नीरा सिन्हा की लघुकथा - अहंकार

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अंहकार नेहा अपनी सहेली प्रिया को यह कहने में हीनता महसूस कर रही थी कि उसके पति रंजन के इजाजत के बगैर वो कहीं आती-जाती नहीं है. शादी के पां...

अंहकार

नेहा अपनी सहेली प्रिया को यह कहने में हीनता महसूस कर रही थी कि उसके पति रंजन के इजाजत के बगैर वो कहीं आती-जाती नहीं है. शादी के पांच वर्षों बाद जब नेहा मात्र पच्‍चीस वर्ष की थी तो यह बात कहना तो असंभव सा प्रतीत हो रहा था.

प्रिया आज ही दोपहर दो बजे की गाड़ी से अपने ससुराल जा रही थी, जाने के पहले अपनी प्रिय सहेली नेहा से जी भर कर बातें कर लेना चाहती थी कि न जाने फिर कब वो अपनी सहेली से मिल सके. प्रिया के पति अनुज व्‍यापार के सिलसिले में अमेरिका आते-जाते रहते थे, इस बार प्रिया को भी साथ अमरीका ले जाने की बात थी इसलिए प्रिया थी तो बहुत उत्‍साहित परंतु मन में भारत छोड़कर विदेश जाने का एक अनजाना भय व्‍याप्‍त था. प्रिया इस बार अपने माँ-पापा, एक भाई, दो छोटी बहनों से ऐसे मिल रही थी कि पिछले आठ वर्षों में पहली बार ससुराल जा रही हो. नेहा के आ जाने से दोपहर दो बजे की गाड़ी को प्रिया छोड़ दी थी और अब शाम सात बजे जाने का प्‍लान बना लिया था. नेहा को वो छोड़ने वाली नहीं थी. नेहा ने सोच था कि प्रिया से मिलने के बाद वह तीन बजे से पहले घर लौट जाएगी, उसके पति रंजन के तीन बजे घर आने के पहले जब वो लंच लेने कार्यालय से घर आते है परंतु प्रिया ने उसकी योजना पर पानी फेर दिया था.

अंततः नेहा ने अपनी मन की बात प्रिया को कह ही दी कि उसके पति तीन बजे घर आ जायेंगे, उससे पहले वो घर पहुंच जाना चाहती है नहीं तो वे नाराज होंगे. यह सुनकर प्रिया ने उसका परिहास ही उड़ाया और कहने लगी मुझे बेवकूफ समझती है तू, नाराजगी-वाराजगी की बात छोड़, अनुज भी तो बुरा मान सकते है ?

नेहा की बात को तो प्रिया ने हंसी में उड़ा दिया पर नेहा को बहुत तकलीफ हो रही थी. उसे पति की नाराजगी बर्दाश्त नहीं होती थी इसलिए वह ऐसा कुछ करना नहीं चाहती थी जिससे उसके पति नाराज हों. वो कैसे कहती सब प्रिया के जैसी नहीं होती और सबके पति एक ही सोच में नहीं ढ़ले होते. क्‍या सभी अनुज की तरह ही होते है ?

नेहा जब घर आयी तो रात के आठ बज चुके थे. घर आने के बाद नेहा को पता चला कि उसके पति रंजन आज गेस्‍ट रूम में सो रहे है. प्रेरणा जो नेहा की छोटी ननद थी अपनी भाभी से बहुत स्‍नेह रखती थी, ने नेहा को बताया कि भैया उनसे सख्‍त नाराज है, तीन बजे लंच लेने के बाद कार्यालय भी नहीं गए, काफी गुस्‍सा कर रहे थे और फिर गेस्‍ट रूम में अपना बिस्‍तरा लगा लिया, डिस्‍टर्ब नहीं करने की ताकीद कर कमरे में है.

रात गहराती जा रही थी, नेहा को यह रात मानो कयामत की रात की तरह लग रही थी. उधर रंजन बिस्‍तर पर आंखें मूंदे अपनी पूर्व स्‍मृतियों में याद करने का प्रयत्‍न कर रहा था कि इतने दिनों से भूला हुआ कमल की तरह खिला हुआ अपर्णा का चेहरा और नेहा के चेहरे में कुछ समानता है या नहीं और जबकि मन में अपर्णा के प्‍यार के सामने नेहा का प्‍यार झील के सामने तालाब का जल मात्र था, तभी बहुत धीरे से कमरे का दरवाजा खोल कर नेहा कमरे में आयी. रंजन ने आंखें खोल कर देखा कि नेहा ही थी, नेहा आकर रंजन के पांव के पास बैठ गयी. रंजन ने आंखें बंद कर ली और अपर्णा के साथ गुजारे वो पल के बारे में सोचने लगा जब वह कॉलेज में एक-दूसरे से प्‍यार करते थे लेकिन जाति प्रथा के कारण दोनों का ब्‍याह नहीं हो सका था. काफी देर चुप बैठे हुए पत्‍नी को याचिका की मुद्रा में पाकर रंजन का पुरूषोचित अहं बढ़ गया था, वह क्रोधित हो गया और पूछा तुम यहां क्‍यों आयी हो ?

नेहा रोने लगी और रोते हुए अपने पति से क्षमा याचना करने लगी परंतु रंजन अब उसका भाग्‍य विधाता बन चुका था, उसने नेहा को आदेश दिया कि जाओ भीतर और सो जाओ.

नेहा मनुहार कर रही थी कि उन्‍हें यहां सोने में तकलीफ होगी, वे भी अंदर चलकर ही सोंये परंतु वाह रे पुरूष का अहंकार, रंजन बोला मुझे नींद आ रही है, अब मेरा अंदर जाना संभव नहीं, तुम जाकर सो जाओ.

नेहा अपने पति को अच्‍छी तरह जानती थी, विवश होकर नेहा अंदर चली गयी. रात भी रोते बीत गया.

दूसरे दिन भी रंजन अपनी पत्‍नी की अवहेलना करता रहा. सजा देने की भी एक सीमा होती है. नेहा बहुत दुखी रहने लगी थी. पति को मनाने की सभी तरकीबें असफल हो चुकी थी.

सप्‍ताह बीत गया, नेहा का चेहरा दुख से उदास रहने लगा था. एक दिन नेहा के बड़े भाई किसी काम से नेहा के ससुराल आए हुए थे. नेहा अचानक अपने बड़े भाई को आया देख चकित भी थी और खुश भी.

नेहा ने पूछा आप कैसे आए भैया ?

क्‍यों अपने घर नहीं चलोगी, नेहा, उसके भैया ने पूछा ?

नेहा ने कहा कि दन दिनों आप लोगों से मिलने का मुझे बहुत मन हो रहा था.

दूसरे दिन नेहा अपने पति के चरण छुए और अपने भैया के साथ अपने नैहर चली आयी. रंजन उस रात एक पल को भी सो नहीं पाया, सोचता ही रहा कि नेहा को ऐसा नहीं करना चाहिए था. वह कई बार ऐसा सोचा कि नेहा वापस आ रही है. कई बार सोचा कि खूद जाकर गाड़ी वापस ले आए परंतु पुरूषोचित अहंकार में रंजन ऐसा न कर सका.

नेहा के अचानक नैहर चले जाने का कारण सिर्फ रंजन और नेहा की ननद प्रेरणा को पता था. नेहा ने जाते-जाते प्रेरणा को मना कर गयी थी कि घर के किसी भी सदस्‍य को उसके नैहर जाने का कारण न बताए, नहीं तो उसके पति की ही बदनामी होगी. नेहा नहीं चाहती थी कि उसके पति की कोई निंदा या आलोचना करे.

नेहा नैहर पहुंच कर सबकुछ किया, माता-पिता को प्रणाम, छोटे भाई और बहन को प्‍यार पर हंस न सकी.

नेहा की माँ ने पूछा भी, क्‍यों बेटी नेहा, इतनी उदास क्‍यों लग रही हो, ससुराल में सबकुछ ठीक तो है ?

नेहा ने हां तो कह दिया पर उसके सूखे मुंह पर प्रसन्‍नता न आ सकी. नेहा यह सोचकर नैहर आ गयी थी कि अगर उसका पति बहुत छोटे से कारण के लिए उसका त्‍याग कर दिया तो वो मर ही क्‍यों नहीं जाती ? अपने पति के अहंकार के कारण नेहा उदास लता की तरह हो गयी थी जो दिन-प्रतिदिन सूखती जा रही थी.

उधर रंजन का अहंकार भी टूट चुका था. जिसके बिना एक पल काम नहीं चलता, उसके लिए उसका झूठा अहंकार कितने दिन चलता ? रंजन का अहंकार उसके दुख का कारण बन गया था. वह रोज इंतजार करता, शायद आज नेहा का खत आए, शायद वह लिखे, ‘आकर मुझे ले चलिए.'' रंजन सोचता बस इतना भर नेहा लिख भेजे तो फिर सिर पर बिठा कर उसे ले आउं, फिर भविष्‍य में किसी तरह का अनुचित व्‍यवहार नहीं करूंगा. परंतु होनी को कौन टाल सकता है. देखते-देखते साल भर बीत गया. नेहा ने कोई खत नहीं लिख. रंजन का पापी मन टूट गया पर झुका नहीं.

साल भर किसी तरह कटे, रंजन पर अब एक-एक दिन भारी हो रहा था. जब मन की सहनशक्‍ति घटने लगती है तो अहंकार बढ़ने लगता है. रंजन का अहंकार भी बढ़ने लगा था और अब उसमें क्रोध भी जुड़ गया था. हित-अहित का ज्ञान न रहने से रंजन को अपना दोष नहीं दिख रहा था. रंजन ने सोचा जब इतना अहंकार है तो उससे बदला भी वैसा ही लेने की जरूरत है. पति-पत्‍नी के रिश्‍ते में बदला लेने की बात कहां से आ गयी. किसी ने भी अपना दोष नहीं देखा.

दोष तो दोनों का ही था. क्षमा याचना करने पर किसे आत्‍मग्‍लानि अधिक होती कहना मुश्किल है. समझ में नहीं आता कि किस इच्‍छा, किस अकांक्षा की पूर्ति के लिए रंजन और नेहा ने मौन धारण कर लिया. प्रेम की अर्द्ध विकसित लता को क्‍यों सूख जाने दिया, निर्णय करना कठिन है.

नीरा सिन्‍हा

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रचनाकार: नीरा सिन्हा की लघुकथा - अहंकार
नीरा सिन्हा की लघुकथा - अहंकार
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रचनाकार
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