राकेश भ्रमर की कहानी - चूड़ियाँ

SHARE:

वह कई दिनों से मायके जाने की जिद् कर रही थी और वह मना करता रहा था. धीरे-धीरे उसकी जिद् जोर पकड़ती जा रही थी, तो दूसरी तरफ उसका इनकार कमजोर प...

वह कई दिनों से मायके जाने की जिद् कर रही थी और वह मना करता रहा था. धीरे-धीरे उसकी जिद् जोर पकड़ती जा रही थी, तो दूसरी तरफ उसका इनकार कमजोर पड़ता जा रहा था.


''बस कुछ ही दिनों की तो बात है,'' राधे ने कम्मो को मनाने का एक अन्तिम प्रयास किया था. उसका नर्म-गुदगुदा हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए कहा था, ''कतकी (कार्तिक) का मेला आने वाला हैं हम दोनों मेला देखने चलेंगे, तब मैं खुद तुम्हें तुम्हारी अम्मा के घर छोड़कर आऊंगा.''
''नहीं,'' कम्मो ने झटके से उसके हाथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा था, ''जब भी मैं मां के घर जाने की बात करती हूं, तुम हमेशा यही कहते हो.''
राधे ने अपनी पत्नी की बात का कोई जवाब नहीं दिया. उसकी बात का कोई जवाब हो भी नहीं सकता था, क्योंकि वह हर दूसरे-तीसरे दिन मायके जाने की जिद्् लेकर बैठ जाती थी. जब से वह ब्याहकर राधे के घर आई थी, इसी एक बात को लेकर उसने सबकी नाक में दम कर रखा था. वह जिद् ठानकर बैठ जाती थी और राधे मना नहीं कर पाता था.
राधे ने सोचा था कि अपनी मोहब्बत के फूलों से वह कम्मो को इस कदर सराबोर कर देगा कि उसकी सुगन्ध से वह महमहा उठेगीं कानों में उसके प्यार के मीठे बोल गूजेंगे, नथुनों में जंगली फूलों की मादक सुगन्ध भर जाएगी और आंखों में जवानी के सतरंगी सपने तैरने लगेंगे तो कम्मो धीरे-धीरे मायके के बारे में भूल जाएगी.
परन्तु ऐसा नहीं हुआ था.


उसकी शादी को लगभग एक साल होने को आया था, परन्तु अभी तक पति-पत्नी के मन नहीं मिल पाये थे. राधे ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी, परन्तु कम्मो मुक्त हवा के झोंके की तरह जंगली फूलों की खुशबू अपने बदन में लपेटे इधर-उधर मंड़रा रही थी. उसकी जवानी उत्ताल तरंगों की तरह थीं बदन में ऐसा कसाव था कि किसी के काबू में नहीं आता था. खूशबू को आज तक कोई काबू में कर पाया है?
राधे को अपनी कमजोरी पता थी... वह नाटे कद का, गहरे सांवले रंग का लड़का था, जबकि कम्मो बिलकुल उसके उलट थी. दमकते रूप सौन्दर्य की मलिका, सुबह की सफेद बर्फ की तरह चमकती हुई, लोगों की आंखों को चकाचौंध कर देने वाली... पूरे गांव में उसकी जैसी सुन्दर लड़की कोई और नहीं थी.


राधे ईमानदार, मेहनती और पत्नी को भरपूर प्यार देनेवाला पति था, तो कम्मो चंचल और लापरवाह थी. वह राधे के प्यार की गहराइयों को नहीं समझ पा रही थी. राधे के प्यार का जैसे उसके लिए कोई महत्व नहीं था. वह उसकी तरफ से उदासीन रहती थी और उसके मन में पति के लिए सदा उपेक्षित भाव रहता था. उसका मन न तो ससुराल में रमता था, न राधे की प्यारी बातों में ससुराल की कोई बात उसे नहीं भाती थी. राधे उसके इर्द-गिर्द मंड़राता रहता था और दुनिया की हर खुशी उसके लिए बटोर लाने के लिए तत्पर दिखता था, इससे कम्मो और ज्यादा चिढ़ती थी और उसे बात-बात पर झिड़कती रहती थी. राधे बेचारा मन मसोहकर रह जाता था. वह अब कुछ-कुछ समझने लगा था कि कम्मो एक ऐसी हवा है, जिसमें खुशबू तो है, परन्तु वह कहीं ठहरती नहीं हैं वह जंगली फूलों की खुशबू थी, जो हर तरफ फैल जाती थी और किसी एक भंवरे की नहीं होती थी.


कम्मो का तन तो उसने जीत लिया. पति होने के नाते उसने यह अधिकार हासिल कर लिया था, परन्तु मन जीतने के उसके सारे उपाय व्यर्थ होते जा रहे थे. उसे लग रहा था कि कम्मो का मन किसी और के साथ लगा हुआ है. वह ठीक से नहीं कह सकता था, परन्तु उसका शक उस शख्स के ऊपर जाता था जो शादी के बाद से ही उसके घर आने-जाने लगा था. कम्मो उसे अपना भाई कहती थी, परन्तु उन दोनों के हाव-भाव से कहीं नहीं लगता था कि उनके बीच भाई-बहन का पवित्र रिश्ता हो सकता था. राधे अच्छी तरह समझ गया था कि 'वो' उसका भाई नहीं था. न तो वह उसके मायके के परिवार का था, न मायके का पड़ोसी ही... वह कम्मो के गांव का रहनेवाला जरूर था और शायद जवानी की देहलीज पर कदम रखते हुए गांव की उन्मुक्त हवा में दोनों की आंखें और मन एक दूसरे से टकरायें हों और वह जंगली खुशबू को अपने दामन में समेटकर बांधने में सफल हो गया हो.
वह जब भी आता था, कम्मो ऐसे खिल उठती थी, जैसे सुबह-सुबह कमलिनी खिलकर सूर्य को देखती हुई मुस्कराने लगती है, कलियां खिलकर भंवरों को आमन्त्रण देने लगती हैं कम्मो का संसार तब 'उसी' के आस-पास सिमट जाता था. पति और सास की दुनिया उसके लिए विस्मृत हो जाती थी. राधे और उसकी मां अपने ही घर में पराये जैसे हो जाते थे.
और अक्सर वह 'उसके' साथ अपने मायके चली जाती थी, बिना पति और सास की अनुमति के... वह तो उनसे पूछती भी नहीं थीं कपड़े-लत्ते समेटे और चल दी... तब राधे और उसकी मां को पता चलता था कि कम्मो अपने मायके जा रही थी.


राधे नामर्द नहीं था. उसके मन में आक्रोश उठता था, परन्तु वह उसे दबा ले जाता था. कम्मो उसकी पत्नी थी और वह उसे पति के अधिकार से नहीं, पति के प्यार से जीतना चाहता था. वह परखना चाहता था कि प्यार महान होता है कि उच्छृंखल वासना... दोनों की लड़ाई जारी थी.
राधे मारना-पीटना, डांटना-डपटना तो दूर उससे ऊंची आवाज में बात तक नहीं कर पाता था. और पति की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर कम्मो अपनी मनमानी करती रहती थी. उसने आज तक पत्नी के तथाकथित 'भाई', जिसका नाम उसने खुद तो नहीं पूछा था, परन्तु पत्नी ने एक बार बातों-बातो में बता दिया था कि वह जीवनलाल था, को एक शब्द नहीं कहा था. जीवनलाल सच्चे अर्थों में कम्मो का जीवन था और वह अपनी प्राणों से प्यारी पत्नी के जीवन को अपशब्द कैसे कह सकता था? कैसे उसे अपने घर में आने से मना कर सकता था?


इस साल राधे ने खेतों में कड़ी मेहनत से काम करके लगभग एक हजार रुपये बचाये थे. उसने सोच रखा था कि इस बार मेले में पत्नी को घुमाने ले जाएगा, तो उसके लिए एक नई हरे रंग की साड़ी खरीदेगा, इसी रंग की चूड़ियां और पांवों के लिए गिलट के बिछुए भी... इच्छा तो थी कि चांदी के बिछुए खरीदता, परन्तु ऐसी उसकी माली हालत नहीं थी कि चांदी के गहने खरीद सकता. दिहाड़ी मजदूरी से तीन लोगों का पेट भरना पड़ता थां कितना भी हाथ खींचकर खर्च करो, कुछ बचता ही नहीं था.
राधे के अरमानों को चकनाचूर करके कम्मो अपने मायके चली गई थी.


कतकी का मेला शुरू हो गया था. आज मेले का पहला दिन था और कम्मो अपने मायके में थी. राधे के अरमान उसके सीने में आग के शोलों की तरह धधक रहे थे. जब से कम्मो मायके गई थी तब से न तो उस की कोई खबर आई थी, न राधे ने ही उसकी कोई खोज-खबर ली थी.
लोग मेले में जाने लगे थे. लगभग आधा गांव सूना हो गया था. औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी नहा-धोकर, नए-नए रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर चहकते हुए मेला देखने जा रहे थे. एक अकेला राधे था, जिसके मन में कोई हर्ष और उल्लास नहीं था. वह बुझा-बुझा सा बैठा था, जैसे बरसात के दिनों में बीड़ी बार-बार जलाने के बाद भी ढंग से नहीं जलती है, उसी प्रकार उसके मन में आशा और उत्साह का कोई संचार नहीं हो रहा था. घर के एक कोने में बैठा वह गीली लकड़ी की तरह सुलग रहा था और कड़ुए धुएं की तरह उसके विचार भी उसके मन को कसैला बनाए जा रहे थे.


मां पड़ोस का एक चक्कर लगाकर आई और राधे को बुझे चूल्हे की तरह बैठा देखकर भुनभुनाई, ''अरे, तू बैठा कौन सी रामायण पढ़ रहा है. सारा गांव चला गया, तू क्या रात में मेला देखने जाएगा?''
''मन नहीं कर रहा!'' उसने धीमें स्वर में अपने मन की बात बताई. मां ने समझा कि वह पत्नी के अपनी मर्जी से मायके चले जाने पर दुखी था, इसलिए वह मना कर रहा है; परन्तु वह भी क्या कर सकती थी?
''मन क्यों नहीं कर रहा?'' उसने समझाने का प्रयास करते हुए कहा, ''उधर से बहू को भी लिवा लाता. क्या पता मेले में ही मिल जाए. चल उठ, और तैयार हो जा. मैं खिचड़ी बना देती हूं, जल्दी पक जाएगी.''
मन तो नहीं कर रहा था, लेकिन नहीं जाता तो बहाना क्या बनाता? मन मारकर उठना ही पड़ा. जब तक वह नहा-धोकर तैयार होता, मां ने खिचड़ी बना दी थी. गरम-गरम खाई और ''जाता हूं'' कहकर निकल गया.


रास्ते में इक्का-दुक्का लोग उसे मिले जो साइकिलों में सवार होकर जा रहे थे. साइकिल वाले देरी से जाने का जोखिम उठा सकते थे, परन्तु पैदल चलने वाले तो कभी के निकल गये थे और अब तो मेले में पहुंच भी गये होंगे. जब तक वह मेले पहुंचेगा, मेला पूरी रौनक पर होगां कुछ लोग तो मेले से वापस अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे होंगे.
मेले में जाने का कोई उत्साह उसके मन में नहीं था. जिसके लिए खून-पसीना बहाकर उसने कुछ पैसे जोड़े थे, जिसको साथ लेकर मेला घूमने की उसके मन में लालसा था, वही उसके साथ नहीं थी. पता नहीं मेले में उससे मिलेगी भी कि नहीं. अपनी सहेलियों के साथ होगी, तो क्या उनका साथ छोड़कर उसके साथ अकेले में घूमेगी? पता नहीं... वह कम्मो के मिजाज को आज तक नहीं समझ पाया था.


मेले में पहुंचकर पहले तो वह एक किनारे खड़ा होकर स्थिति का जायजा लेता रहा. चारों तरफ लोगों की भीड़, धूल और शोर... उस शोर में अपनी ही आवाज गुम होती जा रही थी. लोग आ रहे थे, लोग जा रहे थे, बच्चे किलकारियां भरते हुए इधर उधर दौड़ रहे थे. कुछ गुब्बारे उड़ा रहे थे, तो कुछ खिलौनों से खेल रहे थे. कुछ मुंह से बजाने वाले बाजों से अजीब-अजीब तरह की आवाजें निकाल रहे थे तो कुछ बांसुरी बजाकर बेसुरे सुर निकाल रहे थे. सब अपने में मस्त थे. कहीं भी कोई व्यक्ति दुखी या उदास नहीं दिखाई पड़ रहा था. लोगों के चमकते-दमकते रंगीन कपड़ों की तरह उनके मन में खुशियों की लहर दौड़ रही थी और उनके चेहरे ताजा फूलों की तरह खिले हुए थे.. ऐसे में कोई राधे के मुंह को देखता तो यही समझता जैसे किसी वीरान मरघट का साया वहां पसर गया हो.


उसका कोई साथी-संघाती नहीं था. वह किसी के साथ रहना भी नहीं चाहता था. कोई उसके दिल के दर्द को नहीं समझ सकता था. अतः कुछ देर खड़ा रहने के बाद वह मेले के अन्दर प्रवेश कर गया. वह निरुद््देश्य इधर-उधर घूम रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी कम्मो कहां मिलेगी? मन में एक लालसा थी कि अगर वह मिल जाती तो एक बार उससे पूछता कि उसके साथ चलकर अपनी पसंद की साड़ी और कुछ नकली गहने खरीद ले, भले ही उसके साथ ससुराल न जाए, परन्तु इतना तो उसका मान रख ही ले कि उसे लगे कि वह उसकी बीवी थी और उस पर राधे का कुछ अधिकार था.


इतने बड़े मेले में एक अकेली औरत को ढूंढ़ पाना आसान न था. कुछ सोचकर वह बिसातखाने वालों की तरफ गया. इस तरफ औरतों का सामान बिकता था, वहीं पर आस-पास बजाजा भी था, जहां रंग-बिरंगी साड़ियां दुकानों के बाहर लहराती हुई अपनी छटा बिखेर रही थी. एक तरफ चुड़िहारनें बैठी हुई जवान, चंचल, मनचली और मदमस्त खिलखिलाती हुई लड़कियों को चूड़ियां पहना रही थीं.


मेले के इस किनारे केवल औरतों और लड़कियों का रेला था. इक्का-दुक्का मरद भी नज़र आ रहे थे, जो अपनी नई-नवेली दुलहनों को सिंगार का सामान दिलवाने के लिए आए थे. ऐसे जोड़ों को देखकर राधे का दिल डूब गया, फिर वह बेचैनी से उस भीड़ के रेले में अपनी कम्मो को ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. उसकी आंखें चौड़ी होकर हर दुकान पर खड़ी औरतों को बारीकी से देखने लगतीं, शायद इनमें से कोई कम्मो हो.


तभी उसकी नज़र घूमते-घूमते एक चूड़ी की दुकान पर पड़ी. उसका जी धक् से रह गया. दुकान के सामने कम्मो खड़ी थी और चुड़िहारिन से मोल भाव कर रही थी. बगल में जीवनलाल खड़ा था, जो कम्मो की कमर में हाथ डालकर उसे अपने से सटाए हुए था, जैसे दोनों मियां-बीवी हों. कम्मो को कोई शर्म नहीं थी कि वह पराए मर्द के साथ चिपककर खड़ी थी. राधे की शंका सच्चाई में बदल गई थी.


''ये वाली कितने की हैं?'' कम्मो हुलसकर पूछ रही थी. राधे करीब आकर उन दोनों के पीछे खड़ा हो गया था.
''ये थोड़ी महंगी हैं, परन्तु तुम्हारी गोरी कलाइयों में बहुत सुन्दर लगेंगी? नई-नई शादी हुई है?'' चुड़िहारिन पूछ रही थी.
कम्मो ने कोई जवाब नहीं दिया, बस मुस्कराकर रह गई, परन्तु जीवनलाल पंख लगाकर आसमान में उड़ रहा था, ''हां, हमारी नई-नई शादी हुई है. तुम तो सबसे महंगीवाली चूड़ी पहनाओ इसको. सुहागिन बना दो आज...'' उसकी बात पर कम्मो खिखिलाकर हंस पड़ी और जीवनलाल की बांहों में दोहरी हो गई. जीवनलाल ने उसे और ज्यादा अपने से चिपका लिया.
राधे का खून खौल रहा था, परन्तु वह अपने को जज्ब किये खड़ा रहा.


चुड़िहारिन कम्मो की पसंद की चूड़ियां उसके गोरे-गोरे हाथों में पहनाने लगी. वह जमीन पर बैठ गई थी. जीवनलाल भी उसका हाथ थामकर चूड़ियां पहनाने में मदद कर रहा था. राधे की आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था. अब बाकी क्या बचा था, उसकी ब्याहता को एक पराया मर्द चूड़ियां पहना रहा था. उसकी बीवी दूसरे मरद के नाम की चूड़ियां पहन रही थी. अब वह उसकी नहीं रही थी, पराई हो गई थी. पराए मर्द की बांहों में तो कब की समा चुकी थी और आज उसके नाम की चूड़ियां पहनकर पूरी तरह से उसकी हो गई थी.
और उसके पैरों के तले से उसकी जमीन खिसक गई थी.


राधे वहां ज्यादा नहीं रुक सका. मेले की सारी रौनक उसके लिए मर चुकी थी. वह बेतहाशा भीड़ को धकेलता हुआ बाहर निकलने लगा. उसकी सांस फूल रही थी, परन्तु उसे अपना होश नहीं था. बाहर निकलकर उसने एक लंबी गहरी सांस ली. पीछे मेले का शोर कान फाड़े दे रहा था, परन्तु इस शोर से उसे कोई परेशानी नहीं थी. उसके कानों में तो जीवनलाल की यह बात गूंज रही थी, 'हां, हमारी नई-नई शादी हुई हैं तुम तो सबसे महंगीवाली चूड़ी पहनाओ इसको. सुहागिन बना दो आज...'
उस दिन पहली बार राधे ने कच्ची शराब के कई गिलास चढ़ाये और जब वह नशे में धुत हो गया तो रात के अंधेरे में गिरता-पड़ता अपने घर पहुंचा. मां चिन्ता में बैठी उसी का इंतजार कर रही थी. गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था. लोग मेले से थके मांदे आए थे और खा-पीकर नीद के आगोश में समा चुके थे.
''कहां था अब तक? अरे, तू दारू पीकर आया है. हे राम, यह क्या हो गया है तुझको?'' मां उसकी हालत देखकर हैरान थी.


''सब कुछ खतम हो गया!'' नशे में झूमते हुए राधे ने कहा.
''क्या खतम हो गया?'' मां की समझ में कुछ नहीं आया.
''सारे नाते-रिश्ते...'' उसकी जुबान बेतरह लड़खड़ा रही थी. अपना शरीर भी उससे संभाला नहीं जा रहा था. वह लद्् से एक किनारे गिर पड़ा.
''हे राम, ये क्या हो गया है तुझे? और बहू को नहीं लाया?'' मां भयभीत स्वर में बोली.
वह जोरों से चीखकर बोला, ''कहां से लाता, वह तो मर गई.''
''मर गई...!'' बुढ़िया की आवाज जैसे बंद सी हो गई हो. वह पूछना चाहती थी, कब, कहां और कैसे, परन्तु राधे को उसके बाद होश ही नहीं रहा. वह भरे बोरे की तरह एक तरफ लुढ़क गया था.


मां ने लाख कोशिश की उसे होश में लाने की, परन्तु राधे को उस रात फिर होश नहीं आया. शराब के अतिरेक में वह अपने होशो-हवास खो चुका था. होश तो सुबह तक वापस जा जाएंगे, परन्तु उसकी रंगीन दुनिया उसे फिर कहां मिलने वाली थी, जिसके भरोसे आदमी अपना जीवन खुशी और प्यार से गुजार देता है, एक परिवार के लिए अपने जीवन को होम कर देता है. अब कहां थी उसकी वह दुनिया उसके पास... उसने केवल एक पत्नी ही नहीं खोई थी, बल्कि उसकी पूरी दुनिया ही उसके हाथों से फिसल गई थी... सपनों और प्यार भरे परिवार की रंगीन दुनिया.

(समाप्त)

(राकेश भ्रमर)
ई-15, प्रगति विहार हास्टल,
लोधी रोड, नई दिल्ली-110003

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: राकेश भ्रमर की कहानी - चूड़ियाँ
राकेश भ्रमर की कहानी - चूड़ियाँ
http://lh4.ggpht.com/-7VFdrcqi7fI/Ubhn5z_QoPI/AAAAAAAAU_0/s5hURc_q3RQ/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh4.ggpht.com/-7VFdrcqi7fI/Ubhn5z_QoPI/AAAAAAAAU_0/s5hURc_q3RQ/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/08/blog-post_6.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/08/blog-post_6.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content