असगर वजाहत की लघुकथा श्रृंखला–मुखमंत्री और डिमोक्रेसिया

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मुखमंत्री और डिमोक्रेसिया (1) अकाल हो या बाढ़, दंगे हों या स्टेम्पीड मुखमंत्री सुखमंत्री रहते हैं। आजकल मुखमंत्री हेलीकॉप्टर से बाढ़ग्रस्त ...

मुखमंत्री और डिमोक्रेसिया

(1)

अकाल हो या बाढ़, दंगे हों या स्टेम्पीड मुखमंत्री सुखमंत्री रहते हैं। आजकल मुखमंत्री हेलीकॉप्टर से बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का सघन दौरा कर रहे हैं। ब्रेकफस्टवा से लेके डिनरवा तक सवै हिलीकॉप्टरवा में होता है। रात-दिन कान घुनघुनाते रहते है, सो अलग। सैकड़ों गांवों में पानी भरा है। हजारों जानवर और आदमी मर चुके हैं। बीमारिया फैल रही है। महामारी लोगों को चट कर रही है। पानी लगातार बढ़ रहा है। मुखमंत्री ने सोचा कहीं पानी इतना न बढ़ जाए कि हेलीकॉप्टरवा डूब जाए। उन्होंने पायलट से पूछा, ‘‘क्यों जी हेलीकाप्टरवा पानी में डूब तो न जाएगा’

पायलट ने कहा, ‘‘सर ऐसा कैसे हो सकता है।’’

मुखमंत्री ने कहा, ‘‘मान लीजिए सौ फुट पानी ऊपर चढ़ गया तो’

पायलट ने कहा, ‘‘क्या होगा यही पन्द्रह-बीस हजार गांव और डूब जाएंगे।’’

‘‘मान लीजिए हजार पांच सोै फुट बढ़ गया तो’

‘‘शहर डूब जाएंगें।’’ पायलट बोला।

‘‘मान लीजिए हजार, दो हजार, पांच हजार फुट।’’

‘‘तब तो पूरा देश डूब जाएगा पर हेलीकॉप्टरवा नहीं डूबेगा।’’ पायलट बोला।

‘‘और बीस हजार फुट।’’ मुखमंत्री बोले।

‘‘तब तो सर हिमालय पहाड़ डूब जाएगा, हेलीकॉप्टरवा भी डूब जाएगा।’’ पायलट बोला।

‘‘अरे तो थोड़ा ओर ऊंचा उड़ाइए न हेलीकॉप्टरवा।’’ मुखमंत्री ने कहा और नीचे देखने लगे।

‘‘अरे देश में डेमोक्रेसिया है न, काहे को डिराते हैं।’’

(2)

मुखमंत्री हेलीकॉप्टरवा से देख रहे हैं। हेलीकॉप्टरवा इतने ऊंचे उड़ रहा है कि नीचे कुछ नहीं दिखाई दे रहा।

अचानक मुखमंत्री ने हेलीकॉप्टरवा का दरवाजा खोला और नीचे कूद पड़े।

वे सीधे कोसी की मुख्यधारा में गिरे और नीचे चले गए। सैकड़ों फुट नीचे चले गए। वहां उन्होंने देखा कि कीचड़ और गाद में लोगों की लाशें फंसी पड़ी हैं मुखमंत्री उन लाशों को पहचान-पहचान कर निकालने लगे।

जब वे ऊपर आए तो उनके साथ चारा सौ लोगों की लाशें थीं।

मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज बना दी प्रधानमंत्री ने मुखमंत्री को बधाई सन्देश भेजा।

मीडिया ने मुखमंत्री से पूछा, ‘‘हमने सुना है, आप केवल अपने वोटरों की लाशें ही निकालकर लाए हैं।’’

मुखमंत्री ने कहा, ‘‘अरे विरोधी दल वाले भी चले जाते कोसी की गोद में, अरे ये तो डेमोक्रेसिया है।’’

(3)

मुखमंत्री कोसी नदी में से निकले। उनके एक हाथ में पूड़ियों का थाल और दूसरे हाथ में मिठाइयों का थाल है।

मुखमंत्री ने आवाज लगाई, ‘‘आइए जो-जो हमारे वोटर हैं, भोजन कर ीलीजिए।’’ सब लोग भोजन पर टूट पड़े। थाल सफाचट हो गए।

कुछ लोगों ने मुखमंत्री से कहा, ‘‘आपके विरोधियों ने भी भोजन कर लिया है।’’

मुखमंत्री ने विरोधियों को पकड़ा। उनके गले में हाथ डाला और गिन-गिनकर एक-एक पूड़ी और एक-एक मिठाई का टुकड़ा निकाल लिया।

फिर मुखमंत्री बोला, ‘‘जाइए उनका खाइए जिन्हें वोट देते हैं...अरे ये तो डेमोक्रेसिया है भइया।’’

(4)

मुखमंत्री हेलीकॉप्टरवा पर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। फोटोग्राफर उनकी फोटो खींच रहा है।

‘‘दिखाइए फोटो।’’ मुखमंत्री ने कहा।

फोटाग्राफर ने फोटो दिखाया।

‘‘इसमें चिन्ता के भाव तो आए ही नहीं। कैसे फोटोग्राफर हो जी तुम। कौन से विभाग में हो’

मुखमंत्री बोले।

‘‘एक चांस और सर...’’

‘‘चलो खींचो।’’

एक चित्र और लिया गया।

फोटो देखकर मुखमंत्री बोले, ‘‘और तो ठीक है। आंख में आंसू भी आ जाता तो अच्छा था।’’

‘‘ठीक है सर, एक चांस और सर...।’’

फोटो खींची गई। मुखमंत्री ने देखी।

‘‘आप भी अजीब फोटोग्राफर हैं। अरे कोई एक आंख से रोता है, एक ही आंख में आंसू दिखाई पड़ रहा है।’’ मुखमंत्री बोले।

‘‘एक चांस और सर...’’

‘‘नहीं अब रहने दे। हम पिछले साल वाली फोटो रिलीज करा देंगे अरे डेमोक्रेसिया है न।’’ मुखमंत्री ने कहा और नीचे देखने लगे।

(5)

‘‘आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी किसकी है’ मुखमंत्री ने अधिकारियों से पूछा।

एक अधिकारी ने दूसरे की तरफ इशारा किया, दूसरे ने तीसरे, और तीसरे ने चौथे, और चौथे ने पांचवें की ओर। और इस तरह हर अधिकारी ने एक-दूसरे की ओर उंगली उठा दी।

मुखमंत्री महोदया मुस्काए और उन्होेंने कोसी की तरफ इशारा कर दिया।

‘‘जब बोलो जय-जय कोसी माता।’’

(6)

मुखमंत्री महीने में एक उद्घाटन नहीं करते तो तबियत खराब होने लगती है। इधर हेलीकॉप्टरवा से छुट्टी ही नहीं मिल रही है। रोज दो-चार कस्बा-गांव डूब जाता है। दौरा होता है। उद्घाटन हो तो कैसे हो मुखमंत्री ने सोचा हेलीकॉप्टरवा में ही उद्घाटन कर देंगे। अधिकारियों ने कहा कि उद्घाटन का पत्थर नीचे गिरा दिया जाएगा। जनता ताली बजाएगी।

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में उद्घाटन देखने हजारों लोग आए क्योंकि घोषणा की गई थी कि उद्घाटन के बाद राशन भी मिलेगा।

निश्चित समय पर हेलीकॉप्टरवा आया। मंत्री ने भाषण दिया और उद्घाटन को शिला नीचे गिरा दी गई। वह भारी पत्थर ताली बजाते लोगों पर गिरा। वे उसके नीचे दबकर मर गए। फिर राशन के बोरे गिराए गए जिन्हें लेने वाला कोई न था। मंत्री महोदय ने कहा, ‘‘यही तो डेमोक्रेसिया है भइया।’’

(7)

‘‘मुखमंत्री जी, बाढ़-पीड़ितों को विरोधी दल वाले आज दही-चूड़ा खिला रहे हैं।’’

‘‘तो कल हम दूध-जलेबी खिलाएंगे।’’

‘‘परसों वे हलवा-पूड़ी खिलाएंगे।’’

‘‘तो हम रसगुल्ला-गुलाबजामुन खिलाएंगे।’’

‘‘तो हम एक सौ आठ भोज खिलाएंगे।’’

‘‘इससे तो बाढ़ पीड़ित मर जाएंगे।’’

‘‘भइया यही तो डेमोक्रेसिया है।’’

(8)

बाढ का पानी उतर नहीं रहा। बाढ़-पीड़ित बाढ़ में फंसे पड़े हैं। लगता है सब कुछ किसी छपे हुए चित्र में बदल गया है। लोग अपने-अपने बच्चों को कन्धों पर उठाए, सामान लादे, भूखे, परेशान, बेघर-बार खड़े हैं। चारों तरफ बाढ़ का पानी है जो उन्हें खा जाने कि लिए तैयार है।

इस ठहरे हुए दृश्य में एक हलचल होती है। मतलब दृश्य चलायमान हो जाता है। नदी की तलहटी में से मुखमंत्री निकलते हैं। फिर नदी की तलहटी में से प्रधानमंत्री जी निकलते हैं। बाढ़ का पानी बढ़ने लगता है और बाढ़-पीड़ितों की नाक तक आनेवाला है। इसी बीच मुखमंत्री कहते हैं, ‘‘बाढ़ रोकना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है।’’

प्रधानमंत्री बोले, ‘‘नदी आपके राज में है कि हमारे केन्द्र में है’

मुखमंत्री ने कहा,‘‘संसद तो वहीं है...!’’

प्रधानमंत्री, ‘‘संविधान बनाने वाले जानते थे, बार-बार आती रहेगी बाढ़ और आप केन्द्र को परेशान करते रहेंगे। यही कारण...’’

मुखमंत्री, ‘‘आप इसे परेशानी कहते हैं। हम तो कहते हैं साल भर बाढ़ रहे। जनता की सेवा करने का मौका मिलता रहे। मुखमंत्री कोष में पैसा आता रहे।’’

पानी बढ़ता रहा। नाक के ऊपर चला गया। दृश्य में कितने लोग थे सब डूब गए।

प्रधानमंत्री बोले, ‘‘देखा आपने। आप बेबात की बात करते रहे और जनता डूब गए।’’

मुखमंत्री ने कहा,‘‘आप संविधान की चर्चा कर रहे थे। बता रहे थे कि यही डेमोक्रेसिया है।’’

(9)

आपदा मुखमंत्री से मिलने आई। साथ में सौ-पचास टोकरा मिठाई लाई, मुखमंत्राइन के लिए साड़ी, कपड़ा-गहना लाई, बच्चों के लिए खिलौना लाई। मुखमंत्री के साले के लिए हल्के वाले मिठाई के डिब्बे लाई। मुखमंत्री के लिए चार-पांच हेलीकॉप्टरवा लाई।

आपदा मुखमंत्री के ऑफिस में बैठ गई। मुखमंत्री चाय-वाय पिलाने के बाद बोले, ‘‘बहन जी हर साल आ जाया करो। तुम नहीं आती हो तो बड़ा सन्नाटा रहता है। विकास फंड ही खर्च नहीं हो पाता और कोई क्या कहे।’’

‘‘हर साल आना तो कठिन है भइया। देश में दूसरे मुखमंत्री भी बुलाते रहते हैं। अब जिसके यहां न जाओ, बुरा मानता है।’’

‘‘ठीक है बहन, हम समझते हैं। आपके ऊपर पूरे देश की जिम्मेदारी है।’’

रात में मुखमंत्री ने प्रधानमंत्री से कहा,‘‘आपदा से राज को जो हानि हुई है उसकी भरपाई करने के लिए दस हजार करोड़ रुपया चाहिए होगा।’’

‘‘इतना पैसा तो आपको नहीं मिले रुकेगा।’’

प्रधानमंत्री तोते जैसे बोले।

‘‘काहे खजाने में पैसा तो है।’’

‘‘अरे है तो पर आपको न मिलेगा।’’

‘‘अरे तो पैसा किसने लिए है’मुखमंत्री चिढ़कर बोले।

‘‘चंदवा के ऊपर जाने कि लिए रखा है।’’ प्रधानमंत्री चहककर बोले।

‘‘चंदवा’

‘‘हां, अगले वर्ष हम, मतलब भारत सरकार चांद पर राकेट भेज रही है। उसके लिए पचास हजार करोड़ रखा है।’’

‘‘तो आप चंदवा पे चले जाइएगा।’’ मुखमंत्री ने व्यंग्य किया।

‘‘अरे हम तो रहते ही चंदवा में हैं। अपनी सोचिए। यही तो डेमोक्रेसिया है।’’ प्रधानमंत्री बोले।

(10)

मुखमंत्री का हेलीकॉप्टर एक गांव के ऊपर उड़ रहा है। पूरा गांव पानी में डूबा हुआ है। एक कच्चे घर की छत पर एक किसान, और उसका पांच-छह साल का बेटा बैठे हैं। सामने दो-तीन मुर्दा जैसी औरतें और आदमी पड़े हैं। मुखमंत्री दूरबीन से गांव के एक घर की छत का यह दृश्य देख लेते हैं। नीचे किसान और उसका बेटा हेलीकाप्टर को देखकर खड़े हो जाते हैं। और हाथ हिलाते हैं।

‘‘ये आप नीचे क्या देख रहे हैं।’’ मुखमंत्री ने अपने सचिव से पूछा।

‘‘सर हम तो आपका बयान टाइप कर रहे हैं।’’

‘‘अरे ओ तो नीचे देखिए।’’

‘‘सर लगता है, पिता और पुत्र बचे हैं। बाकी परिवार मर चुका है।

‘‘अरे ये तो हम भी देख रहे हैं। अब कुछ बताइए’ मुखमंत्री बोले

‘‘क्या सर’

‘‘हम एक रोटी फेंके तो आप-बेटे तक पहुंच जाएगी’ मुखमंत्री ने पूछा।

‘‘हवा तेज चल रही है। रोटी इधर-उधर चली जाएगी।’’

‘‘फिर हम क्या फेंके कि इन तक चला आए।’’

मुखमंत्री के सामने प्लेट में चिकन की हड्डियों का ढेर लगा था। उसे देखकर सचिव बोला, ‘‘सर हड्डियां फेंक दें तो उन लोगों तक पहुंच जाएंगी।’’

‘‘अरे फेंकना क्या, हम ही हड्डियां देकर आते हैं। चुनाव में एक वोट तो पक्का हो ही जाएगा।’’

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. बहुत उम्दा एक से बढ़्कर एक पढ़े और खुश होलें ।

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  2. प्रिय रवि जी वरिष्ठ साहित्यकार असग़र वजाहतजी की ढेरों रचनाएँ एकसाथ प्रकाशित कर आपने नेक काम किया.उनका एवं आपका आभार.उनकी समस्त रचनाएँ वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर सशक्त व्यंग्य है.

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असगर वजाहत की लघुकथा श्रृंखला–मुखमंत्री और डिमोक्रेसिया
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