गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (1)

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गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के उपन्यास Chronicle of a death foretold  का अनुवाद अनुवादक – सूरज प्रकाश mail@surajprakash.com गैब्रियल गार्...

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़

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के उपन्यास

Chronicle of a death foretold 

का अनुवाद

अनुवादक – सूरज प्रकाश

mail@surajprakash.com

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गैब्रियल गार्सिया मार्खेज का जन्‍म 1928 में अराकाटाका, कोलम्‍बिया में हुआ था उन्होंने अपनी पढ़ाई बोगोटा विश्‍वविद्यालय में पूरी की थी और बाद में वे कोलम्‍बियाई समाचार पत्र एल एस्‍पैटाडोर से रिपोर्टर के रूप में जुड़े और रोम, पेरिस, बार्सीलोना, काराकास और न्‍यू यार्क में विदेशी संवाददाता के रूप में भी काम किया वे अपनी कथाओं में जादुई यथार्थवाद के बेहतरीन चितेरे माने जाते हैं अपनी अद्भुत लेखन क्षमता, विशाल अनुभव संपदा और किस्‍सागोई की अपनेपन से भरपूर आत्‍मीय शैली से उन्‍होंने पूरी दुनिया में विशाल पाठकवर्ग तैयार किया और लगभग सभी भाषाओं में लेखन को एक नयी दिशा दी

उन्‍होंने कई कालजयी उपन्‍यास और कहानियां रचीं। उनके उल्‍लेखनीय उपन्‍यास आइज़ ऑफ ए ब्‍लू डॉग, लीफ स्‍टॉर्म, नो वन राइट्स टू द कर्नल, इन एविल हावर, बिग मामाज़ फ्यूनरल, वन हंडरेड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड, ऑटम ऑफ पैट्रियार्क, क्रॉनिकल ऑफ ए डैथ फोरटोल्‍ड, लव इन द टाइम ऑफ कौलेरा और दसियों अन्‍य पुस्‍तकें हैं।

उन्‍हें 1982 में साहित्‍य के लिए नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था।

वे पिछले कई वर्षों से कैंसर से पीड़ित थे, इसके बावजूद उन्‍होंने लेखन जारी रखा और लिविंग टू टैल द टेल जैसी कालजयी और प्रेरणास्‍पद आत्‍मकथा लिखी।

22 अप्रैल 2014 को उनकी मृत्‍यु हुई.

 

अध्याय एक

उस दिन बिशप वहां पधारने वाले थे। सैंतिएगो नासार तड़के साढ़े पाँच बजे ही उठ गया था ताकि वह भी बिशप को लाने वाली नाव का इंतज़ार कर सके। उस अभागे को क्‍या मालूम था कि वह उस दिन आखिरी बार उठ रहा है और वे दोनों उस दिन उसकी हत्या कर डालेंगे। उसने एक सपना देखा था कि वह इमारती लकड़ी वाले घने जंगलों में से गुज़र कर जा रहा है। वहां हलकी बूंदा बांदी हो रही है वह एक पल के लिए तो अपने सपने में ही खुश हो लिया था, लेकिन जब उसकी आंख खुलीं तो उसे लगा, किसी परिंदे ने उसके पूरे बदन पर बीट कर दी है।

“उसे हमेशा दरख़्तों के सपने आते थे।” प्‍लेसिडा लिनेरो, उसकी मां ने मुझे सत्‍ताइस बरस बाद ये बताया था। वह उस अभागे सोमवार की घटनाएं याद कर रही थी। “उससे एक हफ़्ता पहले सैंतिएगो ने सपना देखा था कि वह टिन के पतरे वाले जहाज में अकेला, बादाम के दरख़्तों के बीच चमगादड़ की तरह किसी भी चीज़ से टकराये बगैर उड़ा जा रहा है,” प्‍लेसिडा लिनेरो ने मुझे बताया था। दूसरे लोगों के सपनों की व्‍याख्‍या करने में प्‍लेसिडा लिनेरो ने बहुत नाम कमा रखा था। शर्त बस, यही होती है कि ये सपने उसे, कुछ भी खाने से पहले बताये जायें, लेकिन अपने बेटे के इन दोनों सपनों में, या दरख्‍तों के दूसरे सपनों में, जो उसने अपनी मौत से पहले वाली सुबहों में मां को सुनाये थे, वह किसी भी अप्रिय घटना का आभास नहीं लगा पायी थी।

सैंतिएगो नासार भी इस अपशकुन को पहचान नहीं पाया था। उसे बहुत कम और उचटी-सी नींद आयी थी। उसने सोने से पहले कपड़े भी नहीं बदले थे। जब वह उठा था तो उसका सिर दर्द कर रहा था। मुंह का स्‍वाद तांबे की तरह कसैला लग रहा था। उसने इन चीज़ों की व्‍याख्‍या इस रूप में की थी कि ये सब बीती रात देर तक चलने वाली शादी की मौज मस्ती की खुमारी रही होगी। इसके अलावा, छ: बज कर पाँच मिनट पर अपने घर से निकलने पर यानी सिर्फ एक घंटे बाद चाकुओं से गोद दिये जाने से पहले वह राह चलते जितने भी लोगों से मिला था, सबने उसके बारे में याद करते हुए यही कहा था कि वह बेशक उनींदा था, लेकिन वह अच्‍छे मूड में था। बल्‍कि उसने हल्के फुल्‍के ढंग से यह भी कहा था कि कितना खूबसूरत दिन है। कोई भी पक्‍के तौर पर नहीं कह पाया था कि वह वाकई मौसम की बात कर रहा था। कई लोग उस दिन को याद करते हुए इस बात पर सहमत थे कि वह एक खिली-खिली सी सुबह थी। केले की बगीचियों से हो कर समंदर की ठंडी हवा आ रही थी। फरवरी के उन दिनों में ऐसे ही मौसम की उम्‍मीद की जाती थी। लेकिन अधिकतर लोग इस बात से सहमत थे कि कुल मिला कर मौसम मनहूस था। बादलों भरा आसमान जैसे धरती के और निकट आ गया था। समुद्री पानी की तीखी गंध हवा में पसरी हुई थी। अनिष्ट की उस कुघड़ी में वैसी ही हल्की बूंदा बांदी हो रही थी जैसी सैंतिएगो नासार ने अपने सपने में बगीची में होती देखी थी।

उस वक्‍त मैं शादी के हुड़दंग से मिली थकान को उतारने के लिए एलेक्‍जैन्‍द्रीना सर्वांतीस की नरम गुदगुदी गोद में सिर रखे लेटा हुआ था। मेरी नींद अलार्म की टनटनाहट से ही खुली थी। मैं यही सोचते हुए उठा था कि बिशप के सम्‍मान में उन लोगों ने ये घंटे बजाने शुरू कर दिये होंगे।

सैंतिएगो नासार ने सफेद सूती कमीज़ और पैंट पहनी। इन दोनों कपड़ों पर कलफ नहीं लगा था और ये कपड़े वैसे ही थे जैसे उसने एक दिन पहले शादी के लिए पहने थे। खास-खास मौकों के लिए उसकी यही पोशाक हुआ करती थी। अगर बिशप न आ रहे होते तो सैंतिएगो नासार अपनी खाकी डांगरी और घुड़सवारी वाले जूते ही पहना करता था। यह रैंच उसने अपने पिता से विरासत में पाया था। वह इस रैंच को बखूबी संभाल रहा था लेकिन इसमें उसकी किस्‍मत ज्‍यादा साथ नहीं दे रही थी। देहात में वह अपनी बैल्‍ट में मैग्‍नम .037 और उसकी गोलियां खोंसे रहता था। इसके बारे में उसका यही कहना था कि ये गोलियां घोड़े तक को बीचों-बीच में से चीर कर उसके दो फाड़ कर सकती हैं। तीतर बटेरों के मौसम में वह अपने साथ बाज पालने का साज़ो-सामान भी ले कर चलता था। उसने अपनी अलमारी में एक मैलिन्‍चर शोनाएर 30.06 राइफल, एक हॉलैंड मैग्‍नम 300 राइफल, जिसमें दोहरी ताकत वाली दूरबीन लगी थी, एक हॉर्नेट .22 और एक विनचेस्‍टर रिपीटर भी रखे हुए थे। वह हमेशा अपने पिता की तरह हथियार को तकिये के खोल के भीतर छुपा कर सोता था, लेकिन उस रोज़ घर से निकलने से पहले उसने गोलियां निकाल ली थीं।

“वह कभी भी भरा हुआ हथियार नहीं छोड़ता था।” उसकी मां ने मुझे बताया था। मुझे इस बात का पता था और मुझे इस बात की भी जानकारी थी कि वह अपनी बंदूकें एक जगह रखता था और गोलियां काफी दूर छुपा कर रखता था ताकि कोई भी उत्‍सुकतावश भी उन्‍हें बंदूकों में भरने की गलती न कर बैठे। यह एक बुद्धिमतापूर्ण परम्‍परा थी जो उसके पिता ने उस सुबह से शुरू की थी जब घर की नौकरानी ने तकिया निकालने के लिए उसका गिलाफ झाड़ा था और उसमें से पिस्‍तौल निकल कर ज़मीन से टकरा कर चल गयी थी। गोली कमरे में रखी अलमारी से टकरायी, ड्राइंग रूम की दीवार के पार गयी और युद्ध की गर्जना करते हुए पड़ोस के ड्राइंग रूम में जा पहुंची। वहां से गोली मैदान के परली तरफ के गिरजा घर की मुख्‍य वेदी पर रखी संत की आदमकद मूर्ति से जा टकरायी और मूर्ति बिखर कर धूल में बदल गयी थी। सैंतिएगो नासार उस वक्‍त छोटा बच्चा था। इस दुर्घटना के सबक को वह कभी भूल नहीं पाया।

उसकी आखिरी छवि जो उसकी मां के ज़ेहन में थी, वो थी बैडरूम की तरफ उसके लपकते हुए जाने की। सैंतिएगो नासार ने मां को उस वक्‍त जगाया था जब वह गुसलखाने में दवाई के बक्से में से एस्‍पिरिन खोजते हुए इधर-उधर डोल रहा था। मां ने बत्ती जलायी थी और अपने बेटे को दरवाजे में देखा था। सैंतिएगो नासार के हाथ में पानी का गिलास था। वह उसे हमेशा इसी रूप में याद रखेगी। सैंतिएगो नासार ने मां को अपने सपने के बारे में बताया था, लेकिन वह दरख्‍तों की तरफ कोई खास तवज्जो नहीं दे रही थी।

“परिंदों के बारे में किसी भी सपने का मतलब अच्‍छी सेहत होता है।” मां ने बताया था।

उसने अपने बेटे को उसी हिंडोले से, झूलेनुमा अपने बिस्तर से, और उसी हालत में देखा था जिसमें मैंने उस वक्‍त बुढ़ापे की आखिरी लौ में टिमटिमाते हुए देखा था। तब मैं तब इस भूले-बिसरे गांव में लौटा था। मैं तब स्‍मृतियों के टूटे हुए दर्पण को एक बार फिर से जोड़ कर अतीत की कड़ियों को फिर से देखने की कोशिश कर रहा था। सैंतिएगो नासार की मां तब पूरी रौशनी में मुश्‍किल से आकृतियों में फर्क कर पाती थी। उसने अपनी कनपटियों पर किसी जड़ी-बूटी की पुल्‍टिस रखी हुई थी ताकि वह ता-उम्र चलने वाले उस सिरदर्द से छुटकारा पा सके जो उसका बेटा आखिरी बार बेडरूम से गुज़रते हुए उसके लिए छोड़ कर गया था। वह करवट ले कर लेटी हुई थी और हिंडोले के सिरे की रस्सी थामे हुए उठने की कोशिश कर रही थी। उस धुंधलके में गिरजा घर की वैसी ही बू बसी हुई थी जिसने मुझे अपराध वाली सुबह भीतर तक हिला दिया था।

अभी मैं ड्योढ़ी तक पहुंचा ही था कि उस बेचारी ने मुझे भ्रम से सैंतिएगो नासार ही समझ लिया था।

“वह उधर था,” वह बताने लगी, “उसने सफेद सूती कपड़े पहने हुए थे। ये कपड़े सादे पानी में खंगाले गये थे। उसकी खाल इतनी नरम थी कि कलफ का कड़ापन भी सहन नहीं कर सकती थी।” वह लम्बे अरसे तक हिंडोले में बैठी रही। वह काली मिर्च के बीज चुभला रही थी। वह तब तक उसी हालत में बैठी रही जब तक उसका ये भ्रम टूट नहीं गया कि उसका बेटा लौट आया था। उसने तब उसांस भरी थी, “मेरी ज़िंदगी में वही मर्द था।”

मैं सैंतिएगो नासार के बारे में उसकी मां की ज़ुबानी ही जान पाया। वह जनवरी के आखिरी हफ्ते में इक्कीस बरस का हुआ था। छरहरे बदन और कांतिहीन चेहरे वाले नासार की भौंहें और घुंघराले बाल उसके अरबी पिता पर गये थे। अपने पिता के गंधर्व विवाह की वह इकलौती संतान था। ऐसा विवाह, जिसमें उसकी मां को खुशी का एक पल भी नसीब नहीं हुआ था। अलबत्ता, वह अपने पिता के साथ ज्‍यादा खुश रहता था। तभी अचानक, तीन बरस पहले उसके पिता अचानक गुज़र गये थे और वह सोमवार, अपनी मौत के दिन तक अपनी अकेली मां के साथ खुश बना रहा। सहज प्रवृत्ति का वरदान उसे अपनी मां से विरासत में मिला था। अपने पिता से उसने बहुत छुटपन में ही हथियार चलाने, घोड़ों के लिए प्यार और ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदों के शिकार में महारथ हासिल कर ली थी। अपने पिता से ही उसने बहादुरी और विवेक के पाठ सीखे थे। वे आपस में अरबी भाषा में ही बात करते थे, लेकिन प्‍लेसिडा लिनेरो की उपस्थिति में नहीं, ताकि वह खुद को उपेक्षित महसूस न करे। वे कभी भी शहर में हथियारबंद नहीं देखे गये थे। वे सिर्फ एक ही बार अपने सिखाये परिंदे ले कर तब आये थे जब उन्‍हें चैरिटी बाज़ार में अपने परिंदों का प्रदर्शन करना था। अपने पिता की मृत्यु के बाद उसे अपनी पढ़ाई अधबीच में ही, सेकेंडरी स्‍कूल के बाद छोड़ देनी पड़ी थी ताकि वह अपने खानदानी तबेले का कामधंधा अपने हाथ में ले सके। सैंतिएगो नासार अपने खुद के गुणों के कारण खुशमिजाज, शांत और खुले दिल वाला इनसान था।

जिस दिन वे उसे कत्ल करने वाले थे, तो जब उसकी मां ने उसे सफेद कपड़ों में देखा तो वह समझी, उसका बेटा दिन का हिसाब लगाने में गड़बड़ा गया है।

“मैंने उसे याद दिलाया कि आज सोमवार है।” वह मुझे बता रही थी, लेकिन सैंतिएगो नासार ने मां को बतलाया कि वह पादरीनुमा स्‍टाइल में इसलिए तैयार हुआ है कि हो सकता है कि उसे पादरी की अंगूठी चूमने का मौका मिल जाये। मां ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी।

“देखना, वह अपनी नाव से नीचे भी नहीं उतरने वाला।” मां ने सैंतिएगो नासार को बताया था, “वह हमेशा की तरह ज़रूरत भर के आशीर्वाद देगा और वापिस अपनी राह लग लेगा। उसे इस शहर से नफ़रत है।”

सैंतिएगो नासार इस सच्चाई से वाकिफ़ था, लेकिन गिरजा घर के ठाठ बाठ उसे बेइन्‍तहां अपनी ओर खींचते थे। “एकदम सिनेमा की तरह,” एक बार उसने मुझे बताया था। दूसरी तरफ, बिशप के आगमन में उसकी मां की दिलचस्पी इतनी भर थी कि उसका बेटा बरसात में कहीं भीग न जाये। इसकी वजह यह भी थी कि उसने अपने बेटे को नींद में छींकते हुए सुना था। उसने बेटे को सलाह दी थी कि वह अपने साथ छाता लेता जाये, लेकिन सैंतिएगो नासार ने मां को अलविदा कहा और कमरे से बाहर निकल गया। मां ने आखिरी बार तभी अपने बेटे को देखा था।

रसोईदारिन विक्‍टोरिया गुज़मां को पक्का यकीन था कि उस दिन या फरवरी के पूरे महीने के दौरान बरसात तो नहीं ही हुई थी। जब मैं उससे मिलने गया था तो उसने मुझे बतलाया था, ”इसके विपरीत अगस्त की तुलना में सूरज चीज़ों को जल्दी तपा देता है।” यह गुज़मां के मरने से कुछ दिन पहले की बात थी। कुत्‍ते उसे घेरे हुए हाँफ रहे थे और वह नाश्‍ते के लिए तीन खरगोश काट छांट रही थी। तभी सैंतिएगो नासार रसोई में आया था।

“वह जब भी उठता था, उसके चेहरे पर हमेशा तकलीफदेह रात की छाया रहती थी।” विक्‍टोरिया गुज़मां निर्विकार भाव से याद कर रही थी। “उस रोज़ दिविना फ्लोर ने उसे पहाड़ी कॉफी पेश की थी। मेरी बिटिया फ्लोर तब उम्र के उठान पर थी। कॉफी में उसने चम्मच भर गन्ने की शराब डाल दी थी। वह हर सोमवार को ऐसा ही करती थी ताकि वह पिछली रात की थकान से पार पा सके। उस लम्बी चौड़ी रसोई में, आग की तड़तड़ाने की आवाज़ और भट्टी के ऊपर सोई हुई मुर्गियां, इन सबसे सांस रहस्यमय हो जाती थी।” सैंतिएगो नासार ने एस्‍पिरिन की एक और गोली निगली और छोटे छोटे घूँट भरते हुए कॉफी का मग ले कर बैठ गया। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसने एक पल के लिए भी इन दोनों औरतों की तरफ से निगाह नहीं हटायी थी। वे दोनों चूल्हे पर खरगोशों की अंतड़ियां निकाल रही थीं। उम्रदराज होने के बावजूद विक्‍टोरिया गुज़मां की देह सुगठित थी। उसकी छोकरी, जो अभी भी अल्‍हड़पना लिये हुए थी, अपने सीने के उभारों को देख कर फूली नहीं समाती थी। जब वह सैंतिएगो नासार से कॉफी का खाली मग लेने आयी थी तो सैंतिएगो नासार ने उसकी कलाई पकड़ ली और कहा था, “अब तुझे नकेल डालने का वक्‍त आ गया है।”

विक्‍टोरिया गुज़मां ने सैंतिएगो नासार को खून सना चाकू दिखलाया, ”ऐय, जाने दो उसे।” उसने गंभीर होते हुए सैंतिएगो नासार को सुना दिया था, “जब तक मैं जिंदा हूं, तुम इस कली का रसपान नहीं कर सकते।"

जब वह खुद अपने अल्‍हड़पन में पूरी तरह से खिली हुई कली की तरह अँगड़ाई ले रही थी तभी उसे इब्राहिम नासार ने कुचल-मसल डाला था। वह बरसों तक उससे रैंक के अस्‍तबलों में चोरी छुपे प्यार करती रही थी और जब प्यार का बुखार उतर गया था तो इब्राहिम नासार उसे घर की नौकरानी बना कर ले आया था। दिविना फ्लोर, जो तभी के किसी दूसरे साथी नौकर से पैदा हुई लड़की थी, इस बात को जानती थी कि उसका नसीब चोरी छुपे सैंतिएगो नासार के बिस्तर तक पहुंचना ही है और इस बात के ख्याल ने उसे वक्‍त से पहले ही चिंता में डाल दिया था। “उसकी तरह का दूसरा आदमी फिर पैदा ही नहीं हुआ।” उसने मुझे बताया था। तब तक वह मुटिया गयी थी और उसकी रंगत फीकी पड़ चुकी थी। वह तब अपने दूसरे प्रेमियों की औलादों से घिरी हुई थी।

“सैंतिएगो नासार ठीक अपने बाप पर गया था।” विक्‍टोरिया गुज़मां ने अपनी बेटी की बात के जवाब में कहा था, “हरामज़ादा,” लेकिन जैसे ही उसे सैंतिएगो नासार के आतंक की याद आयी थी, तो वह भय की सिहरन से खुद को बचा नहीं पायी थी। वह उस वक्‍त खरगोश की अंतड़ियां खींच कर बाहर निकाल रही थी। उसने भाप छोड़ती ये अंतड़ियां कुत्‍तों के आगे डाल दी थीं।

“जंगली मत बनो,” वह विक्‍टोरिया गुज़मां से कह रहा था, “सोचो, कभी यह भी जीता जागता हाड़ मांस का जीव था।”

विक्‍टोरिया गुज़मां को यह बात समझने में कमोबेश बीस बरस लग गये कि निरीह जानवरों को मारने का अभ्यस्त ये आदमी अचानक इस तरह से आतंकित करने वाली बात कह सकता है। “हे भगवान,” उसने चकित हो कर कहा था, “जो कुछ हुआ, एक तरह से ईश्‍वरीय ज्ञान था। ” इसके बावजूद अपराध की सुबह उसके पास सैंतिएगो नासार के प्रति पिछली इतनी सारी नाराज़गियां बाकी थीं कि सिर्फ़ उसके नाश्‍ते में कड़ुवाहट घोलने की नीयत से वह कुत्‍तों को दूसरे खरगोशों की अंतड़ियां खिलाये जा रही थी। उस वक्‍त वे यही कुछ कर रहे थे जब बिशप को लाने वाली स्‍टीम बोट की कानफाड़ू गड़गड़ाहट से पूरा नगर जाग गया था।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

COMMENTS

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  1. राजीव आनंद की टिप्पणी :
    मुझे 11 जुलाई 2014 के रचनाकार में प्रकाशित गैब्रियल गार्सिया मार्केज के उपन्यास Chronicle of a death foretold का वरिष्ठ रचनाकार सूरज प्रकाश द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद आपत्तिजनक लगा. मैंने पेगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित ग्रेगोरी रबास द्वारा स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवादित Chronicle of a death foretold मंगवा कर जब पढ़ा तो पाया कि सूरज प्रकाश ने चलताउ ढ़ंग से एक महान कालजयी रचना का अनुवाद कर डाला है जो स्तरीय नहीं है. अनुवाद को स्तरीय बनाने में संशोधन की आवश्यकता है. संपादक महोदय को प्रकाशन से पहले जांच कर लेनी चाहिए थी.
    हिन्दी अनुवाद शुरू हुआ है, 'उस दिन विशप पधारने वाले थे.' जबकि उपन्यास की पहली पंक्ति यह है ही नहीं बल्कि पहली पंक्ति की शुरूआत होनी चाहिए थी, ''उस दिन वे लोग उसे मारने जा रहे थे.''
    हिन्दी अनुवाद में सूरज प्रकाश ने जो तीसरी पंक्ति लिखा है, ''उस अभागे को क्या मालूम था कि वह उस दिन आखिरी बार उठ रहा है और वे दोनों उस दिन उसकी हत्या कर डालेंगे.'' यह पक्ति मार्केज के अंग्रेजी अनुवाद में है ही नहीं.
    चौथी पंक्ति में 'इमारती लकड़ी वाले घने जंगलों' की जगह 'इमारती लकड़ी के उपवन' होना चाहिए था क्योंकि Grove का अर्थ 'उपवन' होता है न कि 'घने जंगलों' होता है.
    छठे पंक्ति में अनुवादक ने लिखा है कि 'किसी परिंदे ने उसके पूरे बदन पर बीट कर दी है' की जगह होना चाहिए था कि 'उसे लगा कि परिंदे के बीट का छिड़काव उसके पूरे शरीर पर है.'' दूसरे पाराग्राफ (कंड़िका) को दो पंक्तियों में बांटने की कोई आवश्यकता नहीं थी बल्कि होना चाहिए था, ''वह हमेशा दरख्तों के सपने देखा करता, प्लेसिडा लिनेरो, उसकी माँ ने मुझे सताइस वर्षों बाद उस भंयकर सोमवार की घटनाओं के ब्यौरे को याद करते हुए बताया था.''
    उसके बाद के पंक्ति में 'टिन के पतरे वाले जहाज में' की जगह 'हवाईजहाज' होगा तथा आगे 'चमगादड़ की तरह' तो होगा ही नहीं क्योंकि 'चमगादड़' शब्द उपन्यास में आया ही नहीं है.
    दूसरे ही पाराग्राफ के पांचवी पंक्ति में 'एक घंटे बाद चाकुओं से गोद दिए जाने से पहले' की जगह पर 'सुअर की तरह काट दिए जाने से पहले' होना चाहिए था क्योंकि लातिन अमरिका में सुअरों को काटने की एक परम्परा है लेकिन अनुवादक सुअर की तरह काटे जाने की बात लिखा ही नहीं है.
    नवें पंक्ति में 'फरवरी' के पहले 'खुशगवार' लगाना आवश्यक था. दूसरे पाराग्राफ की अंतिम पंक्ति में 'जैसे सैंतिएगो नासार ने अपने सपने में बगीची में होती देखी थी' की जगह 'सपने में उपवन को गिरते-उजड़ते देखा था.'
    तीसरे पाराग्राफ में 'एलेक्जैंद्रीना सर्वांतीस की नरम गुदगुदी गोद में' की जगह 'मारिया एलेक्जैंद्रीना सर्वांतीस के अंशावतारी गोद में' होना चाहिए क्योंकि apostolic lap का अर्थ 'नरम गुदगुदी गोद' कतई नहीं हो सकता.
    चौथे पाराग्राफ के तीसरी पंक्ति में 'खाकी डंगरी और घुड़सवारी वाले जूते ही पहना करता था' की जगह होना चाहिए था कि 'खाकी डंगरी और घुड़सवारी वाले जूते ही पहनता जैसा कि वह सोमवारों को चर्च जाने के लिए पहनता था.' छठी पंक्ति में 'मैग्नम .037' की जगह 'मैग्नम .357' तथा 'मैग्नम 300 राइफल जिसमें दोहरी ताकत वाली दूरबीन लगी थी' की जगह होना चाहिए था, 'एक हार्नेट .22 जिसमें दोहरी ताकत वाली दूरबीन लगी थी.' चौथे पाराग्राफ का अंत 'उसने गोलियां निकाल ली थी' पर नहीं होकर उसके आगे जोड़ना था, 'उसने गोलियां निकाल ली थी और रात को प्रयोग में लाने वाले टेबल के दराज में रख छोड़ा था.'
    सातवां पाराग्राफ के अंतिम पंक्ति में 'भीतर तक हिला दिया था' की जगह 'अचम्भित कर दिया था' होना चाहिए था क्योंकि startled का यही अर्थ होता है जैसा कि अनुवादक ने लिखा है 'हिला दिया था' तो शब्द आता shaken.
    नौवां पाराग्राफ की पहली पंक्ति 'मैं सैंतियागो नासार के बारे में उसकी माँ की जुबानी ही जान पाया' की जगह होना चाहिए था, 'मैं सैंतियगो नासार को उसकी माँ की जुबानी ही देख सका था.''
    इसी तरह के गलतियों से भरा पड़ा है अनुवाद जिसे फिर से संशोधित करने की आवश्यकता है तभी अनुवाद स्तरीय बन सकेगी.

    धन्यवाद
    राजीव आनंद
    प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा
    गिरिडीह-815301
    झारखंड़

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    उत्तर
    1. सूरज प्रकाश की प्रति-टिप्पणी :
      आपके पत्र के साथ भाई राजीव का पत्र। उन्‍होंने मेरे अनुवाद में कुछ गलतियां गिनायी हैं। अच्‍छा लगा कि उन्‍होंंने कृपा पूर्वक अंग्रेजी अनुवाद से मेरे अनुवाद की तुलना करके कुछ गलतियों की तरफ इशारा किया है। शायद कुछ पन्‍ने लेकिन अगर वे पूरा उपन्‍यास तुलना करके देखेंं तो ऐसी कई गलतियां निकाली जा सकती हैं। मैं इससे इनकार नहीं करता लेकिन इतना बताना चाहता हूं कि अनुवाद हर अनुवादक अपनी समझ, अपनी सोच अपने भाषा ज्ञान अौर अपनी पसंद के अनुसार करता है। अनुवाद में गलतियां निकालना बहुत आसासन होता है। अगर मैं date के लिए तारीख लिखूं तो वे कह सकते हैं दिनांक सही होता। अनुवाद विषय ही ऐसा है क्‍या करें।
      मुझे कुछ नंहीं कहना।
      चाहे तों उन तक मेरी बात पहुंचा दें।

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    2. संपादकीय टिप्पणी -
      स्वयं एक अनुवादक के रूप में, मैं सूरज जी की टिप्पणी से सहमत हूँ. सही अनुवाद शब्द-दर-शब्द या वाक्य-दर-वाक्य नहीं होता, संपूर्णता में होता है, और यथासंभव सरल, ग्राह्य. गीता की सैकड़ों-हजारों प्रकाशित-अप्रकाशित टीकाएं इसकी गवाह हैं.

      रहा सवाल यह प्रश्न कि प्रकाशन से पहले संपादक को जांच कर लेनी चाहिए थी, तो इस तरह के प्रश्न अव्यावहारिक हैं - यथा : जर्मनी या रूसी से कोई अनुवाद आता है तो संपादक के पास न तो ऐसी कोई व्यवस्था होती है और न ही समय.

      राजीव जी से आग्रह है कि वे स्वयं इस पुस्तक का अनुवाद करें. रचनाकार इस अनुवाद को प्रकाशित कर हर्षित महसूस करेगा.

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (1)
गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (1)
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