहावने और रातें काफ़ी सर्द रहती है. यहां का न्युनतम तापमान 5 डिग्री..तथा अधिकतम 20 डिग्री.तक रहता है. दर्शनों के बाद यात्री होटलों में चाय-नाश्ते के लिए रुकता है. खच्चर वाले इस इन्तजार में रहते हैं कि कब उसका सवार वापिस आता है और वह वापिस हो सके. वापसी की यात्रा ज्यादा खतरनाक हो उठती है,क्योंकि अब खच्चरों को नीचे उतरना होता है. खच्चर वाले पहले से आगाह कर देते हैं कि सवार अपने शरीर को पीछे झुकाकर बैठे और पीछे लगे हुक को कसकर पकड ले.. यदि सवार असावधान रहा तो उसके सिर के बल गिरने के ज्यादा आसार होते हैं, ऊपर चढने-उतरने वाले खच्चरों का रैला, पैदल चढाई करने वाले यात्रियों के झुंड और झुकी हुई चट्टानों को भी ध्यान में रखना होता है. कभी-कभी थॊडी सी भूल अथवा असावधानी से जाम लग जाता है.,जिससे यात्रा में घंटॊं बरबाद होते हैं. अतः यहाँ चौकस और सावधान रहना अत्यंत आवश्यक होता है.

आसमान यहाँ हमेशा बादलों से अटा पडा रहता है. कब बारिश हो जाए और कब हवा, तूफ़ान का रुख अख्त्यार कर ले,कहा नहीं जा सकता. अतः यात्रियों को चाहिए कि वह अपने साथ बरसाती अथवा छाता लेकर जरुर चले.      गनीमत थी कि हमारे साथ ऎसा कुछ भी नहीं हुआ और हम दोपहर  दो बजे के करीब अपने ठिकाने पर वापिस आ गए थे.

राणा के अस्थायी होटल में हम आकर बैठे ही थे कि बादलों ने अपने रंग दिखाने शुरु कर दिए और बूंदा-बांदी होने लगी, तब से लेकर सारी रात, बारिश रिमझिम के तराने गाती रही. बिजली यहां कभी-कभार ही आती है. सांझ ढलते ही काला-कलुटा अंधियारा, कुण्डली मारकर चहुंओर पसर गया था. दिन में बहुत ही खूबसूरत दिखाई देने वाली बर्फ़ीली चोटियाँ अब डराने से लगी थी. हवा भी चल निकली थी, अपने साथ बर्फ़ीली ठंडक लिए हुए. यहाँ आने वाले यात्रियों को चाहिए कि वह अपने साथ ऊनी कपडॆ लेकर जरुर चलें

राणाजी के चुल्हे के आसपास बैठकर हम अपने शरीरों को गरमा रहे थे. भूख भी अब जोरों से लग आयी थी. राणा को हमने टमाटर की खट्टी-मीठी सब्जी बनाने को कहा. तवे से उतरती गर्मा-गरम रोटियां और टमाटर की सब्जी खाने में बडा मजा आ रहा था. रात काफ़ी बीत चुकी थी. अब हमें आराम करने की जरुरत थी और सुबह पांच बजे उठना भी था क्योंकि राज्य परिवहन की बस सुबह साढे पांच बजे उत्तरकाशी के लिए रवाना होती है. आगे की यात्रा पूरे सात घंटॊं की थी. यात्रियों की संख्या देखकर पहले से टिकीट लेकर अपनी सीटें आरक्षित करना जरुरी लगा था हमें, ताकि आगे की यात्रा आराम से कट सके. “सुबह जल्दी उठना है” के चक्कर में रात बेचैनी में कटी. बारिश अब भी अपने पूरे शबाब पर थी. पहाडी इलाकों के चलने वाले बसें सुबह ही रवाना हो जाती है.क्योंकि रास्ता पहाडॊं को काट कर बनाया गया है जो अत्यधिक ही संकरा होता है और दूसरा यह कि रास्ते में अनेक घुमावदार मोड भी आते हैं. अतः दोपहर दो बजे के बाद कोई भी बस यहां से रवाना नहीं होती. यदि रवाना भी होती है तो बडकोट पर आकर रुक जाती है. हाँ, टैक्सी वाले जरुर मिल जाते हैं ,लेकिन इसमें खतरे है, अतः यात्रियों को चाहिए कि वह जल्दबाजी के चक्कर में न पडॆ,तो बेहतर है..

दिनांक 7 जून -दोपहर दो बजे के लगभग हम उत्तरकाशी आ पहुँचे. हमारे रुकने की व्यवस्था पंजाब-सिंध धर्मशाला में की गई थी. कहने के लिए वह धर्मशाला थी, लेकिन किसी थ्री-स्टार होटल से कम न थी. उस धर्मशाला की दीवार, ठीक गंगाजी के तट कॊ छूती हुई थी. कमरे के सामने बेंचे लगा दी गई थी, जहाँ से बैठकार आप गंगाजीके दर्शन आराम से कर सकते हैं. करीब तीन सौ मीटर नदी का पाट रहा होगा. गंगा मे इस समय बाढ आयी हुई थी,सो उसकी गर्जना की आवाज सुनकर भय की प्रतीती होती थी.

      राष्ट्रीय बाल संगोष्ठी का कार्यक्रम स्थानीय नगरपालिका परिषद के विशाल सभा कक्ष में रखा गया था. अनेक प्रदेशों से आए साहित्यकारों का पंजीकरण किया गया और ठीक चार बजे कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई. बालप्रहरी के कुशल संपादक-संस्थापक-और कार्यक्रम के आयोजक श्री उदय किरौला ने संस्था की गतिविधियों तथा भविष्य की रुपरेखा पर विस्तार से प्रकाश डाला. तत्पश्चात विभिन्न प्रदेशों से आए साहित्यकारों ने अपना परिचय दिया. इस औपचरिकता के बाद बच्चों ने मंच संभाला. चयनित बच्चों ने कविता पाठ किया. कविताएं सुनकर सहज ही आश्चर्य होना स्वभाविक है कि इतनी कम उम्र के बच्चे कितनी सुन्दर-सुगढ रचनाएं लिख रहे हैं. आश्चर्य तो इस बात पर भी होता है कि उन्हीं बच्चों में से कोई कार्यक्रम की सफ़लतापूर्वक अध्याक्षता भी कर रहा है और संचालन भी कर रहा है. इसका सारा श्रेय श्री किरौलाजी को जाता है कि वह किस लगन और मेहनत से नयी पीढी को संस्कारित करने में रात-दिन एक कर रहे हैं.

      काव्यगोष्ठी के बाद अनेकों पुस्तकों का विधिवत विमोचन किया गया और पहले सत्र के मुख्य वक्ता के रुप में बालवाटिका के संपादक डा.श्री भैंरुलालजी गर्ग ने “बालसाहित्य में बाल-पत्रिकाओं के योगदान” पर सारगर्भित वक्तव्य दिया. शनिवार 8 जून को बालसाहित्य में विज्ञान लेखन, बाल कहानी वाचन, बालकविता पर बच्चों ने अपनी दक्षता का परिचय दिया. ताज्जुब होता है कि बच्चे इतनी कम उम्र में कितनी मार्मिक और मौलिक कहानियों को लिख रहे हैं. सायं 5 बजे अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ. मेरे पोते श्री दुष्यंतकुमार यादव जो कक्षा नौवीं का छात्र है, ने कविता पाठ (फ़ोटॊ-७-८-९-१०) किया. उम्रदराज लोगों के बीच इतनी सुगढ और कसी हुई रचना को सुनते हुए प्रायः सभी साहित्यकारों ने उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की. यह मेरे लिए जीवन की सबसे बडी उपलब्धि थी कि मैं अपने पोते को साहित्य में संस्कारित कर पाया.  इस काव्य-गोष्ठी का संचालन श्रीमती मंजु पाण्डेजी ने पूरे जोश-खरोश के साथ सफ़लतापूर्वक संचालन किया. रविवार दिनांक 9 जून “बालसाहित्य एवं शिक्षा” पर विद्वान साहित्यकारों ने अपना उद्बोधन दिया और अंत में बालसाहित्य के पुरोधा एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राष्ट्रबंधु ने श्री राजेन्द्रसिंह रावत, श्री दीवानसिंह डोलिया, श्रीमती पुषलता जोशी, श्रीमती सावित्री देवी कांडपाल, डा.श्री शेषपालसिंह”शेष”, .डा.मधुभारती, डा.श्री महावीर रवांल्टा, डा.श्री परशुराम शुक्ल, डा.विमला भंडारी डा,श्री मोहम्मद्खान, श्री आशीष शुक्ला, श्री घमण्डीलाल अग्रवाल,एवं श्री मनुज चतुर्वेदी”भारत” को शाल ओढाकार,श्रीफ़ल तथा संस्था का स्मृति-चिन्ह देखर सम्मानीत किया. विभिन्न प्रदेशों से पधारे सभी विद्वान साहित्यकारों को संस्था का स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानीत किया गया.

      कार्यक्रम की समाप्ति के बाद हमारे पास कुल देढ दिन का समय बचा था. हमारा वापसी का टिकिट सराय रोहिल्ल(दिल्ली) से दिनांक 11 जून का था और इस बीच हमें गंगोत्री और केदारनाथ भी जाना था. इतने कम समय में केवल एक स्थान पर ही जाया जा सकता था. अंततः यह तय हुआ कि गंगोत्री की यात्रा की जा सकती है. केदारनाथ की यात्रा संभव नहीं लग रही थी. हमारे पास केवल एक उपाय शेष था कि किसी तरह टिकिट कैंसल होकर आगे की तिथि की हो जाए, तो केदारनाथ भी जाया जा सकता है. अतः हमने आठ तारीख को कलेक्टोरेट जाकर टिकिट निरस्त कराने और नया टिकिट तेरह तारीख की जारी करवाने की सोची..सनद रहे कि उत्तरकाशी में रेललाईन न होने की वजह से वहां कोई टिकिटघर नहीं है अतः टिकिट जारी नहीं की जा सकती थी. इस समस्या को हल करने के लिए कलेक्टोरेट में अतिरिक्त व्यवस्था की गई है. लेकिन उस दिन दूसरा शनिवार होने के नाते कार्यालय बंद था. अतः हमारी योजना पर पानी फ़िर गया. अब केवल एक चारा बचा था कि हमें तत्काल ही गंगोत्री के लिए रवाना हो जाना चाहिए.

कार्यक्रम की समाप्ति के बाद हमारे सारे मित्रगण टैक्सी लेकर रवाना हो चुके थे. टैक्सी के लिए कम से कम दस सीटॊं की आवश्यकता होती है. लेकिन हम केवल तीन लोग थे. और हमें कम से कम सात लोगो के साथ की जरुरत थी. संयोग से श्रीमती मंजु पाण्डेजी, के ग्रुप मे उनके अतिरिक्त चार महिलाएं और थीं,जिन्हें गंगोत्री जाना था,का साथ मिल गया और इस तरह हम गंगोत्री के लिए निकल पडॆ. उत्तरकाशी से गंगोत्री की दूरी 172 किमी.है. भटवारी,झाला, लंका और भैरोंघाटी होते हुए गंगोत्री पहुंचा जा सकता है. अमुनन इस रास्ते को पार करने में कम से कम सात घंटे का समय लगता है. यात्रा की शुरुआत से लेकर भागीरथी, हमारे साथ चलती रहती है. कभी आँखों से ओझल हो जाती है फ़िर थॊडी देर बाद प्रकट हो जाती है. पहाडॊं की अनवरत श्रृंखला भी हमारे साथ –साथ चलती रहती है. लेकिन आज वे उदास हैं. पहाडॊं का अन्यतम मित्र वृक्ष ही होता है,जो आज विलुप्त होने की कगार पर है. वृक्षविहीन पहाडॊं पर छाई उदासी को देखकर मन में अपार पीडा होती है भीमकाय जेबीसी मशीनें उनकी छाती को छील रही होती है. जगह-जगह पर पत्थर-मिट्टी.के ढेर आवागमन में बाधा बनने का कारण बनते हैं. पैसा कमाने की होड में लोगो ने सडकों तक अपने मकानों को फ़ैला रखा है और तो और उन लोगों ने पहाड की ढलान पर से सिंमेंट-कांक्रीट के पिल्लर खडॆ करके अपने साम्राज्य खडॆ कर लिए हैं. विकास के नाम पर यदि इसी तरह का दुष्चक्र चलता रहा तो एक दिन हम विनाश को रोके, रोक नहीं पाएंगे.

उत्तराखण्ड का सुप्रसिद्ध तीर्थ गंगोत्री है,जो गंगाजी का उद्गमस्थल है. यहाँ गंगोत्री में गंगा का नाम भागीरथी है. भागीरथ ने यहाँ रहकर गंगाजी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया था .इसलिए इस स्थान से बहने वाली गंगाजी का नाम भागीरथी पडा. गंगोत्री धाम 10,300 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है.  वास्तव में भागीरथी का उद्गम, गंगोत्री से भी तीस किमी आगे ऊपर की ओर गोमुख में है, जहाँ अत्यन्त विस्तृत हिमनद के नीचे से भागीरथी का जल प्रवाहित होता है. गोमुख तक पहुंच पाना इतना आसान नहीं है. इसलिए गंगाजी का मन्दिर ऎसे स्थान पर बनाया गया है जहां आम आदमी आराम से पहुँच सकता है. यहां का जल अत्यधिक स्वच्छ होता है.(फ़ोटॊ-5) गंगोत्री में श्रीमती मंजुजी पाण्डॆ के परिचित गुरुजी पं.श्री दिनेश प्रसादजी ने डालमिया मंगलम निकेतन”नामक अपना आश्रम बना रखा है,जिसमे उनके शिष्यादि आकर रुकते हैं. उन्होंने रात्रि में विश्राम करने के लिए कमरे खोल दिए. यह हमारा सौभाग्य ही था कि हमें यहां रुकने की उत्तम व्यवस्था मिल गयी, अन्यथा उस दिन की अत्यधिक भीड के चलते हम इतनी आरामदायक जगह की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. यह भवन गंगाजी के दूसरे तट पर अवस्थित है,जहां से बैठकर आप मन्दिर के दर्शन कर सकते हैं.

      रात्रि में ही हमने मां गगाजी के दर्शन किए. वहीं तट पर बने होटल में रुचिकर भोजन का आनन्द लिया. रात्रि में विश्राम किया और बडी सुबह हम उसी टैक्सी से उतरकाशी के लिए रवाना हो गए. उत्तरकाशी से गंगोत्री जाना और वहां से वापसी के लिए हमने पहले से एक टैक्सी को बुक कर रखा था. उत्तरकाशी आकर रुकना हमें उचित नहीं लगा, क्योंकि हमारे पास समय की बेहद कमी थी. यदि हम वहाँ रुक भी जाते तो किसी भी कीमत पर सराय रोहिल्ला(दिल्ली) नहीं पहूँच पाते. सराय रोहिल्ला से छिन्दवाडा वापसी की ट्रेन दिन के साढे बारह बजे खुलती है. अतः हमारा ऋषिकेश तक पहुँचना बहुत जरुरी था. जहाँ से हमें दिल्ली की ओर प्रस्थान करने वाली बसें मिल सकती थी. मंजुजी एवं उनकी मित्र मण्डली उत्तरकाशी में रुकते हुए यमुनोत्री के दर्शनार्थ जाना चाहती थीं. लेकिन मंजुजी की तबियत अचानक खराब होने लगी और उन्होंने अपना कार्यक्रम निरस्त किया और हमारे साथ ही ऋषिकेश तक चलना उचित समझा. यहाँ आकर उन्हें हल्द्वानी जाने के लिए बसें मिल सकती थीं. अतः हमने टैक्सी वाले से बात की और वह किसी तरह तीन हजार पांच सौ रुपयों में ऋषिकेश तक चलने के लिए राजी हो पाया था.                                                                                                                                                                                                     रात के बारह बजे के करीब हम लोग ऋषिकेश के बस-स्टैण्ड पर पहुंचे. बस से उतरते ही मंजुजी को हल्द्वानी की ओर जाने वाली बस मिल गई और हमें दिल्ली की ओर प्रस्थान करने वाली बस. सुबह पांच बजे हम दिल्ली के बस-स्थानक पर पहुंचे. अब हमारे पास पर्याप्त समय था,जब हम अपनी ट्रेन आराम से पकड सकते थे. तेरह तारीख को दस बजे सुबह हम अपने घर पहुँच गए थे.

      निश्चित ही यह यात्रा,अपने आप में एक रोमांचक यात्रा थी. ट्रेन से प्रतिध्वनित होती छुक-छुक की आवाज, स्टेशनो पर उतरते और सवार होते नए-नए यात्री के साथ यात्रा करना, उनके सुख-दुख में शामिल होना, कुछ अपनी बताने और कुछ उनसे सुनने की लगन, चाय-और नाश्ते के लिए गुहार लगाते वैडरों की आवाज कानॊं में अब भी गूंज रही थी. ट्रेन से उतरकर बस अतवा टैक्सी पकडकर आगे की यात्रा की तैयारी करना, रास्ते में अजनबी पहाडॊं से होती मुलाकातें, विशालकाय पेडॊं से झरती ठंडी-ठंडी हवा के झोंकों में सराबोर होते थे हम लोग .इन सब के चलते न जाने कितना समय बीत गया, ,इसकी ओर तनिक भी ध्यान नहीं गया. एकदम नयी-निराली दुनियां,दुनियां में तरह-तरह के लोग, अलग-अलग प्रदेशों से आए हुए लोग,जो सर्वथा अनजाने होते हैं,को देखना-समझना अच्छा लगता था. फ़िर हमारा परिचय होता है अजनवी शहर से, जिसे हमने इससे पूर्व कभी देखा तक न था. वहाँ के मन्दिरों से और एकदम अपरिचित सडकों और गलियों से, कार्यक्रम में मिलते अपने चिर-परिचित साहित्यकारों से, इनमें कुछ एकदम नए भी होते थे ,जिनकी रचनाएं हमने कभी किताबों-पत्रिकाओं में पढा था, एक दूसरे से परिचित होते,मिलते, कक्षा चौथी-पांचवीं में पढते कविता सुनाते बच्चे, इसी क्रम में  कविता पढता और वाहवाही बटोरता, स्मृतिचिन्ह लेता सम्मानित होता मेरा अपना प्यारा पोता दुष्यंत,  कार्यक्रम की समाप्ति के बाद फ़िर आता एक बिखराव का दौर. सब अपने-अपने रास्ते  पर चल निकलते. इन सबके साथ बिताए गए पल रह-रह कर याद आते रहे.

      याद आती रही हरिद्वार में उफ़नती-तेज बहाव में बहती पतित पवनी गंगाजी,जिसमें हम, सांझ ढले स्नान करने पहुँचे थे. बहते पानी की गति इतनी तेज थी कि पांव जमीन पर टिक नहीं पा रहे थे. रौद्ररुप दिखाति, जोरों से गरजतीं-उफ़नदी गंगा शायद अपना दुखडा सुना रही थी कि उसके साथ, ये दो पैर का आदमी कितनी तकलीफ़ें दे रहा है उसे, शायद हमारे कान सुन नहीं पा रहे थे या हम सुन पाने की स्थिति में नहीं थे. मन में तब एक ही कल्पना साकार हो रही थी कि इसके उद्गम का स्वरुप कैसा होगा जिसे हमने, इससे पहले कभी देखा था और न ही सुना था, जिसे हम निकट भविष्य में देखने जाने वाले थे.

       फ़िर मुलाकात होती है उत्तरकाशी में स्थित पंजाब-सिंध धर्मशाला की भव्य इमारत से सटकर बहती हुई गंगा से. तब जाकर इसका दुख-दर्द समझ में आया कि गंगा हरिद्वार में क्या कहना चाहती थी. दुखडॆ की कहानी यहाँ आकर रुकती नहीं है,बल्कि उत्तरोत्तर उस ओर बढते हुए देखा और जाना कि कितना अत्याचार मचा रहा है, तथाकथित  नयी टेक्नोलाजी का ज्ञाता आज का आदमी. विकास के नाम पर विनाश की लीला रचता, पहाडॊं की छाती छोलकर सडक का निर्माण करता, नदी का रुख मोडता, बारुदी सुरंगे बिछाता आज का आदमी शायद विकास के नाम पर विनाश के बीज बोता आज का आदमी. नदी-पहाडॊं की सुनी-अनसुनी कर भी दें तो उसने अपना साम्राज्य बढाते हुए देवता के मन्दिर तक अपने पैर जमा लिए हैं. समझ में नहीं आत्ता कि हम मन्दिर के प्रागंण में हैं या फ़िर सिमेंट-कांक्रीट के घने जंगल में ?

      कितने सपने- और न जाने कितनी ही सुकोमल भावनाएं लेकर हम वहाँ जा पहुँचे थे,जहाँ असीम शांति की जगह, शहरों सी कोलाहल थी, भीड थी और मोटर-गाडियों का जमावडा था, बडी-बडी अट्टालिकों में  ऎश-ओ-आराम की सुख-सुविधाएं पर्यटकॊं को लुभाने के लिए जगमगा रही थी. मैं इस बात पर भी गंभीरता से सोचने के लिए विवश हो गया कि जब हम घर से चले थे तो मन में एक सोच थी कि हम देवों के देव महादेव की ससुराल जा रहे हैं, जहाँ जाकर हमें असीम सुख की प्रतीती होगी, और हमें देखने को मिलेगा मां यमुना और गंगा का अपना मायका, जहाँ वे बडॆ दुलार और प्यार के साथ पली-बढीं और पहाडॊं से उतरकर चल पडी मैदानी इलाको की ओर, ताकि वे जन-जन की पालनहार बन सकें. लेकिन दुर्भाग्य कि उनकी अस्मिता अपने ही घर के आंगन में नोंच-खरोंच कर तार-तार कर दी गई.

      सोच का यह सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि माह जून की पन्द्रह तारीख की सुबह, इतनी क्रूर और भयानकरुप से सामने आयी कि गुस्साई गंगा ने रौद्र रुप धारण कर लिया और काली की तरह अपना विकराल रुप दिखलाते हुए सब कुछ लीलते जा रही है.- उसने सब कुछ मटिया-मेट कर दिया,जो उसके बहाव में अपने पैर गडाए हुए थे. उसके इस क्रोध के चलते न जाने कितने ही निर्दोष भक्तों की भी उसने बलि ले ली. शायद हमारे सबके लिए यह उसकी ओर से एक चेतावनी मात्र थी,कि समय रहते संभल जाओ,अन्यथा और भी भयंकर परिणामों के लिए तैयार रहो. अब यह समय, उस आदमीके लिए, सोचने-समझने और विचार करने का विषय है तो विकास के बडॆ-बडॆ सपने देखते हुए मुंगेरीलाल बना घूम रहा है.

--

103 कावेरी नगर ,छिन्दवाडा,म.प्र. ४८०००१
07162-246651,9424356400

COMMENTS

BLOGGER: 3
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गोवर्धन यादव का यात्रा संस्मरण : उत्तराखण्ड यात्रा
गोवर्धन यादव का यात्रा संस्मरण : उत्तराखण्ड यात्रा
http://lh3.ggpht.com/-W7f5eNEi-E0/UdE9DgWPXjI/AAAAAAAAVII/FIXtZQEdFzg/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/-W7f5eNEi-E0/UdE9DgWPXjI/AAAAAAAAVII/FIXtZQEdFzg/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_1.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/07/blog-post_1.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content