( किस्त 1 यहाँ तथा किस्त 2 यहाँ पढ़ें) गोवर्धन यादव होटल कालोडाईन सूर मेर (calodyne Sure Mer) में प्रवेश करते ही तबीयत खुश हो जाती ह...
(किस्त 1 यहाँ तथा किस्त 2 यहाँ पढ़ें)
गोवर्धन यादव
होटल कालोडाईन सूर मेर (calodyne Sure Mer) में प्रवेश करते ही तबीयत खुश हो जाती है. चारों तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पॆड, सघन हरियाली,,और इन सब के बीच चौरासी सूट्स, हर सूट के सामने बागीचा,और इन सबके मध्य में एक तरणताल. पास ही लहराता-बलखाता समुद्र, निरन्तर बहती शीतल हवा के झोंके आपके शरीर लिपट-लिपट जाते हैं. सारे कमरे एसीयुक्त. प्रत्येक सूट में तीन शयन-कक्ष, एक हाल, हाल से लगा किचन. पाँच लोगों का परिवार एक सूट में रुक सकता है.
रात को को सभी ने लजीज खाने का आनन्द उठाया और अपने-अपने कमरों में समा गए. सोने से पहले सभी को सूचित कर दिया गया था कि सुबह सभी आठ बजे के पहले तैयार होकर चाय-नाश्ता करने के बाद “आक्स सर्फ़्स”(Aux Cerfs) माने एक टापू पर जाने वाले हैं.
हम इस टापू पर जाने से पहले मारीशस के बारे में संक्षिप्त जानकारियाँ लेते चलें तो अच्छा होगा.
( ऊपर से देखने पर ऎसा दिखाई देता है) ( मारीशस का नक्शा)
गणराज्य अफ़्रीकी महाद्वीप के तट के दक्षिण-पूर्व में लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर हिंदमहासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक द्वीपीय देश है. मारीशस द्वीप के अतिरिक्त इस गणराज्य में सेंट ब्रैडन,राडीगाज और अगालेगा द्वीप भी शामिल है. दक्षिण-पश्चिम में 200 किमी पर स्थित फ़ांसीसी रीयूनियन द्वीप और 570 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित राडीगज द्वीप के साथ मारीशस मस्कारेने द्वीप समूह का हिस्सा है. मारीशस की मिश्रित संस्कृति है.,जिसका कारण पहले इसका फ़्रांस के अधिन होना तथा बाद में ब्रिटिश स्वामित्व में आना है. पुर्तगाली नाविक पहले पहल यहाँ 1507 में आए. बसे और छोड कर चले गए. 1598 में हालेंड के तीन पोत जो मसाला द्वीप की यात्रा पर निकले थे, एक चक्रवात में फ़ंसकर यहाँ पहुँचे. उन्होंने इस द्वीप का नाम नासाओं के युवरात “मारिस” के नाम पर इस द्वीप का नाम “मारीशस “रखा सन 1668 में डच लोगो ने स्थायी बस्तियाँ बसाई.और फ़िर कुछ समय के अन्तराल में इस द्वीप को छॊड दिया. फ़ांस जिसका पहले से ही इसके पडौस “आइल बोरबोन” द्वीप पर नियंत्रण था, ने 1715 में फ़िर से मारीशस पर कब्जा कर लिया. इस तरह यह द्वीप एक समृद्ध अर्थव्यवस्था के रुप में विकसित हुआ जो चीनी उत्पाद पर आधारित थी.
मारिशस ने 1968 में स्वतंत्रता प्राप्त की और सन 1992 में एक गणतंत्र बना .मारीशस एक संसदीय लोकतंत्र है,जिसकी संरचना ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है. यहाँ स्थिर लोकतंत्र है. चुनाव पांच साल में नियमित और स्वतंत्र होते हैं यह नौ जिलों में विभाजित है.
सन 1834 में भारत से 70 यात्रियों का जत्था यहाँ गिर्मिटिया मजदूर के रुप में पहुँचा. 1834-1930 तक यहाँ चार लाख पचास हजार भारतीय मूल के लोग पहुँचे, जिसमें 52 प्रतिशत हिन्दू,15 प्रतिशत मुसलमान तथा 25 प्रतिशत ईसाई तथा अन्य जाति के लोग आए. सन 1886 तक इन भारतीय़ॊं का लोकतांत्रिक चुनाव में भाग लेना वर्जित था. बाद में सन 1901 में महात्मा गांधीजी का यहाँ आगमन होता है. वे नौशेरा जहाज पर सपरिवार यहाँ कुछ दिन रुके थे. उसके बाद से भारतीयों का राजनीति में प्रवेश हुआ और इस तरह 1948 में25 में से 19 भारतीय निर्वाचित हुए. यहाँ कि अधिकारिक भाषा अंग्रेजी है. मिडिया की भाषा फ़ांसीसी है.लेकिन स्थानीय़ बोली “क्रेयोल”(CREOLE) में जनसाधारण लोग बात करते हैं. चूंकि यहाँ के लोग मूलरुप से भारतीय हैं,अतः वे आपस में हिन्दी ही बोलते है. सारे लोगो के नाम भी भारतीय पद्दति से रखे जाते हैं. यहाँ पर प्रसिद्ध “गंगा तालाब” और अनेक मंदिर, मस्जिद,पगोडा आदि देखे जा सकते हैं. प्रख्यात लेखक श्री गिरिराज जी ने गिरमिटिया मजदूरों पर एक उपन्यास लिखा जिसका नाम “पहला गिरमिटिया” है,जिसमें भारतीय मूल के लोगों पर लिखा गया प्रसिद्ध उपन्यास है. इस उपन्यास के कुछ अंश पढने के बाद मन में एक जिज्ञासा जागती है और मैं इस मौके के तलाश में बना रहा कि देर-सबेर ही सही, मैं इस द्वीप की यात्रा जरुर करुँगा.
“ “आक्स सर्फ़्स”(Aux Cerfs)
यह विश्व का सबसे सुदरतम द्वीप है जिसे “धरती पर स्वर्ग” के नाम से जाना जाता है. मारीशस के पूर्वी तट पर यह द्वीप “flacq जिले में स्थित करीब 100 हेक्टयर में फ़ैला हुआ है. “पन्ने” के सदृष्य दिखाई देने वाले इस द्वीप के छिछले रेतीले किनारे, स्वच्छ-निर्मल जल, जिसमें गहराई तक देखा जा सकता है, किनारों पर मूंगे के सदृष्य चमकीले पत्थर, कहीं कहीं एकदम काले पत्थरों के बीच लहलहाते सागर का रुप देखते ही बन पडता है. इसके तट पर अनेक रेस्टारेंट देखे जा सकते हैं. यहाँ 18 गोल्फ़ कोर्स के मैदान है. अनेक देशों के लोग यहाँ सैर करने के लिए आते हैं. यहाँ पानी में खेले जाने वाले अनेकों गेम खेले जाते हैं. यह द्वीप समुद्र-तट से यह करीब 4-5 किमी की दूरी पर है. यहाँ पहुँचने के लिए आपको बॊट का सहारा लेना पडता है. रास्ते में छिटॆ-छोटे निर्जन द्वीप, घने जंग्लो से आच्छादित दिखलाई देते हैं. आश्चर्य तो उस समय होता है जब हम लंबे सैर-सपाटे के बाद समुद्र तट पर पहुँचे तो छिन्दवाडा के ख्यातिलब्ध वकील श्री सिरपुरकरजी से हमारी भेंट हो जाती है. वे भी अपने पारिवरिक-मित्रों के साथ यहाँ आए हुए थे. और एक विशाल वृक्ष की सघन छाँह तले, एक विशाल शिलाखण्ड पर बैठे बतिया रहे थे. एक अजनबी टापू पर जब अपने किसी स्थानीय व्यक्ति को देखते हैं तो प्रसन्नता का पारावार बढ जाता है. ( चित्र क्रमांक 4 में वे हमारे बीच उपस्थित हैं)
यहाँ पर घूमते-विचरते शाम के चार कब बज गए,पता ही नहीं चला.इस अद्भुत द्वीप आकर बहुत अच्छा लगा. हमारे साथ हमारी गाइड सुश्री श्वेताजी भी थीं,जो इस द्वीप के बारे में विस्तार से बताती चलती थीं. अब हमें इन्तजार था किसी बोट का, जिस पर सवार होकर पुनः हमें अपने गंतव्य की ओर जाना था. यहाँ आकर जाना कि द्वीप कैसे होते हैं. कक्षा 9वीं अथवा 10वीं में हमारे कोर्स में “ट्रेजर्स आईलैण्ड”कोर्स में था,जिसके रोमांचक कारनामे पढने को मिले थे. यहाँ कोई खजाना तो नहीं था,लेकिन एक द्वीप की कल्पना,जो उस समय मन-मस्तिस्क पर अंकित हुई थी, यहाँ आकर देखने को मिला.
(क्रमशः अगले किस्तों में जारी…)
सम्मानीय श्रीयुत श्रीवास्तवजी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
इस कडी के प्रकाशन के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आशा है, सानन्द-स्वस्थ हैं
मारीशस की यात्रा के विषय में पढ़ना आनंददायक लगा .
जवाब देंहटाएंउत्तम आलेख |
जवाब देंहटाएंआपका मारिशस का यात्रा संस्मरण पढ़कर अच्छा लगा. विवरण रोचक है.
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वर्णन रहा आपका गोवेर्धन जी ! बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं आप और श्री रविशंकर श्रीवास्तव जी , जिनके अथक प्रयासों से हम आपके इस यात्रा संस्मरण को पढ़ सके