‘ VEGETARIANS ONLY ’ - स्कै बाबा (vegetarians only भारतीय जातिवादी मानसिकता को दर्शाने वाली महत्वपूर्ण कहानी है । इसका अंग्रेज़ी में भी...
‘VEGETARIANS ONLY’
- स्कै बाबा
(vegetarians only भारतीय जातिवादी मानसिकता को दर्शाने वाली महत्वपूर्ण कहानी है । इसका अंग्रेज़ी में भी अनुवाद हुआ है तथा आंध्रप्रदेश, यानि आज के तेलंगाना के बी.ए., के पाठ्यक्रम में रखा गया है । )
चलते-चलते पैर दर्द करने लगे थे । तलवों में जलन शुरु हो गयी थी । सुबह आए थे इस बस्ती में एक के बाद एक सारी गलियाँ घूम लीं । हर एक To Let बोर्ड लगे घर को खटखटाया ।
यहाँ और बहुत सारी गलियाँ हैं । मेइन बाज़ार के दायीं और बायीं ओर की गलियों में ढूँढना ख़त्म हो गया था । हमें तीन घरों में से एक घर बहुत अच्छा लगा । जैसा घर हम चाहते थे वह वैसा ही था । 1500 रुपए किराया था । एक कमरा, छोटा सा किचन, काफ़ी है...... इतने बड़े हैदराबाद में हम दोनों के रहने के लिए । मकान मालिक ने दो महीने का किराया अडवांस में देने के लिए कहा था । पहले एक महीने का अब देंगे । घर में उतरने के बाद बाक़ी पैसे दे देंगे सर कहने से ठीक है कहकर मकान मालिक मान गया ।
हम दोनों ने राहत की सांस ली । तीन हज़ार अभी से निकालना हमारे लिए बहुत मुश्किल था । जेब में 1500 ही थे । मकान मालिक ने मान लिया है तो अभी दे देना ही ठीक होगा शायद, वरना कोई आकर अडवांस दे देगा तो सब किए कराए पर पानी फेर जाएगा । हम दोनों भी इस बात को लेकर सोच रहे थे ।
1500 मकान मालिक को दे दिया । पैसे लेकर गिनते हुए उसने पूछा– ठीक है ! आप लोग कब आएंगे ?
मैंने कहा– आज ही शाम में थोड़ा सामान लाएंगे सर ।
‘ठीक है !’ कहते हुए घर के अंदर जाते-जाते उसने पूछा ‘क्या नाम बताया?’
थोड़ी देर के लिए हम सकते में आ गए । एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । पता नहीं क्यों मेरा मन बुझ सा गया । उस थोड़े से समय में मुझे लगा- काश कि मेरा नाम एक रमेश या राजेश होता तो कितना अच्छा होता । क्या करें कुछ नहीं किया जा सकता –
‘युसुफ़ !’ मैंने कहा ।
मेरा नाम सुनकर मकान मालिक को जैसे बिजली का झटका सा लगा और वह सीड़ियों पर जाते-जाते यूँ ही खडा रह गया ।
‘क्या कहा ?’
‘युसुफ़ है !’ मैंने कहा । मेरी समझ में आ गया, यह घर भी क्यांसल ।
‘मुसलमान है ?’ मेरी तरफ़ मुडकर अविश्वास भरी आवाज़ में उसने कहा ।
‘जी हां ।’ लेकिन आपको कोई परेशानी नहीं होगी । मैं जॉब पर चला जाता हूँ । यह तेलुगु में एम.फ़िल. कर रही है.....’ और क्या कहूँ सोच ही रहा था । मुझे लग रहा था कि वह मेरी कही हुई किसी भी बात से संतुष्ट नहीं हो रहा है । उसको संतृप्त करने वाली बातें मैं नहीं कर सकता था ।
‘इतनी अच्छी तेलुगु बोल रहे हो तो मुझे लगा अपने ही लोग होंगे । मुसलमानों को घर नहीं देंगे बाबा ! सॉरी !’ कहते हुए वह रुपए वापिस देने लगा ।
‘सर, आपका घर हमें बहुत अच्छा लगा सर । घूम-घूम कर थक गए हैं सर । हम लोगों से आपको कोई परेशानी नहीं होगी । दोनों पढ़े लिखे हैं न सर । घर साफ़ रखेंगे सर । शाहीन ने दीनता से कहा ।’
‘नहीं अम्मा । मेरे घर वाले नहीं मानेंगे ।’
मैंने कहा - ‘एक बार आपके घर वालों को पूछकर देखिए सर । हमारे बारे में बताइए । आप अपनी मिसस से बात करके देखिए सर...’
मकान मालिक मेरी ओर अजीब सी नज़रों से देखने लगा ।
‘प्लीज़ सर !’ मैंने कहा ।
‘पूछ कर देखूँगा ’ कहते हुए वह अंदर गया ।
गहरी सांस अंदर लेते हुए हम सोच रहे थे कि – आह ! मान जाए तो कितना अच्छा होगा । अंदर से बातों की आवाज़ आ रही थी लेकिन ठीक से समझ में नहीं आ रहे थे ।
धीरे से शाहीन ने कहा- ‘बातों की आवाज़ नहीं आ रही है । इसका मतलब है वह मान गयी होंगी !’
मकान मालिक बाहर आया ।
‘सॉरी बाबा ! नहीं मान रही है ।’ कहते हुए उसने रुपए वापस दे दिए । घर के अंदर जाते समय वह एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
ऐसा लगा जैसे मन में फिर से कांटा सा चुभ गया हो ।
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रुपए जेब में रखकर हम दोनों फिर से घर ढूँढ़ने के लिए चल पड़े । उस बाज़ार के चारों ओर देख लिया लेकिन जैसा घर हम चाहते थे वैसा एक भी दिखाई नहीं दिया । और दो घरों को देखने के बाद अब कोई फ़ायदा नहीं मुसलमान को मुसलमान ही घर देंगे सोचते हुए हम मुसलमानों के मुहल्ले की ओर मुढ़कर चलने लगे ।
चिंतल बस्ती के बारे में, उसकी ख़ूबी के बारे में मेरे दोस्त की कही हुई बातें याद आने लगीं । उसने कहा था कि यहाँ हर धर्म, हर जाति के लोग रहते हैं । साथ ही एकदम टपोरी इलाक़ा भी है । यहाँ सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं ईसाई और यहूदी भी दिखायी देते हैं । देश भर से आए हुए हर प्रांत के लोग यहाँ रहते हैं । यह भी कहा था कि नेपाली लोग इनमें से एकदम अलग नज़र आते हैं । पास ही सब्ज़ी मंडी भी है जिसकी वजह से ऐसा नहीं है कि कोई चीज़ नहीं मिलती हो । हर रविवार को बाज़ार भी लगता है । हर प्रकार के लोग ख़ासकर मज़दूर, कुली आदि ख़रीददारी करने के लिए यहीं आते हैं । इसलिए उस दिन बाज़ार लोगों से खचाखच भरा रहता है ।
यही बातें सोचते-सोचते हम मुसलमानों के मोहल्ले में आ गए । इतने छोटे-छोटे घर थे कि उनसे ग़रीबी झलक रही थी । लग-भग सभी दरवाज़े बंद थे । यहाँ-वहाँ घरों पर परदे गिरे हुए थे । एक नए घर पर ToLet बोर्ड दिखायी दिया । बोर्ड देखकर मानो जान में जान आ गयी ।
घर के दरवाज़े पर जाकर बेल बजायी ।
‘कौन है ? अंदर से मीठी आवाज़ आयी ।
‘ToLet बोर्ड देखकर आए हैं!’
‘थोडा वेइट करिए....’
‘जी!’
थोड़ी देर में मकान मालिक लुंगी बांधते हुए बाहर आया । हम दोनों को देखकर उसको थोड़ा आश्चर्य हुआ ।
मेरी ओर देखते हुए उसने पूछा- ‘क्या करते हैं आप ।’
‘मैं जर्नलिस्ट हूँ । इनु पढ़ रैं (यह पढ़ रही है) हम दोनों ही रहते हैं ।’
‘आप आन्ध्रा वाले हैं क्या ?’
मैंने कहा- ‘ नहीं, ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’
‘आप पर्दा नहीं करते ?!’
मेरी तरफ़ देख ही नहीं रहा था वह, शाहीन की तरफ़ थोड़ी चिड़चिडी नज़रों से देखता रहा ।
‘नहीं’ शाहीन ने सहज रुप में नहीं कह दिया ।
‘क्यों !?’
‘ऐसे ही !’ कहा शाहीन ने ।
‘आप जैसे लोगों को हम घर नहीं देते ।’ लापरवाही से दीवार को लगकर खड़े होते हुए कहा ।
मेरा भी मन किया कि उतनी ही लापरवाही से मैं भी कुछ कह दूँ । एक पल में मैं अपने आप को संभाल लिया । शाहीन भी कुछ कह रही थी कि मैंने उसका हाथ दबा दिया-
‘चलेंगे चलो !’ कहते हुए मैं आगे निकल गया ।
वह आदमी बहुत ही लापरवाही से देख रहा था । मन किया कि उसकी आँखों को, उसकी नज़रों को जला दूँ । हम दोनों इस बेचैनी और ग़ुस्से को मन में दबाए हुए सड़क पर आ पहुँचे ।
शाहीन की थकी हुई हालत देखकर मैंने कहा- ‘कोई फ़ायदा नहीं । हम को मुसलमान भी घर नहीं देंगे । ग़ैर मुसलमानों के घरों की ओर ही जाकर ढूँढ़ना होगा । तुम बहुत थक गयी हो घर चली जाओ । मैं कुछ न कुछ देखकर आ जाऊँगा ।’ कहकर शाहीन को वहाँ से भेज दिया ।
वहाँ से फिर दूसरी ओर चलने लगा । जिस घटना का हम सामना करते हैं वैसी ही मिली-जुली घटना हमें याद आने लगती है । एक दिन हमारे घर पर मेरे हाई स्कूल का बैचमेट, मेरे दूर का रिश्तेदार इब्राहीम आया था । उस वक़्त हम सईदाबाद में रहते थे । रात में खाना खाते समय बातों ही बातों में उसने कहा कि- फिसल बंडा में उसके ससुराल में उनके घर का एक पोर्शन ख़ाली है वहाँ जाकर घर किराए पर पूछेंगे ।
हमने कहा कि ठीक है पूछो हम किराए पर रहेंगे । इसके बाद उसने जो बातें कहीं उसे सुनकर एक झटका सा लगा । उसने कहा कि हमारे ससुराल वाले बुर्क़ा, परदा नहीं करने वालों को घर किराए पर नहीं देंगे । यह बातें सुनकर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई ।
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वहीं पर दूसरा बड़ा बाज़ार है । उस बाज़ार की ओर निकलकर वहाँ से पहली गली की ओर मुड़ा........ एक तरफ़ सारे दो मंज़िला और तीन मंज़िला घर हैं । एक तरफ़ सारे ग्राउंड फ़्लोर के घर हैं । इसका मतलब है यह घर किराए पर नहीं देंगे । इसी गली में आगे जाते-जाते देख रहा था । चौथे घर की दूसरी मंज़िल पर To Let बोर्ड दिखायी देते ही मन में चुस्ती भर आयी ।
गेट के पास खड़े रहकर यहाँ-वहाँ देखा । गेट खोलकर अंदर जाते ही कॉलिंग बेल दिखाई दी । बेल बजाकर पीछे हटकर खड़ा हो गया और ऊपर देखने लगा ।
पहले माले से एक महिला ने बाहर झांकते हुए पूछा- ‘क्या है ?’
‘To Let के बारे में मेडम’ कहते हुए बोर्ड को दिखाया ।
उसने पूछा ‘आप Vegetarian हैं या Non Vegetarian हैं ।’
मुझको उसकी बातों से बिजली का झटका सा लगा । इस तरह के स्ट्रेट क्वेश्चन का सामना करना यही पहली बार है । क्या कहूँ थोड़ी देर तक समझ नहीं पाया । झूठ कैसे कहूँ ? सत्य हरिश्चन्द्र तो हूँ नहीं ।
‘Non Vegetarian मेडम !’ कहा ।
‘सॉरी’ सामने से जवाब ही नहीं मिला साथ ही वह तुरंत अंदर चली गयी ।
अपने आप पर मुझे शर्म आयी । चारों ओर नज़रें दौड़ा कर देखा.... ऊफ़्फ्फ़..... कोई नहीं है सोचते हुए भारी मन से आगे निकल पड़ा........... ।
उस महिला के कहने का क्या मतलब था ? मुसलमानों को नहीं देंगे...? नहीं न... उसका मतलब था किसी भी Non Vegetarian को घर नहीं देंगे । इसका मतलब कौन होंगे वह लोग ? केवल Vegetarian कौन हैं ? केवल Vegetarian तो बहुत कम लोग रहते हैं न......! असल में Non Vegetarian का मतलब कौन है ? मुसलमान पक्के मांसाहारी उसके बाद ईसाई ?.... हो सकते हैं, दलित !..., बी.सी लग-भग सभी । बचे हुए हैं वैश्यास..., ब्राह्मण । हो सकता है यह इन दोनों कम्यूनिटीस में हो । अच्छा तो यह इन दोनों कम्यूनिटी वालों को ही घर देंगे क्या ? औफ़ ओह... । कितने चालाक हो गए हैं लोग । एक सवाल के अंदर कितने जवाब छुपे हुए हैं..... । एक ही लाठी से सभी को हकाल सकते हैं... उफ़्फ़फ़.... ।
एक और To Let बोर्ड दिखायी दिया । बड़ी उम्मीद से देखा- To Let के नीचे और कुछ लिखा तो नहीं है । क्या लिखा होगा सोचते हुए क़रीब जा कर देखा –‘Only Vegetarian !’ बाप....रे यह तो डायरेक्ट स्विच है । पूछ भी नहीं सकते । चले जाओ कह रहा है वह बोर्ड ।
इस गली में कुछ नहीं हो सकता सोचकर दूसरी गली की ओर मुड़ गया ।
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घूम-घूम कर एक छोटी गली को छोड़कर घरों के बीच आकर खड़ा हो गया । यहाँ घर तो बहुत थे लेकिन एक भी बोर्ड दिखायी नहीं दे रहा था । एक चबूतरे पर बैठकर पान खाती हुई बुढ़िया दिखायी दी । उनके पास जा कर पूछा– ‘नानी माँ ! यहाँ किराए पर घर मिलेंगे क्या ?’
‘उस घर में है बेटा ।’ कहकर नानी ने बड़ी आत्मीयता से जवाब दिया ।
उस घर की ओर जाकर दरवाज़ा खटखटाया । बग़ल में एक छोटी सी गेट थी । थोड़ी देर देखकर फिर से खटखटाया । घर के एक कोने में बोरिंग है । कोई आकर प्लास्टिक का घड़ा बोर के नीचे रखकर पानी भरने लगी । बोर हिलाते हुए सर के बाल ठीक करते हुए चिढ़ भरी नज़रों से वह मेरी तरफ़ देख रही थी ।
दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रहे हैं सोचते हुए मैं फिर से दरवाज़ा खटखटा रहा था कि इतने में मायावी पिटारे की तरह दरवाज़ा खुला । गोरी चिट्ठी मकान मालकिन ‘क्या है ?’ का भाव चेहरे पर लिए देख रही थी ।
मैंने कहा- ‘सुना है आपके पास किराए पर कमरा है ।’
उन्होंने पूछा ‘हाँ है ! बैचलर्स हैं ?’
‘जी नहीं, फैमिली, हम दोनों ही रहेंगे ।’
‘नौकरी करते हो ?’
‘जी हाँ’
‘गेट से अंदर आ जाओ’ कहते हुए उसने दरवाज़ा बंद कर लिया ।
‘आह्हहह’ इस महिला ने विश्वास किया । कमरे ठीक-ठाक हो यही काफ़ी है सोचते हुए मैं गेट की ओर चला । गेट खोलकर अंदर जाते ही उसने ऊपर जाने का रास्ता खोला । उसके पीछे ही सीढियां चढ़ने लगा ।
‘अभी कहाँ रहते हो?’ उसने पूछा ।
‘जी...एर्रा मंज़िल, बाला नगर में रह रहे हैं ।’
दरवाज़े का ताला खोलकर ‘देखिए’ कहते हुए एक ओर हट गयी । अंदर जाकर देखा एक ही कमरा है । घर में सिंक भी नहीं है । मैंने यही बात उनसे पूछी । कमरे के एक कोने की ओर उंगली के इशारे से दिखाया कि वहाँ एक मोरी है, उसके ठीक नीचे मोरी की जाली है । वहीं पर धोना-वोना है । दरवाज़े के बग़ल में ही बाथ रूम है । उसके बाद लेट्रीन, मुझे लगा ठीक ही है । फिर से मन में एक डाउट आया– मैंने पूछा ‘यह हम अकेलों के लिए ही है न ।’
उसने कहा- ‘उस ओर और दो परिवार रहते हैं । सब के लिए एक ही बाथ-रूम है ।’
मैंने सोचा- ‘बाप... रे.. । इसका मतलब है, उस ओर रहने वाले बाथ-रूम के लिए, लेट्रीन के लिए वह लोग हमारे कमरे के सामने आएंगे ।..... इसको बर्दाश्त करना मुश्किल ही होगा ।’ लेकिन क्या कर सकते हैं । उस दिन तीस तारीख़ थी, वह घर कल ही ख़ाली करना था ।
उस महिला ने कहा – इस घर के ‘1500’ हैं ।
मैं सोच रहा था कि और कुछ नहीं पूछेगी शायद । अडवांस दो महीने का नहीं कह रही है । ख़ुशी-ख़ुशी सोच रहा था कि किसी भी तरह एडजस्ट कर लेंगे ।
मैंने पूछा - ‘कल आ सकते हैं न ?’
‘कौन हैं आप लोग ?’ आगे-पीछे बिना कुछ सोचे-समझे उसने मुझ से पूछा । सुनने के साथ ही मुझ पर एक बिजली सी गिरी । कौन हैं ? आपका कैसा सवाल है । कोई भी हो इस दुनिया वालों को इससे लेना-देना क्या ? हम सब इंसान हैं कहकर ज़ोर से चीखने का मन किया । लेकिन उस महिला को यह सब कुछ समझ में नहीं आएगा । बेचारी....लगता है इस घर में रेड्डी, और ब्राह्मण नहीं आएंगे । हम रेड्डी हैं कहने के लिए कोई झिजक या तुतलाहट नहीं होगी न.... मुस्लिम कहने के लिए इतनी परेशानी हो रही है...? महार, चमार, धोबी कहना पड़े तो भी इतनी ही परेशानी होगी शायद.....!
‘हम मुसलमान हैं, मेरी पत्नी ने तेलुगु में एम.ए., किया है । आपको कोई परेशानी नहीं होगी ।’ इसके बाद मैं और कुछ कहने वाला था...
‘बड़े का मांस खाते हैं ?’
उस महिला ने एक और बम फोडा । बाप... रे...! इस सवाल का जवाब देना कितना मुश्किल है । फिर भी कहना ही होगा । हाँ खाते हैं कहूँगा तो ज़रूर न कहेगी । अब कैसे ? अब तक तो ज़रूरी है समझकर एक झूठ बोल चुका हूँ । इससे पहले के मकान मालिक ने भी ऐसे ही पूछा था । कोई रास्ता नहीं है सोचकर न मैं सर हिला दिया । वही मुझे चीप सा लगा । इस बात का सही पता चलने पर कितना सुना दिया उन्होंने । फ़ौरन घर ख़ाली करने के लिए कहा । इज़्ज़त की बे इज़्ज़ती हो गयी सारे मोहल्ले में पता चल गया । वह ग्वाले थे । उनमें से एक तो मारने तक के लिए आ गया था । क्या है यह परेशानी, क्यों यह तकलीफ़ उठाएं सोच कर किसी भी मोहल्ले में कितनी भी दूर क्यों न हो, भले ही किराया कितना भी महंगा क्यों न हो, घर बदलना ही पड़ रहा है ।
आज फिर वही सवाल, इस दुनिया के साथ मिलकर चलना कितना मुश्किल है । कुछ भी खाए-पिए इन सबसे लोगों को क्या लेना-देना है..... । छः..!.... अब क्या करें ?!
‘बड़े का मांस कभी कभार खाते हैं । आप मना कर देंगी तो नहीं खायेंगे । हमें घर चाहिए । सुबह से घूम रहा हूँ ।’ मैं दीनता से मिन्नतें करने लगा ।
‘बड़े का मांस खाने वालों को नहीं देंगे ।’ कहकर कमरे को ताला लगा दिया । अब क्या कहूँ समझ नहीं पा रहा था । ऐसे ही खडा रहा । मन मार कर फिर एक बार कहा– ‘आप नहीं खाने के लिए कहेंगे तो नहीं खाएंगे अंटी ।’
छिः.... इस तरह से अपने आपको सरेंडर कर देना ज़रूरी है क्या ?! ‘गाय का मांस सारी दुनिया खाती है मेरी माँ !’ कहने का मन किया ।
वह मेरी तरफ़ एक बार भी नज़र उठाकर देखे बिना सीडियों से नीचे उतरने लगी । कुछ नहीं हो सकता सोचकर मैं भी वहाँ से चलने लगा ।
मुझे लगा कि अब यहाँ के घरों में जाकर पूछना ही बेकार है । यहाँ आते समय जो लड़की बोर से पानी भर रही थी लगता है वह मुझे देखी होगी ।
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सड़क पर आ गया । दूसरी ओर सामने ही एक और गली दिखायी देने लगी । मैं उस ओर गया । सामने ही दो मंज़िला मकान पर To Let बोर्ड लगा हुआ था! जल्दी-जल्दी उस घर के दरवाज़े के पास जाकर देखा दरवाज़ा खुला था । दरवाज़े के पास ही सीढ़ियाँ थी । तभी सीढ़ियाँ उतर कर जाती हुई महिला मेरी ओर इस तरह देख रही थी मानो पूछ रही हो ‘क्या है’ । मैंने पूछा ‘आपने बोर्ड लगाया है कि मकान किराए पर देंगे ।’
‘ऊपर मकान मालिक है पूछ लेना ।’ कहते हुए वह चली गयी । मैं सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर गया । एक भारी भर कम व्यक्ति सामने दिखायी दिया । वह पढ़ा लिखा आदमी लग रहा था ।
‘सर किराए पर कमरा...?’
‘कितने लोग रहेंगे?’
‘पति-पत्नी दोनों ही हैं सर ।’
‘किराया 2,200 उसी में बिजली का बिल और पानी का बिल भी ।’ कहते हुए ताला खोल कर कमरा दिखाने लगा । एक बड़ा कमरा, एक किचन, अट्याचड बाथ-रूम बहुत अच्छा लगा । पर किराया 2,200 बहुत महंगा है न.....
‘सर....किराया कुछ कम कीजिए सर । मेरी मिसस अभी पढाई कर रही है सर.... ।’
‘आँ......तुम्हें इस एरिए में इतना बड़ा घर 2,500 से कम में नहीं मिलेगा । ऊपर से अडवांस भी नहीं ले रहा हूँ । दूसरे लोग दो महीने का अडवांस लेते हैं ।’
‘सच है सर । लेकिन मेरे अकेले की तनख्वाह में मुश्किल होगी सर । 1800 कर लीजिए । अगर आप चाहते हैं तो आगे-आगे बढ़ाते जाइएगा ।’
‘ऐसा कहोगे तो कैसे होगा बेटा ?’ थोड़ी देर सोचते हुए कहा ‘ठीक है जाओ 2000 दे दो । लड़की पढ़ रही है कहा न..... अब इससे कम तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा ।’
कैसे ? घर तो बहुत अच्छा है । मकान मालिक भी अच्छा आदमी ही लग रहा है । लेकिन 2000 भर पाऊँगा ? 2000 किराया दे दूँगा तो गुज़ारा कैसे होगा ? मुश्किल है । पर घर लेना भी ज़रूरी है । टाइम भी तो नहीं है । ‘ठीक है सर, लेकिन फ़िल वक़्त 1500 ही हैं जेब में । सर आप यह पैसे ले लीजिए बाक़ी के 500 रुपए दो दिन में दे दूँगा ।’
पैसे लेकर गिनते हुए कहा– ‘ओ.के., कब आएंगे घर में ?’
उछल कर कूदने का मन किया । ‘कल ही आऐंगे सर ।’ मैंने कहा ।
उस आदमी ने कहा– ‘मुझे पढ़े-लिखे लोग बहुत पसंद हैं । दो लोग ही रहते हैं न, सो घर थोड़ा साफ़-सुथरा रख लेना बस इतना ही ।’ इसके आगे उस आदमी ने कुछ नहीं पूछा । मुझे वह मेरे लिए उतर कर आए हुए मसीहा की तरह लग रहा था । ‘आप लोग कौन हैं ?’ नहीं पूछा । ‘कौन से धर्म के मानने वाले हैं नहीं पूछा ?’, ‘क्या खाते हैं ?’ नहीं पूछा । ऐसे लगा इस दुनिया में इतने अच्छे लोग भी रहते हैं.....! लेकिन हम लोग मुसलमान हैं कहना होगा न, मुसलमान कहते ही यह लोग भी न कर देंगे तो ? और फिरने की हिम्मत नहीं है मुझ में, बिना बताए रहना भी अच्छी बात नहीं है न । देखते हैं.....
‘सर ? हमारी मिसस तेलुगु ही ज़्यादा बोलती है । तेलुगु में एम.ए., किया है । मैं भी तेलुगु पेपर में ही जर्नलिस्ट की तरह काम कर रहा हूँ...सर.... हम लोग मुसलमान हैं सर । कोई बात नहीं है न सर ।’ कहा आगे-पीछे होते हुए ।
वह आश्चर्य से कहने लगा- ‘मुसलमान ? अरे...! तुम तो ऐसे नहीं लग रहे हो । कितनी अच्छी तेलुगु बोल लेते हो !?’
चेहरे पर हंसी लिए खड़ा था । तेलुगु प्रांत में रहते हुए तेलुगु आना कौन सी बड़ी बात है ? वैसे भी आप लोग ऐसे बात करते हैं जैसे तेलुगु भाषा किसी की बभूति है । उर्दू क्या सिर्फ़ मुसलमानों की भाषा है ? नहीं !’
बूढ़ा मेरे कंधे को थप-थपा कर चला गया ।
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एक हफ़ता गुज़र जाने के बाद भी मकान मालिक ने उन तीन प्रश्नों की मिस्ट्री नहीं खोली । वही बात मेरे मन में घूम रही थी ।
बग़ल के पोर्शन में काम करने वाली नौकरानी हमारे पास भी काम करने लगी । उसके बारे में सुनकर शाहीन ने हाँ कर दिया था । एक काम वाली को काम के लिए रखना यही पहली बार था । बर्तन, कपड़े, झाडू, सफ़ाई आदि उसके काम थे । महीने के 200 कम ही है लेकिन हमारे लिए वह बहुत अधिक भार था ।
एक दिन वह शाहीन से बातों-बातों में मकान मालिक के बारे में कुछ कह रही थी ।
मैंने पूछा– ‘नरसम्मा.... मकान मालिक कौन लोग हैं ?’
उसने कहा ‘आरिजन्स !’
मिस्ट्री धीरे से खुलने लगी...... मैं ठप्प.....से कुर्सी में बैठ गया ।
...... इसका मतलब ब्राह्मण में सभी Non-Vegetarian अछूत हैं । शूद्रों में बड़ा खानेवाले अछूत हैं । मुसलमानों के लिए हलाल नहीं खाने वाले अछूत हैं, गोशा-परदा नहीं करने वाले अछूत हैं । अब बचा कौन ? नरसम्मा की भाषा में ‘आरिजन्स’ मतलब दलित । दलितों के लिए कौन अछूत हैं ? ओ..हो......! दलितों के लिए कोई अछूत नहीं है । इसका मतलब दलित ही असल में मनुष्य हैं । बाक़ी के लोग ही अछूत हैं न !
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं । हमारे गाँव के चमार डप्पु बजाते हुए आ रहे हैं....‘शेर की दहाड़ से उसकी मारों से उछलते-कूदते....!’ ।
हाँ.... सभी अछूत ही हैं... एक दलित को छोड़कर. उन में भी चमार के सिवा ।
अनुवाद – डॉ. साबिरा بیگم
Post Doctoral Fellow
हिन्दी विभाग
हैदराबाद विश्वविद्यालय
हैदराबाद-500046
(चित्र – आनंद टहनगुरिया की कलाकृति)
रवि, मन को छूने वाली इस कहानी से परिचय कराने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंshukriya Ravi ji. badi umda kahani padwayee.
जवाब देंहटाएंहमारे देश में विभिन्न जातियों समाजों धर्मो
जवाब देंहटाएंभाषा भाषी लोग अनादि कालों से साथ साथ
रहते आये है पर शाशको की पालिसी फूट डालो
और राज करो ने इतना विष घोल दिया है कि
कहानी कहानी न लगकर सच घटना लगती है
और ऐसा सच हमें सोंचने पर मजबूर
बहुत सुंदर रचना है ... आनंद आ गया ..
जवाब देंहटाएं-Ek behtareen kahani-dhanyawaad ravi ji.
जवाब देंहटाएंInspirational Story......
जवाब देंहटाएंatyant marmik aur dil ko choti hui kahani....Ravi bahut bahut dhanyawaad
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