असगर वजाहत की कहानी - डेड लाइन

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डेड लाइन बड़ी भाग-दौड़ और जोड़-तोड़ के बाद वह काम हमारी एजेन्सी को मिला था । लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं लगाया जा सकता कि बाकी काम बिना...

डेड लाइन

बड़ी भाग-दौड़ और जोड़-तोड़ के बाद वह काम हमारी एजेन्सी को मिला था लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं लगाया जा सकता कि बाकी काम बिना भाग-दौड़ और जोड़-तोड़ के मिलते थे। चूंकि काम बड़ा था, मारजिन अच्छा था और आगे भी काम लगातार मिलते रहने की उम्मीद थी और फिर इस काम में मुख्यमंत्री व्यक्तिगत दिलचस्पी दिखा रहे थे, क्योंकि उनके प्रांत की वार्षिक रिपोर्ट पुस्तिका के मुख पृष्ठ पर उनका चित्र जा रहा थे। हमेंपूरी उम्मीद थी कि यदि चित्र चार रंगों में ऑफसेट से अच्छा छप गया तो मुख्यमंत्री हमारी एजेंसी को अपने प्रांत-का और अधिक काम दिला सकते हैं। हकीकत में हमारी नजर उनके प्रांत के पर्यटन मंत्रालय पर थी, जिसके पास पब्लिसिटी का लम्बा-चौड़ा बजट है।

दिसम्बर की एक सर्द शाम थी और ऑफिस करीब-करीब बन्द हो चुका था यानी बिग-बॉस के चपरासी और स्टेनो मिस मल्होत्रा को छोड़ सब जा चुके थे। मैं इस इन्तजार में अपनी मेज पर पड़े कागजों को उलट-पलट रहा था कि अपने केबिन से निकलते वक्त बिग-बॉस की नजर मेरे ऊपर पड़ जाये और धाक जम जाये कि देखो जोशी छः बजे तक दीवानों की तरह काम कर रहा है। मेंज पर चारों तरफ आर्ट वर्क बिखरे पड़े थे। हालांकि मुझे ऑफिस जल्दी छोड़ना था, क्योंकि तीन महीने के बाद गीता को फिल्म दिखाने ले जाना था। गीता की कंप्लेन्ट बुक में यह भी एक शिकायत थी और बड़ी शिकायत थी कि शादी के बाद मैं उसे पिक्चर दिखाने नहीं ले जाता। तो इस वक्त मेरी जेब में शाम वाले शो के दो टिकट थे और पूरी उम्मीद थी, प्लाजा के सामने गीता खड़ी, मेरा इन्तजार कर रही होगी। मुझे गालियां दे रही होगी और मैं दिल-ही-दिल में बिग-बॉस को गालियां दे रहा था, जो कुर्सी से इस तरह चिपका बैठा है जैसे फेवीकॉल से चिपका दिया गया हो।

‘‘बड़े साहब ने बुलाया है,’’ सामने बिग-बॉस का चपरासी खड़ा था। मेरा जी चाहा उसके दो तमाचे दूं, फिर अपना मुंह पीट डालूं और जंगल की तरफ, अगर कहीं बचे हों तो, भागता चला जाऊं। लेकिन मैं उठा।

‘‘मिस्टर जोशी...’’बॉस ने किसी फाइल की तरफ देखते हुए पूछा और फिर अटक गए।

‘‘यस सर, ‘‘मैं उनकी तरफ सम्मान, श्रद्धा और जिज्ञासापूर्वक देखने लगा।

‘‘आइ एम सॉरी, बट हियर इज वेरी अर्जेट वर्क टु बी डन।’’

‘‘यस सर। ‘‘मैं जानता था, और बिग-बॉस भी कहते रहते थे कि ‘आई डोंट वांट टु हियर एनीथिंग यस सर।’’

‘‘तुम्हें अभी इंटरकॉन्टीनेन्टल जाना है....डि्रंक्स एंड डिनर...मिस्टर मलानी को तुम जानते हो’

‘‘यस सर।’’

‘‘वेरी गुड....वहां उन्हें इंटरटेन करना है....डू यू अण्डर स्टैण्ड, इन्टरटेन।’’ बिग-बॉस ने इन्टरटेन पर जोर दिया।

‘‘यस सर।’’

‘‘डोंट ऑफर हिम लेस दैन शीवाज रीगल....,’’फिर बिग-बॉस टोन बदलकर बोले, ‘‘ उसके बाप ने भी कभी देखी नहीं होगी। पी. आर. ओ. वह भी किसी स्टेट का कभी शीवाज पी सकता हे आई मीन फ्रॉम हिज ओन पॉकिट’

‘‘यू आर राइट सर।’’

‘‘गाड़ी खड़ी है, ड्राइवर को बोल दिया है। यू टेक मिस मल्होत्रा विद यू....अच्छी लाल वली पार्टी रहेगी...रूम नम्बर थ्री ओ सिक्स...रिसेप्शन पर मेरा कार्ड दिखा देना...यू विल गेट ऐवरीथिंग रेडी....ओर. के’ बिग-बॉस ने कार्ड बढ़ा दिया और मैंने बड़ी श्रद्धा से जैसे तुलसीदास कृत रामचरितमानस ले रहा हूं, ले लिया। केबिन के बाहर निकलकर सीधा बाथरूम आया, टाई की नॉट ठीक की। कंघा निकालकर बाल बनाए। कोट पर ब्रुश किया और बाहर निकल आया। जी चाहा मिस मल्होत्रा को छेड़ा जाये। बिग-बॉस की आदतें मैं जानता हूं, उन्होंने मिस मल्होत्रा को अब तक न बताया होगा कि उन्हें मेरे साथ जाना है।

‘‘मिस मल्होत्रा, हाउ आर यू’

‘‘आइ एम वेरी टायर्ड,’’ वह लंच बॉक्स अपने बैग में रखती हुई बोली।

‘‘वुड यू लाइक टु हैव ड्रिंक विद मी’

‘‘नो, थैंक यू डियर।’’

‘‘बट यू हैव टू हैव माई डियर।’’

मिस मल्होत्रा की खूबसूरत आंखों में गुस्सा उतर आया है।

‘‘इट्स आर्डर।’’

‘‘फॉम हूम’

‘‘बिग-बॉस।’’

‘‘हैज ही गॉन मैड।’’

‘‘नो, वी आर मैड।’’

‘‘चक्कर क्या है’

‘‘बिजनेस....बिजनेस और क्या होगा’

इतने में बिग-बॉस अपने केबिन के निकल आए और कोट की दूसरी आस्तीन में हाथ डालते हुए बोले, ‘‘मिस मल्होत्रा यू आर गोइंग विद जोशी....गुडलक।’’ और वे तड़ से बाहर।

मिस मल्होत्रा को मूड इतना ऑफ था कि ऑफिस से निकलने के पहले उन्होंने अपनी लिपस्टिक तक ठीक नहीं की जो मेरे लिए बड़े आश्चर्य की बात थी।

‘‘मैने ड्राइवर से कहा, ‘‘प्यारे रामसिंह, यार होटल जाने से पहले जरा प्लाजा ले लेना।’’

‘‘क्यों’ मिस मल्होत्रा बिल्ली की तरह गुर्रायी।

‘‘बदनसीबी....गीता वहां फिल्म देखने के लिए मेरा इन्तजार कर रही होगी। फिल्म के टिकट मेरी जेब में हैं।’’

अब मिस मल्होत्रा को हंसी आई, ‘‘खाओ जूते।’’

‘‘वो तो रोज खाता हूं, इस नौकरी के चक्कर में।’’

बाहर सर्दी हो गई थी और गीता प्लाजा के सामने खड़ी थी।

मुझे देखते ही उसके चेहरे पर शिकायतों का दफ्तर खुल गया।

‘‘आइ एम वेरी सॉरी डार्लिग।’’

‘‘चलो अन्दर...सारी-वारी वहीं कह लेना।’’

‘‘मैं तो आफिस की गाड़ी से आया हूं।’’

‘‘क्या मतलब’

‘‘ऑफिशियल काम है। वेरी अर्जेट।’’

‘‘यू आर मीन।’’

‘‘मेरी बात तो सुन....।’’

‘‘आई सेड, यू आर मीन।’’

‘‘वो देखो, गाड़ी खड़ी है।’’

‘‘अन्दर कौन बैठा है’

‘‘मिस मल्होत्रा....आई मीन मेरे बिग-बॉस की...।’’

‘‘तो जाओ मौज उड़ाओ....मुझे यहां क्यो बुलाया था।’’

‘‘अरे सुनो तो...।’’ और तेजी से बस-स्टॉप की तरफ चल दी। मैं दो चार कदम उसके पीछे भागा फिर याद आया कि मिस्टर मलानी होटल पहुंचने ही वाले ही होंगे और मैं तेजी से कार का दरवाजा खोलकर अन्दर कूद पड़ा।

गाड़ी चल दी।

‘‘ क्या हुआ’ मिस मल्होत्रा ने पूछा।

‘‘मैं कभी-कभी सोचता हूं कि मैं क्यों नौकरी करता हूं किसके लिए’

‘‘इतनी जल्दी फिलासफर हो गये’

‘‘नहीं रिंकी।’’ ऑफिस में लोग मिसेज मल्होत्रा का यही नाम लेना पसन्द करते हैं। खासकर आत्मीय क्षणों में रुक्मणी मल्होत्रा रिंकी हो जाती है।

‘‘बात क्या है’

‘‘देखो मैं घर से सुबह साढ़े आठ पर निकलता हूं और शाम सात बजे घर पहुंचता हूं। थका हुआ या कहो मरा हुआ और बिस्तर पर पड़ जाता हूं। गीता उस वक्त खाना पकाती है। साढ़े आठ बजे खाना होता है और खाते ही नींद का झोंका....मेरे पास गीता के लिए टाइम नहीं है। दोस्तों और रिश्तेदारों की बात तो दूर रही। बताओ, मैं क्यों काम करता हूं सिर्फ अपने को और फैमिली को जिन्दा रखने के लिए तुम्हें मालूम ही है पन्द्रह सौ रुपये में जो आदमी चार सौ मकान का किराया दे देगा वह दिल्ली जैसे शहर में कौन से ऐया कर सकता है’

‘‘पुअर चैप,’’ रिंकी ने अपना नाजुक-सा हाथ मेरे हाथ पर रख दिया जिससे कुछ राहत मिली।

‘‘पिछले साल मैंने एजेन्सी को बारह लाख के एकाउन्ट दिये थे। एजेन्सी का, मोटा-मोटा जोड़ लो तो तीस पर्सेन्ट कि हिसाब से तीन लाख साठ हजार बनता है। मुझे साल-भर में कम्पनी ने क्या दिया अट्ठारह हजार...बाकी पैसा किसकी जेब में गया’

‘‘फिर क्या करोगे’

‘‘करेंगे क्या गुलामी करते रहेंगे।’’ गाड़ी से संसद दिखाई दे रही थी।

‘‘सुनो जोशी...ये मिस्टर मलानी कैसा आदमी है’

‘‘आदमी क्या साला कुत्ता है।’’

‘‘कहीं मेरे साथ...आई मीन अनडियू ऐडवांटेज...’’

‘‘अरे छोड़ो....तुम्हारे साथ जरा-सा भी कुछ किया तो साले के दांत तोड़ दूंगा। अब मुझे इतना भी नामर्द न समझो। बिजनेस जाए चूल्हे-भाड़ में।’’

‘‘रिंकी ने प्यार भरी आंखों से मेरी तरफ देखा। होंठ सिकोड़कर छोड़ दिए फिर हंसने लगी।

‘‘ट्रस्ट भी।’’

‘‘यह....आई ट्रस्ट यू।’’

एयरकंडीशन्ड-कमरे के एक सोफे पर पड़ा भीमकाय मलानी इस तरह पी रहा था-जैसे उसका मुंह न हो, सीप हो और उसका पेट न हो, पीपा हो। साथ देने के लिए हम दोनों ने भी अपने गिलास सामने रख लिये थे। बातें चल रही थीं। मैंने अपने जोक्स की किताब खोल रखी थी और मलानी को ऐसे जोक्स सुना रहा था जिन्हें वह समझ भी रहा था और हंस भी रहा था। हम दोनों खुश थे कि पार्टी ठीक से अच्छी चल रही है। मुख्यमंत्री का चित्र छापने गौरव हमारी एजेन्सी को प्राप्त जो जाएगा। डर सिर्फ यही था कि कहीं शराब के नशे में मलानी रिंकी के साथ छेड-छाड़ पर न उतर आए। मुझे अनुमान हो गया था कि मलानी इसका मौका ढूंढ़ रहा है और उसने शुरूआत इस तरह की।

‘‘तुसी और पियो जी,’’ मलानी ने रिंकी के गिलास की तरफ इशारा किया।

‘‘मिस्टर मलानी, ये तो बिलकुल नहीं पीती, पर आपका साथ देने के लिए थोड़ी-सी ले ली है,’’ मैंने कहा और तुरंत टॉपिक बदलकर इसी वाक्य के साथ बोला, ‘‘मिस्टर मलानी, वो जोक सुना है न जब एक मेढ़क अपने-आपको शेर समझने लगा था’

‘‘अच्छा जी, मेढ़क शेर हो गया था, ‘‘वह हो-हो करके हंसने लगा और मैंने इतमीनान की सांस ली।

रात का नौ बज चुका था। हमें दिलचस्पी सिर्फ इसी बात में थी कि मलानी चाहे जितनी पिये मगर जल्दी पिये और चाहे जितना खाये मगर जल्दी-से-जल्दी खाये और जाये।

वह कुर्सी से उठने लगा। मैं समझ गया, साला बाथरूम जाना चाहता है और मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला, बत्ती खोली, बस यही कसर रह गई कि उसकी जिप नहीं खोली। मैं वापस आकर रिंकी के पास बैठ गया।

‘‘इसे और दी जाये’मैंने रिंकी से पूछा।

‘‘बहुत हाई हो गया है। मर जायेगा।’’

‘‘मर जाये साला, लेकिन कॉन्ट्रेक्ट होने के बाद।’’

रिंकी हंसने लगी।

‘‘अच्छा तो अब खेल खत्म किया जायें,’’ मैंने कहा।

‘‘ओ. के.।’’

मलानी आकर बैठ गया। उसकी सांस तेज-तेज चल रही थी और गिलास पूरा रखा था। उसने एक लंबा सिप लिया।

‘‘मलानी जी, इतने सम्बन्ध होने पर भी आपके यहां से हमें काम नहीं मिलता’ मैंने गिड़गिड़ाकर कहा।

‘‘मिलेगा जी, क्यों नहीं मिलेगा...तुसी जरूर काम मिलेगा।’’

मलानी का गिलास खाली हो चुका था। मैंने खाली बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया तो रिंकी ने मेरे हाथ पकड़ लिए।

‘‘क्यों’ मैंने कहा और मलानी भी उसकी तरफ देखने लगा। मुझे मालूम था रिंकी क्या कहने जा रही है। ये सारी तरकीबें हम एजेन्सी वालों की समझी-बूझी होती हैं।

‘‘रिंकी ने बड़ी बेबाक मुस्कराहट मलानी की तरफ फेंकी और आंखों में आंखें डालकर बोली, ‘‘हैवी ड्रिंकिंग इज वेरी बैड फॉर हैल्थ।’’

रिंकी के मुस्कराने और उसकी दिखावटी आत्मीयता के आगे मलानी कुछ बोल न सका, हंस दिया।

‘‘एक छोटा-सा फॉर दे रोड़’’ मैंने कहा।

‘‘नो जोशी,’’ रिंकी ने और ज्यादा इठलाकर कहा।

‘‘अच्छा तो तुम्हें भूख भी लगी होगी,’’ मैंने रिंकी से कहकर घड़ी देखी। मलानी ने भी घड़ी देखी।

मलानी बड़े उत्साह से बोला, ‘‘भूख लग रही है, अरे, तो खाना खाएं’’ तीर निशाने पर बैठा।

‘‘यहीं खाएंगे या नीचे चलें,’’

‘‘नीचे चलेंगे जी, खाना भी खाएंगे, कैबरे भी देखेंगे, यहां क्या रखा है।’’ मलानी ने कुर्सी से उठने की कोशिश की।

मलानी को खाना खिलाते-खिलाते बारह बजे। जाते वक्त उसने मुझसे देर तक हाथ मिलाया, क्योंकि रिंकी से भी देर तक हाथ मिलाना चाहता था। बहरहाल रात साढ़े बारह बजे जब रिंकी के घर के सामने गाड़ी रूकी तो वह सो रही थी। घर के अंदर उसकी बच्ची इला भी आया की गोद में रोते-रोते और मम्मी-मम्मी रटते सो गई होगी। सोने से पहले जरूर वह काफी देर तक सिसकती रही होगी और ब सोते में उसके फूल से मुलायम गालों पर आंसू खुश्क हो चुके होंगे। रिंकी के पति को आज फिर दो अंडो की आमलेट और चार स्लाइस खाकर अपनी पत्नी के लौटने का इन्तजार करना पड़ा होगा। हो सकता है उसने रिंकी का पता लगाने के लिए पड़ोस से दो-चार फोन भी खटखटाये हों।

इस तरह यानी इससे भी बड़े पापड़ बेलकर कॉन्ट्रेक्ट साइन हो गया था, बिग-बॉस खुश थे। उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई थी और मुझे ये उम्मीद हो चली थी कि अबके अच्छा इन्क्रीमेंट मिलेगा। लेकिन गीता खुश नहीं थी।

अब समस्या थी मुख्यमंत्री की ट्रांसपरेंसी की। पता चला कि दिल्ली ही के एक फोटोग्राफर के पास कुछ पोट्रेट हैं। अगले दिन वे लाये गये। बिग-बॉस ने सब देखे और दो पसन्द किए। दोनों मुख्यमंत्री के पास भेजे गए और उन्होेंने दोनों रिजेक्ट कर दिये। फिर खलबली मची। मुझे इसी काम पर लगा दिया कि कहीं से मुख्यमंत्री के चित्र लाऊं और वे भी रंगीन। बहरहाल फोन खड़खड़ाए, गाड़ी दौड़ी, आखिर जालन्धर के फोटोग्राफर का पता लगा और उससे तीन ट्रांसपरेंसीज मिलीं, प्रिंटिंग एक्सपर्ट ने देखी तो कहा कि तीनों नहीं छप सकतीं, क्योंकि रील पुरानी इस्तेमाल की गई है। फिर भागदौड़ शुरू हुई। अब तय पाया कि किसी अच्छे राष्ट्रीय ख्याति के फोटोग्राफर से तस्वीरें खिंचवाई जायें। सी. सी कौल से बात हुई। वह बहुत बिजी था और एक हफ्ते के बाद का टाइम दे रहा था। इस पर बिग-बॉस बहुत नाराज हुए और कहा कि हम बाइ-एयर ले जाएंगे, लाएंगे, ये काम तीन दिन में हो जाना चाहिए। सी. सी. कौल तैयार हो गया। फिर. खबर मिली अगले सप्ताह मुख्यमंत्री दिल्ली आ रहे हैं। बिग-बॉस ने सोचा सस्ते में काम हो जायेगा। रुक गए। ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री का दौरा कैन्सिल हो गया। कारण बात मेंपता चला, मुख्यमंत्री किसी घोटाले की चपेट में आते-आते बच गए थे। बहरहाल कौल गया और तस्वीरें खींचकर लाया। उसने कुल सत्तर तस्वीरें ली थीं। बिग-बॉस ने चार ट्रांसपेरेंसीज पसंद कीं, मुख्यमंत्री के पास भेजी गयीं। वे उन दिनों विश्व रक्षा सम्मेलन का उद्घाटन करने जमालपुर गये हुए थे। लौटकर आये और एक तस्वीर पसन्द की। चूंकि दिल्ली में कलर सेप्रेशन ठीक नहीं होता इसलिए ट्रांसपेरेंसी तुरन्त बम्बई भेजी गई। भेजने के बाद मालूम हुआ कि जिस लैब को भेजी गई है वहां स्ट्राइक हो गई है। मास्टर नेगेटिव से फिर ट्रांसपेरेंसी बनाई गई और दिल्ली में ही कलर-सेप्रेशन हुआ। प्लेट बनी और जब प्रूफ छपकर आए तो बिग बॉस को पसन्द नहीं आए, क्योंकि उनकी निगाह में मुख्यमंत्री के सम्पन्न प्रदेश के पर्यटन मन्त्रालय का बजट था। तय पाया कि कलर-सेप्रेशन किसी और से कराया जाये। और आखिरकार आज सुबह नए प्रूफ आ गये थे, जिन्हें दिखाने मैं मिस्टर मलानी के पास जा रहा था।

हर प्रदेश की सरकारों ने दिल्ली में अपने भव्य भवन बनवा रखे हैं, जिनका काम केन्द्र में, प्रदेश की हित-साधना कम और प्रदेश से आए उच्च सरकारी कर्मचारियों, मंत्रियों, एम. पी. ओ. की फौज का आदर सत्कार करना अधिक होता है। टैक्सी से वहां पहुंचने में कोई दस-बारह मिनट लगते थे। मैं पिछली सीट पर आराम से आंखें बन्द किये बैठा था क्योंकि मुझे मालूम था कि टैक्सी भवन में घुसने के लिए एक तीखा मोड़ मुड़ेगी और मैं आंखें खोल दूंगा। कुछ मिनट बाद टैक्सी तीखा मोड़ मुड़ी और एक सीटी बजने की आवाज सुनाई दी। मैंने आंखें खोल दीं। बूढे टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी ठीक पोर्टिको के नीचे रोकी थी और गेट की तरफ से बावर्दी गेटकीपर नाराज होता हुआ चला आ रहा था।

‘‘ओय टैक्सी उधर से हटाने का है,’’ वह बोला।

‘‘की बात है जी कौन से घंटे-दो-घंटे लगना है। अभी हटा देते हैं,’’ बूढ़ा पंजाबी ड्राइवर बोला।

‘‘आज इधर गाड़ी लाने का ऑर्डर नहीं है’

‘‘कोई वी.आई.पी. आ रहा है क्या’ मैंने पूछा।

‘‘हां जी,’’ गेटकीपर बोला।

‘‘बताओ जी कितना बना’ मैंने टैक्सी ड्राइवर से पूछा।

‘‘पांच रुपये सत्तर पैसे।’’

मैंने दस का नोट उसकी तरफ बढ़ाया। बूढ़े टैक्सी ड्राइवर ने नोट हाथ में लिया ही था कि नशे में डूबे बदमस्त हाथी की तरह चलता एक विदेशी कार इधर आती दिखाई पड़ी। टैक्सी आगे बढ़ाकर ऐसी जगह खड़ी कर दी जहां से वी.आई.पी. को देख सकते थे, पर वह हमें नहीं देख सकता था।

कई बदमस्त कारों के बीच में एक बड़ी ही बदमस्त काले रंग की कार थी जिस पर झंड़ा लगा हुआ था। उसके अन्दर घुसते ही मुस्तैद अफसरों की टोली जो पार्टिको में आकर खड़ी हो गयी थी और जिनमें मिस्टर मलानी भी थे, काफ़ी चौकस हो गई। बूढ़ा पंजाबी टैक्सी ड्राइवर भी उधर ही देख रहा था। काली बदमस्त कार ने रुकने से पहले कई हिचकोले खाए जैसे जमीन पर न चल रही हो, पानी पर तैर रही हो, फिर रुक गई।

एक सूटधारी ने लपककर पीछे का दरवाजा खोला, खोले खड़ा रहा। ऐसा लगा कि पूरे देश के सूटधारियों और खद्दरधारियों के बीच कोई स्थाई समझौता हो चुका है। कोई मिनट डेढ़ मिनट के बाद एक छोटे कद और गठीले बदन का गैंडानुमा आदमी, सफेद खादी में लिपटा हुआ बाहर निकला, जिसके सिर के बाल टूथ ब्रुश के बालों की तरह सफेद और सीधे खड़े हुए थे। उसका चेहरा तमतमा रहा था।

अगले क्षण जो हुआ उसका अंदाजा लगा पाना करीब-करीब असंभव था। यानी बूढ़ा पंजाबी टैक्सी ड्राइवर तेजी से वी.आई.पी. की तरफ झपटा और उनसे लिफ्ट लिया और वी.आई पी. उसकी कमर में हाथ डाले-डाले उसे अन्दर लेते चले गये।

मैं क्या करता बिलकुल उल्लुओं की तरह टैक्सी के पास खड़ा रहा और सोचता रहा कि यह सब-कुछ जो देखा है, सच है। कोई पन्द्रह मिनट बाद अंदर से बूढ़ा पंजाबी टैक्सी ड्राइवर आता दिखाई दिया।

‘‘लोजी अपने पैसे’ वह जेब से रुपये निकालने लगा। अब मुझे उससे चेंज वापस लेना भी अच्छा नहीं लग रहा था। अब तो इस बूढ़े का और अच्छा इस्तेमाल हो सकता है। इससे चार रुपये तीस पैसे लेना बेवकूफी है।

‘‘अजी रखो जी प्राजी, तुसी वी.आई.पी के दोस्त हो।

‘‘दोस्त क्या हैं जी, अपनी-अपनी किस्मत है।’’

‘‘क्या उन्हें जानते हो’

‘‘जानते हो अजी ऐसा-वैसा जानता हूं पूरे चालीस साल के बाद देखा है इसको।’’

‘‘चालीस साल पहले कहां की मुलाकात है’

‘‘कश्मीरी गेट के टैक्सी स्टैंड पर मैं अपनी गाड़ी खड़ी किया करता था। वहीं पर इसकी वर्कशॉप थी। हमारी गडिडयां ठीक कर दिया करता था’’।

‘‘तो चालीस साल बाद पहचान लिया’

‘‘अजी पहिचानता कैसे नहीं, बहुत से पाप हम दोनों ने साथ-साथ किए हैं।’’ मिस्टर मलानी हांफते हुये तेजी से हम लोगों की तरफ आ रहे थे। मैंने दिल में सोचा आओ साले अबकी मेरी बारी है। बूढ़ा पंजाबी टैक्सी ड्राइवर मेरे ताऊ का अभिन्न मित्र ता हो ही सकता है।

‘‘अन्दर चलो जी, अन्दर यहां कैसे खड़े हैं।’’ वे मेरे साथ बूढ़े टैक्सी ड्राइवर को भी अन्दर खींचने लगे।

‘‘अजी ये कैसे हो सकता है कि आप यहां से ऐसे ही चले जायें। आओ जी आओ, जोशी जी आओ।’’ मलानी ने बूढ़े पंजाबी टैक्सी ड्राइवर की तो बांह ही पकड़ रखी थी।

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: असगर वजाहत की कहानी - डेड लाइन
असगर वजाहत की कहानी - डेड लाइन
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