पिछली किश्तें – 1 | 2 | 3 | 4 | द्दिनांक 26 मई 2014 सुबह के वही आठ बज रहे हैं. होटेल कालोडाइन सूर मेर के प्रांगण में तीन बसे लगाई...
पिछली किश्तें – 1 | 2 | 3 | 4 |
द्दिनांक 26 मई 2014
सुबह के वही आठ बज रहे हैं. होटेल कालोडाइन सूर मेर के प्रांगण में तीन बसे लगाई जा चुकी हैं. आज हमें टामारिन्ड वाटर-फ़ाल ( tamarind waterfall ), ट्राउ आक्स सर्फ़्स( Trou aux cerfs) ज्वालामुखी, चामरेल कलर्ड अर्थ( chamarel coloured earch) तथा गंगा तालाब देखने के लिए जाना है. हमारी बस गन्ने के खेतों के बीच से गुजरती हुई,उस ओर बढ चली थी.
टामरिन्ड वाटरफ़ाल (Tamarind waterfalls) चारॊं ओर ऊँचे-ऊँचे पहाडॊं की श्रूखला, सघन वन और चारों तरफ़ हरियाली की बिछी चादर, शांत वातावरण में बहुरंगे पक्षियों के कलरव को सुनकर आप प्रसन्न्ता से भर उठते है. शीतल हवा के झोंके आपके बदन से लिपट-लिपट जाते हैं. इस सुरमयी वातावरण में पहुँचकर ऎसा लगता है कि आप किसी परिलोक में आ पहुँचे हैं. मारीशस के दक्षिण-पश्चिम में स्थित “हेनरिटॊ” गाँव ( Henrietto) के पास स्थित यह जलप्रपात काफ़ी ऊँचाइयों से नीचे गिरता है.काफ़ी बडी संख्या में पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं. जी भर इस प्रपात को निहारने के बाद हमारी बस ट्राउ आक्स सर्फ़्स (Trou Aux Cerfs) की ओर बढती है.
Trou aux cerfs (ट्राउ आक्स सर्फ़्स ज्वालामुखी)
यहाँ पहुँचने के बाद आप अपने आपको खुली वादियों में पाते हैं. चारॊं तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पहाड, सघन वृक्षों से आच्छादित, नीले आकाश की आगोश में समाई अपरिमित खामोशी, शीतल हवा के झोंके जो आपके शरीर से लिपट-लिपट जाते हैं. मन प्रसन्नता से भर उठता है. करीब दो हजार फ़ीट गहराई में झांकने में एक बडा का गढ्ढा दिखलाई पडता है, कहते हैं यहीं पर कभी ज्वालामुखी धधका था. एक बडा सा घेरा दिखलाई देता है. बताते हैं कि यह 80 मीटर गहरा और 300-350 फ़ीट चौडा है. काफ़ी दिनों तक धधकते रहने के बाद यह ज्वालामुखी शांत हो गया. भूगर्भ शास्त्रियों का कहना है कि भविष्य में फ़िर सक्रीय हो सकता है. इस अद्भुत नजारे को देखने के बाद हम उस ओर बढते हैं जहाँ एक और ज्वालामुखी भडका था और उसमें से निकलने वाला लावा ठंडा होकर एक बहुत बडॆ भूभाग में फ़ैला हुआ है, जिसके सात रंग अलग दिखलाई पडते हैं.
चामरेल कलर्ड अर्थ (chamarel colourd earth) =Riviere जिले स्थित इस अजूबे का नाम चार्ल्स अटिंनियो दि छाजेल दि चामरेल ( Charles Antoine de chazal de Charmaarel )के नाम पर रखा गया है. बताते हैं कि यहाँ कभी ज्वालामुखी धधका था, जो अब शांत हो चुका है, से लावा बह कर चारों तरफ़ फ़ैल गया ,जो अब ठॊस चट्टान के रुप में सात अलग-अलग रंगों में इसकी परतें देखी जा सकती है. दुनिया का यह एकमात्र स्थान है, जहाँ मिट्टी के सात रंग स्पष्ट देखे जा सकते हैं. पास ही में एक विशाल बागीचा है,जिसमे रंग-बिरंगे फ़ूल खिलते है, जो एक अनूठा वातावरण निर्मित करता है. इस बगीचे में दो कछुए देखे जा सकते है. उनके आकार-प्रकार को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी उम्र लगभग पचास साल की हो सकती है. दुनिया का अजूबा होने के कारण यहाँ विभिन्न देखों के पर्यटक इसकी छटा देखने आते हैं.
चित्र बाएं से दांए= गंगा तालाब=(१) गंगातालाब पारिसर में मित्रों के साथ(२) गंगातालाब का विहंगम दृष्य(३)108फ़ीट ऊँची शिव प्रतिमा (४)शिवालय(५) मंदिर परिसर में भगवान सूर्य की प्रतिमा (६) मंदिर परिसर में राधा-कृष्ण (७) भारत के बाहर विश्व का तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग (८) ज्योतिर्लिंग होने संबंधित शिलालेख
गंगा तालाब
समुद्र सतह से लगभग 1900 फ़ीट की उँचाई पर स्थित गंगा तालाब सावान्ने (Savanne) जिले में ट्रिओलेट( Triolet) गाँव में स्थित है. इस तालाब को कभी “परी तालाब” के नाम से जाना जाता था, जिसे बदलकर “गंगा- तालाब” कर दिया गया. इसके पीछे एक दिलचस्प वाक्या है. सन 1897 की महाशिवरात्रि के पावन-पर्व पर झम्मनगिरि गोसाग्ने पाल मोहनप्रसाद ने एक सपना देखा कि कि “जानव्ही” का अवतरण इस तालाब में हो गया है. उन्होंने अपने सपने के बारे में यहाँ के पंडित गिरि गोसांई के बतलाया. इसके ठीक पश्चात शिवरात्रि के पावन पर्व पर (1898) परीतालाब का नाम बदलकर “गंगा-तालाब” कर दिया गया. कहते हैं कि इस तालाब की अपरिमित गहराई है, जिसे अब तक कोई नाप नहीं पाया.है.
गंगातालाब की ओर जाने से पूर्व एक बागीचे में 33 मीटर अर्थात 108 फ़ीट की शिव-प्रतिमा स्थापित की गई है. बडौदरा(गुजरात-भारत) के सूरसागर झील में 108 फ़ीट ऊँची शिवप्रतिमा सन 2007में स्थापित की गई थी, उसी के तर्ज पर यहाँ भी 108 फ़ीट ऊँची शिव-प्रतिमा की स्थापना की कल्पना को साकार किया गया है. इसी शिव प्रतिमा के समीप ही एक माँ दुर्गा भवानी की एक सौ आठ फ़ीट उँची मुर्ति बनाई जा रही है. संभव है कि वह आने वाले साल तक बन कर तैयार हो जाएगी.
गंगातालाब के किनारे एक भव्य मंदिर की स्थापना की गई है,जिसमें विराजित शिवलिंग की गिनती भारत से बाहर तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग माना गया है. एक पट्ट पर इस आशाय का उल्लेख किया गया है.मंदिर के प्रागण में शेषनाग मंदिर,श्री विष्णु-लक्षमी मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर,सूर्यदेव की विशाल प्रतिमा( रथ पर आरुढ प्रतिमा, जिसमें सात घोडॆ जुते हुए हैं), श्री साईं प्रतिमा, श्री हनुमानजी की मुर्ति. स्थापित है. इस मंदिर के आहते से लगकर गंगातालाब है, जो इस मंदिर की शोभा में चार चाँद लगाता है. तालाब का पानी निर्मल-साफ़ देखा जा सकता है.
मारीशस में तीन सौ सनातन मन्दिर हैं. हर त्योहार यहाँ बडी धूमधाम से मनाया जाता है. शिवरात्रि के पावन पर्व पर तो भारत के अनेक लोग मारीशस पहुँचते हैं और तेरहवें ज्योतिर्लिंग की पूजा०अर्चना कर अपने को धन्य मानते हैं. रामायण यहाँ बहुत लोकप्रिय है. केवल हिन्दी ही नहीं लगभग सभी भारतीय भाषाओं में स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा उपलब्ध है. अब तक लगभग पचास हजार विध्यार्थी हिन्दी और तीन हजार विध्यार्थी संस्कृत की पढाई कर चुके हैं. सन 1834 में लगभग 70 हिन्दुओं का एक जत्था ठेके पर मजदूरी करने के लिए मारीशस पहुँचा था. 1930 में भारतीयों का अंतिम जत्था यहाँ पहुँचा. 1834-1930 के मध्य चार लाख पचास हजार मारतीय मूल के लोग मारीशस पहुँचे, जिनमें से एक लाख सत्तर हजार वापस भारत लौट गए. जो यहाँ रच-बस गए थे,उनके पास केवल तन पर कपडॆ और मन-मस्तिष्क में भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान का भण्डार था, उन्होंने अपनी इस विरासत का फ़ैलाव किया,और इस तरह हम देखते हैं कि मारीशस की धरती पर बसने वाला हर आदमी अपने आपको भारतवंशी कहलाने से पीछे नहीं रहता. हालांकि मारीशस की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है, इसलिए यहां का सारा प्रशासनिक कामकाज अंग्रेजी में होता है. शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी के साथ फ़्रांसीसी का भी इस्तेमाल किया जाता है. फ़्रांसीसी भाषा हालांकि मीडिया की मुख्य भाषा है, चाहे वह प्रसारण की हो या मुद्रण की इसके अलावा व्यापार और उद्धोग के मामलों में भी मुख्यतः फ़्रांसीसी ही प्रयोग में आती है.सबसे व्यापक रुप में देश में मारीशियन “क्रेयोल” भाषा बोली जाती है. जब कोई हिन्दुस्थानी यहाँ के निवासियों से हिन्दी में बात करता है तो वे फ़र्राटे से हिन्दी में आपसे बोलते-बतियाते हैं. प्रायः सभी के नाम भारतीय परम्परा के अनुसार रखे जाते हैं. शायद यही कारण है भारत से बडी मात्रा में लोग मारीशस पहुँचते हैं.
प्रकृति के अद्भुत नजारों और भारतीयों की यश-गाथा को देख- सुनकर हम अत्यंत प्रफ़ुल्लित मन से वापिस लौटते हैं,फ़िर अगले पडाव की ओर अग्रसित होने के लिए
मारीशस में भारतीय संस्कृति को इतना महत्व दिया जाना बहुत प्रसन्ता का विषय है विश्वविद्यालयो में हिंदी में शिक्षा दिया जाना व हिन्दू मंदिरो का बहुतायत में होना जानकर गर्व हुआ .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुश्री सुनीताजी.हमें भी वहाँ जाकर गर्व महसूस हुआ था.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनीताजी
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