(मारीशस माने मिनि भारत की यात्रा - किस्त-1 यहाँ पढ़ें ) दुरन्तो हिचकौले खाती हुई अपनी निर्धारित गति से भागी जा रही थी. नींद देर रात तक आँख...
(मारीशस माने मिनि भारत की यात्रा - किस्त-1 यहाँ पढ़ें)
दुरन्तो हिचकौले खाती हुई अपनी निर्धारित गति से भागी जा रही थी. नींद देर रात तक आँखों से आँखमिचौनी खेलती रही और फ़िर चुपके से, न जाने कब, आकर समा गई, पता ही नहीं चल पाया. मेरा और कोरीजी के कोच अलग-अलग थे क्योंकि उन्होंने अपनी बर्थ का आरक्षण किसी अन्य तिथि में किया था. बडी सुबह आकर उन्होंने ने मुझे जगाया और कहा कि हम मुंबई के करीब पहुँच चुके हैं. कुछ समय बाद हम छत्रपति शिवाजी टर्मिनल स्टेशन पर जा पहुँचे. दुरन्तो ( नानस्टाप)नागपुर से रवाना होकर सीधे मुंबई सीएसटी पहुँचती है.
यहाँ उतरने के बाद श्री कोरी टिकिटघर पहुँचे. वहाँ से उन्होंने दादर का टिकिट लिया और अब हम उस ओर बढने लगे .दादर स्टेशन पर पहुँचने के बाद हमे बडी बेसब्री से श्री संतोष परिहार का इंतजार था,जो किसी अन्य ट्रेन से बुरहानपुर से आ रहे थे. कुछ इन्तजारी के बाद उनसे भेंट हुई. हमने सबने चाय पी और दादर में एक कमरा बुक करवाया. नहाने के बाद कोरीजी और मैं “एलिफ़ैण्टा केव” देखने के लिए निकल पडॆ. परिहारजी ने इसमें अपनी असहमति जताते हुए सूचना दी कि वे हमारे साथ नहीं जा पाएंगे,क्योंकि पूरी रात वे ढंग से सो नहीं पाए थे.
दादर स्टेशन से हम पुनः सी.एस.टी. पर थे. कभी यह इमारत विक्टोरिया टर्मिनल के नाम से जानी जाती थी. बाद में सन 1996 में इसका नाम बदलकर सीएसटी याने छत्रपति शिवाजी टर्मिनल कर दिया गया. सन 1887 में ब्रिटिश वास्तुकार फ़्रेडरिक विलियम स्टेवन्स में इस भव्य इमारत का निर्माण करवाया था.
वहाँ से बाहर निकलते ही हमें राज्य परिवहन की बस मिल गयी जो गेट-वे-आफ़-इण्डिया जा रही थी. गेट-वे-आफ़-इण्डिया यहाँ से करीब 2.5किमी की दूरी पर है.
अरब सागर के तट पर इस भव्य इमारत का निर्माण जार्ज पंचम तथा क्विन मेरी के प्रथम आगमन मार्च 1911 की याद में बनाया गया था. इसकी निर्माण सन 1914 में शुरु हुआ और यह सन 1919 में बनकर तैयार हो गयी. यहाँ से करीब दस किमी की दूरी पर “एलिफ़ैण्टा केव” स्थित है, बोट की सहायता से जाया जा सकता है.
पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य पहाड को छेनी-हतौडी अथवा अन्य उपकरणॊं की सहायता से इसे अनाम व्यक्तियों ने बनाया, इसे देखकर सहज ही अंदाजा हो जाता है कि इसका निर्माणकर्ता निश्चित ही भू-गर्म वैज्ञानिक रहा होगा, जिसने पहाड के मध्य एक ठोस चट्टान को ढूँढ निकाला और अपनी कला को प्रदर्शित कर सका. यहाँ हिन्दू धर्म से संबंद्धित अनेक शिव मूर्तियों को विभिन्न मुद्राओं में देखा जा सकता है. इन्हें धारापुरी ची लेणी के नाम से भी जाना जाता है..यह कभी कोकणीं मौर्य की द्वीप राजधानी हुआ करती थी. बाद में आक्रमणकारियों ने इन शानदार मुर्तियों को बडी बेरहमी से तॊड-फ़ोड डाला. अपने समय में ये मुर्तियाँ कितनी सुन्दर और वैभवशाली रही होंगी,इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
शाम ढलने से पहले हम लौट आए थे. रात्रि का खाना खाकर हम टैक्सी द्वारा छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जा रहे थे.
विश्व का अडतालिसवाँ एवं ,ग्यारह हजार साठ हेक्टेयर में फ़ैले इस विशाल इंटरनेशनल एअरपोर्ट का पुराना नाम इंटरनेशनल एअरपोर्ट था, जिसे बदलकर छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा कर दिया गया. अपनी भव्यता और सुन्दरता के लिए यह एअरपोर्ट विश्व का तीसरा एअरपोर्ट है. इसकी आधारशिला सन 2006 में रखी गई थी, 2013 में बनकर तैयार हुआ .किसी नाचते हुए मोर की आकृति में बना यह हवाई-अड्डा सहज ही में आपका ध्यान आकर्षित कर लेता है.
मध्य रात्रि तक अलग-अलग प्रदेशों से आने वाले लोग यहाँ पहुँच चुके थे. विमान में सवार होने के पहले काफ़ी कुछ किया जाना होता है. मसलन आपके सामान का वजन, यात्रियों के सीट का निर्धारण आदि निपटाते-निपटाते काफ़ी समय लग जाता है. अब सारे यात्री अंदर लाउंज में बैठकर उस घडी के अन्तजार में रहते हैं,जब उन्हें विमान में सवार होना होता है. सुबह के पांच बजने वाले होते हैं. रात्रि का गहन अन्धकार अब पिघलने लगता है और बाहर का दिलचस्प नजारा दिखाई देने लगता है. इस ओर से उस छोर तक कई विमान पंक्तिबद्ध खडॆ दिखाई देने लगते है. वह समय भी शीघ्र आ पहुँचा जब हम विमान में सवार होने जा रहे थे. मारीशस के विमान क्रमांक MK-748 में मुझे 15-G वाली सीट मिली.ठीक मेरी बगल में श्री कोरीजी की सीट थी, जहाँ लगी खिडकी से बाहर का नजारा देखा जा सकता था. कोरीजी
कि यह पहली विमान यात्रा थी. अतः वे काफ़ी प्रफ़ुल्लित नजर आ रहे थे. तभी पायलट की आवाज गूंजती है और सभी से कहा जाता है कि वे अपनी-अपनी सीट-बेल्ट बांध ले. वह समय भी आ पहुँचा,जब विमान चलते हुए अपने रन-वे की ओर बढ रहा था. अपने स्थान पर पहुँचने के बाद उसके सारे इंजिन अपनी पूरी रफ़्तार के साथ चलायमान होते हैं..थॊडी देर तक रनवे पर दौडते रहने के बाद विमान आकाश में उड रहा था. शुरु-शुरु में नीचे के दृष्य दिखलाई पडते हैं,बाद में केवल और केवल नीला आकाश नजर आता है. खिडकी से विमान का डैना (पंख) भर दिखाई देता है. हवाईजहाज करीब पच्चीस हजार फ़ीट की उँचाई पर उड रहा था. नीचे तैरते काले-कलसीले बादलॊं की परत दिखलाई देती और दिखलाई देती दूर-दूर तक फ़ैली दो नीली पट्टियाँ के बीच बनती एक गहरी नीली पट्टी जो समुद्र और आकाश के बीच के मिलन के प्रगाढ संबंध को दर्शाती है.
इस बीच एअर होस्टेज सभी यात्रियों को बारी-बारी से भोजन, पानी की बोतल आदि सर्व करती हैं. जैसे-जैसे रात्रि का पहर आगे बढता है, कुछ हल्की सी ठंड भी लगने लगती है. सभी यात्रियों की सीट पर हल्का कंबल होता है, जिसका वह इस्तेमाल कर सकता है. हवा के झोंको पर तैरता विमान छः घंटॆ की लम्बी उडान के बाद मरीशस एअर-पोर्ट पर उतरता है. मारीशस समय के अनुसार दिन के ग्यारह बज रहे होते हैं. विमान से बाहर आने पर यात्रियों को एअरपोर्ट की सारी औपचरिकता पूरी करनी होती है,जो काफ़ी लंबे समय तक चलती रहती है. यात्री अब एअरपोर्ट के लंबे रास्ते को पार करता हुआ बाहर आता है. अब उसे अपने सामान की चिंता सताती है. चक्र के आकार में घुमते बेल्ट पर यात्री का सामान जा पहुँचता है.
बाहर एक यात्री बस हमारे इन्तजार में खडी थी. बस में सवार होकर अब हम अपने निर्धारित होटल कालोडाईन सूर मेर की ओर रवाना होते हैं, जो यहाँ से 73.1 किमी की दूरी पर है. दिन के करीब तीन बज रहे थे और सभी को जमकर भूख लग आयी थी.
रास्ते में पडने वाले “डेल्ही ताज” होटल में हमने स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लिया. मोका और मारीशस की राजधानी पोर्ट-लुई से गुजरती हुई हमारी बस कालोडाईन सूर मेर होटल के प्रांगण में आकर रुक जाती है. इस यात्रा मे करीब देढ घंटे का समय लग जाता है. सभी यात्रियों के अपने-अपने कमरे निर्धारित कर दिए गए थे.
होटल डेल्ही ताज के सामने श्री संतोष पारिहार,शरद जैन और यादव (२)कोलाडाईन सूर मेर होटल
शरीर में आलस और थकान के लक्षण स्पष्ट देखे जा सकते थे. प्रायोजक ने पहले से ही तय कर रखा था कि इस दिन केवल आराम किया जाना है..अतः(23-05-2014) को सभी ने विश्राम किया.
मारीशस में गन्ने की खेती बडॆ पैमाने पर होती है. चारों तरफ़ छाई हरियाली देखकर मन प्रसन्नता से झूम उठता है. आय का मुख्य स्त्रोत यही है.
सम्मानीय श्रीयुत श्रीवास्तवजी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
मारीशस यात्रा किस्त-२ के प्रकाशन पर हार्दिक आभार.
सम्मानीय श्रीयुत श्रीवास्तवजी,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार
मारीशस यात्रा किस्त-२ के प्रकाशन पर हार्दिक आबार.
किस्त २ रोचक व ज्ञानवर्धक है चित्रों से इसका प्रभाव और भी व्यापक रहा.
जवाब देंहटाएंGoverdhan Yatra ji
जवाब देंहटाएंaankhon dekha bayan karte aapne safar mein hamein bhi hamsafar banaya hai..dhanywaad....Is safar ke liye.
Adarneey Goverdhan ji
जवाब देंहटाएंVritant rochak aur baagbahar karta raha....aapka pahala safar Mubark !
अभी तक की यात्रा संतुलित और हसी ख़ुशी से पूर्ण हो रही है ! आपके साथ समझिए मैं भी मॉरीशस की यात्रा पर हूँ
जवाब देंहटाएंkaphi romanchkari sansmaran hai, dhanyabad
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सुनीताजी,देवी नागरानीजी,योगीजी,एवं पंकजकुमार सिंहजी
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