वीरेन्द्र सरल का हास्य-व्यंग्य : अपनी-अपनी ड्यूटी

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अपनी अपनी डयूटी वीरेन्‍द्र सरल जुआ पकड़ने आये तीनों सिपाही को आपस में लड़ते देख जुआरियों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। वे तो उन्‍हें देखकर डर के मार...

अपनी अपनी डयूटी

वीरेन्‍द्र सरल

जुआ पकड़ने आये तीनों सिपाही को आपस में लड़ते देख जुआरियों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। वे तो उन्‍हें देखकर डर के मारे पहले से आत्‍मसमर्पण की मुद्रा में आ गये थे। दाँव पर लगी हुई नोटो की गडि्‌डयां और ताश की खुली पत्तिया ज्‍यों के त्‍यों रखी हुई थी। सिपाहियों का आपस में लड़ना उन्‍हें समझ में नहीं आ रहा था। वे उनकी भुवनमोहनी मुद्रा को अपलक निहारने लगे और गालियों से सुसज्‍जित उनकी शब्‍दावली को प्रवचन सदृश्‍य सुनने लगे। अन्‍ततः जुआरियो को ही उनकी लड़ाई में हस्‍तक्षेप करना पड़ा। एक जुआरी ने हिम्‍मत करके कहा-साहब आप जब यहाँ आये तो त्रिदेव लग रहे थे और अब त्रिशूल की तरह एक दूसरे को चुभ रहे है। आपको यहाँ शांति बहाली और अपराध रोकने के लिये भेजा गया है मगर आप लोग तो बड़ी तन्‍मयता से यहाँ की शांति भंग करके अपराध बढ़ा रहे हैं। मान गये आप अपनी ड्‌यूटी बड़ी मुस्‍तैदी के साथ कर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि आपको तितरबितर करने के लिये हमें ही अश्रुगैस के गोले छोड़ना पड़े और लाठी चार्ज करना पड़ जाये। फिर पुलिस गाड़ी की सहायता से आपको थाना पहुँचाने का पुण्‍य कार्य भी हंमे ही करना पड जाय। अरे! आप हमें पकड़ने आये है तो हमें पकड़कर थाने ले चलिये हम तो तैयार है लेकिन आप ही लोग आपस में लड़ रहे हे ये भी कोई बात हुईं?

जुआरी की बात सुनकर एक सिपाही गुर्राया- अबे चुप,सरकारी काम में बाधा डालता है,हम सरकारी आदमी है। हमारा लड़ना ,झगड़ना ,गाली गलौच करना सब सरकारी काम है , ज्‍यादा चूंचपड़ करेगा तो जेल में सड़वा दूँगा ,समझा। जुआरी सहम गया। अब किसी की भी हिम्‍मत उन्‍हें रोकने की नहीं हो रही थी। सब डर रहे थे कि मामला सरकारी है,कहीं सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में सजा न हो जाय।

सब लोग मूकदर्शक बने तमाशा देखने लगे। वहाँ काफी भीड़ इकट्टी हो गई। लोग इस तन्‍मयता से देखने लगे मानो किसी नई फिल्‍म का फाइट सीन चल रही हो। इन सबसे बेखबर सिपाही आपस में लड़ रहे थे।

पहला सिपाही गुर्रा रहा था,तीन जगह के जुये को तुम पकड़ चुके हो। क्‍या, सभी जगह के जुये को पकड़ने का तुमने ठेका ले रखा है?अब मुझसे यह अन्‍याय बर्दाश्‍त नहीं होगा। यहाँ के जुये को तो मैं ही पकड़ूंगा,समझे?दूसरा सिपाही चीखा-अरे नाक पोंछने की तमीज नहीं है और बड़ा जुआ पकड़ने चला है बे, बाप का माल समझता है क्‍या? सीधी तरह से जुआ मुझे पकड़ने दे वरना ऐसा हाथ मारूंगा कि जिन्‍दगी भर याद रखेगा। हट जा मेरे रास्‍ते से नहीं तो बत्तीसी तोड़कर हाथ में दे दूँगा।

पहला सिपाही उसके रास्‍ते में अंगद की तरह पाँव अड़ाते हुये बोला-अबे और कितना हाथ मारेगा,हाथ मारते मारते जिन्‍दगी बीत गई पर यह बीमारी नहीं गई। कुछ हमे भी हाथ मारने देगा की नहीं? फिर उन दोनों में मल्‍लयुद्ध शुरू हो गया।

मौके का फायदा उठाते हुये तीसरा सिपाही जुआ पकड़ने के लिये लपका। दूसरे सिपाही की नजर उस पर पड़ गई। वह गुर्राया-ज्‍यादा होशियारी मत दिखा,टांगे तोड़कर रख दूंगा,समझता क्‍या है अपने आपको? तीसरा सिपाही सहम गया। डर के मारे वह पहले सिपाही को नैतिक समर्थन देते हुये बोला, भैया तुम संघर्ष करो मैं तुम्‍हारे साथ हूँ।

उनकी लड़ाई से लोग अब ऊब गये थे। भीड़ धीरे धीरे कम हो रही थी। एक जुआरी जम्‍हाई लेते हुये बोला-सर,कुछ ब्रेक ले लीजिये। दर्शक भी कम हो गये हैं। पहला शो यही समाप्‍त कर दीजिये। कुछ समय बाद फिर हाऊसफुल का दूसरा शो शुरू कर लेना। आप तो नानस्‍टाप लड़े जा रहे हैं। आप लोगों का झगड़ा अपराध की ग्राफ की तरह बढ़ा जा रहा है। इतनी भी क्‍या जल्‍दी है? अभी तो सारी उम्र पड़ी है लड़ने के लिये। चाय पानी पी कर कुछ सुस्‍ता लीजिये फिर आराम से लड़ते रहना। पुलिस होकर भी आपस में एक दूसरे से इस तरह लड़ रहे हैं ,आप लोगों में कुछ भाईचारा है या नहीं ?

जुआरी की बात से चिढ़कर दूसरा सिपाही हांफते हांफते चीखा-भाई गया तेल लेने ,चारा देख कर तो लोग अपने बाप को भी भूल जाते हें तो भाई की औकात ही क्‍या है। मै बहुत समझदार सिपाही हूँ। समझाना ही है तो इन मूर्खों को समझा जो मुझे जुआ पकड़ने नहीं दे रहे हैं। और स्‍वयं जुआ पकड़ने की जिद पर अड़े हुये हैं।

जुआरियों ने पहले और तीसरे सिपाही को समझाने की कोशिश की। उनकी कोशिश सफल हुई। वे कुछ देर नहीं लड़ने की बात पर तैयार हो गये। और वर्दी की धूल को झड़ाते हुये खड़े हो गये। कुछ समय के लिये झगड़ा बंद हुआ। तब तक कुछ लोग चार पाँच कुर्सी लाकर वहाँ रख दिये। सिपाहियों के बैठ जाने की बाद जुआरियों ने राहत की सांसे ली। तब तक चाय और नास्‍ते की भी ब्‍यवस्‍था भी हो गई। सिपाही लोग नास्‍ता करने के बाद चाय पीने लगे। तभी एक जुआरी ने हाथ जोडकर क्षमा मांगते हुये कहा-सर! बुरा ना माने तो एक बात पूंछू। सिपाहियो पर चाय नास्‍ते का असर होना शुरू हो गया था इसलिये एक सिपाही ने कहा-एक क्‍या दो पूछ लो। जुआरी डरते डरते बोला-साहब ,जुआ पकड़ना तो आप सबकी सामूहिक जिम्‍मेदारी है,फिर ये लड़ाई किस बात पर हो रही है? दूसरा सिपाही उसे घूर कर देखा तो वह डर गया। उसने विषय बदल कर कहा-सर!कुछ नहीं तो अपना नाम पता ही बता दीजिये जिससे हमारे गाँव के इतिहास में आप लोगों का नाम स्‍वर्णिम अक्षरों में लिखा जा सके। और लोग आप लोगों को महान सिपाही के रूप में याद रख सके।

चाय का अंतिम घूंट लेते हुये दूसरा सिपाही फिर गुर्राया-क्‍या करेगा बे नाम जानकर? साधू से उसकी जाति और पुलिस के सिपाही से उसका नाम नहीं पूछना चाहिये। सिर्फ काम की बातें करना चाहिये ,समझा। अब तू जिज्ञासु की तरह पूछ ही रहा है तो तुझ पर कृपा करके बता ही देता हूँ। फिर वह दार्शनिक की तरह कहने लगा-त्रिदेव हम है नहीं और त्रिगुण हममें है नहीं। अपनी सुविधा के लिये तुम हमें त्रिदोष ही समझ लो। अपनी सुविधा के लिये तुम मान लो कि मैं कफकुमार हूँ,ये वात्तसिंह है और ये है पित्तलाल। अब तुम्‍हारी जिज्ञासा के लिये अपनी लड़ाई का कारण भी बता देता हूँ। भई हम सबके अलग अलग प्रभार बटे हुये हैं। सबकी अपनी अपनी ड्‌यूटी है। वातसिंह को इस साल केवल कच्‍ची शराब पकड़ने की ड्‌यूटी दी गई है। अब तक ये पच्‍चीसों जगह से कच्‍ची शराब पकड़ चुका है। चूंकि कच्‍ची शराब को हांडी सहित सुरक्षित थाने लाने में बड़ी असुविधा होती है। इसलिये ये श्रीमान अपनी अद्‌भुत बुद्धिक्षमता का परिचय देते हुये शराब बनाने वाले से शराब का मूल्‍य ही वसूल लेते है। और एक आध बोतल शराब खुद ही पीकर देख लेते है,जिससे शराब की गुणवत्ता का पता चलता है।

और ये है श्रीमान पित्तलाल जी ,इनकी ड्‌यूटी इस साल केवल वाहन चेकिंग करने की है। वाहन चेकिंग के समय ये वाहन चालकों के जेब को भी अच्‍छी तरह चेक करता है। लोग बेवजह कहते हे कि देश में गरीबी है। वाहन चालकों के जेब के चेकिंग से आज तक किसी के जेब से गरीबी नाम की चिड़िया नहीं मिली। लोग इन्‍हें मुक्‍तहस्‍त से देते है और नहीं देते तो ये मुक्‍तकंठ से मांग भी लेता है। फिर अपनी उदारता और सहृदयता का परिचय देते हुये वहीं उनका फैसला भी सुना देता है। कोई क्‍यों कोर्ट कचहरी के चक्‍कर लगाकर बेवजह परेशान हो। ऐसी इनकी भावना पवित्र होती हैं। इससे ये पापमुक्‍त हो जाते हैं। और लगे हाथ इन्‍हें पुण्‍य भी मिल जाता है। अब तक ये काफी पुण्‍य कमा चुके है और अभी साल भर इन्‍हें पुण्‍य कमाना है।

इस वर्ष साहब ने जुआ पकड़ने की ड्‌यूटी मुझे दी है। अब भई ,मुझे भी तो पुण्‍य कमाना है आखिर मेरा भी तो परिवार है,मेरे भी तो बाल बच्‍चे है। फिर ये पुण्‍य ऊपर तक भी पहुँचाना पड़ता है। अकेले ही पुण्‍य कमाऊँगा तो पाप का भागी नहीं हो जाऊँगा? अब आप ही लोग बताइये जुआ पकड़ने में ये लोग रोड़ा बनेंगे तो लड़ाई नहीं होगी तो क्‍या प्‍यार होगा?

जब मामला समझ में आया तो जुआरियों को कफकुमार से सहानुभूति हो गई। वे अन्‍य सिपहियो को समझाते हुये कहने लगे-जब सबकी अलग अलग ड्‌यूटी है तो साहब एकला चलो का सिद्धांत छोड़ो और अकेला चलो का सिद्धांत अपनाओ ,इसी में आप तीनों को फायदा है।

सच्‍चाई सामने आने पर पित्तलाल और वातसिंह की नजरे शर्म से झुक गईं। अब कफकुमार शान से कुर्सी से उठा। अकड़ते हुये जुआ तक आया। नोटों की गड्डियां उठाई प्‍यार से उन्‍हें चूमा और अपने जेब में उसे ठूसंकर मुस्‍कुराया। फिर अपनी बाइक पर सवार होकर अगले पड़ाव के लिये बढ़ गया।

मुंह लटकाये दोनों सिपाही भी अपने वाहन पर सवार हुये। वातसिंह बोला- आज तो इसने तगडा हाथ मारा। मगर पित्तलाल ने जैसे कुछ सुना ही नहीं। गुस्‍से में वह बाइक की किक मारी और एक झटके में उनकी गाड़ी आगे बढ़ गई। जुआरियों को दूर तक केवल धूल का गुबार उठते ही नजर आया।

दूसरे दिन अखबारों में एक समाचार प्रकाशित हुआ था कि कुछ लोग नकली पुलिस बनकर लोगों को लूट रहे है। समाचार पढ़कर लुटे हुये जुआरी सोचने लगे,बाप रे बाप जब नकली सिपाही इतने खतरनाक हैं, तो असली ?

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वीरेन्‍द्र सरल,

बोडरा मगरलोड ,

जिला-धमतरी छत्‍तीसगढ

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रचनाकार: वीरेन्द्र सरल का हास्य-व्यंग्य : अपनी-अपनी ड्यूटी
वीरेन्द्र सरल का हास्य-व्यंग्य : अपनी-अपनी ड्यूटी
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