गिरिराजशरण अग्रवाल का व्यंग्य - आओ भ्रष्टाचार करें

SHARE:

आओ भ्रष्टाचार करें डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल उस दिन श्री मंगलदास पांडेय मिले तो औसत से कुछ ज़्यादा ही प्रसन्न थे। मंगलदास पांडेय क्योंक...

आओ भ्रष्टाचार करें

डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल


उस दिन श्री मंगलदास पांडेय मिले तो औसत से कुछ ज़्यादा ही प्रसन्न थे। मंगलदास पांडेय क्योंकि आई.ए.एस.अधिकारी हैं और इन दिनों कृषि विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कार्य कर रहे हैं। कल किस पद पर कार्य करेंगे, हम नहीं जानते, क्योंकि वह पाँच वर्ष में पंद्रह पद और पंद्रह स्थान बदल चुके हैं। और जैसाकि आप जानते हैं कि अदलाबदली, आवागमन, जन्म, पुनर्जन्म आई.ए.एस. अधिकारी के जीवन की नियति बन जाता है। आई.ए.एस. कोई लेखपाल तो होता नहीं कि पैदा भी लेखपाल का रूप लेकर हुआ और आपकी दुआ तथा सरकार की मेहरवानी से मरेगा भी लेखपाल की हैसियत से। आई.ए.एस. कोई चपरासी नहीं होता कि आदि में भी चपरासी और अंत में भी चपरासी। आई.ए.एस.अधिकारी का तो मतलब ही यह है कि जब चाहो ओर जहाँ चाहो, उसे चिपका दो- कभी इस पद पर, कभी उस पद पर।

क़िस्सा संक्षेप में यह है कि आई.ए.एस. अधिकारी किसी और चक्र में फँसे न फँसे, जीवनभर तबादला-चक्र में अवश्य फँसा रहता है। कभी स्वयं उसके तबादले होते हैं और कभी वह स्वयं अपने तवादले का जुगाड़ लगाता है। देखा जाए तो उसका मुख्य कार्य ही तबादले पर जाना और तबादलों की जुगाड़ में लगा रहना है। बाक़ी काम तो अपने-आप ही चलते रहते हैं। जैसे हमारी सामाजिक व्यवस्था अपने-आप चल रही है। दरअसल, सामाजिक व्यवस्थाएँ स्वचालित ही होती हैं। उसके चालक और संचालक तो हाथी के दाँत होते हैं, जो केवल दिखाने के लिए हैं, चबाने के लिए नहीं।

हाँ, तो उस दिन हमने देखा कि श्रीमान मंगलदास पांडेय औसत से कुछ ज़्यादा ही प्रसन्न थे। हम आपको यह बताते चले कि एक आई.ए.एस. अधिकारी के प्रसन्न होने का एक विशेष अर्थ होता है। उसकी प्रसन्नता हमारी-आपकी प्रसन्नता नहीं होती कि साबुन के झाग की तरह उभरी और बैठ गई। आई.ए.एस. अधिकारी की प्रसन्नता क़ानूनी होती है, हमारी-आपकी बातूनी। क़ानूनी हँसी और बातूनी हँसी में जो अंतर है, हम समझते हैं, आप जानते ही होंगे, न जानते हों तो बताए देते हैं। क़ानूनी मुस्कराहट हमेशा खतरनाक होती है और बातूनी मुस्कराहट हमेशा शर्मनाक। इसीलिए हम अपनी बातूनी मुस्कराहट पर हमेशा शर्म करते रहे हैं और शर्म से पानी-पानी होते रहे हैं।

तो उस दिन श्री मंगलदास पांडेय आई.ए.एस. औसत से कुछ ज़्यादा ही प्रसन्न थे। खोज-कुरेद करने पर पता यह चला कि आई.ए.एस. अधिकारियों की लॉबी में दो गुट बन गए हैं। एक गुट में नए खिलाड़ी हैं तो दूसरे में खाए-खेले खुर्राट। एक में फर्स्टहैंड आई.ए.एस. हैं तो दूसरे में सैकिंड हैंड। फर्स्टहैंड जोश में अपने नए-नए हाथ दिखाता ही है, पर बाज़ी हमेशा पुराने के हाथों में ही रहती है।

मंगलदास पांडेय चूँकि नए हैं, इसलिए नए फर्स्टहैंड वालों से जुड़ गए। नए आई.ए.एस. खिलाडि़यों ने 'नए नमाजी बोरिए का तहमद' या 'नया मुसलमान हरदम अल्ला ही अल्ला' की कहावत पर अमल करते हुए अपना एक अलग गुट बना लिया और पुराने भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध आवाज़़ बुलंद करने लगे। इसी को लेकर कल आई.ए.एस. अधिकारियों ने अपनी एक विशाल पंचायत बुलाई, जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों की निशानदेही करने तथा सर्वोच्च भ्रष्टाचारी को भ्रष्टाचार की सबसे ऊँची उपाधि देने पर विचार किया जाना था। यह तो हम नहीं जानते कि इस पर कितना विचार हुआ, क्योंकि हमारे यहाँ विचार के लायक गंभीर बातों पर तो बिल्कुल नहीं, आलतू-फालतू बातों पर अधिक विचार किया जाता है। वैसे भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारियों पर विचार करना भी एक प्रकार से आलतू-फालतू बात ही है।

तो साहब! पंचायत की कार्रवाई का ब्यौरा देते हुए श्री मंगलदास पांडेय बोले, 'आज तो हमने भ्रष्टाचारियों की हालत पतली कर दी। ऐसी-ऐसी सुनाईं कि बोलती बंद हो गई उनकी।'

हमने सुना तो आश्चर्य से हमारा मुँह फटा-का-फटा रह गया, बिल्कुल ऐसे ही, जैसे ग़रीब का पाजामा फटे तो फटे-का-फटा ही रह जाए। उतरे तो सिले। न उतरेगा, न सिलेगा। तो साहब हमने अपने फटे मुँह से श्री मंगलदास पांडेय की ओर देखा और आश्चर्य से बोले, 'क्या कहा? पांडेय जी! हालत पतली कर दी भ्रष्टाचारियों की। विश्वास नहीं होता। अब तक तो हम यह सुनते आए थे कि साधन-संपत्ति और अधिकार-संपन्न महापुरुषों की हालत तो कभी पतली होती ही नहीं, हमेशा ग़रीब ही का हाल पतला होता है। उसी का आटा, उसी की दाल पतली होती है, महापुरुषों की नहीं। यहाँ लगे हाथों एक बात और कह चलें। जब समाज में कुछ पुरुष महापुरुष हो जाते हैं या बन जाते हैं तो कोई स्त्री महास्त्री क्यों नहीं बन पाती? क्या महानता के सारे अधिकार पुरुषों के लिए ही आरक्षित हैं, स्त्रियों के लिए नहीं। महापुरुष हो सकते हैं तो 'महास्त्री' क्यों नहीं होनी चाहिए! हमारा ख़्याल है कि हम महिला समाज को यह प्रेरणा देंगे कि महानता पर एकाधिकार रखनेवाले पुरुष-समाज को चुनौती दें और उसमें अपना कोटा आरक्षित कराएँ। सौ महापुरुषों में कम-से-कम तैंतीस स्त्रियाँ तो महास्त्रियों के कोटे में आनी ही चाहिए। महापुरुषों के समाज में यह महिलाओं के साथ बड़ा अन्याय है। अब रहा सवाल पंचायत में भ्रष्ट लॉबी की हालत पतली करने का, तो भाई हम समझते हैं कि हालत आप उनकी नहीं, अपनी ही पतली कर रहे हैं, क्योंकि जितना वह अब तक हज़म कर चुके हैं, उनकी सात पुश्तों के लिए काफ़ी है, आठवीं पुश्त जब आएगी तो उसका भी भगवान है। आप अपनी कहें, भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? अचार-चटनी खाएँगे और प्रभु के गुण गाएँगे।

पांडेय जी एकटक हमारी ओर देखते रहे जैसे हम कोई अनबूझी बात कह रहे हों। हमने अपने विचारों को शब्द देने का क्रम जारी रखा, 'बात, दरअसल, यह है पांडेय जी! नाचना जिसे नहीं आता, वही आँगन को टेढ़ा बताता है। सुनी नहीं है वह कहावत आपने कि 'नाच न जाने, आँगन टेढ़ा।'

अभी हम यहीं तक पहुँचे थे कि पांडेय जी बीच ही में टाँग अड़ा बैठे। बोले, 'आप इस कहावत के मायनी एकदम ग़लत समझते हैं और दुर्भाग्य यह है कि सौ पुश्तों से इस कहावत का अर्थ ग़लत ही समझा जाता रहा है। भाई ध्यान दो, कहने  वाले ने यह नहीं कहा कि जिस 'नचनिये' को नाचना नहीं आता, वही आँगन टेढ़ा बताता है, कहनेवाले ने कहा यह है कि आँगन चाहे कितना ही टेढ़ा क्यों न हो 'नचनिया' अपनी कला में दक्ष है तो नाचकर ही रहेगा। ज़रा पि र दोहराइए इस कहावत को, 'नाच न जाने आँगन टेढ़ा।' यानी नाच आँगन के टेढ़ा-मेढ़ा होने को नहीं जानता। वह तो नाचना ही जानता है।'

'जिंदाबाद, जिंदाबाद!' हमने पांडेय जी की बात सुनी तो ज़ोरदार नारा मारा। बोले, 'आपके मुँह में घी-शक्कर। आपने तो पांडेय जी, हमारे मुँह की बात छीन ली। काश! दूसरे की जेब का पैसा छीनने का गुण भी आप सीख जाएँ, फिर इन पंचायतों-वंचायतों के लफड़े में नहीं पडे़ंगे आप। कहावत ने यह सिद्ध कर दिया है कि स्थिति चाहे कितनी ही विकट और अँगनाई चाहे कितनी ही टेढ़ी क्यों न हो, भ्रष्टाचारी अपना भ्रष्ट आचरण और नचनिया अपना नाच दिखाकर ही रहेगा। पंचायतें उस पर रोक नहीं लगा पाएँगी।'

हमने देखा कि पांडेय जी का चेहरा कुछ उतर-सा रहा है। हमने उनके उतार को कुछ इस अंदाज़ से नज़रअंदाज़ कर दिया जैसे 'ग़रीबी हटाओ' वाले ग़रीब को नज़रअंदाज़ करते आए हैं। हमने पांडेय जी से कहा, 'वैसे इस कहावत के दोनों अर्थ हो सकते हैं। यानी नाचने में आँगन के टेढ़ा होने का बहाना भी और टेढ़ा आँगन होने के बावजूद नाचते रहना भी। कहावत वही अच्छी, जो दोनों अर्थ दे। यानी एक टिकट में दो-दो मज़े। तो भाई पांडेय जी, इस कहावत के पहले मायनी आपके लिए हैं और दूसरे मायनी उनके लिए, जिनके विरुद्ध अभियान चलाने का आप व्यर्थ में प्रयास कर रहे हैं। बात यह है कि भ्रष्टाचार भी चूँकि अपने-आपमें एक उ ँचे दर्जे का हुनर है और इस हुनर में आप सिद्धहस्त तो क्या अर्द्धसिद्धहस्त भी नहीं, इसलिए भ्रष्टाचार का आँगन आपके लिए टेढ़ा ही हुआ न! इसीलिए आप चाहते हैं कि जैसी सूखी खिचड़ी आप खा रहे हैं, दूसरे भी खाएँ। वाह भाई, वाह! यह भला कैसे हो सकता है? आपको नंगा देखकर हम भी कपड़े उतार दें। यह कहाँ की तुक है! भ्रष्टाचारी तो भाई, कहावत के दूसरे मायनी पर अमल करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे। यानी आप चाहें कितनी ही बाधाएँ क्यों न खड़ी करें और आँगन चाहे कितना ही टेढ़ा क्यों न हो, वे नाच दिखाकर यानी हाथ दिखाकर ही मानेंगे।'

हमने देखा, पांडेय जी के माथे पर चिंता की परछाइयाँ नाच रही थीं, हमने परछाइयों की तो क्या अच्छाइयों तक की कभी चिंता नहीं की, इसलिए बिना लगाम लगाए अपना बयान जारी रखा, 'हमारा सुझाव तो यह है पांडेय जी, कि आप आगे से भ्रष्टाचार-विरोधी पंचायतें बिल्कुल आयोजित न करें, बल्कि उनके स्थान पर दो अलग-अलग पुरस्कार-समारोहों को विधिवत् आयोजित करें। एक अधिकारी वर्ग के नामी-गिरामी कमाउ पुत्रों को सम्मानित करने के लिए हो, दूसरा तस्कर-क्लास राजनेताओं को सम्मानित करने के लिए। दोनों समारोहों की अध्यक्षता हवालापार्टी के अध्यक्ष से कराएँ और ऊँचे दर्जे के सभी भ्रष्टाचारियों को पुरस्कृत करें। यह काम राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए।'

हमने देखा कि पांडेय जी चुप हैं और विचारों की पूरी-की-पूरी मालगाड़ी उनके मस्तिष्क से गुज़र रही है। इसलिए जैसे ही एक छोटा-सा हाल्ट आया, हमने  एक और विचार उनकी तरफ़ फेंका, 'पुरस्कार-समारोहों के उपरांत आप लेने में दक्ष महापुरुषों व महास्त्रियों की एक विशिष्ट टीम गठित करें, जो नए खिलाडि़यों को 'लेने' की कला का ऐसा बढि़या प्रशिक्षण दे, जिससे कभी 'लेने के देने' न पड़ें, जैसे कभी-कभार अब भी पड़ जाते हैं।'

पांडेय जी निरंतर मौन धारण किए हुए थे। हम यह नहीं समझ पा रहे थे कि वह हमारी बात से सहमत हैं या असहमत हैं। क्योंकि हम अपने बोलने के क्रम में उन्हें कुछ कहने का अवसर देने को तैयार ही नहीं थे। विरोधीपक्ष को पराजित करने का एकमात्र गुर यही है कि अपनी कहो, दूसरे को बोलने ही मत दो। हारेगा, झक मारेगा और अंत में चारों खाने चित्त आ गिरेगा। सो, हमने भाई पांडेय जी के मौन का एक बार फिर फायदा उठाते हुए कहा, 'भाई पांडेय जी! जैसी लूट-खसोट मच रही है, इस देश में, जन-धन पर जिस तरह हाथ साफ़ किया जा रहा है, जिस तरह अरबों-खरबों अंदर किए जा रहे हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि पिछले दिनों हमारे एक चित्रकार मित्र ने भावी भारत का जो नक़्शा बनाकर हमें दिखाया था, वही सच होनेवाला है।'

पांडेय जी का मौन टूटा। बोले, 'क्या था उसमें?' हमने बताया, 'चित्रकार ने भारत का एक विशाल चित्र तैयार किया था, जिसमें बड़े-बड़े समतल मैदान दिखाए गए थे। न तो नदी-नाले, न कल-कारख़ाने, न शहर-बाज़ार। बस बड़े-बड़े ख़ाली मैदान। और इन मैदानों के बाहर एक भैंस जुगाली करती हुई।'

हमने चित्र देखा तो हैरत हुई। अपने चित्रकार दोस्त से पूछा, 'भई, यह क्या बनाया है तुमने?'

बोला, 'तुम स्वयं बूझो तो जानें।' हम देर तक ध्यानपूर्वक इस अद्भुत नक़्शे को देखते रहे पर कुछ पल्ले नहीं पड़ा। हार मान ली। कहा, 'हम तो कुछ समझ नहीं पा रहे हैं चित्रकार भाई। आपकी माया आप ही जानें। पर कुछ हमें भी तो बताइए यह क्या है?'

चित्रकार भाई बोले, 'होता क्या? भारत का नक़्शा है और घास के मैदान हैं।'

'पर इन मैदानों में घास कहाँ है? वे तो गंजों की खोपड़ी जैसे सफाचट पड़े हैं।'

चित्रकार बोला, 'घास तो भैंस चर गई।'

हमने पूछा, 'भैंस कहाँ है?' बोला, 'देख नहीं रहे हो, बैठी जुगाली कर रही है।'

पहली बार पांडेय जी हमारी बात पर ठहाका मारकर हँसे। फिर बोले, 'तब तो भ्रष्टाचार-विरोधी लॉबी को मजबूत करना और भी ज़रूरी है वर्ना भारत गंजे की खोपड़ी बनकर रह जाएगा।'



16  साहित्य विहार

बिजनौर (उ.प्र.) 246701

07838090732

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गिरिराजशरण अग्रवाल का व्यंग्य - आओ भ्रष्टाचार करें
गिरिराजशरण अग्रवाल का व्यंग्य - आओ भ्रष्टाचार करें
http://2.bp.blogspot.com/-i-xhiueIbL4/UnYwhKCAcYI/AAAAAAAAWr4/f0SIBgpCwG4/s1600/AIbEiAIAAABECIvv5vWmjNDA9wEiC3ZjYXJkX3Bob3RvKigwZjQ3MjUyOGFkMmU1MzdlMzdkYjg5M2I3MjcxYmI0OGMyYjYxZjk2MAElDqU5fVUZ6BcnxRrZ4rNZIO0y_A.jpg
http://2.bp.blogspot.com/-i-xhiueIbL4/UnYwhKCAcYI/AAAAAAAAWr4/f0SIBgpCwG4/s72-c/AIbEiAIAAABECIvv5vWmjNDA9wEiC3ZjYXJkX3Bob3RvKigwZjQ3MjUyOGFkMmU1MzdlMzdkYjg5M2I3MjcxYmI0OGMyYjYxZjk2MAElDqU5fVUZ6BcnxRrZ4rNZIO0y_A.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/11/blog-post_6351.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/11/blog-post_6351.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content