लघुकथा - डॉ0 पूरन सिंह कांवड़िया बद्री का इस दुनियां में उसकी मां के अलावा और कोई नहीं था। और वही मां बहुत बीमार थी आज। अपनी मां को बी...
लघुकथा
- डॉ0 पूरन सिंह
कांवड़िया
बद्री का इस दुनियां में उसकी मां के अलावा और कोई नहीं था। और वही मां बहुत बीमार थी आज। अपनी मां को बीमार देख बद्री बिलबिलाने लगा था, ‘‘मां तुम थोड़ी सी हिम्मत करो। तुम साइकिल के कैरियर पर बैठ जाना। मैं तुम्हें अच्छे डाक्टर के पास दिखाने ले चलूँगा.........शहर।'' इतना कहकर उसने अपनी मां को साइकिल के कैरियर पर बैठा लिया था और अपने गांव से शहर की ओर चल दिया था।
जैसे ही गांव के कच्चे रास्ते से शहर की सड़क पर आया तो सन्न रह गया था बद्री। सड़क बंद थी। महादेव भोले के भक्त कांवड़ लिए जा रहे थे इसलिए समाजसेवियों और धर्मावलम्बियों ने रास्ता बंद कर दिया था ताकि कांवड़ियों को किसी भी तरह की असुविधा न हो। इतना ही नहीं उनके लिए रास्ते में ही उनके खाने-पीने ठहरने के लिए शिविर भी लगाए गए थे। बद्री परेशान होने लगा था। उसने मां को साइकिल पर बैठाकर धीरे-धीरे चलना शुरू किया ही था कि................................एक कांवड़िया से बीमार मां का पैर छू गया था दरअसल हुआ यह था कि उस कांवड़ियाँ ने शिविर से लेकर थोड़ी सी भांग चख ली थी इसलिए उसके पैर लड़खड़ा रहे थे और वह बीमार मां के पैर से छू गया था।
‘‘तूने मुझे अपवित्र कर दिया नीच.......।'' कांवड़िया बीमार मां को लिए जा रहे उसके बेटे से बोला था।
‘‘मुझसे गलती हो गई क्षमा कर दीजिए'' मां की बीमारी से व्यथित बद्री बोला था।
‘‘क्षमा कैसी। जब तुझे पता है कि यह रास्ता हम लोगों के लिए है तो तू इससे आया ही क्यों?'' दूसरा कांवड़िया बोला था -
‘‘मां बहुत बीमार है........डाक्टर के पास ले जाना था.........जल्दी थी................मुझसे गलती हो गई।'' वह गिड़गिड़ाया था।
‘‘तेरी गलती तो मैं निकालता हूँ........।'' इतना कहकर कांवड़ियों के साथ चल रहा एक अन्य कांवड़िया अपनी कांवड़, वहीं कांवड़ रखने के लिए सुरक्षित स्थान पर रखकर ,बद्री पर पिल पड़ा था। फिर क्या था जो भी भगवान महादेव का भक्त निकलता बद्री पर लात घूँसा बरसाने लगता था। बद्री को पिटते देख मां अपनी बीमारी भूलकर उसके पास पहुँचना चाह रही थी कि किसी ने उसे एक तरफ फेंक दिया था। तभी किसी कावंड़िया ने बद्री के मुंह पर लात दे मारी थी। लात के लगते ही बद्री के मुंह से खून की धारा बहने लगी थी। फड़फड़ाने लगा था बद्री। तभी ताण्डव करते कांवड़ियाँ अपनी-अपनी कांवड़ उठाकर चलने लगे थे। मां बद्री के पास घिसट-घिसट कर पहुंच गई थी। बद्री का शरीर उसका साथ छोड़ने लगा था। मां ने अपने बेटे का सिर अपनी गोद में रख लिया था कि बद्री ने आंखे खोल दी थी, ‘‘मां.....मैं......तेरे....लिए..मां मैं तुझे..............डाक्टर..............के पास नहीं...............। मां मुझे मां...........फ..........क........।'' एक बार खुली आंखे फिर बंद नहीं हुई थी।
मां रोई नहीं थी। अपलक अपने बेटे को निहारती रही थी और देखते ही देखते उसी के ऊपर ही झुक गई थी।
कांवड़ियों के पांव में बंधे घुंघुरूओं और ‘जय भोले....जय भोले' की आवाज अब भी हवाओं में गूंज रही थी।
महाकाली
भव्य मंदिर और मंदिर में भगवानों की साक्षात् प्रतिमाएं और उन प्रतिमाओं में स्वयं को लीन किए पुजारी सच्चिदानंद महाराज, लोगों की आस्था और विश्वास के प्रतीक, धर्म का प्रतिबिम्ब।
बड़े-बड़े नेता, अभिनेता, दानवीर और डॉन, तो माफिया से लेकर धनी और निर्धन, भगवानों में कितनी श्रद्धा कोई नहीं जानता लेकिन पुजारी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले लोगों का तांता लगा रहता था।
पुजारी जी का वरदहस्त जिस पर उठता मानो धन्य हो जाता था। पुजारी जी थूकते तो उनके थूक को लोग अंजुली में भर लेते मानो स्वर्ग से अमृत वर्षा हो रही हो।
सोमवार से शनिवार तक पुजारी जी अपने भक्तों के लिए आशीर्वाद देने को तत्पर रहते थे लेकिन...............लेकिन।
रविवार के दिन मंदिर बंद रहता। मंदिर के गर्भगृह में ही पुजारी जी की लीलाएं होतीं। मांस, मदिरा के साथ-साथ कन्या या लड़की लायी जाती लगता मानो कन्या को वरदान मिल रहा हो। कन्या अपने को धन्य मानती।
यह क्रम अविरल चल रहा था।
उस दिन दुर्भाग्यवश, कन्या का प्रबंधन न हो सका था तो भक्त अत्यंत गरीब ,निर्धन की कन्या को पकड़ लाए थे। पुजारी जी के चहेतों ने उसे परोस दिया था उनके सामने। गिड़गिड़ाती रही थी बेचारी लेकिन पुजारी जी तो पुजारी ठहरे आशीर्वाद दिए बिना कहा मांनते । तभी न जाने क्या सूझी उस कन्या को कि उसने मां की प्रतिमा के हाथों में लगी तलवार खींच ली थी और एक ही वार में वासना की आग में अंधे पुजारी जी का लिंग काट लिया था। पुजारी जी फड़फड़ाने लगे थे और उनके मुंह से चीख निकल गई थी। तभी उनके चहेते भागते हुए चले आए थे।
बेबस लड़की के हाथ में तलवार देखकर भौचक्के रह गए थे सभी। उसकी आंखों में क्रोध था, विद्रोह था और बदला लेने का इरादा । सभी एक साथ चिल्लाए थे ‘देखो यह तो महाकाली है।........................नहीं..............नहीं इस पर महाकाली की सवारी आ गई है।
लड़की चकित थी। एक ही पल में पीड़ा से फड़फड़ाते पुजारी जी को न जाने कहां गायब कर दिया गया था। सभी लड़की को महाकाली-महाकाली पुकारे चले जा रहे थे।
डा0 पूरन सिंह
240 फरीद पुरी वेस्ट पटेल नगर
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