वीरेन्‍द्र सरल का व्यंग्य - रावण की आत्‍मा

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रावण की आत्‍मा वीरेन्‍द्र सरल झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ सत्‍यवादी सभ्‍य का ब्‍यक्‍तित्व बड़ा ही आकर्षक था। वह सदैव चिन्‍तन ही किया करता था।...

रावण की आत्‍मा

वीरेन्‍द्र सरल

झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ सत्‍यवादी सभ्‍य का ब्‍यक्‍तित्व बड़ा ही आकर्षक था। वह सदैव चिन्‍तन ही किया करता था। चिन्‍तन के सिवा उसे और कुछ नहीं भाता था। वह सदैव ठोस कदम उठाने की मंसूबे बांधता और किसी को भी बख्‍शा नहीं जायेगा का राग अलापता। उसके इस महान कार्य को सरकार ने सम्‍मानित उसे चिन्‍तन वीर और चिन्‍ता शिरोमणी के खिताब से नवाजा था। ज्‍वलंत मुद्दे और गंभीर विषय कभी उसके चिन्‍तन के क्ष्‍ोत्र नहीं रहे । छोटे विषयों पर बडी चिन्‍ता करना ही उसे ज्‍यादा पसंद था। कल भी वे सुबह से शाम तक चिन्‍ता में डूबे रहे और अंत में चिन्‍ता दूर करने वाली पेय पदार्थ ग्रहण करके देर रात को सोये ।

सुबह सुबह किसी ने उसके घर का कॉलबेल बजाया । अतिथि देवो भवः, कौन साला सुबह सुबह मर गया कहते हुये वह गुस्‍से से उठा और आँखें मलते हुये दरवाजा खोला। सामने एक अजनबी खड़ा था। उसने उसका अभिवादन करते हुये अंदर आने की अनुमति माँगी । सभ्‍य जी दरवाजे से हट गये । वह अजनबी बेधड़क अंदर आ गया और सोफे पर बैठ गया। सभ्‍य को बड़ी कोफ्‍त हो रही थी । एक अजनबी का इस तरह का व्‍यवहार उसे बिल्‍कुल पसंद नहीं आ रहा था। मगर उसे झेलना उसकी मजबूरी थी। वह मन ही मन अतिथि तुम कब जाओगे जपता हुआ सामने के सोफे पर बैठ गया।

वह अजनबी बिना किसी औपचारिकता के बातचीत शुरू करते हुये बोला-यार,सूरज सिर पर चढ़ गया है और तुम अभी तक सो रहे हो?कुछ शर्म हया है भी या नहीं ?सभ्‍य ने चिढ़ते हुये कहा-समस्‍यायें सिर पर चढ़ी जा रही है और लोग अभी तक सो रहे हैं तो मैंने सूरज चढ़ते तक सोकर क्‍या गुनाह किया है। रही बात देर तक सोने की ,तो वो क्‍या है,आजकल मैं जरा सभ्‍य हो रहा हूँ। मेरे शुभचिन्‍तक मुझ पर लगातार दबाव बनाये हुये थे कि कब तक केवल चिन्‍ता ही करते रहोगे जरा अपने नाम को भी तो सार्थक करो । इसलिये मैं सभ्‍य होने का प्रयास कर रहा हूँ।

सभ्‍य की बातें सुनकर अजनबी की जिज्ञासा बढ़ गई। उसने पूछा-मगर देर तक सोने से सभ्‍यता का क्‍या संबंध है?सभ्‍य ने समझाया-टी वी के संक्रमण से महानगरीय संस्‍कृति गाँवों में अपना पांव पसार रही है। देर रात तक टी वी से चिपके रहना और दिन चढ़ते तक सोना आजकल सभ्‍यता की निशानी होने लगी है। वह अजनबी टी वी को बीमारी समझ गया। वह बोला-यार,बीमारी के संक्रमण से तो लोग रोगी होकर बिस्‍तर पकड़ लेते हैं। सही समय पर इलाज ना हो तो स्‍वर्ग सिधार जाते हैं। मगर बीमारी से लोग सभ्‍य हो रहे हैं,ये बात मुझे हजम नहीं हो रही है। वैसे आपकी आँखो की खुमारी और मुँह से शराब की दुंर्गध से आपके सभ्‍य होने का प्रमाण मुझे मिल रहा है। उसकी बातों से सभ्‍य चिढ़ गया । उसे गुस्‍सा आ गया। उसने कहा-दिखने में तो तुम भिखारी दिखते नहीं हो,जो तुम्‍हें एक मुट्ठी चावल देकर यहाँ से बिदा करूं। कुछ ठंडा गरम लो और अपना रास्‍ता नापो। मैं सभ्‍य आदमी हूँ तुम जैसे छोटे लोगो से मुँह नहीं लगता,समझे?इतना कहकर सभ्‍य ने अपनी पत्‍नी को आवाज दी । उसकी श्रीमती एक कप चाय,प्‍लेट में कुछ नमकीन और कोल्‍ड डिंक्‍स की एक बोतल लेकर आई। चाय और नमकीन अजनबी के सामने और कोल्‍डडिंक्‍स अपने पति के सामने रखकर वह चली गई।

अजनबी तुरन्‍त प्‍ल्‍ोट साफ कर गया और जल्‍दी जल्‍दी चाय भी पी ली । सभ्‍य ने धीरे धीरे कोल्‍ड ड्रिंक्‍स पीते हुये कहा-गंवार कहीं के ,सभ्‍यता नाम की कोई चीज तुम्‍हारे पास है भी य नहीं ?लगता है जन्‍म से ही भूखे हो ,कुछ तो सभ्‍यता सीखो। अजनबी मुस्‍कराते हुये बोला-अच्‍छा!तो आजकल खाने पीने के मामले में भी सभ्‍यता आड़ें आने लगी है। जल्‍दी खा पीकर समय की बचत करना और थाली में परोसे गये भोजन में से सबको खाकर अन्‍न की बचत करना ये गंवारूपन की निशानी हो गई और समय और अन्‍न का अपब्‍यय करना सभ्‍यता के मापदंड हो गये,है ना?और ये आप क्‍या कर रहे हैं? बिना मुँह धोये कोल्‍ड ड्रिंक्‍स पी रहे हैं,ये सभ्‍यता हो गई? मैंने लोगो को बिना मुँह धोये चाय पीते हुये देखा था,बाद में पता चला कि ये बेड टी है मतलब आप जो पी रहे हैं वह बेड कोल्‍ड ड्रिंक्‍स है?

अब तो सभ्‍य बगलें झांकने लगा ,उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। आखिरकार उसे कहना पड़ा -भैया आपकी विद्वता के सामने मेरी सभ्‍यता पानी भरने लगी है। अब ज्‍यादा पहेलियाँ मत बुझाओ ,अपना नाम पता और यहाँ आने का उद्देश्‍य बतलाओ। आज मुझे चिन्‍तन करने का बहुत बढ़िया विषय मिल गया है। अब तो मैं महीनों तक इसी विषय पर चिन्‍तन करूंगा और सरकार से फिर कोई पुरस्‍कार झटक लूँगा।

अजनबी मुस्‍करा कर बोला-मेरे बारे मे आप ज्‍यादा मत जाने यही आपकी सेहत के लिये ठीक है,जानेंगें तो आपके पैरो तले जमीन खिसक जायेगी। सभ्‍य के सिर पर फिर असभ्‍यता का भूत सवार हो गया। वह तमतमाते हुये कुर्सी से उठा और गुस्‍से में अजनबी को तमाचा मारने के लिये घूरने लगा। मगर,अजनबी के चेहरे पर नजर टिकते ही उसे चक्‍कर आ गया। वह बेहोश होते होते बचा। मुंह से केवल एक ही शब्‍द निकला ,बाप रे बाप ,रावण मेरे घर में। डर के मारे सभ्‍य अब केवल नाम के ही नहीं बल्‍कि काम के भी सभ्‍य हो चुके थे। सभ्‍य थर थर कांपते हुये कहने लगा-अहो भाग्‍य,पता नहीं आज मेरे कितने जन्‍मो का पुण्‍योदय हुआ है?आपका दर्शन करके मैं धन्‍य हो गया। आपकी चरण धूलि से मेरा यह घर आँगन पवित्र हो गया है। क्षमा करें मैं आपको पहचान नहीं पाया।

रावण मन ही मन मुस्‍कराते हुये सोचने लगा,भय और प्रलोभन असभ्‍य आदमी को भी एक ही क्षण में सभ्‍य बना देता है और स्‍वार्थ की महिमा तो उससे भी महान है जो आदिमानव को भी तुरन्‍त आधुनिक महामानव की श्रेणी में ला देता है। चुनाव के समय शेर का बकरी को नमस्‍ते बहन जी कहना और मेमने को और भांजे क्‍या हालचाल है कहकर दुलराना,इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है। रावण सभ्‍य की चाटुकारिता को खूब समझ रहा था। उसे हंसी भी आ रही थी पर ऊपर से गंभीरता ओढ़ते हुये उसने कहा-भाई मैं तो मायावी हूँ,साधु वेष तो मुझे सीता जी तक नहीं पहचान पाई तो तुम कौन से खेत की मूली हो। इधर से निकल रहा था तो मन में विचार आया कि आप जैसे चिन्‍तनवीर से मिलता चलूँ,मन की कुछ बात हो जायेगी सो यहाँ आ गया था। अब चलता हूँ,इतना कहकर रावण उठने लगा।

सभ्‍य ने हाथ पकड़कर उसे ससम्‍मान बिठाते हुये पूछा-यदि आप जाते जाते मेरी एक जिज्ञासा शांत कर देते तो बड़ी कृपा होती। भगवान राम ने तो त्रेतायुग में ही आपका वध कर दिया था पर आप तो जिन्‍दा हैं,यह कौन सा चमत्‍कार है?रावण अट्टहास करते हुये बोला-यही तो आप लोग धोखा खा गये। युद्धभूमि में श्रीराम ने मेरे शरीर का वध जरूर किया था पर तुम जानते हो आत्‍मा अजर अमर है ना वह जन्‍म लेती है ना मरती है। खतरे का अहसास पाते ही मेरी आत्‍मा शरीर से सुरक्षित बाहर निकल आई थी । मेरा स्‍थूल शरीर भले ही मर गया पर मैं आज भी सूक्ष्‍म रूप में जिन्‍दा हूँ। भ्रष्‍ट्राचार, आतंकवाद, महंगाई, नक्‍सलवाद ,दहेज इत्‍यादि अन्‍यान्‍य रूप में मैं आज भी समाज में हाहाकार मचा रहा हूँ। कोई है जो मेरे इस रूप का वध करके मेरी आत्‍मा को मुक्‍ति दिला सके?इतना कहकर रावण अदृश्‍य हो गया ।

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वीरेन्‍द्र सरल

बोडरा(मगरलोड)

पोष्‍ट-भोथीडीह

व्‍हाया-मगरलोड़

जिला-धमतरी( छ ग)

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रचनाकार: वीरेन्‍द्र सरल का व्यंग्य - रावण की आत्‍मा
वीरेन्‍द्र सरल का व्यंग्य - रावण की आत्‍मा
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